Friday 3 December 2021

छत्तीसगढ़ी लोककथा-- *राजा के नियाव--*

 छत्तीसगढ़ी लोककथा--


*राजा के नियाव--*


एक सहर म एक राजा रहय। ओहा बने ढंग से राज-काज करत रथे। राजा के सारा ह राज दरबार के चपरासी रहय। एक दिन राजा अपन राज म नवा मंत्री बनाये बर अपन सारा चपरासी ह बलाथे अउ कथे। जा इहाँ के एक झन परमुख आदमी ल बलाके लानबे। जेला हमन अपन राज-दरबार म मंत्री बना सकन। राजा के बात ल मानके उंकर चपरासी गांव म जाथे अउ एक झन परमुख आदमी ल बुला के लानथे। राजा ओकर गुण-दोष ल अनताज के अपन नवा मंत्री बना देथे।


नवा मंत्री अब्बड़ गरीब रिहिस,फेर ओकर भरा-पुरा परिवार रहय,पांच झन बेटा,पांच झन बहु अउ पांच झन नाती घलो रहय। लंबा परिवार म सबो के पेट पलाई-पोसईम बड़ मुस्कल होवय। फेर का करबे राजा कर अपन इज्जत के सेती मंत्री अपन मेंछा म एक ठन भात ल हरदी ले रंगा के लगा ले अउ राज-दरबार म जावय। राजा ल भोरहा होवय कि मंत्री अच्छा भोजन करथे तभे तो ओकर मेंछा म रोज पिंयर-पिंयर भात ह लटके रथे। पर समस्या रहय येकर के दूसर।


एक दिन मंत्री के पांचों बहु मन घूमे बर जाए रथे त परोसी गांव म बने ढंग ले पेटी-तबला मन बाजत रहय जेहर अब्बड़ नीक लगत रहय। पेटी-तबला के सुघराई ल सुन ल बड़े बहु ल अपन देरानी मन कथे। अई! सुनतहो बहिनी हो, ये मरे गरवा के मांस हर कतका मिठावत हे। सबो देरानी-जेठानी मन घलो कथे हव  बहिनी अब्बड़ गुरतुर लागत हवे न! चलो न हमू मन एकात दिन अपन ससुर ल कहिबो अउ मरे गरवा के मांस ल मंगा के सुवाद लेथन। सबो देरानी-जेठानी मन एक सुर ल बड़े बहु के सुर म सुर मिलाइन।


ये सबो बात ल राजा के चपरासी सुनत रथे,राजा ल खुश करके इनाम पाए के लालच म ओहा राजा ल जाके सबो बात ल फोर-फोर के बता देथे। राजा बहिया जाथे के मोर राज म कइसे कोई मनखे मरे गरवा के मांस ल खा सकत हे। चपरासी कथे- नहीं महाराज अईसन होवईया हे,अउ कहि नई करहू ते हो कि रही। राजा चपरासी के अईसन बात ल सुनके कहिथे-जावव कोन अईसन गलती करत हे वोला मोर कर पेस करव भला। चपरासी कथे महाराज-अउ गलती ह सिद्ध होही त का इनाम रही! राजा -अगर ये बात सही हवे तो सिद्ध करईया ल पांच गांव इनाम म देय जाहि। अब तो पांच ठन गांव चपरासी के आँखी म झूलत रहय।


चपरासी मंत्री के घर जाके बहु मन ल बताथे की तुमन ल राजा साहब अभी बलात हे। का होगे हे चपरासी तेमे हमन ल राजा साहब बलाही! बड़े बहु चपरासी ल हड़काइस। तुमन वो दिन कइसे मरे गरवा के मांस खाबो कहत रेहेव-चपरासी वोमन धांदे के प्रयास करिस। कलबिल-कलबिल गोठबात ल सुनके घर के जम्मो झन जुरियागे। बड़े बहु कथे-का परमान हवे तेमे, कुछु बताबे। परमान हवे! में खुदे बड़े जनिक परमान हो,जे अपन कान से सुने हो। चलो तुमन सब राजा के पास। अब पता चलही तुमन। चपरासी अपन जीत के आस म अब्बड़ मने-मन खुश होवत रहय।


मंत्री के जम्मो बहु मन ल चपरासी राजा के तीर म पेस करिस। राजा कड़क के पूछिस- कइसे बहु हो! तुमन अपन ससुर ल मरे गरवा के मांस घर मे मंगा के खाबो कहत रेहेव, ये बात कतका सही हवे। येती चपरासी मुसमुसावत हवे कि अब तो मजा आही। बहु मन समझ जाथे कि येहा ललचाहा चपरासी के चाल आये। राजा ल कथे- महाराज तुमन एककन हमर संग दरबार ले दरबार ले बाहर निकलहु त सबो बात साफ-साफ हो जाहि। राजा अपन मंत्री मन सन तैयार होके निकल जाथे। मंत्री के बहु मन राजा ल परोसी गांव के तीर म सुनावत नाचा-गम्मत के आवाज तीर ले जाथे। उन्हा पेटी,तबला,ढोलक, मंजीरा के सुर-ताल बड़-नीक लगत रहय। जब-जब गीत के ताल म उतार-चढ़ाव आथे तबला अउ ढोलक वाले मन के हाथ बम-बम करत गुचकेलत आवाज निकालय। देखइया मनखे मन के मन गदक जाये,अउ झुमरे ल लगय। राजा संग सबो मनखे मन घलो अब्बड़ खुश होगे।


अब मंत्री के बड़े बहु ह राजा ल कथे-कस महाराज ये तबला अउ ढोलक के बम-बम के आवाज ह तुमन ल कईसे लगत हवे। राजा कथे-वाह वाह वाह! बहुत सुग्घर लगत हवे,बहुत सुघ्घर। बड़े बहु कथे- ये तबला अउ ढोलक म का छवाय हवे महाराज। राजा- ये तो मरे गरवा के मांस मन ताय बेटी। तहन फेर बहु ह कथे इही तबला अउ ढोलक के सुघ्घर धुन ल हमन सुनेन त सबो देरानी-जेठानी गोठियावत रेहेन कि देख तो बहिनी! ये मरे गरवा के मांस कतका मिठावत हवे,हमू मन एकात दिन हमर ससुर ल कहिके घर म इहि पेटी,तबला अउ ढोलक मंगा के इंकर सुवाद ल लेतेन। तेला ये चपरासी ह  हमन ल मरे गरवा के मांस ल खाबो किहिसे कहिके बताये हवय। अब तुहि मन नियाय करव महाराज! हमन का गलती कर परे हन।


राजा ल अपन आप म शर्मिंदा होय ल लागिस अउ चपरासी ल नंगत के दमकावत कथे-कइसे रे! तोर कान म बोजाय कनघौवा ल निकाल अउ आँखी ल घलो बने धो। कोन का किहिस अउ का ते सुने-समझे। राजा खिसियाके चपरासी ल ओकर पद ल छोड़ा देथे। बहु मन के बात म खुश होके इनाम के पांच गांव ल राजा साहब सौप देथे।


ककरो बात ल पूरा सुने अउ समझे बिना कोई दूसर मतलब लगाए ले अपने हानि होथे। हमन ल ककरो बात ल पूरा सुन अउ समझ के आगे काम करना चाही।




लोककथा--रामसिंग सेन

संकलन-- हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

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