*फोकट के सलाह* -
*लक्ष्मण मस्तूरिया*
चाहे महामुरुख मनखे होय चाहे महापंडित, बिन मांगे सलाह के कभू कदर नहीं करैं। तभो ले फोकट म सलाह देवइया अपन सुमत-सलाह माने, ज्ञान बाँटे के काम म लगे रथें। अइसने काम लेखक कवि और कलाकार मन करथें। तइहा समे ले मनखे ल जिंदगी के नीत-नियाय सिखाए बर कतको बड़े-बड़े पोथी ग्रंथ लिखाए पड़े हें फेर मनखे के जात गुनबोरा, फोकट के सीख-सलाह ल माने बर तियार नइ हे। अमीर होय के गरीब, ज्ञानी होय के अज्ञानी, अपनेच मन के करथे। अपने मन मुताबिक गोठ-बात वाले ल पसंद करथे। तभो ले कहूँ गलती होंगे5, नुकसान होगे, ठोकर लागिस तहाँ दूसर के नाम लेके, अपन पय ल लुकाथें। कतेक जुग बीत गे, बड़े-बड़े संत-साधु, महात्मा, ज्ञानी-ध्यानी, तपसी-त्यागी मन ए मनखे जात ल सुधारे बर, सुमत-सलाह सीख भरे बेद-पुरान ले लेके, आज के हाँसी-ठट्ठा मा समाए ज्ञान-गोठ के रचना करे हें। फेर वाह रे मनखे चोला, सरहा डुमर खोला, तोर मन के भेद भगवान घलो नइ जान पाथे।
मनखे के मन ल बाँधे-छाँदे के काम जुन्ना रिसी-मुनि मन करत रहिन। तपस्या म लगे रहें। भूख-प्यास म मन अल्लर पर जाथे, फेर जेती रेंगाबे वोती रेंगथे। ए भेद ल तपस्वी मन जानथें। मनखे ल सुधारना हे तब वोला पेट ले उबरन मत दौ। खाली पेट मुरुख अउ पंडित के अंतर ल पाट देथे। भूख म दुनों सिरिफ भोजन के गुन गाथें। भूख के घलो भारी महात्तम हे। ज्ञानी ल मुरुख अउ मुरुख ल ज्ञानी बनाये के काम भूख करथे। ज्ञान-विज्ञान सब पेट भरे के चोंचला होथे। मनखे ल सिखाना पढ़ाना हे तब पेट भरे के सुग्घर रद्दा गढ़ना परही। बिन मेहनत के भूख बाढ़त जाथे, नवा-नवा भूख जनमथे। बिन मेहनत के कमाई खाये म पेट फूलथे, अपच होथे अउ बिन मेहनत के खाथें वोमन ल नवा-नवा बेमारी घलो होथे। इही मन बर तुलसीदास जी लिखे हें - पर उपदेस कुसल बहुतेरे। मनखे ल जतके सुधारथें, वोतके बिगड़थे। एकरे बर सियान मन खुद के सुधार करे के काम ल महान काम बताथें। फोकट म सलाह लेना देना दूनो बेकार होथे। अपन मन के भड़ास ल निकाले बर कोनो कुछू सलाह देत हे, वोला भला कोन मानही? तोला अइसे करना चाही, तोला वइसे करना चाही कहइया मन ल खुद पता नइ रहे के वोला का करना चाही। सलाह के सार तभे हे जब कोनो वोकर मोल समझे, वोकर जरूरत जाने। सलाह लेना अउ देना बने होथे, फेर बिन मांगे फोकट के सलाह ले बचना चाही।
*लेखक - लक्ष्मण मस्तुरिया*
(छत्तीसगढ़ी गुनान गोठ ले साभार)
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