Thursday 23 December 2021

किसान दिवस विशेष आलेख- चोवाराम वर्मा बादल


 किसान दिवस विशेष  आलेख- चोवाराम वर्मा बादल


किसान*


किसान कहे तहाँ ले रात दिन चरचरावत घाम ,ताते तात झाँझ-झोला, लउकत-गरजत बरसत  बादर-पानी  अउ कँपकँपावत जाड़ म तको जाँगर टोर के कमइया, खेत के धुर्रा-माटी,चिखला म सनाये सब बर अन्न उपजइया फेर खुद भूख गरीबी अउ अभाव म घेराय हलधरिया के चेहरा आँखी-आँखी म झूले ल धर लेथे।

      आजादी के पहिली अउ अभो ले ये भुँइया के भगवान के दशा 19-20 ओइसनेच हे।भले आनी-बानी के आँकड़ा मन चिल्ला-चिल्ला के काहत रहिथें के किसान के दशा म बहुत सुधार होये हे,उँखर आमदनी बाढ़ गे हे फेर हकीकत ल टमड़ के देखबे त कुछु आन नजर आथे।

 हाँ ---आमदनी बाढ़गे हे,फसल हा पहिली ले जादा कीमत म बेंचावत हे  फेर खातू -माटी, बिजहा अउ दवई के रेट हा तो घलो अगास ल छूवत हे। फसल के कीमत थोकुन बाढ़थे त ओकर तुलना म सुरसा कस मुँह फइलाये मँहगाई ह कई गुना बाढ़ जथे। कुल मिला के जोड़-घटाना करबे त किसान ल कुछु हाथ नइ आवय उपर ले कर्जा-बोड़ी करके खेती किसानी करे लागत (खर्चा) ह नइ वसुलावय।किसान ह जनम ले मरत तक कर्जा म बूड़े रहिथे।कतेक झन तो इही दुख म फाँसी लगा लेथे।

    कोनो भी सरकार कहिथे के हम तो किसान ल ये स्थिति ले उबारे बर वोकर कर्जा माफ कर देथन--- बहुत कस छूट अउ अनुदान देथन--- सहीं बात ये फेर एकर लाभ वास्तव म किसान ल मिलथे धन नहीं तेन सोंचे के बात ये।

कर्जा माफ होइस तहाँ ले फेर मँहगाई ह चुहक के ओइसने के ओइसने कर देथे। अनुदान अउ छूट के लाभ बड़े मन उठा लेथें।असली किसान पिछवा जथे।अरे भइया हो करजा माफ करे के ,फोकट म देये के जरूरत नइये भलुक फसल ल उचित कीमत म खरीदे के जरूरत हे, किसान ल भरपूर बिजली,सिंचाई बर पानी, सहीं बिजहा अउ सहीं समे म पर्याप्त खातू देये के जरूरत हे। उत्पादन बने होही,फसल के बने कीमत मिलही त मिहनती ,संतोषी किसान ह अपन स्थिति ल खुदे सम्हाल लिही। बिजली बिल नहीं के बरोबर होगे हे फेर फसल म पानी पलोये के दिन म कटौती उपर कटौती-- फसल भुँजाके मर जथे, येहू का काम के ।सिंचाई बर नहर कहाँ हे? हाबय तेनो मन ऊँट के मुँह म जीरा बरोबर हें।

  एक बात अउ के कर्जा माफी अउ जतका भी सुविधा के घोषणा होथे वोकर असली फायदा बड़े-बड़े दाऊ जोतनदार ,जमींदार ,गौंटियाजे मन खेत के मेंड़ म तको नइ जायँ ते मन उठाथें। कतेक झन नकली किसान बने सेठ-बैपारी मन उठाथें।इँकरे  दस ठन बीस ठन खाता रहिथें  तेमा लाखों-लाखों रुपिया के कर्जा छूट होथे। खेती किसानी के नाम म  जानबूझ के मँनमाड़े करजा ले रहिथें--पटावयँ तक नहीं-- काबर के जानत हें, आज नहीं ते काली चुनावी मौसम म कर्जा माफी होबे करही। इँकर सरी काम ल मजदूर अउ निच्चट छोटे किसान मन करथें फेर येमन ल कुछु नइ मिलय।असली किसान इही मन ये ते मन चुक्कुल म चल देथें।येमन ईमानदारी ले बैंक ले लेये कर्जा ल घलो पटा देथें। अउ कहूँ छूट मिलथे घलो त कतका--  पाँच हजार  के दस हजार----।

   सच कहे जाय त किसान के दशा अबड़ेच दयनीय हे वो ह मोटइय ते दूरिहा के बात ये दिनों-दिन दुबरावत जावत हे। वो ह बने पेट भर खाके कभू नींद भर सो नइ सकत ये। हरदम चिंता फिकर म परे रहिथे-कभू बिन बरसा के त कभू बाढ़ त कभू कीरा मकोरा,बीमारी के मारे। अब तो वो ह किसान ले मजदूर होवत जावत हे।मजबूरी म होवय चाहे बड़े-बड़े तनावत फेक्ट्री मन के सेती, खेत-खार खिरावत जावत हे।

       किसान मन ल ये दुर्दशा ले बँचाये के उदिम होना चाही वोकर बर सबले पहिली फसल के सहीं कीमत मिलय अइसन इंतजाम करे बर लागही। वोकर खेती-किसानी के काम के जिनिस मन ल मँहगाई के खर छँइहा ले बँचाये ल परही।  सिंचाई सुविधा देये बर परही, सहीं समे म खातू-माटी ,बिजहा के सुभीता देये बर लागही।अधिया-रेगहा लेके जेन खेत म वो मिहनत करथे वोमा मिलइया सरकारी जम्मों लाभ उही ल मिलना चाही।

    किसान के दशा ल देखके हमर आत्मा पुकार उठथे---


जग ला सब सुख देने वाला, तैं किसान सब ले मजबूर।

दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।।


रिबी रिबी बर तरसत रहिथें,तोर सुवारी लइका लोग।

खून पछीना तोर कमाई, बइठाँगुर मन करथें भोग।

तोर काम के दाम तको ला, बइरी मन नइ दँय भरपूर।

दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।


जाँगर पेर कमावत रहिथस, घाम भूख अउ सहिके प्यास।

भोग आन मन छप्पन झड़थें,रहिथे हँड़िया तोर उपास।

देख तमाशा हाँसत रहिथें, सेठ धनी मन मद मा चूर।

दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।


जादा सिधवा झन रा संगी, तभे बाँचही तोरे लाज।

मूँड़ उठाके रेंग बने तैं, पटकू बंडी पागा साज।

'बादल' के अरजी हे अतके,झन चिखबे खट्टा अंगूर।

दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़


1 comment:

  1. लेख ल सहेजे बर जितेंद्र वर्मा जी अउ छत्तीसगढ़ी गद्य खजाना ला हार्दिक आभार।

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