Sunday 7 February 2021

मोर नज़र मं किताब के विमोचन -सरला शर्मा

 मोर नज़र मं किताब के विमोचन -सरला शर्मा

*******

        विमोचन शब्द संस्कृत के आय ओ ये तरह के .... वि  (  विशेष )  मुच् ( मुक्त करना )  ल्युट प्रत्यय । सहज अर्थ होइस बंधन से मुक्त करना । जब तलक लेखक अपन भाव , विचार ल कलेचुप कागज मं लिखत रहिथे ओहर लेखक के निजी जिनिस रहिथे ..बड़ मेहनत से सबो विचार मन ल गद्य / पद्य विधा मं लिखथे फेर मनसे के मन तो आय कुलबुलाये लगथे के चार झन गुनी -  मानी मनसे ओकर लिखे ल पढ़यं , जानयं , समझयं भर नहीं सराहयं घलाय इही ल कहिथें छपास रोग । छपास रोग के रामबाण दवाई हे अपन लिखे ल छपवाना माने किताब के रूप देना फेर किताब ल चार हाथ तक पहुंचाए बर भी तो  परथे त इही काम ल किताब के विमोचन कहिथें । जेन किताब लेखक के निजी अलमारी मं रहिस ओला निजत्व के बंधन ले मुक्त करे के उदिम हर किताब विमोचन कहाथे । जे दिन किताब के विमोचन होथे उही दिन ले किताब लोगन के हाथ मं पहुंच जाथे ...सुरु होथे किताब के बारे मं बने -  मइहन , सधारण- , असाधारण, उत्तम-  मध्यम के विश्लेषण , विवेचन जेला समीक्षा कहे जाथे । 

किताब विमोचन के मौका मं दू चार - झन बुधियार मन किताब के बारे मं अपन विचार रखथें फेर लोगन ओला सुन के भुला जाथें त लेखक हर भी किताब लिखे के उद्देश्य , उपयोगिता ल बताथे फेर ए सबो हर किताब के बड़ाई भर होथे काबर के विमोचन हर एक तरह से नवा जनमे लइका के जनम के खुशी जताना तो आय । 

    किताब विमोचन के जघा किताब के लोकार्पण हर जादा उचित लगथे काबर के किताब जेहर प्रकाशन के पहिली तक लेखक के निजी रहिथे ...विमोचन के दिन उही किताब ल लेखक लोक ( लोगन ) ल अर्पित करथे ...माने जन जन के हाथ मं सौपथे जरुर लेखकीय हक ओकरे रहिथे फेर बने मइहन कहे के हक तो लोगन ल मिल जाथे एकरे बर लोकार्पण शब्द हर जादा सटीक लागथे ...तभो गुने लाइक बात तो एके ठन हे के लेखक के विचार हर किताब रूप मं पाठक मन के हाथ मं पहुंचथे जेला किताब विमोचन कहव या किताब लोकार्पण उद्देश्य तो एके आय । 

     रहिस बात मोर नज़र मं किताब विमोचन के त एहर जरूरी बात आय ,पहिली बात लेखक किताब लिखे के खुशी ल चार झन संग बांटथे दूसर बात के आत्म प्रशंसा , आत्म मुग्धता ले उबरे के मौका मिलथे ..। मैं कवि , लेखक , समीक्षक अउ बहुत अकन आंव  तेला कहत तो  मोर मुंह नइ  पिरावय फेर मोर लिखे किताब ल पढ़के लोगन मोला काय कहिहीं , मोर लेखन शैली , भाषा , विषय वस्तु के प्रतिपादन कइसे हे तेला तो किताब पढ़इया च मन बताहीं न ? उही हर तो मोर मूल्यांकन होही ..त मोर नज़र मं किताब के विमोचन के उपयोगिता इही हर आय । 

   लोकाक्षर के बुधियार सदस्य मन के विचार के अगोरा मं 

     सरला शर्मा

No comments:

Post a Comment