Friday 31 December 2021

जड़कला के अंगेठा बुतागे *(नान्हे कहिनी)*

 जड़कला के अंगेठा बुतागे *(नान्हे कहिनी)*


       परदेशी अब बुढ़वा होगे।69 बच्छर के उमर मा खाँसत खखारत गली खोर मा निकलथे। ये गाँव ला बसाय मा वोहा अपन कनिहा टोरे रहिस।पहाड़ी तीर के जंगल के छोटे मोटे पउधा मन ला काट के खेत बनाय रहिस।डारा पाना के छानी मा अपन चेलिक काया ला पनकाय रहिस।अंगेठा बार के जड़कला ला बिताय रहिस।अपन सब संगवारी मन ला नवा गाँव बनाय बर अउ खेती खार पोटारे बर जिद करके बलाय रहिस।पाँच परिवार के छानी हा आज तीन सौ छानी के परिवार वाला उन्नत गाँव बनगे।

            शुरुआत मा गाँव मा पाँच ठन झाला असन घर रहय।चारो मुड़ा जंगल।बिजली पानी के आरो नइ रहय।देस ला नवा नवा अजादी मिले रहय।पाँचो संगवारी के बिहाव इही बच्छर होय रहिस ,पाछू परिवार बाढ़िस।देखा सीखी दूसर गाँव के मनखे मन घलाव जँगल ला चतरा के घर कुरिया , खेत बना लीन।सबो घर मा जंगल के जीव जन्तु ले बांचेबर अंगेठा बारे रहय। जंगल मा लकड़ी के काय कमती।बारो महिना अंगेठा बरे। बीड़ी माखुर पीये बर सुभीता रहय। अंगेठा माने सुक्खा पेड़ के खाँधा ला अंगना मा आगी लगा के रातदिन जलाय जाथय। सरकार बदलीस तब ये गाँव के काया बदल गे।राजस्व गाँव बनगे।पट्टा बनगे, भूमि के अधिकार मिलगे।गाँव मा पहुँच मार्ग, बिजली , इस्कूल,अस्पताल धीरे धीरे बने लगिस।गाँव के बिकास बर परदेशी अउ चारों संगवारी  संग गाँव के मनखे मन खाँद जोर के चलिन। दिन बीतत बेरा नइ लगिस।

      गाँव के शोर अतराब मा बाढ़े लगिस।परदेशी अउ ओकर संगवारी के लइका मन पढ़ लिख के तियार होगे,पाछू उँखर नउकरी लग गे। सबो मन बहू बेटा नाती पंथी वाला होगे।फेर खेती बूता ला नइ छोड़ पाईन।डारा पाना के घर हा खपरा छानी अउ अब गच्छी वाला मकान मा बदल गे। घर मा टाईल्स बिछगे।पहिरावा अउ खाय पीये के तरीका बदल गे।गाँव के तीर तखार के जंगल अब दुरिहा होगे।जेन घर मा बारो महिना अंगेठा के आगी रहय उहाँ अब गैस चूल्हा हा आगे।

              अंगेठा के तीर मा बइठ के परिवार संग भात साग खवाई, चहा बनई अउ पियई तइहा के गोठ होगे।नाचा पेखन ला रातभर अंगेठा के तीर मा बइठ के देखाई अब नोहर होगे।जड़कला के दिन मा आज अंगेठा के आगी तापे बर परदेशी खाँसत खखारत गली मा किंदरथे फेर जाकिट अउ सुवेटर पहिरइया  मन के बीच मा अंगेठा के आगी कहाँ मिलही!


हीरालाल गुरुजी"समय"

छुरा,जिला गरियाबंद

ब्यंग === का के बधाई ===

 ब्यंग                          

          === का के बधाई ===


              हमर पंचाग मा कते दिन तिथि मा नवा साल लगथे। एकर जानकारी भले झन रहय। फेर अंगरेजी पंचाग के जनवरी ला नवा साल मान के उत्ता धुर्रा बधाई अउ शुभकामना के संदेश ले अखबार से लेके वाट्सअप अउ फेशबुक पटा जाय रथे। साल बदले के खुशी चाहे सरकार बदले के खुशी हमर असन ला फरक नइ परय। खूंटी के कलेंडर बदल के लगथे कि जिनगी मा भारी फेर बदल होगे।  बडे बिहनिया मयॅ हर किंजरे बर निकले रेहेंव। बस इही लगे लाग मा एक झन हर कथे---------भइया नवा साल के बधाई हो । मयॅ मनेमन सोंचेव मोर तो सबो उही हाल हे ।पाछू दिन ले आगू घलो बेहाल हे। तब का के बधाई। तभो ले जवाब मा कहि देंव---------तहूं ला बधाई हो। वो हर आगू बढगे। अउ मयॅ हर मनेमन गुनेंव कि साल बदले ले मनखे के सोच आदत आचरण ब्यौहार बदलतिस तब महूं कतेंव नवा साल आगे।

            नवा जुन्ना अउ आगू पीछू के गणित ला बइठारत रेहेंव।  नतिजा आइस तौ मयॅ चुकता फैल होगेंव। येकर सेती कि चार महिना पहिली के फिरतू अउ अंकालू के तारी नइ पटत हे। वो एकर सेती कि अंकालू के कुकरी वोकर बारी के थरहा ला चर दिस। मंगलू के जवान टूरा पारा के जवान टूरी उपर नियत लगा के आधा रात के भाॅड़ी कूदे ला छोड़त नइये, पानी के झगरा मा बइसाखिन अउ चइती के पइती आज ले नइ माड़े हे,चुनाव के दारू ला समलिया अकेला पी गे। तेकर अनख ला भइया लाल आज ले नइ भूले हे। खूंटी के कलेंडर अउ कुरसी के सरकार समय आथे तौ बदल जथे। फेर नीयत अउ बिचार नइ बदलय। गाॅव के कोटवार अउ थाना के हवलदार आपस मा सभझौता होय रथे कि, दू पइसा के जुगाड़ के रसता कहां ले निकल के कहां जाथे । पंचयती राज के एक ठन लेख लिखे के मन होथे फेर डर के मारे नइ लिख पाववॅ। डर येकर सेती कि आदमी डहर लिखवॅ कि महिला मन बर। आरक्षण के लहर गाॅव ले शुरू होय हवे। एकर सेती महिला सरपंच। भले काम काज गोठ बात कोष्टउॅहा लुगरा कस झाॅपी मा धराय रहय। अउ फेर काम तो बिचारा पति देव ला ही करना हे।

         तनखा लेवइया गुरूजी से लेके दलाली खवइया कोचिया मन पइसा के वहसी पना मा अतका लपेटाय हे कि, अपन धरम इमान ला पूस के घाॅम मा सेंके बर छानी मा मड़ा देय हें। देश मा गंभीर संकट, समाज पथभ्रष्ट हो गेहे। उद्योग अउ किसानी मा तालमेल नइये। शिक्षा अउ रोग उपचार गरीब मन बर सपना कस होवत हे। सरकारी योजना माने बिना ढक्कन के शीशी मा कागज के बोजना। अब तो महॅगाई के बजार मा बनी भूती के पइसा हर झोरा के एक टोकान ला नइ भरय। 

             पइसा पहुंच अउ पावर हर मनखे के पहिचान बन गेहे । राजनीति करबे त घोटाला करे के ट्यूसन पढ। नेता बनगे तब देश समाज ला होरा असन भूंजे के मंतर सीख। नवा साल मा एको ठन तो नवा होतिस। रहन सहन बदलगे। खानपान बदलगे। बोली मा बिदेशी मिला मिला के बोले के सभ्यता बनगे। संस्कृति अउ परम्परा के चेंदरी मा नकली सभ्यता ला पोंछा लगावत हन। हमर असन ला सरम अउ दुख दूनो होथे। सरम एकर सेती कि अपने पारे घेरा मा धंधा के कोंदा लेड़गा असन देखत भर हन। अउ दुख एकर सेती कि करतब के खुंटा मा इमान बॅधागे। अब तो घर मा मोर सुवारी मोर साथ देय मा किनकिनाथे। नइते महूं कहितेंव नवा साल सबले सुग्घर सबो बर सुग्घर कहिके। 

           तइहा के टिकली पइसा धरोहर हे, तोर अठन्नी चरन्नी के का मोल। चका चौंध के जमाना हे जेब मा रुपिया हे त रॅग रॅग के बोल। रहिगे तेकर जिनगी अउ नइये तेकर का मलाल। खटिया टोरइया बर खटोली मजाल। इंहा धन दौलत ले ही करम के रेख बदले जावत हे। अभागिन के भाॅग मा गुलाल भरने वाला कनों नइये। मजा लेय बर हे त सिधवा के डउकी सबके भउजी होथे। दान करे मा चोला नइ तरत हे । दान रपोटे मा तरत हे । हमर असन बर सबो नवा अउ सबो जुन्ना। मन मा कतको सवाल उठत रथे भइया हो फेर निदान अउ हल एको ठन के नइये। फेर वाह रे जिनगी जिंहा हल नइये उॅहा सवाल ही सवाल। बस जइसे तोर हाल ओइसने मोर हाल। तब का के बधाई अउ का के नवा साल ।


 राजकुमार चौधरी "रौना" 

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

नावा बछर के नावा कुरता

 नावा बछर के नावा कुरता 

                    तीन सौ पैंसठ दिन म एक बेर जलसा होये समय के घर म । अवसर रहय समय के बेटा “ बछर “ के जनम । भगवान खुदे आवय अऊ नावा लइका बछर के देहें म जगजग ले नावा सफेद कुरता पहिरा के  ओकर उप्पर नम्बर लिख के नाव धर देवय । ब्रम्हाजी के घड़ी म जइसे समे होइस .... भगवान झम्मले परगट होके ..... तुरते जनमे लइका “ नावा बछर “ ला नावा कुरता पहिरा दिस अऊ नाव धरत दू हजार बाइस लिख के जाये बर धरिस । समय पूछिस - भगवान , तूमन हरेक दारी मोर नावा बछर बर नावा कुरता लान के पहिराथव , फेर ये पइत काये पहिरा दे हाबव ? कतको जगा ले मइलहा चिरहा अऊ केऊ रंग के दिखत हे ? भगवान किथे – हव बेटा .. तोर नानुक बाबू नावा बछर ला हरेक दारी नावा सफेद कुरता पहिरा के जाथंव , फेर देख ... जवइया बछर के कुरता के का हाल होगे हे , कुरता म तिल मढ़हाये के लइक जगा निये । जेती देख तेती दाग लहू अऊ राईस मिल ले निकले पानी ले जादा बदबू ... फेर ये पइत ... । बीच म बात काटत समय किथे – तीन सौ पैंसठ दिन म कुरता मइलाबेच करही अऊ दुर्गंध तो आबेच करही भगवान .... । भगवान किथे – हरेक दारी कस ... तोर नावा बछर बर ... नावा सफेद कुरता खिलवाये के कोसिस यहू समे करेंव । नावा सफेद कुरता खिलवाये बर कतिहाँ कतिहाँ हाथ गोड़ नइ मारेंव । फेर जेकर करा कुरता खिलवाँव वो कुरता अपने अपन माढ़हेच माढ़हे दागदार हो जाय । चिरा जाय । अऊ बस्साये लगे । सुंदर दिखइया अऊ टिकइया कुरता खिले के ताकत इहाँ कोनो दरजी मेर निये । समय किथे - कइसे कहिथस भगवान इहाँ के मनखे मन ला देख । रंग रंग के कुरता पहिर चारों खूँट लठंग लठंग गाँड़ा कस बछ्वा फुदर फुदर के खावत किंजरत हे अऊ तैं बने दरजी नइ मिलिस कहिथस । भगवान किथे - इँकर मन कस कुरता खिलइया दरजी तो कतको मिलय , फेर ........। 

                   समय पूछिस – का फेर , तैं कतिहाँ गे रेहे तेमा .. फरिया के बता ? भगवान किथे – मंदिर के आगू बइठे दरजी करा गेंव । ओहा कपड़ा नाप लेके मोला पूछिस के ..... कतका रूपया वाला कुरता खिलवाबे ? में समझेंव निही । वो बतइस के मनखे अपन हैसियत के हिसाब ले .... एक रूपया ले लाखों रूपया के कुरता खिलवाथे । में केहेंव - खिलत तो उहीच मसीन ले होबे । उइसनेच तागा बउरत होबे , फेर खिलई के रेट म अतेक अंतर काबर ? ओ किथे – काकर आगू म बइठे हँव मेंहा , नइ देखत हस का ? भगवान के पूजा असन म जब रेट अलग अलग हो सकत हे तब का मोर खिलई के रेट ..... अलग अलग नइ हो सकय । में तभो तियार होगेंव । तभे ओहा .... मोर जात पूछिस । मोला समझ नइ अइस के ये का होथे । तब उही मोला बतइस । में सोंचेंव के में जात पात तो बनाये नियों इही मन बनाये हे । कहूँ येकर बिजाती आवँव कहि देहू त .... येहा कुरता खिले बर इंकार झिन कर देवय । तेकर सेती इही दरजी ला मनखे जान .. अपनो जात ला “ मनखे ” कहि पारेंव । वो दरजी मोर उप्पर भड़कगे । अऊ मोर कपड़ा ल फटिक दिस अऊ किहिस के .... तेंहा अतका नीच जात के आवँव कहिके पहिली बताये रहिते ..... ते में तोर कपड़ा ल हाथ तको नइ लगातेंव । ये दुनिया म सब जात बने हे , सिवाय मनखे जात के । में सुकुरदुम होगेंव ..... किलौली करेंव त मंदिर के ठेकेदार कस लुकाके ...... दान दक्षिना के बात करे लागीस । में तियार होगेंव । कुरता खिलागे । फेर ओमा जात पात ऊँच नीच अऊ छुआछूत के अतका अकन रंग चघे रिहीस के झिन पूछ । ओकर गंध तो कुकरी भुंजाए ले जादा महकत रिहिस । ओ कुरता ला नावा लइका ल पहिरा सकना संभव नइ रिहिस । 

                    लम्भा साँस लेवत भगवान आगू अऊ बताये लगिस – तब एक ठिन मस्जिद के आगू म बड़े जिनीस दरजी के दुकान म हिम्मत करके खुसरेंव । ओ दरजी हा बिगन पइसा के खिले बर तियार होगे । ओला बने आदमी समझेंव फेर ..... थोरेचकुन बेरा म उहू अपन रंग देखा दिस । मोर हाथ म बंदूक धरा दिस अऊ अपन बूता करे के बात करे लागिस । मोर धरम पूछिस । मोर से फेर गलती होगे । मेहा अपन धरम ला “ मानव धरम “ कहि पारेंव । दरजी भड़कगे अऊ केहे लागिस के अइसन कनहो धरम नइ होय दुनिया म । तैं हमर धरम म संघर जा बड़ मजा पाबे । कनहो एके ठिन बात ल तीन घाँव सरलग कहि देबे ते जिनगी भर बर छुटकारा पा जबे । बंदूक के बल म अपन धरम म संघेर घला लिस । ओकर धरम म ..... मोर बूता संझा बिहाने कुकरी कस बांग देके लोगन ल दूसर धरम के खिलाफ भड़काना रिहिस । मोर कपड़ा के कुरता खिलागे । फेर ओमा बंदूक के गोली निंगे कस कतको छेदा ........... । जेती देख लहू बोहाये के चिनहा ....... अऊ ते अऊ ओमा नफरत के अतका कीरा बिलबिलावत रहय के .... ओ कुरता ला पहिरना तो दूर .... इहाँ तक धर के लान सकना मुसकिल रिहीस । 

                    थोकिन चुप रेहे के पाछू भगवान केहे लगिस - गिरिजाघर के आगू बड़े जिनीस माल म खाये के विज्ञापन देख भूख हमागे । माल के बीचों बीच शोरूम म कुरता खिलइया ल देख मन खुश होगे । भूख ला भुलागेंव । कपड़ा झोंकते साठ ओ दरजी हा मोर बड़ आवभगत करिस । गाँव के सिधवा गरीब आदिवासी मनखे समझ , मोला न जात पूछिस न धरम । कुरता ल फोकट म खिले बर तियार होगे । जिनगी भर पूरा परिवार के कुरता ल फोकट म खिले के आश्वासन देवत हमर गाँव के अऊ कतको मनखे मन के कतको बूता करे बर तियार होगे । गाँव म बड़े जिनीस स्कूल अस्पताल अऊ पूजा खोली बना दिस । प्रार्थना सभा म जम्मो झिन ला अपन बिरादरी म संघेर लिस । भूख अऊ गरीबी के सेती महू तियार होगेंव फेर ओकर खिले कुरता म छिछोरापन के रंग चढ़गे । झूठ अऊ व्यभिचार के दाग म कुरता सनाये लगिस । थोरेच कन बेरा म ओमा सम्राज्यवाद के बदबू आये बर धर लिस । ये कुरता हा एक दूसर धरम के बीच लड़ई करवाये के माध्यम बन गिस । 

                    पूजा स्थल के आगू बइठे दरजी मन उप्पर भरोसा उठगे । संसद भवन के आगू कतको दरजी बइठे रहंय ..... उही करा पहुँच गेंव । ऊँकर खिले कुरता कभू चारा कस हरियर हो जाये । कभू बोफोर्स कस तोप बन के डरवावय । कभू स्प्रेक्ट्रम कस ये मुड़ा ले ओ मुड़ा किंजरय । त कभू कोयला के आगी कस .... भभके ला धरय । सचिवालय के आगू कोट खिलइया मन करा चल देंव । कोट म अतका कस जेब के झिन पूछ । जुन्ना नोट अतका भरे रहय तेकर ठिक्काना निही । जुन्ना नोट चुमुक ले जइसे बंद होइस .... को जनी कती ले नावा नोट मन खुसरगे । फेर वो कपड़ा ले निकले ..... भ्रस्टाचार के दुर्गंध म नाक दे नइ जाय । 

                      समय हा भगवान ला पूछिस – त अइसन बिन फबित के दागदार चिरहा कुरता ला नावा बछर हा कब तक पहिरहि भगवान ..... जिही देखही तिही हांसही .... तोला काहे .... । भगवान किथे ..... हाँसन दे ना जी । हँसइया मन ओकर बर उज्जर कुरता खिलवा के लान दिही का ...... ये बखत जे कुरता लाने हँव तेला गरीब ईमानदार मेहनतकस मजदूर किसान मन मिलजुर के खिले हे । केऊ हाथ के सेती भले मइलहा रंग बिरंग टप्पर लगे कस अऊ कहूँ करा बिगन खिलाये दिखत हे । फेर येला एकर देहें ले उतारबे झिन । जइसे जइसे कुरता ले पछीना के गंध गहराही , देस के मनखे के जबर बढ़होतरी होवत जही । समय पूछथे – त नावा कुरता पहिराये के सऊँख कब पूरा होही भगवान .... ? भगवान किथे – जब तक बड़का मन बर .... बड़का दरजी के खिले .... उज्जर सफेद कुरता के दाग ..... साधारन जनता ला नइ दिखही अऊ जनता अपन ताकत ले ..... उज्जर पहिर के देश ला बर्बाद करके टेस मरइया ..... खुरसी ला पोगराये फसकरा के बइठे मनखे के कुरता ला .. तार तार होये बर मजबूर नइ कर दिही तब तक ..... तोर नावा बछर के नसीब म उज्जर नावा कुरता नइ आ सके ....... । जे दिन जनता के मन बदलही ..... ते दिन अइसन मन या तो सुधर जही या बदल जही .... तहन .... तोर बेटा बर उज्जर नावा सफेद झकाझक कुरता खिलइया कतको तियार हो जही ।  

    हरिशंकर गजानंद देवांगन  छुरा

नहाँना

 नहाँना

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ये तीन अक्षर के शब्द --न हाँ ना बड़ा विचित्र अउ खतरनाक हे।एखर शुरु म न हे, आखिरी म ना हे फेर बीच म हाँ फँसे हे तेकर सेती लइका होवय चाहे सियान नहाँये बर ना-ना करत हाँ कहेच ल परथे।नहाँना के संग बहाना के पक्का दोस्ती हे फेर एहू ल रोज टोरे ल परथे।

      पहिली लइकापन म जब हम स्कूल जावत रहेंन त नहाये बर दाई के फटकार सुने बर परय अब पचास पार होये के पाछू बाई के डाँट खाये ल परथे।

      सिरतोन म हमर दाई ह कुकरा बासत उठके अँगना-खोर ल बहार के,पानी काँजी भरके लकर-धकर तरिया ले बूड़के आ जवय तहाँ ले अँगाकर रोटी बर पिसान सानत चालू हो जवय--अरे जाना रे गड़ौना -- बेरा चढ़गे----सात-आठ बजगे जड़जुड़हा गतर --कतका बेर नहाबे,स्कूल जाये के टेम होगे।अभी ले तोर गिनती-पाहड़ा ह नइ लिखाये हे।जा-जा-बने रगड़ के नहाँ के आ--भँइसा सहीं मइल माढ़गे हे।दाई के ये  मया म सनाये 'जड़जुड़हा ' वाले ताना ह तो थपरा म मारे कस लागय फेर रोटी खाना हे--स्कूल जाना हे त कइसनो करके नहाँयेच ल परय। नहाँये बर दाई के कहे रंग-रंग के सिखौना भाषण हा गरमी के दिन मा तो पोसा जय फेर ठंड के दिन मा का कहिबे--ऊँहूँ।

       अब तो वो बेचारी हा सरग लोक में रहिथे फेर बिरासत ल अपन बहू माने मोर बाई सियनहिन ल सँउप देहे।अब वोकर टेप रिकारडर चालू हो जथे।जाना नहाँके आना--कतका बेर नहाँबे-खाबे।बेरा चढ़गे हे।काम-बूता म नइ जाना हे का? घरे म खुसरे नाती नतनिन मन सँग भुलाये रहिथस। निच्चट 'जड़जुड़हा ' होगे हस।येदे फेर 'जडजुड़हा ' के ताना--।सच म हम ला तो ये बान मारे कस लागथे फेर का करबे खाना हे त नहाँना तो परबे करही।सुवारी के आगू म आज तक कखरो बहाना चले हे जेन हमर चल जही?

     अइसे बात नइये के हम ला नहाँये के फायदा मालूम नइये। हाबय--जब पढ़लिख के चेतलंग होयेन तभे ले जान डरेंन के नहाँये के अबड़ फायदा हे।एखर ले तन- मन दूनों स्वस्थ रहिथे।रोज नहाँये ले शरीर साफ रहिथे।दाद-खजरी नइ होवय। बिहनिया-बिहनिया नहाँये ले चेहरा के चमक बाढ़थे। खून के दौरा बने होथे। हिरदे के बिमारी नइ होवय।शरीर म चढ़े गरमी उतर जथे।मन ह फुरसदहा लागथे। फेर का करबे यहा हाड़ा- हाड़ा ल कँपावत, शीत लहर चलत जाड़ म तको नहाँना--।हाँ कइसनो करके नहाँये ल तो लागहिच।वोकर बिना भला पूजा-पाठ असुदहा म कइसे होही?

        हमर भारतीय संस्कृति म तको नहाँये के, मतलब स्नान के अब्बड़ महत्तम हे।सरी दुनिया म सबले जादा नँहइया इँहे हें। कोनो भी परब आही त पबरित सरोवर अउ नदिया मन म सामूहिक स्नान

होबे करथे। बड़े बिहनिया ले लइका मन के कातिक नहाना आजो चलन मा हे। हमर गाँव के तरिया मन तो रोज-रोज सामूहिक स्नान के जीयत जागत उदाहरण यें। ए मन समानता ,भाईचारा अउ मानवता के प्रमाण ये जिंहा बिना कोनो भेदभाव के सब स्नान करथें। गाँव भरके स्वर्गवासी मन के तिजनाँहवन अउ दशगात्र के स्नान अउ पिंडा इही तरिया मन म सम्पन्न होथे।

अतका जरूर हे के अब बाथरूम अउ स्वीमिंग पूल संस्कृति के आये ले, संगे संग जल प्रदुषण के बाढ़े ले फरक परत जावत हे।

      कुल मिलाके सार गोठ इही हे के हम ला जरूर नहाँना चाही।चलौ गुनगुनावत नहाये ल जाबो--


ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए।

गाना आये या न आये, गाना चाहिए।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

करिया अंग्रेज

: करिया अंगरेज


                                                चन्द्रहास साहू

                                           मो. 8120578897


बस ले उतरिस । अपन सिकल के पसीना ला पोंछिस । ऐती ओती जम्मो कोती ला देखे लागिस। जुड़ सांस लेके कुछु गुणत गुणत आगू कोती बाढ़गे अऊ होटल मा खुसरगे ।

 ’’पानी देतो भइयां ! अब्बड़ पियास लागत हावय’’ हलु हलु किहिस । 

ओखर गोठ ला सुनके होटल वाला ऊचपुर करिया जवनहा हा अगिया बेताल होगे । ओला गोड़ ले मुड़ी तक देखिस । दांत ला किटकिटावत किहिस

 “ इंहा फोकट मा पानी नई मिले डोकरा....। कुछु खाय ला पड़थे  बरा , भजिया,समोसा ।‘‘

 होटल मा बइठे जम्मो मइनखे के आंखी हा सियान के कमान कस काया मा थिरागे जइसे गिधवा के आंखी हा मरी मा जाम जाथे । चुनुन चानन बरा भजिया चुरे लागिस । फटफटी के टीटीट , सारबिस के पो..पो अऊ मइनखे के चिल्लई ...जम्मो के आरो मा दबगे सियान के बोली हा ।

 “ ददा खपुर्री  रोटी लाने हव । पानी देतेव ते खा लेतेव ” कोनो नई सुनिस ।

‘‘का गोठियाथस डोकरा ...? चल फुट इंहा ले। जवनहा चेचकार दिस ओला। होटल के बइठइया मन बोटोर बोटोर देखे लागिस । अऊ... कठल - कठल के हासे लागिस । 

झुर्री वाला करिया सिकल बियाकुल दिखत रिहिस । अइला गिस । सामरथ करके अपन गोड़ ला उसालिस । थरथरावत गोड़ ला मड़हाइस अऊ होटल ले बाहिर आगे।

’’बाबू एक ठन बाटल के पानी ला देतो । मोर टोटा सुखावत हावय।‘‘

 सियान के गोठ ला सुनके पानी वाला ठाढ़े होगे।

 “ बीस रूपिया लागही डोकरा ” जवनहा किहिस अऊ पइसा मांगे लागिस । पंछा के अछरा ला , सलूखा के खिसा ला तब झोला ला टमरे लागिस  सियान हा । 

“ चुरवा भर पानी के बीस रूपिया लेथो । पानी असन पबित्तर जिनिस ला बेचथो ” सियान संसो करत किहिस ।

 “ पानी ला बेचहू नही ....तब फोकट मा थोड़े दुहु डोकरा ? जादा पियास लागत हावय ते जाके बोरिंग ला ओट अऊ पी ले’’ जवनहा किहिस अऊ चेथी खजवावत अलकरहा गारी बखानिस । सियान के रिस तरवा मा चढ़गे।  लहु के संचार थिरागे अऊ टूरा ला बोटोर बोटोर देखे लागिस । टूरा तो सिसरी मारत साइकिल के पैडिल मसकत भागगे ।

           पहिली हलु हलु ताहन सामरथ भर बोरिंग के हेन्डिल ला टेड़े लागिस । खटरंग ....खटरंग के आरो बाजिस फेर पानी के एक बॅूंद नई गिरिस।  सियान उर्त्ता धुर्रा ओटे लागिस । डग-डग , खट-खट के आरो  आइस फेर चार बॅूंद मतलाहा पानी निकलिस । ऐखर ले जादा तो सियान के काया ले पानी निकलगे । बदन भिजगे मुहु चपियागे , अऊ टोटा सुखागे ।

     अब काया मा थोड़को बल नई रिहिस । सामरथ करके झोला ला घिल्लावत बंबूर रूख के  छइयां मा लेगिस वइसना अपन जांगर ला घला घिल्लावत लेगिस।  जझरंग ले बइठगे । बइठगे... सुतगे । 

“ ये दे डोकरा पी ले पानी ” जवनहा बाटल ला फेक के दिस अब। सियान टप ले झोकिस अऊ ढक्कन हेर के पीये लागिस ..जवनहा हासत रिहिस ...सिरतोन बिकराल हांसी रिहिस। सिरिफ एक घूट पानी । ओतकी तो रिहिस बाटल मा । ले दे के पानी पीयिस अऊ पटियागे । अगास ला देखत देखत सुरता मा बुड़े लागिस।

            नानपन के दिन । सालिक के दाई ददा हा धमतरी के इही माडमसिल्ली  गांव मा कमाये खाये बर आये हावय।      

                        सालिक के ममा गांव घला आय  माडमसिल्ली गांव हा। गांव के मन छुआ माने सालिक अऊ ओखर परवार ला फेर अंगरेज इंजिनियर हा ओखर दाई ला रांधे गढे़े बर राखे रिहिस । छत्तीसगढ़ी कलेवा तो बनाये फेर अंगरेजी कलेवा घला बनाये बर सीखे लागिस ओखर दाई हा । कांदा कोचई सलगा बरा बफोरी इड़हर अऊ जिमी कांदा के साग अब्बड़ चाट चाटके खावय अंगरेज हा अऊ मुचकावत काहय 

’’वाव वेरी टेस्टी डिस।  बेरी गुड इट्स रियली वेरी गुड । व्हाट अ काम्बीनेसन ऑफ पल्स फ्लोर एंड कर्ड काम्बीनेसन । वेरी टेस्टी सलगा बरा डिस । ठुम्हारा दाई बहुत सुन्दर सलगा बरा पकाटा है । "

अब्बड़ मुसुकुल ले काहय अंगरेज हा अऊ बांध के नाप जोख मा लग जावय । सालिक घला पाछू पाछू जावय छाती फुलोवत ।

दिनभर बांध मा बुता करवाय इंजीनियर हा अऊ रातकुन गांव वाला ला पढ़ावय । सालिक तो गदहा रिहिस फेर जौन पढ़हिस तौन हा आज इंजीनियर , हावय देस बिदेस मा । अब्बड़ दिन ले बुता चलिस अऊ एक दिन  बांध सपुरन बनगे। इही मॉडमसिल्ली बाँध हा। सिलयारी नदी मा बंधाये मॉडम सिल्ली बांध।

“ ये डैम ठुमहारे बनजर जामीन को सवर्ग बना देगा । भुख से नही मड़ेगा यहां के लोग । ये डैम सालो साल तक ऐसी रहेगी , खराब नाई होगा ” अगरेजी मा अब्बड़ अकन किहिस फेर सालिक अऊ गांव वाला मन अतकी ला समझिस । 

     सिरतोन माडमसिल्ली बांध एशिया के  पहिली बांध आए जौन हा सायफन  सिस्टम मा बने हावय । केचमेन्ट एरिया ले पानी आथे अऊ कैपेसिटी एरिया मा पानी थिराथे पानी पुरा भराथे ताहन ओखर गेट हा अपने आप उघर जाथे , आटोमेटिक । विज्ञान के भाखा मा ला ऑफ ग्रैविटी अऊ ला ऑफ प्रेशर के सिद्धांत आवय । एखरे सेती बाढ़ के कोनो खतरा नई राहय। 

अंगरेज अपन देस राज लहुटगे अऊ सालिक अपन परवार संग अपन गांव ।

         चिरई चिऊ चिऊ करिस अऊ सालिक के धियान ओती गिस । छिन भर मा जम्मो ला सुरता कर डारिस सालिक हा। अपन ननपन के गोठ जिहां अंगरेज के सुघ्घर बेवहार अऊ आजी-आजा के मया ला सुरता करके मुचकाये लागिस। कलथी होइस अऊ कुहके लागिस। आंखी जोगनी कस बरिस  फेर बुतागे अऊ कुलुप अंधियारी छागे। चमकत सिकल अइलागे उदासी मा। सुन्ना अगास कोती ला देखिस। ओखर आंखी सुन्ना रिहिस अऊ सिकल मा पीरा दिखत रिहिस। कुछु काही ला गुने के उदीम करिस अऊ फेर सुरता मा बुड़गे....।

सालिक अब अपन गांव मोहारा लहुटगे रिहिस।

गैरअपासी गांव जिहा चौमासा भर मा किसानी होथे । बच्छर के बाकी बखत तो सुरूज देवता अंगरा कुढ़होथे। सालिक अपन गांव मा बनी भूति करे अऊ जिनगी ला सिरजाये लागे। इही गांव के उत्ती मा बांध बनाइस सरकार हा। गांव के सुक्खापन के अंधियारी भागे अइसे फेर इही बांध हा जिनगी भर बर घात दे दिस । 

अब्बड़ बड़का बड़का भासन देये रिहिस नेतामन । करोड़ो रूपिया के बांध आए। अब तुहर गांव मा उछाह रही । अन धन बाड़ही । कभू अंकाल नइ परे। सुक्खा नई होवय अतराब हा । सिंचाई ले हरियर हरियर फसल लहराही फेर .... सब अबिरथा। 

एसो गरमी मा बने बांध बरसात मा टूटगे । जम्मो कोती रोहो पोहो होगे । कतको मइनखे मरगे , पटागे अऊ कतको झन हा लुलवा खोरवा होगे ।  जिनावर मन अकबकावत बोहागे । चारो कोती हाहाकार होगे अऊ खेत मा पनिया अंकाल परगे ।  सालिक घला नई बाचतिस । ओहा आने गांव गे रिहिस तब बाचिस दुरिहा गांव । अपन बहु बेटा अऊ नाती ला गवां  डारिस । लील डारिस जम्मो कोई  ला , अभीन के इंजीनियर के बनाये सुरसा कस बांध हा । पेपर मा छपाये रिहिस अऊ टी वी मा देखाइस घला । मोहारा गांव ,मोहरा बाँध ला। सुरता होही।

नेता मन आके भासन दिस अऊ अधिकारी मन मुआवजा बर फारम  भरिस।

हे दाई ददा ! हे राम ! बबूर के कांटा कच्च ले गडि़स । जी तरमरागे। कांटा ला हेरिस परान छुटे कस पीरा होइस।

सालिक अगास ला देख के तिरलोकीनाथ ला सुमरन करिस अऊ आंखी के कोर के आंसू ला पोछिस । चौमासा के ये घाव आए गरमी के दिन आगे फेर मोआवजा नई मिलिस । जौन मइनखे मोआवजा लिखवाये बर पइसा दिस तेखर मोआवजा मिलिस । फेर सालिक तो नई देये रिहिस पइसा। कइसे मिलही मोआवजा ? कोन जन कब मिलही ते ...? चार बेरा होगे  आवत जिला के आफिस मा। राशन कारड मंगाइस । रिन पुस्तिका , आधार कारड जम्मो जमा कर डारिस। 

’’जौन पइसा आये रिहिस तौन सिरागे आने दारी आबे’’ अइसना किहिस अधिकारी हा। दुसरइया दारी मिटिंग मा रिहिस साहब हा। तीसरइयां दारी साहेब छुट्टी मा रिहिस। चौथइया दारी काग-जात कमती होगे । अऊ अब जम्मो काग जात जमा होगे, तब बड़का खुरसी मा बइठे बड़का अधिकारी तिड़बिड़ - तिड़बिड़ अंगरेजी मा बखानथे । दुतकारथे जम्मो अधिकारी मन । 

सालिक जम्मो ला गुणे लागिस ओखर आंखी के पुतरी फरिहाये लागिस । पिवरी ललहू आंखी सुन्न होये लागिस। मुच ले मुचकाये तब कभु  सुन्न हो जावय। अब तो कलथी घला नई मार सकिस। एकोकन सामरथ नई फबिस फेर मन हा दउड़े लागिस ।

करिया अंगरेज के ये सुभाव अब्बड़ डरभुतहा लागिस । बांध बनइया ये करिया अंगरेज हा तो सालिक ला, गांव वाला ला दुख मा चिभोर डारिस । काबर अइसना करथो ....? सौ बच्छर ले जादा होगे मोर ममा गांव माडमसिल्ली बांध हा । कुछू नई होये हे ओहा अऊ गरमी मा तुहर बनाये बांध हा भसकगे। नाती बहु बेटा जम्मो सिरागे । आंखी पथरा होगे। आंसू ढ़रके लागिस । हिचकी मारिस । अगास ला मुहु  फार के देखिस अऊ सब सुन्न होगे .... निचट सुन्न। 

झोला के खपुर्री रोटी घला डूलगे। 

सुरूज नारायेन अब सालिक के काया मा अगिन बरसाये लागिस ।


भीड़ जुरियागे । खुदुर - फुसुर करे लागिस। का होगे ....का होगे ? लू लगगे । लू मा मरगे डोकरा हा । मोआवजा बनवावव, फारम भरवावव। ऐखर नत्ता गोत्ता ला खोजव चिन पहिचान करव । आनी बानी के आरो आइस । अंगरेज के बरबरता के सुरता आगे । जलिया वाला बाग हत्याकांड  के सुरता आगे ओला। जम्मो जुरियाये मइनखे जनरल डायर कस लागत रिहिस। अंगरेज कस लागत रिहिस ...... करिया अंगरेज कस।


चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेष चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

मो. क्र. 8120578897

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समीक्षा

 पोखनलाल जायसवाल: 

भ्रस्टाचार अउ बेवस्था के दू पाट म पिसावत सालिक जइसन कतको आम आदमी के अगुवाई करइया मार्मिक कहानी आय करिया अंगरेज।

     कहानी शुरुच ले शोषित, अथक अउ बेसहारा मनखे के पीरा ल उकेरत आगू बढ़थे। पाठक पढ़त-पढ़त कहानी के मुख्य पात्र के पीरा ल अपने पीरा बरोबर महसूस करे लगथे। अपने तिर के कोनो शोषित, सियान अउ बेसहारा मनखे ल खोज लेथे। ए कहानीकार के शब्द संयोजन अउ चित्रण के कमाल आय।  

       आजकल होटल म फोकट म पानी पिए बर नइ मिलना, अथक अउ सियान मनखे ल मजाक बनाना, ओकर ले ठट्ठा दिल्लगी करना ए सब जीवंत प्रतीत होथे। एकर चित्रण पाठक के अंतस ल झकझोरथे। मुख्य पात्र ह पाठक के अंतस म समा जथे। जे कहानी ल पढ़वावत ले चलथे।

        तब अउ अब म सरकारी निर्माण के काम बूता म भ्रस्टाचार कतेक गहिर ले जड़ जमा डरे हे एकरो आरो देथे ए कहानी ह। सरकारी मुआवजा ले म बेवस्था कइसन आड़े आथे एकरो पोल खोलना ए कहानी के मूल उद्देश्य आय। जेला सुग्घर ढंग ले आगू लाय म कहानीकार चंद्रहास जी पूरा सफल हे।

       भाषा शैली लाजवाब हे। मुहावरा अउ अंग्रेजी शब्द मन के प्रयोग असरदार हे। संवाद ल जीवंत बनाय म एकर बड़ भूमिका हे। भाषा के इही बहाव ह पाठक ले ए कहानी ल एक साँस म पढ़वा लेथे कहे जाय त अबिरथा नइ होही हे।

      सिलियारी नदिया म बने माडमसिल्ली बाँध के पृष्ठभूमि ले नवा बाँध बने अउ ओकर ले उपजे मुसीबत अउ पीरा के कथानक ऊपर लिखे गे  घटित कहानी आय। ए कथानक के बहाना इहाँ पाँव पसार चुके भ्रस्टाचार अउ बेवस्था ऊपर वार करे गे हे।

      आँखी ...काया म थिरागे।....आँखीं ह मरी म जाम जाथे।

      आँखी थिराना अउ  आँखी जाम जाथे, ए दूनो के प्रयोग मोर समझ म नइ आइस।

      शीर्षक करिया अंगरेज अपन आप म बहुत अकन भाव समेटे हे। तन ले भारतीय अउ मन ले अंगरेज बने अपने मनखे के शोषण करइया आय करिया अंगरेज। मन के करिया अउ अंगरेज मन सहीं बेवहार वाला आय करिया अंगरेज। ए दृष्टि ले कहानी के शीर्षक सार्थक हे। कुल मिला के  इही कहना चाहहूँ कि पाठक ल ए कहानी पढ़े के पाछू समय गँवाय के पछतावा नइ होवय।

     आँखी ...काया म थिरागे।....आँखीं ह मरी म जाम जाथे।

      आँखी थिराना अउ  आँखी जाम जाथे, ए दूनो के प्रयोग मोर समझ म नइ आइस।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202

नवा साल मा का नवा

 नवा साल मा का नवा


                   मनखे मन कस समय के उमर एक साल अउ बाढ़गे, अब 2021 ले 2022 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना । 

              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का एक्कीस अउ का बाइस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।

           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन।वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।

               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। नवा बछर के बहुत बहुत बधाई-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 30 December 2021

शादी बर नोनी के उमर* --------------------------

  *शादी बर नोनी के उमर*

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आजकल हमर देश मा विवाद छिड़े हे के नोनी (महिला) मन के शादी के उमर का होना चाही? संसद ले लेके सड़क तक एकर जम के चर्चा होवत हे। नवा कानून बने के तइयारी हे।

            कोनो कहि सकथे के  शादी-बिहाव के समस्या हा तो ककरो भी

व्यक्तिगत समस्या होथे ।येमा कोनो दखल नइ होना चाही । सोचे जाय ता ये सहीं बात नोहय काबर के ये हा व्यक्तिगत के संगे संग समाज अउ राष्ट्र ले जुड़े समस्या तको आय। नोनी-बाबू मन के सहीं उमर मा बिहाव होये ले बहुत कस समाजिक फायदा हे।

        तइहा के जमाना मा तो एकदम लइकुसहा दू-चार के उमर मा बिहाव हो जवय। पर्रा मा बइठार के सुवासिन -सुवासा मन सात भाँवर गिंजार दँय। जिंकर बिहाव होवत हे ते दुल्हा-दुल्हिन मन खेलौना मा भुलाय राहँव।वोमन ला पता नइ राहय के बिहाव कोन चिड़िया के नाम ये। सुने मा तो इहाँ तक आथे के महतारी के पेटे भीतर ले लइका मन के मँगनी-जँचनी हो जाय राहय वोहू ये शर्त मा के तोर लड़की होगे अउ मोर लड़का होगे ता----। बड़ बक्खाय के बात हे---दूनों कहूँ एके होगे ता ? 

       बाल विवाह के कई ठन कारण बताये जाथे जेमा प्रमुख रूप ले रूढ़िवाद, जाति गत मान्यता अउ अँग्रेज मन के पहिली हमर देश मा कुछ बर्बर मन के करे आक्रमण जेमा उन धन ला तो लूटबें करयँ, नारी के अस्मत ला तकों लूट लयँ।जेकर ले बँचाये बर कतकोन झन नान्हें पन मा अपन बेटी के बिहाव कर दयँ।

            अशिक्षा अउ नाना प्रकार के कुरीति मा जकड़े समाज बर अइसन बाल पन के शादी श्राप के समान रहिसे । वो समे आजकल जइसे स्वास्थ्य सुविधा नइ रहिसे,उल्टा नाना प्रकार के बीमारी धुँकी(हैजा), चेचक (छोटे माता, बड़े माता) अउ नइ जाने का -का के रहि-रहि के प्रकोप होवय तेमा कतेक्क लड़का जिंकर बचपन मा शादी बस होय राहय--गवन ,पठौनी नइ होय राहय तेनो मन काल के गाल मा समा जयँ तहाँ ले नोनी  मन हा जिनगी भर बर बिधवा हो जयँ।जेन मन संसार के सुख ला अभी जाने नइये तेनो जिनगी भर बर अभागिन हो जवयँ।

      बाल विवाह के अबड़ेच नुकसान हे। कचलोइहा शरीर मा बिहाव होये ले शरीर ला रोग-राई जकड़ लेथे। जच्चा-बच्चा के दूनों के मौत। बने-बने निभगे ता दूनो कमजोर।अशिक्षा---कुपोषण---जनसंख्या वृद्धि-- बेरोजगारी--गरीबी --पारिवारिक किल्लिर-कइया जइसे बड़े-बड़े समस्या।

         सहीं बात ला समझाये मा भला कोन मानथे? इही सब ला सोंच-बिचार के अँग्रेजी शासन हा सन् 1929 मा शादी के कम से कम उमर 10 साल वाले कानून बनाइच।बाद मा ये बाढ़के 14 साल  होगे। स्वतंत्रता के बाद सन् 1978 मा महिला के शादी के उमर कम ले कम 18 वर्ष अउ पुरष के 21 वर्ष वाला कानून बनिस। सन् 2006 मा बाल विवाह निषेध कानून बनिस।

       अब शादी बर महिला अउ पुरुष के कम ले कम उमर 21साल करे बर कानून बनत हे। एकर संबंध मा तर्क देवइया मन के कहना हे के जब आधुनिक युग मा महिला अउ पुरुष ला समान माने जाथे ता दूनों के शादी के कम से कम उमर एके समान होना चाही। बेटी के कम ले कम 21 साल मा बिहाव करे मा वोला तको पढ़े- लिखे के अउ अपन पैर मा खड़ा होये के पूरा अवसर मिल जही। वो हा शारीरिक रूप ले तको सजोर हो जही। जनसंख्या वृद्धि मा तको लगाम लगही।

         अइसे तो चिंतन के अनेक धारा होथे। बाल विवाह के समर्थन करइयाँ अउ  बड़े उमर मा बिहाव के हानि बतइयाँ मन के कोनो कमी नइये। 

    कुल मिलाके ठंडा दिमाग ले सोंचे जाय ता सिरतो मा बाल विवाह मा नुकसाने-नुकसान दिखथे। शादी बर 21 ले 25 साल के उमर बने होथे।हाँ एकदम ले बाढ़ के 30-40 साल नइ होना चाही नहीं ते कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक अउ शारीरिक समस्या पैदा होये के संभावना हो जाही। नोनी-बाबू दूनों मा जादा परिपक्वता के सेती आपसी तालमेल  के कमी हो सकथे। एक बात अउ शादी-बिहाव जइसे जीवन के आनंद मा थोक-बहुत अल्हड़ता,पागलपन तो होनेच चाही।

    ये शादी बिहाव के विषय बड़ नाजूक होथे।अपने लोग लइका के शादी लगाये मा पछीना छूट जथे। हम तो ये सोंचथन के जिंकर शादी होना हे तेने मन ला बने पूछताछ के, सर्वे करके कानून बनाये जाय। हमूँ दू -चार नोनी मन ला पूछ परेन ता वोमन खुश होके 22 साल काहत रहिन।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

[12/29, 8:16 PM] पोखनलाल जायसवाल: नोनी झन पाछू रहय, होवन दव सग्यान।

भला-बुरा ले ओ अपन, राहय झन अनजान।।


        परिवर्तन (बदलाव) प्रकृति के नियम आय, बेरा के संग बदलाव होना जरूरी आय। तभे नवा सृजन हो पाही। संसार आगू बढ़ही, तरक्की करही। एकर बर जरूरी हे तन ले मजबूत रहे के। तन स्वस्थ रही त मन स्वस्थ रही। तन तभे स्वस्थ रहिथे जब शिक्षा बरोबर मिलय अउ उमर के मुताबिक ही बूता के जिम्मेदारी आय। नान्हे उमर अउ काँचा शरीर म बिहाव होय ले बुध नाश हो जथे। सपना के मरे ले मति छरिया जथे। अइसन म नान्हे उमर के बिहाव नोनी भर के नुकसान नइ होय भलुक समाज अउ देश दूनो के क्षति आय।

       अइसे तो सबो सामाजिक मुद्दा के दू पहलू रहिथे, जेमा दूनो बरोबर नइ राहय। फेर जे पहलू ले जादा फायदा हे ओकर समर्थन करना चाही। इही गोठ ल सँघारे अउ तथ्यात्मक आँकड़ा संग सामाजिक, आर्थिक अउ मानसिक समस्या ल उजागर करत चिंतनपरक निबंध बर आप ल बधाई बादल भैया।🌹💐🙏

छत्तीसगढ़ी में पढ़े - बैरग

 छत्तीसगढ़ी में पढ़े - बैरग

जंवारा परब म मइया बइगा बैरग बनाय

दुर्गा प्रसाद पारकर 


मसो कुंआर नीत नम्मी दसराहा घर-घर खरख धोवाय। कुंआर महीना म पितर देवता मन के सुआगत करथे। पितर खेदा के बिहान दिन जोत जंवारा ह माढ़थे। ताहन फेर कुंआर मास अहोमाया बन-बन सेऊक आए, चोवा चन्दन अगर मलागर माय के सिर चढ़ाए। छत्तीसगढ़ म जंवारा ल हिंगलाज अउ घर म बोए जाथे। गांव हित म गांव भर मिल के बदना के मुताबिक बइगा के सुलाह ले हिंगलाज म जंवारा बइठथे। घर के मुखिया ह परिवार के सुख शान्ति खातिर बदना के मुताबिक द्यर म जंवारा बोथे। 

   जंवारा पाख म तो पूरा छत्तीसगढ़ देवी मय हो जथे। जघा-जघा देवी महिमा के बखान हाथे। संझा बिहनिया तो जंवारा के आरती उतारेच जाथे फेर संझा के संझा ढोल मंजीरा बजा के सेवक मन मइया के जस गीद गा के गुनगान करथे। जस गीद म शीतला के बरनन मिलथे जइसे- ब्रम्हा धर ले कमण्डल मइया धर ले कमण्डल, शीतल सेवा म चले जाबो हो माय। बिजली अस चमकै शीतला, तै बिजली अस चमकैना। तोर हिंगलाज म मइया तोर हिंगलाज म फूलवा के उड़त हे बहार तुम्हरी हिंगलाज म। थंइया-थंइया नाचय अंगना लंगूरुवा हो माय के अजब बने हे माय। छत्तीस रुप तुम धरे माता कोट कोट अवतारा, ठाड़े जिभिया लाल करत हे रुप दिखय विषधारा। कर खप्पर हाथे पर लिए सिंह भये हो हां......। जंवारह मन शीतला नही ते घर म जंवारा बो के अपन कूल देवी के मनौती ल मानथे। फेर डीगर मन अपन मनोकामना ल पुरा करे के खातिर चंडी, महामाया, बम्लेश्वरी अउ दंतेश्वरी माई म जोत जलाथे। छत्तीसगढ़ म जंवारा पाख म बैरग घलो बनाथे। जंवरहा मन जंवारा पाख म शीतला के बैरग ल मानथे अउ मड़इया मन सुरतोही रात म बैरग बना के देवी देवता ल मनाथे।

अ) जंवरहा मन के बैरगः-

       जंवारा पाख म अष्टमी के दिन हुमन होथे। देवी मय माहोल म पिसान ल तेल नही ते घींव म सान के अठोई बनाए जाथे जेला रोंठ कहिथन। अठोई ह परसाद के काम आथे। तीर-ताखर के गांव वाले मन ल घलो देवी सेवा बर नेवता दे जाथे। अठोई के दिन जंवारा म एक्कइस ठन लिमऊ चघाए जाथे अउ देवता मन म धजा खोचे जाथे। शीतल म बइगा ह बैरग ल सम्हराथे। माता देवाला म बैरग ल करिया (मेघीन) लाली अउ पड़री (सादा) रंग के अइलगे-अइलगे एक्कइस-एक्कइस फाल ल सील के सुक्खा बांस ल पहिरा दे जाथे। अतका होये के बाद फुलिंग म कलश के स्थापना कर देथे। तीनो रंग के बैरग ह अइलगे-अइलगे देवी देवता मन के चिन्हारी कराथे। सत्ती (कड़गी सात) बर लाली रंग के बैरग, ठाकुर देवता बर पड़री रंग के बैरग अउ ऋृक्षिण (कंकालीन) खातिर करिया रंग के बैरग सिरजाए जाथे। सेउक मन अठोई के दिन बैरग ल परघा के कारीगीर (लोहार) घर लानथे। हुमन के दिन गांव म तिहार घलो मानथे। कारीगीर ह पिसान के चउंक पुर के उप्पर म पीढ़हा मढ़ा के स्वागत बर बाट जोहथे। सेवुक मन के आते भार पीढ़ा म बैरग ल आसन दे के चरन पखारथे। रोरी (बंदन), गुलाल के टीका लगा के आरती उतार के घर म धो मांज के राखे देवता ल सम्मान पूर्वक सेऊक मन ल सऊंप देथे। सेऊक मन बैरग अउ देवता ल जंवरहा मन घर लेगे बर गावत बजावत आगु डाहर बढ़ जथे। बाजा के थाप ले उत्साहित हो के कतको मन देवता चघ जथे। भाव विभोर हो के देवता मन अपन तन ल लोहा के सांकड़ म पीट-पीट के लहु लुहान कर डरथे। बाना ले जीभ अउ बांह ल घलो आल-पाल बेध डरथे। देवता मन हूम दे के नरियार पा के मन भर नाचथे। देवता चघे के बखत एदे गीद ह जोर पकड़थे-

तुम खेलव दुलारुवा रन बन रन बन हो 

का तोर लेवय रइंया बरम देव

का तोर ले गोर रइंया

का लेवय तोर बन के रकसा

रन बन रन बन हो.........

नरियर लेवय रइंया बरम देव

बोकरा ले गोर रइंया

कुकरा लेवय बन के रकसा

रन बन रन बन हो..............

   जउन घर म जंवारा बोए रहिथे ओमन अपन देवता के रसदा जोहत रहिथे। अंगना म दू ठन चऊंक पुर के पीढ़हा मड़ा के देवता के सनमान खातिर तइयारी म रहिथे। सेऊक मन बाजा गाजा के संग बैरग अउ देवता ल मुहाटी म लानथे। उन ल पानी ओरछ के घर म आसन देथे। सियान ह एक ठोक पिढ़हा म बैरग अउ दूसर पीढ़हा म बाना ल आसन दे जाथे। देवता ल मानथे तेखर सेती जंवरहा मन ल देवताहा घलो कहिथन। देवताहा मन पूरा परिवार बैरग अउ देवता के आरती उतार के असीस लेथे। जंवारा पाख म पंडा अउ बइगा के अघात योगदान रहिथे। तभे बइगा के बताए मुताबिक बैरग बर सरा जमा के बेवस्था करथे। मेघिन बर दू नरियर, एक ठन धोती नही ते पन्छा म नरियर गठिया के बैरग म बांध देथे। सत्ती बर एक नरियर, एक पंछा अउ चूरी पाठ। ठाकुर देव बर सत्ती कस जोरा करे बर परथे। बइगा ह शीतला ले लाने बाना के संख्या के मुताबिक फूलवारी वाले घर म पुरौती पुरौती बांटथे। सबो फूलवारी वाले इही नियम धियम के पालन करथे। ओरी-पारी करके बैरग ल गांव के आखिरी फूलवारी वाले घर म छोड़ देथे। ठंडा के दिन जिंहा बैरग ह छूटे रहिथे उहें ले ओरी पारी परघावत जंवारा अउ देवता ल संघेरत तरिया नदिया डाहर जाथे। जंवारा ठंडा करे के बाद बैरग ल शीतला म खड़ा कर दे जाथे। 

 ब) मड़इया मन के बैरगः-

         मड़ई बनाथे तेन ल मड़इया कहिथन। मड़इया घर म बैरग ल बदना के मुताबिक सुरहोती के रात करिया (मेघीन) लाली अउ पड़री (सादा) कपड़ा ल तोरन कस बड़े अकार म काट के सात घांव एक के बाद एक राख के सील देथे। फूलींग म कलश के स्थापना करे रहिथे। देवारी (गोवर्धन पूजा) के दिन जब राऊत मन बाजा-गाजा के संग बैरग ल परघाए बर जाथे। ओतके बखत तीन ठन लिम्बू, तीन ठन नरियर, उदबत्ती, गुलाल, हूम, बंदन, आगी अउ लोटा म पानी रख के पूजा पाठ करथे। हूम बर गांजा नही ते दारु के उपयोग करथे। हूम धूप में खयरा कुकरा (करिया लाली), खैरी पोंई नही ते पड़री कुकरा के बली चघाए जाथे। तब देवी देवता के मुताबिक राऊत मन दोहा पार के बाजा बजा के नाच गा के देवी देवता मन ल नेवता देथे-

      पूजा परे पूजेरी भइया

      धोआ धोआ चांउर चढांव

      पूजा होत मोर सत्ती के 

      सब देखन चले आव

राऊत मन बैरग संग ठाकुर देवता अउ ग्राम देवता मन ल सांहड़ा देव म गोवर्धन खुंदाए के कार्यक्रम म संघरे बर नेवतथे। गोवर्धन खुंदाए के बाद बैरग ल शीतला लेगथे। पूजा पाठ करे के बाद बइगा ह बैरग ल घर लानथे।

निबन्ध *सोशल मीडिया*

 *निबंध*


निबन्ध

*सोशल मीडिया*


       आज मनखे के जिनगी के रफ्तार बाढ़गे हवय। सबो उत्ताधुर्रा रेंगे धर ले हें। सब दउँड़त हें। कोनो दू मिनट रुक के गोठिया लन नइ सोचत हें। विज्ञान ले पैदा होय मशीन के बीच बूता करत-करत सबे मशीन बरोबर होगे हें। कोनो ककरो चेत नइ करत हें। सब अपने म भुलाय हे। थोरको समे मिलिस तहाँ चार आँगुल के मोबाइल म मुड़ी गड़ियाय नवा दुनिया म भुला जथे। जेखर मुड़ी-पूछी दूनो के बरोबर चिन्हारी नइ होय। इही आभासी दुनिया के नाँव आय सोशल मीडिया। नाँव भले सोशल हवय, फेर जमीन म एको सामाजिकता नजर नइ आवय। ए मीडिया के माया सबो के चेत हर ले हे। कुछू होय एक ठन गोठ यहू हे सोशल मीडिया ह दूर दूर के मनखे ल लकठा म ला दे हवय। तिर म बइठ के भले नइ गोठियाही, सोशल मीडिया म जुड़ के बधाई शुभकामना दे म कोनो पीछू नइ रहय।

       विज्ञान के तरक्की के सँघरा मनखे तरक्की कर ले हे। सोशल मीडिया के आय ले सब एके तिर जुरियाय सहीं लगथें। जंगल म आगी लगे बानी कोनो खबर सरी दुनिया म बगर जथे। व्हाट्सएप व्हाट्सएप खेल म भला कोन कखरो ले पीछू रहना चाहथे। एकरे सेती बिन मुड़ी-पूछी के सब वायरल होय धर लेथे। डर इही गोठ के रहिथे कि कोनो गलत खबर फइलय झन। जेकर ले कोनो मुसीबत म मत आ जय। नवा-नवा खोज मन के कुछ नफा हे त नकसान घलव हे। एला उठाय ल तो परही। सोशल मीडिया म आय जम्मो खबर ल अपन कोति ले जाँच परख के भरोसा करे के आय।

        शिक्षा के क्षेत्र म सोशल मीडिया के उपयोगिता अउ महत्तम ल कोरोना काल ह सब ल समझा दे हे। ऑनलाइन क्लास के चलत पढ़ई ह पटरी म सही सलामत चलत हे। नइ त बड़ मुश्किल होगे रहिस। जेन मन कोनो भी कारण ले ऑनलाइन पढ़ई नइ कर पाइन ओमन के पढ़ई ह पटरी म नइ लहुटे ए। अड़चन होवत हे। घिलरत हवँय। सोशल मीडिया के युग के भरोसा नवा नवा विषय के जानबा घर बइठे हो जात हे।

         सोशल मीडिया म साहित्यिक गोष्ठी, संगोष्ठी अउ कार्यशाला के पूरा आगे हवय। रोज कतको नवा कवि अउ लेखक पैदा होवत हे। कापी पेस्ट करके कखरो रचना ल अपन नाँव ले पोस्ट करइया मन के कोनो ठिकाना नइ हे। इही तरा ले पुरस्कार अउ सम्मान के जुगाड़ घलो कर लेवत हें। अइसन मन नवा नवा संस्था बनाके ई-प्रमाण पत्र बाँटत फिरत हें। तहूँ खुश अउ महूँ खुश कहिके एक दूसर ल सम्मानित करत हें। ए साहित्य बर बड़का नुकसान आय। फेर एकर ले नवा पीढ़ी म साहित्य कोति रूझान बाढ़े हे। ऑनलाइन माध्यम ले कतको झिन साहित्य सेवा करत हें। छत्तीसगढ़ी साहित्य म *छंद के छ* नाँव ले 200 ले आगर छंद साधक जुड़गे हे। *जेकर संस्थापक श्री अरुण कुमार निगम जी हें।*  ए ह छत्तीसगढ़ी साहित्य बर सोशल मीडिया के सबले बड़े वरदान आय। अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य बर श्री निगम जी के समर्पण आय। जे ह छत्तीसगढ़ी छंद बर सदा दिन स्तुत्य रइही। 

       आज मनखे के भागमभाग अतेक हे कि दुख-सुख के नेवता हिकारी अउ तीज परब के शुभकामना दे म सोशल मीडिया बड़ उपयोगी हे। हम दू हमर दू के चलते एकसरवा होवत मनखे बर जेन खोजेंव तेन पायेंव बरोबर आय सोशल मीडिया ह। 

        सोशल मीडिया म अइसन कतको सुविधा हे जेकर ले बइठका आयोजित करे जाथे अउ  कार्यक्रम घलव संपादित होथे।

      जिहाँ चाह, तिहाँ राह बरोबर सोशल मीडिया कमई के जरिया बनगे हे। यू ट्यूब चैनल एकर एक ठन उदाहरण आय।

         मनखे भले रोजी रोटी अउ चाहे कोनो कारण ले घर परिवार ले दुरिहा जाय, सोशल मीडिया उँकर बीच के दूरी ल सकेल के लकठिया देथे। एकर ले जादा मनखे ल अउ का चाही। आपस म मया बढ़ात सोशल मीडिया सब ल जोरे राखय अउ मनखे मीडियाई जिनगी के संग सिरतोन के जिनगी म अपन चेत घलव लगाय राहय, तब घर दुआर म सुख शांति रइही। नइ ते सोशल मीडिया घरू फसाद के जड़ बन जही।


*पोखन लाल जायसवाल*

पठारीडीह पलारी

9977252202

छत्तीसगढ़ म बढ़ोना भात---*

 *छत्तीसगढ़ म बढ़ोना भात---*


हमर छत्तीसगढ़ म हर काम बुता,तिहार बार के पीछू बड़ निक संदेश छिपे रथे। जेला हर छत्तीसगढ़वासी मन बड़ा जोर शोर, उसाह मंगल, ख़ुशी हाली से मनाये जाथे। चाहे कोई बड़का कारज हो कोई उसाह के समे हो,सबो माई पीला मिलजुलके कारज ल पूरा करथे अउ तिहार सरी मनाथे। इहि हमर छत्तीसगढ़ के रहवइया मन के संस्कार ये,संस्कृति आय। जेकर ले आपसी सहयोग, तालमेल, मिलजुलके काम करे के भावना जम्मो गंवईया छ्त्तीसगढिया हिरदे म छलकत ले भरे होथे।


अइसने हमर गंवई गांव म एक ठन कार्यक्रम होथे जेला अब्बड़ जोर शोर ले जुलमिलके मनाथे,जेला--बढ़ोना भात कहे जाथे। ये कार्यक्रम ह उँकर घर होथे जेंकर घर के जम्मो धान-पान,कोदो-कुटकी,अन्न-धन्न ह कोठार म सकला के मिंजा-कूटा के घर म पहुँच जाथे। ये जब्बर काम ह कोई एके-दुये झन के बस के काम नोहे। येला करे बर जतिक झन मनखे मन काम बुता करे ल लगे रथे,वोमन ल बड़ उसाह मंगल ले बढ़ोना भात खवाये जाथे। एमे जम्मो कमईया मनके आदर-सत्कार करत उँकर मेहनत के घलो मान-सनमान घलो होथे। मने परिसरम के सेती अब्बड़ आदर करत बने खान-पान करके खुस करथे।


ये कमइया मनके मन ल सपरिहा घलो कथे। ये मन एक दूसर घर धान बोवाई ले बियासी,निदई,भारा-भुसाड़ा,मिजई-कुटई तक आरी-पारी ले काम बुता ल नारी-परानी,लोग-लइका,डोकरा-डोकरी जम्मो झन पूरा करे ल लगथे, एक घर के काम पूरा होइस तहन दुसरैया घर के बुता करे म जुट जथे। आपस म एक दूसर के सुख दुख म साथ देत परेम भाव अउ सहयोग ले बढिया जुलमिलके सबो झन काम ल करथे।


बढ़ोना भात जेंकर घर खवाथे वोमन अपन सहयोग करईया घर के जम्मो मनखे मन ल नेवता देथे अउ भात साग रांधे के लाईक नोनी मन ल अपन घर पानी लाय बर,भात-साग रांधवाय बर पहिली ले बला डारथे। नेवता देवइया हर कथे कि आज तुमन ल आगी नई बारना हे,हमर घर डहर खाना हे। घर के मन समझ जथे की आज इंकर घर बढ़ोना भात खाना हे। ये भात खवाई हर अपन गांव के बाजार,नहिते तीर-तखार के हाट-बाजार के दिन रखवाथे। जेंकर ले साग-भाजी,तेल-नून, लसुन-गोंदली ले बर बन जथे।


संझा कुन मुंधियार होती भात साग,रोटी-पीठा चूरे के पारी म जम्मो सपरिहा मन घर एक झन मनखे ह खाय बर बलाय ल जाथे अउ सबो माई-पिला ल बलाके अपन घर लेझ जथे। कमइया मनखे मन घलो बड़ खुसी-खुसी बढ़ोना भात खाय ल चल देथे। अउ सबो झन बने पंगत में बैठ के भात-साग,रोटी-पीठा के मजा लेथे।


बढ़ोना भात म सबो मनखे मन के पसंद के खियाल रखे जथे। रोटी-पीठा, बरा,सोहारी,भजिया,मिरी भजिया घलो बनथे। सादा खवईया बर आलू भांटा,सेमी, फूलगोभी, चना,बरबट्टी, बंगाला-चटनी के बेवस्था रथे। अउ एककनि दूसर वाले मन बर दूसर चीज के बेवस्था घलो रखे रथे। सबो कमइया मन बने पंगत ले बैठ के पतरी म परेम भाव ले खाते, नोनी मन बांटे-पोरसे लगथे। अउ घर वाले के अब्बड़ मान-गुन गाथे।


एक घर ल बढ़ोना भात खाय के बाद दूसर घर जिंकर घर के काम पूरा हो जथे,उँकर घर के नम्बर लगथे। सबो संग म कमइया मनखे मन ओरी-पारी ले काम पूरा करथे,अउ उही परेम भाव ले बढ़ोना भात खवाथे।


बढ़ोना भात हमर गंवई संस्कृति म लोगन ल एक दूसर ल जोड़े के काम करथे। छ्त्तीसगढ़ म आज घलो आपस के परेम,सहयोग, भाईचारा, समरसता के भावना अभी तक ले जीयत हे। ये हर सबो मेहनत करईया मनखे-मनखे के पसीना के ओगरत ले कमइ हरे। मेहनत ह सबो जगह समरिधि,खुसहाली,सहयोग के गुन ल पैदा करथे। येकरे सेती हमर छ्त्तीसगढ़ अउ छ्त्तीसगढिया मनखे मन सबले बढिया हे।



                   हेमलाल सहारे

            मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

मड़ई मेला*

 *मड़ई मेला*


           हमर छत्तीसगढ़ माटी के एकठन प्रमुख परब (तिहार) मड़ई मेला हर आय। मड़ई के नाव लेत्तेच म मन  मा उत्साह अउ उमंग भर जथे। ए तिहार  ला हमर राउत भैया मन बड़ धूम धाम से मनाथे। मड़ई मेला देवारी ले लेके महाशिवरात्रि परब तक चलथे। मड़ई मेला के आयोजन राउत भैया अऊ पूरा गाँव भरके मिलके करवाथे। मड़ई के आयोजन राउत मन के बदना तको रथे। बदना के सेती  एकर आयोजन के खरचा  ला बदना बदइया हा अकेल्ला उठाथे। मड़ई के आयोजन राउत मन के कुल देवता बर श्रद्धा अउ बिश्वास आये। मड़ई कराथे तौ उंखर कुल देवता सदा सहाय रथे।

 

         मड़ई मेला आयोजन करेके पहली राउत भैया मन अपन जुराव करथे। जुराव मा गांव के सियान मन ला बलाथे अउ दिन तिथि तारीख ला पक्का करथे। पक्का करे के बाद गांव में हाँका परवाथे के अमुख तारीख अमुख दिन हमर गाँव में मड़ई मेला होही।पारा परोस के गाँव बाजार में तको हाँका परवाथे जेकर से आयोजन में बने बाजार तको लगय अउ आयोजन फसल रहै। राउत भैया मन अपन सगा राउत भाई मन ला नेवता भेजथे हमर गांव में अमुख दिन तारीख के मड़ई होही कहिके। एती गाँव में मड़ई के नाँव सुनते साथ गाँव भर में खुसी अउ उत्साह के लहर दँउड़े लगथे। गाँव भर के अपन बेटी माई, दीदी , बहनी सगा सम्बन्धी ला सोर पँहुचाथे। अपन बेटी माई दीदी बहनी ला लाने जाथे। राउत भैया मन गँड़वा बाजा गाजा के साथ नचवइया परी के तको जुगाड़ लगाथें जेकर से मड़ई मा रौनक बढ़ सकै।


        मड़ई मेला के दिन मुँधरहा ले राउत में अपन कुल देवता ला गाजा बाजा के संग नाचत कूदत उमंग से दोहा पारत गौठान (दइहान) मा मढ़ा देथें अऊ देवता के भाव भजन करे लगथें। फेर गाजा बाजा के संग गाँव के जम्मो देवी देवता ला नरियर सुपारी चढ़ाये बर अपन संग धरे, नेवता दे ला जाथें अउ उंखर भाव भजन करथें। गाँव भरके अपन किसान भाई मन ला तको नरियर के संग नेवता देथें। जम्मो किसान घर नेवता दे बर घलो गाजा बाजा के संग नाचत कूदत दोहा पारत गली गली जाथें। ओकर बाद  गौठान में जाके खीर अउ परसाद बनाथें अउ चढ़ाथें। नरियर सुपारी सँउपत भाव भजन करके देवता ल  मनाथें। खीर अउ परसाद ला फेर बाँट के खाथें। रउतइन दीदी मन आके बीच दइहान मा  गोबर के गोबरधन बनाथें। मंझनिया के होवत ले मेला मा दुकान सज जाय रथे। ढेलवा, खिलौना, किसम किसम के दुकान, नाना प्रकार के मिठाई, रंग रंग के टिकली फुकली, अउ साग भाजी के बाजार लगे रथे। मड़ई मेला ला देख के सबो के मन भर जथे।


       मंझनिया के बेरा होथे त गाँव के सगा पहुना, घर के बेटी माई, दाई दीदी, भैया भउजी, बबा नाती सबो सज धज के मेला देखे बर दइहान जाथें। राउत मन के अलग पहनावा अउ पोशाक सबके मन ला बड़ भाथे। घर ले राउत भैया मन नाचत कूदत दोहा पारत लाठी चालत अखाड़ा खेलत निकलथें। गँड़वा बाजा के अपन अलग धुन अउ परी मन के बिधुन हो के नचाई सबके मन ल मोह लेथे। दइहान मा आथे तहाँ ले सबले पहली नाचत नाचत सात भांवर मड़ई के घूमथें फेर गाय मेरा गोवर्द्धन खुंदवाथें अउ जमके नाचथें। सबला अपन लाठी के ताकत देखाथें। जब कोनो सगा भाई मन के राउत टोली आथे त ओला आधा बीच ले दउड़त आधा झन मन नाने ला नाचत नाचत जाथें। फेर संग में लाठी चालत अखाड़ा खेलत नाचत कूदत पारत दइहान में लाथें। देखइया मन के मन में उत्साह अउ उमंग छाये रथे। हमर मड़ई के उत्साह अउ उमंग हा पहाती बेरा में बन्द हो जथे।


      दूसर दिन राउत भैया मन गाजा बाजा के संग अपन किसान भाई मेर जोहार भेट करवाथें अउ आभार परगट करथें। ए प्रकार ले हमर मड़ई हा होथे। जेकर बखान करई असान नई हवै। हमर माटी के खुशबू हमर चिन्हार मड़ई मेला हर आय। फेर अब मड़ई परब तको हा नँदावत हवै। पहली गाँव गाँव में मड़ई मेला होवय फेर अब बहुत कम होथे। एमा राउत भैया मन के उदासीनता कहन ए मजबूरी। फेर शासन ला हर गाँव के पंचायत ला मड़ई मेला आयोजन बर सहायता राशि देना चाही ताकि हमर राउत भैया मन आयोजन ला कर सके साथ ही हमर संस्कृति हा सुरक्षित रहै।


-हेमलाल साहू

ग्राम गिधवा, पोस्ट- नगधा,

बस्ता विहीन शिक्षा वेवस्था अउ लइका के भविष्य

 बस्ता विहीन शिक्षा वेवस्था अउ लइका के भविष्य


       इस्कूल हा लइका के सबो गुण ला बढ़ाय बर होथय। आज ज्ञानी गुनिकमन लइका मन ला कोन किसम के शिक्षा दिये जाय ओखर बर नवा नवा उदिम करत हे।उँखर पीठ मा लदाय बस्ता के वजन ला कम कइसे करे जाय। जब ले परावेट इस्कूल नाव के बड़का बड़का लुटइया मन इस्कूल खोलिन तब ले लइका मन के पीठ मा अउ उखर मन मा बोझा बाढ़िस हे। ओखर देखा सीखी सरकार हा घलाव अइसने उदिम करे लगिस। फेर पाछू आँखी उघरिस ता ओला तिरिया के नवा उदिम करे लगिस। अब लइका मन बर बस्ता विहीन शिक्षा अउ इस्कूल के उदिम मा लगे हावय। दूसर डहर आंगनबाड़ी के लइका मन ला इस्कूल संग संघेरे के उदिम करत हे। आज के शिक्षा हा गरीब, आदिवासी अउ पीछवाय क्षेत्र के लइका मन के अमरउक ले बहिर हो गय हावय। आनलाइन शिक्षा के उदिम मा घर बइठे पढ़ई के सुविधा मिलही। यहू बस्ता विहीन शिक्षा के नवा उदिम मा हावय।

        बस्ता विहीन शिक्षा माने लइका इस्कूल मा अपन मनपसंग के पढ़ई, खेल, नाच गान, चित्र बनई, जौन ओला भाही ओला सीखही। सुछंद होके बिन कखरो दबाव के अपन गुण ला देखाही बढ़ाही। जइसे त्रेता जुग, द्वापर जुग मा लइका मन आश्रम जावत अउ गुरुजी हा उन ला परख के सिखावय, अर्जुन ला धनुष, भी मला गदा अउ कुस्ती, नकुल ला बरछी तलवार, सहदेव ला भाला, युधिष्ठिर ला राजनीति, कूटनीति, धर्मनीति। येमन पीठ मा बस्ता लाद के गुरुकुल नइ गइन, न एमन कभू कोनो किताब नइ लिखिन। ओखर बर दूसर मन रहिन।

     बस्ता विहीन शिक्षा शुरू होय ले लइका मन ला एक फायदा होही कि उँखर पीठ के बोझा अउ मन के बोझा  उतर जाही।खेलत कूदत इस्कूल आही अउ अइसने घर जाही।दाई ददा ला घलो फायदा होही। लइका घर आके पढ़ाय लिखाय बर हलाकान नइ करय कि येदे ला बतादे, येदे ला लिखा दे। लइका उपर यहू दबाव नइ रहय कि अतका प्रतिशत लाना हे काबर कि हर लइका अपन अपन खेल कूद , नाच गान, लिखई पढ़ई, रंगई पोतई मा पहला दूहरा रही। संझा बिहनइया हकर हकर ट्यूशन के अवई जवई छूट जाही।लइका पेट भर खाही अउ नींद भर सुतही जेखर ले मन शांत रही।

      जइसे बस्ता विहीन शिक्षा के फायदा हे वइसने एखर नकसान घलाव होही। बस्ता मा पढ़े के संगे संग लिखे के जिनिस रहिथे।कोनो ए जिनिस नइ रहे ले लइका मन सुछंद हो जाही। कोनों ला मानय गुनय नइ अउ जिनगी के आगू के परीक्षा मा नपास हो जाही।ओखर मन ले आगू बढ़े अउ सब गुन ला सीखे के ललक सिरा जाही। लइका ला पढ़े लिखे मा चेत नइ रही। हमर शास्त्र मा लिखाय सब उपदेश, श्लोक मन पलट जाही। कहे जाथे करत करत अभ्यास.....। अभ्यास नइ करही ता ओखर बुद्धि नइ बाढ़य। उमर बाढ़ जाही फेर अकल हा नइ बाढ़य। जइसे फिलिम देख के गाना अउ डायलाग तो रटा जाथे फेर ओइसने कहानी, नाटक लिखही कोन। इस्कूल मा पढ़े, गुने, सुने, सीखे अउ घर मा लिखे के अभ्यास छूट जाही। लिखे मा नवा इतिहास बनथे।रामायण गीता, महाभारत, वेद,पुराण, शास्त्र सब कोनों न कोनों लिखे हवय। ऐखर ले नवा, इतिहास, साहितकार संसार ला नइ मिलही।

      लइका मन ला शिक्षा ले जोड़ेबर सबो सरकार अउ संस्था मन नवा नवा उदिम करथे। ओमन लइका के संगे संग ओखर भविष्य के फिकर करथे। फेर जुन्ना रीति के पढ़ई ला अंधविश्वास अउ खइता कहिके तिरियाय मा नइ बनय।बस्ता मा पढ़े के संगे संग लिखे के जिनिस के वेवस्था हवय। लइका के पढ़ई ला बस्ता विहीन नइ करके उमर के  हिसाब ले अउ कक्षा के हिसाब ले सिलेबस तियार करके पढ़ई लिखई करवाय बर चाही। नानपन हा खेलेकूदे संग सीखे के उमर होथे। पढ़े के संगे संग ए उमर मा लिखे बर सीखथे,हाथ माढ़थे।नइते जइसे बड़े उमर मा साइकिल सीखे अउ नानपन मा साइकिल सीखे मा फरक होथे उही दिखथे। कोनों लिखे रही ता अवईया पीढ़ी हा ओला पढ़ही। आज इस्कूल मा हस्तलिखित के प्रतियोगिता होवत हे जौन बढ़िया उदिम हवय एखर ले  लइका मन ला लिखई डहर रद्दा धरत हे।


हीरालाल गुरुजी"समय"

छुरा, जिला-गरियाबंद

नवा बिहान के आस....

 नवा बिहान के आस....

    मुंदरहा के सुकुवा बिखहर अंधियारी रात पहाये के आरो देथे। सुकुवा के दिखथे अगास म अंजोर छरियाये के आस बंध जाथे। चिरई-चिरगुन मन चंहचंहाये लगथे, झाड़-झरोखा, तरिया-नंदिया आंखी रमजत लहराए लगथें। रात भर के खामोशी नींद के अचेतहा बेरा के कर्तव्य शून्य अवस्था ले चेतना के संसार म संघराये लगथे। तब कर्म बोध होथे, अपन धरम-करम के गोठ सुझथे, सत्-सेवा के संस्कार जागथे, अपन-बिरान अउ अनचिन्हार के पहिचान होथे।


    नवा बछर घलो बीतत बछर के अनुभव के माध्यम ले लोगन ल अइसने किसम के नवा आस देथे, नवा बिसवास देथे, नवा रस्ता देथे, नवा नता-गोता, संगी-साथी अउ हितवा मन के संसार देथे। अपन पाछू के करम मन के गुन-अवगुन अउ सही गलत के पहिचान कराथे। करू-कस्सा, सरहा-गलहा मन ले पार नहकाथे, खंचका-डबरा अउ कांटा-खूंटी मन ले अलगे रेंगवाथे। तब जाके मनखे ह मनखे बनथे, वोकर छाप ह जगजग ले उज्जर अउ सुघ्घर दिखथे। लोगन ओला संहराथें, पतियाथें अउ आदर्श मान के ओकर अनुसरण करथें।


 चेत लगाके देखिन त छत्तीसगढ़ अभी घलो विकास के दृष्टि ले भारी पछवाए हवय। कोरी भर बछर बीतगे हावय, एकर स्वतंत्र अस्तित्व के सिरजन होये। तभो एकर मूल आस्मिता बर कोनो बने गढऩ के सुध लेवइया नइ मिलत हे, जबकि इही अवस्था ककरो भी निर्माण के बेरा होथे। वोला सुंदर आकार, संस्कार अउ सदाचार के गुन म पागे के। आज जइसे एकर नेंव रचे जाही, तइसे काल के एकर स्वरूप बनही। सैकड़ों अउ हजारों बछर ले पर के गुलामी भोगत ये माटी के रूआं-रूआं म लूटे के, हुदरे के, चुहके के, टोरे के, फोरे के, दंदोरे के, भटकाये के, भरमाये के, तरसाये के, फटकारे के चिनहा आजो दिखत हे। इहां के मूल निवासी समाज आज घलो उपेक्षा अउ षडयंत्र के शिकार हे। 


    अभी घलोक एला अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी नइ मिल पाये हे। काबर ते कोनो भी राज के चिन्हारी वोकर खुद के भाखा अउ खुद के संस्कृति के स्वतंत्र पहिचान ले होथे, जे अभी तक अधूरा हे। अउ ये स्वतंत्र स्वरूप के चिन्हारी आज के पीढ़ी ल करना परही। हमर ददा-बबा मन के पीढ़ी ह एला स्वतंत्र पहिचान देवाये खातिर एक अलग प्रशासनिक ईकाई के रूप म तो बनवाये के बुता ल पूरा कर देइन। अब एकर संवागा के जोखा हम सबके हे। कइसे एला आकार देना हे, विस्तार देना हे, पहिचान देना हे, साज अउ सिंगार देना हे, ये हमार पीढ़ी के बुता आय।


   ददा-बबा मन जेन सपना ल देखे रहिन हें, वो सपना ल, वो सुघ्घर रूप ल हमन ल गढऩा हे। एकर भाखा ल, साहित्य ल, कला ल, संस्कृति ल, जुन्ना आचार-व्यवहार ल, जीये के उद्देश्य अउ धरम-संस्कार ल हमन ल बनाना हे। एकर बर पूरा ईमानदारी के साथ हर किसम के स्वारथ ले ऊपर उठ के समरपित भावना ले काम करे के जरूरत हे। 


   कहे के नांव ले इहां छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के गठन कर दिए गे हे। एक दशक ले आगर होगे एकरो स्थापना ल होय, फेर नेंग छूटे के छोंड़ ए आयोग ह छत्तीसगढ़ी भाषा खातिर कोनो खास बुता नइ कर पाए हे। लागथे के सरकार के या तो नीयत ईमानदार नइए नइते एक दशक कम नइ होवय कोनो भाखा ल जमीनी रूप म स्थािपत करे बर। आयोग म जे मन ल सरकारी प्रतिनिधि बना के बइठारे गे  रहय उहू मन हा-हा भकभक करे अउ लबारी के उपलब्धि  के नाव म शेखी बघारे के छोड़ अउ कुछू नइ करे रहिन, अभी के सरकार ह तो एकर गठन करे म घलो अभी ले थथर-मथर करत हे, तेकर मन ले महतारी भाखा ह शिक्षा अउ राजकाज के माध्यम कइसे बन पाही, तेन ह गुनान के बात आय ??


    छत्तीसगढ़ ल अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी मिलय, अस्मिता के बढ़वार खातिर जिम्मेदार मनला भगवान सद्बुद्धि देवय, इही आसा अउ भरोसा के संग आप सबो झन ला नवा बछर के बधाई अउ जोहार-भेंट...


-सुशील भोले 

54-191, डॉ. बघेल गली,

संजय नगर, रायपुर 

मो/व्हा. 98269-92811

Monday 27 December 2021

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" : जिहाँ मन माड़े, उही मड़ई आय


 साहित्य विशेष, चैनल इंडिया (27 दिसम्बर 2021)

मोर गाँव के मड़ई- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

               किनकिन किनकिन जनावत पूस के जाड़ म ज्यादातर दिसम्बर के आखरी सोमवार या फेर जनवरी के पहली सोमवार के होथे, मोर गाँव खैरझिटी के मड़ई। हाड़ ल कपावत जाड़ म घलो मनखे सइमो सइमो करथे। राजनांदगांव- घुमका-जालबांधा रोड म लगे दईहान म, मड़ई के दिन गाय गरुवा के नही, बल्कि मनखे मनके भीड़ रथे। मड़ई के दू दिन पहली ले रामायण के आयोजन घलो होथे, ते पाय के सगा सादर घरो घर हबरे रइथे। लगभग दू हजार के जनसंख्या अउ तीर तखार 2-3 किलोमीटर के दुरिहा म चारो दिशा म बसे गाँव के मनखे मन, जब संझा बेरा मड़ई म सकलाथे, त पाँव रखे के जघा घलो नइ रहय। अउ जब मड़ई के बीचों बीच यादव भाई मन बैरंग धरके दोहा पारत,  दफड़ा दमउ संग नाचथे कुदथे त अउ का कहना। बिहना ले रंग रंग के समान, साग भाजी अउ मेवा मिठाई के बेचइया मन अपन अपन पसरा म ग्राहक मनके अगोरा करत दिखथें। एक जुवरिहा भीड़ बढ़त जथे, अउ संझौती 4-5 बजे तो झन पूछ। दुकानदार मनके बोली, रइचुली के चीं चा, लइका सियान मनके शोर अउ यादव भाई मनके दोहा दफड़ा दमउ के आवाज म पूरा गाँव का तीर तखार घलो गूँज जथे। मड़ई के सइमो सइमो भीड़ अउ शोर सबके मन ल मोह लेथे।
                        मड़ई म सबले जादा भीड़ भाड़ दिखथे, मिठई वाले मन कर। वइसे तो हमर गाँव म तीन चार झन मिठई वाले हे, तभो दुरिहा दुरिहा के मिठई बेचइया मन आथे, अउ रतिहा सबके मिठई घलो उरक जाथे। साग भाजी के पसरा म सबले जादा शोर रथे, उंखरो सबो भाजी पाला चुकता सिरा जथे। खेलौना, टिकली फुँदरी, झूला सबे चीज के एक लाइन म पसरा रहिथे। सबे बेचइया मन  भारी खुश रइथे,अउ अपन अपन अंदाज म हाँक पारथे। होटल के गरम भजिया-बड़ा, मिठई वाले के गरम जलेबी, लइका सियान सबे ल अपन कोती खीच लेथे।मड़ई म लगभग सबे समान के बेचइया आथे, चाहे फोटू वाला होय, चाहे साग-भाजी या फेर मनियारी समान। नवा नवा कपड़ा लत्ता म सजे सँवरे मनखे मन, चारो कोती दसो बेर घूम घूम के मजा उड़ावत समान लेथे। रंग रंग के फुग्गा, गाड़ी घोड़ा म लइका मन त, टिकली फुँदरी म दाई दीदी मनके मन रमे रइथे।
                   मड़ई के दिन मोर का, सबे के खुशी के ठिकाना नइ रहय।  ननपन ले अपन गाँव के मड़ई ल देखत घूमत आये हँव, आजो घलो घुमथों। पहली पक्की सड़क के जघा मुरूम वाले सड़क रिहिस, तीर तखार के मनखे मन रेंगत अउ गाड़ी बैला म घलो हमर गांव के मड़ई म आवँय, सड़क अउ जेन मेर मड़ई होय उँहा के धुर्रा के लाली आगास म छा जावय, अइसे लगय कि डहर बाट म आगी लग गेहे, जेखर लपट ऊपर उठत हे, अइसनेच हाल मड़ई ठिहा के घलो रहय। फेर सीमेंट क्रांकीट के जमाना म ये दृश्य अब नइ दिखे। चना चरपट्टी के जघा अब कोरी कोरी गुपचुप चाँट के ठेला दिखथे, संगे संग अंडा चीला अउ एगरोल के ठेला घलो जघा जघा मड़ई म अब लगे रहिथे। अब तो बेचइया मन माइक घलो धरे रइथे, उही म चिल्ला चिल्लाके अपन समान बेचत दिखथे। नवा नवा  किसम के झूलना घलो आथे, फेर अइसे घलो नइहे कि पुराना झूलना नइ आय। रात होवत साँठ पहली मड़ई लगभग उसल जावत रिहिस, फेर अब लाइट के सेती 7-8 बजे तक घलो मड़ई म चहल पहल रहिथे। होटल के भजिया बड़ा पहली घलो पुर नइ पावत रहिस से अउ आजो घलो नइ पुरे। पान ठेला के पान अउ गरम जलेबी बर पहली कस आजो लाइन लगाए बर पड़थे। मिठई वाले मन पहली गाड़ा म आवंय, अब टेक्कर,मेटाडोर म आथें। मड़ई के दिन बिहना ले गाँव म पहली खेल मदारी वाले वाले घलो आवत रिहिस फेर अब लगभग नइ आवय। पहली कस दूसर गाँव के मनखे मन घलो जादा नइ दिखे। 
                कभू कभू कोनो बछर दरुहा मंदहा अउ मजनू मनके उत्लंग घलो देखे बर मिलय, उनला बनेच मार घलो पड़े। गाँव के कोटवार, पंच पटइल के संग अब पुलिस वाला घलो दिखथे, ते पाय के झगड़ा लड़ई पहली कस जादा नइ होय। मैं मड़ई म नानकुन रेहेंव त दाई  मन संग घूमँव, अउ बड़े म संगी मन  संग, अब लइका लोग ल घुमावत घुमथों अउ संगी मन संग घलो। संगी संगवारी मन संग पान खाना, होटल म भजिया बड़ा खाना, एकात घाँव रयचूली झूलना, फोटू वाले ले फोटू लेना, मेहंदी लगवाना, खेलौना लेना अउ आखिर म मिक्चर मिठई लेवत घर चल देना, मड़ई म लगभग मोर सँउक रहय। एक चीज अउ पहली कस कुसियार मड़ई म नइ आय ते खलथे। स्कूल के गुरुजी मन संग बिहना घूमँव अउ संझा संगी संगवारी मन संग। पहली घर म जतेक भी सगा आय रहय, मड़ई के दिन सब 2-4 रुपिया देवय,ताहन का कहना दाई ददा के पैसा मिलाके 10, 20 रुपिया हो जावत रिहिस, जेमा मन भर खावन अउ खेलोना घलो लेवन, आज 500-600 घलो नइ पूरे। समय बदलगे तभो मोर गाँव के मड़ई लगभग नइ बदले हे, आजो गाँव भर जुरियाथे, कतको ब्रांड, मॉल-होटल आ जाय छा जाय, तभो गाँव भर अउ तीर तखार के मनखें मड़ई के बरोबर आंनद लेथे। मड़ई के दिन रतिहा बेरा नाचा पहली कस आजो होथे। *जिहाँ मन माड़ जाय, उही मड़ई आय।* जब मड़ई भीतर रबे, त मजाल कखरो मन, मड़ई ले बाहिर भटकय। आप सब ल मोर  गाँव के मड़ई के नेवता हे।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday 26 December 2021

जड़काला के बात बतावत मितान ल चिट्ठी

जड़काला के बात बतावत मितान ल चिट्ठी


कोटा, दि. २०.१२.२१

मितान जी, 

      सीताराम 

दाई,ददा ला पांयलागी पहुंचे |

"इहां कुशल सब भांति सुहाई,उहां कुशल राखे रघुराई"

    

    का बूता चलत हे मितान जी ? धान लुवाई-मिसाई निपटा डारे होहू ? आजकल थ्रेसर अउ हार्वेस्टर मशीन के माध्यम से धान लुवाई-मिसाई के बूता ह एकदम सर हो गए हवय | अब संगे लुवाई-मिसाई अउ ओसाई बूता हो जाथे | धान ला टपटपौहन बोरी-बोरा म भर के सीधा मंडी म पहुंचा देथन | 

    *बड़े-बड़े किसान घर अब कोठी,किरगा,ढाबा देखे-सुने बर नइ मिलै ! कोनो एक्का-दूक्का घर कोठी बांचे भी हवय,तऊन निच्चट खाली पड़े रहिथे ! छूछू,मुसुवा मन फर्रा-फर्रा के भूख मरत रहिथैं,तेकरे सेती घर के कथरी,चद्दर,ओढ़ना,दसना ला कुतर डारथैं ! भूख म मुसुवा मन के गुस्सा स्वाभाविक हवय !*

     *तुंहर गांव डहर जाड़ कत्तेक हवय मितान ? हमर एती कालि-परन दिन ले जाड़ खूब जनावत हवय ! "चना-चबेना खवाई सहीं दांत किनकिनावत हवय ! एती भिनसार ले अउ संझा चार-पांच बजे ले ही भूर्री तपाई सुरू हो जाथे ! रात के कतको कथरी,कंबल ओढ़े रहिथन,तभो ले जाड़ हा खूब उतियाईल हो गए हवय ! रात-दिन हू-हू-हू-हू........ ! तेकर ले सियान-सियानीन अउ बुढ़वा जानवर के जीव अब्बड़ेच आफत म हो गए हवय !!!!!*

     *अहातरा जाड़ म लईका-सियान के खूब तोरा-जतन अउ सावचेती करे के जरूरत हवय ! कहूं कुछू दुख-सुख काम म बाहिर जाए के जरूरत पड़ जाथे,तब अपन ओढ़ना-दसना,कंबल भरपूर रखना जरूरी हवय*

    अब जादा का लिखौं ? तुमन तो खुद समझदार हवव | चिट्ठी पाते ही तुहूं मन चिट्ठी लिखिहौ | 

       तुंहर मितान

     *गया प्रसाद साहू*

        "रतनपुरिहा"

जै-जोहार

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 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया:

 *****श्री गणेशाय नमः*****


20/12/2021

कोरबा(छत्तीसगढ़)




मयारू मितान।

                     जोहार।


*इहाँ कुशल सब भाँति भलाई*

*उहाँ कुशल राखे रघुराई।।।।*


 का काम बुता चलत हे, धान पान तो लुवा मिंजा के कोठी म धरा गे होही। मेला मड़ई के दिन अवइया हे, उही समय मेल मुलाकात होही। जंगल झाड़ी के सेती हमर कोती भारी जाड़ जनावत हे। संझा रतिहा अउ भिनसराहा चिटको नइ सुहावय। मंझनिया ल घलो मंझनिया कहत लाज आथे, एको कनी घाम नइ लगे। ऊँच ऊँच झुंझकुर पेड़ मन कटकिट ले पोटार लेथे, उँखर मारे बचथे, त हमर अँगना म आथे ,घाम ह थोर थोर। गाँव कस अलाव, अंगेठा, भुर्री, भभकी म हाड़ मास सेकें, बरसो होगे। जड़काला म तुम्हर सँग घूमे फिरे दिन के अब्बड़ सुरता आथे। काम करत, खेलत कूदत बेरा तो दूनो मितान पूस के जाड़ ल घलो पटखनी दे देवत रेहेन। तरिया नन्दिया के किकिनावत पानी घलो हमर कहाँ कुछु बिगाड़ पावत रिहिस, ए पार के वो पार तरिया ल होत भिनसरहा सुबे स्कूल जाय के दिन नाप देवत रेहेन।फेर आज तो कातिक लगन नइ पाय अउ गरम पानी म नहवई खोरई चालू हो जथे। बिन गरम कपड़ा के पल्ला गाँव म भागन, ते आज कतको ठन स्वेटर लदकाय हे तभो जाड़ नइ भागत हे। लइका लोग के का कहँव, नाक कान सियान मनके घलो सनसनावत हे, बिन मोजा जूता स्वेटर साल अउ हीटर ब्लोवर के रही पाना मुश्किल हे।बड़ जाड़ हे मितान, बड़ जाड़, हमर कोरबा म।

                     *तुम्हरो कोती बड़ जाड़ जनावत होही, फेर तुमन के काया हाड़ मास के थोरे आय, कठवा लोहा के आय। एक ठन बण्डी पहिर के घलो पूस ल पटक देथो। काम बूता म रमे रथो त का जाड़ अउ का हाड़, कुछु के होश नइ रहय। तुम्हर ठाहिल काया अइसने सदा बने रहे, जाड़-शीत, पानी-बादर,घाम -प्यास तोला देख के हाथ रमजे। मितानिन अउ लोग लइका मन घलो भुर्री,अउ रौनिया के आनंद लेवत जाड़ ल बिजरावत होही। अउ तो बाकी सब बढ़िया हे, ले अब झट मिलबों, ताहन मन भर गोठियाबों। ए बीच म चिट्टी पाती आपो मन भेजहू।*


*जोहार*


                                                            तुम्हर मितान

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

[12/20, 10:14 PM] +91 99933 04875: दिनाँक--२०/१२/२०२१

                छुरिया



जय जोहार मितान!

   

            हमन इंहा सबो झन भगवान के किरपा ले बने-बने हन मितान। अउ आसा करत हो तहूँ मन बनेच-बने होहू। धान-पान ल सबो सकेल डारे होबे, नहिते बेच डारे होबे घलो। ये साल तो पानी-बादर के मउसम के मारे खेत डहन थ्रेसर में मिंजवा डारेव जी,नहिते मेहा बैला-गाड़ी अउ बेलन वाले हरो। भइगे ऐसो धान के टोकन कटाय बर एककनि पिछवा गेंव, ते मोर नम्बर ह जनवरी के 5 तारीख के आये हे। का करबे मितान ये साल बोरा नई मिले कहिके सुने हो तब ले मोर बोरा दौड़ चालू रिहिस। इंहा-उन्हा बोरा खोजई में परसान हो गे रेहेंव। लटे-पटे में मोर सारा टूरा ह, गाड़ी चलाथे तेहा बोरा के बेवस्था ल करिस। वहू ह अब्बड़ महंगा हे भांटो कहत रहय।


           ऐसो तो येदे तीन-चार दिन होय हे हमर कोती जंगल के सेती ते काय जाड़ ह मार नंगत के दवंत हवे जी। में तो दिन भर स्वेटर ल नई निकालो। बड़े फजर और सांझकुन तो कनकने-कनकन करत रथे। पहिली शनिच्चर के बिहिने स्कूल जावन त तरिया ले कूद के नहावन अउ चल देत रेहेन,अब तो नई सकाय जी। गरु-गाय मन ल बेर चघथे त निकालथो। हमर घर के लिम पेड़ से सेती घाम ह घलो जल्दी नई आये। खोर में निकल के घाम तापे ल लगथे। हमरो घर दाई ह गोरसी असन बड़े जान बनाये हे, सांझ के उही मेर आगी ल बार के नान-नान खोरसी मन ल धराके तापत माई-पिला जोरियाय रथन। खाय के बेर घलो गोरसी के चारों-मुड़ा बैठ के खाथन। रात के तीन-चार ठन चद्दर ल दूनो के सुतथन,तिन्हक ले बैरी जाड़ ल पीछू नई छोड़े। पहिली अब्बड़ लकड़ी मिले मितान त हमर घर के बीच दुवार म अंगेठा बार के तापत रहन। ते तो जानत हस।अब तो जंगल कटई के मारे लकड़ी घलो नई मिले जी। नहिते अंगेठा ह हमर घर अउ कोठार के झाला कर कभू नई छोड़े।


          चना-गहुँ, लाख-लाखड़ी ल उतेर डारे होहू जी। हमर डहन भांठा भुइयां म ओनहारी नई होय मितान,महुवा ह हमर बर ओनहारी-सियारी आये। उही ल नंगत के बिनथन। ऐसो नोनी बर अब्बड़ सगा घलो आवत हे मितान,बने-बने जम जही त बर-बिहाव ल जोखबो। तीनक काठा चना ल राखे रबे जी। अउ 14 जनवरी के हमर गांव के मड़ई हवे,मितानीन ल ये पइत लाबे मितान। अउ चना भाजी बने उलहोय होही,दूनो झन एक मोटरा टोर के लाहू। दाई ह चना भाजी बर अब्बड़ टोर करथे।


    ले बचिस ते गोठ ल मड़ई म आबे त गोठियाबोंन जी।

  दाई-ददा ल परनाम अउ लईका मन ल आसीरबाद!



                            तुंहर मितान

                          हेमलाल सहारे

[12/22, 5:56 PM] हीरा गुरुजी समय: तारीक- 22/12/2021

 आवासपारा छुरा 

मयारुक मितान,

                सीताराम,

          इहाँ हमन सपरिवार कुशल मंगल से हावन। तहूमन उहाँ सबे झन बने बने होहू। फूलदाई, फूलददा ला पाँव पलगी पहुंचे अउ लइका मन मया असीस। अउ अभी तुहँर काय बूता चलत हे ? धान पान तो बेचा गिस होही। मितानीन के ड्यूटी हा अभी गाँवेच के अस्पताल मा हावय कि कहू दूसरे गाँव मा चल दे हावय। बड़े नोनी हा एसो कालेज मा भर्ती होइस होही। हमर मोनी घलाव पहिली कालेज गिस हावय।

             हमर जंगल अउ नदिया खँड़ के गाँव मा पाँच छे दिन होवत हे अबड़ जाड़ परत हे। हाथ गोड़ मा ठुनठुनी धरती हे। टंकी के पानी करा बरोबर लागथे। काली दू ठन नवा बलांकिट बिसाय हँव। मोर बर बिना बाँही के स्वेटर अउ तुँहर मितानीन बर कनचपी घलाव बिसाय हँव। पहिली असन भेड़ी के कमरा अब नइ मिलय, चाइना बलांकिट चलत हे। हमन अब जाड़ के देखत संझा बिहनिया चूल्हा मा आगी बारथन। नहाय बर पानी गरम करे के संगे संग साग भात घलाव बन जाते। संझा भात साग राधे खाय पाछू सुते के बखत ले चूल्हा कर सबो माईपिला टेके रथन। एसो के जाड़ थोकिन उपराहा जनावत हे मितान। गैस अउ बिजली माँहगी पर थे।आज बिहनिया अगेठा तापेबर परोसी घर घलो गय रहेंव।।

          हमर इस्कूल मा अभी हड़ताल चलत हे।धरना देय बर तीन दिन रायपुर गय रहेंव। जाड़ ला देख के लहुट आयेंव। कतको स्वेटर, मफलर बांधबे तभो जाड़ेच लागथे।अउ जादा काला बताहूँ। हाँ! 14 जनवरी के मड़ई मेला होही एखर नेवता पहिलीच ले देवत हँव। मितानीन ला छुट्टी लेय बर कहि दे रहू।भरोसी ले मड़ई बर आहू। अउ गोठबात हा मड़ई बर आहू तब होही।

          चिट्ठी के अमरे पाछू चिट्ठी लिखहू। फूलदाई, फूलददा ला पाँव पलगी, लइका मन ला मया असीस।

              जोहार!

            सीताराम!



     तुँहर मितान

हीरालाल गुरुजी

छुरा, गरियाबंद

शनीचराहा-कहानी

 : कहिनी------


       ===शनिचराहा===        


        भगवान सेवक ला बने सुन्दर गढे हे। रॅग रूप गुन सबो अच्छा हे। अपन चाल चलन सुभाव ला घलो सेवक हा सहुंराय के लाईक बना के राखे हे ।गाॅव के लोगन मन ओकर बड़ाई करत  नइ थकय। कतको झन मन अपन लोग लइका ला खिसियाथे बखानथे तब कहि घलो देथे--------वो सेवक ला देख अउ तुम्हला देख,,,,,,,वोला देखके थोरिक तो सिखव रे,,,,,,,,।जइसने वोकर नाम ओइसने वोकर काम अउ बिचार । गाॅव के छोटे बड़े कोनों काहीं बूता तियार देथे त बिना संकोच सुवारथ ले जाके फट ले कर देथे । बिना छल भेद के गाॅव के सब नाता रिस्ता के आदर करथे। दू चार दिन कोनो ला नइ देखे अउ दिख जाथे त पूछ घलो डारही अउ टुप टुप पाॅव परके कही ---------कोन गाॅव चल दे रेहे बड़े ददा,,, नइ दिखत रेहे । आजी दाई डोकरी दाई के लागमानी सॅग  मा तो बिजरी असन लाग के हॅसावत रथे । अउ अइसन लइका  काकरो घर फोकटिया पुछत चल देथे त बिना चाहा पिये आवन घलो नइ देय । फेर सेवक घलो अभिच पिये हवॅ बड़े दाई नइ लागे कहिके भाव जीत लेथे । सबो गुन आगर सेवक असन लइका ला ही सोन के सीथा कहत होही। भाग प्रबल होय के सॅगेसॅग संस्कार हर घलो लइका ला अलगे पहिचान देथे ।ओकरे असर हा घलो सेवक उपर दिखथे ।

          फेर वो रंभा ला अइसे का अनख बैर घेरे हे , कि सेवक ला फूटे आॅखी नइ देखय। महिना भर पहिली के बात आय। शनिच्चर के दिन राहय। उही दिन गाॅव मा हप्ता के हटरी बजार घलो रिहिस। सेवक अउ रंभा के घर एके पारा मा तो हे । ओहू मा एक दुसर के मॅझोत मा। माने घर ले बइठे बइठे एक दुसर के घर अउ मनखे सबो दिखथे । बजार जाय बर रंभा हर झोला धरके निकलत रिहिस। ओतकेच बेरा मा सेवक हर घलो बजार जाय बर निकलिस। गाॅव के नता मा रंभा हर सेवक के बड़े दाई लागे। देखत भार पूछ डारिस-----------बजार जावत हस का बड़े दाई,,,,,? रंभा हां किहिस ना निहीं कलेचुप चल दिस। बजार मा सॅघरगे तब सेवक मुसकी सकल बनाके कथे------------बड़ लघिंयात साग भाजी ले डारे बड़े दाई,,,,,। रंभा मुहूं टेंड़गात दूसर पसरा कोती घुमगे। अब संजोग अइसे बनगे कि बजार ले निकलती फेर भेंट होगे । रंभा हर साग भाजी के भरे दू ठन झोरा ला तनियात तनियात धर के लानत रहय। तब सेवक हर कथे------दे बड़े दाई एक ठन झोरा ला मयॅ धर लेथवॅ। घर मा छोड़ देहूं। रंभा अपन सुभाव मा करकस भरे कथे--------------नइ लागे मयॅ लेग जहूं,,,। किहिस अउ कुरबुर कुरबुर करत मुंह बनात जाय मा लगगे।

           आज रंभा के सुभाव ला देख के सेवक मने मन मा बहुत दुखी होगे। घर के आवत ले गुनत रिहिस कि बड़े दाई मोर ले काबर अतका अनख राखथे। मोर ले अइसे का गलती होय हे। मयॅ तो वोला अपन महतारी असन मानथवॅ। वो मोला नान्हे पन ले जानथे  अतकेच निहीं वो मोर जनम दिन के नेंरवा घलो काटे हे।  बड़े दाई निच्चट पथरा चोला हे अइसनो तो नइये। काकरो घर भी जचकी निपटाय बर होथे त रंभा आधा रात के चल देथे । अइसन काम के रंभा ला बने परख हे ओकर सेती गाॅव के मन ओला मानथे घलो । ओकर ज्ञान अतका  हे कि नाड़ी ला छू के बता देथे कि नोनी तयॅ महतारी बनइया हस। अउ अपन समझ के पुरत ले सेवा जतन घलो करथे । रंभा सेवक के  घलो छट्ठी उठाय हे सेवक के महतारी के जचकी निभाय हे। तब रंभा हर जानत रिहिस कि सेवक के जनम शनिच्चर दिन के हरे तेला। 

          अब उप्पर वाले के नजर कहव या फेर संजोग। पीछू साल माघी पुन्नी के मेला देखे बर रंभा अपन मइके जाय बर घर ले  निकलत रिहिस। ओतके बेरा  सेवक हर पूछ पारिस-----------कहां जावथस बड़े दाई बने नवा नवा पहिर के  ?  रंभा घलो गाॅव जवथो रे कहिके चल दिस। गाॅव मा मोटर बस नइ चले। कोस भर दुरिहा दूसर गाॅव मा मोटर मिले। रंभा हर खेतहा अउ मेंड़ पार वाले रसता मा रेंगत जावत रहय। ओकर दुरभाग ये होगे कि एक ठन गोड़ के साॅटी हर टुटके गॅवागे। ओइसे भी साॅटी हर खियाके टुटहा हो गेय रीहिस। टुटहा जगा ला धागा मा बाॅध के पहिरत रीहिस। फेर तीन तोला के साॅटी गॅवाय ले रंभा के जीव सुखागै। गोसइंया के गारी खाय के डर ले आॅखी बटबटागे। अउ लगगे अपन भाग ला कोसे बर त दिन ला कोसे मा । दिन तिथि हप्ता  सबला असगुन समझे लगगे। उही बेरा मा रंभा ला सुरता आगे कि, घर ले निकले के बखत वो शनिचराहा टुरा सेवक हर पूछे रिहिस।ओकरे मुंहूं ला देख के निकले रेहेंव। रंभा टोटकाहिन हे अइसन नइये वो कभू टोटका टोना ला नइ माने। सबला झारा फूंका के जगा डाक्टर के तिर इलाज कराय के सलाह देथे। खियाय साॅटी ला धागा मा बाॅध के पहिरे रेहिस । जेहर सर घलो गेय रिहिस तेकर सेती टूटगे ।ये बिचार ला छोड़ के सेवक उपर सबो दोष ला खपल दिस । शनिचराहा टुरा के पूछे ले ओकर मुंह देखे ले ही सब अलहन होय हावे । आज ले ओकर मुंह नइ देखव । बस ओ दिन ले रंभा के मन मा सेवक बर अनख भरगे। 

अउ गाॅव भर सेवक असुगहा हे कहिके बगरा डारिस। घाट घठौंदा मा सेवक ला बखानय।

           महिना दिन पहिली रंभा घुरवा ले कचरे फेंक के आवत रिहिस। गाॅव के सकेल्ला कोलकी असन गली मा बइला मन लड़ई खेलत रहय। रंभा भागे नइ पाइस अउ बइला मन वोला रमजत खुंदत भगागे। रंभा के माड़ी कोहनी फुटगे। अउ चक्कर खाके गिरगे। अब यहू संजोग बनगे कि सेवक हर अपन घर के गाय गरू ला गउठान मा खेद के आवत रहय। सेवक के नजर परगे। भागत गीस अउ रंभा ला हला डोला के पूछे लागिस-------बड़े दाई,,,,,,,,,ए बड़े दाई,,,,,,,,। बड़े दाई बेसुध होगे अतका तो सेवक जान डारिस। अउ सेवक रंभा ला चिंगिर चाॅगर खाॅध मा अकेल्ला टाॅगके गाॅव के सरकारी अस्पताल मा लेगे लागिस। गाॅव के अउ पारा के मन घलो जान डारिन कि रंभा ला बइला मन रमॅज दिस। अउ बहुत अकन आइन घलो। अउ सेवक के पीछू पीछू अस्पताल डहर जाय लागिन। सेवक अस्पताल जाके डाक्टर ला  कथे -----------देख तो डाक्टर साहेब मोर बड़े दाई कइसे होगे । एकर कपार ले लहू बोहात हे । बइला हुमेंले हे काते ,,,,,,,,,,। सेवक कभू नर्स मन के तिर जावय त कभू डाक्टर के तिर । लकल धकर आके रंभा ला हला डोला के देखे। ओकर बोहाय लहू मन ला अपन पटकू मा पोछय । मन नइ माने त नर्स मनके हथजोरी करके कहे लागिस ----------जल्दी देखव ना दीदी हो मोर बड़े दाई ला,,,। रंभा गाॅव के नामी अउ कामी नारी आय ।तेकर सेती गाॅव के अड़बड़ अकन पूछ परख करइया आगे। वोमन रंभा ला कम अउ सेवक के सेऊकाई ला जादा देखय। रंभा के दू झन बेटी हे जेमन बिहाव होके ससुरार चल देय हे ।  रंभा के गोसइंया एक झन रइपुर वाले बेटी तिर दू दिन बर गेय रहय । अइसन बेरा मा रंभा अकेली घर मा रिहिस।तब सेवक अपन सबो काम बूता ला छोड़ के रंभा के सेवा करत ओकर खटिया खाल्हे मा बइठ के एक दिन एक रात ला बिता दिस। मरहम पट्टी दवा सूजी देके दूसर दिन डाक्टर छुट्टी कर दिस। सेवक हा रंभा ला अपन बाॅहा के सहारा देके धीरे धीरे घर लानिस। पारा के मन देखके चार छै झन माई लोगिन मन घलो आगे। अपन बड़े दाई ला  खटिया मा कलासू  सुताके लकर धकर अपन घर चल दिस। गाॅव के सकेलाय जम्मो नारी परानी मन रंभा ला कहिन ------------सेवक के सेऊकाई ले बाॅचगेस रंभा। सेवक नइ रतिस त तोर का होतिस जान सकथस।बिचारा ला शनिचराहा कहि कहिके रोज बखानत रथस। ओकर असन लइका ए गाॅव मा नइये।भाग मना तयॅ कि सेवक के सेती बाॅच गेस। ओतके बेरा खबर पाके रंभा के गोसइंया मनोहर  घलो रायपुर ले आगे। सेवक अपन घर ले रंभा ला दवई खवाय बर तात पानी धरके आइस। सेवक ला भनक तो लगि गेय रहय कि रंभा हर वोला शनिचराहा कहिके बखानत रथे । फेर कभू अपन अंतस मा ये बात ला नइ बइठारिस। मनोहर ला देखके कथे----------तयॅ आगेस बने होगे बड़े ददा ।येदे तात पानी बड़े दाई ला अपन हाथ ले दवा खवादे गा,,,,,।मोर हाथ सकल असुगहा हे । शनिचराहा आॅव न गा ।कहिके मुसकाय लागिस। ताना तो नइ मारिस फेर भाव मा मजकिहा असन जरूर रिहिस।बात ला सुनके रंभा सेवक ला पोटार के भरभराय गला मा रोवाॅसू असन होके कथे----------बेटा सेवक तोर कोनो दोष नइये रे ।दोष मोर बिचार मा झपाय रिहिस तेकर सेती तोला बखानत रेहेंव। तोर साहीं बेटा भगवान सब झन ला देय रे,,,,,,।रंभा पोटारे पोटारे कथे---------तयॅ शनिचरहा निहीं मोर बर तो तयॅ इतवार अउ गुरूवार आवस बेटा सेवक,,,,,,,,,,,,।


राजकुमार चौधरी

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

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समीक्षा---पोखनलाल जायसवाल:


 तरा-तरा के अंधविश्वास समाज म अपन जड़ी अइसे खोभे हे कि बुधियार मन के मति घलो फेर देथे। समाज म सेवक जइसन कतको मनखे हवँय जेन मन पूरा समाज अउ मनखे हित म जिनगी भर सेवा धरम निभाथें। 

           समाज म अंधविश्वास के फइले अंधियार अतेक हे कि रंभा जइसन सुजानिक सुईन दाई भटक जथे। मति फेर के जाला म फँसे रंभा टोटकहिन होगे। 

      सेवक कहिनी के प्रमुख पात्र आय, जेन रंभा के अनख ल नजरअंदाज कर  सेवाभाव ल नइ छोड़िस अउ अपन धीर धरे रहिथे । सेवक के इही सेवा भाव ह ओला रंभा के हिरदे बदले के मउका दिस। 

       कहिनी के कथानक समाज म फइले अंधविश्वास ऊपर हे अउ उद्देश्य समाज ले अंधविश्वास ल मेटे के हे जउन म कहिनीकार सफल हे।

       भाषा शैली मनभावन हे, मुहावरा के प्रयोग ले भाषा के प्रवाह सुग्घर होगे हे। पात्र मन के हिसाब ले संवाद / मुँहाचाही पाठक ल अइसे जनाथे कि ए गोठबात उँकरेच तिरतखार के आय। 

        कोनो रचना के शीर्षक अइसे होना चाही कि शीर्षक पढ़े म पाठक के मन रचना पढ़़े करय अउ रचना के भाव शीर्षक ल सार्थक बनाय। ए दृष्टि ले शीर्षक सोला आना सही हे। 

       राजकुमार चौधरी के लिखे ए कहिनी पाठक मन ल जरूर पढ़ना चाही। संदेश परक कहिनी लिखे बर राजकुमार चौधरी जी ल बधाई अउ भविष्य बर शुभकामना।



पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

कहानी - -जकही

कहानी - -जकही

रेवती,बिसाखा,सियनहिन काकी अऊ मेहां आज जम्मो कोई बइटका मा बइठे हावन। कभू कभू अइसन बइटका होवत रहिथे, हमर चावरा मा। इहां चाऊर निमरई लेस अऊ राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दा मा गोठ होये लागिस।

‘‘सरकार ईमानदार होना चाही। सरपंच ईमानदार होना चाही अइसना चिचियाथो फेर गुने हावव कि तुमन कतका ईमानदार हावव...? रोजगार गारंटी के गोदी ला देखे हावव .. ? कतका उथली खनथो तेन ला ...।  चार अंगूर.... बस चार अंगूर अतनी तो खनथों।"

सियनहिन काकी के गोठ ला सुनके केहेव।

‘‘तेहा जाबे छोटकी तभे जानबे। घर मा रही के चिक्कन-  चिक्कन गोठियाये ले नइ होवय। तेहां तो खेत के मुहुं ला घला नइ देखे हावस तब काला जानबे‘‘ ?

अब मोला झंझेटे के पारी काकी के रिहिस।

शौचालय के गुन- दोस मा गोठ होइस।

"लोटा धर के दुरिहा ले जावन जम्मो संगी संगवारी ले मेल मिलाप कर लेवन गोठ बात कर लेवन ...।"

"....अऊ चारी चुगली घला कर लेवन सास बहुरिया के। है ना बिसाखा ! "

रेवती के गोठ ला सुनिस अऊ जम्मो कोई कठल कठल के हासे लागिस।.

"आंगनबाड़ी वाली मेडम ला देखे हस ..? छिहिल - छिहिल अब्बड़ गोरियावत हावय ओ ।

"......अऊ सेंल्समेन के बाई कइसे मिटमिटाथे देखे हावव ?" 

बिसाखा किहिस।

"हाव देखे हावव दुनो झन ला।  जब ससरार आइस तब कइसे चिटियाही कस रिहिस दुनो कोई तौन ला। एक झन के गोसाइया कांटा मारत हावय अऊ दुसर के हा आंखी मारत हावय...।

सुशीला किहिस ।

जम्मो कोई पेट पीरावत ले हासेन।

"मंडलीन डोकरी ला देखेस सूता ला हेर के गुलबंध पहिर डारिस मार चरचिर ले नरी भर.....।"

"फेर ...  का मतलब ? तोपे उप्पर तोपथे । जवानी चढ़हत हावय तब काबर तोपथे ओ... जम्मो कोई हासे लागिस।

‘‘आज  के ब्रेकिंग न्यूज हावय गांव मा आये जकही हा।  फेर अम्मल मा हावय। नान्हे नान्हे तीन झन लइका हाबे तभो ले पेट निकलगे हे ।‘‘ बिसाखा मुचकावत किहिस।

"अतका मइलाहा मा बुड़े रहिथे तभो ले...? ."  मुहू मे पानी आगे । पच्च ले थुकेव।

" मनचलहा मन तो लाश ला नइ छोड़े .. येखर तो जांगर चलत हावय। कइसे बाच जाही राच्छस ले ? धिक्कार हे अइसन मरद ला ...।"

बिसाखा किहिस।

मोला छिनमिनासी लागिस।

"हींग लागे ना फिटकरी भुस ले लइका हो जाथे ओ अइसन माइलोगिन मन।  जादा दुख पीरा घला नइ खावय।  अऊ हमर मन असन मन ...? मास्टरिन काकी हा तो तीन दिन ले पीरा मा दंदरत रिहिस ।"

रेवती के गोठ ला सुनके जम्मो कोई हासे लागिस। महु हासेव फेर पेट मा पीरा भरगे। साव चेती राहय के अब्बड़ गोठ गोठिया के बरजिस मोला सियनहिन काकी हा । मोरो घर मा नवां सगा अवइया हावय ना। सब बने सुघ्घर करबे सुरूज नारायेण। बुड़ती सुरूज ला जोहारत केहेव। आरी पारी ले बताइस कोन का साग रांधही तौन ला अऊ बइटका उसलगे।               

                      जकही ला कभू देखे नइ रेहेव तभो ले आंखी- आंखी मा झुलत हावय । कभू खिसियानी लागे तब कभू छिनमिनासी।

         आज मुहु अब्बड़ करू लागिस। दतोन करेव अऊ दु घुटका पानी पीयेव। पेट मुरमुराये लागिस। सेप्टीक गेयेव। पिसाब मा अब्बड़ जलन होवत रिहिस खरई धरे असन लागत रिहिस। जी मिचलाये कस होइस अऊ उल्टी कर डारेव। कुरिया मा आके सुतेव। सास,दाई अऊ परोसी काकी के बरजे गोठ ला सुरता करो। दरपन के आगू ठाढ़े होके जम्मो काया ला देखेव।  बोड्डी के खाल्हे उप्पर ला देखेव। रोज देखथो वइसना अऊ नापथो घला। अवइया सम्मार हा चार महिना हो जाही। अइसन बेरा मा गोसाइया के अब्बड़ सुरता आथे। मास्टर हावय न। टंगाये हावय स्कूल वाला गांव मा। हप्ता पंदरा दिन मा आथे। पेट पीराये लागिस फेर। अल्थी कल्थी मार के सुते के उदीम करेव। सास ला आरो करेव मालिस करे बर।

                         मोर सास अब्बड़ मया करथे मोला। आगू -आगू ले जतन करथे मोर। खाये पीये बर अब्बड़ धियान देवय। येदे जुड़ा गेहे येला झन खा। गरमा - गरम सोहारी दुध भात खवा डारतिस। ताते - तात साग भात रांध डारतिस। चना मुर्रा खाई खजानी ले आनतिस बजार हाट ले। बोइर लिमऊ आमा अमली जाम ले आनतिस छांट निमार के। दुसर ला अब्बड़ सुघ्घर मिठाथे साग मन हा। चाट चाट के खाथे अऊ मोला ... ? एक बेरा गोठियातेव साग मन बस्साये बरोबर लागथे दाई । आमा लिमऊ करोंदा आंवला जम्मो के अथान खवा डारतिस। घर के ला अऊ पारा परोस ले मांग के ले आन तिस घला। भारी बुता नइ करना हावय। नरस दीदी ले जौन दिन के सुने हावय तौन दिन ले अब्बड़ हियाव करथे। गोड़ हाथ के मालीस तो अइसे करथे जइसे मोर सगे दाई हा नइ कर सकतिस। सास अतका सुघ्घर फेर मेहां ..  अलाल। थोड़हे  ला बहुते, आगर ला घाघर गोठियातेव।

                     तीनो बहुरिया मा छोटकी भलुक आवव फेर सबले पढ़हन्ती .. एम.ए.राजनीति विज्ञान। मास्टर के बेटी । अऊ जेठानी मन पांचवी सातवी वाली खेत कमइया के बेटी। ससुर कुराससुर मन घला खेत कमइयां अऊ मोर गोसाइयां नोकराहा... । मास्टर के सरकारी नोकरी। दरपन के आगू मा ठाढ़े होयेव ते शिकल दमके लागिस। छाती गरब मा फुले लागिस अऊ मुचकाये लागेव।

                      जम्मो कोई जोरा करे लागिस नवां सगा के सुआगत बर। सास हा सोठ गुड़ के लड्डू  बनाये बर जम्मो दवई ला छांट निमार डारिस। नान्हे बड़का गोरसी बना डारिस। सातवां महिना लगिस। दाई, बड़े दाई काकी अऊ परवार के मन आगे हमर घर मा बरा सोहारी खुरमी पपची दुध भात सात किसम के कलेवा धरके। दुनो परानी के पूजा करिस। कोरा मा नरिहर डारिस मोर। पीवरी चाऊर चन्दन - गुलाल के टीका लगाके आसीस दिस अऊ सधौरी खवाइस। गिप्ट धराइस। लइका के जम्मो सवांगा दिस मोर छोटकी बहिनी हा साबुन लोसन पावडर क्रीम नान्हे तिकोनीया चड्डी कथरी अऊ कनचप्पी स्वेटर। पवरी मा सरसो तेल घिसबे । कान मा पोनी डाल के कनचप्पी बांधबे । साल स्वेटर पहिरबे। आनी बानी बरजे लागिस दाई हा ,अऊ अपन घर लहुटगे।

                    पेट आगू कोती निकलगे ढ़मढ़मले अऊ कनिहा भीतरी कोती धसगे रिहिस। खोरावत - खोरावत रेंगव। चोरो-बोरो लुगरा पहिरव। कभू घिलरत ले तब कभू चढ़त ले। कतका दुख पीरा पाहू ...? कतका पीरा उठही पोटा ... कांप जाथे ? बीसो परत ले पिसाब रेंग गेव अऊ टायलेट घला। छिन भर पीरा के गरेरा आवय अऊ जम्मो सामरथ ला ले जावय। शिकल लाल अऊ काया पसीना मा चोरबोरा गे । सुवइन दाई घला जांच करिस अऊ 108 गाड़ी मा फोन करिस। गाड़ी गांव अमरिस फेर बोरिंग के तीर मा सटकगे। सोख्ता गढ्डा नइ बने रिहिस न। ये वार्ड के पंच आवव मेहा.... एम.ए. राजनीति विज्ञान वाली । फेर दु बच्छर होगे पंचायत के मुहू नइ देखे हावव।

                          अस्पताल गेयेन। लेबर कुरिया ला देखेव ... थर खा गेव। दु झन जवनहा डिलवरी निपटावत हे। बेड मा सुते पलंग मा कहारत कोठ ला देखेव ‘‘यहां पुरूषो का प्रवेश वर्जित है।‘‘ लाल आखर मा लिखाये हावय। धन हे सरकारी अस्पताल ....जी कांपगे। एक ठन बेड मा माइलोगिन पीरा मा हकरत रिहिस। कपड़ा लत्ता के ठिकाना नही ..। लाज सरम नइ होवय ना इहां।

‘‘जल्दी हो न रे दुख्खाही । ताकत लगाबे तभो तो नार्मल होही नही ते कांट भोंग के निकालबो तभे जानबे। "

मोटियारी मोटल्ली नरस के गोठ सुनके हू .. हू... महतारी कांखे लागिस। फेर छिन भर मा थक गे। अब्बड बेरा ले चिचियाइस नरस हा। महतारी ला जोश देवाये लागिस। अऊ चिचियाइस ते कान फुट जाही .....? आंखी मुंदागे .....बेसुध होगे महतारी हा। छत के खोंधरा के चिरई घला उड़हा गे। डाक्टर आइस अऊ जांच करके रेफर करे बर किहिस।

हे भगवान....!.  मोर रूआ ठाढ़ होगे। पोटा कांपगे। जियत जाहू धुन लाश बन के जाही ते..? मोर आंखी मुंदागे। अब मोर पारी हावय। लाल पीयर वाला सूजी लगा डारे रिहिस मोला । सादा रंग वाला सूजी लगाइस। पागी पटका ला हेरवाइस। उप्पर पोलखा बस ला पहिरे रेहेव अऊ खाल्हे कोती ... आखी मुंदांगे। 

"शरम करबे इहां ते करम फुट जाही। ''

नरस चिचियाइस।

अब्बड़ ...अब्बड़ .......अऊ अब्बड़ पीरा उमड़े लागिस । तालाबेली देये लागेव। नरस हा अपन अनभव ले बोड्डी के खाल्हे हाथ चलावत रिहिस। अइसे लागे जइसे दुनो टांग के बीच मा कोई जिनिस अटकगे हावय। सांस बोजाये कस लागिस। हफरे लागेव। शिकल लाल अऊ जम्मो नस तन के फुलगे रिहिस। मुहु सुक्खागे । पीरा के अथाह समुंदर उमडि़स परान निकले कस चिचियायेव। पानी लहु अऊ मांस के लोंदा बाहिर निकलगे। आंखी कान सब सुन्न होगे। थोरिक बेरा मा किलकारी सुनेव लइका के। अब्बड़ सामरथ ले आंखी उघारेव लहु अऊ पानी मा सनाये लइका केहेव.... केहेव.... रोवत रिहिस। छाती मा मया तौरे लागिस।

‘‘लइका ला दुध पीया।‘‘

 नरस के आरो कान मा आइस। 

गरम कपड़ा मा लपेटाये लइका ला देखेव । पोनी कस कोवर लइका। लाल गोरिया बरन घात सुघ्घर लागत रिहिस। छाती ले चिपका लेव । मया के समुंदर आये लागिस अऊ गोरस पीयाये के उदीम करेव फेर  .... लइका थन ला नइ धरे। पोनी भिंजो के सफा करेव। रगड़ेव । तभो ले दुध के धार नइ फुटिस लइका रोये लागे।

‘‘दुध पीला ।‘‘ 

नरस दुसरिया बेरा अऊ चिचियाइस। एक डेढ़ घंटा ले अइसना चिचियावत हावय नरस हा।

‘‘ना इहां पावडर दुध मिले ,ना गाय दुध । घरो घर इहां दारू मिल जाही ... गांव भर ला किंजर डारेव। "

बड़की जेठानी आते साठ किहिस।

‘‘तत्काल दुध पिलाओ इस बच्चे को । मां का दुध पिलाने से बच्चो मे रेसीस्टेंस पावर बढ़ता है। कितना विकनेस है देखो । बराबर दो किलो भी नही है। कम से कम ढाई किलो तो होना था। देखो वार्ड मे कोई मां होगा उनसे पिलवा दो ।‘‘

‘‘जी‘‘

नरस  दीदी हा हुकारू दिस। डाक्टर हा लइका महतारी ला जांच करिस।

थन ला पिचकोल के गोरस निकाले के उदीम करेव फेर  बूंद भर सादा पीयर पानी ले जादा कुछु नइ निकलिस। लइका चीची अऊ पिसाब करिस अऊ केहेव-केहेव फेर रोये लागिस।

मोर जी धक ले लागिस। नरस हा लइका ला धरके हमर वार्ड ले बाहिर निकलगे। मेहा सामरथ करके उठे के उदिम करेव फेर नइ उठ सकेव। देख के बने महतारी के दूध पीयाहू ..... मेहा चिचियाके के केहेव अऊ रो डारेव।

लइका लहुट के आवय तब सुत जाये राहय। पेट तने राहय। तीन दिन होगे अइसना बेरा-बेरा मा लइका ला दुध पीयाये बर लेग जाथे अऊ भर पेट पीयाके लहुटा देथे नरस हा। सूजी दवई अब असर करिस। दुध पनियाये ला धरिस अऊ गोरस के धार घला। परवार के मन जम्मो कोई आइस अऊ लइका ला पा पाके आसीस दिस। गोसाइयां के बेटी पाये के साध पुरा होगे रिहिस। अब्बड़ पढ़ाहू बेटी तोला। काबाभर पोटार लिस।

अब तो तोर पापा के वेतन घला दुगुना होगे। संविलियन होगे। गोसाइया किहिस लइका ला पुचकारत अऊ मिठई फल फलहरी लेये बर चल दिस।

मध्दम- मध्दम मीठ -मीठ पीरा अब्बड़ सुघ्घर लागे जब लइका हा सपर-सपर दुध पीये .. आ हा.. ! अब्बड़ उछाह। ये मरम ला महतारी भर जान सकथे कोनो दुसर नही..। मेहां इही बेरा बर तरस गे रेहेव। दु बेरा गरभ घला खराब होये रिहिस ना। गवाये के पाछू पाये के उछाह .... लइका ला पोटार डारेव।

                 छिटही करिया लुगरा माड़ी के उप्पर ले, आरूग महलाहा चिरहा अऊ दाग लगे पेटीकोट। ढि़ल्ला पोल्ला पोलखा। दु बटन लगे। उप्पर खाल्हे अऊ कांटा पीन लगे। चुन्दी भुरवा- भुरवा झिथरी । दांत रचे हे। बरन करिया, करिया अऊ ओमा गोदना। तीस एकतीस बच्छर के माईलोगिन । वार्ड के मुहाटी मा आके दमदम ले ठाढ़े होगे। बोटोर- बोटोर देखे लागिस अनर - बनर ।

"काला देखथे दुख्खाही ! ये ठउर ले जातिस नही ? ओखर चिरई खोंधरा कस चुन्दी ला देखत मनेमन मा केहेव। अऊ नाक मुहु ला छिनमिनाये लागेव। लइका ला तोप ढ़ाक के राखेव।

कोनो डाहर ले किंजर के आतिस अऊ फेर रोप देतिस  मोहाटी मा। घंटा भर होगे अइसना चरित्तर देखावत। अब्बड़ बरजिस। खिसियाइस कतको झन मन फेर नइ मानिस। मने मन मा अब्बड़ बखान डारेव। अपन गोटारन कस आंखी ला छटिया - छटिया के देखे लागिस जइसे कोनो जिनिस ला खोजत हावय। कभू हासे सही करतिस, कभू रोये सही करतिस, कभू आंखी चमके लागतिस तब कभू सून्ना..... निचट सून्ना । मोर लइका कुसमुसाइस अऊ किलकारी मार के रोये लागिस। ओढ़ना ला हेरेव। कंकालीन माई कस मोर पलंग के तीर मा आगे ओ माइलोगिन हा अऊ लइका ला धरे ला लागिस।

मोर जी कांपगे फेर सामरथ करके छोड़ायेव ।

"कइसे करथस जकही  नही तो ... ?" चचियाके के केहेव लइका ला ओहा छोड़ दिस। आने मरीज अऊ ओखर नत्ता मन घला खिसियाइस । एक झन हा तो चेचकार के कुरिया ले निकालिस फेर ओहा  मोहाटी मा फेर ठ़ाढ़े होगे । ढ़ीठ नही तो।  सून्न आंखी मा देखे लागिस एक टक। लइका ला छाती मा लगा के काबा भर पोटार ले रेहेव मेहां। दस पंद्रा मिनट तक अइसना देखत रिहिस टुकुर- टुकुर । हुरहा बम्फाड़ के रोइस गदगद - गदगद आंसू बोहाये लागिस अऊ गोरस के धार फुटगे छाती ले। अब तो मइलाहा चिरहा पोलखा घला भिंजगे अऊ पेट कोती उतरे लागिस गोरस हा । मोर लइका घला अब्बड़ रोये लागिस। रोनागाना सुनके भीड़ लगगे। अब तो वार्ड ब्वाय घला आगे चेचकार के बाहिर कोती लेगिस।

"दु दिन का दुध पीया देस अतका  मया पलपलागे .....जकही नही तो  !"

मोर जी धक ले लागिस ओखर गोठ ला सुन के। रूआ ठाढ़ होगे, काया कांपें लागिस। मोर लइका जकही के दुध पीयत रिहिस..... ? हे भगवान झिमझिमासी लागिस। अऊ कोनो महतारी नइ मिलिस मोर लइका ला दुध पीयाये बर ? अब अब्बड़ अकन गोठ टोटा मा अटकगे रिहिस। नंगतहे झंझेट देवव वार्ड ब्वाय ला अइसे लागिस फेर ....?

".... अस्पताल मा कोनो महतारी नइ रिहिस। लइका ला गाय दुध नइ दे सकत रेहेन। ओखर रजिस्टेंस पावर घला कमती हावय। अऊ सूजी दवई मा पेट नइ भरे। दुध नइ पीतिस तब लइका मर.... "

वार्ड ब्वाय अपन गोठ ला छोड़ दिस।

बम्फाड़ के रो डारेव मेहां। पल्ला दउड़ेव जम्मो अस्पताल ला खोज डारेव फेर नइ मिलिस। बाहिर कोती निकल गेव। मेन गेट करा देखेव कोनो सियनहिन हा आटो वाला संग मोल भाव करत रिहिस लइका ला कोरा मा पाके। जकही हा घला ठाढ़े रिहिस। पल्ला दउड़े के उदिम करेव फेर गोड़ तो जइसे जम गे मोर। मोला देख डारिस ओहा। मुच ले मुचकाइस अऊ दुनो हाथ जोर के जोहार करिस। मेहा बोटोर - बोटोर देखे लागेव अचरज मा सामरथ भर चिल्लायेव ... ‘‘जकही‘‘ फेर मुहु ले बक्का नइ फुटिस।

        गोसाइया लहुटगे ।

‘‘कइसे ठाढ़े हस जकही बरोबर ?‘‘ 

गाज गिरे कस लागिस जकही सुनके। गुने लागेव जकही ओहा आए कि मेहां।

सुन्न हो गेव मेहां । निचट सुन्न।


चन्द्रहास साहू

आमातालाब रोड श्रद्धानगर धमतरी

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समीक्षा-पोखनलाल जायसवाल: 

जकही कहानी, 

कहानी के मुख्य पात्र छोटकी बहू के आपबीती आय। जउन हर चार माइलोगन के एक तिर बइठे ले मुँहाचाही गोठ बात के संग शुरु होथे। अउ  जुरियाय माइलोगन मन  के बीच होवइया गोठ बात ल बड़ नीक ढंग ले लिखे म कहानीकार चंद्रहास साहूजी सफल हें। आँखी के आगू फोटू खींचे म चंद्रहास जी माहिर हे, कहे जाय त अबिरथा नइ होही। चाहे चित्रण मन म होय चाहे संवाद मन म। जम्मो जिनिस नजरे-नजर म झूल जथे। बइठका म बइठ के गोठ होवय, त रोजगार गारंटी योजना म होवत भ्रस्टाचार के गोठ होय। त काकरो बहू अउ कोनो माइलोगन के चारी करे के गोठ होय। चाहे एक ले दू तन होय के बखत पीरा के गोठ होवय। सब पाठक ल बाँध रहिथे। सहज अउ सरल भाषा कहानी ल पढ़े के लइक बनाथे।  जरुरत के मुताबिक अँग्रेजी शब्द बउरे ले भाषा के सुघरई बाढ़ जथे। पात्र के हिसाब ले संवाद लिखे गे हे। 

     जेन मेर मन म घिन पैदा होथे ओमेर अइसे लिखे हे कि पाठक घिना जही।   

    *"अतका मइलाहा म बुड़े रहिथे तभो ले......"  मुँह म पानी आगे, पच्च ले थूकेंव।* 

       ताना कसत बेर कलम पाछू नइ दिखय, भलुक धरहा हो जथे।

     *"मनचलहा मन तो लाश ल नइ छोड़े....येखर तो जाँगर चलत हावय....."* समाज ऊपर बड़का जान ठेसरा हे अउ सोला आना गोठ घलव।

     *"जल्दी हो न रे दुख्खाही। ताकत लगाबे तभे तो नार्मल होही, नहीं ते काटभोंग के निकालबो तभे जानबे।* 

      का कहना बड़ सुग्घर संवाद हें। तभे तो नवा जनम धरइया अउ महतारी बनइया नारी ह ए पीरा सहे के हिम्मत जुटा पाही।

       संविलयन होय के गोठ कर अपन कहानी के काल के संग अपन परिवेश के बात करथे। इही परिवेश ह कहानी ल सिरतोन घटना ले जुड़े के आरो देथे।

       सधौरी खवाय के नेंग ल जोर के संस्कृति अउ सँस्कार ल सँजो के रखे के अपन जिम्मेदारी ल घलव निभा डरे हे। जेन साहित्य अउ साहित्यकार ल नवा पहिचान दिलाथे।

     दूध पिलाये पिला बर तो मया पलपलाबे करही। जनावर मन म देखब मिलथे तौ जकही तो मानुख आय। अउ मानुख ल भगवान ह ए वरदान देच हे त जकही एकर ले कइसे अछूता रइही।

     कहानी के शीर्षक जकही एकदम सही हे। छोटकी के मन म उठत सवाल घलव कहानी के शीर्षक ल सही साबित करथे। कुल मिला के कहानी बड़ सुग्घर हे।सबो पाठक ल ए कहानी खच्चित पढ़ना चाही।

      मोला *"काबा म पोटार लिस।"* एकर प्रयोग सही नइ लागत हे। नान्हे लइका ल भला काबा म कइसे पोटारे जाही।

     सुग्घर कहानी लिखे बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई अउ भविष्य बर शुभकामना💐💐🌹🌹🙏


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

Thursday 23 December 2021

किसान दिवस विशेष आलेख- दुर्गा प्रसाद पार्कर


 

छत्तीसगढ़ी में पढ़े - किसानी

चल चल ग किसान, बोए ल चलव धान

दुर्गा प्रसाद पारकर 

  छत्तीसगढ़ ह धान के कटोरा के नाव ले जग जाहिर हे। फेर आज स्थिति बिल्कुल उल्टा हे काबर के खेती अपन सेती नइ हो के पर के सेती हो गे हे। बीज दवई अउ खातु के महंगाई म खेती के जोरन ल फोरन के बरोबर ले दे के कर पाथे। महंगाई के मार ल सब ले जादा किसान मन ल झेले बर परत हे। साल पुट अंकाल ह खेती ल बने ढंग ले न नींदन कोड़न देवय न माईलोगन ल चिक्कन के कोरन गाथन देवय। छत्तीसगढ़ के आर्थिक दशा के बिगड़े के मूल कारन छै महीना किसानी मन बर किसानी अउ बाकी के छै महीना ठेलहा किंदर के खवई हरे। किसान मन बर किसानी ह नांगर ले तुतारी गरु हो गे हे। कम उत्पादन म बढ़िया सेहत अउ उच्च शिक्षा के सपना देखई ह मृग मरिचका कस हरे। पूंजी रही तभे त रुंजी ल बजाबे। नही ते मन ल मार के टुकुर-टुकुर निहारत रहा।

       छत्तीसगढ़ के ७५ प्रतिशत किसान अशिक्षित हे ८॰ प्रतिशत किसान जुन्ना ढंग ले खेती करत हे। मान ले कोनो ठउंका फदके किसानी म एकाद ठन बइला नही ते भंइसा मरगे ताहन तो फेर किसान मन बर दुब्बर ले दू असाढ़ होगे। जय हरी हो जथे किसानी ह। करजा-बवड़ी ले उबरत दू-चार साल पूर जथे। मजबूरी के फायदा सेठ साहुकार मन उचाथे। माईलोगन के अइठी ह घलो गिरवी धरा जाथे भूखमर्री के दोंदर म। जब किसान के घर नवा बिहान नइ होही त फेर बारी के चिरइया ह कइसे फूलही। 

  जेठ म आमा के अथान ह हड़िया म मजा लेथे। कुर के नाव लेवत मुहु ह पन्छा जथे। किसानी बूता बर किसान साबर, हंसिया, रापा, बछला, पटासी, गिरमीट आदि के बेवस्था करथे। नांगर, कोप्पर, दतारी, तुतारी, कुदारी, जुड़ा, जोतार, नाहना, कलारी, दौरी, खुमरी, मोरा के जोरा करथे। बीते साल के सन पटवा ल नदिया तरिया म सरो के सुखोए ताहन पूरा ल नीछ के सकेल लेथे। सन ल ढेरा म आंट के डोरी बनाथे जेला सन डोरी के नाव ले जानथन। पटवा के ल पटवा डोरी के नाव ले जानथन। सन डोरी ले कांछड़ा गेरुवा अउ डोर बनाथन। कांसी अउ बगई ल कुटेला म कुचर के नरम कर के पानी म भिंगो देथे। भिंगोए के बाद सुमा डोरी बना के आंट देथे जउन ह खटिया गांथे के काम आथे। कमचील के उपर राहेर काड़ी म कोदो पेरा ल मोठ के बिछा के राहेर काड़ी म दबा दे ताहन कमचील के सहारा बांध के खइरपा तैयार कर लेथे जउन ह बरसात म दिवाल ल बचाए के काम आथे। आगु जमाना घरो-घर ढेकी मुसर पातेव जउन आज नंदागे हे। धान कुटे बर ढेकी मुसर ल घलो मरम्मत कर लेवय। खातु पाले के पहिली माईलोगन मन खेत के कांटा खूंटी ल बीन लेथे। कांटा खूटी बिनाए के बाद घुरवा के कम्पोस्ट खातु ल खेत म हुंड़ी-हुंड़ी मड़ा के चाल देथे। तभे तो सियान मन कहथे खातु परे तो खेती रे भाई नही ते नदिया के रेती कस ताय। पहिली समे म घुरवा के खातु ले अनाज भले कम होवय फेर ओ अनाज ह पुस्टईक राहय। फसल म बीमारी कम लगे। यूरिया अउ ग्रोमोर कस कतको रसायनिक खाद के अवतरे ले उत्पादन ह तो मनमाड़े बाढ़िस फेर पौष्टिकता ह सिरागे। तेखरे सेती तो तन अउ मन म आनी बानी के बीमारी ह बसेरा कर ले हे। चउमास खातिर नून तेल के जोरा करथे। पहिली पानी के परते भार कोठार के पैरावट ल घर के पठउंव्हा म जोरथे अउ आगी बूगी बर छेना लकड़ी ल चउमास बर सकेल के राखथे। ताकि बरसात म कोनो किसम के तकलीफ झन होय। बांवत बर कोठी ल फोर के नवा झेंझरी म बीज जोर के खेत लेगथे। हुम-धूप दे के बांवत के सुरुआत करथे- 

   चल चल ग किसान

   बोए ल चलव धान असाढ़ आगे

   जेठ बइसाख तपे भारी घाम

   अकरस के नांगर तपो डरे चाम

   अब कड़कत हे बिजुरी

   ले ले तोर नाम असाढ़ आगे-

छत्तीसगढ़ म खरिफ अउ रबी फसल दोनो होथे। खरिफ फसल म धान, जोंझरा, उरीद, मड़िया, राहेर, तिली, कोदो रबी फसल म गहूं, चना, अरसी, मसूर आदि। रबी फसल जिंहा पानी के भरपूर साधन हे जहां आई.आर. ३६ धान के पैदावारी घलो लेथे। छत्तीसगढ़ म प्रमुख रुप ले कन्हार मटासी, गोट्टा आउ भर्री जमीन हे। जेमा धान बर कन्हार माटी ल सबले उत्तम माने गे हे। धान ह घलो दू किसम के होथे। जउन धान ह कातिक म लुआथे ओला हरहुना अउ अग्घन पुस म लुआथे ओला माई धान कहिथन। ओइसे तो क्षेत्र के मुताबिक अलग-अलग धान ह प्रचलित हे जउन ह उहांके भूईया उपर निर्भर हे। हरहुना म परेवा बेंदरा, अजान कस कतको धान हे अउ माई म दूबराज, मासूरी, सफरी ह छत्तीसगढ़ भर चलन म हे। ओइसे तो बांवत ल किसान ह असाढ़ म करथे मान ले कोनो कारन ले चुकगे त फेर ओखर हालत ह डार ले चूके बेंदरा कस दनाक ले गीर जथे। जउन ह योजना बना के किसानी करथे ओहा सफल कृषक कहाथे। किसान मन के अइसे मानना है कि चित्रा नक्षत्र म गहूं अउ आर्दा म धान बोए ले बीमारी कम सपड़ाथे। न ही घाम ले फसल नष्ट होवय तभे तो धान गहूं के मूल मंत्र हे- चित्रा गहूं, आर्दा धान ओखर सेंदरी न एखर घाम। धान बोनी के कतको विधि हे जइसे खुर्रा बोनी बर किसान मांघ फागुन म अकरस पानी के ताक म रहिथे। कउनो पानी गिरगे ताहन पाग के आते भर खेत ल दू परत ले हांत दून जोत डरथे। ताहन चइत म घुरुवा के खातु ल लेग के बगरा देथे। खातु ल मेले खातिर बइसाख म एक परत अउ जोत देथे। जेठ म पानी आए के आघु धान सींच के नांगर चा देथे। सुक्खा बोंवई के सेती अइसन बोनी ल खुरा्र बोनी के नाव ले जाने जाथे। कतको किसान भाई मन पानी गीरे के बाद बांवत कर के उप्पर ले दतारी चला देथे जेन ल बतरकी बोनी घलो कहिथन। असाढ़ के महीना खेत म पानी रोक के तीन घांव गहद के जोते के बाद खेत ल मता देथे। बीजहा धान ल मइरका म राख के रात भर भिंजो देथे। भिंजे के बाद धान ल निकाल के पाना पतई म राख के चैबीस घंटा के बाद जुगुर-जागर करत धान ल खेत म सींच देथे इही ल लेई बोनी के नाव ले जानथन। थरहा बोनी जेन ल रोपा कहिथन पानी के सुविधा वाले जघा म जादा चलन हे। आधा असाढ़ के आसपास पानी भर के खेत ल मताए बर परथे। मता के कोप्पर रेंगा दे। उतरती जेठ म डारे थरहा ह तब तक लगाए के लइक हो जथे। सुपर फास्फेट अऊ ग्रोमोर खातु ल सींच के रोपा लगाथे। थरहा ल खेत म रोपथे तेखरे सेती रोपा कहिथन। रोपा लगावत जब माईलोगन ददरिया झोरथे। तब तो कोनो दुख पीरा के सुध घलो नइ राहय। कइसे दिन बुलक जाथे पता नइ चलय। आठ-पंदरा दिन बाद युरिया छीत दे ताहन का पूछबे धान ह बढ़िया हरिया जाथे। बत्तर अउ लेई बोनी के आखरी बूता सावन भादो म बियासे के संग निपटथे। एक दु घांव जोते के बाद कोप्पर चलाए जाथे। 

          आठ दिन बाद रेजा कुली मन धनहा के सांवा, बदउर अउ करगा कस कतको बन ल नींद के मुरकेट के खेत म गड़िया दे ले वहू ह खातु के काम करथे। अतेक तइयारी अउ हिसाब-किताब के बाद प्रकृति करा झूके ल पर जथे। कतको साल बादर ह टुंहू देखा देथे। फेर पानी गिरे के नाव नइ लेवय। इही दुख ल भोगत हरि ठाकुर लिखथे-

‘‘ भूले बिसरे एको दिन तो।

  मोर अंगना म बरस रे बादर।।

  नदिया नरवा सुक्खा परगे। 

  रुख राई के पाना झरगे। ।

  धरती के सिंगार उझरगे।

  धुर्रा के सब राख बगरगे।।

  परे करेज कल किथना म।

  तैं खोजत हस पूजा आदर।।’’

हरियर खेती गाभिन गाय, जभे खाय तभे पतियाय। काबर के फसल ल पकत ले कतको बीमारी के सामना करे बर परथे। बेलिया अउ सोमना एक किसम के बन हरे जेन ह फसल ल चैपट कर देथे। गंगई ह तो धान के बाली ल निकलन नइ देवय। पौधा म जहां पंड़री अउ कबरी होय ल धर लीस ताहन जान डर धान ल बंकी बीमारी ह लग गे हे। धान ह बाढे बर बिसर के गले ल धर लेथे। ए दुनो बीमारी ह ठउंका भादो म अपन रोस देखाथे। माहू बीमारी लगे ले होय हुआय धान के करम फूट जथे। काबर के बाली निकले बर तो निकलथे फेर ओमा दूध नइ भरावय। जब दूध नइ भराही त फेर दाना कहां ले परही। जतका बन जथे ओतका बीमारी के निदान करथे। आखरी दम तक किसान हिम्मत नइ हारय। आसा म तन मन अउ धन ल किसानी म सोपरित कर देथे। किसान मन बर का सुख ते का पीरा जेला सुशील वर्मा ह बने फोटू खींचे हे-

  ‘‘जिनगी होगे आज पहुना।

   मरना बनगे मितान।।

   आज जमाना उल्टा होगे।

   टेटकत हवे किसान।।

   कइसे कटही जिनगी।

   अब तो मरना हे भगवान।।’’

सुख अउ दुख जिनगी के दू पहलू हरे। हिम्मत के साथ उन्नत कृषक बनन। वैज्ञानिक तीरका ले खेती कर के उत्पादन बढ़ावन। उत्पादन बढ़ा के परिवार, गांव छत्तीसगढ़ अउ भारत देश के विकास म भागीदारी निभावन।


किसान दिवस विशेष आलेख- दुर्गा प्रसाद पार्कर