Friday 17 December 2021

कहानी: अकलमुँडी

 कहानी: अकलमुँडी

           मनखे घर मनखे आथे-जाथे, तभे मनखे के अटके बूता आगू सरकथे। काम बूता के संग चलत मुँहाचाही ले मन घलव हरियाथे। दूएच मिनट कखरो संग बइठ के गोठियाय ले दुख के जब्बर पहाड़ ह हरू लागथे। जिनगी ह एके जगा ठाढ़े सहीं नइ जनावय। दुख ल धरे बइठे म नइ बनय। आगू तो बढ़े ल पड़थे। इही जिनगी के सार आय। अइसे तो सुख-दुख जिनगी के अँगना म घाम-छइहाँ के खेल खेलत रहिथें। कोनो नइ जानय कब काखर भाग म कतिक बेर दुख आ जही। कोनो नइ सोचय कि दुख ले मोर भेंट होवय। फेर जिनगी म सुखेच सुख तो नइ मिलय। सुख के पाछू दुख हे त दुख के पाछू सुख घलव हे। दुख ले कभू न कभू भेंट तो होबे करही। इहू ह जिनगी के रीत आय। फेर वाह रे दू गोड़िया मनखे के गुमान। मरे के पाछू तन दू कउड़ी के राहय न दू कउड़ी ल धर के जाय बर मिलय। जुच्छा हाथ आय हे अउ जुच्छा हाथ जाय बर हे तेमा मोर पइसा, मोर धन...जइसन दसो ठन गरब गुमान ल पोटार के रख लेथे। दू पइसा आगर, का बटोर लेथे घमंड के पाँख लगाय दुनिया ले बाहिर उड़े लागथे। अपनेच भाई बंध ल नइ चीन्हे सहीं करथे। पारा परोसिन के का कहिबे? अइसने बानी चइतू अउ सेवती के हाल हे। भाई बंध मन ले चार पइसा आगर का कमाय धर लिन, अब उन मन के न आरो लँय, न शोर करँय। कोन्हों मेर भुर्र के जाय बर गाड़ी होगे हे। जब मन करे तब रेंग देथे। घाम के संसो न बरसा के। गाड़ी म बइठिन अउ चले चलिन माईपिल्ला। राजा महराजा मन के माहल सहीं चमकत घर होगे हे। रिकिम रिकिम के टाइल्स अउ काँच मन ले मार चमकत घर दुआर। दुआरी म पट्टा बँधाय बेलाती कुकुर। जेन बिस्कुट खाय बर तरसय, तेन ह कुकुर ल संझा बिहनिया दूध बिस्कुट खवाथे। जेकर दू काठा के टेपरी रहिस, तेन सात आठ एकड़ के धनहा वाला होगे। 

       चइतू के बेवहार अब बिल्कुलेच बदलगे। पाँव-पैलगी करई ल भुलागे। राम-राम के बेरा मुँह फरकातेच रहिथे। जेला देखही, तेला सुनाय धर लिही। नँगरा मन ...डउकी बुध म चलइया .. मन...उँकर मेर काय हे... घरे बस हे....तेमा...जउन आय तउन... गारी गुफतान अब ओकर रोजेच के बूता होगे राहय। चइतू के बेवहार अइसन कइसे बदलगे? कोनो ल हजम नइ होवत हे। कोनो कोनो फुसफुसाय लग गे हे ..धन बइहा होगे हे, धन बइहा..धन बइहा। ओकर संग कोनो ....।... कब बउरा जही, कोनो ठिकाना नइ हे, ओकर ले बाँच के रइहू। ओकर संग भिड़ना अपने इज्ज़त गँवाना ए। 

        कोनो कहय, चारों कोती ले कमई होय धर लेहे त बउरा गे हे। धंधा जोर पकड़ ले हे। तव कोनो फुसफुसाथे दूकान ले उबर नइ पात हे, खाय के फुरसत नइ मिलत हे, तेकर सेती खखवाहा होगे हे।

          दिनभर म दू मिनट ठेलहा नइ रहय। ग्राहिक ऊप्पर ग्राहिक ठाढ़े रहिथे। बेटा घलव कमावत हे। बेवहर म घलव लाखों बँटाय हे। बाप पुरखा म नइ देखे रहिस तउन ल देख डरिस। पइसा पलपलाय ल धर ले हे, त पगला घलव गे हे।का कहिबे, जे मनखे ते गोठ।

          सेवती घलव कभू पारा परोसिन संग बइठई काला कहिथे नइ जानिस। काँके पानी, कथापूजा म घलव काखरो घर जाय बर पाँव नइ उठाइस। दुख के बेरा म घलव दुखिया के संग दू मिनट बइठ लँव कहिके कभू नइ जानिस। अकेल्ला रहि जतिस फेर अकलमुँडी कस दूसर घर के मुँहाटी म पाँव नइ मढ़ाइस। उही जानय का ओकर मन म हे तउन ल। 

       ओकर महतारी ह ओला कतको समझा डरिस, पारा परोसिन मेर उठबे बइठबे तभे तो तोर संग कोनो गोठियाही बतियाही। दुख-पीरा ल बाँटबे। सबो दिन एके नइ रहय। तहींच नइ जाबे, त तोर घर कोनेच आही। बेवहार ह पूरथे अउ मनखे बेवहार ले पूछथे। धन दौलत तो हाथ के मइल आय। कब कति रेंग दिही कुछु नइ केहे जाय। आज हे त काली रइही जरूरी नइ हे। एकर घमंड बने नोहय। घमंड के घर खाली होथे, कहे गे हे।

       सेवती के महतारी अतके कहिके नइ रुकिस। आगू अउ कहिस- "दमाद बाबू ल काबर नइ बरजस। जब पाथे तब कोनोन कोनो ल बफलत रहिथे। चीजेच भर ल सकेले म नइ होवय, बेवहार घलव कमाय ल लागथे।" अतका ल सुन के सेवती अपन दाई ल उराठिल गोठ कहिस-- "दाई तोला रेहे बर हे त मुँह सील के कलेचुप रहि। नइ त तँय अपन घर के रस्ता नाप।" बेटी के गोठ ल सुन के चुप रहिगे। दू दिन के गे ले सेवती के महतारी बपुरी अपन घर चल दिस। 

         चइतू अउ सेवती दूनो के विचार रेलवाही के पटरी सहीं एके कोती सरलग जावय। चइतू घर बाहिर के जम्मो बूता चटपट कर डरय। कभू कोनो बूता ल डउकी करही, ते बहू करही कहिके नइ छोड़िस। खुदे झट्टे कर लेतिस। ओला सबो बूता बहुतेच उसरथे। घर म ठेलहा बइठई ओला कभू नइ भाइस। ठेलहा रहितिस त घुमे चल देतिस। ओढ़े पहिने के बड़ सउँकीन। चक सादा कुरता बड़ फबथे ओला। अस्तरी चले कुरता ऊप्पर सेंट मारे बर कभू नइ भुलाइस। ब्रांडेड पनही सेंडिल टोपी संग चस्मा पहिरई घलव ओकर बड़का सउँक आय। सेवती घलव ओकर देखा-सीखी टेस मारे म कभू पीछू नइ रहिस। मार लरी-लरी वाला करधन। गोड़़ बर लच्छा । रानी हार। कान म झुमका। फुँदरा ले पोहाय पोलखा के का कहना। ....अवइया पँदरही शनिच्चर के चार दिन बर दूनो झन घूमे जाय के प्लान बना डरे हे।

         

         नारी परानी घर के गहना आय। घर के सुघरई नारी के हाथ म रहिथे। नारी जइसन अपन रूप ल सँवारथे अउ सजाथे, वइसन घर बार अउ परिवार ल सँवारथे। घर सिरीफ घर सजाय के जिनिस ले नइ सजय। बेवहार ले सजथे। नता रिश्ता के मनखे मन के आय ले सजथे। तोर दिन तो दमाद तिर भाई-बंध अउ जेठानी मन के लाई लिगरी लगावत बीतय। ओकर तिर लीक के लाख करच। न खुद बने अउ न दमाद ल भाई-भउजी मन ले बनन देच। चीज आइस त भाई बंध मन छुटगे। भाई भउजी के आरो बिना तरी तरी छटपटात राहय बपुरा ह।

       अब मोर तिर रोय-गाय म का होही? मोर संग गोहरा के काय पाबे? मँय का करहूँ? मँय तो चार दिन के सगा अँव। भाई बंध अउ देरानी-जेठानी मन ले नता ल तहीं दुरियाय हस। त तहीं ह दुख ल झेल। पारा-परोसिन मन घर तहीं नइ गे हस, त उही मन कइसे के तोर दुख बाँटे आही। फरिका के कपाट ल तहीं ओधाय हस, त कइसे कोनो खोल के आही। परोसी बदले नइ जाय सकय, फेर तँय परोसी के बरोबर मान गउन नइ जानेस। परोसी मन ल लाठी च लाठी मारहूँ काहय, त तोला मजा आवत रहिस। कभू नइ बरजेस। भगवान सबो बर हे। जेकर लाठी चले के आरो नइ आय फेर गहिर घाव हो जथे। पहलियो बरजे रेहेंव, फेर तहीं...।

        नवा चरितर के बेमारी ह कोन जनी कति मेर चइतू ल अभरा लिस। सेवती ह डॉक्टर तिर पइसा कउड़ी कुढ़ो डरिस फेर एको काम नइ आइस। चइतू के साँस फूले लागिस। ...तन के कुँदरा ले हंसा उड़ागे। माटी के काया माटी म मिलगे। चइतू सरग के पहुना बनगे। 

         चइतू के जाय ऊप्पर ले सेवती आय दिन आँसू बोहाते राहय। ओकर रोवई सबो सुनय फेर कोनो ओकर डेरौठी म जाय के हिम्मत नइ कर पात रहिन। सबो एके गोठ करँय, कइसे जावन अकलमुँडी के घर? कोन जनी का कइही? माइलोगन मन संग कभू नइ सँघरिस त कोन जनी अभियो...? का कहि दिही.. का ठिकाना अकलमुँडी गतर के? सबो इही सोचत ओकर डेरौठी पार नइ गिन।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

जि. बलौदाबाजार 

9977252202

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