Thursday 11 February 2021

छोले भटुरे-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छोले भटुरे-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तन, बदन भले लहू,माँस,हाड़ा-गोड़ा ले बने हे, पर मितान शुद्ध शाकाहरी, वो भी सिरिफ खाय पीये म, मन विचार ल तो महूँ नइ जानँव। फेर खान पान म शाखाहारी घलो होना गरब के बात आय, कम से कम अपन पेट भरे बर तो जीव हत्या नइ करवाय। गाय गरुवा हाड़ा चगल देवत हे, शेर घलो दूध पी देवत हे, त दुनिया के सबले बुद्धिमान पराणी के बारे म कुछु कह पाना मोर बस म नइहे। कब का सोचही, कब का करही, सबे समझ से परे हे। मितान ल एक दिन छोले भटुरे खाय के मन करिस। धन भाग, महूँ ल फोन करके बुलाइस, दुनो झन शहर के एक ठन नामी होटल म बैठेंन अउ छोले भटूरे के ऑर्डर करेंन। होटल के लगझरी सोफा एको ठन रिता नइ रिहिस, केहे के मतलब मनखेच मनखे। कोनो मन दही बड़ा, कोनो मन रंग रंग के बिरयानी, ता कोनो मन इटली-डोसा झड़कत हे। हमू मन छोले भटुरे खायेल लगेंन। खाते खात म मितान ल कट ले कुछु चबइस, मुँह ले निकाल के देखिस, त हाड़ा असन लगिस। हमर संग कुर्सी म अउ दू झन छोले भटुरे खात रहय, तहू म अक्चकागे। इती मितान के

 मइनता भोगागे, रिस तरुवा म चढ़ गिस। जोर से झल्लावत कहिस, ये का छोटे भटुरे म हाड़ा निकल जावत हे। बस सुनत देरी रिहिस, पूरा होटल म खलबली मचगे। वेज म हड्डी निकलगे कहिके , देखो देखो होगे।  नानवेज वाले मन तो कम फेर वेज वाले मन के गुस्सा के ठिकाना नइ रिहिस। वेज अउ नानवेज वाले मन बर रसोई घलो तो एक रिहिथे अउ एके परोसइया बँटइया, हो सकथे उत्ता धुर्रा म,इती उती होगिस होही। मितान कुर्सी ले तिलमिलात उठिस अउ मैनेजर ल दू थपड़ा गचका दिस। आने मन घलो मारे बर लग गिस। मैनेजर बपुरा का करे, गलती तो ओखरे डहर ले होय हे लगत रिहिस। वेटर मन मुँह उतारे कोंटा म खड़े रहय। बनेच हल्ला गुल्ला होइस, मितान कस बनेच मनखे मन बिना पइसा देय गरियावत निकल गिन। नानवेज वाले मन घलो पइसा नइ दिन, उहू मन होटल ल भला बुरा कहत निकलगिन। होटल म सन्नाटा छागे, नाँव खराब अलग से।

          मोटर साइकिल म मितान संग बाहर निकलेन, अउ पान ठेला म पान बनाके मुँह म दबायेंन। मितान ल अटपटा लगिस, देखिस त जे दाँत ल बहुत पहली नकली दाँत लगाय रिहिस ते गायब रहय। मितान ल काटो ल खून नही, दंग होगे अउ अफसोस घलो। होटल के कांड आँखी म झूल गे, छोटे भटुरे खात खात हड्डी नही मितान के दाँत निकल गे रिहिस। फोकटे बवाल होगिस। मितान दूनो लकर धकर उँहा ले भागेंन। महूँ सुनायेंव मितान ल,, कहूँ  धो धा  के देखतिस त पता लगतिस, नकली दाँत ये, तब तो हमर खैर नइ रितिस। मितान होटल मैनेजर ल बनेच जमाय रिहिस, अउ महुँ तो रिस म एकात घाँव हाथ साफ कर दे रेंहेंव। एक दू महीना डर के मारे शहर जाबे नइ करेन। 

            कुछ दिन बाद मितान हॉस्पिटल गिस, अउ दाँत लगाय के बात करिस, त डॉक्टर किहिस-जुन्ना दाँत होही त लग जाही, नवा 10,000 लगही। मितान वो दरी 5000 म लगवाय रिहिस। बेरा के संग 5 ले 10 होना स्वाभाविक हे। अब जे होटल म हल्ला करे रिहिस उँहा थोरे केहे बर जातिस , कि वो मोर दाँत रिहिस। चुरमुरा के मन ल मार 10000 खर्चा करिस।  एक ठन रिस मितान ल महँगा पड़ गे। कास ऊँहिचे पता लगे रितिस, त 10000 घलो बचतिस, अउ होटल के नांव घलो खराब नइ होतिस। 


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

No comments:

Post a Comment