Friday 31 December 2021

नावा बछर के नावा कुरता

 नावा बछर के नावा कुरता 

                    तीन सौ पैंसठ दिन म एक बेर जलसा होये समय के घर म । अवसर रहय समय के बेटा “ बछर “ के जनम । भगवान खुदे आवय अऊ नावा लइका बछर के देहें म जगजग ले नावा सफेद कुरता पहिरा के  ओकर उप्पर नम्बर लिख के नाव धर देवय । ब्रम्हाजी के घड़ी म जइसे समे होइस .... भगवान झम्मले परगट होके ..... तुरते जनमे लइका “ नावा बछर “ ला नावा कुरता पहिरा दिस अऊ नाव धरत दू हजार बाइस लिख के जाये बर धरिस । समय पूछिस - भगवान , तूमन हरेक दारी मोर नावा बछर बर नावा कुरता लान के पहिराथव , फेर ये पइत काये पहिरा दे हाबव ? कतको जगा ले मइलहा चिरहा अऊ केऊ रंग के दिखत हे ? भगवान किथे – हव बेटा .. तोर नानुक बाबू नावा बछर ला हरेक दारी नावा सफेद कुरता पहिरा के जाथंव , फेर देख ... जवइया बछर के कुरता के का हाल होगे हे , कुरता म तिल मढ़हाये के लइक जगा निये । जेती देख तेती दाग लहू अऊ राईस मिल ले निकले पानी ले जादा बदबू ... फेर ये पइत ... । बीच म बात काटत समय किथे – तीन सौ पैंसठ दिन म कुरता मइलाबेच करही अऊ दुर्गंध तो आबेच करही भगवान .... । भगवान किथे – हरेक दारी कस ... तोर नावा बछर बर ... नावा सफेद कुरता खिलवाये के कोसिस यहू समे करेंव । नावा सफेद कुरता खिलवाये बर कतिहाँ कतिहाँ हाथ गोड़ नइ मारेंव । फेर जेकर करा कुरता खिलवाँव वो कुरता अपने अपन माढ़हेच माढ़हे दागदार हो जाय । चिरा जाय । अऊ बस्साये लगे । सुंदर दिखइया अऊ टिकइया कुरता खिले के ताकत इहाँ कोनो दरजी मेर निये । समय किथे - कइसे कहिथस भगवान इहाँ के मनखे मन ला देख । रंग रंग के कुरता पहिर चारों खूँट लठंग लठंग गाँड़ा कस बछ्वा फुदर फुदर के खावत किंजरत हे अऊ तैं बने दरजी नइ मिलिस कहिथस । भगवान किथे - इँकर मन कस कुरता खिलइया दरजी तो कतको मिलय , फेर ........। 

                   समय पूछिस – का फेर , तैं कतिहाँ गे रेहे तेमा .. फरिया के बता ? भगवान किथे – मंदिर के आगू बइठे दरजी करा गेंव । ओहा कपड़ा नाप लेके मोला पूछिस के ..... कतका रूपया वाला कुरता खिलवाबे ? में समझेंव निही । वो बतइस के मनखे अपन हैसियत के हिसाब ले .... एक रूपया ले लाखों रूपया के कुरता खिलवाथे । में केहेंव - खिलत तो उहीच मसीन ले होबे । उइसनेच तागा बउरत होबे , फेर खिलई के रेट म अतेक अंतर काबर ? ओ किथे – काकर आगू म बइठे हँव मेंहा , नइ देखत हस का ? भगवान के पूजा असन म जब रेट अलग अलग हो सकत हे तब का मोर खिलई के रेट ..... अलग अलग नइ हो सकय । में तभो तियार होगेंव । तभे ओहा .... मोर जात पूछिस । मोला समझ नइ अइस के ये का होथे । तब उही मोला बतइस । में सोंचेंव के में जात पात तो बनाये नियों इही मन बनाये हे । कहूँ येकर बिजाती आवँव कहि देहू त .... येहा कुरता खिले बर इंकार झिन कर देवय । तेकर सेती इही दरजी ला मनखे जान .. अपनो जात ला “ मनखे ” कहि पारेंव । वो दरजी मोर उप्पर भड़कगे । अऊ मोर कपड़ा ल फटिक दिस अऊ किहिस के .... तेंहा अतका नीच जात के आवँव कहिके पहिली बताये रहिते ..... ते में तोर कपड़ा ल हाथ तको नइ लगातेंव । ये दुनिया म सब जात बने हे , सिवाय मनखे जात के । में सुकुरदुम होगेंव ..... किलौली करेंव त मंदिर के ठेकेदार कस लुकाके ...... दान दक्षिना के बात करे लागीस । में तियार होगेंव । कुरता खिलागे । फेर ओमा जात पात ऊँच नीच अऊ छुआछूत के अतका अकन रंग चघे रिहीस के झिन पूछ । ओकर गंध तो कुकरी भुंजाए ले जादा महकत रिहिस । ओ कुरता ला नावा लइका ल पहिरा सकना संभव नइ रिहिस । 

                    लम्भा साँस लेवत भगवान आगू अऊ बताये लगिस – तब एक ठिन मस्जिद के आगू म बड़े जिनीस दरजी के दुकान म हिम्मत करके खुसरेंव । ओ दरजी हा बिगन पइसा के खिले बर तियार होगे । ओला बने आदमी समझेंव फेर ..... थोरेचकुन बेरा म उहू अपन रंग देखा दिस । मोर हाथ म बंदूक धरा दिस अऊ अपन बूता करे के बात करे लागिस । मोर धरम पूछिस । मोर से फेर गलती होगे । मेहा अपन धरम ला “ मानव धरम “ कहि पारेंव । दरजी भड़कगे अऊ केहे लागिस के अइसन कनहो धरम नइ होय दुनिया म । तैं हमर धरम म संघर जा बड़ मजा पाबे । कनहो एके ठिन बात ल तीन घाँव सरलग कहि देबे ते जिनगी भर बर छुटकारा पा जबे । बंदूक के बल म अपन धरम म संघेर घला लिस । ओकर धरम म ..... मोर बूता संझा बिहाने कुकरी कस बांग देके लोगन ल दूसर धरम के खिलाफ भड़काना रिहिस । मोर कपड़ा के कुरता खिलागे । फेर ओमा बंदूक के गोली निंगे कस कतको छेदा ........... । जेती देख लहू बोहाये के चिनहा ....... अऊ ते अऊ ओमा नफरत के अतका कीरा बिलबिलावत रहय के .... ओ कुरता ला पहिरना तो दूर .... इहाँ तक धर के लान सकना मुसकिल रिहीस । 

                    थोकिन चुप रेहे के पाछू भगवान केहे लगिस - गिरिजाघर के आगू बड़े जिनीस माल म खाये के विज्ञापन देख भूख हमागे । माल के बीचों बीच शोरूम म कुरता खिलइया ल देख मन खुश होगे । भूख ला भुलागेंव । कपड़ा झोंकते साठ ओ दरजी हा मोर बड़ आवभगत करिस । गाँव के सिधवा गरीब आदिवासी मनखे समझ , मोला न जात पूछिस न धरम । कुरता ल फोकट म खिले बर तियार होगे । जिनगी भर पूरा परिवार के कुरता ल फोकट म खिले के आश्वासन देवत हमर गाँव के अऊ कतको मनखे मन के कतको बूता करे बर तियार होगे । गाँव म बड़े जिनीस स्कूल अस्पताल अऊ पूजा खोली बना दिस । प्रार्थना सभा म जम्मो झिन ला अपन बिरादरी म संघेर लिस । भूख अऊ गरीबी के सेती महू तियार होगेंव फेर ओकर खिले कुरता म छिछोरापन के रंग चढ़गे । झूठ अऊ व्यभिचार के दाग म कुरता सनाये लगिस । थोरेच कन बेरा म ओमा सम्राज्यवाद के बदबू आये बर धर लिस । ये कुरता हा एक दूसर धरम के बीच लड़ई करवाये के माध्यम बन गिस । 

                    पूजा स्थल के आगू बइठे दरजी मन उप्पर भरोसा उठगे । संसद भवन के आगू कतको दरजी बइठे रहंय ..... उही करा पहुँच गेंव । ऊँकर खिले कुरता कभू चारा कस हरियर हो जाये । कभू बोफोर्स कस तोप बन के डरवावय । कभू स्प्रेक्ट्रम कस ये मुड़ा ले ओ मुड़ा किंजरय । त कभू कोयला के आगी कस .... भभके ला धरय । सचिवालय के आगू कोट खिलइया मन करा चल देंव । कोट म अतका कस जेब के झिन पूछ । जुन्ना नोट अतका भरे रहय तेकर ठिक्काना निही । जुन्ना नोट चुमुक ले जइसे बंद होइस .... को जनी कती ले नावा नोट मन खुसरगे । फेर वो कपड़ा ले निकले ..... भ्रस्टाचार के दुर्गंध म नाक दे नइ जाय । 

                      समय हा भगवान ला पूछिस – त अइसन बिन फबित के दागदार चिरहा कुरता ला नावा बछर हा कब तक पहिरहि भगवान ..... जिही देखही तिही हांसही .... तोला काहे .... । भगवान किथे ..... हाँसन दे ना जी । हँसइया मन ओकर बर उज्जर कुरता खिलवा के लान दिही का ...... ये बखत जे कुरता लाने हँव तेला गरीब ईमानदार मेहनतकस मजदूर किसान मन मिलजुर के खिले हे । केऊ हाथ के सेती भले मइलहा रंग बिरंग टप्पर लगे कस अऊ कहूँ करा बिगन खिलाये दिखत हे । फेर येला एकर देहें ले उतारबे झिन । जइसे जइसे कुरता ले पछीना के गंध गहराही , देस के मनखे के जबर बढ़होतरी होवत जही । समय पूछथे – त नावा कुरता पहिराये के सऊँख कब पूरा होही भगवान .... ? भगवान किथे – जब तक बड़का मन बर .... बड़का दरजी के खिले .... उज्जर सफेद कुरता के दाग ..... साधारन जनता ला नइ दिखही अऊ जनता अपन ताकत ले ..... उज्जर पहिर के देश ला बर्बाद करके टेस मरइया ..... खुरसी ला पोगराये फसकरा के बइठे मनखे के कुरता ला .. तार तार होये बर मजबूर नइ कर दिही तब तक ..... तोर नावा बछर के नसीब म उज्जर नावा कुरता नइ आ सके ....... । जे दिन जनता के मन बदलही ..... ते दिन अइसन मन या तो सुधर जही या बदल जही .... तहन .... तोर बेटा बर उज्जर नावा सफेद झकाझक कुरता खिलइया कतको तियार हो जही ।  

    हरिशंकर गजानंद देवांगन  छुरा

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