Thursday 30 December 2021

छत्तीसगढ़ म बढ़ोना भात---*

 *छत्तीसगढ़ म बढ़ोना भात---*


हमर छत्तीसगढ़ म हर काम बुता,तिहार बार के पीछू बड़ निक संदेश छिपे रथे। जेला हर छत्तीसगढ़वासी मन बड़ा जोर शोर, उसाह मंगल, ख़ुशी हाली से मनाये जाथे। चाहे कोई बड़का कारज हो कोई उसाह के समे हो,सबो माई पीला मिलजुलके कारज ल पूरा करथे अउ तिहार सरी मनाथे। इहि हमर छत्तीसगढ़ के रहवइया मन के संस्कार ये,संस्कृति आय। जेकर ले आपसी सहयोग, तालमेल, मिलजुलके काम करे के भावना जम्मो गंवईया छ्त्तीसगढिया हिरदे म छलकत ले भरे होथे।


अइसने हमर गंवई गांव म एक ठन कार्यक्रम होथे जेला अब्बड़ जोर शोर ले जुलमिलके मनाथे,जेला--बढ़ोना भात कहे जाथे। ये कार्यक्रम ह उँकर घर होथे जेंकर घर के जम्मो धान-पान,कोदो-कुटकी,अन्न-धन्न ह कोठार म सकला के मिंजा-कूटा के घर म पहुँच जाथे। ये जब्बर काम ह कोई एके-दुये झन के बस के काम नोहे। येला करे बर जतिक झन मनखे मन काम बुता करे ल लगे रथे,वोमन ल बड़ उसाह मंगल ले बढ़ोना भात खवाये जाथे। एमे जम्मो कमईया मनके आदर-सत्कार करत उँकर मेहनत के घलो मान-सनमान घलो होथे। मने परिसरम के सेती अब्बड़ आदर करत बने खान-पान करके खुस करथे।


ये कमइया मनके मन ल सपरिहा घलो कथे। ये मन एक दूसर घर धान बोवाई ले बियासी,निदई,भारा-भुसाड़ा,मिजई-कुटई तक आरी-पारी ले काम बुता ल नारी-परानी,लोग-लइका,डोकरा-डोकरी जम्मो झन पूरा करे ल लगथे, एक घर के काम पूरा होइस तहन दुसरैया घर के बुता करे म जुट जथे। आपस म एक दूसर के सुख दुख म साथ देत परेम भाव अउ सहयोग ले बढिया जुलमिलके सबो झन काम ल करथे।


बढ़ोना भात जेंकर घर खवाथे वोमन अपन सहयोग करईया घर के जम्मो मनखे मन ल नेवता देथे अउ भात साग रांधे के लाईक नोनी मन ल अपन घर पानी लाय बर,भात-साग रांधवाय बर पहिली ले बला डारथे। नेवता देवइया हर कथे कि आज तुमन ल आगी नई बारना हे,हमर घर डहर खाना हे। घर के मन समझ जथे की आज इंकर घर बढ़ोना भात खाना हे। ये भात खवाई हर अपन गांव के बाजार,नहिते तीर-तखार के हाट-बाजार के दिन रखवाथे। जेंकर ले साग-भाजी,तेल-नून, लसुन-गोंदली ले बर बन जथे।


संझा कुन मुंधियार होती भात साग,रोटी-पीठा चूरे के पारी म जम्मो सपरिहा मन घर एक झन मनखे ह खाय बर बलाय ल जाथे अउ सबो माई-पिला ल बलाके अपन घर लेझ जथे। कमइया मनखे मन घलो बड़ खुसी-खुसी बढ़ोना भात खाय ल चल देथे। अउ सबो झन बने पंगत में बैठ के भात-साग,रोटी-पीठा के मजा लेथे।


बढ़ोना भात म सबो मनखे मन के पसंद के खियाल रखे जथे। रोटी-पीठा, बरा,सोहारी,भजिया,मिरी भजिया घलो बनथे। सादा खवईया बर आलू भांटा,सेमी, फूलगोभी, चना,बरबट्टी, बंगाला-चटनी के बेवस्था रथे। अउ एककनि दूसर वाले मन बर दूसर चीज के बेवस्था घलो रखे रथे। सबो कमइया मन बने पंगत ले बैठ के पतरी म परेम भाव ले खाते, नोनी मन बांटे-पोरसे लगथे। अउ घर वाले के अब्बड़ मान-गुन गाथे।


एक घर ल बढ़ोना भात खाय के बाद दूसर घर जिंकर घर के काम पूरा हो जथे,उँकर घर के नम्बर लगथे। सबो संग म कमइया मनखे मन ओरी-पारी ले काम पूरा करथे,अउ उही परेम भाव ले बढ़ोना भात खवाथे।


बढ़ोना भात हमर गंवई संस्कृति म लोगन ल एक दूसर ल जोड़े के काम करथे। छ्त्तीसगढ़ म आज घलो आपस के परेम,सहयोग, भाईचारा, समरसता के भावना अभी तक ले जीयत हे। ये हर सबो मेहनत करईया मनखे-मनखे के पसीना के ओगरत ले कमइ हरे। मेहनत ह सबो जगह समरिधि,खुसहाली,सहयोग के गुन ल पैदा करथे। येकरे सेती हमर छ्त्तीसगढ़ अउ छ्त्तीसगढिया मनखे मन सबले बढिया हे।



                   हेमलाल सहारे

            मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

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