श्रद्धांजलि
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(लघुकथा)
''प्रगतिशील कदम'' संगठन के बहुतेच लोकप्रिय पूर्व अध्यक्ष स्व० रामलाल जी के दशगात्र कार्यक्रम म वोकर घोर विरोधी मुन्ना भाई जेकर एक बछर पहिली लगाये झूठा आरोप के सेती मजबूर होके वोला इस्तीफा देये ल परे रहिस हे---,ल देख के मैं पूछ परेंव--
कस भइया तहूँ आये हस गा?
मैं नइ आ सकवँ का?--वो कहिस।
नहीं--नहीं-- मोर कहे के मतलब वो नइये भइया जी।अइसना मरनी- हरनी के कार्यक्रम म तो कोनो भी आ सकथे।मैं एकर सेती पूछ परेंव के तोला तो वो ह फूटे आँखी नइ सुहावत रहिस हे। दूनों म बातचीत तको बंद होगे रहिसे।बीच म कोनो समझौता होगे रहिस का? अइसे भी तू मन तो पहिली एके पतरी म खवइया खाँटी यार रहे हव--बाद म भले चुनाव बखत कट्टर दुश्मन बनगे रहेव।
नहीं --- कोनो समझौता नइ होये रहिस। मैं तो नेताजी संग वोला श्रद्धांजलि देये बर आये हँव। इही हर तो इंसानियत ये। मैं नइ आतेंव अउ काली जुवर पेपर म श्रद्धांजलि देवइया मन के नाम छपतिस, वोमा मोर नाम नइ रहितिस त लोगन का सोचतिन?
मैं मने मन कहेंव-- वाह--वाह ,वाहवाही लूटे बर तको इंसानियत।
चोवा राम वर्मा' बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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