Friday 17 December 2021

विषैला

 विषैला

                                  देश ला आजादी मिले के कुछ बछर पाछू के बात आय । एक गाँव म , एक किसान , उदुपले  , बिन कोन्हो बीमारी के  , दुनिया ले चल दिस । काबर मरिस ? कोन्हो ल खोज खबर करे के जरूरत अऊ फुरसत दूनों , नइ रिहिस । दू चार झिन कारन खोजे के प्रयास करिन , तेमन ल सिर्फ झिड़की मिलिस । ओकर चिट्ठी चिरा गिस - तेकर सेती मर गिस होही , कहिके चुप करा दिन । समे बीतत अइसन घटना के बाढ़ आगिस । सरकार करा , कुछ मन ये खबर ला फेर अमरईन । देशी   सरकार लबारी थोरे मारही ..... ? वोमन , लोगन ल बतईन – किसान मजदूर मनखे के उदुप ले मरई हा , साँप चाबे के सेती होवत हे । लोगन ल चेतइन - खेत खलिहान , बारी बखरी जंगल झाड़ी म चेत लगा के जावव , जरूरी हे तभे जावव । कतको बछर नहाकगे , फेर गरीब किसान मनखे ल कहाँ ओतेक चेत । अऊ फेर चेत के चक्कर म , जेकर बूती जिनगी चलत हे , तेला थोरे छोर दिही । मनखे ल हरखे बरजे के , जम्मो उपाय फेल होगे , त सरकार कानून बनाए बर मजबूर होगिस – अउ खेत खार जंगली भुंईया ला , फेक्ट्री मालिक मन ल बाँटे लागिस , किसान मजदूर बिरोध करीन , तब ओमन ल बताय गिस कि तुँहर प्रान बचाये बर , साँप के भुंईया ल देवत हाबन , येमे तुँहर कोन्हो नकसान नईये । एकर बावजूद , प्रान हराये के संखिया नइ कमतिअईस ।

             सरकार के सलाहकार मन , साँप ल मरवाये के सलाह दिन । देखते – देखत साँप के संख्या घटे लागिस । साँप समाज ल चिंता होइस । जंगली जनावर मन के बईठका सकेल के अपन पीरा ल गोहनईस । जम्मो जानवर प्रजाति मिल के तै करीन ..... अब कोन्हो मनखे ल काटना - चाबना या कोकमना घला निये , निही ते साँप कस हमरो दुर्दशा होही । साँप मन किथे ‌- हमन कोन्हो मनखे ला नइ चाबन - काटन , हमर ऊप्पर फोकटे फोकट इल्जाम लगावत हे । सरकार करा बात रखे के , बात तै होईस । सरकार हा पहिली तो जाँच कराये बर आनाकानी करिस । फेर पाछू ...... जानवर मन के दबाव म सबर दिन ले झुकईया सरकार हा मांग स्वीकार कर लिस ।  

              छै महिना बर , जाँच आयोग के काम शुरू होगे । खुल्ला सुनवाई होये लगिस । साँप मनला अपन बात रखे के पहिली मौका मिलिस । साँप मन अपन दरद पीरा ल बतावत किहीन – हमन वाजिम म बिषैला आवन जज साहेब , फेर कुछ बछर ले मनखे ल काटंना कोकमना त दूर , देखना तको बंद कर दे हाबन । किसान गरीब मनखे मन के उदुप ले मरे के पाछू , हमर निही , मनखेच मन के हाथ हे । अपन बात के समर्थन म आगू किहीन – देश के आजाद होए के पहिली , जब हमन कोन्होच ल काटन , तब हमर जहर के प्रभाव ले , काकरो बाँच पाना सम्भव नइ रहय । फेर वो समे , हमन कोन्हो ला जानबूझ के नइ काटन । हमर रद्दा म उदुप ले सपड़ईया मनखेच हमर शिकार होय । कुछ दिन पाछू , हमन देखेन के , मनखेच ह , मनखेच के लहू ल पियत हे । उही समे एक दिन हमूमन सोंचेन के .... मनखे के लहू म जरूर मिठास आगे होही , इही सोंच के साधारण दिखत एक्का दुक्का मनखे ल , हमूमन जानबूझ के , चाबे बर धरेन । पछीना म बस्सावत , मइलहा अंगोछा धरे , आधा पेट खाके सेफला कस हाड़ा हाड़ा दिखइया , नानुक पटका पहिरे घूमत हे , तेकर लहू म अतेक मिठास हे , तब   सुघ्घर धोती कुरता पइजामा पहिरे , चिक्कन चिक्कन गाल , अउ महर महर महमहईया मनखे के लहू म अऊ कतेक मिठास होही । इही सोंच के उही दारी दू चार झिन अईसने मन ल घला चाब पारेन ..... हमन का जानन , यहू मन हमरे कस होही कहिके , येमन नइ मरिन जज साहेब । ओला तुहूँ मन जानत हव , उही दारी ले , मनखे ल , कभू कभू साँप कहिके बुलाये लागिन । एक बेर उदुपले , कुछ लालबत्ती वाला मन सपड़ागे ......  दू चार झिन एके संघरा चाब पारेन । एक ठिन साँप .... तुरते मरगे । दूसर .... कुछ बछर ले बड़ तड़फिस ..... आखिरी म दरद पीरा ल सेहे नइ सकिस ..... फाँसी लगाके मरगे । कुछ अभू तक तड़प तड़प के हाबे .... न ठाड़ हो सकत हे ..... न बईठ सकत हे .... इँकर गिनती न जियईया में हे .... न मरईया में । इही दारी ले हमन अब कोन्हो सधारन मनखे तक ल चाबे बर डर्राथन । हमन जान डरेन के , मनखे बड़ प्रगति कर डारे हे … साफ सुथरा दिखईया के लहू म अतेक बिख हे , त मइलहा म को जनि अऊ कतेक बिख हमागे होही । अब बतावव .... बिषैला हमन आवन कि मनखे ?

             साँप के बात सुनके मनखे भड़कगे । नारेबाजी ... निंदा प्रस्ताव सुरू होगे । अऊ ये चक्कर म साँप के शिकार मनखे मन के रिश्तेदार मन के बयान नइ हो सकिस । कतको छै महीना नहाकगे .... आयोग के कार्यकाल लामते गिस । आखिर म .... जज ह साँप के बयान के अधार म फैसला सुनाये बर रिपोट बनाये धर लिस । रिपोट फाइनल होए के पहिली .... जज हा कोन जनी काकर शिकार होके दुनिया ले चल दिस । नाव फेर साँप के धर दीन । फाइल बंद होगे । सरकार हा साँप उप्पर , अऊ जादा नराज होगे  । धड़ाधड़ मरवाये लागिस ..... साँप मन ल । 

             साँपमन बहुतेच जादा डर्रागे । एक दिन लटपट .... आस्तीन म खुसर के अदालत तिर पहुँच गिस । उहाँ जज ल बतईस – जब ले हमर देश आजाद होये हे तब ले सरकार हमन ल परेशान करत हे , हमर जान के पाछू परे हे । वो समझथे के , उदुपले मनखे मरे म हमरे हाथ हे । अदालत ले प्रार्थना करिन .... जाँच कराये के । अदालत सज्ञान लिस । तब सरकारी वकील बतईस – उदुप ले मरईया , मनखे के मौत के जुम्मेवार , इही साँप मन हरे जज साहेब । मरईया के लहू के रिपोट ल , घला मढ़हा दिस । जज किहिस – तूमन लबारी मारथव रे साँप हो ..... सरी रिपोट तुँहर खिलाफ हे । साँप मन किथे - हमन साँप आवन साहेब  , मनखे नोहन । जनम लबारी नइ मारन । रिहीस बात चाबे के , त हमन अभू कोन्हो ल चाब घला देबो , तभ्भो ले वोहा नइ मरे । हमर बिख ले जादा ताकतवार बिख ला मुहुँ म लुकाये मनखे हा .... ओकरे उपयोग करके हमन ला बदनाम करत हाबे । हमर बिख ला हमन अइसे लुकाके राखे हन के ओला कन्हो नंगाये नइ सकय । जम्मो जाँच ल तुँहर देखरेख म फेर करावव । 

             अदालत के आदेश ले जाँच सुरू होगे .... मरघट्टी ले जुन्ना जुन्ना हाड़ा गोड़ा के खोजा खोज माचगे । कुछ नावा नावा लास घला मिलगे । रिपोर्ट अइस । जम्मो के मरे के तरीका एके रिहिस - तड‌प तड़प के । जम्मो मनखे बिख के असर ले मरे रिहिन । फेर साँप चाबे के निशान कोन्हो करा नइ रिहीस । कुछ के , हाड़ा गोड़ा लहू म अजीब किसीम के गंध रिहीस , कोन्हो म चारा के गंध , कोन्हो म गोला बारूद तोप के गंध , कोन्हो म पेट्रोल के गंध , त कोन्हो म कोइला के गंध , एकर अलावा अऊ कतको प्रकार के बिचित्र बिचित्र गंध आवत रिहीस । जाँच आगू बढ़िस , कुकुर संसद भवन तक पहुँच गिस भूँकत भूँकत । उहाँ एको बिल नइ मिलीस साँप के । फेर कुकुर हा कभू सत्ता पक्ष के खुरसी , त कभू बिपक्ष के खुरसी ला सूँघ सूँघ के भोंके लागिस ।  

            एक दिन जज जान डरिस के – बिख साँप कस बिषैला हे , फेर ऐला बगराने वाला साँप नोहे , बल्कि सभ्य मनखे आए , जे कभू सत्ता पक्ष के खुरसी म , त कभू विपक्ष के खुरसी म , समे समे म बइठथे । अउ मरईया जीव , देश के गरीब , मजदूर , साधारन जनता अउ किसान आए । अपन आप ला बिख ले बँचाये बर फैसला सुना दिस - गलती साँप के आए .... जेन रूख रई के लकड़ी ले संसद के खुरसी बनथे , उहीच म एमन मनखे ल बदनाम करे बर अपन बिख ल लुका देथें , अऊ , एकर सेती जे भी मनखे संसद म बइठथे , तेहा बिषैला हो जथे । सभ्य मनखे माँचगे ..... । फैसला के बिरोध म साँप अपील करिस – हमर बिख करिया धन नोहे जज साहेब , जेला हमन लुका के बिदेसी बैंक कस राखबो , एला हमन अपनेच तिर लुकाके राखथन । दूसर बात , हमन चाबथन तभ्भेच हमर बिख ले मनखे मरथे , जाँच रिपोट म चाबे के कोंन्हो निसान निये । तीसर बात , मरईया मन तड़प तड़प के मरे हे , हमर काटे ले , मरे बर , जादा तड़पे नइ लागे साहेब । अदालत जानत रहय , फेर खुद ला घला बाँचना हे ...... इही बिख ले .... । वहू मन मजबूर हे । मामला जनता के अदालत म घेरी बेरी पहुँच जथे ..... जनता तय नइ कर पावत हे ....... बिषैला कोन ?    

   हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

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