Saturday 13 February 2021

कहिनी : बिसाहिन दाई*-पोखनलाल जायसवाल

 *कहिनी : बिसाहिन दाई*-पोखनलाल जायसवाल

         रायपुर के रक्सेल मुड़ा म तरिया पार म बसे एक ठन गाँव हे। आमा अउ पीपर के जुड़ छाँव तरी घाम पियास नि जियानय। नाहर के पझरा ले निकले नरवा गाँव बर बरदान बने हे। नाहर भरोसा ए गाँव कभू अकाल दुकाल नि जानिस। खेती किसानी सबो मन लगा करथे। मनखे मन बिहनिया बेरा सुत उठ के तरियाच म मुँह धोवत राम-राम करथे। तरिया पार म बसे ले काकर घर पहुना आवत हे, अउ कोन बन-ठन के बाहिर जावत हे, एकर घर मुँहाटी चउँरा म बइठे सोर मिल जथे। ए गाँव म लटपट डेढ़ सौ चूल्हा होही। जिहाँ मनखे मन म कोनो परकार के भेद भाव नइ हे। राजनीति के नाँव ले घलो अभी बँटे नइ हे। पंचइत चुनाव निर्विरोध हो जथे। लोकसभा अउ विधानसभा के चुनाव म सियान मन नवा अउ उत्साही लइका मन सिखौना देवत कहिथें - " ए नेता मन चुनाव के होवत ले आपस म लड़थे, इँखर लड़ई देखउटी आय। नेता मन ल हाथी के दाँत जानौ, खाय के आने अउ दिखाय के आने। हमन ल इँखर चाल म नइ फँसना हे। हम ल ए पार्टी ओ पार्टी के चक्कर म नइ पड़ना हे।" 

     कोनो अउ कहिथें - " हम ल आपस म बँटना घलो नइ हे। हमर कोनहो सुख अउ दुख के बेरा म कोनो बाहिर वाला आके खड़ा नइ होवय। हमीं मन एक-दूसर के दुख ल बाँटबो अउ सुख म अँगना नाचबो घलव। चुनाव जीते ऊपर ले नेता मन मुँहूँ दिखाय तको नइ आवै। दर्शन दुर्लभ हो जथे। चिह्नै घलव नइ। अपन वोट कोनो ल देवव, फेर गाँव ल मया परेम के छाँव अउ ठाँव बने गाँव रहन देहू। राजनीति के अखाड़ा झन बनन देहू।" 

       गाँव म सियान मन के बड़ मान हवय। नवा पीढ़ी के लइका मन घलो उँखर गोठ ल धियान देके सुनथें अउ मानथें घलो। गाँव म बड़ सुमता देखे मिलथे। दुखिया मन ल गम नइ मिले, कइसे दुख के काम निकल जथे। काकरो बेटी के बिदा होय, गाँव भर मिलके पहुना के पाँव पखारथें, दू बीजा चाउँर टीकके बेटी बिदा करथें।

        गाँव म नोनी-बाबू म फरक करइया घलो देखे ल नइ मिलय। अतका जरूर हे, नोनी मन ल कहिथे बताथे, तुमन सादा कपड़ा सरीख आव। अपन ऊपर कोनो दाग लगन झन देहू। बहुत अकन लोकलाज अपने हाथ म रहिथे। बचा के राखहू त दाई-ददा संग गाँव के मान मर्यादा बाँचे रही। बाबू मन ल नशा-पानी ले बाँचे के सीख देथे। उन ल बताय जाथे कि नशा नाश के जर होथे। नशा घर दुआर म कलहा के बीजा बोथे। एकर ले बाँचे म ही जिनगी म सुखेच सुख हवय, एला जान लेवव। ए तरह ले घरोघर नैतिक शिक्षा दे जाथे। इही बात मन रहिस जउन गाँव ल सुमता के गाँव के चिन्हारी दे राहय।

       बिन नारी परानी के दुकलहा घर एकसरविन बहू के पीरा उठ गे रहिस। पहिली पहिलावत रहिस। बहू बिचारी पीरा मं तालाबेली करत राहँय। बिसाहिन दाई ह आने गाँव गे रहिन, तेन अभीच अपन घर पहुँचे राहँय। उही बिसाहिन दाई जेन ल गाँव भर जचकी बखत बुलाय जाथे। दुकलहा के बेटा पइत घलो इही बिसाहिन दाई ह आय रहिस हे। जचकी के दिन ले सरलग कई-कई दिन तक बिसाहिन दाई सेवा बजाथे। सँझा-बिहनिया दूनो बेरा लइका अउ महतारी के सेवा करथे। कोनो ल बिसाहिन दाई ले कभू कोनो शिकायत नइ होइस। बिसाहिन दाई घलो सबो घर हरहिंछा आवय-जावय। ओकरो मन कभू छोट नइ होइस। बरोबर गोरस नइ आय ले महतारी बर जड़ी-बूटी घलो देवय। कतको झन ल एकर फायदा मिले हवय। तभे तो अड़ताफ भर ले आय दिन कोनो न कोनो ओकर घर आत्ते रहिथे। सरपंची बर महिला आरक्षण आय रहे म गाँव भर के मन निर्बिरोध सरपंच बनाना चाहीन, फेर बिसाहिन दाई कहिन " मैं अप्पड़ का सरपंची करहूँ, मोला इही म मजा आवत हे, जचकी करावत मोला सेवा करन दव।" 

         अभी घर म पाँव बरोबर माढ़े नइ पाय रहिस, बहू के देह उसलगे सुनके बिसाहिन दाई उत्ता-धुर्रा दुकलहा घर पहुँच गिस। बहू नोनी ल देखतेच खानी कहिथे, देखे के बेरा नइ हे। एला जतका जल्दी होय अस्पताल लेगे बर परही। लइका ह थोरकुन उलट गे हे कस जनावत हे। जचकी के बेरा आ घलव गे हे। धरा-पसरा गाड़ी मँगाके, बिना कोनो देरी के बहू ल तिर के सरकारी अस्पताल लेगे गिस। बहू मुँधरहा के उठे पीरा ले लरघिया गे रहिस। महतारी अउ सास के मया ल तरसत बपुरी ह अपन गोठ काखर मेर कहितिस। ताकत नइ लगा पात रहिस बपुरी ह। अस्पताल के डॉक्टरिन मैडम जाँच करे के पाछू तुरते ऑपरेशन करके जच्चा अउ बच्चा ल बचालिस। ऑपरेशन के बाद मैडम बोलिस - "अच्छा हुआ समय रहते यहाँ पहुँच गये, वरना थोड़ी देरी होती तो जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा हो सकता था। फिलहाल दोनों स्वस्थ हैं।" 

        दुकलहा अतका सुनके बिसाहिन दाई अउ भगवान ल बार बार धन्यवाद दे लगिस। बिसाहिन दाई ल कहिस, "भउजी! तोरे रहिते आज मैं ह अपन बहू अउ नाती के मुख ल देख पात हँव।"

    बिसाहिन दाई कहिस, "नहीं बाबू! मोर तो कामेच आय सेवा। मैं  जचकी दाई हरँव, जच्चा अउ बच्चा बर सोचना मोर काम हरे। दूनो ल कोनो नुकसान झन होवै। इही तो मैं चाहथँव। मोला लागिस कि घर म रहना खतरा हे, मोर बस के बात नइ हे, ते पाय के इहाँ लाने बर कहेंव।"

      सिरतोन भउजी! तोर हाथ म जस हवय। आज तक तोर राहत ले गाँव ह कभू कोनो धोखा नी खाय हे। तोर रहिते गाँव के बहू-बेटी मन कोनो तकलीफ नइ पाय हे। 

        बाबू गोठियातेच रहिबे धन हमर देरानी के स्वागत म फटाका फोरबे। तोर घर म लछमी ह लहुट के आय हे। 

            मैं फटाका भर नि फोरँव भउजी!  मिठई घलो बँटवाहूँ, मोर लछमी के स्वागत मं। सही मं मोर लछमी मोर तीर लहुट के आय हे, काहत दुकलहा के आँखी भर जथे। दुकलहा समझ नि पाय ए आँसू का के हरे?

        

      पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार छग.

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर कहानी सर जी

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  2. धन्यवाद सर जी

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