Thursday 30 December 2021

छत्तीसगढ़ी में पढ़े - बैरग

 छत्तीसगढ़ी में पढ़े - बैरग

जंवारा परब म मइया बइगा बैरग बनाय

दुर्गा प्रसाद पारकर 


मसो कुंआर नीत नम्मी दसराहा घर-घर खरख धोवाय। कुंआर महीना म पितर देवता मन के सुआगत करथे। पितर खेदा के बिहान दिन जोत जंवारा ह माढ़थे। ताहन फेर कुंआर मास अहोमाया बन-बन सेऊक आए, चोवा चन्दन अगर मलागर माय के सिर चढ़ाए। छत्तीसगढ़ म जंवारा ल हिंगलाज अउ घर म बोए जाथे। गांव हित म गांव भर मिल के बदना के मुताबिक बइगा के सुलाह ले हिंगलाज म जंवारा बइठथे। घर के मुखिया ह परिवार के सुख शान्ति खातिर बदना के मुताबिक द्यर म जंवारा बोथे। 

   जंवारा पाख म तो पूरा छत्तीसगढ़ देवी मय हो जथे। जघा-जघा देवी महिमा के बखान हाथे। संझा बिहनिया तो जंवारा के आरती उतारेच जाथे फेर संझा के संझा ढोल मंजीरा बजा के सेवक मन मइया के जस गीद गा के गुनगान करथे। जस गीद म शीतला के बरनन मिलथे जइसे- ब्रम्हा धर ले कमण्डल मइया धर ले कमण्डल, शीतल सेवा म चले जाबो हो माय। बिजली अस चमकै शीतला, तै बिजली अस चमकैना। तोर हिंगलाज म मइया तोर हिंगलाज म फूलवा के उड़त हे बहार तुम्हरी हिंगलाज म। थंइया-थंइया नाचय अंगना लंगूरुवा हो माय के अजब बने हे माय। छत्तीस रुप तुम धरे माता कोट कोट अवतारा, ठाड़े जिभिया लाल करत हे रुप दिखय विषधारा। कर खप्पर हाथे पर लिए सिंह भये हो हां......। जंवारह मन शीतला नही ते घर म जंवारा बो के अपन कूल देवी के मनौती ल मानथे। फेर डीगर मन अपन मनोकामना ल पुरा करे के खातिर चंडी, महामाया, बम्लेश्वरी अउ दंतेश्वरी माई म जोत जलाथे। छत्तीसगढ़ म जंवारा पाख म बैरग घलो बनाथे। जंवरहा मन जंवारा पाख म शीतला के बैरग ल मानथे अउ मड़इया मन सुरतोही रात म बैरग बना के देवी देवता ल मनाथे।

अ) जंवरहा मन के बैरगः-

       जंवारा पाख म अष्टमी के दिन हुमन होथे। देवी मय माहोल म पिसान ल तेल नही ते घींव म सान के अठोई बनाए जाथे जेला रोंठ कहिथन। अठोई ह परसाद के काम आथे। तीर-ताखर के गांव वाले मन ल घलो देवी सेवा बर नेवता दे जाथे। अठोई के दिन जंवारा म एक्कइस ठन लिमऊ चघाए जाथे अउ देवता मन म धजा खोचे जाथे। शीतल म बइगा ह बैरग ल सम्हराथे। माता देवाला म बैरग ल करिया (मेघीन) लाली अउ पड़री (सादा) रंग के अइलगे-अइलगे एक्कइस-एक्कइस फाल ल सील के सुक्खा बांस ल पहिरा दे जाथे। अतका होये के बाद फुलिंग म कलश के स्थापना कर देथे। तीनो रंग के बैरग ह अइलगे-अइलगे देवी देवता मन के चिन्हारी कराथे। सत्ती (कड़गी सात) बर लाली रंग के बैरग, ठाकुर देवता बर पड़री रंग के बैरग अउ ऋृक्षिण (कंकालीन) खातिर करिया रंग के बैरग सिरजाए जाथे। सेउक मन अठोई के दिन बैरग ल परघा के कारीगीर (लोहार) घर लानथे। हुमन के दिन गांव म तिहार घलो मानथे। कारीगीर ह पिसान के चउंक पुर के उप्पर म पीढ़हा मढ़ा के स्वागत बर बाट जोहथे। सेवुक मन के आते भार पीढ़ा म बैरग ल आसन दे के चरन पखारथे। रोरी (बंदन), गुलाल के टीका लगा के आरती उतार के घर म धो मांज के राखे देवता ल सम्मान पूर्वक सेऊक मन ल सऊंप देथे। सेऊक मन बैरग अउ देवता ल जंवरहा मन घर लेगे बर गावत बजावत आगु डाहर बढ़ जथे। बाजा के थाप ले उत्साहित हो के कतको मन देवता चघ जथे। भाव विभोर हो के देवता मन अपन तन ल लोहा के सांकड़ म पीट-पीट के लहु लुहान कर डरथे। बाना ले जीभ अउ बांह ल घलो आल-पाल बेध डरथे। देवता मन हूम दे के नरियार पा के मन भर नाचथे। देवता चघे के बखत एदे गीद ह जोर पकड़थे-

तुम खेलव दुलारुवा रन बन रन बन हो 

का तोर लेवय रइंया बरम देव

का तोर ले गोर रइंया

का लेवय तोर बन के रकसा

रन बन रन बन हो.........

नरियर लेवय रइंया बरम देव

बोकरा ले गोर रइंया

कुकरा लेवय बन के रकसा

रन बन रन बन हो..............

   जउन घर म जंवारा बोए रहिथे ओमन अपन देवता के रसदा जोहत रहिथे। अंगना म दू ठन चऊंक पुर के पीढ़हा मड़ा के देवता के सनमान खातिर तइयारी म रहिथे। सेऊक मन बाजा गाजा के संग बैरग अउ देवता ल मुहाटी म लानथे। उन ल पानी ओरछ के घर म आसन देथे। सियान ह एक ठोक पिढ़हा म बैरग अउ दूसर पीढ़हा म बाना ल आसन दे जाथे। देवता ल मानथे तेखर सेती जंवरहा मन ल देवताहा घलो कहिथन। देवताहा मन पूरा परिवार बैरग अउ देवता के आरती उतार के असीस लेथे। जंवारा पाख म पंडा अउ बइगा के अघात योगदान रहिथे। तभे बइगा के बताए मुताबिक बैरग बर सरा जमा के बेवस्था करथे। मेघिन बर दू नरियर, एक ठन धोती नही ते पन्छा म नरियर गठिया के बैरग म बांध देथे। सत्ती बर एक नरियर, एक पंछा अउ चूरी पाठ। ठाकुर देव बर सत्ती कस जोरा करे बर परथे। बइगा ह शीतला ले लाने बाना के संख्या के मुताबिक फूलवारी वाले घर म पुरौती पुरौती बांटथे। सबो फूलवारी वाले इही नियम धियम के पालन करथे। ओरी-पारी करके बैरग ल गांव के आखिरी फूलवारी वाले घर म छोड़ देथे। ठंडा के दिन जिंहा बैरग ह छूटे रहिथे उहें ले ओरी पारी परघावत जंवारा अउ देवता ल संघेरत तरिया नदिया डाहर जाथे। जंवारा ठंडा करे के बाद बैरग ल शीतला म खड़ा कर दे जाथे। 

 ब) मड़इया मन के बैरगः-

         मड़ई बनाथे तेन ल मड़इया कहिथन। मड़इया घर म बैरग ल बदना के मुताबिक सुरहोती के रात करिया (मेघीन) लाली अउ पड़री (सादा) कपड़ा ल तोरन कस बड़े अकार म काट के सात घांव एक के बाद एक राख के सील देथे। फूलींग म कलश के स्थापना करे रहिथे। देवारी (गोवर्धन पूजा) के दिन जब राऊत मन बाजा-गाजा के संग बैरग ल परघाए बर जाथे। ओतके बखत तीन ठन लिम्बू, तीन ठन नरियर, उदबत्ती, गुलाल, हूम, बंदन, आगी अउ लोटा म पानी रख के पूजा पाठ करथे। हूम बर गांजा नही ते दारु के उपयोग करथे। हूम धूप में खयरा कुकरा (करिया लाली), खैरी पोंई नही ते पड़री कुकरा के बली चघाए जाथे। तब देवी देवता के मुताबिक राऊत मन दोहा पार के बाजा बजा के नाच गा के देवी देवता मन ल नेवता देथे-

      पूजा परे पूजेरी भइया

      धोआ धोआ चांउर चढांव

      पूजा होत मोर सत्ती के 

      सब देखन चले आव

राऊत मन बैरग संग ठाकुर देवता अउ ग्राम देवता मन ल सांहड़ा देव म गोवर्धन खुंदाए के कार्यक्रम म संघरे बर नेवतथे। गोवर्धन खुंदाए के बाद बैरग ल शीतला लेगथे। पूजा पाठ करे के बाद बइगा ह बैरग ल घर लानथे।

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