Thursday 11 February 2021

नौ हाथ लुगरा .... तभो ले देंहे उघरा -हरिशंकर गजानंद देवांगन ,

 नौ हाथ लुगरा .... तभो ले देंहे उघरा -हरिशंकर गजानंद देवांगन , 

                    बिकास के चरचा चारों मुड़ा म होये । गांव गंवई के मनखे मन बिकास देखे बर तरसत रिहीन । हमर देस अजाद होही न बेटा तंहंले बिकास आही , सुनत सुनत दू पीढ़ी के मन सरग सिधार दिन । तीसर पीढ़ी के मनखे मन घला बुढ़ाये धर लीन । फेर कइसना होथे बिकास तेकर दरसन नी पइन । जब जब नावा सरकार बनय तहन “ बिकास अभू आनेच वाला हे , एदे आतेच हे , तुंहर तीर म अमरीचगे “ एकर खूबेच चरचा करय । फेर काकर पेट म पचथे बिकास , कोन जनी ? 

                     एक दिन बबा अपन नाती ल बतावत रहय के , बिकास ये दारी आहीच कथे रे ...... । नाती पूछिस - कामे बइठके आही बबा विकास हा ? बबा किथे – कामे आही , तेला महूं नी जानव । फेर लोगन किथे के - हमर छत्तीसगढ़ बनही , हमर राज आही , तंहंले बिकास आही । नाती किथे - त यहू होये कतको दिन नहाकगे बबा , हमन ला बिकास के दरसन नी होइस । बबा बतावत रहय – को जनी कती तिर , लुकाये हे बिया हा ........ । हमर बबा बतावय रे बाबू , सड़क बनही तहन विकास होही कहिके । एके ठिन सड़क केऊ घांव बनगे , फेर हमर तीर , बिकास नी अइस , हां हमर बिकासखंड के इंजीनियर घर , बिकास होइस कहिके सुने रेहेन वहा दारी । फेर उहू ल देखे नियन , कइसना हे ? थोरिक बाढ़हेन त हमर बबा बतइस के , बिकास रेल मारग ले आही कहिके , हमर गांव म घला निंगिंस रेल मारग , फेर कती कती फेक्ट्री मालिक मन घर , बड़ अकन बिकास होइस सुने हन । हमर गांव के सपाट भुंइया ल देखके , हमर अगुवा मन इहां हवा मारग ले विकास लाने के सोंचीन । हमूमन बहुतेच खुस रेहेन , खुस रहनाच हे गा , बिकास कन्हो सड़क अऊ रेल मारग ले थोरे आही तेमा , ओ तो बड़का चीज आय , हवा मारग ले आही । कुछ दिन म , हमर गांव के ऊप्पर ले , हवई जहाज ऐती ले उढिहाये सांय ले , ओती ले उढिहाये सांय ले ...... । फेर , हवा हवा म , कते दिन हवा होगे बिकास ....... । सड़क , रेल , हवा मारग के सेती रूख रई जंगल कटागे । पानी गिरई कमतियागे , खेत खार , परिया परे लागीस । नरवा के पानी म बंधान बनाके , बिकास ल हमर कोरा म डारे के उदिम सुरू होगे । बांध बनगे , हमर करम कस फूट घला गे , उही दारी ले , बिकास म हमर नेताजी के घर पटागे । 

                     बबा कहत रहय - समय बदलगे । बिकास लाने बर बिजली के तार खिंचाये लागीस । चारों मुड़ा म प्रकास बगरही , तहंले बिकास खुदे आही । कोन जनी काकर घर अंजोर होइस बिजली के तार म । जबले आहे , महीना के आखिरी म अइसे करेंट मारथे के , बिकास गर्भपात म मर जथे । एक बेर सासन डहर ले अइसन फरमान निकलिस के , जेकर केवल दू झिन लइका रही , तेकरे घर बिकास होही । हमन दू के पाछू , तीसर के सोंचेन निही , फेर कहां के बिकास ...... । ओहा तो डाकटर के सूजी दवई बूटी म अटकगे । जे दिन ले आपरेसन करायेन उही दिन ले , हमर डोकरी के पेट म दरद होये लागिस , पहिली सोंचेन हमर घर बिकास आवत होही ...... पाछू पता चलिस , जतका हमर पेट पिरइस , ओतके डाकटर के बिकास होइस । 

                     बबा सरलग कहिनी कस बतावत रहय - एक बेर , बिकास भेजइया मन बतइन के ..... देस बर , गोला बारूद तोप बिसाबोन , तहंले बिकास ल अपन पेट म भर के रखइया मन , डर के मारे बाहिर निकालही , तभे आम जनता के घर बिकास पहुंचही । तोप लेवागे , फेर ओ दारी , बिकास इहां ले निकलके दूसर देस म पहुंचगे ।  

                     बबा किथे - बिकास के अगोरा म मोर चुंदी पाकगे , झरगे । तोर ददा के चुंदी तको पाके लागिस ।  जम्मो झिन सोंचे लागिन के , कतको बछर ले कले चुप बइठे हे , बिकास भेजइया मनखे हा ...... । फेर पाछू जनाबा होइस के , कन्हो स्प्रेक्टम म लुकाके अपन घर बिकास ल लेगे , कन्हो कोइला म चपक के , बिकास म अपन हाथ मुहूं करिया डरीन । बेर्रा मन , बिकास ल , गाय गरू के चारा कस , खा के हजम कर दीन । 

                     बबा एकदमेच सीरियस होके केहे लगिस - नावा नावा मनखे , नावा नावा सोंच , फेर खुरसी तो उहीच आये , तेकर सेती डर घला लागथे के , बिकास के जींन्स , गरीब के खटिया के अचवानी म , का बइठही ........ ? ओतके बेर एक झिन मई लोगिन कस , बड़ सुघ्घर नावा लुगरा पहिर के , मटकत रेंगीस । ओकर पहिरई देख , बबा ते बबा , जवान नाती घला लजागे । लजाना सुभाविक हे गा , गजब सुंदर परी कस दिखत , दगदग ले नावा लुगरा पहिरे रहय , फेर देहें उघरा ......... । नाती किथे - बबा , ओ मई लोगिन हा , अतेक सुघ्घर दिखथे , फेर पहिरे के सऊर तको निये । बबा किथे – सच बतावंव बेटा , इही हमर देस के बिकास आय ....... । मुहूं ल फार दीस नाती ........... , समझिस निही । बबा बताये लगीस – बिकास होथे बड़ सुंदर ……. जब हमर गांव गली खोर म आये बर निकलथे तब , अब्बड़ सुघ्घर चुक चुक ले पहिर ओढ़ के , तोप ढांक के निकलथे । फेर एकर रसदा म , भ्रस्टाचार के कतको सुरसा , मुहूं फार के खड़े रिथे , उही मन , ओकर लुगरा ल , जगा जगा ले , अइसे चीथ देथे के , हमर तीर पहुंचत ले , बिकास ला देहें ल तोपे के जगा , लुगरा ल तोपे लागथे । इही सुरसा के सेती ..... बिकास हमन ला अपन मुहुं देखाये के काबिल नी रहय ...... अऊ मोला लागथे तेकरे सेती गांव गंवई जनता कोती रुख नी करय ..... । का करबे ...... बईमान मन के सेती “ नौ हाथ लुगरा पहिरे तभो ले देहें उघरा “ दिखत हे बपरा बिकास हा ...........। 

 हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

No comments:

Post a Comment