Monday 6 September 2021

छत्तीसगढी बियंग (ठेसरा ) ====उत्तम लोकाचार =====

 छत्तीसगढी बियंग  (ठेसरा )


====उत्तम लोकाचार =====


सउॅखिया आदमी मन जब पान ठेला मा सॅघरथे तब पान के बनत ले कोनो न कोनो मुद्दा मा बहस छेड़ देथे ।अउ अंतिम समाधान घलो बता के रेंग देथे।कि समस्या गांव के रहय, देश दुनिया के, राजनीति चाहे धरम करम के ।सबो ले कइसे निपटे जा सकत हे। विचार मंथन के असली ठीहा पान ठेला ले बढिया जगा दूसर कोनो नइये। इंहा बिना मंच माईक के बिना संयोजक बिना आयोजक अउ बिना सभापति के सफल  गोष्ठी निपट जाथे ।अइसन सतसंगी मन के तिर व्यवहार के सबो सिष्टाचार लोकाचार के सब्द ज्ञान भरे रथे ।

हम ये कइसे कहि देन कि इंकर खुद के बोहाय हे, अउ समाज ला धोय सुधारे के ठेका लेय हवें। बिना स्वारथ के अपन बिचार तो रखत हे। इंहा तो ग्यारा दिन ले भागवत गीता के ज्ञान बॅटइया संत हर मनखे मन ला माया मोह लोभ ले दुरिहा रेहे के उपदेश देथे, अउ आखरी के दिन झोरा बोरा खीसा मा माया मोह ला भर के चल देथे। चढउतरी कम परथे त अवइया साल मा ओकर मुख ले भागवत कथा सुने बर नइ मिले ।

      तर्क देके हम काकरो लोकाचार अउ उदारता ला ठेंस नइ पहुंचावन । फेर लोक अउ परलोक के गोठ ला ओतके दूर तक समझथन जतका हमला जरुरत हे। फेर लोकाचार निभाके उतारता देखाय बर कमती घलो नइ करन । लोक के सॅग हमर अचार बिचार समगे उही तो लोकाचार आय।आगू वाले निभगे अउ हम निभा डारेन एकर ले बड़े लोकाचार का हो सकथे।

      आज दुनिया लोकाचार के एके तराजू मा चलत हे। समझे बर अतके कहूं कि हम जेकर कुकरा ला चोरा के लानेन,खाय के बखत दारू धरके ओहू ला बलाथन अउ खवाके भेजथन । सच कहे जाय तो इही पैतराबाजी हर असली लोकाचार आय। या फेर रात मे डाॅका डार अउ दिन मा चार झन के देखऊ उही मन ला दान मे बाॅट। अइसन सहिष्णुता ले भरे सनमान के हकदार होगेस माने सदाचार के उत्तिम लोकाचार निभा  डारे।

आज अइसन लोकाचार के जरूरत हे।

       अब के जमाना मा कोनों काकरो ले खुस नइये। अच्छा कर तब खराब, अउ खराब हे तब खराब । हमर असन ला खुशी तब होथे जब परोसी घर शादी परटी मा खाये के बेरा जाथन लिफाफा मा बीस रूपिया धराके माई पिल्ला छकत फेंकत ले खाथन।अबके चले पंगत के  नवा रिवाज मा चार पूड़ी नइ फेंकाइस तहू का काम के। रिस्ताचार मे लोकाचार  तो हमर घर के  माई लोगिन मन निभा लेथे। ओमन पहिली ले तय कर डारे रथे कि कते सस्ता वाले झलझलहा लुगरा ला फू फू सास ला देना हे, अउ कते ला मइके के भऊजी भतीजी ला दे ना हे।जइसे भी होवय शिष्टाचार मा लोकाचार झलकना चाही । बखत परे मा परम मितान ला रूपिया पइसा चलाना हे तो दूसर तिर ले पांच परसेंट मे लाने हवॅ केहे ला परथे।नइते वापसी के संभावना घलो कम रथे। देखना सुनना सहज हे, फेर देख सुनके चुप रहना अलग बात हे। ठेही देके सुनाबे तो दिन बुलक जाथे बात माड़े रथे।

अइसन संजोग काकरो घर हो सकत हे। नइ होतिस तो पाॅच साल के जुन्ना गोठ छट्ठी मा साग कम होगे, लकर धकर कड़ही डबका के पोरसिस । फेर कतको के हाजमा अतका खराब रथे कि ये बात कतको साल ले पेट भारत गुड़गुड़ी करत रथे।

         अब गोधूलि बेरा मा बिहाव होबे नइ करे।खुसरा चिरई के बिहाव कस आधा रात के लगिन होथे। सगाई  बरात अउ लगिन बरात दूनो मा सगा सम्मान करत ले बेटी वाले के कनिहा कतका हालिस बिहाव के बाद पता चलथे । पहिली चार झन सियान मन जाके लगिन चाॅउर बांध के आ जावे । अब सगई बरात मा घलो सौ दू सौ बराती नइ आही त देखइया मन कहि सकत हे, कि येकर दुनिया मा कोई नइये।या फेर जात समाज ले बाहिर हे का? धोखा ले कोनो बराती मा छुटगे तब वो तानाचार के सुर मा सुना सुनाके कही,कि मोरे बर ऊॅखर गाड़ी छोटे परगे। सच यहू आय कि चली देतिस त अद्धी चघाके हुडदंग ही करतिस ।अइसन आदर्शवादी संस्कारी बेसरमपना ला सगा होवय या समधी आदर पूर्वक झेलथे । एकर ले बड़े उदार भाव कहुंचो देखे बर नइ मिले । चेंदरा मा झुलइया मनखे के लाश ला जब तक दूर चार कोरी नवा कपड़ा नइ ओढाबो हमर लोकाचार के गोठ पूरा नइ होवय। येकर ले मुरदा खुश होथे कि मनखे कहि पाना कठिन हे। मरे आतमा ला शान्ति देय बर पार वाले अउ पारा वाले ला झारा झारा बरा सोंहारी खवाना परथे। नइते मरइया के आतमा  परछी मा झूलत रही। फेर नवा तीखा ला जरे बर चघइया कोनो ये नइ पूछय कि बरा सोंहारी पानी मा चुरथे  कि तेल मा। उपर ले शिष्ट लोकाचार धर्म निभाके ये कहि सकथे कि बरा मा नून कम रिहिस।

           आज आदर्शवादी बन फेर गांधी गिरी देखाय के जरूरत नइये। धर्माचार बन फेर परसाद के मिलत ले।राष्ट्रवादी आशावादी बन फेर संविधान के किताब धरके झन रेंग।ये धरती राम के हरे । मरियादा बचाना हे त आज के समाज मा कइसे निभना हे तोर उपर हे। सब किसम के अपराध ला देख सुन फेर मानवाधिकार के ताबीज पहिराय के उदिम मत कर। सदाचार सहिष्णुता उदारता शिष्टाचार लोकाचार के टोपी पहिर के सब घूमत हे।समता समानता अउ सद्भाव के रस बड़े बड़े मंच मा खूब मिठाथे। फूटे दरपन मा सकल देखके कोनो करम ठठाना नइ चाहे । भले आचरन के अचार बनत रहय ।दोष उही मन गिनथे जेमन दूध के धोवल रथे। फेर जिंहा दूध के अंकाल होवत हे उॅहा धोवात कोन हे।बस लोक के सॅग मा बिचार बइठे रहय।🙏


राजकुमार चौधरी "रौना "

टेड़ेसरा राजनांदगांव 🙏🙏🙏

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