Thursday 9 December 2021

मोर गोदना छत्तीसगढ़ के चिन्हा हरे दुर्गा प्रसाद पारकर

 छत्तीसगढ़ी मे पढ़े-गोदना

मोर गोदना छत्तीसगढ़ के चिन्हा हरे

दुर्गा प्रसाद पारकर

गोदना ह आदिवासी संस्कृति के बिसवास ले जुड़े हे। गोदना के अर्थ गोभाई (गोभना,चुभोना) ले हे। गोदना आदिवासी मोटियारी मन के सिंगार भर नोहे बल्कि उंखर परिधान घलो आय। जऊन ह तन भर चकचक ले उपके रहिथे। आजकाल तो बिदेशी मनखे मन फैशन बना डरे हे। वोइसे तो गोदना के उद्गम स्थान पोलोनेशिया ल माने गे हे। फेर येखर ठोस सबुत नइ मिले हे। न्यूजिलैंड, बर्मा, लाओस अऊ आफ्रीका के मूल वासी मन म गोदना ह भारत के जनजाति मन कस लोकप्रिय हे। अब तो अमेरिका म गोदना गोदवाए के प्रतियोगिता होय ल धर ले हे। ”वाल्टर” ह अपन तन म ५४५७ गोदना गोदवा के ” गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड ” म अपन नाव लिखवा डरे हे।

           छत्तीसगढ़ म अगघन-पुस ले गोदना गोदवाए के शुरुवात हो जथे। वोइसे तो गोदना उपर कतनो कथा हे फेर कोंड़ागांव (बस्तर) म येदइसन दंत कथा सुने बर मिलथे - बुढ़ा वा देव के छै भाई अऊ सात बहिनी रीहिस। बुढ़ा देव ह अपन टूरा मन के नाव ल मुरहा अऊ ओझा राखिस। बुढ़ा देव ह मुरहा ल लकड़ी धरा के भुईया ल बजाए बर सीखोइस। सीखीस ताहन मुरहा ह किसान बनगे। ओझा ल खांध म डमरु लटकवा के डमरु बजाए बर सीखोइस। ओझा ह डमरु बजावत-बजावत, किंदर-किंदर के कोठ (दीवाल) मन म छापा छापे तेन ल देख के ओखर माईलोगन ह गोदना गोदे बर सीख गे। तभे तो साल म एक घांव ओझा परिवार (गोदना गोदइया ओझनीनन, बदनीन, देवरनीन) बुढ़ा देव ल कुकरा, बोकरा, बधिया जेखर ले जतना बन सकय ओकर बली चढ़ा के सुमिरन करथे। हे देव! गेदना ह हमर रोजी रोटी के साधन हरे हमर गोदे गोदना म घाव झन उपके। मवाद झन भरय, सुजन झन होवय अऊ कोनो टोनही-टम्हानीन के नजर डीट झन लगे। तेखरे सेती अइसे मानता हे कि गोदना गोदे के बेर ठाकुर देव ह गुदनारी मन के संग म रहिथे। गुदनारी गोदना गोदे के बाद रीठा देथे जेन ल पानी म घोर के गोदना के उपर चुपरे ले पीरा ह सपसप ले तिरा जथे। लइका मन के दांत जामे बर सोहिलत होही कहि के रीठा ल रेसम म गुंथ के गर (गला, टोंटा) म घलो पहिरा देथे। चाऊंर, हरदी, अऊ तेल ल लकड़ी के चारों मुड़ा घुमा के अनुष्ठान करके एक भाग ल सतबहिनिया म चघा दे ले गोदना के पीरा ह जियाने नही। गुदनारी मन कोइला पोंठार के छिलका ल पीस के अंडी, खजूर, हर्रा नही ते मंउहा के ते म घोर के सियाही बना लेथे। येला फूटहा गघरी म गरम कर लेथे। अइसन करे ले काजर तियार हो जथे। काजर ल खड़होर के नरियर के खोटली म सकेल लेथे। इही काजर ल गोदना बर प्रयोग म लानथे। ओझनीन मन बांस के सूजी बना के सतबहिनिया के अराधना करके गोदना गोदे के शुरुआत करथे-

तोला का गोदना ल गोदंव वो 

मोर दुलौरिन बेटी 

मोर गोदना चुक ले उपके 

दाढ़ी म चुटकुलिया

रामलखन हिरदे म गोदा ले 

दाढ़ी म चुटकुलिया

       गोदना गोदवाले रीठा ले ले ए वो दाई आए हंव गुदनारी तोर गांव म कही के गोहार पारत गंाव के गली-गली म देवरनीन ह टूकना म गोदना के सराजाम धर के किंदरथे। गोदना गोदे के नियम-धियम ल सुग्धर ढंग ले छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य नाचा के देवार गम्मत म देखे जा सकत हे। गोदना गोदवाए के बखत गंज पीरा होथे, पीरा मा कहर के ए दाई वो..........

  पिरावथे वो, कही के रो डरथे। अनाकनी करथे उन ला भुलवारथे। नइ माने वोला धर बांध के गोदना गोदत कथे- गोदना गोदवा ले ओ परलोखलीन नही ते तोला भगवान हा साबर मा ततेरही। जइसे-जइसे नाचा मा देवार गम्मत हा नंदावत जात हे ओइसने ओइसने गोदना के परम्परा ह घलो खीरत जात हे। गोदना गोदवाए के बाद नेंग मा अनाज के संगे संगे पइसा कउड़ी अनाज भेंट करथे। गुदनारी ला सम्मान पूर्वक बिदा करथे। मड़ई-मेला, हाट-बजार म घलो गुदनारी मन ल किंदरत, गोदना गोदत देखे जा सकत हे। जेन जात म गोदना गोदवाए के परंपरा हे उखर मानना हे कि गोदना ह माईलोगन मन बर स्वर्ग जाये के निसैनी हरे। गोदना ह तन के संग माटी म मिल जथे।

ददा देथे चूरा पइरी टूट फूट जाय

दाई देथे कारी गोदना, माटी म मिल जाय

 जनजाति परंपरा के मुताबिक जब नोनी जाने सुने के लइक होथे तब उन ल गोदना गोदवाय के मउका मिलथे। मइके म गोदना गोदवई ल शुभ माने गे हे। मान ले कोनो बहुरिया ह बिना गोदना गोदवाए ससुराल चल दिही ते ओखर सास ससुर मन बहुरिया के दाई ददा ले गोदना के खरचा मांग सकथे। घर ते घर डीगर मन घलो नवा बहू ल ताना मारे बर नइ छोड़े-

देख तो दई बहुरिया ह 

चुरी पइरी नइ गोदवाए हे

बांहा - पहुंचा, तन ल घलो

नई फोरवाए हे.................

  एक समे गोदना ह देवार जात के जीवन यापन के साधन रीहिस फेर मशीनीकरण ह उंखर पेट म लात मार दे हे। गोदना गोदवाए ले कतनो बिमारी के निराकरण घलो हो जथे। गोदना ल देख के गठिया वात के तकलीफ ह भगा जथे। लोगन तो यहू मानथे के एक्यूपंचर चिकित्सा पद्धति ह गोदना के देन हरे। शेख गुलाब ह अपन किताब भिम्मा म लिखथे कि जऊन ह बिच्छी गोदवाथे ओला बिच्छी नई मारय। मार दिही ते ओखर झार नई चड़य। जऊन ह छाती म देवी-देवता गोदवाथे ओला नजर - डीट नई लगय। आधुनिकता के चकाचैंध म गोदना परंपरा ल बिसरे ल धर ले हे। तभे तो बिना गोदना के माईलोगन मन ऊदूप ले दिखथे-

मोर गोदना छत्तीसगढ़ के चिन्हा हरे पुछ ले 

बिना गोदना के बेटी-माई मन दिखथे उदूप ले

      आदिवासी मन म जऊन गोदना प्रचलित हे ओहा एदइसन हे- जांघ म - कजीरी, घुटना (माड़ी) के तीर गोड़ म - फुलिया, पीठ म - मांछी अऊ जादुई चैन, गोड़ म मछरी के छोरटा अऊ चकमक। गिराहिक के मन पसंद के मुताबित गुदनारी मन गोदना गोदथे। जऊन जघा देवी-देवता के गोदना गोदवाथे ओहा एदइसन हे- पद्म सेन देव पांव के देवता, गजकरन (हाथी) देवता गोड़ के देवता, कोड़ा (घोड़ा) देव गोड़ के उपर भाग (आघु तनी), हनुमान (शक्ति के देवता) बांह के देवता, भीम सेन (रसोई के देवता) पीठ म, झूलन देवी अऊ कटेश्वर माता छाती म। छत्तीसगढ़ म एदे गोदना के जादा चलन हे-

        नाक (डेरी आंखी के तीर) म - तीन बुंदकी जऊन ल मुटकी कहिथन। डाढ़ी म - एक बूंद के जऊन ल चुटकुलिया कहिथन। हिरदे म - राम लखन (मनखे जइसे) तीन बूदियां, बांह म - बांह पहुंचा, पांव म चूरा पैरी, हथेरी म मोलहा, नाड़ी म लवांग फूल। आदिकाल म परिधान के रुप म शुरुवात होइस होही जऊन बाद म आभूषण के रुप धारण करीस जऊन ह अब फैसन म बदल गे हे। चाहे जइसे भी हो आदिवासी मन के जीनगी म गोदना के महत्व ल नकारे नइ जा सकय।


दुर्गा प्रसाद पारकर

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