Thursday 11 February 2021

कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 



कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


                     जान ले बढ़के का हे? तभो मनखे जान ल जोखिम म लेके जियत हे। रोज के हाय हटर, अउ चारो मुड़ा  मुँह उलाय खड़े काल कतको ल रोज लील देवत हे। तभो मनखे कहाँ चेतत हे। आज मनखे मनके मौत घलो कुकुर बिलई कस सहज होगे हे, तभे तो मनखे मन आज  माड़े अर्थी ल घलो देख के रेंग देवत हे। अर्थी कर सिरिफ घर वाले, सगा सम्बन्धी अउ एकात झन भावुक मनखे भर दिखथे। नही ते एक जमाना रहय, कहूँ एक भी मौत होय त देखो देखो हो जाय, मनखे दुख म डूब जाय। फेर आज आन बर काखर तीर टाइम हे। धन दौलत संग मरनी हरनी सबे चीज म तोर मोर होगे हे। मरे के हजार अलहन हे, फेर जिये के दू चार आसरा, तभो मनखे मन दया, मया, सत, सुमत जइसन जरूरी चीज ल बरो के  मुर्दा बरोबर जीयत हे। बड़खा बड़खा सड़क ल देख के यमदूत मन घलो संसो म हे, कि ये मनखे मन बिन बेरा मरे के साधन बना डरे हे। हाय रे अँखमुंदा भागत गाड़ी, हाय रे नेवरिया चलइया, हाय रे जल्दीबाजी अउ हाय रे दरुहा मँदहा तुम्हर मारे बने सम्भल के चलत मनखे मन घलो निपट जावत हे। 

          चार दिनिया जिनगी पाके घलो मनखे मन अति करत हे, कोन जन अजर अमर रितिस त का करतिस ते। रोज अपराध बाढ़त हे। इही ल रोके बर आज रोज नवा नवा कानून कायदा बनत हे, तभो अपराध रुके के नांव नइ लेवत हे। कानून म कई प्रकार के सजा हे, फेर मनखे मन डरथे कहाँ। हाँ,, डरत उही हे जेन बपुरा मन गरीब अउ अनपढ़ हे, पुलिस ल देख घलो उँखर पोटा काँप जथे। फेर पढ़े लिखे अउ पइसा वाले म डर नाँव के चीज नइहे, अउ रहना भी नइ चाही, पर अपराध करके कानून ले मुँहजोरी बने थोरे हे। पर जमाना अइसने हे, पद पइसा के आघू कानून कायदा घलो लाचार हे। धरम करम के डर ल तो छोड़िच दे।

                जंगल तीर के एक ठन गाँव म विकास के गाड़ी पहुँच गे, लोगन मन पढ़ लिख के हुसियार होगे, स्कूल कालेज कोर्ट कछेरी सब बन गे, अब जंगल अउ गाँव कहना सार्थक घलो नइ रही गे। कागत म कानून कायदा लिखाय हे, तभो ले जीयत मनखे मन, गलती ऊपर गलती करत हे, फेर एक झन *मरे मनखे* के फांदा होगे, काबर कि उही गाँव के एक झन पढ़े लिखे आदमी ह, कोर्ट म केस करदिस, कि फलाना ह,अपन जमाना म कानून कायदा के गजब धज्जी उड़ाय हे, बन बिरवा ला अँखमुंदा काटे हे, जंगल के कतको जीव जिनावर मन ल घलो मारे हे।  कानून म ये सब करना अपराध हे तेखर सेती वोला उम्र कैद के सजा होगे। फेर वोहा कानून ले लड़े बर जिंदा नइ रिहिस, दू चार पेसी देखे के बाद जज वकील मन सजा सुना दिन। आदेश जारी होइस वोला पकड़ के जेल म डारे जाय, खोजबीन म पता चलिस कि वो तो परलोक वासी होगे हे, अब गाज गिरिस ओखर परिवार वाले मन ऊपर। बड़े बेटा आन जात म बिहाव कर डरे रहय त, वो समाज से बहिष्कृत रिहिस, ददा ले कोनो नता नही। पुलिस वोला कुछु करिस घलो नही , फेर  छोटे बेटा घर ओखर ददा के फोटू  टँगाय रहय, उही ल पुलिस मन धरिस अउ कोर्ट लेग गे। उहू अकचका गे रहय, का होवत हे कहिके, आखिर म सब चीज जाने के बाद कहिस- कि, ददा के जमाना म शिकार के चलन रिहिस, जंगल म रहय अउ पेड़ पात के सहारा जिये, अब वो जऊन करिस जीयत म सजा पातिस मरे म काबर? अउ येमा मोर का गलती हे? जवाब आइस कि तोर गलती ये हे कि तैं ओखर टूरा अस। कार्यवाही आघू बढ़िस, छोटे बेटा अपन पक्ष रखे बर वकील करिस, लाखो रुपिया खर्चा करिस, पइसा भरात गिस तारिक बढ़त गिस एक दिन ओखरो देहांत होगे। अब बारी आइस ओखर लइका मन के। ओखरो दू लइका रहय, एक झन कही दिस, मैं ददा बबा नइ माँनव, त दूसर जे ददा बबा के मया म बँधाय रहय ते केस लड़े बर तैयार होइस। आखिर म कम पइसा खर्चा अउ कमती धियान देय के कारण वो केस हारगे। अब उमर कैद के सजा अर्थ दंड म बदल गे, वो मरे आदमी ल 10,000 के जुर्माना होइस, अउ फाइल ल बन्द करे बर ओतका पइसा के माँग करिस। ओखर नाती  इती उती करके पइसा पटाइस, तब जाके वो फाइल बंद होइस। कहूँ नइ पइसा फेकतिस त बपुरा ल घलो हथकड़ी लग सकत रिहिस, कानून ए भई, अभियुक्त तो चाहिच। देख आज कोनो राजा महाराजा मनके पोथी ल झन खोले, नही ते जे अपन आप ल,फलाना वीर के वंसज काहत हे,तहू कन्नी काट लिही, काबर कि वो जमाना म लड़ई झगड़ा, इकार शिकार चलते रिहिस।

              अउ कखरो फाइल खुले झन, नही ते आज के जमाना म वो मरे मनखे के कोई नइ मिलही, त ओखर आत्मा ल केस लड़े बर पड़ जाही। मरे आदमी के केस म कई साहेब सिपइहा पइसा पीट मोटा गे। जउन बबा ददा के मया म बँधाय रिहिस, तउन फोकटे फोकट पेरा गे। तभे तो कानून के डर म आज मनखे मन कोनो घटना ल, देख सृन के घलो आँखी कान ल मूंद देवत हे। इहाँ जीयत मनखे मन अत्याचार के ऊपर अत्याचार करत हे, अउ जे कुछ बोल नइ सके(मरे आदमी कस), जे कोट कछेरी ले डरथे, तेला सोज्झे फोकटे फोकट सजा मिल जावत हे। चाल बाज, पद पइसा, अउ पहुँच के जमाना हे। गलत ह सही अउ सही ह गलत, ये कोर्ट के मैदान म साबित हो जावत हे। *नियाव के उप्पर वाले देवता शुन्न हे,त नीचे वाले देवता मन टुन्न,* पद,पइसा, मंद मउहा के भारी नशा हे। अतिक अकन कानून कायदा अउ दंड विधान होय के बाद घलो अपराध के नइ थमना, अउ सिधवा मनखे ल सजा हो जाना कानून के मुँह म तमाचा पड़े जइसे हे। कोनो सरकारी पद पाये बर अदालती कार्यवाही नइ होना चाही, फेर सरकार चलाये बर जे नेता के पद होथे, तेमा सब चलथे, वाह रे कानून। कतको बड़े करम कांड होय पइसा के दम म सही हो जावत हे, बड़े बड़े अत्याचारी मन साबुत बरी हो जावत हे। का कानून के आँखी म पट्टी एखरे सेती बंधाय हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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