Thursday 11 February 2021

एक पइसा-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 एक पइसा-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


पइसा के गदिया म नींद भँजइया रतन सेठ चमाचम सकलाय बइठका म  घलो पान चगलत, कुर्सी म एक के ऊपर एक पाँव ल मड़ाय, कोनो राजा असन बइठे हे। फेर कोनो झंझट के नियाव करे बर नही , बइटका ओखरे बर सकलाय रहय। जम्मो जुरे मनखे मन फुसफुसात हे, बड़े मनखे अँव कहिके बड़ गांव के नियम धियम के धज्जी उड़ाय हे ये दरी पता लगही, जब पंच मन डाँड़ही त। बर तरी मनखे मन के मारे सइमो सइमो करत हे, जे कभू नइ आय तहू वो दिन सकलाय रहय, जइसे कोनो छोट गरी म बड़े मछरी फँस जथे त देखो देखो हो जथे। 

            रतन सेठ पइसा के बड़ गरब करय अउ गाँव के कोनो भी बनाय नियम ल तोड़ देवय, (ओखर आदत आचरण म घलो कीरा पड़े रहय) अइसने करत कई घाँव हो गे रिहिस, तभो कभू बइठका नइ बइठे रिहिस। कई पंच पटइल ओखर खीसा म रहय। कोनो ओला कुछु बोले के हिम्मत घलो नइ करय। फेर ओखर देखा देखी म गांव के आन मनखे मन घलो रट पिट बोल देवय अउ कतको तिहार बार म नेंग जोग ल नइ माने। अइसन बढ़त आफत ल देख आखिर म हिम्मत करके बैठका बइठे रिहिस। कई झन गांव वाले मन कहाय अतका पइसा डाँड़तिस की  गाँव के भला हो जातिस। कई झन कहय 1000, 500 ले जादा आज तक पंचायत म दंड कहाँ लगे हे, जे सेठ ल लाख, दू लाख डाँड़ दिही। सेठ घलो बड़खा पइसा ले भरे झोरा धरके बइठे रहय।

           आखिर म पंच मन अपन बात रखिन, कि रतन सेठ सरलग हमर गांव गुड़ी अउ कानून कायदा के अपमान करत हे, मंद मउहा अउ कतको ठन अइसे उदबिरित करत हे, जेखर बर वोला डाँड़ देना जरूरी हे। सेठ मेंछा म ताव देवत कहिथे, ये पंच कहूँ त मैं गांव ल पाल देहूं, सीधा सीधा बता कतका पइसा देना हे तेला। मैं तुरते गिन देहूँ। पंच म घलो ये बात ल जानत रिहिस की सेठ कर पइसा के कोनो कमी नइहे, जतका डाँड़ रखबों तुरते दे दिही। पंच म सलाह मशविरा करिस अउ फैसला सुनावत किहिस- रतन सेठ तोला एक पइसा के डाँड़ पड़े हे, एक पइसा के। अतका घोषणा ल सुन के गांव वाले मन संग सेठ घलो दंग होगे। सेठ कथे लाख रुपिया माँग लव, ये का एक पइसा---।

पंच मन किहिस तोर कर भले करोड़ रुपिया होही, फेर तोर इज्जत एक पइसा के हे, येखर से जादा कइसे माँग पाबों। सेठ के मूड़ी ले धन दौलत के गरब तुरते उतर गे। हाथ जोड़ कहिस-मोला क्षमा करहू, मैं धन के नशा म अंधरा हो गे रेंहेंव, अब मैं गाँव के आम निवासी कस सबो बात, बानी नियम धियम ल मानहूँ। शुरू म तो गाँव वाले मन एक पइसा सुनके  पंच मन बर दांत कटरिस ,फेर बाद में जयकार करिन। 

                पहली मनखे मन के धन, बोली -बचन, मान-सम्मान रहय, फेर आज पढ़ लिख के घलो मनखे मन दूसर के मुँह म नइ हमा पावत हे। मॉन मर्यादा ल लाँघ देवत हे। आज कोनो करोड़पति घलो ल एक पइसा के जुर्माना हो जही त निर्लज्ज बनके चुका दिही। आज केहे बात ल काली भुला जावत हे। मनखे  मन ल आज मया-दया, सत-शान्ति,अउ मान-सम्मान ल धन असन गँठियाय के जरूरत हे।

(सियान मन के जुबानी सुने कहानी)

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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