Thursday 30 December 2021

नवा बिहान के आस....

 नवा बिहान के आस....

    मुंदरहा के सुकुवा बिखहर अंधियारी रात पहाये के आरो देथे। सुकुवा के दिखथे अगास म अंजोर छरियाये के आस बंध जाथे। चिरई-चिरगुन मन चंहचंहाये लगथे, झाड़-झरोखा, तरिया-नंदिया आंखी रमजत लहराए लगथें। रात भर के खामोशी नींद के अचेतहा बेरा के कर्तव्य शून्य अवस्था ले चेतना के संसार म संघराये लगथे। तब कर्म बोध होथे, अपन धरम-करम के गोठ सुझथे, सत्-सेवा के संस्कार जागथे, अपन-बिरान अउ अनचिन्हार के पहिचान होथे।


    नवा बछर घलो बीतत बछर के अनुभव के माध्यम ले लोगन ल अइसने किसम के नवा आस देथे, नवा बिसवास देथे, नवा रस्ता देथे, नवा नता-गोता, संगी-साथी अउ हितवा मन के संसार देथे। अपन पाछू के करम मन के गुन-अवगुन अउ सही गलत के पहिचान कराथे। करू-कस्सा, सरहा-गलहा मन ले पार नहकाथे, खंचका-डबरा अउ कांटा-खूंटी मन ले अलगे रेंगवाथे। तब जाके मनखे ह मनखे बनथे, वोकर छाप ह जगजग ले उज्जर अउ सुघ्घर दिखथे। लोगन ओला संहराथें, पतियाथें अउ आदर्श मान के ओकर अनुसरण करथें।


 चेत लगाके देखिन त छत्तीसगढ़ अभी घलो विकास के दृष्टि ले भारी पछवाए हवय। कोरी भर बछर बीतगे हावय, एकर स्वतंत्र अस्तित्व के सिरजन होये। तभो एकर मूल आस्मिता बर कोनो बने गढऩ के सुध लेवइया नइ मिलत हे, जबकि इही अवस्था ककरो भी निर्माण के बेरा होथे। वोला सुंदर आकार, संस्कार अउ सदाचार के गुन म पागे के। आज जइसे एकर नेंव रचे जाही, तइसे काल के एकर स्वरूप बनही। सैकड़ों अउ हजारों बछर ले पर के गुलामी भोगत ये माटी के रूआं-रूआं म लूटे के, हुदरे के, चुहके के, टोरे के, फोरे के, दंदोरे के, भटकाये के, भरमाये के, तरसाये के, फटकारे के चिनहा आजो दिखत हे। इहां के मूल निवासी समाज आज घलो उपेक्षा अउ षडयंत्र के शिकार हे। 


    अभी घलोक एला अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी नइ मिल पाये हे। काबर ते कोनो भी राज के चिन्हारी वोकर खुद के भाखा अउ खुद के संस्कृति के स्वतंत्र पहिचान ले होथे, जे अभी तक अधूरा हे। अउ ये स्वतंत्र स्वरूप के चिन्हारी आज के पीढ़ी ल करना परही। हमर ददा-बबा मन के पीढ़ी ह एला स्वतंत्र पहिचान देवाये खातिर एक अलग प्रशासनिक ईकाई के रूप म तो बनवाये के बुता ल पूरा कर देइन। अब एकर संवागा के जोखा हम सबके हे। कइसे एला आकार देना हे, विस्तार देना हे, पहिचान देना हे, साज अउ सिंगार देना हे, ये हमार पीढ़ी के बुता आय।


   ददा-बबा मन जेन सपना ल देखे रहिन हें, वो सपना ल, वो सुघ्घर रूप ल हमन ल गढऩा हे। एकर भाखा ल, साहित्य ल, कला ल, संस्कृति ल, जुन्ना आचार-व्यवहार ल, जीये के उद्देश्य अउ धरम-संस्कार ल हमन ल बनाना हे। एकर बर पूरा ईमानदारी के साथ हर किसम के स्वारथ ले ऊपर उठ के समरपित भावना ले काम करे के जरूरत हे। 


   कहे के नांव ले इहां छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के गठन कर दिए गे हे। एक दशक ले आगर होगे एकरो स्थापना ल होय, फेर नेंग छूटे के छोंड़ ए आयोग ह छत्तीसगढ़ी भाषा खातिर कोनो खास बुता नइ कर पाए हे। लागथे के सरकार के या तो नीयत ईमानदार नइए नइते एक दशक कम नइ होवय कोनो भाखा ल जमीनी रूप म स्थािपत करे बर। आयोग म जे मन ल सरकारी प्रतिनिधि बना के बइठारे गे  रहय उहू मन हा-हा भकभक करे अउ लबारी के उपलब्धि  के नाव म शेखी बघारे के छोड़ अउ कुछू नइ करे रहिन, अभी के सरकार ह तो एकर गठन करे म घलो अभी ले थथर-मथर करत हे, तेकर मन ले महतारी भाखा ह शिक्षा अउ राजकाज के माध्यम कइसे बन पाही, तेन ह गुनान के बात आय ??


    छत्तीसगढ़ ल अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी मिलय, अस्मिता के बढ़वार खातिर जिम्मेदार मनला भगवान सद्बुद्धि देवय, इही आसा अउ भरोसा के संग आप सबो झन ला नवा बछर के बधाई अउ जोहार-भेंट...


-सुशील भोले 

54-191, डॉ. बघेल गली,

संजय नगर, रायपुर 

मो/व्हा. 98269-92811

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