Sunday 26 September 2021

संस्मरण आलेख)-मोहन कुमार निषाद


 

*मोर गद्य लेखन के सुरुवाती कहिनी - मोर प्रेरणाश्रोत गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी (संस्मरण आलेख)*


गद्य लेखन के क्षेत्र मा मँय बिल्कुल नवा लिखइया अँव , जहाँ तक गद्य विधा के लेखन ल मँय समझ पाये हँव । अपन छोटे मंदमति ले अपन अनुभव ला आप सबो तीर साझा करत हँव । गद्य लेखन ला हमन जतेक कठिन समझथन न ये वोतेक कठिन विधा नोहय , अउ जतेक सरल समझथन न वोतेक सरल विधा घलो नोहें । गद्य लेखन बर सबले पहिली अउ जउन जरूरी चीज होथें वो हे चिंतन । गद्य विषय म लिखें के पहिली हमला वो विषय वस्तु जेखर ऊपर हम लिखना चाहत हन वोकर बारे मा अपन जानकारी अउ अनुभव के हिसाब ले हमला बड़ चिंतन करे बर पड़थे । अउ अगर हमला वोकर बारे मा जादा जानकारी चाहिए होथे तब हमला वो विषय के बारे म अउ बढ़िया पढ़ के चिंतन करे बर लागथें , तब जाके वो विषय के ऊपर बने सोंच समझ के अउ बढ़िया लिखें जाथें । कहे के मतलब हे - गद्य मा घलो पद्य असन ही अपन मन के भाव ला ही लिखना रहिथें ।


 फरक बस अतके हे पद्य ला कविता रूप मा बराबर जमा के लिखे बर पड़थे , अउ गद्य ला विषय के ऊपर पूरा ध्यान ला केंद्रित करके अपन चिंतन के हिसाब ले अपन मन के भाव ला सरलग लिखत कलम के धार मा बहाना होथें ।  मँय कभू सोंचे नइ रहेंव कि मँय कभू गद्य लिख पाँहु या एक दिन गद्य म लिख हँव कहिके । जब साहित्य लाइन मा जुड़ेव तब पहिली अलवा जलवा अपन मन के भाव मन ला कविता के रूप मा उतार लेवत रहेंव । वो समे मोला गद्य के बारे म कोई जानकारी नइ रिहिस । फेर धीरे धीरे मोर भेंट मोर साहित्यिक गुरु प्रणम्य पूज्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी मन ले होइस । येला मँय अपन सौभाग्य मानथँव कि मोर सुरवाती दौर म ही मोर भेंट पूज्य गुरुदेव जी मन ले हो गीस , अउ जिंकर सानिध्य पाके ही मँय हा छंद जइसन अनमोल ज्ञान ला सिखत सिखत पूज्य गुरुदेव जी मन के छत्रछाया मा रहिके साहित्य के बारीकी मन ला धीरे - धीरे जानत अउ समझत गे हँव ।  


  

हमर गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी मन के व्यक्तित्व उनकर सोंच अउ उनकर साहित्यिक विचारधारा संग उनकर बताय मार्गदर्शन ले मँय सुरू से ही बहुत प्रभावित रहे हँव अउ आज ले घलो हवँव । पूज्य गुरुदेव जी मन के छवि हा जतेक साफ हें ओइसने हे उनकर हृदय हा घलो फरी पानी असन स्वच्छ अउ निर्मल हावय । जिंखर अन्तस् म कोन्हों छोटे बड़े कलमकार कवि साहित्यकार  साधक जइसन कोन्हों भेद भाव नइये । प्रणम्य गुरुदेव जी मन सबो साधक मन ला एक बरोबर ही मानीन हे अउ मानथे । उनकर मेर कोई नवा जुन्ना सीनियर जूनियर साधक कवि साहित्यकार नाम के कोई जिनिस नइये । पहिली मँय संकोच म सोंचव कि गुरुदेव जी मन ले कइसे बात करँव कहिके अउ डर घलो लागय , मँय कहाँ अभी के लइका अउ गुरुदेव जी मन अपन उमर अउ अनुभव ले बड़का गुणी  साहित्यकार आय कहिके । मन तो बड़ होवय कि गुरुदेव जी मन ले आशीर्वाद लेय के अउ उनकर ले मार्गदर्शन लेय के , फेर हिम्मत नइ होवत राहय उनला फोन करे के ।


एक दिन हिम्मत करके गुरुदेव जी मन ला फोन लगाय हँव गुरुदेव जी मन के आशीर्वाद संग गुरुदेव जी मन ले बहुत अकन साहित्यिक चर्चा होइस , जेमा गुरुदेव जी मन ले बहुत कुछ जाने के संगे संग सीखे बर मिलिस अउ आघू का करना चाहिए वोकर बारे मा गुरुदेव जी मन ले मार्गदर्शन मिलिस । गुरुदेव जी मन चर्चा मा बताइन कि हमर छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य मा गद्य लिखइया मन के बहुते कमी हे , हमला गद्य लेखन म भी अपन कलम चलाना चाही । तब गुरुदेव जी मन के देय मार्गदर्शन के हिसाब ले उनकर प्रेरणा ले , उनकर ले सिखत सिखत अउ उनकर लेख - आलेख मन ला पढ़त पढ़त गद्य लिखें के प्रेरणा लेवत गुरुदेव जी मन ले प्रेरित होके ही महूँ हा गद्य लिखें के सुरू करे हँव । बीच बीच मा मोला गुरुदेव जी मन के आशीर्वाद के रूप म सलाह सुझाव मिलते रहिस अउ अभी ले आज ले घलो मिलत आवत हें । 


आज "छंद के छ" परिवार हमर छत्तीसगढ़ संग हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य मा एक ठन क्रान्ति बनगे हावय जेखर संस्थापक हें हमर परम् पूज्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी मन । जउन "छंद के छ" परिवार हा हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ अउ समृद्ध करे खातिर सरलग वोकर उत्थान के उदीम मा लगे हावयँ ।

 आज ये बतावत हुये बड़ खुशी होथें कि हम वो छंद परिवार के हिस्सा आन , अउ गुरुदेव श्री अरुण निगम जी के शिष्य । हम सबो ला चाही कि साहित्य मा जउन गद्य लेखन रूपी यज्ञ चलत हें वोमा अपन गद्य लेखन म सृजन करके सहयोग रूपी आहुति दीन । हम सब लिखत सकत हन , कोशिश करे मा कुछू नइ जाय , अउ प्रयास करें लेही सफलता हाथ आथे । अलवा जलवा सुरवाती गद्य लिखें मा कोई बुराई नइये , हम सब ला गद्य लिखे के प्रयास करत लिखते रचना चाही ।   


                  *मयारू मोहन कुमार निषाद*

                   *गाँव - लमती , भाटापारा ,*

                 *जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)*

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