Sunday 7 February 2021

किताब के प्रकाशन अउ विमोचन*अरुण कुमार निगम

 *किताब के प्रकाशन अउ विमोचन*अरुण कुमार निगम


एक किताब लेखक या कवि के नाम से ज्यादा उँकर स्तर के दर्पण होथे। पाठक ल नाम प्रभावित नइ करे, रचना के स्तर प्रभावित करथे। कई झन कवि अउ लेखक मन नाम कमाए के चक्कर मा अलवा-जलवा रचना के संकलन छपवा देथें। अइसन किताब मन आत्म-संतुष्टि जरूर दे सकथें फेर नाम ला अमर नइ कर सकें। आज दिल्ली, यू पी के फुटपाथ मा बड़े बड़े तथाकथित नामधारी कवि अउ लेख के किताब 150 रुपिया किलो के रेट मा बिकत हें। छत्तीसगढ़ के फुटपाथ मा यहू रेट देखे बर नइ मिले। अइसन स्थिति मा किताब छपवाए के एक्के मतलबे निकलथे - आत्मसंतुष्टि बर पइसा खर्चा करना। 


किताब छापना एक प्रकार के व्यवसाय होथे। 15-20 हजार मा किताब छापे ले ओखर व्यवसाय नइ चले। वो अइसे किताब छापना चाहथे जेकर पब्लिक डिमाण्ड हो, शासकीय संस्था के ग्रंथालय ला बेचे के लाइक हो, तब वो मुनाफा कमा सकथे। लाखों के छपाई मशीन, टेक्निकल स्टाफ, कागज, स्याही, खड्डा पुट्ठा, दुकान किराया, बिजली बिल, सरकारी टैक्स, प्रेषण-व्यय आदि के खर्चा, 15-20 हजार मा किताब छाप के नइ निकल सके। तभो व्यवसाय चलत रहे, मशीन बन्द झन हो, स्टाफ ला बिना काम के तनखा झन देना पड़े तेपाय के वोमन अलवा जलवा किताब घलो सहर्ष छापथें। उँकर अगोरा हमेशा पब्लिक डिमाण्ड वाले किताब के होथे। 


आयोग घलो किताब छापे बर 10000 के अनुदान देथे, वोकर मानना हे कि किताब छपे ले नवा रचनाकार मन प्रोत्साहित होथें। मोर मानना हे कि बिना गुणवत्ता के किताब प्रोत्साहन नइ दे भलुक नवा रचनाकार के प्रतिभा ला रोक देथे। किताब छपे के बाद रचनाकार के मन मा एक सहज गुरुर आ जाथे कि मोर किताब छप गे माने अब महूँ बड़े साहित्यकार बन गेंव। इही विचार के कारण वो अउ अच्छा करे बर प्रोत्साहित नइ होवय। अगर सारगर्भित अउ गुणवत्ता के रचना नइये, त किताब छापे के सपना नइ देखना चाही। ये कदम अपन आप बर घातक होथे। जब उत्कृष्ट रचना के संकलन तैयार हो जाये तभे किताब प्रकाशन के सोचना चाही। जइसे पइसा मा जिनगी नइ खरीदे जा सके वइसने पइसा मा नाम नइ खरीदे जा सके। 


अब बात करत हँव विमोचन के। कुछ रचनाकार, किताब छपवाए के बाद कोनो बड़े आयोजन या बड़े मंच के मुँह ताकत रहिथें। हाथ गोड़ जोड़ के, जोजिया के अइसन आयोजक के दया के पात्र बने बर तैयार रहिथें। ये विमोचन के बाबत एको लाइन निमंत्रण पत्र मा नइ दिखे। जउन बड़का तथाकथित नामधारी मन विमोचन बर चकमकी रैपर ला फाड़ के फोटू खिंचाथें, वोमन सुरता घलो नइ रखें कि कोन मंच मा काखर काखर किताब के विमोचन करे हन। अइसन मन सप्रेम भेंट मिले किताब ला पढ़े तक नइ। आयोजन के बाद टेबल मा छोड़ के चल देथें, अइसन *कर-कमल* का मतलब के ? ये कइसन विमोचन समारोह आय जेमा रचनाकार ये न बताए कि मँय काबर ये किताब लिखे हँव, आयोजन मा किताब के समीक्षा तको नइ होवत हे त कइसे के विमोचन होगे ? 


कई मंच मा 15-20 किताब के झाराझार विमोचन हो जाथे। मंच के अतिथि मन एक के बाद एक किताब के रैपर फाड़त जाथें, फोटो खिंचवावत जाथें अउ होगे विमोचन। अइसन भीड़भाड़ मा रचनाकार ला कोनो पहचान नइ मिले भलुक आयोजक अपन उपलब्धि बताथें कि हम अपने फलाना आयोजन मा अतिक किताब के विमोचन करवा के रचनाकार ला प्रोत्साहित करे हन। अइसनो मंच मा किताब के विमोचन बिरथा आय। भले बड़े नामधारी झन हो, अपन क्षेत्र के वरिष्ठ विद्वान के हाथ ले विमोचन होही त आशीष मिलही। 20-25 झन के उपस्थिति रहे फेर अपन जान पहचान के रहे, वोमन रचनाकार के गोठ सुनहीं अउ समीक्षा ला सुनहीं त रचनाकार ला सुरता राखहीं। चार झन ला बताहीं कि फलाना रचनाकार के एक सुग्घर किताब छपे हे। बड़का मंच के भीड़भाड़ मा सुरता करइया एको झन नइ मिलही। 


नाम आपके, पइसा आपके, रचना आपके, किताब आपके, विमोचन आपके। बस एक पइत मोर गोठ ला पढ़ लेवव, फेर निर्णय आपके। 


*अरुण कुमार निगम*

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