इंसानियत गँवागे-मथुरा प्रसाद वर्मा
एक दिन कक्षा आठवी के लइका मन ला विलोम शब्द सिखाय बार मोर मन म एक नवाचार करे के मन होइस। काबर कि शिक्षा म नवाचार करे के आजकल बिक्क्ट चलन हे। महुँ कुछु न कुछु करत रहिथव। एकर ले लइका मन के सङ्गे सँग महुँ ल मजा आथे।
त मँय विलोम शब्द माने विरुद्धर्थी शब्द के अभ्यास कराय बर एक नवाँ उदिम करेव । छोटे छोटे कागज के पर्ची चिर के ओमा एक एक शब्द लिखत गेंव। जइसे सत्य, असत्य, दिन , रात, हैवानियत, इंसानियत, कटु, मधुर आदि आदि। लइका मन के संख्या के बरोबर पर्ची बना के सब ल मिझार देव अउ एक एक लइका ल एक एक पर्ची बाँट देव। अउ लइका मन ल अपन अपन विलोम शब्द वाले लइका सँग जोड़ी बनाये बर कहेंव। लइका मन अइसे हल्ला मचाइन की कक्षा नहीं मछरी बाजार होगे।
थोड़कुन शोर-गुल के बाद सबला अपन अपन जोड़ीदार मिलगे। अब लइका मन अपन जोड़ी सँग आवय अउ जोर जोर से अपन शब्द ल पढ़य। जेखर सहीं रहय सब लइका ताली बजावै।आखरी म एक झिन लइका एकेला मिलिस। ओखर जोड़ीदार नइ मिलिस। बिचारा राहुल मुहँ उतरे अपन पर्ची देखाइस ओमा लिखाय रहय।
हैवानियत।
पूरा कक्षा ल खोज डरेंन फेर ओखर जोड़ी विलोम शब्द के पर्ची नइ मिलिस। सब लइका चिल्लाये लागिस इंसानियत गँवागे, इंसानियत गँवागे। हल्ला ल सुन के हेडमास्टर साहब कक्षा म आगे।
पूछिस त लइका मन फेर कहिन इंसानियत गँवागे। हेडमास्टर साहब मोला पूछिस इंसानियत कहाँ गवागे। मँय आज ले खोजत हौ फेर मिलत नइ हे।
इंसानियत कहाँ गँवागे।
-🙏🏻 मथुरा प्रसाद वर्मा
लघुकथा।नवाचार के माध्यम से।इंसानियत गँवागे ....बहुतेच सुग्घर
ReplyDeleteसुग्घर नवाचार सर जी
ReplyDelete