Friday 17 December 2021

छत्तीसगढ़ी में पढ़े - पठौनी

 छत्तीसगढ़ी में पढ़े - पठौनी

बरदिहा छोड़ दिही ते छोड़ दिही, गोसइया थोरे छोड़ही

दुर्गा प्रसाद पारकर 


छत्तीसगढ़ के सियान मन अपन जमाना के बात ल बताथे। हमर जमाना म गांव भर के बेटी माई मन सेकलावत रीहिन हे बेटी के बिदा करे बर। बेटी के बिदाई ल ही पठौनी (गवना) कहे जथे। दिन बादर बंधाए के मुताबिक जोंगे दिन के दू चार दिन पहिली ले दमांद ह पठौनी ले बर आवय। पठौनी खातिर महतारी बाप अपन दुलौरिन के सवांगा महीना भर पहिली ले करय। सन्दुक, साबुन, लुगा, पोलखा, छाया, टिकली, फूंदरी अउ तेल फूल आदि। कवि मरहा कहिथे- ‘‘ महूं ह अपन संगवारी के पठौनी लाए बर लोकड़ाहा बन के गे रेहेंव। नता रिशता मन जेखर ले जतका बनिस रुपिया पइसा साबुन सोडा धरइन। अपन दमांद ल माई खोली म बला के लाली धागा बांध के काकी महतारी मन समझाइन बेटी ल चला लेहु हो। कोनो किसम के गलती हो जी तेला संवास लेहु। लड़की के मुड़ म नवा लुगा ओढ़ा के भेंट लागत लगावत बस्ती के आखरी म आइन। ठउंका गुर पानी पियाए के बेरा होत रिहीस हे ओइसने म दु ठन गोल्लर लड़त लड़त इही मेर आगे। सबो ल जी के डर। जुरियाए मनखे मन सब भागगे। इहां तक ले ओखर भाई ह अकाद घुट गुर पानी पियाय पाए रिहीस हे वहू ह लोटा ल कचार के भाग गे। लड़की के भाई अउ संइया एके जघा खड़े रीहिन हे। मुड़ी तो लुगा म तोपाए रिहीस हे कुछु नइ दिखे। भाई तो भगा गे सइंया ल पोटार के भेंट लागे ल धर लीस। मोला सगा आवत हे कहिबे भइया ए हें हें.....। लड़की के रोवई ल देख सुन के मरहा ह कथे- ए हा तोर भइया नो हे वो तोर संइया ए संइया ए। अरे भई बरदिहा छोड़ दिही ते छोड़ दिही गोसइया थोडे़ छोड़ही अपन लक्ष्मी ल’’। अतका सुन के बिचारी ह ठगाए कस रहिगे। संसार के नियम ल तो निभाए ल परही। फेर अपन हीरा ल बिदा करे के पीरा ल तो महतारी कइसे सहत होही तेला उही जानत होही। ए बात के एहसास बिहाव गीद ले करे जा सकत हे- दसे वो महीना दाई ओदरा (पेट) म राखे। दाई ओदरा म राखे। सोपि लेबे दाई तै माथे के मउंर......। 

   अब अइसन पठौनी कहां ले। सब नंदागे। कहां गे पिंयर धोवई ह। अब तो पठौनी (गड़जरावन) के नेंग ल बिहाव पारी टोर देथे। कउनो ले बर अइ जही ते परोसी ल कोनो कान खभर नइ चलै कि फलानी घर के सुवना ल कतेेक बेर उड़ा के ले गे। खैर जऊन आए हे ओला तो जाएच बर परही। फेर बेटी ल दु घांव जाए बर परथे। पहिली मइके ले दमांद लेगथे ताहन आखिरी म ससुरार ले जमराज। पठौनी के बाद नवा-नवा जुग जुग जोड़ी के घर बसथे। दू चार दिन तो बने चलथे जइसे नवा बइला के नवा सींग चल रे बइला ंिटंगे-टिग। ताहन चालू हो जथे बरतन भाड़ा बाजे के। दूनो अलग-अलग परिवार के रथे वैचारिक टकराव स्वाभाविक हे। अइसे बहुत कम बहुरिया होथे जउन मइके अउ ससुरार ल एके लउठी म हांकथे। माईलोगन मन बर तो मइके के करिया कुकुर नोहर। अइसन स्थिति पीढ़ी दर पीढ़ी चलत आवत हे। महतारी जइसन सिखाही ओइसन सिखही नोनी ह। बेटी ल तो बढ़िया सीखा पढ़ा के ससुरार पठोना चाही। सुन बेटी तै अपन गोसइया ल राम सरीख अउ देवर ल लछिमन बरोबर मानबे। इही किसम ले सास ल कौसिला अउ ससुर ल दसरथ बने बर परही। लड़की उमर म छोटे अउ लड़का ह बड़े रहिथे यहू पाय के लड़की मन ह लड़का के अपेक्षा कम परिपक्क रथे। यहू बात जरुरी नइ हे कि दूनो के बिचार म समानता हो। हाँ एक बात जरुर हे यदि गृहस्थी के गाड़ी ल बने खींचना हे त समझौता ही एखर हल हरे। 

   एक साल बहु ला, बने बने होगे ताहन फेर साल छट्ठी चाय पी। अम्मल म रहिते भार ये तो तय हो जथे कि जेचकी कते महीना म निपटही। जस-जस दिन बाढ़त जाथे तस-तस तन ह चिकनावत जथे सियान मन के आकब हे के जब पेट म टूरा हे त आधा सीसी माईलोगन के चेहरा ह फिक्का पर जथे अउ मान ले पेट म नोनी खेलत हे ते ओखर सुन्दरता ह बाढ़ जाथे। मान ले लइका ह डेरी बाखा म खेलत होही त नोनी अऊ जेउनी बाखा म खेलत होही त बाबू लइका होही। हो सकथे ये सब आज के वैज्ञानिक युग म गलत हो सकथे तभो ले अजमाए जा सकत हे कि सियान मन के बात म कतना सच हे। कोनो माईलोगन ल ओ-ओ उल्टी आवत हे। अम्मट-गोम्मट बने सुहावत हे। ताहन जान डर पठउव्हा ले लइका गिरया हे। आधा सीसी के हालत म बने खाना अउ कमाना चाही। जेखर ले जेचकी ह बड़ सहोलियत म निपटथे। आज कल तो जच्चा अउ बच्चा के देख रेख खातिर जांच करवाना चाही, समे म टीका लगवाना चाही। ताकि भारत के भविष्य स्वस्थ रहि सके। नवा सगा के रद्दा ल सबो जोहत रहिथे। आनी बानी के खई खजाना अपन बहु ल खवाथे। कोनो जलेबी लाथे त कोनो आमा। आमा के अथान बिना तो कंवरा नइ उठे आधा सीसी माइलोगन के। सात महीना होते भार आधा सीसी के सधौरी खाए के साध ल मइके वाले मन पूरा करथे। मइके वाले मन सात जात के रोटी पीठा (फरा, खुरमी, ठेठरी, बरा, खीर, भजिया, सोंहारी) रांध के पहलावत दरी लेगथे। कतको मन सबो दरी बर सधौरी खवाथे।

         आधा सीसी माईलोगन के दिन पुरते भार दुख खाए बर धरथे। ताहन गांव म जेचकी निपटाए बर सुईन बलाथे। डोकरी ढाकरी मन घलो नरियर खाए के ओखी म जेचकी निपटाए बर साथ देथे। सहर के अपेक्षा गांव में जेचकी सोहिलत ले निपट जथे। काबर के इन मन हमेशा काम बूता करत रथे। बहुत कम जेचकी असफल होथे। अइसन स्थिति म नर्स बाई ल बलाथे या स्वास्थ्या केन्द्र लेगथे। ओइसे देखे जाय जिंहा सुविधा हे उहां अलहन ले बांचे खातिर अस्पताल म जेचकी निपटाना जादा अच्छा हे। लइका ह पठउव्हां ले नार फूल सहित गिरथे। जेखर जतन सुईन ह करथे। पहिली समे म नार फूल  खपरा म कुचर के काटे जाय। फेर अब नार फूल काटे खातिर पत्ती के उपयोग करे ल धर ले हे। जंग लगे पत्ती ले सावधानी बरते के जरुरत हे। जेचकी के समे लइका के मुड़ी ह पहिली बाहिर आथे। 

गोड़ के पहिली आए ले मुड़ी के अटके के डर रथे। जउन लइका ह गोड़ डाहर ले पैदा होथे ओला पंवरिया केहे जाथे। अइसे माने जाथे कि काखरों हाथ गोड़ म पीरा उमड़ गे हे त पंवरिया लइका के खूंदे ले ठीक हो जथे। जेन ल भगवान देथे ओला खपरा छानी फोर के देथे। जइसे एके घांव म जुड़वा लइका हो जथे जेन ल जांवर जीयर कहिथन। 

जेचकी के दिन ले छुट्ठी तक सुईन ह सेवारी के पेट ल लगरथे ताकि रुके रुकाए कुछु कहीं ह झर जय। सेवारी ल शुरु दिन चाय भर दे जाथे। ताकि मुंह सुखाए झन। अबके मन हल्का फुल्का खाए बर घलो देथे। दुसरइया दिन ले चालु होथे नरियर भेला डुढ़ही अउ कांके पानी के कांके लकड़ी अउ लाल सुपारी ल पानी म खउला के ओखर पानी ल तीली के फोरन दे के बघार दे जाथे। इही ल कंाके पानी कहिथन।

  ढूड़ही बर बादाम, खारीक, किसमिस, काजू, चिरौंजी, फरपीपर, अंजवाइन, करायत, दाख, मुनक्का, लाई, मखना, फर पीपर, गोंद, लाइचा, कमरकस, खस-खस, करिया तीली, सोंठ, गुड़, खोपरा अउ मंदरस के जरुरत परथे। लइका मन बर महतारी के दुध ह जादा फायदा करथे। लइका ल दुध पियाए ले माईलोगन ल कुछु फरक नइ परय बल्कि मातृत्व के अपन आनंद हे। आजकल पाउडर दूध ले बांचे बर परही। छत्तीसगढ़ म पांच-छै दिन म छट्ठी उचाए जाथे। मंगल अउ शनिच्चर के छट्ठी नइ उचाए जाए। अइसन स्थिति म छट्ठी चार दिन अउ छै दिन म घलो उचाए बर पर जथे। छट्ठी के दिन नता रिसता ल नेवतथे। गांव वाले मन ल छट्ठी संावर बनाए बर नेवतथे। लड़की अउ लड़का के भेद ह तो पहिलीच ले चले आत हे। तीही पाए के लड़की आए ले छट्ठी चाय सिट्ठा-सिट्ठा लागथे। लड़की अउ लड़का म भेद करई ह बने बात नोहे। लड़की होय चाहे लड़का दूनों के बढ़िहा लालन-पालन कर के शिक्षा दे के जरुरत हे। जब नारी पढ़ही लिखही तभे तो अपन लइका ल पढ़ा लिखा के उंखर भविष्य ल संवारही। टूरा के छट्ठी बर चकल चउदस। का दारु ल कहिबे त का मछरी ल। महर-महर करत रहिथे घर बाहिर ह। मुनगा बरी बिना तो जेचकी निपटे नही चाहे छट्ठी कोनो महीना म होवय। छट्ठी के दिन नाऊ ह सबके छट्ठी सांवर बनाथे। लइका के मुड़ मुड़थे। लइका के चिकनी मुण्डी होय के बाद सुईन ह नहवाथे-खोराथ,े मालिश करथे। 

          येखर अवेजी म लड़का के बाप ह सुईन अउ नाऊ ल जतका बन जथे उपहार देथे। कतको गांव म ये तय कर देथे के जेचकी अउ छट्ठी निपटउनी सुईन अउ नाऊ ल कतका अउ रुपिया देना हे। छट्ठी के दिन गरीब से गरीब मनखे रेडियो बजवाथे। चाय पियाथे। कतको जघा मिश्चर घलो खाय बर मिल जथे। 

कतको परिवार समधीन भेंट के नेंग ल बिहाव दरी टोऱ देथे। नइ टोरे उमन छट्ठी के बाट ल जोहत रहिथे। इही दिन समधीन भेंट के नेंग ल घलो निपटाए जाथे। छट्ठी के दिन लड़की के मइके वाले मन अपन बेटी कर लुगा पोलखा छाया, दमाद बर धोती अउ लइका बर नवा कपड़ा लानथे। छट्ठी के दिन खुशी म रमायन करवाथे। रमायन के सिरावत खानी लइका के नाव घलो धर देथे। नवा धरे के पहिली सोहरगीद येदइसन गाथे- हो ललना बाजथे आनंद बधाई। मोर आनंद बधाई हो। ए हो ललना बाजत हे आनंद बधाई। तीनो के घर सोहर हो। कोन घड़ी भये सिरी रामे, कऊन घड़ी लछिमन। ए हो ललना कऊन घड़ी भरत भुआल। तीनो के घर सोहर। सुभ घड़ी भये सिरी राम, सुभेच घड़ी लछिमन। ए हो ललना सुभ घड़ी भरत भुआल। तीनो के घर सोहर हो। काखर भए सिरी राम, काखर भये लछिमन हो। ए हो ललना काखर भरत भुआल। तीनो के घर सोहर हो। कौसिला के भये सिरी राम। सुमितरा के भये लछिमन हो। ए हो ललना कैकई के भारत भुआल। तीनो के घर सोहर हो। जो यह सोहर गावै अउ गाई के सुनावे हो। ए हो ललना तुलसी दास बली पावे, सुनइया फल पावे, परमानंद पावे हो ललना। 

              छट्ठी के बिहान दिन बरही। बरही के दिन सेवारी ह नहा खोर के नवा लुगा छाया पोलखा पहिर के टुप-टुप पांव परथे बड़े मन के। अऊ असीस लेथे। जनम बिहाव अऊ मरन तो लगे हे। संसार म फेर दू लइका के बीच कम से कम तीन बछर के अंतर जरुरी हे। नही ते धकर लकर के घानी, आधा तेल आधा पानी, कस रोहन बोहन लइका मन हो जही।

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