Friday 31 December 2021

नहाँना

 नहाँना

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ये तीन अक्षर के शब्द --न हाँ ना बड़ा विचित्र अउ खतरनाक हे।एखर शुरु म न हे, आखिरी म ना हे फेर बीच म हाँ फँसे हे तेकर सेती लइका होवय चाहे सियान नहाँये बर ना-ना करत हाँ कहेच ल परथे।नहाँना के संग बहाना के पक्का दोस्ती हे फेर एहू ल रोज टोरे ल परथे।

      पहिली लइकापन म जब हम स्कूल जावत रहेंन त नहाये बर दाई के फटकार सुने बर परय अब पचास पार होये के पाछू बाई के डाँट खाये ल परथे।

      सिरतोन म हमर दाई ह कुकरा बासत उठके अँगना-खोर ल बहार के,पानी काँजी भरके लकर-धकर तरिया ले बूड़के आ जवय तहाँ ले अँगाकर रोटी बर पिसान सानत चालू हो जवय--अरे जाना रे गड़ौना -- बेरा चढ़गे----सात-आठ बजगे जड़जुड़हा गतर --कतका बेर नहाबे,स्कूल जाये के टेम होगे।अभी ले तोर गिनती-पाहड़ा ह नइ लिखाये हे।जा-जा-बने रगड़ के नहाँ के आ--भँइसा सहीं मइल माढ़गे हे।दाई के ये  मया म सनाये 'जड़जुड़हा ' वाले ताना ह तो थपरा म मारे कस लागय फेर रोटी खाना हे--स्कूल जाना हे त कइसनो करके नहाँयेच ल परय। नहाँये बर दाई के कहे रंग-रंग के सिखौना भाषण हा गरमी के दिन मा तो पोसा जय फेर ठंड के दिन मा का कहिबे--ऊँहूँ।

       अब तो वो बेचारी हा सरग लोक में रहिथे फेर बिरासत ल अपन बहू माने मोर बाई सियनहिन ल सँउप देहे।अब वोकर टेप रिकारडर चालू हो जथे।जाना नहाँके आना--कतका बेर नहाँबे-खाबे।बेरा चढ़गे हे।काम-बूता म नइ जाना हे का? घरे म खुसरे नाती नतनिन मन सँग भुलाये रहिथस। निच्चट 'जड़जुड़हा ' होगे हस।येदे फेर 'जडजुड़हा ' के ताना--।सच म हम ला तो ये बान मारे कस लागथे फेर का करबे खाना हे त नहाँना तो परबे करही।सुवारी के आगू म आज तक कखरो बहाना चले हे जेन हमर चल जही?

     अइसे बात नइये के हम ला नहाँये के फायदा मालूम नइये। हाबय--जब पढ़लिख के चेतलंग होयेन तभे ले जान डरेंन के नहाँये के अबड़ फायदा हे।एखर ले तन- मन दूनों स्वस्थ रहिथे।रोज नहाँये ले शरीर साफ रहिथे।दाद-खजरी नइ होवय। बिहनिया-बिहनिया नहाँये ले चेहरा के चमक बाढ़थे। खून के दौरा बने होथे। हिरदे के बिमारी नइ होवय।शरीर म चढ़े गरमी उतर जथे।मन ह फुरसदहा लागथे। फेर का करबे यहा हाड़ा- हाड़ा ल कँपावत, शीत लहर चलत जाड़ म तको नहाँना--।हाँ कइसनो करके नहाँये ल तो लागहिच।वोकर बिना भला पूजा-पाठ असुदहा म कइसे होही?

        हमर भारतीय संस्कृति म तको नहाँये के, मतलब स्नान के अब्बड़ महत्तम हे।सरी दुनिया म सबले जादा नँहइया इँहे हें। कोनो भी परब आही त पबरित सरोवर अउ नदिया मन म सामूहिक स्नान

होबे करथे। बड़े बिहनिया ले लइका मन के कातिक नहाना आजो चलन मा हे। हमर गाँव के तरिया मन तो रोज-रोज सामूहिक स्नान के जीयत जागत उदाहरण यें। ए मन समानता ,भाईचारा अउ मानवता के प्रमाण ये जिंहा बिना कोनो भेदभाव के सब स्नान करथें। गाँव भरके स्वर्गवासी मन के तिजनाँहवन अउ दशगात्र के स्नान अउ पिंडा इही तरिया मन म सम्पन्न होथे।

अतका जरूर हे के अब बाथरूम अउ स्वीमिंग पूल संस्कृति के आये ले, संगे संग जल प्रदुषण के बाढ़े ले फरक परत जावत हे।

      कुल मिलाके सार गोठ इही हे के हम ला जरूर नहाँना चाही।चलौ गुनगुनावत नहाये ल जाबो--


ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए।

गाना आये या न आये, गाना चाहिए।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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