Thursday 9 December 2021

छत्तीसगढ़ के व्यंजन/कलेवा
























 


 छत्तीसगढ़ के व्यंजन/कलेवा



सजन म साढ़ू अउ कलेवा म लाड़़ू 

दुर्गा प्रसाद पारकर 

छत्तीसगढ़ म नवा धान के आते भार मन ह लामे ल धर लेथे आनी बानी के रोटी-पीठा खाए बर। नवा चाउंर के फरा, चीला, मुठिया, दुधफरा मन गंज सुहाथे। तीज-तिहार म तो घरो-घर किसम-किसम के रोटी चुरथे। दुख-सुख म पंगत खवाथन। पंगत म सोंहारी, अइरसा, बरा नही ते पापर संग लाडू के गंज मान हे। जेन ल कलेवा कहिथन। कलेवा बिन लाडू के अधूरा हे। तेखरे सेती तो कहे गे हे ‘सजन म साढू अउ कलेवा म लाडू’। आघु तो पंगत म करी लाडू के चलन रीहिस हे। बड़हर मन घर मोतीचूर के लाडू ह दनादन चलत हे तभे तो करी लाडू ह नंदाए ल धर ले हे। आवव रोटी पीठा अउ लाडू ल घरे म बना के सगा सोदर अउ गोतियार मन ल खवा के सुआगत करन। छत्तीसगढ़ म किसम किसम के लाडू हे। ढीमरीन केंवटीन मन चना संग जऊन लाडू ल बेचथे ओ ह एदइसन हे- (१) मुर्रा लाडू (२) राई जीरा के लाडू (३) तीली लाडू (४) भोक्को (जोंधरा लाडू) (५) लाई लाडू।

मुर्रा लाडूः- लाडू बनाए बर चासनी के जरुरत पड़थे। गुर अउ पानी ल कराही म धर के चुलहा म मड़ाए के बाद आगी ल धमका दे। गुर पानी ह डबक-डबक के लस लस ले हो जथे। ताहन जान डरथन के अब पाग आ गे हे। कोपरा म बगरे मुर्रा उपर चासनी ल उलद दे। मुर्रा ल चिपचिपहा सान के हाथ म धर-धर के दबावत लाडू बना डर। ताहन खाए बर तियार हो जथे मुर्रा लाड़ू। मुर्रा लाड़ू ल बिसेस तौर ले सियनहा मन गजब पसंद करथे काबर के भोभला मन चबल-चबल के सुआद ल ले डरथे। मुर्रा लाड़ू कस राई जीरा, तीली अउ भोक्को ल द्यलो बनाथे। 

करी लाड़ूः- करी लाड़ू बर करी बनाए ल परथे। लाखड़ी नहीं ते चना पिसान ल पानी म सान के कराही के डबकत तेल म झारा के उपर ले चपकथन। भूलका के मुताबित कराही म गीर-गीर के चूरथे। इही ल करी गरई कहिथन। तेल ल झारा ले निकाल लेथन। करी के उपर चासनी ल ढार के चिपचिपाही मेल के मुठा म चपक-चपक के मनचाही आकार दे जा सकत हे। मोतीचूर के लाडू बर चना पिसान के बुन्दी बनाए बर परथे। पिसान ल सान के झारा म थपथप-थपथप थपथपाए ले बूंद बरोबर डबकत तेल म गिरथे। चूर के इही बूंद ह बूंदी बनथे। मुर्रा लाड़ू, राई जीरा के लाड़ू, तीली लाड़ू भोक्को लाड़ू लाई लाड़ू अउ करी लाड़ू बांधे बर गुर के चासनी के जरुरत परथे। मोतीचूर के लाडू बर शक्कर के चासनी बनाए बर परथे। तीन चैथाई शक्कर म एक चैथाई पानी डार के कराही म गरम कर ले। एमा दुध डारे के बाद गजरा बरोबर मइल निकलही तेला झारा म हेर के फेंक दे। एखर पाग जाने बर अंगठा अउ अंगरी म चपक के फरिहाए ले लासा कस लसलस ले लार जइसे लामही ताहन जान लेवव चासनी तइयार हो गे हे। चासनी म सुक्खा बूंदी ल चिपचिपहा मेल के मोती चूर के लाड़ू तियार हो जथे खाए बर।

      कउनो भी अंचल के पहिरावा- ओढ़ावा, खान पान अउ बोली बतरा ह उहां के चिन्हारी कराथे। आवव छत्तीसगढ़ के रोटी ल जानन अउ खावन। अंगाकर रोटी बर कनकी पिसान, सीथा अऊ एकाद कनिक पानी मिंझार के सान ले। साने के बाद हाथ म थपर-थपर के कोंहड़ा पान, खम्हार पान, केरा पान नही ते तरोई पान ल दुनो बाखा चिपका के अंगरा आगी ले रांधबे उही ल अंगाकर रोटी कहिथन। इही ल तावा म मड़ा के रांध्बे त एहा तावा रोटी के नाव ले जाने जाही।

मुठियाः- चांउर पिसान, सीथा, नून अउ जरुरत परगे तब थोर बहुत पानी ल मिंझार के चंदाही नही ते बटकी म सान लेथन। साने के बाद मुठा म चपक-चपक के लम्हरी रोटी बनाथन। बंगोनिया म पानी भर के मुहड़ा म उज्जर कपड़ा ल किटकिटा के बांध ले। कपड़ा के उपर म मुठिया ल ओरी-ओरी ओरीया दे। ओरियाए के बाद तावा ल तोप के बंगोनिया ल चुल्हा म मड़ा के आगी ल धमका दे। भाप ले मुठिया ह उसना के चूर जथे।ताहन का पुछबे लसलसहा ताते-ताते मुठिया रोटी ह खाए बर तियार हो जथे।

फराः- चांउर पिसान ल नून पानी म सान के हाथ म मोठ बाती कस बर ले। बर-बर के सुपा, पर्रा चंदाही नही ते कोपरा म चपक-चपक के फरा ल घलो रांधे जाथे। फरा ल रांध के ओमा दुध चीनी (शक्कर) लायची डार के फेर चुरो ले ताहन का पुछबे रांधते रांधत लार ह टपक जथे। इही ल दूध फरा कहिथन। 

सोंहारीः- सोंहारी ह दू किसम के होथे (१) नुनहा सोंहारी (२) गुहरा सोंहारी

नुनहा सोंहारी ल गहुं पिसान नून अउ पानी ल मिंझार के सान के बनाथन। गुरहा सोंहारी गुर पानी म गहुं पिसान ल सान के नान-नान लोई धर के बेलना म गोल बेल ले। डबकत तेल म फूलत ले चूरो ताहन झारा म रोटी ल निकाल ले। निकाल-निकाल के झेंझरी म रोटी ल सकेलत जा।

ठेठरीः- जीरा पानी म नून ल घोर के चना पिसान ल साने बर परथे। हाथ म बर-बर के सउंख के मुताबित गोल, चेपटी, जलेबी कस गढ़ के डबकत तेल म खड़खड़ ले रांध ले। ताहन फेर का पुछबे ठठरंग-ठठरंग ठेठरी खाए के सुआद ल। खाएच-खाएच के मन ह लागथे। 

खुरमीः- गहुं अउ कनकी ल दर्रा पिसा के पानी, गुर, तीली, खुरहोरी ल मिंझार केे सान दे। ताहन मुठा म दबा-दबा के गोल अउ लम्हरी करके टूकना म चपक-चपक के चेपटी कर ले। खुरमी ल चेपटी, गोलई गढ़े जा सकत हे। ओखर बाद डबकत तेल म डार के चूरोए जाथे। खड़खड़ ले चुरे के बाद झारा म हमऊ हेर के कराही के उपर मड़ा दे। ताकि तेल ह सुखा जय। ताहन रोटी ल झेंझरी म डारत जा। छत्तीसगढ़ म एक ठन कहावत हे- ठिनीन-ठानन बाजे ताहन खवइया के मन जागे।तभे तो लइका लोग मन चूरते भार रोटी खाए बर धर लेथे। खुरमी रोटी ल आठ पंदरा दिन ले खाए बर रखे जा सकथे। खुरमी खाए ले डाढ़हा ह घलो मजबुत होथे।

बराः- सब ले आगु उरीद दार ल रात म भिंजो के रात भर राहन दव। बिहन्चे उरीद दार ल झेंझरी म ओखर छीलका के निकलत ले धो डर। जब दाना के छीलका ह निकल जथे तब सील लोड़हा म पीस ले। पीस के मिरी, गोंदली अउ धनिया ल पऊल के नून ल मिंझार के कस के सान ले। सनाए के बाद नान-नान लोई ल हाथ म चपक-चपक के चेपटी कर के खउलत तेल म डार के ललहूं चुरो दे। ताहन बरा ल देखते भार मुंह ह पन्छा जथे। 

अइरसाः- चांऊर ल रात भर भिंजो के बिहन्चा घाम म भंभो के दू-तीन घंटा ले सुखोए जाथे। सुखाए के बाद ढेकी, खल नही ते बहाना मुसर म कुट के सोंठ बनाए जाथे। रुपिया के बारा आना भाग गुर अउ चार आना भाग पानी ल मिंझार के आगी म डबका के चासनी बनाथन। चासनी म सोंठ ल मिंझार देथन, करछुल म हला-हला के खोए के बाद नान-नान लोई बना के सोंहारी जइसे गोल अउ मोट्ठा बना के तेल म चुरो के अइरसा परोसे के रिवाज रिहीसे। जउन ह अब बहुत कम देखे बर मिलथे।

पोरी रोटीः- तात पानी म नुन ल घोर के हाथ म चपक-चपक के तेल म डारत जा। चुरे के बाद पोरी रोटी तैयार हो जथे। अब्बड सुहाथे गउकीन। 

चीला रोटीः- नुन म चांऊर पिसान ल घोर ले। घाले बने के बाद तावा ल गरम कर। उप्पर म चांटी चबाए कस तेल ल चुपर दे। तावा म घोल ल डारे के बाद कटोरी के पेंदी ले चारे मुड़ा गोल बगरा दे। बगरा के ढकना ल तोप दे। थोकिन बाद ढकना ल उघार के रोटी ल हसिया म लहुटा-पहुटा के रांधे जथे। ताहन पताल (बंगाला) के चटनी संग मन भर के खा ले चीला रोटी ल। खावन-खावन भाथे।

पताल के चटनीः- पताल (टमाटर) के चटनी अउ बासी हो जय तहान का पुछबे, भर पेट भोजन हो जथे। कन्हार भर्री के मिरचा पताल अउ ओलाही फर धनिया म नून ल मिंझार के सील लोड़हा म मन भर के पीस के पताल के चटनी बनाए जाथे। महर-महर महमहाथे धनिया ह। चटनी के सोंध म साग के सुरता नइ आवय। पाका-पाका पताल ल पउल के दू चम्मच तेल म मिरचा के फोरन दे के बघार दे। पताल डबक के चुरे ताहन फेर पताल के झोझो तइयार हो जथे। झोझो के नाव सुनते भार छत्तीसगढ़िया मन के मुंह म पानी आ जथे। मान ले चटनी बासी खाए बर बइठे हस अउ साग पोरसा गे ताहन का पुछबे। सुवाद ले ले के खा ले। तभे तो ‘भाजी म भगवान राजी’ कहावत ह छत्तीसगढ़ म प्रचलित हे। आवव हमु मन बासी संग भाजी खा के सुवाद लेवन। छत्तीसगढ़ म भाजी गंज अकन हे जइसेः-

(१) गुड़रु भाजी (२) मुस्केनी भाजी (३) मछरिया भाजी (४) गुमी भाजी (५) उरीद भाजी (६) उरला भाजी (७) बर्रे भाजी (८) पटवा भाजी (९) चरोटा भाजी (१॰) कजेरा भाजी (११) चुनचुनिया भाजी (१२) अमारी भाजी (१३) पोई भाजी (१४) लाली चेंच (१५) पड़री चेंच (१६) बोहार भाजी (१७) होड़करा भाजी (१८)  दार भाजी (१९) अमुर्री भाजी (२॰) बंगला भाजी (२१) खोटनी भाजी (२२) तीवरा भाजी (लाखड़ी भाजी) (२३) चना भाजी (सुकसा भाजी) (२४) कुसुम भाजी (२५) करमत्ता भाजी कस अउ कतनो भाजी मौसम के अनुकुल मिलथे।


दुर्गा प्रसाद पारकर 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


 हीरा गुरुजी समय: छत्तीसगढ़िया के जेवन मा समाय फर फूल पाना कांदा अउ जर


         संसार मा सबे जीव देह मा एक अंग हावय "पेट" जौन ला रोज भरेबर ओहा नाना रिकिम के उदीम करथे अउ किसम किसम के जिनिस ला एमा डारथे। मनखे हा जौन जिनिस ला डारथे ओला जेवन कहिथे। जेवन हा घलो नाना किसम के जिनिस ला मिंझार के बनाय जाथे। मनखे के जुड़ाव प्रकृति ले होथे।कहे जाथे कलजुग मा मनखे के प्रान अन्न मा माने गय हे।

         छत्तीसगढ़ मा देवी देवता के मानता हे इहाँ के गाँव खार डीही डोंगर मा नानम रुप मा एमन विराजमान हवे। छत्तीसगढ़ ला राम के दाई कौशिल्या के मइके ले जोड़ के देखे जाथे। एखर सेती इहाँ के मनखे राम भगत माने जाथे। राम अउ किसन भगवान एके रुप होय ले इहाँ के मनखे अपन जेवन मा दूध दही मही, फर फूल पाना काँदा जर मन मिंझरगे। छत्तीसगढ़ मा आदिवासी जनजाति के रहवास जादा संख्या मा होय ले इहाँ के खवाई पीयई मा इँखरो जिनिस मिंझरगे हावे। आदिवासी मन शिव रुप बड़ादेव अउ डोंगरी के माई मन के पूजा करथें। उँखर ठउर तीर एमन पूजई करथे। जंगल भीतरी मा रहे के सेती इँखर जेवन मा फर फूल पाना कांदा जर के संग मछरी, कुकरी, बोकरा, सूरा जइसन जीव के मास हा घलो जेवन मा समागे हावय। एमन चिराई चिरगुन, चिटरा, मुसवा ला घलो मारके खा डारथे अउ पेट भरथे।

     छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा कहे जाथे। इहाँ धान के 1500 किसम मिलथे। इहाँ के रहइया मन तीनों चारों बखत चउँर ला कलेवा, भात, बासी के रुप मा खाथे पीथे। छ्त्तीसगढ़िया मन जेवन मा तीन किसम के जिनिस ला मिंझारथे। दूध दही मही अउ फर फूल के रस, माँस अउ फर फूल पाना कांदा जर के साग भाजी। एमा उरीद, रहेर, राखड़ी, मूँग, मसूर, कुल्थी, चना के दार अउ अरसी तिली मूंग फली के तेल घलो होथे। मशाला मन घलो इही फर फूल डारा पाना काँधा जर के रुप होथे।

          छत्तीसगढ़ मा भाजी खाय के परंपरा पुरखौती आय। भाजी हा कोनों केंवरी पउधा अउ नार के पाना होथे। हमर पुरखा मन साठ सत्तर किसम के भाजी बताय हवय। सबो भाजी सबो डहर नइ मिलय। जौन भाजी मिलथे ओमन उही डहर के भाजी ला जेवन मा मिंझारथे। अइसे तो भाजी मा सुवाद नइ रहय फेर तेल हरदी नून मिरचा डार के एला सुवाद वाला बनाय जाथे। कन्हो कन्हो भाजी मन दही मही बरोबर खट्टा होथय। जइसे अमारी भाजी, पटवा भाजी, अमली के कुरमा।

            भाजी हा पुष्टई के संगे संग रोग रई के दवई घलो होथे। राखड़ी भाजी, मुरईभाजी पेट सफई करथे, कुलथी भाजी हा पथरी ला गिराथे। लालभाजी, पाला हा रकत बढ़ाय मा बने होथे। पाला मा बिटामिन कैल्सियम होथे। मुनगाभाजी बीपी ला बने बने राखथे। करमत्ताभाजी हा जर बुखार मा खाय जथे। अइसने गोंदलीभाजी, खेड़हाभाजी, चनाभाजी, चुनचुनियाभाजी, तिवराभाजी, बोहारभाजी, कांदाभाजी, बथुवाभाजी, बिलईपोटाभाजी, मास्टरभाजी, गुमीभाजी, चरोटाभाजी, बर्रेभाजी पोईभाजी, सरसोंभाजी,  तिनपनियाभाजी, चेंच, मुस्केनीभाजी, कोहड़ाभाजी, बनबर्रे, मेथीभाजी, दारभाजी, पीपरभाजी, कुसुमभाजी, जरीभाजी चौलाईभाजी, खोटनीभाजी, बंधेभाजी, उरीदभाजी, गोभीभाजी ला घलो बेरा बखत मा खाय जाथे। धनिया पाना ला साग मा संघेरे जाथे, चटनी मा पीसे जाथे।

     अइसने नाना किसम के फर ला साग बनाय जाथे केरा, तुमा, कोड़हा(मखना), मुनगा, सेमी, बरबट्टी, कटहर, डोड़का, तरोई, भाँटा, कुंदरू, चुरचुटिया, रमकेलिया, करेला, खेक्सी, बंगाला पताल, खीरा, परवर, ढेमसा, बटरा ला साग बनाय जाथे एमा आमा अमली ला कोनों कोनों संग मिझारे जाथे। मिरचा घलो फर आय जौन ला साग मा मिंझारे जाथे।

     अइसने डारा मा जरी जौन ला खेड़हा घलो कहे जाथे, बाँस के करील, जिमीकांदा के पोंगा ला साग राधे जाथे। माई लोगिन मन अपन अपन मा क्षेत्र मा मिलत नाना किसम के डारा ला साग बना लेथे। बांस के करील हा पेट के कीरा ला मारथे।

         साग मा फूल ला घलो राँधे जाथे एमा सबले जादा अउ सबके पसंग के साग आवय फूलगोभी।छत्तीसगढ़ मा जर ला चलो साग राँधके खाय जाथे।मुरई, ढेस, गाजर अइसने जर आय जौन ला साग मा मिंझारे जाथे। जंगल मा रहइयामन ला कांदा कुसा अड़बड़ मिलथे एमा जिमीकांदा, कोचइकांदा, नांगरकांदा, सेमरकांदा, केऊ कांदा, केंवटकांदा, डाँगकांदा, भैसढेठी मन ला साग बनाय जाथे। जिमी कांदा हा बवासीर ला बने करेबर अउ रकत ला सफा करे के दवाई घलो आय। केउकांदा खाय ले बात पीत बने होथे।अइसने प्रकृति ले जुड़े सरईबोड़ा, फुटू घलो ला साग मा मिंझारे जाथे। आलू गोंदली मन घलो कांदा आय जेला  संसार भर मा खाय जाथे। अदरक, हरदी हा घलो कांदा आय जेला साग मा मिंझारे जाथे।

हरदी ला सुखा के पीस के डारे जाथे।



हीरालाल गुरुजी समय

छुरा, जिला- गरियाबंद


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 धिरही जी: छत्तीसगढ़ी खानपान/व्यंजन


भारत देश के सबो राज मा अलग-अलग खानपान देखे बर मिलथे।फेर हमर छत्तीसगढ़ के खानपान के अपन अलगे महत्ता हावै।अँगाकर के रोटी हा बिन तेल के केरा पान परसा,खम्हार असन सरइ पान मा छेना लकरी के आगी अँगरा ल तरी ऊपर मडहा के बनाए जाथे।का गजब के सुवाद आथे,सच मा अँगाकर ल रोटी के राजा कहि सकथन।पताल चटनी,घी मा खाबे तव मजा आ जाथे।नवा चाउर के फरा रोटी भाप मा बनथे,गोल-गोल लमरी-लमरी डबकत पानी के ऊपर मा कपड़ा रख के चुरोथे।इडली हा फरा के आघू मा फेल हो जाही।चाउर पिसान के चीला घरो घर बनथे,दोसा ले अलगे सुवाद मिलथे ।बोबरा रोटी चाउर के बनथे गुण के पाग मा सान के बनाथे खाए मा मजा आ जाथे।सोहारी,अइरसा,खुरमी, ठेठरी अड़बड़ मिठाथे,मालपुआ के नाम सुन मुँह मा पानी आ जाथे एमा गहूँ पिसान चाउर पिसान गुण मिला के बनाथे।उरीद दार के चोकरा के चुनी रोटी बनथे,उरीद के फोकला घलो काम पर जाथे।कोडहा रोटी जीभ म चटक जाथे,फेर आजकल नइ खावै,अकाल घानी बनै।चौसेला घलो बनथे, डेढहउली दही मा सान के गहूँ चाउर पिसान के बनाए जाथे,अमटहा लागथे।भुकू रोटी बनाए बर नून गुण ला सान के बनाथे एहू हर पान मा बनथे कनकी के रोटी घलो ऐला कहे जाथे।कनकी के कइथला रोटी मा गोंदली मेथी के फोरन दे के मही ला डार देथे मही डबकत रहिथे कनकी धो के डार देथे।बरा,पूड़ी सोंहारी डुबकी,झेंझरी,इडहर कोंचइ पान के परसिद्ध हावै। जलियाही रोटी घलो बनाए जाथे।

मुर्रा,तिल,मुमफली सोंठ पीपर,के लाडू परसिद्ध हवै।बड़े-बड़े लाडू जवार लाई के बनथे।

बेसन पिसान के डुबकी,पताल के झोझो सबो झन खाथे।चरोटा साग के भाजी,पीपर पान के भाजी,गुररू भाजी पोई भाजी कोइलार भाजी चेंच चनउरी,मुनगा करेला,चना लाली भाजी के साग राँधे जाथे।खिचड़ी पकाए बर चाउर दूध शक्कर लवांग लायची के जरूरत परथे।आनी बानी के चाउर के भात राँधथे जेमा एचएमटी जीरा फूल सरना दुबराज महामाया कनकी,कोदो रहिथे।


राजकिशोर धिरही

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आज के लोकक्षर म व्यंजन अउ खानपान के ऊपर गद्य लिखे के बात केहे गे हे।ये सुविधा के लाभ उठाके मैं पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन के बढ़त हुए लोकप्रियता अउ बजार के बारे मे चर्चा करे के कोसिस करत हंव।काल हमर घर के एकझन लइका रात कुन किहिस के में बाहिर म खाहंव।लहुटिस तव बहुत अचरज से बताइस के वो जीहां खाइस तिन्हा बहुत स्वादिष्ट चीला, फरा अउ चौंसेला रिहिस अउ खाब म आनन्द आगे।कालेच के बात आय के हमर लोकाक्षर के सुधीर शर्मा जी पोस्ट डारे रिहिन के उंखर नोनी ह दिल्ली म छत्तीसगढ़ी कलेवा के स्टाल लगाए रिहिन।

ये दुनो संदर्भ ल मैं एखर सेती लिखे हंव काबर के आज ले पांच साल पहिली छत्तीसगढ़ी खाई खजेनी मन कोनो दुकान, होटल, ठिया म नइ मिलत रिहिन अउ ये सब घरेच म रांधय खावय लेकिन 26 जनवरी 2016 के गढ़कलेवा के सुरु होए के बाद छत्तीसगढ़ी कलेवा मन अतेक लोकप्रिय होइन के चारो खूंट छत्तीसगढ़ी कलेवा के दुकान - रेस्टोरेंट खुल गे हें।अब तो रायपुर के बड़े स्टार होटल मन म घला एमन बेचाथें।अउ एखर लोकप्रियता से प्रभावित होके छत्तीसगढ़ सरकार ह राज्य के हर ज़िला म गढ़कलेवा खोले के सुरुआत कर दे हावय।मोर अनुमान से आजकल हर महीना छत्तीसगढ़ी कलेवा के 10 लाख रुपिया ले ज्यादा के बेपार होथे।

लेकिन मोला एक चिंता ये बात के हे के गढ़कलेवा मन म केवल अउ केवल छत्तीसगढ़ी व्यंजन ही बनाये अउ बेचे जाए।पैसा कमाए अउ नवा प्रयोग के नाम म पारंपरिक व्यंजन मन संग छेड़छाड़ न करे जाय अउ मौलिकता ल बनाये रखे जाय।मोला ये बात के अपार खुसी हे के जब कोनो छत्तीसगढ़ी व्यंजन मन के सार्वजनिक उप्लब्ब्द्धता के बारे न सोचें नइ रिहिन तब एखर कंसेप्ट बनाये अउ स्थापना म मोर भूमिका रिहिस।जगह के डिजाइन, निर्माण, फर्निशिंग, साज सज्जा, व्यंजन के चयन, उंखर मन के उप्पर सूचना फोल्डर, टेबुल, बेंच, मचान, बर्तन भंडवा सहित ओखर बनाये और सुरु करे के सब काम ल करके मैं एला क्यूरेट करे रेहेंव।ओ टाइम के संस्कृति संचालक राकेश चतुर्वेदी जी के सोंच, दूरदर्शिता, छत्तीसगढ़ी संस्कृति जेमा खानपान भी सम्मिलित हे बर उंखर प्रतिबध्दता अउ मोर क्यूरेटोरियल क्षमता के परख अउ विश्वास के आधार म छोटे से सुरुआत करे गे रिहिस।तब हमन खुदे नइ सोंचे रेहेन के एला इतना अधिक प्रतिसाद मिलही लेकिन अब ये बात के गर्व होथे के एक छोटे लेकिन नवा संकल्पित कदम के सुरुआत करके गढ़कलेवा के माध्यम से पारंपरिक छत्तीसगढ़ी खानपान के उप्पर नवा इतिहास लिखे के काम करे गिस जेन म मोर महत्वपूर्ण भूमिका रिहिस।

अशोक तिवारी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: कुम्हड़ा पाक/ कोम्हड़ा पाग


                    कुम्हड़ा/मखना/ कोम्हड़ा के नार पहली घरो घर छानी म चारो कोती लामे रहय, अउ कोनो घर दर्जन भर त, कोनो घर कोरी कोरी घलो फरे। जेला सब पारा परोसी अउ सगा सोदर मन संग बाँट बिराज के खायें।  घर के बारी, अउ ओरिछा के खाल्हे आसाढ़ के लगती बोवाय अउ कुँवार कातिक म तैयार हो जाय। कुम्हड़ा पाक नवा खाई, दशहरा, देवारी, झरती कोठार अउ मेला मंड़ई के प्रमुख व्यंजन आय। घी ल कड़काके ओमा करिया तिली झोंक, कुटी कुटी कटाय या फेर किसाय कुम्हड़ा संग गुड़/शक्कर डार बने चूरत ले भूँज दे, अउ सुवाद बढ़ाये बर लौंग, लायची छीत दे, बस बन गे कुम्हड़ा पाक।  कोनो भी घर के हाँड़ी म ये कलेवा बने त पारा परोसी मन महक पाके,सहज जान जाय, तेखरे सेती कटोरी भर भर परोसी मन ल बाँटे घलो जाय। बने के बाद पातर रोटी,फरा अउ चीला संग कटोरी कटोरी नपा नपा के खाय के अलगे मजा रहय, जउन खाय होही तेखर मुँह म, सुरता करत खच्चित पानी आ गे होही। 

                          मेवा मिठाई अउ किसिम किसिम के कलेवा पहली घलो रिहिस, फेर कुम्हड़ा पाक के अपन अलग दबदबा रिहिस,माँग रिहिस। बिना ये कलेवा के कुँवार, कातिक, अगहन अउ पूस के घलो कोनो तीज तिहार या फेर उपास धास नइ होवत रिहिस। नवा जमाना म ये कलेवा धीर लगाके सिरावत जावत हे, अइसे घलो नही कि आज बनबे नइ करे, बनथे फेर गिनती के घर म। कोनो भी घरेलू कलेवा/व्यंजन बर बनेच जोरा करेल लगथे, त वइसने जमकरहा गजब सुवाद घलो तो रथे। फेर आज मनखें शहरी चकाचोंध अउ महिनत देख तुरते ताही मिलइया फास्ट फूड कोती झपावत जावत हे, ते चिंतनीय हे। कुम्हड़ा पाक कस हमर सबे पारम्परिक  कलेवा मुंह के स्वाद के संगे संग शरीर ल ताकत, विटामिन, खनिज अउ  रोग राई ले घलो बचाथे।  कुम्हड़ा कस लौकी, रखिया, तूमा ल घलो पाके या पागे जाथे। रखिया पाक तो पेड़ा के रूप म भारत भर म प्रसिद्ध हे, फेर कुम्हड़ा  पाक के दायरा सिमित होवत जावत हे।  

                            पागे के अलावा कुम्हड़ा के साग,कढ़ी, बड़ी के घलो जमकरहा माँग हे। कुम्हड़ा पाक आजो गाँव के पसंदीदा कलेवा म एक हे, जेला मनखें मन एक बेर जरूर पाकथे, अउ खाथें। शहर कोती या शहर लहुटत गाँव, केक पिज़्ज़ा, बर्गर, चांट समोसा के चक्कर म,धीर लगाके ये कलेवा ल छोड़त जावत हे। घर म बनइया कलेवा ल मन लगाके बनाये अउ मन भर खाय के अलगे आनन्द हे। आज मनखे मन ल मारत हे, अउ ऊपरी देख दिखावा कोती जादा भागत हे, इही कारण आय के परम्परागत चीज दुरिहा फेकात जावत हे, उही म एक हे कोम्हड़ा पाग।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: 🕉छतीसगढ़ के खान पान 🕉


मड़िया

पेज

घोटो

दर्रा

अंगाकर रोटी

भात

बासी

महि बासी

तसमई

महेरी

भोककड भात

पैना भात

दार

साग

सोहारी

बरा

लाडू

पापर

बिजौरी

ठेठरी

खुरमी

अईरसा

चौसेला

चीला 

फरा

भजीया

गुलगुल भजीया

कोहडा पाग

मुठीया

पान रोटी

मोटठा रोटी

पातर रोटी

पपची

चुरमा 

हलवा

खिचरी

कुसली

खाजा

बिडीया

सेवाई

सुजी

तिखुर

सिघाडा

बैचांदी

मढीया पाग

साबुदाना

नुनहा भजीया

गुरहा भजीया

बेसन भजीया

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

No comments:

Post a Comment