Thursday 30 December 2021

शादी बर नोनी के उमर* --------------------------

  *शादी बर नोनी के उमर*

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आजकल हमर देश मा विवाद छिड़े हे के नोनी (महिला) मन के शादी के उमर का होना चाही? संसद ले लेके सड़क तक एकर जम के चर्चा होवत हे। नवा कानून बने के तइयारी हे।

            कोनो कहि सकथे के  शादी-बिहाव के समस्या हा तो ककरो भी

व्यक्तिगत समस्या होथे ।येमा कोनो दखल नइ होना चाही । सोचे जाय ता ये सहीं बात नोहय काबर के ये हा व्यक्तिगत के संगे संग समाज अउ राष्ट्र ले जुड़े समस्या तको आय। नोनी-बाबू मन के सहीं उमर मा बिहाव होये ले बहुत कस समाजिक फायदा हे।

        तइहा के जमाना मा तो एकदम लइकुसहा दू-चार के उमर मा बिहाव हो जवय। पर्रा मा बइठार के सुवासिन -सुवासा मन सात भाँवर गिंजार दँय। जिंकर बिहाव होवत हे ते दुल्हा-दुल्हिन मन खेलौना मा भुलाय राहँव।वोमन ला पता नइ राहय के बिहाव कोन चिड़िया के नाम ये। सुने मा तो इहाँ तक आथे के महतारी के पेटे भीतर ले लइका मन के मँगनी-जँचनी हो जाय राहय वोहू ये शर्त मा के तोर लड़की होगे अउ मोर लड़का होगे ता----। बड़ बक्खाय के बात हे---दूनों कहूँ एके होगे ता ? 

       बाल विवाह के कई ठन कारण बताये जाथे जेमा प्रमुख रूप ले रूढ़िवाद, जाति गत मान्यता अउ अँग्रेज मन के पहिली हमर देश मा कुछ बर्बर मन के करे आक्रमण जेमा उन धन ला तो लूटबें करयँ, नारी के अस्मत ला तकों लूट लयँ।जेकर ले बँचाये बर कतकोन झन नान्हें पन मा अपन बेटी के बिहाव कर दयँ।

            अशिक्षा अउ नाना प्रकार के कुरीति मा जकड़े समाज बर अइसन बाल पन के शादी श्राप के समान रहिसे । वो समे आजकल जइसे स्वास्थ्य सुविधा नइ रहिसे,उल्टा नाना प्रकार के बीमारी धुँकी(हैजा), चेचक (छोटे माता, बड़े माता) अउ नइ जाने का -का के रहि-रहि के प्रकोप होवय तेमा कतेक्क लड़का जिंकर बचपन मा शादी बस होय राहय--गवन ,पठौनी नइ होय राहय तेनो मन काल के गाल मा समा जयँ तहाँ ले नोनी  मन हा जिनगी भर बर बिधवा हो जयँ।जेन मन संसार के सुख ला अभी जाने नइये तेनो जिनगी भर बर अभागिन हो जवयँ।

      बाल विवाह के अबड़ेच नुकसान हे। कचलोइहा शरीर मा बिहाव होये ले शरीर ला रोग-राई जकड़ लेथे। जच्चा-बच्चा के दूनों के मौत। बने-बने निभगे ता दूनो कमजोर।अशिक्षा---कुपोषण---जनसंख्या वृद्धि-- बेरोजगारी--गरीबी --पारिवारिक किल्लिर-कइया जइसे बड़े-बड़े समस्या।

         सहीं बात ला समझाये मा भला कोन मानथे? इही सब ला सोंच-बिचार के अँग्रेजी शासन हा सन् 1929 मा शादी के कम से कम उमर 10 साल वाले कानून बनाइच।बाद मा ये बाढ़के 14 साल  होगे। स्वतंत्रता के बाद सन् 1978 मा महिला के शादी के उमर कम ले कम 18 वर्ष अउ पुरष के 21 वर्ष वाला कानून बनिस। सन् 2006 मा बाल विवाह निषेध कानून बनिस।

       अब शादी बर महिला अउ पुरुष के कम ले कम उमर 21साल करे बर कानून बनत हे। एकर संबंध मा तर्क देवइया मन के कहना हे के जब आधुनिक युग मा महिला अउ पुरुष ला समान माने जाथे ता दूनों के शादी के कम से कम उमर एके समान होना चाही। बेटी के कम ले कम 21 साल मा बिहाव करे मा वोला तको पढ़े- लिखे के अउ अपन पैर मा खड़ा होये के पूरा अवसर मिल जही। वो हा शारीरिक रूप ले तको सजोर हो जही। जनसंख्या वृद्धि मा तको लगाम लगही।

         अइसे तो चिंतन के अनेक धारा होथे। बाल विवाह के समर्थन करइयाँ अउ  बड़े उमर मा बिहाव के हानि बतइयाँ मन के कोनो कमी नइये। 

    कुल मिलाके ठंडा दिमाग ले सोंचे जाय ता सिरतो मा बाल विवाह मा नुकसाने-नुकसान दिखथे। शादी बर 21 ले 25 साल के उमर बने होथे।हाँ एकदम ले बाढ़ के 30-40 साल नइ होना चाही नहीं ते कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक अउ शारीरिक समस्या पैदा होये के संभावना हो जाही। नोनी-बाबू दूनों मा जादा परिपक्वता के सेती आपसी तालमेल  के कमी हो सकथे। एक बात अउ शादी-बिहाव जइसे जीवन के आनंद मा थोक-बहुत अल्हड़ता,पागलपन तो होनेच चाही।

    ये शादी बिहाव के विषय बड़ नाजूक होथे।अपने लोग लइका के शादी लगाये मा पछीना छूट जथे। हम तो ये सोंचथन के जिंकर शादी होना हे तेने मन ला बने पूछताछ के, सर्वे करके कानून बनाये जाय। हमूँ दू -चार नोनी मन ला पूछ परेन ता वोमन खुश होके 22 साल काहत रहिन।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

[12/29, 8:16 PM] पोखनलाल जायसवाल: नोनी झन पाछू रहय, होवन दव सग्यान।

भला-बुरा ले ओ अपन, राहय झन अनजान।।


        परिवर्तन (बदलाव) प्रकृति के नियम आय, बेरा के संग बदलाव होना जरूरी आय। तभे नवा सृजन हो पाही। संसार आगू बढ़ही, तरक्की करही। एकर बर जरूरी हे तन ले मजबूत रहे के। तन स्वस्थ रही त मन स्वस्थ रही। तन तभे स्वस्थ रहिथे जब शिक्षा बरोबर मिलय अउ उमर के मुताबिक ही बूता के जिम्मेदारी आय। नान्हे उमर अउ काँचा शरीर म बिहाव होय ले बुध नाश हो जथे। सपना के मरे ले मति छरिया जथे। अइसन म नान्हे उमर के बिहाव नोनी भर के नुकसान नइ होय भलुक समाज अउ देश दूनो के क्षति आय।

       अइसे तो सबो सामाजिक मुद्दा के दू पहलू रहिथे, जेमा दूनो बरोबर नइ राहय। फेर जे पहलू ले जादा फायदा हे ओकर समर्थन करना चाही। इही गोठ ल सँघारे अउ तथ्यात्मक आँकड़ा संग सामाजिक, आर्थिक अउ मानसिक समस्या ल उजागर करत चिंतनपरक निबंध बर आप ल बधाई बादल भैया।🌹💐🙏

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