Saturday 13 February 2021

व्यंग्य -मथुरा प्रसाद वर्मा गुरुजी

 व्यंग्य -मथुरा प्रसाद वर्मा

गुरुजी


एक जगा दु झन गुरुजी मन गोठियावत रहय। गोठियातीन का?  अपन दुखड़ा रोवत रहय। कोरोना काल म बंद परे स्कूल अउ लइका मन के गिरत  शिक्षा स्तर ऊपर चर्चा होवत रहय। एक झन लइका ओती ले नाहकिस त " नमस्ते सर!  कहिस। फेर का हे चर्चा के विषय बदलेगे। गुरु जी राम राम!  जय हिंद गुरुजी! सुन के जे आनन्द आथे नमस्ते सर ! गुड़ मार्निग सर! म वो आनन्द कहाँ। 

   सुन के महुँ सोच म परगेव । गुरु के महिमा के बखान वेद पुरान म तको पढ़े-सुने बर मिलथे । तुलसी, सुर, कबीर जइसे बड़े बड़े कवि मन घलो बढ़चढ़ के गुरु महिमा के गुणगान करे हे। सुन सुन के मन गदगद हो जाथे। फेर आज के दौर म न अइसन गुरु मिलथे न चेला। आज कल तो गुरुजी मन के ऊपर किसम किस्म के चुटकिला घलो चलथे । मीडिया, पत्रकार अधिकारी सब इखरे पाछु लगे हे तइसे लागथे। अउ तो अउ  अनपढ़ नेता कहूँ पंच/सरपंच बन गे त ओहू  मन गुरुजी ल देख के अटियथे। कहूँ राम राम कहे बर भुलाइस तहाँन उखर ऐड़ी के रिस  तरुवा म चघ जथे। पहुंच जथे स्कूल। शुरू हो जथे जाँच पड़ताल। पहिली जाँच होथे मध्यान्ह भोजन के। ओखर बाद शौचालय अउ पानी के जाँच। ओमा कुछु नइ मिलिस तब लइका मन ले पाहड़ा , वर्णमाला, अंग्रेजी के इस्पेलिंग। कक्षा म कोनो लइका कमजोर मिलिस कि गुरुजी मन के खैर नहीं। कोनो भी ऐरे गैर नत्थू खेरे गुरुजी के पुरखा सुरता कराए म पाछु नइ रहय। बिचारा गुरुजी करय त करय का?/ काकर काकर जवाब देवय। अउ जब ले तनखा बढे हे तब ले गुरुजी लोगन के नजर म काँटा सही खटखट रहिथे। सब ल लगथे गुरुजी मन फोकट के तनखा लेवत हे। बइठे बइठे दिन पहावत हे। अउ तो अउ गुरुजी मन के हाथ के मोबाइल अउ फटफटी तो लोगन ल फूटे आँखी नइ सुहाय। कुल मिला के सबके कोप भाजन के अधिकारी इही मन हरय। 

    अइसे नइ हे कि गुरुजी मन के एमा कोनो दोष नइ हे। उखर मान सम्मान म आये कमी के लिए वो मन घलो ओतके  जिम्मेदार हे जातक समाज अउ सरकार। आज कल किसम किसम के गुरुजी हो गे हवय । जइसे जेखर करम तइसे तइसे मान गुन होवत रहिथे। मँय सोचथंव गुरुजी मन के घलो क्लासिफिकेशन होना चाही। अपन बुद्धि म जोर डारेंव त कई प्रकार के गुरुजी नजर आइन , कहूँ लोकल बाड़ी माने शिक्षाकर्मी ले बने गुरुजी। त कहूँ स्पेशल बाड़ी वाला जुन्ना गुरुजी। कहूँ ठेका गुरुजी माने संविदा शिक्षक । ये सब तो शासन के बनाये गुरुजी मन के प्रकार होगे। सबे के योग्यता अउ काम एके हे। काम के आधार म मोला मुख्य रूप से चार किसम के गुरुजी दिखथे। गुरुजी, गुरजी, गरु जी अउ गरूरजी। 

    अब आप मन जइसे बुद्धिजीवी मन ल ऐखर बारे में विस्तार से बताये के जरूरत तो नइ हे तब ले बात जे शुरू होय हे खतम तो करे बर परही। 

   पहिली प्रकार  हे *गुरुजी*  एखर बारे मे मँय का बतावव वेद शास्त्र म एखर बारे मा बहुत कुछु बताये गे हे। हर चेला ल अइसने गुरु के अगोरा रहिथे। इखरे खोज बर कवि कहे हे पानी पिवव छान के गुरु बनावव जान के। जेन ल जीवन म अइसन सद्गुरु मिल गे ओखर जीवन सफल होगे।  एखर महिमा के बखान यदा कदा गुरुजी मन खुदे कर कर के अपन भाव बढ़ाये के प्रयास करथे। फेर ये प्रकार के गुरुजी साल म केवल एक दिन शिक्षक दिवस के नजर आथे सब ल। ओखर बाद कोनजनि कहाँ नंदा जथे।

        दूसर प्रकार हे *गुरजी* जिसे नाँव तइसे काम। ये गुरुजी मन बढ़ मीठे मीठ गोठियाठे। थूके थूक म लाडू बाँध के सब ला खवाथे। नेता, अथिकारी, लइका सब के मन ल मोह के रखथे। ते पाय के कोनो इखरे शिकायत कभू नइ करे। भले वो कभू कभू आथे। कभू देरी ले आथे अउ जल्दी चल घलो देथे फेर का मजाल हे काखरो की कभू कोनो आँखी तरेर के देख घलो सकय। सबल रोज रामराम, नमस्ते करथे कोनो कोनो तो नेता अधिकारी अउ गाँव के दबंग मनखे मन के पाँव परे म घलो परहेज नइ करय। अतका विनम्र गुरुजी कोन ल नइ भाही। का होगे अपन विषय के बारे मा कुछु नइ जानय फेर लइका मन कभू नइ टोंकय। लइका स्कूल आय झन आय। पढ़य झन पढ़य। कतको उदबिरिस कर लय। अनुशासन बनाना तो हेडमास्टर के काम हरे कहिके पल्ला झाड़ लेथे। 

            तीसर हरे *गरुजी* ये बिचारा किसम के गुरुजी होथे। इखर कोनो नइ सुनय। ये मन सब के चुपचाप सुन लेथे । सियान मन इखरे बर कहे हे 'जे सुनते तेकर बनथे'। ये मन मन्दिर के घण्टी कस होथे जे आथे बजा के चल देथे।  बइठ त बइठ  गे खड़े हे त खड़हेच रही गे। कोनो आवथे कोनो जावत हे। सब देखत हे फेर कोनो ल कुछु नइ कहना हे। अपन काम म मगन हे। पढ़ावत हे त पढ़ावत हे कोनो लइका पढ़त हे तभो ठीक नइ पढ़त हे तभो ठीक । कोनो कोनो लइका हल्ला करत हे कोनो शरारत करत हे बिचारा सब ल सहत हे। हाजरी ले बर मुड़ी गाड़िया दिस त मुहँ ऊँचा देखनाच नइ हे;  काकर हाजरी कोन बोलत हे। ये बिचारा दर्द के मारा। इन्हें चाहिये हमदर्द का टॉनिक ...। अइसे किसम के।

          इखरे ले अलग एक अउ किसम के गुरुजी होथे। *गरूरजी* आज कल इखर संख्या बहुत बढ़त जावत हे। ये मन अपन आप ला भारी विद्वान समझथे। अपन आघु कोनो ल कुछु नइ समझय। ये मन नेता अधिकारी मन तक पहुँच वाला होथे।  बात बात म कोर्ट कचहरी के गोठ करथे। लइका तो लइका हेडमास्टर घलो इखर ले डारावत रहिथे। पूरा स्कूल के अनुशासन इखरे ऊपर निर्भर रहिथे। कक्षा म जावत देरी हे तहां एकदम 'पिन ड्राप साइलेंट!'  लइका का जानत हे ? का सीखत हे ? ये मायने नइ रखय। फेर इखर सामने लइका के आवाज नइ आना चाही, बस। 

       अइसने कई किसम के  गुरुजी हे। अउ कई किसम के चेला घलो हे। चेला मन के चर्चा बाद म करबो। फेर गुरुजी मन ल निपटाए के बाद एक बात सोंचे बर परही। समय के संगेसङ्ग सब बदलगे। गुरुजी घलो इही समाज के प्राणी हरे। जेन - जेन गुण-दोष समाज के दूसर मनखे मन मा हे, इखरो म रहिबे करही। जब सारी दुनिया के चाल चरित्तर बदलत हे त गुरुजी मन ऊपर एखर प्रभाव नइ परही का? काबर कि ये मन  कोनो दूसर दुनिया ले तो आय नइ हे। येहु मन इही समाज के हिस्सा आय। फेर आज भी गुरुजी मन के छवि हर  लोगन के मन बर एक आदर्श हे।  जुन्ना समय ले आज तक कुछ नइ बदले हे। वो मन जब गुरुजी ल देखथे त वेद पुराण के उही आदर्शवान गुरुजी के सुरता आ जथे। फेर अपन ल नइ देखय कि अपन मन कतका बदल गे हे। गुरुजी मन घलो पहिली जइसे सम्मान खोजथे आरुणि सही चेला खोजथे । जेन नइ मिल सकय। 

कुल मिला के गुरुजी अब शासन के वेतनभोगी कर्मचारी हो गे हे। शासन जइसे चाहत हे ओखर बात चाहे अनचाहे मने बर परही। तबो ले एक बात कहे जा सकत हे। जेन गुरुजी लइका मन के शिक्षा ऊपर  बने ध्यान देथे। उखर जीवन निर्माण बर  निस्वार्थ भाव ले काम करथे। लइका मन  जीवन भर ओला नइ भुलावय। जब भेटथे सम्मान करथें।


🙏🏻 मथुरा प्रसाद वर्मा

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