Friday 17 December 2021

कहानी- ==माॅई कॅवरा==

 [ कहानी


         ==माॅई कॅवरा==

          बड़े बिहनिया एक दुसर ले खुसुर फुसुर गोठियावत बात गाॅव भर बगरगे कि जानकी चल बसिस।जानकी खतम होगे ।अउ थोरिक बेरा मा ओकर दुवारी मा मनखे मन सकलाय लगगे। सगा संबंधी हित पहिचान सब्बो जगा फोन खबर पहुचे लगगे ।

गाॅव के परम्परा के मुताबिक घरो घर ले पाॅच पाॅच ठन छेना घलो सकेलागे । घर के सियान माने जानकी के गोसॅइया दुखी मन ले दुवारी के एक टोकान मा गाॅव के चार छै झन सियान मन सॅग बइठे रहय । थोरिक बेरा मा जानकी के   देंह ला अंतिम बिदाई देय के तियारी सुरु होगे। जानकी हर हेंवाती दसा मा परान तजे रहय। येकर सेती जानकी के शव यात्रा के पहिली वोला सोला सिंगार मा सजाये लागिन।अइसे भी नारी परानी मन सुहागिन मरना ला अपन अहोभाग मानथे ।नारी परानी मन ला दू बखत सुहागिन के सोला सिंगार मा सजाथें।एक तो बिहाव होथे तब अउ दूसर पति के जियते जीयत मर जाथे तब । भले वो हर नेंगहा काबर नइ रहय। 

              गाॅव आने गाॅव के सबो सगा पथिया मन मिलके खटोली तियार करके मुक्ति धाम कोती मरे तन के गत बनाय बर चले गे। जानकी के बेटा बसंत अपन महतारी के बड़ मयारू बेटा रहय।  महतारी तो महतारी होथे ।चाहे वो एक लइका के रहय चाहे चार लइका के । दुवा भाव कोनो बर नइ राखय। ना नोनी बाबू मा भेद करय ।काबर कि एके दुख पीरा ला सहिके सबो ला जनम देथे । बिचारा बसंत मुक्ति धाम तक मा रोवत बिलखत रहय । उही गाॅव के एक झन अधेड़ मनखे जेन हर बसंत के जौजर अउ नानपन के सॅगवारी भूरू । भूरू घलो काठी करम मा पहुंच जाय रथे । चिता मा जानकी के देंह ला जरत लेसात देख के आॅसू नइ रोक पाइस। अंतस मन ले रोवत रोवत वोला अपन नान्हे पन के वो सबो बात घरी घरी सुरता मा समाये लागिस । 

             जब बसंत अउ भूरू नान्हे नान्हे रहय। पहिली साल आॅगन बाड़ी मा इसकुल मा भरती होय रथे । दूनो के जोड़ी सॅग कभू नइ छूटय। कतको बखत खेले के धुन मा इसकुल घलो नइ जावय ।एक दिन के बात आय। कातिक अग्घन के महिना मा रांय रांय धान लुवई चलत रथे । मॅझनिया जानकी लकर धकर खेत ले बियारी करे बर आइस ।हाथ पाव ला धो के जेवन निकालथे । ओकर मयारू बेटा अपन सॅगवारी भूरू सॅग खेले मा मगन रथे । बिचारा भूरू के महतारी भूरू के जनम के साल भर बाद अलपकाल गुजर जाय रथे । ओकर ददा मेरन बने खेती बारी रिहिस खाय पिये के कमती नइ रिहिस। कमती रिहिस ते सिरिफ भूरू के महतारी के। धुर्रा माटी मा सनाय भूरू अउ बसंत मगन रथे। अउ ये डहर घर ले जानकी आरो देथे----------बसंत-------- ए बसंत आ बेटा भात भाले ,,,,,,,,,। जनकी कई बखत आरो देथे। महतारी के मन नइ माड़िस तब , तब जानकी हर तीर मा जाके ओकर हाथ ला धरके तिरत लाके कथे-----------चल बेटा एक कनी खाले । ताहन खेलत रबे भूरू सॅग। ढिठईपना करत बसंत हर कथे-------------मोला भूख नइये    पाछू ले खाहू मोला खेलन दे ना वो । भूरू भगा जाही दाई। मयॅ एके झन काकर सॅग खेरहूं कहिस अउ भगागे। खेत मा भारा बॅधइया गोंसइया बर घलो जेवन लेके जाय बर हे देरी होय ले खिसियाही कहिके जल्दी जल्दी खाय बर जेवन निकाल लिस अउ खाय बर बइठगे। महतारी के मया अतका तो घलो कमजोर नइ रहय कि लइका ला छोड़ के पेट भर जेवन खा लिही। जानकी खाय बर तो लगगे फेर सुधअपन पेट ले जादा बसंत डहर लगे रहय। अगल चगल खावय अउ बीच बीच मा चिचियावे---------आ बसंत खाले,,,,,,जल्दी खेत जाहू । तोर भात ला बिलई खा दिही रे भूखे रेहे रबे बेटा आ खाले । सथरा उरकती आ गे तभो बसंत नइ आइस। महतारी के मन नइ मानिस तब जानकी सथरा छोंड़ के जाथे अउ तिरत लान के थारी केआगू मा बइठार के कथे--------------ले एक कॅवरा तो खाले रे  बेटा ताहने भूख नइ लागे।अउ ओकर मुंह मा लकर धकर दू तीन कॅवरा डार देथे। तब जानकी के मन हा माड़थे। अउ लइका हर घलो दू ओआर कॅवरा मा डकार लेय ला धर लिस। अइसन कोनो अभागा नइ होही जेन महतारी के सथरा सॅग नइ हितात होही । महतारी हर अमरित तो तन ले ओगार के पियाथे। अउ अपन सथरा मा बइठार के खवाके जनमो जनम के दरिदरी ला भगाथे । महतारी अपन पेट ला उन्ना करके लइका बर माई कॅवरा बनाथे।अउ आखिर मा दू कॅवरा खवाथे तभे हिरदे जुड़ाथे। सियान मन कथे-----

माता के पोरसे अउ मॅगहा के बरसे । बहुते सुखदाई होथे ।जेन ये दूनो मा नइ हिताय तै कभू सुख नइ पाय। भले मगहा मत बरसे फेर माता के मया सदा बरसथे। 

   बसंत ला खवात खवात जानकी के नजर भूरू उपर पर जथे। भूरू कपाट के चौंखट ला धरके दुरिहा ले सपटे असन देखत रथे। ओकर मन मा का बिचार चलत रिहिस होही वो लइका जाने । जानकी हर देखके भूरू ला कथे---------------तहूं खाय रते का भूरू ।भूरू हां कहय ना निहीं। बिन महतारी के लइका कहिके जानकी के ममता भूरू बर घलो पिकियागे। तिर मा बलाके बइठारिस। अउ उही जुट्ठा सथरा के भात सान के दू कॅवरा भूरू के मुंह मा डारके खवा दिस।

अउ मूड़ी मा हाथ रखके कथे--------------झगरा झन होहू दुनो सॅग मा खेलहू बेटा हो। साॅझ किन आहूं तब तुंहर मन बर मुगेसा लाहू ना। जानकी हर गाॅव के नता ले भूरू के बड़े दाई लागय । फेर परोसी के लइका ला जुट्ठा भात खवाए हे कहिके कोनो जान पारही त अलहन मत होय कहिके भूरू ला कथे-----------भूरू जुट्ठा भात ला खवाइस कहिके कोनो ला झन बताबे बेटा आॅय,,,,,,।अउ बने दुनो भाई रहू मोर आवत ले। 

बसंत के माई कॅवरा के हिस्सा भूरू घलो पागे। फेर जौन मया दुलार ला सान के मुंह मा कॅवरा परे रहय वो भूरू के तिसना बनगे। ओकर सकल ला देख के अइसे लागत रहय। महतारी के मया ननपन ले दुरिहाय रहय। बाप हर सबो सुख देय। फेर जानकी के हाथ के खाय के तिसना हर भूरू ला तिर के लानय।मॅझनिया आॅगन बाड़ी ले आवय अउ बसंत सॅग भूरू घलो जानकी के सॅग बइठ जावे। डर के  मारे जानकी अलग अलग थरकुलिया मा परोसय। फेर जब तक चार सीथा जानकी के हाथ के माई कॅवरा नइ खाय मन नइ हिताय। महतारी दुलार के खवाय चाहे डाॅट डपटके मया तो सनाय ही रथे। लइका बर अमरित एक तो महतारी के दूध अउ दूसर सथरा के आखिर मा बाॅचे माई कॅवरा । भूरू जुट्ठा भात ला खवाइस कहिके आज ले कोनो ला नइ बताइस । फेर जौन आनंद सुख परेम भाव ला कॅवरा सॅग मा खाय रहय  जानकी के जरत चिता ला देख देख के सुरता कर।कर के तरी तरी सुबकत रहय।  आॅखी ले आॅसू टुप टुप चुहे लागथे । बसंत अउ भूरू के नजर एक दूसर उपर परथे । दुनो एक दूसर के तिर मा आके बसंत ला पोटार के भूरू कथे--------------तॅय तो अपन दूध के करजा अउ माॅई कॅवरा के लागा ला आगी देके छुट डारे बसंत । मोर तो उधार के उधार रहिगे भाई,,,,,,,,,।अउ दूनो झन मुक्तिधाम मा गोहार पार के रो डारथे । भूरू अउ बसंत के आज घर गिरहस्ती बसगे हे । मुड़ मा घर परिवार के जुवाबदारी घलो हे। तभो ले भूरू जानकी के हाथ के खाय माई कॅवरा ला भूले नइ पाये हे ।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

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समीक्षा

पोखनलाल जायसवाल: 

सागर वो होथे, जिहाँ ले कतको पानी निकाल कमती होय के नाँव नइ लय। उही किसम ले नारी-परानी मया के सागर होथे, जिंकर मया कभू कमतियाय नइ भलुक बाढ़थे। नारी कहूँ महतारी बनगे त ओकर मया ल तो अउ नापेच नइ जा सकय। जतका लइका सबो बर ओतके मया। कोन्हों बर कम अउ जादा नइ होय, सब बर बरोबर मया रहिथे। हमर भरम आय जउन महतारी के मया ल कमती आँकथन। महतारी के मया लइका नइ चीन्हे। ए मया सिरीफ लइका देखथे अउ लइका बर पलपला जथे। कहूँ बिन महतारी के लइका होगे त मया अउ छलके लगथे।

         गँवई गाँव होय त शहर होय लइका के संगी साथी बर महतारी मन के मन म मया जाग जथे। अपन लइका के मुँह म डारत कउँरा बँट जथे। कभू कभू मया अतेक उमड़ जथे कि महतारी चेत ले बिचेत हो जथे अउ बिरान के लइका ल घलव अपने बियाय लइका बरोबर खवाय पियाय के जतन करथे। मया के भूखाय लइका घलव चेत नइ धरय कि महतारी मोर नोहय। ओला तो सिरीफ मया चाही। अइसन मया दुलार सिरीफ मया ल चीह्नथे। 

       इही मया ले भरे कउँरा के उधारी ल सुरता करत सुग्घर मार्मिक कहानी आय माई कउँरा। माई कउँरा माने महतारी के हाथ ले ओकर जुठा भात के कउँरा। 

       गँवई गाँव म कभू कभू यहू देखब अउ सुनब म आथे कि नान्हें लइका के करलई ल देख के परोसिन अपन गोरस ले दूध पियाय हे।

       कहानी म दुख के बखत म क्रिया करम बर छेना लकड़ी के बेवस्था करे के चित्रण गँवई गाँव के सुग्घर परंपरा ल उजागर करे के बढ़िया उदिम आय। इही बहाना लोगन ल दुख कमती जनाथे। दुख सहे के ताकत मिलथे। सबर दिन बर कखरो बिछड़े के दुख ल बाँटे तो नइ जा सकय। दुख के घरी म सहारा जरूर बने जा सकथे। 

      जानकी दाई के हाथ ले खाय भात के कउँरा ल सुरता करके भुरू के तरी तरी सुबकई अउ आँसू  के टपकई ओकर दुखी होय के प्रमाण आय।

      कहानी के भाषा सहज सरल हे अउ नदिया के धार सहीं बोहावत हे। जेमा पाठक बहत जाथे। 

    मुँहाचाही गजब हे, कहानी अउ पात्र मन के मुताबिक़ गढ़ाय हे।

      खेत खार अउ बूता म जात खानी दाई ददा मन के सिखौना ले भरे गोठ जीवंत लागथे---"झगरा झन होहू, दूनो संग म खेलहू बेटा हो...."


पारा परोस के लइका संग होय कुछु बात के मन म डर आय के फोटू(चित्रण) घलव बढ़िया बने हे---"भुरू! जुठा भात ल खवाइस कहिके कोनोल झन बताबे बेटा आँय।"

      जानकी दाई के बिछोह म भुरू के मन के पीरा ल बड़ मार्मिक ढंग ले लिखे ले कहानी अपन उद्देश्य ल पूरा कर लेथे--"तँय तो अपन दूध के करजा ल आगी दे के छुट डारे बसंत! मोर तो उधार के उधार रहिगे भाई।" सिरतोन भुरू बर जानकी के खवाय माई कउँरा भुरू बर उधारेच रहिस, फेर भुरू भागमानी आय जउन ल मया मिलिस।

      कहानी के शीर्षक कहानी ल सार्थक करत हवै, इही कउँरा के उधार आय जउन बिन महतारी के लइका भुरू के आँखी ले टप टप चूहत हवै। फेर कहे जाथे दाई के करजा कभू छूटे नइ जा सकय।

      बहुत सुग्घर कहानी लिखे खातिर राजकुमार चौधरी जी ल बधाई अउ शुभकामना🌹💐🙏🙏


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

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