Friday 3 December 2021

डोकरी अउ अगास* --------------------------

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           *डोकरी अउ अगास*

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        *( छत्तीसगढ़ी लोक कथा )*





                             अभी तो अगास हर कतेक न कतेक धूर म हावे । पहिली अइसन नि रहिस । पहिली अगास हर मनखे के अमरउ म रहिस । मनखे मन के, जइसन मन लागे तइसन अगास के तारा -जोगनी मन ल छू लेंय । वोमन ल एती - वोती हलचल कर लेंय । वोमन ल अपन मन मुताबिक सजा लेंय । सुरुज हर घलव तिरेच ल नाहके। वो बखत  वोहर थोर -थोर सुलगे के शुरू होय रहिस , तेकर सेती वोमे कम अंजोर अउ अउ कम गर्मी रहिस ।


                  आन मनखे मन के पीठ हर बने रहिस फेर डोकरी के पीठ हर कुबरी हो गय रहिस । एक दिन वोहर अपन ठूठी बहिरी ल धरके अंगना ल बाहरत रहिस खुरूर... खुरूर...!


                        तभे वोकर पीठ के कूबड़ ल अगास हर छू दिस ।डोकरी ल पिराईस तब वो रिस म भर गय अउ अगास ल अपन ठूठी बहिरी के मूंठ म मार दिस अउ कहिस -जा रे... जा ! बहुत धूर छिंगल जा !


                       तब ले अगास हर बड़ धूर छिंगल गय वोहर भाग पराइस ।



*संकलन* - 


*रामनाथ साहू*



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