Thursday 11 February 2021

*मनखे के मारे*-चोवाराम वर्मा बादल

 *मनखे के मारे*-चोवाराम वर्मा बादल


बिहनिया जुवर चौंरा म बइठे कुनकुनहा घाम तापत रहेंव वोतके बेरा एक झन टूरा ह अपन मोबाइल म फूल अवाज म ---बेंदरा के मारे नइ बाँचै कोलाबारी रे गीत ल बजावत नाहकिच।गीत ल सुनके मोर माथा ठनठगे। सोचे लगेंव --ये निरीह प्राणी बेंदरा बेचारा मन फोकट के बदनाम हें।काबर कि दू गोड़ के जानवर मनखे के मारे कुछु नइ बाँचत ये त बेंदरा मन कोलाबारी कोती नइ आहीं त कती जाहीं। जंगल झाड़ी कटागे। उँकर पेट भरे के फल फलहरी बोइर ,तेंदू चार, डूमर ,बर ,पीपर सबो ल मनखे कबजिया लीस। वोमन चिखे तक नइ पावयँ एमन कच्चे म टोर के ले आथें। खेत खार के तिंवरा ,राहेर ,बटरी ,चना ल खान नइ देंवय। तार घेरा करके कुकर धरे रखवारी करत रहिंथे। 

  बेंदरा मन पानी के एकक बूँद बर तरसत रहिथें काबर के मनखे के मारे नदिया- नरवा,ढोड़गी-ढोड़गा,कुँवा-बउली तक नइ बाँचे ये। बैरी मनखे ह सब ला चपल डारे हे। जम्मों सुक्खा परे हें।अपन ह तो बोरिंग ,नल के पानी म गुजारा कर लेथे त वो बेचारा बेंदरा मन भला काय करयँ। मरता काय नहीं करता।तेकर सेती कोलाबारी कोती आथें।तेकरो बर ये मनखे जात गुलेल अउ बंदूक धरे टिपे बर जोहत खड़े रहिथे।

   मोर हिसाब से वो गीत के बोल अइसन होना रहिसे--

मनखे के मारे नइ बाँचय जग सारी रे।

दू गोड़ के ये अइसे जनावर,

जेकर ले देवता हारी रे। मनखे के मारे------

      देवता धामी के सुरता आगे त उहू मन मनखे ले परेशान हें। बेचारा देंवता-धामी मन भागे- भागे फिरत हें। शांति ले जी नइ पावत हें। पोंगा म टाइम-बेटाइम नरिया-नरिया के नहीं ते शंख घंटी बजा-बजा के ये मनखे मन हलकान कर डरे हें।  मनखे ह आय मत सकय सोच के वोमन दुर्गम जंगल,पहाड़ म बसेरा करिन तिहों अब सड़क- पुलिया बना बना के हजारों हजार मनखे आये- जाये ल धरलिन। चैन से रहने नइ देवत हें। कभू-कभू उन डरुवाये-चमकाये बर पहाड़ ल भोसका देथें, ग्लेशियर ल पिघला के भारी बाढ़ ला देथें, भूकंप अउ ज्वालामुखी के प्रकोप देखाथें तभो ले हेरहेट्ठा, गरकट्टा मनखे मन नइ चेतयँ।

     सोचबे त मनखे के मारे कुछु नइ बाँचे हे। न तो नता रिश्ता बाँचे हे, न तो भाईचारा, प्रेम- मुहब्बत बाँचे हे।भाई ह भाई के गला रेतत हे। पइसा खातिर खुद ल तको बेंच डारत हे। बेइमानी के आगू ईमान-धरम सब फीका होगे हे। नैतिकता के बात निचट मजाक कस लागथे। सीता हरण रोज होवत हे। नल -नील इंजीनियर मन ल ठेकेदार मन खरीद डरे हें। अंगद के गोड़ ल भ्रष्टाचार ह काट ले हे। कुर्सी म बइठे हजारों शकुनी मन,दुर्योधन बर पासा ढुलोवत हें। भीष्म पितामह अउ पांडव जइसे मन हमला का करना हे कहिके धृतराष्ट्र संग आँखी ल मूँद ले हें। द्रौपदी के चीर हरण सरेआम होवत हे।

     ये मनखे के मारे कुछु नइ बाँचे हे। फेर कोनो ल अगर कुछु बाँचे दिखत होही त वो सिरिफ इंसान के कारण बाँचे हे जेमा थोक-बहुँत इंसानियत बाँचे हे।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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