Monday 6 September 2021

कहानी : तीजहारिन*

 *कहानी : तीजहारिन*

       

      हरेली मनीच तहाँ ले दाई-माई अउ बहिनी मन के मइके कोति बर सुध लामे लगथे। बेटी माई मन खेत-खार के बूता ल लउहा-लउहा निपटाय के सोचथें। कोनो मइके जा के अपन भाई मन ल राखी बाँधे के साध मरथें, त कोनो मन अपन मयारुक भाई मन बर अकताहा राखी पठोय के उदिम करथें। राखी भाई-बहिनी के मया-दुलार के चिन्हारी आय। जम्मो भाई-बहिनी मन राखी के पबरित अउ अटूट बँधना म ननपन ले बँधे रहिथें। अउ जिनगी भर निभाय के कोशिश करथें। बहिनी मन बिहा के अपन नवा घर चल देथें। अपन घर संसार म रम जथे। बेटी-बहिनी मन धरम के जम्मो रिश्ता ल निभावत ससुराल म बड़ खुश रहिथें। अउ सबो के खियाल रखत हँसी खुशी ले जीथें।  मइके कोति भाई-बहिनी के ननपन के मया परेम के बँधान अउ सजोर होवत जाथे। अतका जरूर आय कि दाई-ददा के डेरवठी म खेलई हर अब सपना हो जथे। दाई-ददा, संगी-संगवारी, भाई-बहिनी मन सुरता म हबरत रहिथें। बर-पीपर के छाँव तरी के फुगड़ी, खो-खो, गोंटा खेल, सवनाही झूलना के उठे बरोड़ा मन दाई-ददा अउ भाई-बहिनी के सुरता के बादर धर के आथे अउ नैना ले झमाझम बरसे लगथे। वाह रे नारी परानी के जिनगी ....जनम लेके कहूँ... जिएँ के कहूँ।....अउ... दाई-ददा अउ बहिनी-बेटी ले मोह लामे पाय रहिथे, कि अचकहा बाढ़त मोह ल छोड़ के सजन के अँगना जाय ल परथे। गनेसिया इही सब बात मन ल मनेमन गुनत रहिथे, तभे परोसिन सुखियारिन ह का करत हस गनेसिया दीदी? कहिके आरो देवत आथे। दूनो झन मुँहाचाही गोठियाय बर एक-दूसर तिर आवत-जात रहिथें। दूनो झन अपन-अपन सुख-दुख ल आपस म बाँटत रहिथें। दूनो झन ल एक दूसर के घरू बात के घलव जानबा रहिथें। जेला ओमन कभू कोनो तीसर मेर नइ गोठियाँय। इही दूनो झन के विश्वास हरे जउन उन मन ल तब ले जोरे राखे हे। अइसे तो दूनो झन तीन साल के आगू-पीछू बिहा के ए गाँव म आय रहिन। अउ परोसिन बनिन हे। बीतत बेरा के संग दूनो के पहिचान बाढ़े रहिस।

      'का करहूँ बहिनी ? कतेक मार होथे तीन इकड़ (एकड़) के खेती... दवा पानी के आय ले निदई-चलई के बूता अब जादा नइ लगय। बस ठेलहा बइठे हवँव बहिनी। आठे कन्हैया मना डरेंन। मोर भइया मोला तीजा लिहे कब आही कहिके ओकरे रस्ता जोहत बइठे हँव। पहिली लगतीच भादो म बियासी निंदई चलई हो जात रहिस। तइसने असो पानी काँजी के बने रेहे ले जम्मो बूता काम मन तिरिया गे हे। अउ ए बादर दोखहा ह रोज आथे अउ टुहूँ देखावत बिन बरसे कोन जनी कति जाथे ते....कोन का मोहनी खवाय हे ते भंडारे च कोति उड़त चले जाथे। चिटिक झाँके के नाँव नइ लय।' 

गनेसिया ह जम्मो बात ल एके साँस म कहि डरिस।

         'आठे के मने ले तीजा माने चल देत रहिन हे। कोनो कोनो मन भाई भउजी अउ मइके के खेती आय कहिके निंदे चाले बर खेत घलव चल देत रहिन। अब तो करू भात के बेरा ले तीजा जाथें-आथें। लइका मन के पढ़ई के नाँव लेके अब सबो एके दू दिन बर आथें जाथें। तीज तिहार मन अब पहिली सहीं खुशी नइ बाँटय कस जनाथे कि मोर भरम आय ते।'  ए दरी सुखियारिन घलव गनेसिया के सुर म सुर मिलावत कहिस। 

         'बने सोरिया हस बहिनी। फेर तइहा के बात बइहा लेगे किथे, पहिली सहीं अब कोनो मइके के खेती ल झाँके बर नइ जावँय। '

        'अब कोनेच ह अपन बेटी ल खेती बूता करय कहिके सोचथे।'

          'दीदी! सावित्री नोनी ह तो आय नइ हे अउ तैं ह अपन मइके जाहूँ कहिके सधाय हवस। अइसन ह शोभा नइ देवय दीदी! बेटी तोर दुआर आही, अउ तैं ह अपन भाई के दुआर जाबे, सावित्री नोनी काय सोचही?'

        'कइसे करबे बहिनी! बछर भर के एक ठन तिहार आय। नइ जाहूँ त भाई रिस करही। दाई-ददा जेन दिन आँखी मुँदही तेन दिन मइके म भाई भउजीच ह तो जगा दिही। मेंहा आज नइ जाहूँ, त काली भाई ह दीदी आबे नइ करय कहिके मोला नइ पूछही? रहिगे सावित्री के गोठ, त सावित्री अपन महतारी बरोबर फूफू मन करा रहिके, तीजा मना लिहीं। तीजा भाई-बहिनी के परेम ल जोरे रखे के तिहार हरे। तीजा सुहागिन बहिनी-माई के मइके म मनाय के तिहार आय। ए  अलगे बात आय कि बहिनी फूफू मन जिनगी भर ए तिहार के अगोरा करथें। ननपन के सँगवारी मन ले मिले के मउका देथे। इही तिहार बछर भर म जम्मो भाई बहिनी ल मिले के मउका देथे। सुख-दुख अउ मन के गोठ करत मन ल फरियाय के मउका देथे।' 

       का करबे दीदी! मैं परबुधनिन ह पर के बुध म आके अपन दाई-ददा ले बाँटा माँग के घाव कर डरेंव। जब ले दूनो झन आँखी मूँदे हें, मोर भाई मन मोला कुछु च बात बर नइ सरेखँय। अपन मन मिल के एक दूसर के अँगना म नाचथें। फेर मोला नेवता नइ देवँय। दूनो बाँटे भाई परोसी बनके एक दूसर घर आथें-जाथें, त महूँ ल बुला लेतिन, महूँ ल सरेख लेतिन त का होतिस? महूँ हर उँकरेच दाई-ददा के बियाय हरँव। दू बूँद लहू छोड़े रेहेंव तभे तो ओमन होइन हें। फेर बाँटा माँग के अतेक का गलती कर डरेंव? भाई होतेंव त बाँटा पातेंव के नइ? सुखियारिन ह अपन अंतस के पीरा ल कहि डरिस। अउ ओकर आँखी ले धार बोहाय लगिस।

        'तोर सवाल सही हे बहिनी! फेर तँय खुदे गुन का दाई-ददा के सरग सिधारे के समे तैं कतका दवा-दारू करे हस? ऊँकर सकला जतन बर के दिन संग रेहे हस? उन मन ल कतेक साहमत दे हस?'

         'काँहीच नइ करेंव दीदी! चार काठा के खेती ले भला मैं का साहमत दे पातेंव? ऊपर ले बेटा बहू के आय ले' .... सुखियारिन के पछतावा के आँसू अउ बोहाय लगिस।

          अब का होही बहिनी! उही चार काठा के जमीन ले तोर दूनो भाई मन दाई-ददा के सेवा जतन करिन। अपन धरम निभाइन अउ तैं ह इहाँ के मोह म पर के मउका चूक गेस। अइसन म भाई मन के मन म काँटा तो चुभबेच करही। 

        मोला लागथे बेटी के हाथ पिंवराय के पाछू दाई ददा तिर ओला देहे बर कुछु नइ बाँचत रहिन  हे। अइसन म तइहा के मनखे मन बेटी-माई ल लिवा के लाय बर तीजा के ओड़हर करिन होही। अउ दू कुल के परिवार म नाता सदा दिन जुरे राहय सोचिन होही। तभे तो ए तिहार हमरे इहाँ चलन म हे।

       'तोर कोनो बेटी नहीं त ननद रहितिस त तहूँ ए तिहार के मरम ल जान पातेच। बेटी ल दाई ददा ले बँटवारा माँगे के चाही, फेर बँटवारा ले काकरो मन झन छरियाय त बने होथे। सुमता सुलाव ले बँटवारा होय ले मया परेम बाँचे रहिथे। लइका मन म तनातनी होवत देख के दाई-ददा मन के मन फाट जथे। ऊँकर जिएँ के आस मर जथे। लइका मन ल चाही के एकर ले बाँचय।'

       भाई-बहिनी म मया-परेम के बाँचे ले ही तीजहारिन लुगरा पाथे। जेन ल सबो तीजहारिन अपन ससुरे म जाके देरानी-जेठानी अउ परोसिन ल उछाह ले दिखाथें। तीजहा मिले लुगरा के गरब करथे।

          एती गनेसिया के भाई ओकर अँगना म ठाड़े दूनो झिन के गोठ ल सुन डरिस। ओमन गनेसिया ले कहिथे- दीदी! असो तैं बस अकेला तीजा नइ जावस। तोर संग सुखियारिन दीदी घलव तीजहारिन बनके मोर घर जाही।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

बलौदाबाजार छग

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