Saturday 20 February 2021

विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी*



 *“विश्व महतारी भाषा दिवस” - अरुण कुमार निगम*

*छत्तीसगढ़ी *


घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध - तइहा के जमाना के हाना आय। अब हमन नँगत हुसियार हो गे हन, गाँव ला छोड़ के शहर आएन, शहर ला छोड़ के महानगर अउ महानगर ला छोड़ के बिदेस मा जा के ठियाँ खोजत हन। जउन मन बिदेस नइ जा सकिन तउन मन विदेसी संस्कृति ला अपनाए बर मरे जात हें। बिदेसी चैनल, बिदेसी अत्तर, बिदेसी पहिनावा, बिदेसी जिनिस अउ बिदेसी तिहार, बिदेसी दिवस वगैरा वगैरा। जउन मन न बिदेस जा पाइन, न बिदेसी झाँसा मा आइन तउन मन ला देहाती के दर्जा मिलगे।


हमन दू ठन दिवस ला जानत रहेन - स्वतंत्रता दिवस अउ गणतन्त्र दिवस। आज वेलेंटाइन दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस, राजभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस अउ न जाने का का दिवस के नाम सुने मा आवत हे। ये सोच के हमू मन झपावत हन कि कोनो हम ला देहाती झन समझे। काबर मनावत हन ? कोन जानी, फेर सबो मनावत हें त हमू मनावत हन। बैनर बना के, फोटू खिंचा के फेसबुक मा डारबो तभे तो सभ्य, पढ़े लिखे अउ प्रगतिशील माने जाबो।


एक पढ़े लिखे संगवारी ला पूछ पारेंव कि विश्व मातृ दिवस का होथे ? एला दुनिया भर मा काबर मनाथें? वो हर कहिस - मोला पूछे त पूछे अउ कोनो मेर झन पूछ्बे, तोला देहाती कहीं। आज हमन ला जागरूक होना हे। जम्मो नवा नवा बात के जानकारी रखना हे। जमाना के संग चलना हे। लम्बा चौड़ा भाषण झाड़ दिस फेर ये नइ बताइस कि विश्व मातृ दिवस काबर मनाथे। फेर सोचेंव कि महूँ अपन नाम पढ़े लिखे मा दर्ज करा लेथंव।

फेसबुक मा कुछु काहीं लिख के डार देथंव। 


भाषा ला जिंदा रखे बर बोलने वाला चाही। खाली किताब अउ ग्रंथ मा छपे ले भाषा जिंदा नइ रहि सके। पथरा मा लिखे कतको लेख मन पुरातत्व विभाग के संग्रहालय मा हें फेर वो भाषा नँदा गेहे। पाली, प्राकृत अउ संस्कृत के कतको ग्रंथ मिल जाहीं फेर यहू भाषा मन आज नँदा गे हें  । माने किताब मा छपे ले भाषा जिन्दा नइ रहि सके, वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही।


भाषा नँदाए के बहुत अकन कारण हो सकथे। नवा पीढ़ी के मनखे अपन पुरखा के भाषा ला छोड़ के दूसर भाषा ला अपनाही तो भाषा नँदा सकथे। रोजी रोटी के चक्कर मा अपन गाँव छोड़ के दूसर प्रदेश जाए ले घलो भाषा के बोलइया मन कम होवत जाथें अउ भाषा नँदा सकथे। बिदेसी आक्रमण के कारण जब बिदेसी के राज होथे तभो भाषा नँदा सकथे। कारण कुछु हो, जब मनखे अपन भाषा के प्रयोग करना छोड़ देथे, भाषा नँदा जाथे। 


छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर घलो खतरा मंडरावत हे। समय रहत ले अगर नइ चेतबो त छत्तीसगढ़ी भाषा घलो नँदा सकथे। छत्तीसगढ़ी भाषा के बोलने वाला मन छत्तीसगढ़ मा हें, खास कर के गाँव वाले मन एला जिंदा रखिन हें। शहर मा हिन्दी अउ अंग्रेजी के बोलबाला हे। शहर मा लोगन छत्तीसगढ़ी बोले बर झिझकथें कि कोनो कहूँ देहाती झन बोल दे। छत्तीसगढ़ी के संग देहाती के ठप्पा काबर लगे हे ? कोन ह लगाइस ? आने भाषा बोलइया मन तो छत्तीसगढ़ी भाषा ला नइ समझें, ओमन का ठप्पा लगाहीं ? कहूँ न कहूँ ये ठप्पा लगाए बर हमीं मन जिम्मेदार हवन। 


हम अपन महतारी भाषा गोठियाए मा गरब नइ करन। हमर छाती नइ फूलय। अपन भीतर हीनता ला पाल डारे हन। जब भाषा के अस्मिता के बात आथे तब तुरंत दूसर ला दोष दे देथन। सरकार के जवाबदारी बता के बुचक जाथन। सरकार ह काय करही ? ज्यादा से ज्यादा स्कूल के पाठ्यक्रम मा छत्तीसगढ़ी लागू कर दिही। छत्तीसगढ़ी लइका मन के किताब मा आ जाही। मानकीकरण करा दिही। का अतके उदिम ले छत्तीसगढ़ी अमर हो जाही?


मँय पहिलिच बता चुके हँव कि किताब मा छपे ले कोनो भाषा जिंदा नइ रहि सके, भाषा ला जिन्दा रखे बर वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही। किताब के भाषा, ज्ञान बढ़ा सकथे, जानकारी दे सकथे, आनंद दे सकथे फेर भाषा ला जिन्दा नइ रख सके। मनखे मरे के बादे मुर्दा नइ होवय, जीयत जागत मा घलो मुर्दा बन जाथे। जेकर छाती मा अपन देश बर गौरव नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन गाँव के गरब नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन समाज बर सम्मान नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन भाषा बर मया नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर स्वाभिमान मर गेहे, तउन मनखे मुर्दा आय। 

जउन मन अपन छत्तीसगढ़िया होए के गरब करथें, छत्तीसगढ़ी मा गोठियाए मा हीनता महसूस नइ करें तउने मन एला जिन्दा रख पाहीं। 


अइसनो बात नइये कि सरकार के कोनो जवाबदारी नइये। सरकार ला चाही कि छत्तीसगढ़ी ला अपन कामकाज के भाषा बनाए। स्कूली पाठ्यक्रम मा एक भाषा के रूप मा छत्तीसगढ़ी ला अनिवार्य करे। अइसन करे ले छत्तीसगढ़ी बर एक वातावरण तैयार होही। शहर मा घलो हीनता के भाव खतम होही। छत्तीसगढ़ी ला रोजगार मूलक बनावय। रोजगार बर पलायन, भाषा के नँदाए के एक बहुत बड़े कारण आय। इहाँ के प्रतिभा ला इहें रोजगार मिल जाही तो वो दूसर देश या प्रदेश काबर जाही? छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार, लोक कलाकार ला उचित सम्मान देवय, उनकर आर्थिक विकास बर सार्थक योजना बनावय।


छत्तीसगढ़ी भाव-सम्प्रेषण बर बहुत सम्पन्न भाषा आय। हमन ला एला सँवारना चाही। अनगढ़ता, अस्मिता के पहचान नइ होवय। भाषा के रूप अलग-अलग होथे। बोलचाल के भाषा के रूप अलग होथे, सरकारी कामकाज के भाषा के रूप अलग होथे अउ साहित्य के भाषा के रूप अलग होथे। बोलचाल बर अउ साहित्यिक सिरजन बर मानकीकरण के जरूरत नइ पड़य, इहाँ भाषा स्वतंत्र रहिथे फेर सरकारी कामकाज बर भाषा के मानकीकरण अनिवार्य होथे। मानकीकरण के काम बर घलो ज्यादा विद्वता के जरूरत नइये, भाषा के जमीनी कार्यकर्ता, साहित्यकार मन घलो मानकीकरण करे बर सक्षम हें।


छत्तीसगढ़ मा अब छत्तीसगढ़िया सरकार आए ले हमर उम्मीद घलो बाढ़ गेहे। हमर उम्मीद नवा सरकार ले ज्यादा रही। सरकार छत्तीसगढ़ी बर जो कुछ भी करही वो एक सहयोग रही लेकिन छत्तीसगढ़ी ला समृद्ध करे के अउ जिन्दा रखे के जवाबदारी असली मा छत्तीसगढ़िया मन के रही। यहू ला झन भुलावव कि जब भाषा मरथे तब भाषा के संगेसंग संस्कृति घलो मर जाथे।


“स्वाभिमान जगावव, छत्तीसगढ़ी मा गोठियावव”


*लेखक - अरुण कुमार निगम*

🙏    🙏    🙏    🙏    🙏

Sunday 14 February 2021

सुरता-सुशील भोले


 सुरता

छत्तीसगढ़ी सांचा म पगे साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा

   छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार म जेकर मन के नांव आगू के डांड़ म गिने जाथे, वोमा टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा के नांव अगुवा के रूप म चिन्हारी करे जाथे. उंकर नाटककार के रूप म सबले जादा चिन्हारी हे, काबर ते उन हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म सैकड़ों नाटक लिखिन. फेर कविता, कहानी, व्यंग्य लेखन म घलो उंकर वतकेच योगदान हे, जतका नाटक विधा म हे. 

   एकर मन के छोड़े एक अइसे लेखन के मैं विशेष रूप ले इहाँ चर्चा करना चाहथंव, जेकर कोनो साहित्यिक चर्चा म उल्लेख नइ करे जावय. वो आय, एक हिन्दी के दैनिक अखबार म छत्तीसगढ़ी म सरलग कतकों बछर ले संपादकीय लिखना. 

   1 नवंबर सन् 2000 के जेन दिन अलग छत्तीसगढ़ राज के घोषणा होइस, उहिच दिन ले उन दैनिक अग्रदूत म छत्तीसगढ़ी म संपादकीय लिखे के चालू कर देइन. वो बखत अग्रदूत प्रेस म संपादकीय लिखे के बुता ल उही मन करत रिहिन हें. उन रोज दू संपादकीय लिखंय, एक राष्ट्रीय स्तर के मुद्दा ऊपर जेला उन हिन्दी म लिखंय, अउ एक क्षेत्रीय स्तर के मुद्दा म जेला उन छत्तीसगढ़ी म लिखंय. अइसन ऐतिहासिक बुता आज तक अउ कोनो आने साहित्यकार मन अभी तक नइ कर पाए हें.

     1 फरवरी सन् 1926 म दुरुग जिला के गाँव लिमतरा के शिक्षक पिता श्यामलाल जी के घर जन्मे टिकेन्द्रनाथ जी लइकई च ले पढ़ाकू अउ होशियार रहिन. उन पहिली खाद्य विभाग म सरकारी अधिकारी रिहिन. फेर वोला छोड़के लेखन (पत्रकारिता) ल अपन रोजगार के माध्यम बना लेइन. इही नवा रोजगार के ठीहा म मोर भेंट उंकर संग होइस दैनिक अग्रदूत प्रेस म. नवा नवा मैं अग्रदूत म सन् 1982 के आखिर म  काम करे (सीखे खातिर कहना जादा ठीक रइही) गे राहंव, वो बखत अग्रदूत ह साप्ताहिक निकलय, दू-चार महीना के पाछू सन 1983 म वो ह दैनिक होइस. तब महूं अलवा जलवा दू चार लाईन लिखे के उदिम करत रहंव अउ उहाँ के साहित्यिक संपादक, जेन अंचल के प्रसिद्ध व्यंग्यकार घलोक रिहिन आदरणीय विनोद शंकर शुक्ल जी, उनला देखावंव. उन वोमा कुछ जोड़ सुधार के छाप देवंय. मैं गदगद हो जावंव. 

  विनोद शंकर शुक्ल जी अउ मैं अग्रदूत प्रेस के ऊपर मंजिल म बइठन, तेकर सेती टिकरिहा जी संग मोर खास पहचान नइ हो पाए रिहिसे. काबर ते वोमन नीचे के कमरा म बइठंय. तब उहाँ संपादकीय आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी लिखंय. उन मोर साहित्यिक अभिरुचि ल देख के भारी मया करंय. एक दिन त्रिवेदी जी के कुरिया म बइठे रेहेंव, तभे खादी के झक कुरता पैजामा पहिर पातर देंह के सियान उहाँ आइन अउ त्रिवेदी जी ल अपन लिखे कागज ल देखाइन. त्रिवेदी जी वोमन ल कुर्सी म बइठे बर कहिन. अउ मोर डहर देख के पूछिन, तैं एमन ल जानथस का? त्रिवेदी जी मोर संग छत्तीसगढ़ी म गोठियाए के कोशिश करंय. तब तक मैं सिरतोन म टिकरिहा जी संग विशेष परिचित नइ होए रेहेंव. तब त्रिवेदी जी बताइन के ये छत्तीसगढ़ी के बड़का साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी आंय. मैं जोहार पैलगी करेंव. 

   बाद म तो तहाँ ले रोज जोहार पैलगी होवय. फेर नीचे के कमरा म बइठंय तेकर सेती जादा गोठ बात नइ हो पावय. कुछ दिन के बाद अग्रदूत के भोपाल संस्करण चालू होइस, अउ आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी ल संपादक बना के भोपाल भेज दिए गइस, तेकर बाद फेर संपादकीय लिखे के जवाबदारी टिकरिहा जी के ऊपर आगे, तब टिकरिहा जी के ऊपर के संंपादकीय कमरा म अवई बाढ़गे, अउ एकरे संग मोरो उंकर संग मेल जोल अउ गोठ बात बाढ़गे. हमन एके समाज के होए के सेती घर परिवार गाँव गंवई के घलो गोठ करे लगेन. उंकर हांडीपारा वाले घर आना जाना करे लगेंव, उहू मन मोर संजय नगर वाले घर पधारिन. इही बीच उन मोला छत्तीसगढ़ी म लेखन करे खातिर प्रेरित करे लागिन. तब मैं हिन्दी म ही अलवा जलवा लिखत रेहेंव. उन बताइन के उहू मन पहिली हिन्दी म ही जादा लिखंय. बाद म डा. खूबचंद बघेल के प्रेरणा ले छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखे के चालू करिन. उन बतावंय के डा. खूबचंद बघेल उंकर हांडीपारा वाले घर म आवंय, अउ उंकर सियान संग बइठ के छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के संबंध म गोठ बात करंय. मैं वोमन ल ध्यान लगाके सुनंव. रायपुर के तात्यापारा वाले कुर्मी बोर्डिंग वो बखत स्वाधीनता आन्दोलन अउ वोकर बाद छत्तीसगढ़ राज आन्दोलनकारी मन के एक प्रकार के ठीहा रिहिस, जिहां सब जुरियावंय अउ आन्दोलन ल कइसे गति दिए जाय, एकर ऊपर चर्चा करंय.

  टिकरिहा जी बतावंय के उहू मन एकर मन के चर्चा म शामिल होवय. उंकर घर उहिच तीर हे, तेकर सेती आए जाए म सोहलियत परय. वोकरे मन के संगत के सेती मोर छत्तीसगढ़ी म छोटे छोटे नाटक लिखे के चलन बाढ़िस, अइसे बतावंय. छत्तीसगढ़ के दुख पीरा, समस्या, समाजिक असमानता जम्मो डहर कलम रेंगे लागिस.

   मोला उन साप्ताहिक अग्रदूत के जुन्ना फाइल मन ल घलो देखावंय. वोमा के हर अंक म टिकरिहा जी के कहानी, नाटक, व्यंग्य या कविता आदि कुछू न कुछू जरूर छपे राहय, अइसे एको अंक नइ राहय, जेमा टिकरिहा जी के रचना नइ राहत रिहिस होही. वोमन एक छत्तीसगढ़ी फिल्म 'मयारु भौजी' म कथा, पटकथा अउ संवाद लेखन घलो करे रिहिन.

    टिकरिहा जी भारी संकोची स्वभाव के घलो रिहिन. उन लिखंय पढ़य तो अबड़, फेर कोनो कार्यक्रम म खासकर के मंच म जवई ल भावत नइ रिहिन. महूं ल कई बखत काहय- गोष्ठी फोष्ठी म झन जाए कर समय के बर्बादी भर आय कहिके. हाँ उन आकाशवाणी जरूर जावंय. उहाँ ले उंकर कहानी अउ नाटक बहुत प्रसारित होवय. वोकर मन के कहे म महूं एक पइत अपन तीन चार छत्तीसगढ़ी कविता ल लिफाफा म भर के आकाशवाणी भेज देंव. थोरके दिन म उहाँ ले मोर जगा चिट्ठी आगे, के फलाना दिन तोर कविता के प्रसारण होही अतका बजे तैं आकाशवाणी पहुँच जाबे कहिके.

   वो बखत आकाशवाणी रायपुर के रतिहा प्रसारित होवइया चौपाल कार्यक्रम म छत्तीसगढ़ी कविता, कहानी आदि के प्रसारण घलो होवय. उहाँ बरसाती भैया (केशरी प्रसाद वाजपेयी जी), गुमान सिंह जी आदि चौपाल के उद्घोषक अउ प्रस्तुतकर्ता रहिन. मोला प्रसारण कमरा म उन अपन संग लेगिन. कार्यक्रम चालू होइस. बीच म मोला कविता पाठ खातिर आमंत्रित करिन. तब कार्यक्रम के सीधा प्रसारण होवय. तुमन बोलत जावव, अउ वोती प्रसारित होवत जाही. अब  तो पहिली ले  रिकार्डिंग कर लेथें, तेकर बाद फेर पाछू प्रसारित करथें.

   टिकरिहा जी ककरो कार्यक्रम म भले नइ जावत रिहिन हें, फेर मोर दू बड़का कार्यक्रम म उन जरूर गेइन. पहिली बार मोर द्वारा प्रकाशित संपादित छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन जेकर 9 दिसंबर 1987 के कुर्मी बोर्डिंग रायपुर म विमोचन होए रिहिसे. अउ दूसर मोर पहिली आडियो कैसेट 'लहर' के विमोचन जेन कुर्मी समाज के महाधिवेशन जेन पाटन क्षेत्र म होए रिहिसे उहाँ. वइसे उंकर घर ले दू कदम के दुरिहा म छत्तीसगढ़ी समाज कार्यालय म घलो हमर मन के साहित्यिक बइठकी, जेन साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी के संयोजन म होवय, तेनो म संघर जावंय, फेर उन सिरिफ श्रोता के भूमिका म रहंय.

   टिकरिहा जी वइसे तो छोटे बड़े सैकड़ा भर के पुरती नाटक लिखिन, वोमा दू चार बड़का नाटक घलो रिहिस. हमन उंकर एक बड़का नाटक 'गंवइहा' के मंचन रायपुर के रंगमंदिर म 1 जनवरी 1991 म करे रेहेन. पूरा तीन घंटा के प्ले रिहिसे. एला लोगन के भारी तारीफ मिलिस, त पाछू फेर भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा आयोजित लोक कला महोत्सव म घलो प्रस्तुत करे रेहेन. 

   गंवइहा नाटक के निर्देशन ल राधेश्याम बघेल अउ राकेश चंद्रवंशी करे रिहिन, एकर मुख्य संयोजक रिहिस पूरन सिंह बैस जी. ए नाटक के जम्मो गीत मनला मैं लिखे रेहेंव, जेला बोरिया गाँव के कलाकार संगवारी गोविन्द धनगर, जगतराम यादव, खुमान साव आदि मन के संग मिलके संगीत बद्ध घलो करे रेहेन. एकर मुख्य पात्र म राधेश्याम बघेल, विष्णु बघेल, पूरन सिंह बैस, हरिश सिंह, संदीप परगनिहा, इंद्रकुमार चंद्रवंशी, अमित बघेल, राकेश वर्मा,   मंजू, अंजू टिकरिहा, चंद्रकांता टिकरिहा, रमादत्त जोशी, टाकेश्वरी परगनिहा, साधना महावादी आदि बहुत झन कलाकार साथी रिहिन. ' गंवइहा' के रंगमंदिर म मंचन के पाछू इही मंच म आदरणीय टिकरिहा जी के आयोजन समिति डहार ले सम्मान करे गिस. मोर सौभाग्य आय के उंकर स्वागत थारी ल धरे के मुही ल अवसर मिलिस.

   7 अक्टूबर सन् 2004 के दिन ल मैं अपन जिनगी म कभू नइ भुलावंव. तब मैं प्रेस के काम ल छोड़ के अपन खुद के रिकार्डिंग स्टूडियो चलावत राहंव. दिन भर इहें बइठंव, काबर ते चारों मुड़ा के कलाकार अउ साहित्यकार मन इहें मोर जगा आ जावंय, त मोला ककरो संग भेंट करे बर कहूँ जाए के जरूरते नइ परय. फेर वो दिन जाने कइसे मोला अपन स्टूडियो म बइठे के मने नइ होइस. तेकर सेती मैं उठाएंव गाड़ी अउ शहर कोती रेंग देंव. अचानक  अग्रदूत प्रेस जाए के मन होइस, गुनेंव अबड़ दिन होगे हे, वोती गे, चलो जुन्ना संगवारी मन संग भेंट कर लिया जाए.

   मैं सीधा अग्रदूत प्रेस जेन वो बखत मालवीय रोड म रिहिस उहाँ चल दिएंव. अंदर घुसरेंव त उहाँ के केशियर वर्मा जी तीर ठाढ़ हो गेंव. तब उन बताइन के टिकरिहा जी तो अब हमर बीच म नइ रिहिन. मैं कइसे गोठ करथव वर्मा जी कहेंव, त उन बताइन, अभी मुकेश के फोन आए रिहिसे. मुकेश, टिकरिहा जी के छोटे मंझला बेटा आय, वो बखत उहू ह अग्रदूत प्रेस म काम करत राहय. 

 वर्मा जी मोला कहिस के मैं मुकेश ल बोल दे हंव अंतिम संस्कार के पूरा व्यवस्था प्रेस डहार ले होही, तुमन कुछू लेहू झन कहिके.  वर्मा जी (तब वोमन घलो मोला वर्मा जी ही काहंय) तुमन बांस टाल जावव न उहाँ अंतिम संस्कार के जम्मो समान मिल जाथे, वोला ले के रिक्शा म जोर के हांडीपारा उंकर घर अमरा देवव. 

   मैं वर्मा जी के प्रेस डहार ले दे पइसा ल धरेंव अउ बांस टाल चल देंव. वोती वर्मा जी ह मुकेश ल बता दे राहय के सुशील वर्मा (भोले) ह अंतिम संस्कार के सब समान लेके आवत हे, तुमन बाकी सब तैयारी ल कर के राखव. मैं सब समान ल धर के हांडीपारा वाला घर  पहुंचेंव तब तक जम्मो नता रिश्ता अउ शहर के जम्मो पत्रकार साहित्यकार मन उहाँ पहुँचगे राहंय. तहाँ उनला अंतिम बिदागरी दे के काम चालू होगे.

   ए कइसे अजीब संयोग आय के जे आदरणीय टिकरिहा जी मोला छत्तीसगढ़ी लेखन खातिर रद्दा बताइन, उंकरे अंतिम बिदागरी के समान ल मैं अपन हाथ ले लेके गेंव. उंकर सुरता ल सादर नमन.. दंडासरन पैलगी.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

पुरखा साहित्यकार के सुरता*-अरुण कुमार निगम*


 

*पुरखा साहित्यकार के सुरता*-अरुण कुमार निगम*


 *श्री रघुवीर अग्रवाल "पथिक"* 


पथिक जी के जनम जन्म 4 अगस्त 1937 के ग्राम मोहबट्टा मा होइस। इनकर पिताजी के नाम नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, माता जी के नाम अरुंधति देवी अग्रवाल अउ धर्मपत्नी के नाम निरूपण अग्रवाल हे।

 पथिक जी हिंदी और अर्थशास्त्र मा एम. ए. करे रहिन। उन मन  "साहित्य रत्न" के परीक्षा घलो पास करे रहिन। 

बी.एड. करे के बाद दुर्ग अउ विद्यालय मा अध्यापन के कार्य करिन। अगस्त 1995 मा बीएसपी कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला सेक्टर 2 भिलाई ले वरिष्ठ उप प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त होए रहिन। पथिक जी 15 फरवरी 2020 के हम सब ला छोड़ के ब्रह्मलीन होगिन।


पथिक जी सन 1956 ले लेखन प्रारंभ करे रहिन। अनेक कविसम्मेलन के मंच मा आप काव्य पाठ करे रहेव। दूरदर्शन अउ आकाशवाणी ले अनेक कविता प्रसारित होए रहिन। राष्ट्रीय प्रादेशिक अउ क्षेत्रीय पत्र-पत्रिका मन मा आपके रचना प्रकाशित होवत रहिन। कई काव्य संग्रह में रचनाएं संग्रहित।


पथिक जी के पहिली हिन्दी काव्य संग्रह "जले रक्त से दीप" 1970 मा प्रकाशित होए रहिस।  छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "उजियारा बगरावत चल" 2004 अउ 2009 मा प्रकाशित होइस। "काव्य यात्रा के 50 वर्ष" नाम के समीक्षात्मक पुस्तक 2011 मा प्रकाशित होइस। तेकर बाद "आही नवा अंजोर" नाम के  छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह 2015 मा प्रकाशित होइस। 


उत्कृष्ट लेखन बर पथिक जी ला अनेक संस्था मन सम्मानित करे रहिन। जइसे - 

प्रयास प्रकाशन एवं जिला छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति बिलासपुर द्वारा साहित्य सम्मान 2004 

अधिक सम्मान छत्तीसगढ़ लेखक संघ रायपुर 2008 

नारायण लाल परमार सम्मान धमतरी द्वारा प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर 2010 छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग द्वारा जगदलपुर में साहित्य सम्मान 2010 दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति दुर्ग द्वारा आदर्श शिक्षक सम्मान 1999 एवं हिंदी दिवस पर शब्द साधक सम्मान 2001 सामुदायिक विकास विभाग भिलाई स्टील प्लांट भिलाई द्वारा साहित्य सम्मान 2002 स्टेट बैंक आफ इंडिया मुख्य शाखा दुर्ग द्वारा राजहरा सम्मान 2002 गायत्री प्रज्ञा पीठ आश्रम पुलगांव दुर्ग द्वारा प्रज्ञा प्रतिभा सम्मान 2010 गांधी विचार यात्रा के अंतर्गत ग्राम पारा में साहित्यिक सम्मान 2002 निवास शिक्षक नगर चिन्हारी सम्मान छत्तीसगढ़ साहित्य समिति दुर्ग द्वारा 2012 हीरालाल का उपाध्याय सम्मान रायपुर में सितंबर 2012


रघुवीर अग्रवाल "पथिक" जी के हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। उँकर हिन्दी काव्य-संग्रह के कुछ पंक्ति मा उँकर शैली अउ श्रेष्ठता के सुग्घर परिचय मिल जाथे -   


जलें रक्त से दीप उठे ,बलिदानों की आरती।

उठो जवानो आज देश की धरती तुम्हें पुकारती ।।

(कविता - जलें रक्त से दीप के अंश)

 

हर सुबह यही लिखता सूरज का उजियारा 

संदेश सुनाता यही रात को हर तारा।

भारत का है कश्मीर सिर्फ भारत का है

लो घूम घूमकर पवन लगाता है नारा।

(कविता - अंगार उगलने लगी सुबह की लाली भी, के अंश) 


नौजवानों फिर हमें दी है चुनौती दुश्मनों ने 

फिर दिखा देंगे उन्हें क्या शौर्य है तूफान का 

मर मिटेंगे पर न देंगे हम कभी कश्मीर उनको 

जान ले संसार ही संकल्प हिंदुस्तान का 

(कविता - संकल्प हिंदुस्तान का, के अंश) 


*मुक्तक*


पसीने से लिखो साथी नए युग की कहानी 

दफन कर दो क्षमता की सभी बातें पुरानी 

हमारा देश मांगे रक्त या श्रम हम उसे देंगे 

बढ़ो आगे कहीं कल तक न ढल जाए जवानी ।।


*मुक्तक*


क्या पार हमारे भारत से टकराएगा 

क्या अंधकार सूरज से आँख मिलाएगा 

पाकिस्तानी शासन की अर्थी पर बैठे 

भुट्टो साहब क्या ढोलक रोज बजाएगा।।


रघुवीर अग्रवाल "पथिक" जी चार डाँड़ के मुक्तक असन कविता खूब करंय। उनकर पड़ोस मा कोदूराम "दलित" जी के निवास रहिस। दलित जी उँकर चार डाँड़ के कविता ला "चारगोड़िया" नाम दे रहिन। पथिक जी ला छत्तीसगढ़ी-चारगोड़िया के प्रवर्तक माने जाथे। छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "उजियारा बगरावत चल" ले एक चरगोड़िया - 


*छत्तीसगढ़ी चारगोड़िया*


एक जन्म के नाता ला तुम टोरौ झन

सुनता के सुग्घर बँधना ला छोरो झन

बसे बसाई अपन देसला फोरो झन

बिख महुरा अलगाववाद के घोरव झन।


*छत्तीसगढ़ी दोहा* - 


राजनीति ल देख लौ, आजादी के बाद

संसद म टूटत हवै, संसद के मरयाद।।


ये मंदिर कानून के, बनिस अखाड़ा आज

मल्ल युद्ध नेता करें, देखे सकल समाज।।


हंगामा के होत हे, संसद म बरसात

धक्का मुक्की तो उहाँ, हे मामूली बात


*छत्तीसगढ़ी गजल*


गाँव सो कर मया दुलार संगी

गाँव चल देख खेतखार संगी।

देख आमा बगइचा के शोभा

धान के खेत कोठार संगी।। 

तैं गरीबी अउ अशिक्षा ला

देखबे गांव म हमार संगी।


*छत्तीसगढ़ी कविता*


कुर्सी फेंक, माइक टोर

अउ ककरो मूड़ी ल फोर

राजनीति म रोटी सेंक

पद अउ पइसा दुनों बटोर।

अतको म नइ काम बनय तौ

कालिख पोत दाँत निपोर

इही असीम ले हमर देश मा

जल्दी आही नवा अँजोर।


 आज पहिली पुण्यतिथि मा  आदरणीय रघुवीर अग्रवाल "पथिक" जी ला छत्तीसगढ़ी लोकक्षर परिवार के श्रद्धांजलि


*आलेख - अरुण कुमार निगम*

Saturday 13 February 2021

कहिनी : बिसाहिन दाई*-पोखनलाल जायसवाल

 *कहिनी : बिसाहिन दाई*-पोखनलाल जायसवाल

         रायपुर के रक्सेल मुड़ा म तरिया पार म बसे एक ठन गाँव हे। आमा अउ पीपर के जुड़ छाँव तरी घाम पियास नि जियानय। नाहर के पझरा ले निकले नरवा गाँव बर बरदान बने हे। नाहर भरोसा ए गाँव कभू अकाल दुकाल नि जानिस। खेती किसानी सबो मन लगा करथे। मनखे मन बिहनिया बेरा सुत उठ के तरियाच म मुँह धोवत राम-राम करथे। तरिया पार म बसे ले काकर घर पहुना आवत हे, अउ कोन बन-ठन के बाहिर जावत हे, एकर घर मुँहाटी चउँरा म बइठे सोर मिल जथे। ए गाँव म लटपट डेढ़ सौ चूल्हा होही। जिहाँ मनखे मन म कोनो परकार के भेद भाव नइ हे। राजनीति के नाँव ले घलो अभी बँटे नइ हे। पंचइत चुनाव निर्विरोध हो जथे। लोकसभा अउ विधानसभा के चुनाव म सियान मन नवा अउ उत्साही लइका मन सिखौना देवत कहिथें - " ए नेता मन चुनाव के होवत ले आपस म लड़थे, इँखर लड़ई देखउटी आय। नेता मन ल हाथी के दाँत जानौ, खाय के आने अउ दिखाय के आने। हमन ल इँखर चाल म नइ फँसना हे। हम ल ए पार्टी ओ पार्टी के चक्कर म नइ पड़ना हे।" 

     कोनो अउ कहिथें - " हम ल आपस म बँटना घलो नइ हे। हमर कोनहो सुख अउ दुख के बेरा म कोनो बाहिर वाला आके खड़ा नइ होवय। हमीं मन एक-दूसर के दुख ल बाँटबो अउ सुख म अँगना नाचबो घलव। चुनाव जीते ऊपर ले नेता मन मुँहूँ दिखाय तको नइ आवै। दर्शन दुर्लभ हो जथे। चिह्नै घलव नइ। अपन वोट कोनो ल देवव, फेर गाँव ल मया परेम के छाँव अउ ठाँव बने गाँव रहन देहू। राजनीति के अखाड़ा झन बनन देहू।" 

       गाँव म सियान मन के बड़ मान हवय। नवा पीढ़ी के लइका मन घलो उँखर गोठ ल धियान देके सुनथें अउ मानथें घलो। गाँव म बड़ सुमता देखे मिलथे। दुखिया मन ल गम नइ मिले, कइसे दुख के काम निकल जथे। काकरो बेटी के बिदा होय, गाँव भर मिलके पहुना के पाँव पखारथें, दू बीजा चाउँर टीकके बेटी बिदा करथें।

        गाँव म नोनी-बाबू म फरक करइया घलो देखे ल नइ मिलय। अतका जरूर हे, नोनी मन ल कहिथे बताथे, तुमन सादा कपड़ा सरीख आव। अपन ऊपर कोनो दाग लगन झन देहू। बहुत अकन लोकलाज अपने हाथ म रहिथे। बचा के राखहू त दाई-ददा संग गाँव के मान मर्यादा बाँचे रही। बाबू मन ल नशा-पानी ले बाँचे के सीख देथे। उन ल बताय जाथे कि नशा नाश के जर होथे। नशा घर दुआर म कलहा के बीजा बोथे। एकर ले बाँचे म ही जिनगी म सुखेच सुख हवय, एला जान लेवव। ए तरह ले घरोघर नैतिक शिक्षा दे जाथे। इही बात मन रहिस जउन गाँव ल सुमता के गाँव के चिन्हारी दे राहय।

       बिन नारी परानी के दुकलहा घर एकसरविन बहू के पीरा उठ गे रहिस। पहिली पहिलावत रहिस। बहू बिचारी पीरा मं तालाबेली करत राहँय। बिसाहिन दाई ह आने गाँव गे रहिन, तेन अभीच अपन घर पहुँचे राहँय। उही बिसाहिन दाई जेन ल गाँव भर जचकी बखत बुलाय जाथे। दुकलहा के बेटा पइत घलो इही बिसाहिन दाई ह आय रहिस हे। जचकी के दिन ले सरलग कई-कई दिन तक बिसाहिन दाई सेवा बजाथे। सँझा-बिहनिया दूनो बेरा लइका अउ महतारी के सेवा करथे। कोनो ल बिसाहिन दाई ले कभू कोनो शिकायत नइ होइस। बिसाहिन दाई घलो सबो घर हरहिंछा आवय-जावय। ओकरो मन कभू छोट नइ होइस। बरोबर गोरस नइ आय ले महतारी बर जड़ी-बूटी घलो देवय। कतको झन ल एकर फायदा मिले हवय। तभे तो अड़ताफ भर ले आय दिन कोनो न कोनो ओकर घर आत्ते रहिथे। सरपंची बर महिला आरक्षण आय रहे म गाँव भर के मन निर्बिरोध सरपंच बनाना चाहीन, फेर बिसाहिन दाई कहिन " मैं अप्पड़ का सरपंची करहूँ, मोला इही म मजा आवत हे, जचकी करावत मोला सेवा करन दव।" 

         अभी घर म पाँव बरोबर माढ़े नइ पाय रहिस, बहू के देह उसलगे सुनके बिसाहिन दाई उत्ता-धुर्रा दुकलहा घर पहुँच गिस। बहू नोनी ल देखतेच खानी कहिथे, देखे के बेरा नइ हे। एला जतका जल्दी होय अस्पताल लेगे बर परही। लइका ह थोरकुन उलट गे हे कस जनावत हे। जचकी के बेरा आ घलव गे हे। धरा-पसरा गाड़ी मँगाके, बिना कोनो देरी के बहू ल तिर के सरकारी अस्पताल लेगे गिस। बहू मुँधरहा के उठे पीरा ले लरघिया गे रहिस। महतारी अउ सास के मया ल तरसत बपुरी ह अपन गोठ काखर मेर कहितिस। ताकत नइ लगा पात रहिस बपुरी ह। अस्पताल के डॉक्टरिन मैडम जाँच करे के पाछू तुरते ऑपरेशन करके जच्चा अउ बच्चा ल बचालिस। ऑपरेशन के बाद मैडम बोलिस - "अच्छा हुआ समय रहते यहाँ पहुँच गये, वरना थोड़ी देरी होती तो जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा हो सकता था। फिलहाल दोनों स्वस्थ हैं।" 

        दुकलहा अतका सुनके बिसाहिन दाई अउ भगवान ल बार बार धन्यवाद दे लगिस। बिसाहिन दाई ल कहिस, "भउजी! तोरे रहिते आज मैं ह अपन बहू अउ नाती के मुख ल देख पात हँव।"

    बिसाहिन दाई कहिस, "नहीं बाबू! मोर तो कामेच आय सेवा। मैं  जचकी दाई हरँव, जच्चा अउ बच्चा बर सोचना मोर काम हरे। दूनो ल कोनो नुकसान झन होवै। इही तो मैं चाहथँव। मोला लागिस कि घर म रहना खतरा हे, मोर बस के बात नइ हे, ते पाय के इहाँ लाने बर कहेंव।"

      सिरतोन भउजी! तोर हाथ म जस हवय। आज तक तोर राहत ले गाँव ह कभू कोनो धोखा नी खाय हे। तोर रहिते गाँव के बहू-बेटी मन कोनो तकलीफ नइ पाय हे। 

        बाबू गोठियातेच रहिबे धन हमर देरानी के स्वागत म फटाका फोरबे। तोर घर म लछमी ह लहुट के आय हे। 

            मैं फटाका भर नि फोरँव भउजी!  मिठई घलो बँटवाहूँ, मोर लछमी के स्वागत मं। सही मं मोर लछमी मोर तीर लहुट के आय हे, काहत दुकलहा के आँखी भर जथे। दुकलहा समझ नि पाय ए आँसू का के हरे?

        

      पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.

व्यंग्य -मथुरा प्रसाद वर्मा गुरुजी

 व्यंग्य -मथुरा प्रसाद वर्मा

गुरुजी


एक जगा दु झन गुरुजी मन गोठियावत रहय। गोठियातीन का?  अपन दुखड़ा रोवत रहय। कोरोना काल म बंद परे स्कूल अउ लइका मन के गिरत  शिक्षा स्तर ऊपर चर्चा होवत रहय। एक झन लइका ओती ले नाहकिस त " नमस्ते सर!  कहिस। फेर का हे चर्चा के विषय बदलेगे। गुरु जी राम राम!  जय हिंद गुरुजी! सुन के जे आनन्द आथे नमस्ते सर ! गुड़ मार्निग सर! म वो आनन्द कहाँ। 

   सुन के महुँ सोच म परगेव । गुरु के महिमा के बखान वेद पुरान म तको पढ़े-सुने बर मिलथे । तुलसी, सुर, कबीर जइसे बड़े बड़े कवि मन घलो बढ़चढ़ के गुरु महिमा के गुणगान करे हे। सुन सुन के मन गदगद हो जाथे। फेर आज के दौर म न अइसन गुरु मिलथे न चेला। आज कल तो गुरुजी मन के ऊपर किसम किस्म के चुटकिला घलो चलथे । मीडिया, पत्रकार अधिकारी सब इखरे पाछु लगे हे तइसे लागथे। अउ तो अउ  अनपढ़ नेता कहूँ पंच/सरपंच बन गे त ओहू  मन गुरुजी ल देख के अटियथे। कहूँ राम राम कहे बर भुलाइस तहाँन उखर ऐड़ी के रिस  तरुवा म चघ जथे। पहुंच जथे स्कूल। शुरू हो जथे जाँच पड़ताल। पहिली जाँच होथे मध्यान्ह भोजन के। ओखर बाद शौचालय अउ पानी के जाँच। ओमा कुछु नइ मिलिस तब लइका मन ले पाहड़ा , वर्णमाला, अंग्रेजी के इस्पेलिंग। कक्षा म कोनो लइका कमजोर मिलिस कि गुरुजी मन के खैर नहीं। कोनो भी ऐरे गैर नत्थू खेरे गुरुजी के पुरखा सुरता कराए म पाछु नइ रहय। बिचारा गुरुजी करय त करय का?/ काकर काकर जवाब देवय। अउ जब ले तनखा बढे हे तब ले गुरुजी लोगन के नजर म काँटा सही खटखट रहिथे। सब ल लगथे गुरुजी मन फोकट के तनखा लेवत हे। बइठे बइठे दिन पहावत हे। अउ तो अउ गुरुजी मन के हाथ के मोबाइल अउ फटफटी तो लोगन ल फूटे आँखी नइ सुहाय। कुल मिला के सबके कोप भाजन के अधिकारी इही मन हरय। 

    अइसे नइ हे कि गुरुजी मन के एमा कोनो दोष नइ हे। उखर मान सम्मान म आये कमी के लिए वो मन घलो ओतके  जिम्मेदार हे जातक समाज अउ सरकार। आज कल किसम किसम के गुरुजी हो गे हवय । जइसे जेखर करम तइसे तइसे मान गुन होवत रहिथे। मँय सोचथंव गुरुजी मन के घलो क्लासिफिकेशन होना चाही। अपन बुद्धि म जोर डारेंव त कई प्रकार के गुरुजी नजर आइन , कहूँ लोकल बाड़ी माने शिक्षाकर्मी ले बने गुरुजी। त कहूँ स्पेशल बाड़ी वाला जुन्ना गुरुजी। कहूँ ठेका गुरुजी माने संविदा शिक्षक । ये सब तो शासन के बनाये गुरुजी मन के प्रकार होगे। सबे के योग्यता अउ काम एके हे। काम के आधार म मोला मुख्य रूप से चार किसम के गुरुजी दिखथे। गुरुजी, गुरजी, गरु जी अउ गरूरजी। 

    अब आप मन जइसे बुद्धिजीवी मन ल ऐखर बारे में विस्तार से बताये के जरूरत तो नइ हे तब ले बात जे शुरू होय हे खतम तो करे बर परही। 

   पहिली प्रकार  हे *गुरुजी*  एखर बारे मे मँय का बतावव वेद शास्त्र म एखर बारे मा बहुत कुछु बताये गे हे। हर चेला ल अइसने गुरु के अगोरा रहिथे। इखरे खोज बर कवि कहे हे पानी पिवव छान के गुरु बनावव जान के। जेन ल जीवन म अइसन सद्गुरु मिल गे ओखर जीवन सफल होगे।  एखर महिमा के बखान यदा कदा गुरुजी मन खुदे कर कर के अपन भाव बढ़ाये के प्रयास करथे। फेर ये प्रकार के गुरुजी साल म केवल एक दिन शिक्षक दिवस के नजर आथे सब ल। ओखर बाद कोनजनि कहाँ नंदा जथे।

        दूसर प्रकार हे *गुरजी* जिसे नाँव तइसे काम। ये गुरुजी मन बढ़ मीठे मीठ गोठियाठे। थूके थूक म लाडू बाँध के सब ला खवाथे। नेता, अथिकारी, लइका सब के मन ल मोह के रखथे। ते पाय के कोनो इखरे शिकायत कभू नइ करे। भले वो कभू कभू आथे। कभू देरी ले आथे अउ जल्दी चल घलो देथे फेर का मजाल हे काखरो की कभू कोनो आँखी तरेर के देख घलो सकय। सबल रोज रामराम, नमस्ते करथे कोनो कोनो तो नेता अधिकारी अउ गाँव के दबंग मनखे मन के पाँव परे म घलो परहेज नइ करय। अतका विनम्र गुरुजी कोन ल नइ भाही। का होगे अपन विषय के बारे मा कुछु नइ जानय फेर लइका मन कभू नइ टोंकय। लइका स्कूल आय झन आय। पढ़य झन पढ़य। कतको उदबिरिस कर लय। अनुशासन बनाना तो हेडमास्टर के काम हरे कहिके पल्ला झाड़ लेथे। 

            तीसर हरे *गरुजी* ये बिचारा किसम के गुरुजी होथे। इखर कोनो नइ सुनय। ये मन सब के चुपचाप सुन लेथे । सियान मन इखरे बर कहे हे 'जे सुनते तेकर बनथे'। ये मन मन्दिर के घण्टी कस होथे जे आथे बजा के चल देथे।  बइठ त बइठ  गे खड़े हे त खड़हेच रही गे। कोनो आवथे कोनो जावत हे। सब देखत हे फेर कोनो ल कुछु नइ कहना हे। अपन काम म मगन हे। पढ़ावत हे त पढ़ावत हे कोनो लइका पढ़त हे तभो ठीक नइ पढ़त हे तभो ठीक । कोनो कोनो लइका हल्ला करत हे कोनो शरारत करत हे बिचारा सब ल सहत हे। हाजरी ले बर मुड़ी गाड़िया दिस त मुहँ ऊँचा देखनाच नइ हे;  काकर हाजरी कोन बोलत हे। ये बिचारा दर्द के मारा। इन्हें चाहिये हमदर्द का टॉनिक ...। अइसे किसम के।

          इखरे ले अलग एक अउ किसम के गुरुजी होथे। *गरूरजी* आज कल इखर संख्या बहुत बढ़त जावत हे। ये मन अपन आप ला भारी विद्वान समझथे। अपन आघु कोनो ल कुछु नइ समझय। ये मन नेता अधिकारी मन तक पहुँच वाला होथे।  बात बात म कोर्ट कचहरी के गोठ करथे। लइका तो लइका हेडमास्टर घलो इखर ले डारावत रहिथे। पूरा स्कूल के अनुशासन इखरे ऊपर निर्भर रहिथे। कक्षा म जावत देरी हे तहां एकदम 'पिन ड्राप साइलेंट!'  लइका का जानत हे ? का सीखत हे ? ये मायने नइ रखय। फेर इखर सामने लइका के आवाज नइ आना चाही, बस। 

       अइसने कई किसम के  गुरुजी हे। अउ कई किसम के चेला घलो हे। चेला मन के चर्चा बाद म करबो। फेर गुरुजी मन ल निपटाए के बाद एक बात सोंचे बर परही। समय के संगेसङ्ग सब बदलगे। गुरुजी घलो इही समाज के प्राणी हरे। जेन - जेन गुण-दोष समाज के दूसर मनखे मन मा हे, इखरो म रहिबे करही। जब सारी दुनिया के चाल चरित्तर बदलत हे त गुरुजी मन ऊपर एखर प्रभाव नइ परही का? काबर कि ये मन  कोनो दूसर दुनिया ले तो आय नइ हे। येहु मन इही समाज के हिस्सा आय। फेर आज भी गुरुजी मन के छवि हर  लोगन के मन बर एक आदर्श हे।  जुन्ना समय ले आज तक कुछ नइ बदले हे। वो मन जब गुरुजी ल देखथे त वेद पुराण के उही आदर्शवान गुरुजी के सुरता आ जथे। फेर अपन ल नइ देखय कि अपन मन कतका बदल गे हे। गुरुजी मन घलो पहिली जइसे सम्मान खोजथे आरुणि सही चेला खोजथे । जेन नइ मिल सकय। 

कुल मिला के गुरुजी अब शासन के वेतनभोगी कर्मचारी हो गे हे। शासन जइसे चाहत हे ओखर बात चाहे अनचाहे मने बर परही। तबो ले एक बात कहे जा सकत हे। जेन गुरुजी लइका मन के शिक्षा ऊपर  बने ध्यान देथे। उखर जीवन निर्माण बर  निस्वार्थ भाव ले काम करथे। लइका मन  जीवन भर ओला नइ भुलावय। जब भेटथे सम्मान करथें।


🙏🏻 मथुरा प्रसाद वर्मा

Thursday 11 February 2021

कहिनी : बिसाहिन दाई*

 *कहिनी : बिसाहिन दाई*

         रायपुर के रक्सेल मुड़ा म तरिया पार म बसे एक ठन गाँव हे। आमा अउ पीपर के जुड़ छाँव तरी घाम पियास नि जियानय। नाहर के पझरा ले निकले नरवा गाँव बर बरदान बने हे। नाहर भरोसा ए गाँव कभू अकाल दुकाल नि जानिस। खेती किसानी सबो मन लगा करथे। मनखे मन बिहनिया बेरा सुत उठ के तरियाच म मुँह धोवत राम-राम करथे। तरिया पार म बसे ले काकर घर पहुना आवत हे, अउ कोन बन-ठन के बाहिर जावत हे, एकर घर मुँहाटी चउँरा म बइठे सोर मिल जथे। ए गाँव म लटपट डेढ़ सौ चूल्हा होही। जिहाँ मनखे मन म कोनो परकार के भेद भाव नइ हे। राजनीति के नाँव ले घलो अभी बँटे नइ हे। पंचइत चुनाव निर्विरोध हो जथे। लोकसभा अउ विधानसभा के चुनाव म सियान मन नवा अउ उत्साही लइका मन सिखौना देवत कहिथें - " ए नेता मन चुनाव के होवत ले आपस म लड़थे, इँखर लड़ई देखउटी आय। नेता मन ल हाथी के दाँत जानौ, खाय के आने अउ दिखाय के आने। हमन ल इँखर चाल म नइ फँसना हे। हम ल ए पार्टी ओ पार्टी के चक्कर म नइ पड़ना हे।" 

     कोनो अउ कहिथें - " हम ल आपस म बँटना घलो नइ हे। हमर कोनहो सुख अउ दुख के बेरा म कोनो बाहिर वाला आके खड़ा नइ होवय। हमीं मन एक-दूसर के दुख ल बाँटबो अउ सुख म अँगना नाचबो घलव। चुनाव जीते ऊपर ले नेता मन मुँहूँ दिखाय तको नइ आवै। दर्शन दुर्लभ हो जथे। चिह्नै घलव नइ। अपन वोट कोनो ल देवव, फेर गाँव ल मया परेम के छाँव अउ ठाँव बने गाँव रहन देहू। राजनीति के अखाड़ा झन बनन देहू।" 

       गाँव म सियान मन के बड़ मान हवय। नवा पीढ़ी के लइका मन घलो उँखर गोठ ल धियान देके सुनथें अउ मानथें घलो। गाँव म बड़ सुमता देखे मिलथे। दुखिया मन ल गम नइ मिले, कइसे दुख के काम निकल जथे। काकरो बेटी के बिदा होय, गाँव भर मिलके पहुना के पाँव पखारथें, दू बीजा चाउँर टीकके बेटी बिदा करथें।

        गाँव म नोनी-बाबू म फरक करइया घलो देखे ल नइ मिलय। अतका जरूर हे, नोनी मन ल कहिथे बताथे, तुमन सादा कपड़ा सरीख आव। अपन ऊपर कोनो दाग लगन झन देहू। बहुत अकन लोकलाज अपने हाथ म रहिथे। बचा के राखहू त दाई-ददा संग गाँव के मान मर्यादा बाँचे रही। बाबू मन ल नशा-पानी ले बाँचे के सीख देथे। उन ल बताय जाथे कि नशा नाश के जर होथे। नशा घर दुआर म कलहा के बीजा बोथे। एकर ले बाँचे म ही जिनगी म सुखेच सुख हवय, एला जान लेवव। ए तरह ले घरोघर नैतिक शिक्षा दे जाथे। इही बात मन रहिस जउन गाँव ल सुमता के गाँव के चिन्हारी दे राहय।

       बिन नारी परानी के दुकलहा घर एकसरविन बहू के पीरा उठ गे रहिस। पहिली पहिलावत रहिस। बहू बिचारी पीरा मं तालाबेली करत राहँय। बिसाहिन दाई ह आने गाँव गे रहिन, तेन अभीच अपन घर पहुँचे राहँय। उही बिसाहिन दाई जेन ल गाँव भर जचकी बखत बुलाय जाथे। दुकलहा के बेटा पइत घलो इही बिसाहिन दाई ह आय रहिस हे। जचकी के दिन ले सरलग कई-कई दिन तक बिसाहिन दाई सेवा बजाथे। सँझा-बिहनिया दूनो बेरा लइका अउ महतारी के सेवा करथे। कोनो ल बिसाहिन दाई ले कभू कोनो शिकायत नइ होइस। बिसाहिन दाई घलो सबो घर हरहिंछा आवय-जावय। ओकरो मन कभू छोट नइ होइस। बरोबर गोरस नइ आय ले महतारी बर जड़ी-बूटी घलो देवय। कतको झन ल एकर फायदा मिले हवय। तभे तो अड़ताफ भर ले आय दिन कोनो न कोनो ओकर घर आत्ते रहिथे। सरपंची बर महिला आरक्षण आय रहे म गाँव भर के मन निर्बिरोध सरपंच बनाना चाहीन, फेर बिसाहिन दाई कहिन " मैं अप्पड़ का सरपंची करहूँ, मोला इही म मजा आवत हे, जचकी करावत मोला सेवा करन दव।" 

         अभी घर म पाँव बरोबर माढ़े नइ पाय रहिस, बहू के देह उसलगे सुनके बिसाहिन दाई उत्ता-धुर्रा दुकलहा घर पहुँच गिस। बहू नोनी ल देखतेच खानी कहिथे, देखे के बेरा नइ हे। एला जतका जल्दी होय अस्पताल लेगे बर परही। लइका ह थोरकुन उलट गे हे कस जनावत हे। जचकी के बेरा आ घलव गे हे। धरा-पसरा गाड़ी मँगाके, बिना कोनो देरी के बहू ल तिर के सरकारी अस्पताल लेगे गिस। बहू मुँधरहा के उठे पीरा ले लरघिया गे रहिस। महतारी अउ सास के मया ल तरसत बपुरी ह अपन गोठ काखर मेर कहितिस। ताकत नइ लगा पात रहिस बपुरी ह। अस्पताल के डॉक्टरिन मैडम जाँच करे के पाछू तुरते ऑपरेशन करके जच्चा अउ बच्चा ल बचालिस। ऑपरेशन के बाद मैडम बोलिस - "अच्छा हुआ समय रहते यहाँ पहुँच गये, वरना थोड़ी देरी होती तो जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा हो सकता था। फिलहाल दोनों स्वस्थ हैं।" 

        दुकलहा अतका सुनके बिसाहिन दाई अउ भगवान ल बार बार धन्यवाद दे लगिस। बिसाहिन दाई ल कहिस, "भउजी! तोरे रहिते आज मैं ह अपन बहू अउ नाती के मुख ल देख पात हँव।"

    बिसाहिन दाई कहिस, "नहीं बाबू! मोर तो कामेच आय सेवा। मैं  जचकी दाई हरँव, जच्चा अउ बच्चा बर सोचना मोर काम हरे। दूनो ल कोनो नुकसान झन होवै। इही तो मैं चाहथँव। मोला लागिस कि घर म रहना खतरा हे, मोर बस के बात नइ हे, ते पाय के इहाँ लाने बर कहेंव।"

      सिरतोन भउजी! तोर हाथ म जस हवय। आज तक तोर राहत ले गाँव ह कभू कोनो धोखा नी खाय हे। तोर रहिते गाँव के बहू-बेटी मन कोनो तकलीफ नइ पाय हे। 

        बाबू गोठियातेच रहिबे धन हमर देरानी के स्वागत म फटाका फोरबे। तोर घर म लछमी ह लहुट के आय हे। 

            मैं फटाका भर नि फोरँव भउजी!  मिठई घलो बँटवाहूँ, मोर लछमी के स्वागत मं। सही मं मोर लछमी मोर तीर लहुट के आय हे, काहत दुकलहा के आँखी भर जथे। दुकलहा समझ नि पाय ए आँसू का के हरे?

        

      पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.

भूख के जात -हरिशंकर गजानंद देवांगन

 भूख के जात -हरिशंकर गजानंद देवांगन 

                     मरे के जम्मो कारन के कोटा तय रहय ….. फेर जब देखते तब , जइसे सरकारी दुकान ले दूसर के कोटा के रासन ला .... गांव के सरपंच जबरन लेगय , तइसे भूख हा दूसर कोटा के मौत नंगाके मनखे ला मार देवय । भगवान के नियम म खलल परय । भगवान हा यमदूत ला अइसन नियमखोरी करइया ला खोज के लाने बर भेजिस । यमदूत मन धरती म अइसन भूख ला खोजत अइन । इहां अइन त देखथे के इहां तो भूख के कइठिन जात रहय ....... । ओमन सोंच म परगे .... भगवान कते भूख ला लाने बर केहे हे । सबे भूख ला धरके लेगे अऊ भगवान के दरबार म हाजिर कर दीस ।                    

                    एक ठिन भूख हा जइसे भगवान के आगू म खड़ा होइस तइसे ... भगवान बरस गीस ओकर बर । भगवान केहे लगिस - कस रे तोला कहीं लागथे ? जब पाये तब अऊ जेला पाये तेला ढनगा देथस । धरती के मनखे कस ... दूसर के बांटा ला नंगा लेथस । तोर सेती कतका समस्या पैदा होगे हे । तैं जनता ला अइसने मारबे त .... हमर नियम धरम के काये आवसकता ? देख कतका अकन तोरे कोटा म .... मरके आये हें । भगवान के बड़े स्क्रीन वाले कम्प्यूटर म तरी उपर लास देख के भूख किथे – तोर कसम गो .... ये मन मोर मारे नोहे .... । हमला दूसर के बांटा नंगइया नेता समझथस का भगवान .... ? गऊकिन .... अपन बर निर्धारित कोटा ले उपराहा एक ठिन मनखे नी मारे हंव ...... । पहिली कस समे नी रहिगे भगवान .... तैं का जानबे .... मनखे ला मारे बर कतेक उदिम लगाये परथे तेला ........ कतका पछीना ओगारथंव तेला मिही जानहूं । भगवान किथे - लबारी मारथस रे ? भूख किथे - दईकुन गो ..... लबारी नी मारंव भगवान । उहां एक रूपिया किलो म चऊंर .. पिये बर सरकारी दारू अऊ रेहे बर घर मिलत हे । कोन मरही मोर ले भगवान ? अऊ अब तो जनता के पेट भरे बर नावा किसिम के मोबाइल आगे हे ... जेकर बटन चपकतेच साठ ... अनाज के दाना झरझर झरझर गिरत हे .... मनखे के पेट कहां उना रइहि तेमा .... । चित्रगुप्त कोती देखीस भगवान  ……..  वहू अपन कम्प्यूटर म देखत ....... हां म हां मिलइस । पेट के भूख ला सनमान सहित वापिस लहुंटे के आज्ञा मिलगे । भगवान सोंचे लगिस .... कोन येकर नाव ले पाप करत हे ? भगवान हा प्रस्नवाचक मुहूं बनाके चित्रगुप्त कोती देखीस त ओहा ... दूसर भूख ला खड़े कर दीस आगू म । 

                    चित्रगुप्त बताये लगिस - धरती म भूख के कतको धरम जात अऊ समाज बन चुके हे । काकर बूती ... बिन पारी के मनखे मरत हे तेला ... मोर कम्प्यूटर बता नी सकत हे । जइसे येला जाने के कोसिस करथंव नेट बंद हो जथे ..... तेकर सेती सबो जात के मुखिया भूख मनला लाने गेहे । भगवान पूछथे – जात .......? येमन मनखे कस बिगड़ गेहे का रे .....? येमन ला जात बनाये के कोन आज्ञा दीस ? चित्रगुप्त किथे - भगवान , जात बनाये बर कनहो ला केहे नी लागे , चार झिन जुरियइन तहन नावा समाज अऊ नावा धरम खड़ा हो जथे । जेकर सुआरथ पूरती नी होये तिही मन राजनीतिक दल कस अपन जात खड़ा कर लेथें । ये जात हा मनखे के उपज आय , हमर रचना नोहे भगवान । भगवान किथे - येहा कोन जात के भूख आये ? भूख खुदे केहे लागीस – मोर सेती मनखे मरथे कहां भगवान तेमे मोला हथकड़ी पहिरा के ले आने हव । मेहा तो अइसे जगा म रहिथंव जेला तोपे बर धरती के हरेक मनखे ला उदिम करे लागथे । भगवान पूछिस – का ...... पेट म नी रहस तेंहा ? भूख किथे - मेंहा पेट म नी रहंव भगवान .... पेट के खालहे म रहिथंव । भगवान मुहूं फार दीस । चित्रगुप्त किथे – भूख के रेहे बर पेट म जगा बनाये हाबन ? तोला कोन पेट के नीचे रेहे के परमीशन  दीस । भूख किथे – हमर जात के भूख ला रेहे बर काकरो परमीशन के आवसकता निये । पेट के खालहे म जगा दिखीस तहन ....... मन पटवारी के जेब गरम करके अपन नाव म खालहे पारा के रजिस्ट्री करवा डरे हाबन । भगवान हा चित्रगुप्त कोती कननेखी देखीस । चित्रगुप्त किथे – येहा मनखे के वासना के भूख आय भगवान ...... येकर ले मरथे तो बहुत कम फेर …….. फेर येकर बर कतको झिन मरथे .......। येला मेटाये बर कतको धरमगुरू साधु संत पादरी मौलवी मन बड़े बड़े असपताल खोल के बइठे हाबय । फेर अपने असपताल म उही मन इही भूख के सिकार हो जथे .........। यहू ला छोंड़ दिस ।

                     सुसकत खड़े दूसर भूख ला पूछत रहय भगवान - तैं कोन अस जी अऊ कते मेर रहिथस ? काबर रोवथस ? निच्चट दुब्बर पातर भूख हा सरम के मारे मुड़ी गड़ियाये रिहीस । हूंकिस ना भूंकिस । चित्रगुप्त किथे – ये भूख हा मनखे के कभू आंखी अऊ कभू दिल म रहिथे । ये प्रेम के भूख आय । येला दुनिया म जम्मो झिन अपन सुआरथ के सेती चाहथें । येकर मरम ला ना कनहो जानय । ना येकर करम ला कनहो निभावय । ये अपन अस्तित्व बर खुदे तरसत मरत हे ..... कनहो ला काये मारही । ये भूख अपन प्रजाति ला बचाये के गोहार करत रो डरिस । यहू छूटगे ।

                    अगला भूख हा सुघ्घर पहिरे ओढ़हे रहय । खुसरतेच साठ दरबार महर महर महमहाये लगीस । कतको झिन हाली मोहाली संग म अइस । इही दोसी भूख होही कहिके आते आत जमदूत के सोंटा परीस ........ सेवा करइया मन भाग गीन । चित्रगुप्त किथे – येहा पइसा के भूख आय भगवान । येला मेटाये बर जतको खाबे ... येहा ततके बाढ़थे । येहा अपन बलबूता म बहुतेच काम कर सकत हे । दूसर के पछीना ला अपन देहें म चुपरके महकत मजा मारत किंजरत हें येमन । इही भूख के सेती मनखे मनखे म दूरी बाढ़त हे । इही भूख हा मनखे ला अपन नता रिसता के त्याग करे बर मजबूर कर देथे । येकर बर जे जादा मरथे तिही ला निपटाथे येहा ........। भगवान तिर येकरो अपराध सिद्ध नी होइस । यहू बरी होगे । 

                    ये दारी के भूख हा ... जइसे दरबार म खुसरिस तहन ..... कितको झिन हाथ जोर के खड़ा होगे । ये भूख हा नाव के भूख आय । येला कोन नी जानय । अपन नाव चलाये बर का का नी करय .... । एके ठिन बात ला घोर घोर के केऊ ठिन मीडिया म बगरा के अपन नाव ला जनाये के उदिम लगावत रहिथे । ये भूख बहुत झिन उप्पर सवार होथे फेर बहुत कमती मन ला पार लगाथे । कितको झिन मरत ले नी छोंड़य येला । येहा मनखे ला मारय निही फेर अपन नाव के उप्पर म या बरोबरी म कनहो ला झिन आय कहिके कतको उदिम म लगे रहिथे । इही भूख हा दूसर के नाव मेटाके अपन नाव ला जगजाहिर करे के डिगरी अऊ पी एच. डी. देवाथे । कतको कस पदम पुरूसकार इही भूख के सहारा अऊ भरोसा म मिलथे । चित्रगुप्त अइसन बतातेच हे तब तक भगवान हा यहू ला वापिस लेग जाये के इसारा कर दिस । 

                     खूनाखून दिखत भूख ला आवत देखीस त भगवान समझगे ... इही आय मौत के असली जुम्मेवार । हाथ म गोला बारूद बनदूक तलवार धरे रहय । भगवान खुद डर्रागे । भगवान कांपत पूछथे – तिंही हरस का जी ..........? डर के मारे आरोप घला नी लगा सकत रहय भगवान । चित्रगुप्त ला तीर म बला के किहीस - तिहीं हकन के पूछना येला ...... । मेहा कहूं त मुही ला झिन मार देवय । तैं पूछबे अऊ तोला मारीच दिही त मेंहा तोला फेर जिया दुहूं अऊ मोला मार दिही त तैं भगवान कहां ले लानबे । भगवान के मन म डर हमागे । चित्रगुप्त किथे - रावन ... कंस अऊ हिरण्यकस्यप कस राक्षस मन ला चुटकी म मरइया भगवान के चेहरा म अइसन डर सोभा नी दय । तूमन काबर डर्राथव भगवान ? भगवान किथे - राक्षस मन मोर संरचना रिहीस अऊ येहा मनखे के आय .... तेकर सेती डर लागत हे । चित्रगुप्त किथे – डर्रा झिन । येला जब तक बड़का भूख आदेस नी देवय तब तक ..... ये कनहो ला नी मारय । अपन जरूरत बर अभू तक काकरो सिकार नी करे हाबय येहा । ये हिंसा के भूख आय । जब तक कनहो उकसाये निही तब तक ... येकर हाथ ले हथियार नी छूटय । त ये लहू म सनाये कइसे दिखत हे ? भगवान फेर पचारिस । चित्रगुप्त किथे - येकर निवास स्थान लहू आय भगवान तेकर सेती .....। यहू छूटगे ।

                     भगवान किथे – चित्रगुप्त .... जतका अकन भूख अभू अइस तेमा .... कनहो भूख म अतेक अकन मनखे मारे के क्षमता निये । तूमन गलत रिपोट देके बपरा भूख ला काबर बदनाम करत हव । चित्रगुप्त किथे - एक ठिन भूख अऊ बांचे हाबय । तभे भूख भइया की जय के नारा सुनई दीस । नारा लगइया मनला बाहिर म रोके नी सकिस यमदूत मन । भूख हा ... संसद कस …… समर्थक संग ..... परिवारसुद्धा .... दोरदीर ले खुसरगे । भगवान किथे - तिहीं हरस रे .... अतेक कन मौत के जुम्मेवार । वो किथे - कोन कथे ....... ? कोन कथे ....... के मिही अतेक मनखे के मौत के जुम्मेवार आंव कहिके .... पूछ येमन ला ....... । देखा सबूत ...... । जुबान लड़ाये बर धर लीस अऊ बहुमत ले जीते कस भगवानेच के खुरसी कोती अमरे लागीस । चित्रगुप्त भगवान के कान म फुसुर फुसुर केहे लागीस – मोला समझ नी आवत हे भगवान । मोर रिकाड म इही भूख के कोई लेखा जोखा निये । बिगन सुनवई सबूत के अभाव म यहू भूख हा नेता कस छूटगे । 

                 भगवान ला आखिरी वाले भूख उपर सक होगे । ओहा चित्रगुप्त संग कम्प्यूटर बिसेसज्ञ ला धरके इही भूख के पाछू पाछू धरती म पहुंचगे । तलास अऊ तफतीस म भगवान पइस के ..... ये भूख हा चित्रगुप्त के कम्प्यूटर म .... राजनीति नाव के अइसे वाइरस डार दे हाबय ..... जेहा  कभू काकरो पकड़ म नी आ सकय ...... । ये भूख हा मनखे के दिमाग म रहिथे । मनखे के अकाल मौत के जुम्मेवार इही आय फेर येकर ताकत के डर म ..... येकर खिलाफ कन्हो गवाही देबर खड़ा नी होय । भगवान जान डरीस के .... येहा सत्ता के भूख आय जेहा .... कतको लास बिछा के घला सांत नी होय । इही भूख ला सांत करे बर ..... मनखे मन हा ..... कतको झिन के दुरदसा कर देथे अऊ कतको ला मार के ढनगा देथे । ये अइसे भूख आय जेकर उप्पर बिजय पाये के बाद .... मनखे हा पहिली ले अऊ जादा भुखाके ..... तपनी तपे लगथे । इही भूख के साथ देवइया मन भुकुर भुकुर के खाथे अऊ बिरोध करइया मन इही भूख बर भुखा जथें ....... । भूख के इही जात ला खतम करे बर .... उही दिन ले सरग म भगवान हा ..... लांघन भूखन रहिके तपस्या म जुटगे ........ ।  

    हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

एक पइसा-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 एक पइसा-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


पइसा के गदिया म नींद भँजइया रतन सेठ चमाचम सकलाय बइठका म  घलो पान चगलत, कुर्सी म एक के ऊपर एक पाँव ल मड़ाय, कोनो राजा असन बइठे हे। फेर कोनो झंझट के नियाव करे बर नही , बइटका ओखरे बर सकलाय रहय। जम्मो जुरे मनखे मन फुसफुसात हे, बड़े मनखे अँव कहिके बड़ गांव के नियम धियम के धज्जी उड़ाय हे ये दरी पता लगही, जब पंच मन डाँड़ही त। बर तरी मनखे मन के मारे सइमो सइमो करत हे, जे कभू नइ आय तहू वो दिन सकलाय रहय, जइसे कोनो छोट गरी म बड़े मछरी फँस जथे त देखो देखो हो जथे। 

            रतन सेठ पइसा के बड़ गरब करय अउ गाँव के कोनो भी बनाय नियम ल तोड़ देवय, (ओखर आदत आचरण म घलो कीरा पड़े रहय) अइसने करत कई घाँव हो गे रिहिस, तभो कभू बइठका नइ बइठे रिहिस। कई पंच पटइल ओखर खीसा म रहय। कोनो ओला कुछु बोले के हिम्मत घलो नइ करय। फेर ओखर देखा देखी म गांव के आन मनखे मन घलो रट पिट बोल देवय अउ कतको तिहार बार म नेंग जोग ल नइ माने। अइसन बढ़त आफत ल देख आखिर म हिम्मत करके बैठका बइठे रिहिस। कई झन गांव वाले मन कहाय अतका पइसा डाँड़तिस की  गाँव के भला हो जातिस। कई झन कहय 1000, 500 ले जादा आज तक पंचायत म दंड कहाँ लगे हे, जे सेठ ल लाख, दू लाख डाँड़ दिही। सेठ घलो बड़खा पइसा ले भरे झोरा धरके बइठे रहय।

           आखिर म पंच मन अपन बात रखिन, कि रतन सेठ सरलग हमर गांव गुड़ी अउ कानून कायदा के अपमान करत हे, मंद मउहा अउ कतको ठन अइसे उदबिरित करत हे, जेखर बर वोला डाँड़ देना जरूरी हे। सेठ मेंछा म ताव देवत कहिथे, ये पंच कहूँ त मैं गांव ल पाल देहूं, सीधा सीधा बता कतका पइसा देना हे तेला। मैं तुरते गिन देहूँ। पंच म घलो ये बात ल जानत रिहिस की सेठ कर पइसा के कोनो कमी नइहे, जतका डाँड़ रखबों तुरते दे दिही। पंच म सलाह मशविरा करिस अउ फैसला सुनावत किहिस- रतन सेठ तोला एक पइसा के डाँड़ पड़े हे, एक पइसा के। अतका घोषणा ल सुन के गांव वाले मन संग सेठ घलो दंग होगे। सेठ कथे लाख रुपिया माँग लव, ये का एक पइसा---।

पंच मन किहिस तोर कर भले करोड़ रुपिया होही, फेर तोर इज्जत एक पइसा के हे, येखर से जादा कइसे माँग पाबों। सेठ के मूड़ी ले धन दौलत के गरब तुरते उतर गे। हाथ जोड़ कहिस-मोला क्षमा करहू, मैं धन के नशा म अंधरा हो गे रेंहेंव, अब मैं गाँव के आम निवासी कस सबो बात, बानी नियम धियम ल मानहूँ। शुरू म तो गाँव वाले मन एक पइसा सुनके  पंच मन बर दांत कटरिस ,फेर बाद में जयकार करिन। 

                पहली मनखे मन के धन, बोली -बचन, मान-सम्मान रहय, फेर आज पढ़ लिख के घलो मनखे मन दूसर के मुँह म नइ हमा पावत हे। मॉन मर्यादा ल लाँघ देवत हे। आज कोनो करोड़पति घलो ल एक पइसा के जुर्माना हो जही त निर्लज्ज बनके चुका दिही। आज केहे बात ल काली भुला जावत हे। मनखे  मन ल आज मया-दया, सत-शान्ति,अउ मान-सम्मान ल धन असन गँठियाय के जरूरत हे।

(सियान मन के जुबानी सुने कहानी)

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 



कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


                     जान ले बढ़के का हे? तभो मनखे जान ल जोखिम म लेके जियत हे। रोज के हाय हटर, अउ चारो मुड़ा  मुँह उलाय खड़े काल कतको ल रोज लील देवत हे। तभो मनखे कहाँ चेतत हे। आज मनखे मनके मौत घलो कुकुर बिलई कस सहज होगे हे, तभे तो मनखे मन आज  माड़े अर्थी ल घलो देख के रेंग देवत हे। अर्थी कर सिरिफ घर वाले, सगा सम्बन्धी अउ एकात झन भावुक मनखे भर दिखथे। नही ते एक जमाना रहय, कहूँ एक भी मौत होय त देखो देखो हो जाय, मनखे दुख म डूब जाय। फेर आज आन बर काखर तीर टाइम हे। धन दौलत संग मरनी हरनी सबे चीज म तोर मोर होगे हे। मरे के हजार अलहन हे, फेर जिये के दू चार आसरा, तभो मनखे मन दया, मया, सत, सुमत जइसन जरूरी चीज ल बरो के  मुर्दा बरोबर जीयत हे। बड़खा बड़खा सड़क ल देख के यमदूत मन घलो संसो म हे, कि ये मनखे मन बिन बेरा मरे के साधन बना डरे हे। हाय रे अँखमुंदा भागत गाड़ी, हाय रे नेवरिया चलइया, हाय रे जल्दीबाजी अउ हाय रे दरुहा मँदहा तुम्हर मारे बने सम्भल के चलत मनखे मन घलो निपट जावत हे। 

          चार दिनिया जिनगी पाके घलो मनखे मन अति करत हे, कोन जन अजर अमर रितिस त का करतिस ते। रोज अपराध बाढ़त हे। इही ल रोके बर आज रोज नवा नवा कानून कायदा बनत हे, तभो अपराध रुके के नांव नइ लेवत हे। कानून म कई प्रकार के सजा हे, फेर मनखे मन डरथे कहाँ। हाँ,, डरत उही हे जेन बपुरा मन गरीब अउ अनपढ़ हे, पुलिस ल देख घलो उँखर पोटा काँप जथे। फेर पढ़े लिखे अउ पइसा वाले म डर नाँव के चीज नइहे, अउ रहना भी नइ चाही, पर अपराध करके कानून ले मुँहजोरी बने थोरे हे। पर जमाना अइसने हे, पद पइसा के आघू कानून कायदा घलो लाचार हे। धरम करम के डर ल तो छोड़िच दे।

                जंगल तीर के एक ठन गाँव म विकास के गाड़ी पहुँच गे, लोगन मन पढ़ लिख के हुसियार होगे, स्कूल कालेज कोर्ट कछेरी सब बन गे, अब जंगल अउ गाँव कहना सार्थक घलो नइ रही गे। कागत म कानून कायदा लिखाय हे, तभो ले जीयत मनखे मन, गलती ऊपर गलती करत हे, फेर एक झन *मरे मनखे* के फांदा होगे, काबर कि उही गाँव के एक झन पढ़े लिखे आदमी ह, कोर्ट म केस करदिस, कि फलाना ह,अपन जमाना म कानून कायदा के गजब धज्जी उड़ाय हे, बन बिरवा ला अँखमुंदा काटे हे, जंगल के कतको जीव जिनावर मन ल घलो मारे हे।  कानून म ये सब करना अपराध हे तेखर सेती वोला उम्र कैद के सजा होगे। फेर वोहा कानून ले लड़े बर जिंदा नइ रिहिस, दू चार पेसी देखे के बाद जज वकील मन सजा सुना दिन। आदेश जारी होइस वोला पकड़ के जेल म डारे जाय, खोजबीन म पता चलिस कि वो तो परलोक वासी होगे हे, अब गाज गिरिस ओखर परिवार वाले मन ऊपर। बड़े बेटा आन जात म बिहाव कर डरे रहय त, वो समाज से बहिष्कृत रिहिस, ददा ले कोनो नता नही। पुलिस वोला कुछु करिस घलो नही , फेर  छोटे बेटा घर ओखर ददा के फोटू  टँगाय रहय, उही ल पुलिस मन धरिस अउ कोर्ट लेग गे। उहू अकचका गे रहय, का होवत हे कहिके, आखिर म सब चीज जाने के बाद कहिस- कि, ददा के जमाना म शिकार के चलन रिहिस, जंगल म रहय अउ पेड़ पात के सहारा जिये, अब वो जऊन करिस जीयत म सजा पातिस मरे म काबर? अउ येमा मोर का गलती हे? जवाब आइस कि तोर गलती ये हे कि तैं ओखर टूरा अस। कार्यवाही आघू बढ़िस, छोटे बेटा अपन पक्ष रखे बर वकील करिस, लाखो रुपिया खर्चा करिस, पइसा भरात गिस तारिक बढ़त गिस एक दिन ओखरो देहांत होगे। अब बारी आइस ओखर लइका मन के। ओखरो दू लइका रहय, एक झन कही दिस, मैं ददा बबा नइ माँनव, त दूसर जे ददा बबा के मया म बँधाय रहय ते केस लड़े बर तैयार होइस। आखिर म कम पइसा खर्चा अउ कमती धियान देय के कारण वो केस हारगे। अब उमर कैद के सजा अर्थ दंड म बदल गे, वो मरे आदमी ल 10,000 के जुर्माना होइस, अउ फाइल ल बन्द करे बर ओतका पइसा के माँग करिस। ओखर नाती  इती उती करके पइसा पटाइस, तब जाके वो फाइल बंद होइस। कहूँ नइ पइसा फेकतिस त बपुरा ल घलो हथकड़ी लग सकत रिहिस, कानून ए भई, अभियुक्त तो चाहिच। देख आज कोनो राजा महाराजा मनके पोथी ल झन खोले, नही ते जे अपन आप ल,फलाना वीर के वंसज काहत हे,तहू कन्नी काट लिही, काबर कि वो जमाना म लड़ई झगड़ा, इकार शिकार चलते रिहिस।

              अउ कखरो फाइल खुले झन, नही ते आज के जमाना म वो मरे मनखे के कोई नइ मिलही, त ओखर आत्मा ल केस लड़े बर पड़ जाही। मरे आदमी के केस म कई साहेब सिपइहा पइसा पीट मोटा गे। जउन बबा ददा के मया म बँधाय रिहिस, तउन फोकटे फोकट पेरा गे। तभे तो कानून के डर म आज मनखे मन कोनो घटना ल, देख सृन के घलो आँखी कान ल मूंद देवत हे। इहाँ जीयत मनखे मन अत्याचार के ऊपर अत्याचार करत हे, अउ जे कुछ बोल नइ सके(मरे आदमी कस), जे कोट कछेरी ले डरथे, तेला सोज्झे फोकटे फोकट सजा मिल जावत हे। चाल बाज, पद पइसा, अउ पहुँच के जमाना हे। गलत ह सही अउ सही ह गलत, ये कोर्ट के मैदान म साबित हो जावत हे। *नियाव के उप्पर वाले देवता शुन्न हे,त नीचे वाले देवता मन टुन्न,* पद,पइसा, मंद मउहा के भारी नशा हे। अतिक अकन कानून कायदा अउ दंड विधान होय के बाद घलो अपराध के नइ थमना, अउ सिधवा मनखे ल सजा हो जाना कानून के मुँह म तमाचा पड़े जइसे हे। कोनो सरकारी पद पाये बर अदालती कार्यवाही नइ होना चाही, फेर सरकार चलाये बर जे नेता के पद होथे, तेमा सब चलथे, वाह रे कानून। कतको बड़े करम कांड होय पइसा के दम म सही हो जावत हे, बड़े बड़े अत्याचारी मन साबुत बरी हो जावत हे। का कानून के आँखी म पट्टी एखरे सेती बंधाय हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

अमर होए के साध-सरला शर्मा

 अमर होए के साध-सरला शर्मा

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   तैहा दिन ले चलागत चले आवत हे के मनसे अपन नांव  ल अजर अमर करे बर कई ठन उदिम करत रहिथे । कोनो मंदिर देवाला , स्कूल धर्मशाला बनवाथे  अपन अपन सोच अउ  औकात तो आय फेर मोर औकात तो अपने रहे बर नानकुन घर बनाये मं दिख गे ..गरीबहा मनसे तो आंव ..ले जाये देवा । दूसर रस्ता खोजे लगेंव त सुरता आइस चार आखऱ लिखे के गुन तो भगवान मोला देहे हे त इही ल अमर होए के औजार बना लेंवव न ? अब मोला पाहीं कोन ....सबो किताब ल झोला मं धरेंव अउ निकल गयेंव बुधियार , गुनी मानी , ओहदादार मन ल किताब देहे , दिखाए बर फेर मोला लगिस अतके भर मं बात बनत तो दिखत नइये ..। 

सुरता आइस हमर सियान मन बतावयं के हिन्दू शास्त्र मं अपन श्राद्ध तर्पण के विधान घलाय तो हावय ...गया तिरिथ जाके कोनो पंडा के सरन परे अउ चार पैसा खरचा करे ले काम बन जाही ....मरे के अगोरा कोन करय ? ओहू उदिम कर डारेंव जी उप्पर मं सीट रिजर्व होगिस ...सुभीत्तथा होएंव त गुनान के भूत फेर  मूड़ उपर चढ़ बैठिस अब विचार आइस के धरा धाम मं अमर कइसे होए जाय ? नींद , भूख उड़िया गे ...दुबराये लागेंव ...भगवान चिटिक दया करिस त आंखी उघरिस ...एदेरे . ..जब्बर उपाय तो आंखी आघू हे त सुरु कर देहेव उदिम ..।

      सबले पहिली तो पंडा के सरन परेवं ...साहित्यिक पंडा जी .. । त उन कहिन ..सरला ! तैं तो बुधियारिन साहित्यकार अस तोर लिखे किताब मन तो अनमोल आयं तोर असन लिखइया तो दूसर कोनो दिखबे नइ करयं ...अहा ..हा ..जीव जुड़ा गे ...वजन बाढ़ गे ...जीते जियत सरग मिल गे ...। त कहेंव " आपे के सरन परे हंव ... छपास के भूत मुड़ी ले उतरय भी अउ साहित्य बिरादरी मं मोर नांव अमर हो जावय ,जीते जी साहित्यिक श्राद्ध तर्पण हो जावय तेकर उपाय बताए के कृपा करव महराज जी ...। " 

      भरपूर खुसी होके अभय दान देवत उन कहिन अइसे कर थोरकुन पईसा खरचा करके एक ठन आयोजन कर जेमा बड़े बड़े साहित्यकार मन से अपन कृतित्व उपर भाषण देवा दे , दू चार ठन साहित्यिक संस्था मन से अपन अभिनन्दन उही कार्यक्रम मं करवा ले ....अउ हां एक ठन अभिनन्दन ग्रन्थ तको प्रकाशित करवा ले फेर सुरता राखबे भाई कि लिखइया मन तोर भूरी भूरी बड़ाई लिखयं थोरको करिया , करछटहुं झन रहय फेर का साहित्य के अकास मं तोर जस के चंदैनी जग जग ले बगर जाही ..। " 

      हींग लगही न फिटकरी अउ जीते जियत साहित्य संसार मं मोर नांव अजर अमर हो जाही ...कुलकुला गएवं । जुगाड़ मं भिड़ गएवं बड़े बड़े नामी गिरामी साहित्यकार मन असकाऱा दिहीन ...त संगवारी मन !  बसंत पंचमी हर तो लिखइया मन बर भारी सुभ दिन तिथि होथे तभे तो महाप्राण निराला इही ल अपन जनमदिन बना लेहे रहिन । मैं अपन मरन दिन बना लेवत हंव ..। ठीक करे हंव बसंत पंचमी के बिहनिया दस बजे ले " सरला शर्मा श्रद्धाजंलि दिवस " के आयोजन सुरु होही , आप सबो झन ल नेवता देवत हंव , खचित आहव अउ आखऱ के अरघ देहे के कृपा करिहव भाई बहिनी मन । 

  ये आयोजन हर मोला अमर कर देही त जीते जियत मोला श्रद्धाजंलि घलाय मिल जाही ...मरे के का हे जब मरना होही मरबे करिहंव ..। 

   अगोरा मं 

सरला शर्मा

नौ हाथ लुगरा .... तभो ले देंहे उघरा -हरिशंकर गजानंद देवांगन ,

 नौ हाथ लुगरा .... तभो ले देंहे उघरा -हरिशंकर गजानंद देवांगन , 

                    बिकास के चरचा चारों मुड़ा म होये । गांव गंवई के मनखे मन बिकास देखे बर तरसत रिहीन । हमर देस अजाद होही न बेटा तंहंले बिकास आही , सुनत सुनत दू पीढ़ी के मन सरग सिधार दिन । तीसर पीढ़ी के मनखे मन घला बुढ़ाये धर लीन । फेर कइसना होथे बिकास तेकर दरसन नी पइन । जब जब नावा सरकार बनय तहन “ बिकास अभू आनेच वाला हे , एदे आतेच हे , तुंहर तीर म अमरीचगे “ एकर खूबेच चरचा करय । फेर काकर पेट म पचथे बिकास , कोन जनी ? 

                     एक दिन बबा अपन नाती ल बतावत रहय के , बिकास ये दारी आहीच कथे रे ...... । नाती पूछिस - कामे बइठके आही बबा विकास हा ? बबा किथे – कामे आही , तेला महूं नी जानव । फेर लोगन किथे के - हमर छत्तीसगढ़ बनही , हमर राज आही , तंहंले बिकास आही । नाती किथे - त यहू होये कतको दिन नहाकगे बबा , हमन ला बिकास के दरसन नी होइस । बबा बतावत रहय – को जनी कती तिर , लुकाये हे बिया हा ........ । हमर बबा बतावय रे बाबू , सड़क बनही तहन विकास होही कहिके । एके ठिन सड़क केऊ घांव बनगे , फेर हमर तीर , बिकास नी अइस , हां हमर बिकासखंड के इंजीनियर घर , बिकास होइस कहिके सुने रेहेन वहा दारी । फेर उहू ल देखे नियन , कइसना हे ? थोरिक बाढ़हेन त हमर बबा बतइस के , बिकास रेल मारग ले आही कहिके , हमर गांव म घला निंगिंस रेल मारग , फेर कती कती फेक्ट्री मालिक मन घर , बड़ अकन बिकास होइस सुने हन । हमर गांव के सपाट भुंइया ल देखके , हमर अगुवा मन इहां हवा मारग ले विकास लाने के सोंचीन । हमूमन बहुतेच खुस रेहेन , खुस रहनाच हे गा , बिकास कन्हो सड़क अऊ रेल मारग ले थोरे आही तेमा , ओ तो बड़का चीज आय , हवा मारग ले आही । कुछ दिन म , हमर गांव के ऊप्पर ले , हवई जहाज ऐती ले उढिहाये सांय ले , ओती ले उढिहाये सांय ले ...... । फेर , हवा हवा म , कते दिन हवा होगे बिकास ....... । सड़क , रेल , हवा मारग के सेती रूख रई जंगल कटागे । पानी गिरई कमतियागे , खेत खार , परिया परे लागीस । नरवा के पानी म बंधान बनाके , बिकास ल हमर कोरा म डारे के उदिम सुरू होगे । बांध बनगे , हमर करम कस फूट घला गे , उही दारी ले , बिकास म हमर नेताजी के घर पटागे । 

                     बबा कहत रहय - समय बदलगे । बिकास लाने बर बिजली के तार खिंचाये लागीस । चारों मुड़ा म प्रकास बगरही , तहंले बिकास खुदे आही । कोन जनी काकर घर अंजोर होइस बिजली के तार म । जबले आहे , महीना के आखिरी म अइसे करेंट मारथे के , बिकास गर्भपात म मर जथे । एक बेर सासन डहर ले अइसन फरमान निकलिस के , जेकर केवल दू झिन लइका रही , तेकरे घर बिकास होही । हमन दू के पाछू , तीसर के सोंचेन निही , फेर कहां के बिकास ...... । ओहा तो डाकटर के सूजी दवई बूटी म अटकगे । जे दिन ले आपरेसन करायेन उही दिन ले , हमर डोकरी के पेट म दरद होये लागिस , पहिली सोंचेन हमर घर बिकास आवत होही ...... पाछू पता चलिस , जतका हमर पेट पिरइस , ओतके डाकटर के बिकास होइस । 

                     बबा सरलग कहिनी कस बतावत रहय - एक बेर , बिकास भेजइया मन बतइन के ..... देस बर , गोला बारूद तोप बिसाबोन , तहंले बिकास ल अपन पेट म भर के रखइया मन , डर के मारे बाहिर निकालही , तभे आम जनता के घर बिकास पहुंचही । तोप लेवागे , फेर ओ दारी , बिकास इहां ले निकलके दूसर देस म पहुंचगे ।  

                     बबा किथे - बिकास के अगोरा म मोर चुंदी पाकगे , झरगे । तोर ददा के चुंदी तको पाके लागिस ।  जम्मो झिन सोंचे लागिन के , कतको बछर ले कले चुप बइठे हे , बिकास भेजइया मनखे हा ...... । फेर पाछू जनाबा होइस के , कन्हो स्प्रेक्टम म लुकाके अपन घर बिकास ल लेगे , कन्हो कोइला म चपक के , बिकास म अपन हाथ मुहूं करिया डरीन । बेर्रा मन , बिकास ल , गाय गरू के चारा कस , खा के हजम कर दीन । 

                     बबा एकदमेच सीरियस होके केहे लगिस - नावा नावा मनखे , नावा नावा सोंच , फेर खुरसी तो उहीच आये , तेकर सेती डर घला लागथे के , बिकास के जींन्स , गरीब के खटिया के अचवानी म , का बइठही ........ ? ओतके बेर एक झिन मई लोगिन कस , बड़ सुघ्घर नावा लुगरा पहिर के , मटकत रेंगीस । ओकर पहिरई देख , बबा ते बबा , जवान नाती घला लजागे । लजाना सुभाविक हे गा , गजब सुंदर परी कस दिखत , दगदग ले नावा लुगरा पहिरे रहय , फेर देहें उघरा ......... । नाती किथे - बबा , ओ मई लोगिन हा , अतेक सुघ्घर दिखथे , फेर पहिरे के सऊर तको निये । बबा किथे – सच बतावंव बेटा , इही हमर देस के बिकास आय ....... । मुहूं ल फार दीस नाती ........... , समझिस निही । बबा बताये लगीस – बिकास होथे बड़ सुंदर ……. जब हमर गांव गली खोर म आये बर निकलथे तब , अब्बड़ सुघ्घर चुक चुक ले पहिर ओढ़ के , तोप ढांक के निकलथे । फेर एकर रसदा म , भ्रस्टाचार के कतको सुरसा , मुहूं फार के खड़े रिथे , उही मन , ओकर लुगरा ल , जगा जगा ले , अइसे चीथ देथे के , हमर तीर पहुंचत ले , बिकास ला देहें ल तोपे के जगा , लुगरा ल तोपे लागथे । इही सुरसा के सेती ..... बिकास हमन ला अपन मुहुं देखाये के काबिल नी रहय ...... अऊ मोला लागथे तेकरे सेती गांव गंवई जनता कोती रुख नी करय ..... । का करबे ...... बईमान मन के सेती “ नौ हाथ लुगरा पहिरे तभो ले देहें उघरा “ दिखत हे बपरा बिकास हा ...........। 

 हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

इंसानियत गँवागे-मथुरा प्रसाद वर्मा

 इंसानियत गँवागे-मथुरा प्रसाद वर्मा


    एक दिन कक्षा आठवी के लइका मन ला विलोम शब्द सिखाय बार मोर मन म एक नवाचार करे के मन होइस। काबर कि शिक्षा म नवाचार करे के आजकल बिक्क्ट चलन हे। महुँ कुछु न कुछु करत रहिथव। एकर ले लइका मन के सङ्गे सँग महुँ ल मजा आथे। 

  त मँय विलोम शब्द माने विरुद्धर्थी शब्द के अभ्यास कराय बर एक नवाँ उदिम करेव । छोटे छोटे कागज के पर्ची चिर के ओमा एक एक शब्द लिखत गेंव। जइसे  सत्य, असत्य, दिन , रात, हैवानियत, इंसानियत, कटु, मधुर आदि आदि। लइका मन के संख्या के बरोबर पर्ची बना के सब ल मिझार देव अउ एक एक लइका ल एक एक पर्ची बाँट देव। अउ लइका मन ल अपन अपन विलोम शब्द वाले लइका सँग जोड़ी बनाये बर कहेंव। लइका मन अइसे हल्ला मचाइन की कक्षा नहीं मछरी बाजार होगे।

    थोड़कुन शोर-गुल के बाद सबला अपन अपन जोड़ीदार  मिलगे। अब लइका मन अपन जोड़ी सँग आवय अउ जोर जोर से अपन शब्द ल पढ़य। जेखर सहीं रहय सब लइका ताली बजावै।आखरी म एक झिन लइका एकेला मिलिस। ओखर जोड़ीदार नइ  मिलिस। बिचारा राहुल  मुहँ उतरे अपन पर्ची देखाइस ओमा  लिखाय रहय।

हैवानियत।

 पूरा कक्षा ल खोज डरेंन फेर ओखर जोड़ी विलोम शब्द के पर्ची नइ मिलिस। सब लइका चिल्लाये लागिस इंसानियत गँवागे, इंसानियत गँवागे। हल्ला ल सुन के हेडमास्टर साहब कक्षा म आगे।  

पूछिस त लइका मन फेर कहिन इंसानियत गँवागे। हेडमास्टर साहब मोला पूछिस इंसानियत कहाँ गवागे। मँय आज ले खोजत हौ फेर मिलत नइ हे।

इंसानियत कहाँ गँवागे।


-🙏🏻 मथुरा प्रसाद वर्मा

छोले भटुरे-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छोले भटुरे-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तन, बदन भले लहू,माँस,हाड़ा-गोड़ा ले बने हे, पर मितान शुद्ध शाकाहरी, वो भी सिरिफ खाय पीये म, मन विचार ल तो महूँ नइ जानँव। फेर खान पान म शाखाहारी घलो होना गरब के बात आय, कम से कम अपन पेट भरे बर तो जीव हत्या नइ करवाय। गाय गरुवा हाड़ा चगल देवत हे, शेर घलो दूध पी देवत हे, त दुनिया के सबले बुद्धिमान पराणी के बारे म कुछु कह पाना मोर बस म नइहे। कब का सोचही, कब का करही, सबे समझ से परे हे। मितान ल एक दिन छोले भटुरे खाय के मन करिस। धन भाग, महूँ ल फोन करके बुलाइस, दुनो झन शहर के एक ठन नामी होटल म बैठेंन अउ छोले भटूरे के ऑर्डर करेंन। होटल के लगझरी सोफा एको ठन रिता नइ रिहिस, केहे के मतलब मनखेच मनखे। कोनो मन दही बड़ा, कोनो मन रंग रंग के बिरयानी, ता कोनो मन इटली-डोसा झड़कत हे। हमू मन छोले भटुरे खायेल लगेंन। खाते खात म मितान ल कट ले कुछु चबइस, मुँह ले निकाल के देखिस, त हाड़ा असन लगिस। हमर संग कुर्सी म अउ दू झन छोले भटुरे खात रहय, तहू म अक्चकागे। इती मितान के

 मइनता भोगागे, रिस तरुवा म चढ़ गिस। जोर से झल्लावत कहिस, ये का छोटे भटुरे म हाड़ा निकल जावत हे। बस सुनत देरी रिहिस, पूरा होटल म खलबली मचगे। वेज म हड्डी निकलगे कहिके , देखो देखो होगे।  नानवेज वाले मन तो कम फेर वेज वाले मन के गुस्सा के ठिकाना नइ रिहिस। वेज अउ नानवेज वाले मन बर रसोई घलो तो एक रिहिथे अउ एके परोसइया बँटइया, हो सकथे उत्ता धुर्रा म,इती उती होगिस होही। मितान कुर्सी ले तिलमिलात उठिस अउ मैनेजर ल दू थपड़ा गचका दिस। आने मन घलो मारे बर लग गिस। मैनेजर बपुरा का करे, गलती तो ओखरे डहर ले होय हे लगत रिहिस। वेटर मन मुँह उतारे कोंटा म खड़े रहय। बनेच हल्ला गुल्ला होइस, मितान कस बनेच मनखे मन बिना पइसा देय गरियावत निकल गिन। नानवेज वाले मन घलो पइसा नइ दिन, उहू मन होटल ल भला बुरा कहत निकलगिन। होटल म सन्नाटा छागे, नाँव खराब अलग से।

          मोटर साइकिल म मितान संग बाहर निकलेन, अउ पान ठेला म पान बनाके मुँह म दबायेंन। मितान ल अटपटा लगिस, देखिस त जे दाँत ल बहुत पहली नकली दाँत लगाय रिहिस ते गायब रहय। मितान ल काटो ल खून नही, दंग होगे अउ अफसोस घलो। होटल के कांड आँखी म झूल गे, छोटे भटुरे खात खात हड्डी नही मितान के दाँत निकल गे रिहिस। फोकटे बवाल होगिस। मितान दूनो लकर धकर उँहा ले भागेंन। महूँ सुनायेंव मितान ल,, कहूँ  धो धा  के देखतिस त पता लगतिस, नकली दाँत ये, तब तो हमर खैर नइ रितिस। मितान होटल मैनेजर ल बनेच जमाय रिहिस, अउ महुँ तो रिस म एकात घाँव हाथ साफ कर दे रेंहेंव। एक दू महीना डर के मारे शहर जाबे नइ करेन। 

            कुछ दिन बाद मितान हॉस्पिटल गिस, अउ दाँत लगाय के बात करिस, त डॉक्टर किहिस-जुन्ना दाँत होही त लग जाही, नवा 10,000 लगही। मितान वो दरी 5000 म लगवाय रिहिस। बेरा के संग 5 ले 10 होना स्वाभाविक हे। अब जे होटल म हल्ला करे रिहिस उँहा थोरे केहे बर जातिस , कि वो मोर दाँत रिहिस। चुरमुरा के मन ल मार 10000 खर्चा करिस।  एक ठन रिस मितान ल महँगा पड़ गे। कास ऊँहिचे पता लगे रितिस, त 10000 घलो बचतिस, अउ होटल के नांव घलो खराब नइ होतिस। 


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

वाइरस - हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन

 वाइरस - हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन 


               दुनियां म एक कनिक ऊंच नीच होय तहन बुद्धिजीवी मन .... फोकटे फोकट सकला जाये । ओकर मन के कायेच काम । एक ठऊर म सकलाये अऊ बिचार मंथन म बुढ़ जाय । इंकर बिचार ला न अभू तक कन्हो मानिस ..... न आघू मानय । फेर यहू मन अतेक अक्खड़ के अपन बूता ला छोंड़बेच नी करय । येकर मन के बात म न रंग रहय न ढंग । फेर पटर पटर मारे बर नी छोंड़िन । येमन न अभू तक काकरो बिगाड़ सकिन ... न बना सकिन फेर बीच बीच म टांग अड़ाये बर नी छोंड़िन । देस के कन्हो सियान तिर इंकर बात आज तक नी रंगिस बलकी ..... इही मन कतको सियान के रंग म रंगगे अऊ तो अऊ दूसर के रंग पाके कन्हो कन्हो अपन जोरदार बनौकी घला बना डरिन । 

                एक दिन के बात आय । गांव के कुछ बुध्दिजीवी मन खइरखाडांड़ म सकलाके पुटुर पुटुर मारत रहय । बिसे रहय दुनिया म बगरे कोरोना वाइरस ......... । किंजरत किंजरत दुर्भाग्य से उही तिर पहुंच गेंव । उंकर बात सुनके मेंहा सोंचे लगेंव ....... एमन ला काये हर्ज हे तेमा ......... येमन फोकटे फोकट फिकर करत हाबय । का इंकर चिंता ले दवई पैदा हो जही तेमा ...... ? इंकर चिंता के वेब ले वाइरस के असर कम हो जही का ..... ? मोरो खखारबिरिंद खजवाये लगिस । फिकर म बुड़े ... बड़े बड़े मुहुं ला देखके पूछ पारेंव के – जग में बगरे कोरोना वाइरस ले काये करना हे कका हो .... ? हमर गांव म थोरेन हे तेमा .......। छत्तीसगढ़िया बुध्दिजीवी हा आंखी तरेरत किहीस - तोरे कस मनखे के सेती छत्तीसगढ़िया मन पिछवाये हन बाबू । जब तक अंतर्रास्टीय स्तर के फिकर नी करबो तब तक ........ अगुवा नी सकन । मोर मुहुं ले निकलगे – दुनिया भर म बगरे कोरोना वाइरस ले जादा .... हमर छत्तीसगढ़ म रोज कहूं तिर भूख म मरत हे ... कहूं तिर इलाज के अभाव म मरत हे ..... कहूं तिर इलाज के प्रभाव म मरत हे । ओकरे बिसे म चिंतन मनन करतेन त हमर प्रदेस ला जादा फायदा होतिस ...... । मोर बात सुन , एक झिन बरसगे अऊ खिसियाके किथे – मुरूख ..... । अइसन गोठ ला बिगन चुनाव के झिन उघार बलकी नावा समस्या के बात कर ........ । येकर ले कन्हो फायदा निये । 

               मोर बुध्दि के स्टेमिना के हिसाब से मेंहा सियनहा बुध्दिजीवी ला केहेव - हमर फिकर करे ले अऊ चिंतन मनन करे ले येकर ले होवइया बीमारी के इलाज बर साधन सुभित्ता पइदा हो जही का ..... ? ओ किथे – नी होय गा ....... फेर कम से कम सरकार तक हमर बात पहुंचही के हमन अंतर्रास्टीय फिकर म ओकर साथ म ठड़े हन ....... त सरकार के दिल ला सुकून मिलही ..... । में पूछ पारेंव - सरकार के घला दिल होथे कका .... ? बापकिन , हम नी जानत रेहेन गो ...... । फेर सरकार के देंहे म दिल अभू अभू जामिस हे या बहुत पहिली के जामे हे ....... ? जवाब म एक झिन किथे – टूरा हा चल गेहे कस लागथे ...... । दिल हा रूख रई आय तेमा जामही रे ..... । बिगन दिल के कन्हो देंहे जिंदा रहि सकत हे का .... ? में पूछेंव - सरकार जिंदा घला हे गा ........ ? कति सरकार के बात करत हस कका ? मोर प्रस्न सुन एक झिन बुध्दिजीवी अपन औकात म उतरगे अऊ मोला लंदर फंदर गारी देके केहे लगिस के ... तैं इहां ले वाक आउट कर .... निही ते मार्सल बलाके निकलवा देबो ....... । बात बिगरे लगिस । बिन पेंदी के कुछ मन चांव चांव करे लगिन । संसद कस एक दूसर ला बिगन बात के हांव हांव करत देख , स्पीकर कस बिगन मुहुं के सियान हा .... बइठका ला स्थगित करे के एलान कर दिस । 

               सांझ कुन बइठका फेर सकलागे ....... बिगन प्रस्नकाल के ....... आतेच साठ बिपक्षी कस पूछ पारेंव - सरकार तिर दिल रहितीस अऊ सरकार हा जिंदा रहितीस त , कोरोना ले जादा जहरा वाइरस के दुष्प्रभाव ले जगा जगा छटपटावत मनखे ला देख ओकर दिल म दरद पीरा नी उठतिस गा ...... अऊ भुगतइया ला नी बचातिस गा ...... । हेल्थ मिनिस्टर कस बड़का बीमारी ले अनजान बुध्दिजीवी कहिथे - दुनिया म करोना ले जादा खतरनाक वाइरस अऊ कहींच निये बाबू ..... । हमर सौभाग्य हे के हमर गांव म ये वाइरस नी फइले हे । तैं कति नावा वाइरस के बात करत हस बाबू ..... ? में केहेंव - हमर गांव , हमर प्रदेश अऊ हमर देश म जो वाइरस बगरे हे , वोहा आज के नोहे .... बलकी बहुतेच जुन्ना आय कका ..... । येकर ले मनखे हा पूरा देश म कहां कहां अऊ कबले नी मरत हे ........ अऊ जिंहां नी मरत हे तिंहां .... ठीक से जी घला नी सकत हे  .......... । 

                 ओमन मोला पूछे लगिस – काये वाइरस आय गा जेहा , अतेक बछर ले बगरे हे जेकर दुष्प्रभाव ले , कतको परेशान हे जेला हमन आज तक नी जानेन ? बड़ पटर पटर मारेस .... बता भलुक .... ? में केहेंव - जानत सबो हो ... फेर बोले कन्हो नी सकव । इहां अंतर्रास्टीय वाइरस के चिंतन नी करहू ते तुंहर नाव कइसे बगरही ........ । नाव कमाये अऊ काम पाये के फिकर अऊ पद प्रतिष्ठा के लालच म अंतर्रास्टीय वाइरस के फिकर ला टोंटा म ओरमाके खुरसी के चक्कर लगाये म इहां के वाइरस नी दिखय गा ......... । बुध्दिजीवी मन मोर बात ला समझिस निही अइसे ..... में नी कहि सकंव .....  ओमन बहुतेच समझदार आय ...... । ओमन जम्मो झिन मोर बात ला समझ गिन फेर , मोर मुहुं ले कहलवाना चाहिन ताकि , बदनाम होनाच हे त मय होंवव ........... । में केहेंव - राजनीति नाव के वाइरस हा हमर देश के बेवस्था , धरम , संस्कृति अऊ सभ्यता ला चुंहक डरे हे ....... । येहा घरों घर म बगरके भाई भाई ला , बाप बेटा ला लड़वा देहे । एक दूसर के प्रति नफरत बिया डरे हे .......  । आज भारतीय अऊ भारतीयता खतम हो चुके हे ...... । इही वाइरस के सेती अमीरी गरीबी के बीच के पाट चौंड़ा होगे हे । इही वाइरस ले उपजे ...... भूख गरीबी बदहाली बेरोजगारी जइसे बीमारी के इलाज के फिकर करतेन त कम से कम ..... हमर देश के भला होतिस ........ । फोकट कोरोना के फिकर म परे हन । राजनीति वाइरस के जियत ले ..... दूसर वाइरस हा .... खुसर के मारे के हिम्मत नी कर सकय । येकर ले बांचव अऊ लोगन ला बचांवव ....... हमर देस म एक भी मौत अकारन नी होही ......... । कोरोना ले दुरिहा रहिबो अऊ नियम धरम के पालन करिबो तब ...... अपने अपन बांच जबो ....... ओहा अपन से हमर तिर म ओधे घला निही ..... फेर ये राजनीति वाइरस हा हमन ला लपेटे बर ..... लुहुर टुपुर करत जीभ लमा के अगोरत तिरे तिर म ओधत हे .... । येकर जीभ ले निकलत बिख ले शायदे कन्हो बांच सकत हन ।

               अतका सुने के बाद भी , बुध्दिजीवी मन , राजनीति के वाइरस ला अपन हिरदे म ऊंच स्थान देके , दुरिहा म टिमटिमावत लालबत्ती के अगोरा म लगगे ......... । 


   हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा.

*मनखे के मारे*-चोवाराम वर्मा बादल

 *मनखे के मारे*-चोवाराम वर्मा बादल


बिहनिया जुवर चौंरा म बइठे कुनकुनहा घाम तापत रहेंव वोतके बेरा एक झन टूरा ह अपन मोबाइल म फूल अवाज म ---बेंदरा के मारे नइ बाँचै कोलाबारी रे गीत ल बजावत नाहकिच।गीत ल सुनके मोर माथा ठनठगे। सोचे लगेंव --ये निरीह प्राणी बेंदरा बेचारा मन फोकट के बदनाम हें।काबर कि दू गोड़ के जानवर मनखे के मारे कुछु नइ बाँचत ये त बेंदरा मन कोलाबारी कोती नइ आहीं त कती जाहीं। जंगल झाड़ी कटागे। उँकर पेट भरे के फल फलहरी बोइर ,तेंदू चार, डूमर ,बर ,पीपर सबो ल मनखे कबजिया लीस। वोमन चिखे तक नइ पावयँ एमन कच्चे म टोर के ले आथें। खेत खार के तिंवरा ,राहेर ,बटरी ,चना ल खान नइ देंवय। तार घेरा करके कुकर धरे रखवारी करत रहिंथे। 

  बेंदरा मन पानी के एकक बूँद बर तरसत रहिथें काबर के मनखे के मारे नदिया- नरवा,ढोड़गी-ढोड़गा,कुँवा-बउली तक नइ बाँचे ये। बैरी मनखे ह सब ला चपल डारे हे। जम्मों सुक्खा परे हें।अपन ह तो बोरिंग ,नल के पानी म गुजारा कर लेथे त वो बेचारा बेंदरा मन भला काय करयँ। मरता काय नहीं करता।तेकर सेती कोलाबारी कोती आथें।तेकरो बर ये मनखे जात गुलेल अउ बंदूक धरे टिपे बर जोहत खड़े रहिथे।

   मोर हिसाब से वो गीत के बोल अइसन होना रहिसे--

मनखे के मारे नइ बाँचय जग सारी रे।

दू गोड़ के ये अइसे जनावर,

जेकर ले देवता हारी रे। मनखे के मारे------

      देवता धामी के सुरता आगे त उहू मन मनखे ले परेशान हें। बेचारा देंवता-धामी मन भागे- भागे फिरत हें। शांति ले जी नइ पावत हें। पोंगा म टाइम-बेटाइम नरिया-नरिया के नहीं ते शंख घंटी बजा-बजा के ये मनखे मन हलकान कर डरे हें।  मनखे ह आय मत सकय सोच के वोमन दुर्गम जंगल,पहाड़ म बसेरा करिन तिहों अब सड़क- पुलिया बना बना के हजारों हजार मनखे आये- जाये ल धरलिन। चैन से रहने नइ देवत हें। कभू-कभू उन डरुवाये-चमकाये बर पहाड़ ल भोसका देथें, ग्लेशियर ल पिघला के भारी बाढ़ ला देथें, भूकंप अउ ज्वालामुखी के प्रकोप देखाथें तभो ले हेरहेट्ठा, गरकट्टा मनखे मन नइ चेतयँ।

     सोचबे त मनखे के मारे कुछु नइ बाँचे हे। न तो नता रिश्ता बाँचे हे, न तो भाईचारा, प्रेम- मुहब्बत बाँचे हे।भाई ह भाई के गला रेतत हे। पइसा खातिर खुद ल तको बेंच डारत हे। बेइमानी के आगू ईमान-धरम सब फीका होगे हे। नैतिकता के बात निचट मजाक कस लागथे। सीता हरण रोज होवत हे। नल -नील इंजीनियर मन ल ठेकेदार मन खरीद डरे हें। अंगद के गोड़ ल भ्रष्टाचार ह काट ले हे। कुर्सी म बइठे हजारों शकुनी मन,दुर्योधन बर पासा ढुलोवत हें। भीष्म पितामह अउ पांडव जइसे मन हमला का करना हे कहिके धृतराष्ट्र संग आँखी ल मूँद ले हें। द्रौपदी के चीर हरण सरेआम होवत हे।

     ये मनखे के मारे कुछु नइ बाँचे हे। फेर कोनो ल अगर कुछु बाँचे दिखत होही त वो सिरिफ इंसान के कारण बाँचे हे जेमा थोक-बहुँत इंसानियत बाँचे हे।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Sunday 7 February 2021

विरोध*-रामकुमार चन्द्रवंसी

 *विरोध*-रामकुमार चन्द्रवंसी


विरोध मनखे ल कभू ऊँचा उठा देथे,त कभू खाल्हे घलो गिरा देथे।जब मनखे परहित बर विरोध करथे, तब मनखे के मान बढ़ जथे,अउ खुद के सुवारथ बर विरोध करथे तब मान घटथे। हम ला चाही कि हम सोच-समझ के कोई मनखे या ओकर विचार के विरोध करन।

        संसार मा हर मनखे ले हम ला कुछ न कुछ जाने सुने अउ सीखे बर जरूर मिलथे।चाहे बैरी होवय या मीत। सीख देवइया कोई होवय,जरूर सीख लेना चाही।कोई मनखे ल अपन विरोधी मान के ओकर हर बात के विरोध करना अपनेच पाँव मा टंगिया मारे के समान हे। नीत या गियान के बात बोलइया भले बैरी होवय,बने बात के समर्थन जरूर करना चाही।      

         मनखे ल गलती के पुतला कहे जाथे, लाख बने करे के कोशिश करे,पर कभू न कभू गलती होइच जथे।बने मनखे अपन गलती के विरोध होये मा विचार करथे,कहाँ गलती होइस सुधार करथे, जिद्दी अकड़थे।

           सोच के आधार मा विरोध के दू प्रकार होथे।एक सकारात्मक अउ दूसरा नकारात्मक।जब कोई मनखे गलती करे ल लगथे,तब वोला रोके बर विरोध होथे, वोला सकारात्मक विरोध कहे जाथे। सकारात्मक विरोध ले गलती करइया हर गलती करे ले बच जथे।

          नकारात्मक विरोध वोला कहिथे,जब कोई मनखे बने काम करत रहिथे,पर बने करइया मनखे ले नइ पटे के कारण होवत बने काम ल रोके बर विरोध होथे। नकारात्मक विरोध समाज बर कलंक हे।

         काम के आधार मा घलो विरोध दू प्रकार के होथे।अहिंसात्मक अउ हिंसात्मक। जब कोई गलत काम के विरोध कोनो ल नुकसान पहुँचाय बिना शांति पूर्वक करथे,तब वोला अहिंसात्मक विरोध कहे जाथे। शान्ति पूर्वक रैली निकाल के विरोध करना,करिया पट्टी लगाके काम करना,अहिंसात्मक विरोध के उदाहरण आवय। हिंसात्मक विरोध वोला कहिथे,जेकर ले जन धन के बड़ नुकसान होथे।

काकरो मोटर-गाड़ी ल जलाना, रेलगाड़ी के पटरी उखाड़ना, मार-पीट करना, हिंसात्मक विरोध आवय।हिंसात्मक विरोध हर मनखे के परान ल घलो  ले लेथे।हिंसात्मक विरोध ले बैर बाढ़थे।एकर ले सदा बच के रहना चाही।

           अनीत करइया मनखे ल नीत के रद्दा मा रेंगाये बर विरोध धरम होथे।अपन सुवारथ बर विरोध करना, काकरो गलत काम के विरोध नइ करना पाप होथे। हम ला सदा सकारात्मक विरोध करना चाही,नकारात्मक नहीं।


            राम कुमार चन्द्रवंशी

            बेलरगोंदी (छुरिया)

            जिला-राजनांदगाँव

            9179798316

छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग - छत्तीसगढ़िया मन बर लॉलीपॉप

 छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग - छत्तीसगढ़िया मन बर लॉलीपॉप 


जब कोनो के संस्था के नाम ल सुनथन तब ओकर ले ओकर काम अउ बेवहार के बारे मा अनुमान लगाथन। ओकर उद्देश्य के बारे मा परतीत करथन। जब छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग कहिथन, तब मन मा सवाल उठथे, छत्तीसगढ़ राज के कोन भाखा बर ये आयोग हरे? छत्तीसगढ़ मा तो गजब अकन भाखा हे, अउ आज तक छत्तीसगढ़ के  राज भाषा  तो हिंदी रहिस हे।  किसिम-किसिम मन मा बिकल्प आथे। छत्तीसगढ़ राज भाषा काबर होइस? छत्तीसगढ़ी राज भाखा काबर नइ होइस?

 जब ये बात ला बने किसम ले खोधियाथन, तब आयोग के नाम गढ़इय्या मनखे मन के नीयत मा सवाल उठथे। सही मायने मा ये कहे जाय कि उनकर मन न छत्तीसगढ़ के माटी बर का मान हे अउर न तो छत्तीसगढ़ी भाखा बर? सोझ कहे जाय तब  छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया  हर तो उनकर मन बर सुवारथ सिद्ध करे के माध्यम आय। 

छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग ले प्रशासनिक शब्दकोश बने हे,  ओकर भूमिका मा लिखे गे हे , "छत्तीसगढ़ी हर दूसर राज भाषा आय।" मतलब छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़ी दोयम दर्जा मा हे। अउ कोनो भाखा जब तक दोयम दर्जा मा रहही तब तक ओकर बिकास नइ हो सके। 

'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' ये नारा हर छत्तीसगढ़िया मन बर लॉलीपॉप आय। ये नारा हर छत्तीसगढ़िया मन ला भुलियारे बर गढ़े गे हे। छत्तीसगढ़,  छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया वोट बैंक आय। इही किसम ले राज भाषा आयोग हर भुलियारे बर बनाय गे हे। 

राज भाषा आयोग के काम-काज के हम थोरिक बने ढंग ले बिस्लेस्न करबो तब हम एक सादा हाथी ह

अस सुग्घर सोभायमान दिखथे। देख के मन खुश हो जाथे। साल मा दू ठन आयोजन होथे जेमा जाके ठेठरी -खुरमी, खेड़हा, जिमीकांदा खा के मन गुदगुदा जाथे,  हम मन छत्तीसगढ़िया आना। अउ ये हर हमर अस्मिता के आय , राज भाषा आयोग। 


-बलदाऊ राम साहू

खतरनाक गेम

 खतरनाक गेम 

                    सरकार हा .... ब्लू व्हेल कस खतरनाक गेम ले होवत मौत के सेती ...... फिकर म बुड़े रहय । एक दिन ......... अइसन मौत बर जुम्मेवार जम्मो गेम उप्पर ..... प्रतिबंध लगाये के घोषणा कर दीस । हमर गांव के एक झिन , भकाड़ू नाव के लइका हा .... गेम उपर प्रतिबंध लगत जइसे सुनिस .... तहन वहू हा सरकार तिर ..... एक ठिन ओकरो ले जादा खतरनाक गेम उप्पर ..... प्रतिबंध लगाये बर ...... गोहनाये लगिस । सरकार हा बिगन ओकर कुछु बात सुने ..... साफ मना कर दिस । पढ़हे लिखे भकाड़ू हा कछेरी पहुंचगे अऊ नालिस कर दिस । कछेरी म जज पूछिस – तोर ये गेम हा कइसे खतरनाक हे  .... तेमा प्रतिबंध लगवाये बर पहुंचगे हाबस । भकाड़ू किथे – हमर देस के किसान मन ..... जे गेम ला खेलत आवत हे जज साहेब ..... तेमा ...... हमरे जानती म , कतको फांसी लगाके ...... जहर खाके ..... ट्रक ट्रेक्टर के आगू चपकाके .... , अपन प्राण ला दे दिस । हमर गेम बहुतेच खतरनाक हे जज साहेब ..... , येला खेलइया मनखे हा , भूख प्यास त्याग के ... बारों महिना लगे रहिथे । कनिहा कूबर के टूटत ले खेलथे .... तभो ले करजा म बुड़े रहिथे अऊ जुच्छा कटोरा धरे ....... धान गहूं चना के दाना दाना बर तरसत मर जथे ..... । ये ब्लू व्हेल गेम ले , जादा खतरनाक हे साहेब , ब्लू व्हेल गेम तो सिर्फ , खेलइया के जान लेथे साहेब , ये खेल म तो , पूरा परिवार के परिवार खतम हो जथे , एमा जतका जलदी हो सके प्रतिबंध लगवा देतेव , हमरो घर परिवार गांव अऊ देश बांच जतिस । 

                    अदालत किथे – तोर हालत ला देख के लगय निही के , तूमन अइसन कन्हो गेम खेल सकत हव , जेमा जान चल देथे .... । जज साहेब हा सरकारी वकील कोती देखिस । सरकारी वकील जवाब देवत किहीस – सरकार केवल उही गेम म प्रतिबंध लगाये हाबे .... जेहा मोबाइल म खेले ले ..... प्राण लेथे । येहा गरीब मनखे आय , येकर तिर मोबाइल कतिहां ले आही तेमा .... ? भकाड़ू किथे – हमर हाथ म कुदारी .... रापा गैंती .... टुकना झउंहा अऊ नांगर के मूठ रिथे जज साहेब , हमन किसान आवन साहेब ..... हमन ला ओतका फुर्सत कहां के ...... मोबाइल के बटन चपक सकन । हमन अपन खेत म , पछीना के बोहावत ले खेलथन तब , अन्न के रन बनथे ........ । चाहे चरचर ले घाम उवे ..... चाहे हाड़ा कांपत जाड़ ...... चाहे कतको बादर पानी पदोये ....... सबला झेल के .... खेत अऊ खलिहान म माटी संग खेलके सरी दुनिया के धोंध भरइया ...... कतेक दिन जीही साहेब ........ । अइसनो म घला ..... जी जतेन जज साहेब फेर ..... हमर विकेट गिराये बर उही मन पाछू परे रहिथे ..... जेमन हमरे गेम के रन ला भुकुर भुकुर के खाथें अऊ मोबाइल म ब्लू व्हेल गेम खेलत .... हमरे संग गेम खेल देथे साहेब ...... । जे दिन हमर गेम म प्रतिबंध लग जही .... वो दिन .... न काकरो हाथ म मोबाइल रहि , न कन्हो प्रकार के अइसन मीडिया ..... तब कोन ब्लू व्हेल गेम खेलही अऊ कोनेच हा मरही ......। हमरो उप्पर कृपा करव , हमर गेम म प्रतिबंध लगवाके .... हमू मन ला बचालव ...... । 

                    सरकारी वकील घला तैयारी ले आय रहय । ओहा जवाब देवत किहीस – जज साहेब .....  किसान के ..... कन्हो गेम म प्रतिबंध लगाबो .... त जम्मो देस म बिपक्षी मन , फोकटे फोकट चिचियावत हावी हो जही । सरकार के थुवा थुवा हो जही । हमर देश के किसान ला दुनिया के सबले गरीब तबका मान के ..... उंकर तिर म जाके ..... बिसेस ध्यान रखइया रहनुमा आवन हमन ...... ओकर स्वतंत्रता म हमन बाधा नी परन ......। ब्लू व्हेल गेम खेलइया कतकेच मनखे हे जज साहेब ....... ओकर उप्पर प्रतिबंध लगइच दे हाबन ..... त कोनेच ला कतका फरक परिस ..... । भकाड़ू कहितेच रहय – हमर कोई रहनुमा नइये जज साहेब ..... जे हमर सबले तिर म खड़े हन किथे तिही मन ..... स्टम्पिंग करके हमन ला धरती ले आऊट कर देथे .... । चारों डहर के चांव चांव म भकाड़ू के बात दबगे .... ।  

                     केस खारिज करत .... अदालत हा सिर्फ अतके किहीस के ...... किसान अपन गेम खेले के सेती निही ....... बलकी अपन संग ..... गेम खेलइया के सेती ...... मरत हे । दूसर संग गेम खेलइया उप्पर , हमर देश म कन्हो कानून निये , तेकर सेती , अइसन मन के उप्पर अदालत के कन्हो जोर निये .......।  

  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

माटी के मितान-मिमर्श

माटी के मितान-मिमर्श

              

                          'माटी के मितान' गद्य के सशक्त हस्ताक्षर 'श्रीमती सरला शर्मा' द्वारा लिखे द्वितीय उपन्यास आये। अइसे तो छत्तीसगढी ला राजभाषा के दरजा मिले के बाद छत्तीसगढी में लेखन के बहार आगे लेकिन छत्तीसगढ़ी में उपन्यास लिखइया मन के संख्या ल ऊंगली में गीने जा सकत हे; वोमा सरला शर्मा के नाव प्रमुखता से लिए जा सकत हे।  छत्तीसगढ़ी महतारी के नोनी सरला शर्मा ह ये उपन्यास के लेखन करके माटी के मितान अर्थात किसान संगवारी मन के जीवन संघर्ष से जन जन ला रुबरु करा दीन। सन 2000 में छत्तीसगढ़ प्रदेश के गठन होइस अऊ सन 2006 में 'माटी के मितान' वैभव प्रकाशन रायपुर से प्रकाशित होइस। तब सरकार के प्रथम पंचवर्षीय योजना सिराय रिहीस.... माटी के मितान सरकार के वुही योजना के ज्वलंत दस्तावेज आय।

                इही उपन्यास के समीक्षात्मक कृति आय 'माटी के मितान :सम्यक दृष्टि' ह। चूंकि ये सो पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के स्नातकोत्तर हिंदी विषय के पाठ्यक्रम में 'माटी के मितान' उपन्यास सम्मिलित करे गे हे अतः पढ़ईया नोनी बाबू मन ल वोखर से संबंधित पाठ्य सामग्री आसानी से उपलब्ध हो सके ये उद्देश्य से 'माटी के मितान : सम्यक दृष्टि' लिखे गे हे। येला पढ़के विद्यार्थी गण उपन्यास में रेखांकित छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक प्रगति के संभावना ल जान सकहीं, साथ ही महिला सशक्तिकरण अऊ गांव के विकास गाथा ल  समझ सकहीं।

          मोर समीक्षात्मक कृति सरला शर्मा जी के जन्म अऊ साहित्यिक परिचय से प्रारंभ होय हे। क्रमशः उपन्यास के सामान्य विवेचन के बाद उपन्यासों के श्रृंखला में माटी के मितान के स्थान, उपन्यास के तत्वों के आधार पे माटी के मितान के आलोचना, उपन्यास के सारांश, उपन्यास में स्त्री विमर्श, माटी के मितान के महत्वपूर्ण गद्यांश के व्याख्या आदि पे प्रकाश डाले गे हे। 

         हमर कृति ल आप मन के मया दुलार मिले; यही प्रभु से बिनती है।

प्रो. (डॉ) अनसूया अग्रवाल डी. लिट्.

प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष हिंदी

शा. म. व. स्नातकोत्तर महाविद्यालय महासमुंद (छ. ग.)

माटी के मितान ....एक नज़र मं

 माटी के मितान ....एक नज़र मं 

   कथानक उपन्यास के प्राणतत्व होथे त माटी के मितान के कथानक छत्तीसगढ़ अलग राज बने के बाद यानी सन 2000 के बाद के आय जब विकास के अंजोर छत्तीसगढ़ के गांव गांव मं पहुंचे सुरु कर देहे रहिस काबर के ए उपन्यास के रचनाकाल प्रकाशन 2005 / 2006 आय । 

    सिवनी गांव के सरपंच बड़े तिवारी ( मुरली मनोहर ) के परिवार मं उंकर महतारी नवा दीदी के दुलार , पत्नी सत्यभामा  के आदर सनमान छोटे बड़े , नता रिश्ता , हितू पिरितू सबो बर बरोबर दिखथे । कथावस्तु मौलिक हे त समुन्नत गांव के कल्पना भी शामिल हे , जागरूक , परोपकारी सरपंच के नज़र छत्तीसगढ़ मं आंध्र प्रदेश ले आए सबरिया गोंड जात के किसान जेमन द्राही खेती करथें , गुजरात ले आए खानाबदोश डंगचघा जेमन वीर बांकुरा होथें डांग मं चढ़ के किला के ऊंच परकोटा ले कूद के किला जीते मं  सहायता देवयं इहां बांस के सहारे करतब देखाथे उनमन बर स्थाई डेरा माने पट्टा मं जमीन देवाये के कोसिस त राजस्थान गुजरात के  सीमा प्रान्त ले आये सील लोढ़ा बेचइया , गोदना गोदइया , रिंगनी बाजा बजा के नाच गा के रतनपुर राज दरबार मं आसरा पवइया मन के विवरण हे । 

   कथानक ल विस्तार देथे मल्हार , रतनपुर , बुड़ीखार , पाली के सांस्कृतिक , पुरातात्विक महत्व के वर्णन विश्लेषण हर । कथानक ल विस्तार देहे  बर लेखिका हर प्रसंग मुताबिक विवेचनात्मक , वर्णनात्मक , संस्मरणात्मक , विश्लेष्णात्मक शैली के प्रयोग करे हे जेकर सेतिर पाठक के रुचि अउ जिज्ञासा बढ़त रहिथे । 

   सामाजिकता मं बदलाव तो आए हे संयुक्त परिवार टूटत जावत हे , भूमिहीन किसान मन के कमाए खाये जवाई अभियो बन्द नइ होए हे त उनमन बर नवा रोजगार योजना , धान के अलावा आने आने फल फूल , साग भाजी के उन्नत खेती ,बीज ख़ातू पानी के बेवस्था बर सरकारी उदिम , किसान अउ किसानी ल समुन्नत करे के उदिम के वर्णन घलाय हे । 

   ए उपन्यास मं गांव गांव के शिक्षा , रोजगार , सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक बदलाव , छत्तीसगढ़ ल उन्नत राज बनाये के सपना सबो हर मिल के कथानक ल पोट्ठ करथे । गांव के सर्वांगीण विकास के कहिनी आय जेहर यथार्थ , कल्पना अउ आदर्श के त्रिवेणी बन के उपन्यास के कथानक मं लहरावत दीखथे । डॉ सुधीर शर्मा " यात्रा का पुट लिए सांस्कृतिक चेतना को उद्बुद्ध करता उपन्यास " कहा है ।

 डॉ परदेशी राम वर्मा " अति और आत्म दया से बचकर संतुलित और प्रेरक चरित्रों का सृजन ....यथार्थ के धरातल पर पांव  रखने का उनका (  लेखिका ) अंदाज , शैली दूसरों को प्रेरित करता है । " 

    माटी के मितान उपन्यास के बारे मं डॉ अनुसूया अग्रवाल के किताब " माटी के मितान : सम्यक दृष्टि " पठनीय हे । 

   सरला शर्मा

विमर्श के विषय-- समीक्षा अउ कुंजी मा अंतर*


*विमर्श के विषय-- समीक्षा अउ कुंजी मा अंतर*


   समीक्षा अउ कुंजी मा साहित्य के दृष्टिकोण ले बहुते अंतर हावय।  

  समीक्षा अउ कुंजी मा ओइसने फरक हे जइसे चलनी अउ चाबी(कुची)  म होथे। दूनो के राशि भले एक हे फेर  गुण अउ काम म भारी  अंतर हे। चलनी ह गोंटी- माटी  अउ चाँउर ल चाल के अलग- अलग कर देथे वइसने  समीक्षा ह कोनो रचना के साहित्यिक गुण -दोष ल पाठक के आगू म फोरिया के रख देथे।  हाँ अतका जरूर हे कि जेन  म चाहे कोनो कारण ले होवय केवल गुण या केवल दोष के चर्चा हे त वो ह बस नाम के समीक्षा आय ।वोकर ले साहित्य के भला नइ हो सकय। ए तो अइसे होगे के चलनीच म उटपुटांग छेदा हे जेमा दाना सँग गोंटी तको बुलकगे।

   समीक्षा ह एक प्रकार ले सूपा आय जेन फोकला अउ दाना ल अलगिया देथे।

साहित्य म समीक्षा के अबड़े महत्व हे। ए हा पाठक ल नँवा दृष्टिकोण देथे। कुशल समीक्षाकार ह कुछ अइसे बात बताथे जेला शायद पाठक ह सोचे तक नइ राहय अउ इही चीज ह आनंद के अनुभूति कराथे, साहित्यिक रस देथे।

        समीक्षा के तुलना म कुंजी निचट फोसवा होथे। एहा साहित्यिक रस के दृष्टिकोण ले चुहके खुशियार कस निचट छोइहा होथे। कोनो परीक्षा रूपी ताला ल खोले बर ककरो बनाये चाबी आय कुंजी ह। प्रश्न अउ उत्तर। कुछु सोचे विचारे के बात नइये ।पाठ म जेन लिखाये हे तेकरे प्रश्न बनाले अउ उही में के उत्तर।

आनंद के जगेच नइये उल्टा बोरियत जादा हे। ओकर ले अच्छा तो खुद उत्तर खोजे म आनंद आ सकथे।


चोवा राम "बादल"

हथबंद, छत्तीसगढ़

समीक्षा अउ कुंजी म अंतर : एक विमर्श*

 *समीक्षा अउ कुंजी म अंतर : एक विमर्श*

        समीक्षा साहित्यिक रूप ले कोनो भी प्रकार के साहित्य के कसौटी आय। जेमा वो साहित्यिक विधा के शिल्प ले कोनो रचना के गुण अउ दोष ल उजागर करत पाठक के बीच रखे जाथे। पाठक ल समीक्षा ह नवा सोच देथे। लेखक /कवि अउ पाठक के बीच समीक्षक एक पुलिया(सेतु) बनाथे। पाठक कभू-कभू जिहाँ तक नइ सोच पाय रहय वहू ल समीक्षक अपन समीक्षा ले सोचे के मउका देथे। समीक्षा म साहित्यिक विधा ले जुरे सिरिफ गुन-दोष नइ रहय। एमा लेखक के दृष्टिकोण ल घलव समोखे जाथे। लेखन के उद्देश्य ल घलव उजागर करे म समीक्षा के बड़ महत्तम होथे, काबर कि कोनो कोनो रचना ल पढ़के लिखे के उद्देश्य/संदेश एक साधारण पाठक ल समझ नि आय। एक तरा ले समीक्षा ह रचना के परीक्षा ए। जेमा रचना पास होके वइसेच निखरथे, जइसे सोना आगी म तपके अउ चमकथे। इही पाय के रचनाकार मन समीक्षा के नाँव ले घातेच डर्राथें। आज समीक्षा करई घलव आसान नि रहिगे हे। समीक्षा कठिन बूता आय। निमगा समीक्षा होइस तहान ले भरभरी लगथे। समीक्षक ह कोनो ल फूटे आँखी नि सुहाय। समीक्षा हर कोई नि लिख सकय। समीक्षा लिखे खातिर रचना के विषय, विधा अउ लिखइया के उद्देश्य अउ प्रसंग ल बरोबर समझे ल परथे। 

      मोर नजर म कुँजी के कोनो साहित्यिक सरोकार नि हे। कुँजी म साहित्यिक रचना के न गुण-दोष मिलय अउ न साहित्यिक भाषा। कुँजी म परीक्षा ल पास करे बने प्रश्न मन के उत्तर रहिथे। कुँजी के नाँव सुन के रचनाकार घबराय नइ, भलुक नाचे लगथे। मन लगा के पढ़इया हुशियार लइका मन किताब ल गहिर ले पढ़के कुँजी के बदला अपन अनभो ले परीक्षा म बढ़िया अंक ले पास होथे। जी चोरइया लइकच मन कुँजी के भरोसा बइठे रहिथें। रिजल्ट आय के बाद आँसू बोहाथे। किताब म गहिर ले पढ़े हुशियार पढ़इया के उत्तर मन घलव एक बढ़िया कुँजी हो सकत हे। कहे के मतलब कुँजी लिखना जतका सरल हे, समीक्षा लिखना ओतके कठिन हावय। कमती चीज पढ़े ले कमतिच लिखाही, ए बात समझे ल परही। मैंगो फ्रुटी पीए ले आमा खाय के मजा नइ मिलय, वइसने कुँजी पढ़े ले मूल रचना के आनंद मिलबे नइ करय। कुँजी पढ़के मूल किताब पढ़े के मन नि होय, फेर समीक्षा पढ़े ले मन घेरी-भेरी किताब खोजेबर धर लेथे।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

समीक्षा अउ कुंजी*-अरुण कुमार निगम

 *समीक्षा अउ कुंजी*-अरुण कुमार निगम


(1) "समीक्षा", साहित्य के एक मान्यता प्राप्त विधा आय जबकि "कुंजी" परीक्षा पास करे के शॉर्ट कट अउ सस्ताहा साधन।


(2) समीक्षा के संबंध सुधि-पाठक मन से जुड़े होथे अउ कुंजी के संबंध मेहनत नइ करने वाला कमजोरहा या मजबूर विद्यार्थी के संग जुड़े हे। इहाँ मेहनत नइ करइया विद्यार्थी के मतलब अइसन नियमित विद्यार्थी से आय जेमन कालेज / विद्यालय ला मस्ती करे के केंद्र मान के चलथें। पढ़ाई के प्रति गंभीर नइ रहंय। मजबूर विद्यार्थी के मतलब अइसन विद्यार्थी से हे जउन मन कहूँ नौकरी करत हें, समय नइ निकाल पावत हें अउ अपन पदोन्नति बर डिग्री के चाह मा प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप मा परीक्षा देथें। 


(3) कैरियर अउ भविष्य बर जउन विद्यार्थी मन गंभीर रहिथें वोमन कुंजी के चक्कर मा नइ रहंय। ये मन निर्धारित टेक्स्ट बुक के अलावा आने लेखक मन के किताब खोज खोज के पढ़थें। आर्थिक रूप से सक्षम मन खरीद के पढ़थें। आर्थिक रूप से कमजोर मन लाइब्रेरी या वरिष्ठ विद्यार्थी मन ले किताब के व्यवस्था करथें। अइसने विद्यार्थी मन प्रावीण्य सूची मा अपन नाम लाथें। 

(4) समीक्षा के आधार मूल किताब होथे। कुंजी के आधार पिछला 5 साल के अनसाल्व्ड प्रश्न-पत्र होथे। कुंजी पढ़ने वाला मन येन केन प्रकारेण, परीक्षा पास करे के उपाय करथें। अब ये विद्यार्थी के किस्मत होथे कि कुंजी मा छपे कतका प्रश्न ओखर परीक्षा मा "फँसथें"। 


(5) समीक्षा किताब, प्रकाशक के साहित्यिक समझ के परिचायक होथे जबकि कुंजी के प्रकाशक के नीयत पइसा कमाए के होथे। कुंजी-प्रकाशक के विद्यार्थी के ज्ञानवर्द्धन से कोनो संबंध नइ रहे। 


(6) समीक्षा किताब छपे के अर्थ हे कि मूल किताब मा दम हे। किताब मा दम रही तभे कोनो लेखक अपन जेब के पइसा खर्चा करके समीक्षा किताब लिखे के हिम्मत करथे। कई प्रकाशक मन अइसन सुग्घर किताब ला अपन खर्चा से घलो छापथें। 


(7) अगर कोनो लेखक के "समीक्षा किताब" के कारण साहित्य-समाज मा खलबली मच जाथे तो ये अपन आप मा प्रमाण हे कि "मूल किताब अउ समीक्षा किताब निसंदेह उत्कृष्ट किताब आँय"। श्रेष्ठ रही तभे तो खलबली मचही (भला उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद कैसे वाले भावना के कारण) घटिया सामग्री बर खलबली कोन मचाही? एकर ठीक विपरीत "कुंजी" के प्रकाशन के कारण कभू खलबली नइ मचे। 


(8) समीक्षा किताब के विधिवत विमोचन होथे अउ कुंजी किताब के विमोचन मोर देखे सुने मा अभी तक नइ आए हे। 


*मोर निजी विचार मा समीक्षा अउ कुंजी मा इही 8 अंतर होथे*


आप मन सब मोर ले बहुत ज्यादा विद्वान हव। ये 8 बिंदु के अलावा अउ अंतर ला बता सकथव।


*अरुण कुमार निगम*

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मोर नज़र मं किताब के विमोचन -सरला शर्मा

 मोर नज़र मं किताब के विमोचन -सरला शर्मा

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        विमोचन शब्द संस्कृत के आय ओ ये तरह के .... वि  (  विशेष )  मुच् ( मुक्त करना )  ल्युट प्रत्यय । सहज अर्थ होइस बंधन से मुक्त करना । जब तलक लेखक अपन भाव , विचार ल कलेचुप कागज मं लिखत रहिथे ओहर लेखक के निजी जिनिस रहिथे ..बड़ मेहनत से सबो विचार मन ल गद्य / पद्य विधा मं लिखथे फेर मनसे के मन तो आय कुलबुलाये लगथे के चार झन गुनी -  मानी मनसे ओकर लिखे ल पढ़यं , जानयं , समझयं भर नहीं सराहयं घलाय इही ल कहिथें छपास रोग । छपास रोग के रामबाण दवाई हे अपन लिखे ल छपवाना माने किताब के रूप देना फेर किताब ल चार हाथ तक पहुंचाए बर भी तो  परथे त इही काम ल किताब के विमोचन कहिथें । जेन किताब लेखक के निजी अलमारी मं रहिस ओला निजत्व के बंधन ले मुक्त करे के उदिम हर किताब विमोचन कहाथे । जे दिन किताब के विमोचन होथे उही दिन ले किताब लोगन के हाथ मं पहुंच जाथे ...सुरु होथे किताब के बारे मं बने -  मइहन , सधारण- , असाधारण, उत्तम-  मध्यम के विश्लेषण , विवेचन जेला समीक्षा कहे जाथे । 

किताब विमोचन के मौका मं दू चार - झन बुधियार मन किताब के बारे मं अपन विचार रखथें फेर लोगन ओला सुन के भुला जाथें त लेखक हर भी किताब लिखे के उद्देश्य , उपयोगिता ल बताथे फेर ए सबो हर किताब के बड़ाई भर होथे काबर के विमोचन हर एक तरह से नवा जनमे लइका के जनम के खुशी जताना तो आय । 

    किताब विमोचन के जघा किताब के लोकार्पण हर जादा उचित लगथे काबर के किताब जेहर प्रकाशन के पहिली तक लेखक के निजी रहिथे ...विमोचन के दिन उही किताब ल लेखक लोक ( लोगन ) ल अर्पित करथे ...माने जन जन के हाथ मं सौपथे जरुर लेखकीय हक ओकरे रहिथे फेर बने मइहन कहे के हक तो लोगन ल मिल जाथे एकरे बर लोकार्पण शब्द हर जादा सटीक लागथे ...तभो गुने लाइक बात तो एके ठन हे के लेखक के विचार हर किताब रूप मं पाठक मन के हाथ मं पहुंचथे जेला किताब विमोचन कहव या किताब लोकार्पण उद्देश्य तो एके आय । 

     रहिस बात मोर नज़र मं किताब विमोचन के त एहर जरूरी बात आय ,पहिली बात लेखक किताब लिखे के खुशी ल चार झन संग बांटथे दूसर बात के आत्म प्रशंसा , आत्म मुग्धता ले उबरे के मौका मिलथे ..। मैं कवि , लेखक , समीक्षक अउ बहुत अकन आंव  तेला कहत तो  मोर मुंह नइ  पिरावय फेर मोर लिखे किताब ल पढ़के लोगन मोला काय कहिहीं , मोर लेखन शैली , भाषा , विषय वस्तु के प्रतिपादन कइसे हे तेला तो किताब पढ़इया च मन बताहीं न ? उही हर तो मोर मूल्यांकन होही ..त मोर नज़र मं किताब के विमोचन के उपयोगिता इही हर आय । 

   लोकाक्षर के बुधियार सदस्य मन के विचार के अगोरा मं 

     सरला शर्मा

किताब के प्रकाशन अउ विमोचन*अरुण कुमार निगम

 *किताब के प्रकाशन अउ विमोचन*अरुण कुमार निगम


एक किताब लेखक या कवि के नाम से ज्यादा उँकर स्तर के दर्पण होथे। पाठक ल नाम प्रभावित नइ करे, रचना के स्तर प्रभावित करथे। कई झन कवि अउ लेखक मन नाम कमाए के चक्कर मा अलवा-जलवा रचना के संकलन छपवा देथें। अइसन किताब मन आत्म-संतुष्टि जरूर दे सकथें फेर नाम ला अमर नइ कर सकें। आज दिल्ली, यू पी के फुटपाथ मा बड़े बड़े तथाकथित नामधारी कवि अउ लेख के किताब 150 रुपिया किलो के रेट मा बिकत हें। छत्तीसगढ़ के फुटपाथ मा यहू रेट देखे बर नइ मिले। अइसन स्थिति मा किताब छपवाए के एक्के मतलबे निकलथे - आत्मसंतुष्टि बर पइसा खर्चा करना। 


किताब छापना एक प्रकार के व्यवसाय होथे। 15-20 हजार मा किताब छापे ले ओखर व्यवसाय नइ चले। वो अइसे किताब छापना चाहथे जेकर पब्लिक डिमाण्ड हो, शासकीय संस्था के ग्रंथालय ला बेचे के लाइक हो, तब वो मुनाफा कमा सकथे। लाखों के छपाई मशीन, टेक्निकल स्टाफ, कागज, स्याही, खड्डा पुट्ठा, दुकान किराया, बिजली बिल, सरकारी टैक्स, प्रेषण-व्यय आदि के खर्चा, 15-20 हजार मा किताब छाप के नइ निकल सके। तभो व्यवसाय चलत रहे, मशीन बन्द झन हो, स्टाफ ला बिना काम के तनखा झन देना पड़े तेपाय के वोमन अलवा जलवा किताब घलो सहर्ष छापथें। उँकर अगोरा हमेशा पब्लिक डिमाण्ड वाले किताब के होथे। 


आयोग घलो किताब छापे बर 10000 के अनुदान देथे, वोकर मानना हे कि किताब छपे ले नवा रचनाकार मन प्रोत्साहित होथें। मोर मानना हे कि बिना गुणवत्ता के किताब प्रोत्साहन नइ दे भलुक नवा रचनाकार के प्रतिभा ला रोक देथे। किताब छपे के बाद रचनाकार के मन मा एक सहज गुरुर आ जाथे कि मोर किताब छप गे माने अब महूँ बड़े साहित्यकार बन गेंव। इही विचार के कारण वो अउ अच्छा करे बर प्रोत्साहित नइ होवय। अगर सारगर्भित अउ गुणवत्ता के रचना नइये, त किताब छापे के सपना नइ देखना चाही। ये कदम अपन आप बर घातक होथे। जब उत्कृष्ट रचना के संकलन तैयार हो जाये तभे किताब प्रकाशन के सोचना चाही। जइसे पइसा मा जिनगी नइ खरीदे जा सके वइसने पइसा मा नाम नइ खरीदे जा सके। 


अब बात करत हँव विमोचन के। कुछ रचनाकार, किताब छपवाए के बाद कोनो बड़े आयोजन या बड़े मंच के मुँह ताकत रहिथें। हाथ गोड़ जोड़ के, जोजिया के अइसन आयोजक के दया के पात्र बने बर तैयार रहिथें। ये विमोचन के बाबत एको लाइन निमंत्रण पत्र मा नइ दिखे। जउन बड़का तथाकथित नामधारी मन विमोचन बर चकमकी रैपर ला फाड़ के फोटू खिंचाथें, वोमन सुरता घलो नइ रखें कि कोन मंच मा काखर काखर किताब के विमोचन करे हन। अइसन मन सप्रेम भेंट मिले किताब ला पढ़े तक नइ। आयोजन के बाद टेबल मा छोड़ के चल देथें, अइसन *कर-कमल* का मतलब के ? ये कइसन विमोचन समारोह आय जेमा रचनाकार ये न बताए कि मँय काबर ये किताब लिखे हँव, आयोजन मा किताब के समीक्षा तको नइ होवत हे त कइसे के विमोचन होगे ? 


कई मंच मा 15-20 किताब के झाराझार विमोचन हो जाथे। मंच के अतिथि मन एक के बाद एक किताब के रैपर फाड़त जाथें, फोटो खिंचवावत जाथें अउ होगे विमोचन। अइसन भीड़भाड़ मा रचनाकार ला कोनो पहचान नइ मिले भलुक आयोजक अपन उपलब्धि बताथें कि हम अपने फलाना आयोजन मा अतिक किताब के विमोचन करवा के रचनाकार ला प्रोत्साहित करे हन। अइसनो मंच मा किताब के विमोचन बिरथा आय। भले बड़े नामधारी झन हो, अपन क्षेत्र के वरिष्ठ विद्वान के हाथ ले विमोचन होही त आशीष मिलही। 20-25 झन के उपस्थिति रहे फेर अपन जान पहचान के रहे, वोमन रचनाकार के गोठ सुनहीं अउ समीक्षा ला सुनहीं त रचनाकार ला सुरता राखहीं। चार झन ला बताहीं कि फलाना रचनाकार के एक सुग्घर किताब छपे हे। बड़का मंच के भीड़भाड़ मा सुरता करइया एको झन नइ मिलही। 


नाम आपके, पइसा आपके, रचना आपके, किताब आपके, विमोचन आपके। बस एक पइत मोर गोठ ला पढ़ लेवव, फेर निर्णय आपके। 


*अरुण कुमार निगम*