Friday 30 September 2022

जनकवि कोदूराम "दलित" के काव्य मा नारी विमर्श .....


 

जनकवि कोदूराम "दलित" के काव्य मा नारी विमर्श .....


(55वीं पुण्यतिथि म शत शत नमन)


        देश के बड़का साहित्यकार मन बेरा-बेरा म स्त्री विमर्श के बात अपन गद्य/पद्य म कहत रहे हवँय। इही क्रम म छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य साहित्यकार अउ जनकवि कोदूराम "दलित" मन घलाव अपन बात कहे हवँय। दलित जी गाँव-गँवई ल जिये रहिन अउ छत्तीसगढ़ ल करीब ले देखे रहिन येकर सेती उन जब अपन साहित्य म नारी विमर्श के बात करथें तब "छत्तीसगढ़ी नारी" उँकर लक्ष्य म होथे। आजादी के पहिली अउ आजादी के बाद लिखे उँकर काव्य मा "छत्तीसगढ़ी नारी" ला विशेष स्थान मिले हवय। छत्तीसगढ़ के नारी के दशा अउ उत्थान ल दलित जी विशेष रूप ले रेखांकित करे हवँय।

             हमर सरकार जेन प्रौढ़ शिक्षा के बात आज करथें वोला दलित जी आजादी के पहिलीच कहि डरे रहिन । उँकर मानना रहिस कि प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम ले महिला मन ला घलो पढ़े लिखे के अवसर मिलना चाही।  चूँकि उन शिक्षक भी रहिन तेकर सेती प्रौढ़ शिक्षा के महत्ता ल उन बखूबी समझय । प्रौढ़ शिक्षा के बात ल दलित जी कतेक सहजता ले कहि दँय येकर चित्रण देख के आप अचंभित हो जाहू। गॉंव म प्रचलित नाम जेन ठेठ छत्तीसगढ़ी के परिचायक हवय, के गज़ब के प्रयोग दलित जी मन करे हवँय। गाँव के जम्मो महिला चाहे नता म कोनो रहँय कोनो भी प्रौढ़ शिक्षा के लाभ ले वंचित नइ होना चाही अइसन उँकर सोच रहिस। उँकर चौपाई छ्न्द देखव:-

सुनव सुनव सब बहिनी भाई

तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।

गपसप मा झन समय गँवावव

सुरता करके इसकुल आवव।।

ए ओ सखाराम के सारी

हगरू टूरा के महतारी।

मंगलू के मँझली भौजाई

भुरुवा मंडल के फुलदाई।।

हमर परोसिन पुनिया नोनी

पारबती मनटोरा सोनी।

सुनव जँवारा सुनव करौंदा

तुलसीदल गंगाजल गोंदा।।

नंदगहिन सातो सुकवारो

जम्मो झिन मन पढ़ लिख डारो।

ए गा भाई ददा बिसाहू

रतन गउँटिया माधो दाऊ।।


आजादी मिले के बाद लोकतंत्र के स्थापना हमर देश म होइस। संविधान मा सब ला समानता के अधिकार मिलिस। हर क्षेत्र म पुरुष के समान नारी ल भी समानता के अधिकार मिलिस। दलित जी के दूरगामी सोंच देखव कि आजादी के परब म जब झण्डा फहराए बात आथे तब दलित जी नारी के सहभागिता के बात करथें। गाँव के जम्मो नारी मन मगन हवँय अउ लोकतंत्र के तिहार ल मनावत हवँय :- 

आइस हमर लोकतन्तर के, आज तिहार देवारी।

बुगुर-बुगुर तैं दिया बार दे, नोनी के महतारी।।


(ये पद मा दलित जी जउन दिया के बात करिन हें, उँकर इशारा ज्ञान के अँजोर बगराये ले हवय। नारी मन लइका के पहिली गुरु होथें। ज्ञान अउ संस्कार के अँजोर उही मन बगरा सकथें।)


सुत-उठ के फहराइस बड़की-भौजी आज तिरंगा।

अस नांदिस डोकरी दाई हर, कहिके हर-हर गंगा।।

(इहाँ बड़की भौजी नवा पीढ़ी के प्रतीक आय। बिहाव के बाद संयुक्त परिवार ल सँवारे अउ बढ़ाये के जिम्मेदारी बड़का भौजी ल दिए जाथे। देश चलाये के जिम्मेदारी घलाउ नवा पीढ़ी के हाथ म आना चाही। डोकरी दाई इहाँ जुन्ना पीढ़ी के प्रतीक हवय।)


ठुमुक-ठुमुक मनटोरा नाचय, पुनिया ढोल बजावय।

बड़ निक सुर धर जन गण मन के, फगनी टूरी गावय।।

(गणतंत्र परब के उछाँह मा नारी मन घलो झूमत-गावत हवँय।)


घर-गिरस्ती के संगे संग नारी के भूमिका अन्नपूर्णा असन होथे। दलित जी राँधे-खवाये के जिम्मेदारी के बात ल सुग्घर हास्य म कहिन हें :- 

हमर सास हर ठेठरी खुरमी, भजिया बरा पकावय।

लमगोड़वा भउजी के भाई, चोरा-चोरा के खावय।।


खेती-किसानी तो छत्तीसगढ़ के पहिचान आय। ये काम मा श्रमदान करइया नारी मन सज-सँवर के जाथें। इही बात ल खास रेखांकित करत उँकर पंक्ति देखव :-

चंदा, बूंदा, चंपा, चैती, केजा, भूरी, लगनी।

दसरी, दसमत, दुखिया,ढेला,पुनिया,पाँचो, फगनी।

पाटी पारे, माँग सँवारे,हँसिया खोंच कमर-मा,

जाँय खेत, मोटियारी जम्मो,तारा दे के घर- मा।


जब धान-लुवाई के बेरा होथे तब घर भर के मनखे जुरमिल के खेत म श्रम करे बर जाथें। अइसन बेरा म युवा नारी के उछाँह ला चित्रित करत दलित जी अपन गीत म लिखथें :- 

छन्नर-छन्नर पैरी बाजय,खन्नर-खन्नर चूरी।

हांसत, कुलकत,मटकत रेंगय,बेलबेलहिन टूरी।।


उँहे दूसर कोती लैकोरहिन मन घलो श्रमदान करे ले पाछू नइ घुँचय। पुरूष मन संग कंधा ले कंधा मिला के चलना उँकर नियति हवय। लैकोरहिन के दशा के मार्मिक चित्रण देखव :- 

लकर-धकर बपुरी लैकोरी, समधिन हर घर जावय।

चुकुर-चुकुर नान्हें बाबू-ला,दुदू पिया के आवय।।


संयुक्त परिवार मा नारी के सहभागिता ल दलित जी अपन गीत म बखूबी लिखथें -

दीदी लुवय धान खबा खब  ,भाँटो बाँधय भारा।

अउँहा-झउँहा बोहि-बोहि के, लेजय भौजी ब्यारा।


चूँकि दलित जी गाँधीवादी विचारधारा के रहिन अउ कुटीर उद्योग के महत्ता ला उन जानत रहिन। कुटीर उद्योग ले नारी अर्थोपार्जन करके अपन आजीविका चला सकथे अइसन गंभीर बात ल केवल दलित जी ही लिख सकथे :-

ताते च तात ढीमरिन लावय,  बेंचे खातिर मुर्रा।

लेवँय दे के धान सबो झिन, खावँय उत्ता-धुर्रा।।


दलित जी अपन साहित्य म नारी विमर्श केवल बालिका अउ युवती मन के ही नइ करे हवँय भलुक सियानिन मन के योगदान ल घलाव उन सहजता ले स्वीकार करे हवँय। सियान नारी के मया देखव सार छन्द मा :-

रोज  टपाटप मोर डोकरी-दाई बीनय  सीला।

कूटय-पीसय, राँध खवावय, वो मुठिया अउ चीला।।


देवारी के तिहार म महिला मन के काम काज अउ जिम्मेदारी दूनो बाढ़ जाथे। दलित जी के समय म खादी के बड़ महत्ता रहिस। उन खुद भी खादी पहिरँय अउ लोगन ला प्रेरित घलो करँय। उँकर मानना रहिस कि खादी के उपयोग ले देश के अर्थव्यवस्था सुधरही अउ लोगन ल रोजगार भी मिलही। तभे तो खादी के अनिवार्यता ल दलित जी नारी के माध्यम ले सुग्घर ढंग के कहिथें :-

दसेरा देवारी के तिहार-बार आत हवै

जाव हो बाबू के ददा, खादी ले के लाहू हो

मोर बर लहँगा पोलखा अउ नोनी बर

तीन ठन सुन्दर फराक बनवाहूँ हो।

बाबू बर पइजामा कमीज टोपी अउ पेन्ट

बण्डी कुरता अपन बर सिलवाहू हो

धोती लगुरा अँगोछा पंछा उरमार झोला

ओढ़े बिछाए के सबो कपड़ा बिसाहू हो।


नवा जमाना के नारी के संबंध मे दलित जी के सोंच बहुत ऊँचा रहिस। नारी ला उन सबो प्रकार ले सक्षम देखना चाहत रहिन। उँकर सोंच रहिस कि नारी अइसन होय जेन कलजुगी पुरुष के अत्याचार के मुँहटोर जवाब दे सकँय। दलित जी नारी के स्वावलम्बन के पक्षधर रहिन। उँकर एक कुण्डलिया छन्द देखव :-

खटला खोजव मोर बर, ददा बबा सब जाव

खेखर्री साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव।

बघनिन साहीं लाव, बिहाव तभे मँय करिहौं

नइ तो जोगी बन के, तन मा राख चुपरिहौं।

जे गुंडा के मुँह मा, चप्पल मारय फट-ला

खोजव ददा बबा तुम जाके,अइसन खटला।।


दलित जी नारी ल सुरता कराथें कि तुमन शक्ति के अवतार आव। तुँहर काम केवल चूल्हा चौका तक ही सीमित नइ हे, बखत परे मा देश खातिर झाँसी के रानी जइसन घलो बनना हे। उँकर ये कविता नारी म राष्ट्रीय चेतना ल जागृत करे के काम करे हवय :- 

घर मा खुसरे कब तक ले रहिहौ बहिनी हो?

अब तुम्हू दिखावौ चिटिक अपन मर्दानापन।

तुम चाहौ तो स्वदेश बर सब कुछ कर सकथौ

झाँसी वाली रानी के सुरता भूलौ झन।।


नारी के अनुनय-विनय ले पलायन रोके म मदद मिल सकत हे ये बात के अहसास दलित जी रहिस तभे तो नारी के माध्यम ले अपन मन के बात कुण्डलिया छ्न्द मा दलित जी कहिथें :-

मोला घर मा छोड़ के, झन जा कोन्हों गाँव

येकर खातिर मँय धनी, तोर परत हँव पाँव

तोर परत हँव पाँव, बनाबे झन अब बिरहिन

गजब तड़फना पड़थय मोला रात और दिन

परन करे हँव - "नइ छोड़वँ मँय कभ्भू तोला"

जाबे तो तँय अपन संग ले जाबे मोला ।।


नारी के राष्ट्र-प्रेम अउ सहकारिता के संदेश ला दलित जी राखी जइसन पावन तिहार ल माध्यम  बना के लोगन तक पहुँचाये के काम करिन। बहिनी के रूप म नारी के राष्ट्रीय-भावना देखव :- 

सावन के बड़ निक राखी के तिहार आगे

राखी बँधवा ले गा मयारू मोर भइया।

तहीं मोर मइके अउ हितवा तहींच एक

तहीं मोर निर्बल के किसन कन्हइया।।

नी माँगौं मैं पैसा कौड़ी, नी माँगौं जेवर जाँता

नी माँगौं मैं हाथी घोड़ा, नी माँगौं मैं गइया

एके चीज माँगत हौं आज सहकारिता से

तहूँ पार करे लाग, भारत के नइया।


महतारी अउ बेटा के सुग्घर संवाद जेमा महतारी अपन बेटा ल पढ़े लिखें बर प्रेरित करत हे :-

दाई ,बासी  देबे कब?

बेटा पढ़ के आबे तब ,

पढ़ लिख के दाई, 

मैं ह हो जाहूँ हुसियार।

तोला देहूँ रे बेटा, 

मीठ-मीठ कुसियार ।

खाबे हब-हब

मजा पाबे रे गजब 

बेटा पढ़ के आबे तब।।

दाई,बासी  देबे कब ?


          दलित जी के कविता सुग्घर,सहज,सरल अउ पढ़े सुने म निक लगय। कविता /छंद मा हास्य के संग व्यंग्य घलो अद्भुत रहय। उँकर संदेशप्रद रचना आज घलो ओतके प्रासंगिक हवय जतका उँकर बेरा रहिस। छत्तीसगढ़ी काव्य मा दलित जी ला नारी विमर्श के प्रतिनिधि कवि कहे मा मोला रत्ती भर संकोच नइ हे। उँकर नारीवादी लेखन से नारी के महत्ता निश्चित रूप से प्रतिष्ठित होय हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

Thursday 29 September 2022

*माँ शीतला (हिंगलाज) दरबार के पताका - बैरग*



*माँ शीतला (हिंगलाज) दरबार के  पताका - बैरग* 



*दुर्गा प्रसाद पारकर*


 


मसो कुंआर नीत नम्मी दसराहा घर-घर खरख धोवाय। कुंआर महीना म पितर देवता मन के सुआगत करथे। पितर खेदा के बिहान दिन जोत जंवारा ह माढ़थे। ताहन फेर - 


 कुंवार मास अहोमाया बन-बन सेऊक आए, 

चोवा चन्दन अगर मलागर माय के सिर चढ़ाए। 


छत्तीसगढ़ म जंवारा ल हिंगलाज अउ घर म बोए जाथे। गांव हित म गांव भर मिल के बदना के मुताबिक बइगा के सुलाह ले हिंगलाज म जंवारा बइठथे। घर के मुखिया ह परिवार के सुख शान्ति खातिर बदना के मुताबिक घर म जंवारा बोथे। 


   जंवारा पाख म तो पूरा छत्तीसगढ़ देवी मय हो जथे। जघा-जघा देवी महिमा के बखान होथे। संझा बिहनिया तो जंवारा के पूजा आरती होथे |  संझा के संझा ढोल मंजीरा बजा के सेऊक मन मइया जी के जस गीद गा के गुनगान करथे। जस गीद म शीतला के बरनन मिलथे जइसे-


 ब्रम्हा धर ले कमण्डल मइया धर ले कमण्डल, 

शीतला सेवा म चले जाबो हो माय। 

बिजली अस चमकै शीतला, 

तै बिजली अस चमकै ना।

तोर हिंगलाज म मइया 

तोर हिंगलाज म फूलवा के उड़त हे बहार 

तुम्हरी हिंगलाज म माय |


 थंइया-थंइया नाचय अंगना लंगूरुवा हो , 

माय के अजब बने हे दरबार । छत्तीस रुप तुम धरे माता कोट कोट अवतारा, 

ठाड़े जिभिया लाल करत हे रुप दिखय विषधारा।

 कर खप्पर हाथे पर लिए सिंह भये हो हां......। 


   जंवारहा मन शीतला नही ते घर म जंवारा बो के अपन कूल देवी के मनौती ल मानथे। फेर डिगर मन अपन मनोकामना ल पुरा करे के खातिर चंडी, महामाया, बम्लेश्वरी अउ दंतेश्वरी माई म जोत जलाथे। अब मनोकामना जोत शीतला (माता देवाला) म घलो जलाए के शुरू हो गे हवय |छत्तीसगढ़ म जंवारा पाख म बैरग घलो बनाथे।बैरग मातारानी के  पताका आय | जंवरहा मन जंवारा पाख म शीतला के बैरग ल मानथे अउ मड़इया मन सुरतोही रात म बैरग बना के देवी देवता ल मनाथे।


*अ) जंवरहा मन के बैरगः-*



       जंवारा पाख म अष्टमी के दिन हुमन होथे। देवी मय माहोल म पिसान ल तेल नही ते घींव म सान के अठोई बनाए जाथे जेला रोठ कहिथन। अठोई ह परसाद के काम आथे। तीर-ताखर के गांव वाले मन ल घलो देवी सेवा बर नेवता दे जाथे। अठोई के दिन जंवारा म एक्कइस ठन लिमऊ चघाए जाथे अउ देवता मन म छोटे छोटे धजा खोचे जाथे। शीतला म बइगा ह बैरग ल सम्हराथे। माता देवाला म बैरग ल करिया (मेघीन) लाली अउ पड़री (सादा) रंग के अइलगे-अइलगे एक्कइस-एक्कइस फाल ल   सुक्खा बांस ल फहरा दे जाथे। अतका होये के बाद फुलिंग म कलश के स्थापना कर देथे। तीनो रंग के बैरग ह अइलगे-अइलगे देवी देवता मन के चिन्हारी कराथे। सत्ती (कड़गी सात) बर लाली रंग के बैरग, ठाकुर देवता बर पड़री रंग के बैरग अउ ऋृक्षिण (कंकालीन) खातिर करिया रंग के बैरग सिरजाए जाथे।

जब सेऊक मन बाजा के थाप ले देवी के गुनगान करथे तब उत्साहित हो के कतको मन देवता चघ जथे। भाव विभोर हो के देवता मन अपन तन ल लोहा के सांकड़ म पीट-पीट के लहु लुहान कर डरथे। बाना ले जीभ अउ बांह ल घलो के आल-पाल बेध डरथे। देवता म हूम दे के नरियर पा के मन भर नाचथे। देवता चघे के बखत एदे गीद ह जोर पकड़थे-


तुम खेलव दुलारुवा रन बन रन बन हो 

का तोर लेवय रइंया बरम देव

का तोर ले गोर रइंया

का लेवय तोर बन के रकसा

रन बन रन बन हो.........

नरियर लेवय रइंया बरम देव

बोकरा ले गोर रइंया

कुकरा लेवय बन के रकसा

रन बन रन बन हो..............



      जंवारा पाख म पंडा अउ बइगा के अघात योगदान रहिथे। तभे बइगा के बताए मुताबिक बैरग बर सराजाम के बेवस्था करथे। मेघिन बर दू नरियर, एक ठन धोती नही ते पन्छा म नरियर गठिया के बैरग म बांध देथे। सत्ती बर एक नरियर, एक पंछा अउ चूरी पाठ। ठाकुर देव बर सत्ती कस जोरा करे बर परथे। 

 


 *ब) मड़इया मन के बैरगः-* 


         मड़ई बनाथे तेन ल मड़इया कहिथन। मड़इया घर म बैरग ल बदना के मुताबिक सुरहोती के रात करिया (मेघीन) ,लाली अउ पड़री (सादा) कपड़ा ल तोरन कस बड़े अकार म काट के सात घांव एक के बाद एक राख के सील के सुक्खा बांस म फहरा देथे। फूलींग म कलश के स्थापना करथे । देवारी (गोवर्धन पूजा) के दिन जब राऊत मन बाजा-गाजा के संग बैरग ल परघाए बर जाथे। ओतके बखत तीन ठन लिम्बू, तीन ठन नरियर, उदबत्ती, गुलाल, हूम, बंदन, आगी अउ लोटा म पानी रख के पूजा पाठ करथे। लोक आस्था के मुताबिक हूम धूप म खयरा कुकरा (करिया लाली), खैरी पोंई नही ते पड़री कुकरा के बली चघाए जाथे। तब देवी देवता के मुताबिक राऊत मन दोहा पार केे बाजा बजा के नाच गा के देवी देवता मन ल नेवता देथे-


      पूजा परे पूजेरी भइया

      धोआ धोआ चांउर चढांव

      पूजा होवत हे मोर सत्ती के 

      सब देखन चले आव


राऊत मन बैरग संग ठाकुर देवता अउ ग्राम देवता मन ल सांहड़ा देव म गोवर्धन खुंदाए के कार्यक्रम म संघरे बर नेवतथे। गोवर्धन खुंदाए के बाद बैरग ल शीतला लेगथे। पूजा पाठ करे के बाद बइगा ह बैरग ल घर लानथे।

छत्तीसगढ़ी म पढ़व - जोत जंवारा तोर देवाला म दाई जगमग जोत जले - दुर्गा प्रसाद पारकर


 

छत्तीसगढ़ी म पढ़व - जोत जंवारा

तोर देवाला म दाई जगमग जोत जले


- दुर्गा प्रसाद पारकर 


छत्तीसगढ़ म चैत्र नवरात्रि ल बड़ा धूमधाम ले मनाथन। मईया जी के देवाला ह जोत जंवाला ले जगमगा जाथे। जंवारा आस्था के परब आय। छत्तीसगढ़ म भोजन ल जेवन कहिथन। जीये बर जेवन जरूरी हे। जेवन बिना जीव के का अस्तित्व? इंखर अस्तित्व ल बचाए खातिर जेवन देवइया देवी आय जंवारा। जऊन ल बोलचाल म जंवारा कहिथन। जेवन करे ले जीव मन ल शक्ति मिलथे। तभे तो जंवारा ल शक्ति के देवी के रूप में पूजा करथन।

सबो युग म महतारी के महिमा के बखान होये हे। जब-जब धरती म अत्याचार बाढ़त गीस तब-तब अत्याचारी मन के नाव ल बुताए खातिर जंवारा (महामाया) ह कतनो रूप म अवतार लीस।


जंवारा कोन आय?

जंवरहा मन के घर म जंवारा बोए के परम्परा ह आदिम काल ले चले आवत हे। घर परिवार में कोनो किसम के बिघन ह देवी मां के नराजगी ल व्यक्त करथे। अइसे केहे जाथे कि देवी मां ह अपन रीस ल घर के सियान ल सपना के माध्यम ले अवगत कराथे। देवी ल मनाए खातिर परिवार के सुख शान्ति बर सियान ह घर के सुन्ता सुलाह ले पांच सेऊक मन ल गवाही राख के अवइया दिन बादर म जंवारा बोए बर माई खोली (जंवारा बोए के स्थान) म हूम दे के बदना (मनौती) बदथे। मारन वाले घर तो बोकरा के पुजई घलो देथे। कतको घर नायडू (सुरा) के बली चढ़ाए जाथे।

छत्तीसगढ़ वनवासी अंचल आय तभे तो इंहा आदिवासी संस्कृति के चलन हे। येखर सऊंहत गवाही हे-बइगा। बइगा मने ग्राम देवी-देवता मन के विधि-विधान ले पूजा-पाठ अउ देख रेख करइया। गांव के सुख शान्ति बर शीतला (माता देवाला) म जंवारा बोए जाथे। जेखर देख रेख बइगा ह करथे। खरचा ल गांव भर के मन मिलजुल के उठाथे।

अमावस्या के रात बीरही फिंजोए जाथे। बीरही का आय? (1) बीजा ल ही बीरही कहिथन (2) तीन, पांच, सात या नव किसम के अनाज (गेहूं, चना, बटर, लाखड़ी, तीली, धान, जौ, उरीद, मूंग) ल मिंझार के बीरही फिंजोए जाथे। बीरही बर ओलाही गेहूं के बेवस्था करे बर परथे। अइसे केहे जाथे कि महामाई मन इक्कीस बहिनी होथे तेखरे सेती इक्कीस किसम के बीजा ल मिंझार के घलो बीरही फिंजोए जाथे।

देवता कुरिया म कन्हार माटी ले कोठ तीर म आयताकार मेड़ बनाए जाथे, जेन ल फूलवारी कहिथन। खेत बनाए बर छै आना कन्हार माटी ल दस आना बारीक खातू (कम्पोट खातू ल चन्नी म चाल के) ल मिंझार के भूंसा ल ओमे मेले बर परथे। इही मिश्रण ल कलस, चरिहा अउ दोना म घलो चाल दे जाथे। फूलवारी के सोभा ल माई कलस अउ मंझला कलस ह बढ़ाथे। माई कलस ल घांघरा घरो कहिथन। नांदी म नीम तेल भर के कलस के उपर मढ़ा दे। आज काल तो फल्ली, सरसों तेल ल घलो जोत जलाए बर उपयोग म लानत हे। भरूहा काड़ी म हाथ डेढ़ हाथ बाती (पोनी ल बर के) लपेट के नांदी के उप्पर मढ़ा के जोत जलाए जाथे। मंझला कलस ल काली माई के प्रतीक माने गे हे। फूलवारी के मुड़सरिया म रोखी रहिथे। रोखी ल देवी के निराकार रूप माने गे हे। बीरही ल फूलवारी, कलस (माई कलस, मंझला कलस), माई झेंझरी, टुकनी अउ दोना मन म बांवत करे जाथे। बीरही ह जामथे तेन ल जंवारा कहिथन। माई झेंझरी ल रिक्षीन देवी (गुस्सा होवइया देवी) के प्रतीक माने गे हे। तीन कठिया झेंझरी म चार आंगुर छोड़ के खातू ल भर दे, भरे के बाद ओमा बीरही के बांवत कर दे। जऊन बछर जंवारा ह बने जामही ओ साल सुकाल अउ जऊन साल खड़मण्डल जामही वोहा दूकाल के संकेत देथे। परसा पाना, महुआ पाना नही ते खम्हार पाना के दोना बनाए जाथे। दोना ल गांव के नाऊ ठाकुर मन सण्डेवा नही ते राहेर के काड़ी म गोभ-गोभ के बनाथे। दोना ल जंवरहा घर एकम के दिन पहुंचा देथे। ओखर अवेजी म नाऊ ठाकुर ल सेर चाऊंर भेंट करके बिदा करथे। दोना के जंवारा ल ठण्डा के दिन ग्राम देवी-देवता म चढ़ाके गांव, घर-परिवार के सुख शान्ति बर बिनती करथे। कलस के जोत जलाए के पहिली तीन ठन बिना आंछी के सादा लुगरा ल मढ़ाए रहीथे तेन ल ठण्डा के दिन माई कलस, मंझला कलस अउ माई चरिहा के बोहइया मन पहिरथे। एकम के दिन विधि विधान ले देवी पूजा के शुरूआत होथे। सुभ मुहूर्त म पांच पंच के उपस्थिति म जोत जलाए जाथे। घर के सियान ल पण्डा के भार सौंपे जाथे। शीतला (हिंगलाज) म पंडा के जवाबदारी ल बइगा ह निभाथे। पण्डा ह नवरात्रि उपास रहीथे। संझा के संझा रोज फल, दूध, दूबी के रस के फरहरी करथे। एकम के दिन देवी के रक्षक के रूप म लंगूरे (बजरंगबली) के स्थापना फूलवारी के तीर म होथे। काली के रूप म खप्पर ल जंवारा खोली के मुहाटी के बगल म स्थापित करे जाथे। जेन ल खप्पर वाले देवी के नाव ले जानथन।

सेवा बजइया सेऊक मन ढोलक, मंजीरा, झांझ बजावत सेवा गीत गावत जंवारा के सेवा बजाए बर जंवरहा घर पहुंचथे तब पण्डा ह घर के मुहाटी म पानी ओरछ के उंखर स्वागत करथे ताहन सेऊक मन के आरती उतारत पचघुच्चा घूंचत सेवा गाए बजाए बर सादर आमंत्रित करथे। सेऊक मन ठाकुर देव के सुमरनी ले सेवा गीत के सुरूआत करथे। तेखर बाद मातेश्वरी के सेवागीत, लंगूरे गीत गाथे ताहन सोसन भर देवी गीत गा के सेवा करथे। पूरा वातावरण देवी मय हो जय रहिथे। वोइसे तो देवी के श्रृंगार के कतनो गीत हे फेर विशेष तौर से देवी मां ल पांच रंग ह जादा प्रिय हे। जेखर वर्णन ह येदे गीत म मिलथे -


पचरंग सोलहो सिंगार महामाया


सफेद-सेत सेत तोर ककनी बनुरिया, अहो महामाई सेते पटा तुम्हार

        सेत हवय तोर गर के हरवा अउ फूलन के हारे

लाल-लाली लाल लहर के लहंगा, लाली चोली तुम्हारे

       पान खात मुंह लाल भवानी, सिर के सेंदूर लाले

पीला-पिंयर पिताम्बर पहिरे महामाई पिंयर कान के ढारे

       पिंयर हावे तोर नाक के नथनी रहे होठ म छाये

हरा-हरियर हरियर हाथ के चूरी, हरियर गला के पोते

      हरियर हावे तोर माथ के टिकली, बरे सुरूज के जोते

काला-कारी कोर लगे अचरन म, कारी काजर के रेख

      कारी हवय तोर भंवर पालकी, कारी सिर के केस

     

देवताहा मन देवता चढ़ जथे। हूम देवा के ओला शांत करे जाथे। कतको मन तो कांटादार साकड़ ले अपन पीठ ल लहूलुहान कर डरथे। देवी आस्था ल जीभ नही ते हाथ ल आलपाल बेध के देखा देथे। पंचमी के दिन बाना परघाए जाथे। पंचमी अउ साते के दिन फूलकसिया लोटा के कलस चढ़ाए बर परथे। मान ले जंवारा ह अऊ जादा बढ़ागे तब अष्टमी के घलो कलस चढ़ाए जा सकत हे। जंवारा पाख के अष्टमी के दिन हुमन होथे। इही दिन पिसान ल तेल, घी म सान के अंठोई बनाए जाथे। इही ल रोंठ घलो कहिथन। रोंठ (अठोई) ल गोतियार मन देवी के प्रसाद के रूप म स्वीकार करथे। अठोई के दिन एक्कइस ठन लिमऊ घलो चढ़ाए जाथे। इही दिन नेवोतहार मन नरियर भेंटकर के अपन मनोकामना पूरा करे बर बिनती करथे।

जऊन रद्दा ले जंवारा ठण्डा करे बर नदिया, नरवा, तरिया जाना हे वो रद्दा ल मुंदराहा ले बहारे बर परथे। जोत ह झन बुताए कहिके चाऊंर म मंतर मार के बइगा ह जंवारा म छीत देथे ताहन लिमऊ ल दू कुटका कर के भुइयाँ म छोड़े बर परथे। अइसे केहे जाथे-जेखर संतान नइ राहय ओ माई लोगन मन माई कलस बोहइया के गोड़ म हंवला भर पानी ढार के पेट के भार सुत जथे। जंवारा बोहे रहिथे तेन मन ओरी-पारी ओला नहाक के आगु बढ़ थे। अइसे करे ले देवी मां अपन भक्त के पुकार ल सुनथे। जंवारा ठण्डा करे के बाद जंवारा ल बांटे जाथे। जेखर ले कतनो मन मित मितान बद के अटूट रिश्ता जोड़ डरथे। फूल फूलवारी ह कोनो जघा भेंट हो जही तब एक-दूसर ल सीताराम जंवारा कहिके संबोधित करथे।



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Wednesday 28 September 2022

दलित जी के 'छन्नर-छन्नर पैरी बाजय' में ग्राम्य जनजीवन के चित्रण*


 

*दलित जी के 'छन्नर-छन्नर पैरी बाजय' में ग्राम्य जनजीवन के चित्रण* 


       छत्तीसगढ़ी साहित्य के गिरधर कविराय के रूप में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के साहित्यकार, लेखक, जनकवि कोदूराम दलित के साहित्य जगत म बिसेस महत्व हवय। उँखर छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी के पद्य-गद्य में बरोबर पकड़ रिहिस। दलित जी हिन्दी के छन्द में छत्तीसगढ़ी कविता लिखय। उँखर कविता मन हा गाँधीवादी विचारधारा ले प्रेरित रहय। हास्य-व्यंग्य घलो बनेच रहय। कवि सम्मेलन मन म अपन इहि विशिष्ट शैली ले लोगन मन ल  जागरूक करत अब्बड़ मनोरंजक करय। दलित जी के कविता में देशप्रेम भाव, जनजागरण,प्रकति चित्रण, नीतिपरख, समाज सुधार, समाजोपयोगी, मानवतावादी, अउ प्रगतिशील नजरिया के घलो दर्शन होय। येखर सेती दलित जी ल जनकवि के नाव घलो मिले रिहिस।

  

       दलित जी अपन कलम ले लगभग 800 कविता रच के साहित्य संसार के कोठी ल भरे के उदिम करीस। आज 55 वीं पुण्यतिथि म उँखर कविता संग्रह के किताब "छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" के सुरता करत मोर आदरांजलि देवत हों। ये किताब ल संपादक नंदकिशोर तिवारी जी अउ गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के स्वत्वाधिकार म सन 2007 म प्रकाशित होय हे। ये किताब म समाज सुधार,देशप्रेम भावना के संगे-संग किसान-मजदूर के पीरा ल कहत अपन अधिकार बर जगात, मद्यपान निषेध, राष्ट्रीय तिहार, भारतमाता ल आजादी करे बर गोहार अउ खादी ग्रामोद्योग के कविता मन प्रमुख हवय। ये किताब के कविता मन हमर ग्राम्य जनजीवन के चित्रण ले भरे हे।  दलित जी के विचार ल ये किताब के 32 ठन कविता ल पढ़के जाने जा सकत हे।  कवि के लगभग सबो भाव ये कविता संग्रह में आगे हवय। येला पढ़के साहित्य प्रेमी मन बिना सहराये नई रह सकय। 


     दलित जी शिक्षण काम के जुड़े के सेती सबो झन बर शिक्षा के चिंता करना स्वभाविक बात आय। अनिवार्य शिक्षा के महत्व ल बतात उँखर पहली कविता 'अनिवार्य सिक्छा' में जम्मो लइका मन के शाला भेजे बर किहिस-


"पढ़े लिखे बर जाव-गुन सीखे बर जाव,

पढ़ लिख के भईया! बने नाम ल कमाव।"


लइका मन के चिंता के पीछू सियान मन के प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम बर बने चेतावत घलो कहत हे-


"रतिहा आठ बजे आ जाहू, साढ़े नौ के छुट्टी पाहू।

आए बर झन करौ कोताही, बिगर बलाए आना चाही।"


     हमर समाज बर अभी सबके बड़े बुराई हवे त ओ हरे मंद-मउँहा के पियई। दलित जी ह येला रोके अउ जनमानस ल येकर के बचे के प्रयास बर लिखिस। येहा घर, परिवार, समाज अउ देश ल नुकसान करथे। पियईया मन ल फटकारत किहिस-


"पियइ में तोर लगे आगी, जर जाय तोर ये जिनगानी।

पीथस निपोर तैं ढकर-ढकर, ये सरहा मौहा के पानी।"


   सहकारिता अपनाय बर कवि के लेखनी कम नई चले हे। सबो झन ल सहकारिता लाय बर सहयोग करे के जरूरत हवय। सबो मिलके हमर देश के बेकारी, भुखमरी अउ गरीबी ल दूर करे के  संकेत देवत हे-


"हम्मन भिड़बो तो भारत में,लाबो स्वर्ग उतार।

सहकारिता हमर देस के, कर देही उद्धार।"


       दलित जी के देशप्रेम 'भारत ला बैकुण्ठ बनाबो' कविता में साफ-साफ दिखत हे। गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित होय के भाव देखव-


"अवतारी गाँधी जी आइन,

जप-तप करिन सुराज देवाइन।

हमर देस ल हमर बनाइन,

सुग्घर रसदा घलो देखाइन।"


      दलित जी के लिखे के शुरुआत 1926 ले 1967 तक सरलग होईस हे। शुरुवाती के समय स्वतंत्रता संग्राम मचे रहय। त ओकर प्रभाव कविता में आनाच हे। उन स्वतंत्रता सेनानी मन ल अपन कविता म जगह देवत उँखर प्रशंसा करीस। 'भगवान तिलक' कविता में बाल गंगाधर तिलक जी के सुघ्घर बखान करे हे-


"है पावन जेकर तिलक नाव,

हम कस न परीं ओकरेच पाँव।"


       ग्रामीण जनजीवन के सउँहत चित्रण उँखर कविता 'हम सुग्घर गाँव बनाबो' में दिखथे। संग मा ग्रामीण परिवेश के साफ-सफाई,वृक्षारोपण, समानता के भाव, पंचायती-राज, खेती-खार के गोठबात सहज, सरल शैली में केहे हे-


"घर कुरिया अउ गली खोर मन ला,

साफ रखत हम जाबो।

हवा-अँजोर निंगे खातिर,

घर-घर खिरकी लगवाबो।"


"बस्ती के बहिरी-भितरी रुख,

राई खूब लगाबो।

नवा ढंग मा खेती करबो,

गजब अन्न उपजाबो।"


   स्वतंत्रता आंदोलन के समय  उपजे वर्गभेद, ऊंच-नीच, छुआछूत जईसन घातक कुरीति मन ला दलित जी अपन कलम ले निशाना साधत हरिजन मन बर मंगलकारी-जन हितकारी सुराज ला सामाजिक समता के अचूक उपाय बताईस-


"गांधी बबा सब्बो झन खातिर,

लाये हवय सुराज।

ओकर प्रिय हरिजन मन ला,

अपनाना परही आज।"


     अपन कविता '15 अगस्त के सुराजी परब' में अमीर-गरीब के बीच वर्ग-संघर्ष ल मार्मिक ढंग के चित्रित करीस कि कईसे स्वतंत्रता के सुराज सिर्फ बड़े मन बर आईस हे, छोटे वर्ग तो आज घलो आर्थिक कमजोरी, बेकारी, गरीबी ले जुझते हवय-


"कइसे सुराजी परब ला मनाई,

नइ हे गा घर मा एकोठन पाई।

पंदरा अगस्ते के होही देवारी,

चमकीही दाऊ के महाल-अटारी।

हमर घर में रहि घुप-अँधियारी,

जरजा गरीबी, तँय मर जा बुजारी।

पोनी अउर तेल,का में बिसाई,

नइ हे गा घर में एकोठन पाई।"


      छत्तीसगढ़ी गीत के राजा ददरिया के राग में 'बापू जी' कविता में गाँधीजी जी के सत्य, अहिंसा, हरिजन उद्धार अउ आजादी बर करे कठिन संघर्ष के बानगी देखे के लईक हवे-


"हमला पढ़ाये अहिनसा के पाठ,

छेरी-बघवा-ला पानी पिलाये एके घाट।"


        कविता 'भारत माता से' सवैया छंद में अंग्रेज मन के गुलामी में जकड़े हमर भारतमाता ला ये कहके भरोसा देवात हवे, कि हमन सब झन मिलके तोला ये फिरंगी मन के मुक्त करा लेबो दाई, अउ वो मन का कइसनो करके इन्हां ले खेदार के ही सांस लेबो-


"अब रो मत भारत माता कभू,

हम बंधन-मुक्त कराबोन तोला।

अंगरेज के संग,करे बर जंग,

करे हन राजी इहाँ के सबो ला।"


         देश के आजादी के लड़ई लड़े बर दलित जी ह गांव के मजदूर और किसानों मन ला जगाके अंग्रेज मन ले दू-दू हाथ करे बर तैयार करे हे-


"आजादी खातिर लड़ना हे,

जागो मजूर जागो किसान।

गोरा-ला खूब कुचरना हे,

जागो मजूर जागो किसान।"


        इंकर संग जवान मन ल घलो आजादी के लड़ई बर चेत करे ल किहिस। आलसीपन ल छोड़व अउ देश बर आघू आवव-


"हे नव भारत के तरुण वीर,

ये भीम,भगीरथ, महावीर।

झन भुला अपन पुरूसारथ बल,

खँडहर मा रच अब रंग महल।"


       आजादी बर किसान, मजदूर, जवान मन ला जगाये के बाद सत्याग्रह करे के तैयारी उँखर 'सत्याग्रह' कविता में दिखत हवे।  गाँधी जी के बात मानके उँखर रद्दा धरबो-


"अब हम सत्याग्रह करबो,

कसो कसौटी-मा अउ देखो।

हम्मन खरा उतरबो,

अब हम सत्याग्रह करबो...."


        लकर-धकर देश के आजादी होय के बाद घलो बैरी- दुश्मन मन पीछू नई छोड़िन। देश के दुश्मन जेमन कश्मीर में घुसपैठ के कोशिश करिन ओमन ला मार भगाये के बात कवि ह 'बंडवा हुंडरा' में केहे हे। अउ घनाक्षरी छंद के माध्यम के चीनी आक्रमण करईया मन ल घलो धमकाईन हे-


"दौड़ो-पकड़ो, मारो खेदारो सँगी हो,

बंडवा हुंडरा-मन हमर देस मां आइन हे।"


"अरे बेसरम चीन! समझे रेहेन तोला,

परोसी के नता-मां अपन बंद-भाई रे।"


         पाकिस्तानी आक्रमण बर वीर सिपाही मन ला जोश दिलाये के काम उँखर 'आव्हान' कविता में हवय। अपन मातृभूमि के रक्षा बर बैरी मन ले लड़े बर बंदूक, बम, तोप, तलवार जइसन हथियार उठाये के अब समय आ गेहे। स्वतंत्रता संग्राम के समय सिपाही के आम जनता ला मारना एकोकनी अच्छा नई लगे, येकर सेती ओहा 'झन मार सिपाही' में बड़ा करूणा भरे शब्द में कथे-


"झन मार सिपाही, हमला झन मार सिपाही।

एक्के महतारी के हम-तैं, पूत आन रे भाई।"


     दलित जी मूलतः गांधीवादी विचार ले प्रेरित कवि रिहिस। उँखर कविताओं में सत्य, अहिंसा के साथ खादी ग्रामोद्योग के बात तको हे, 'फगुवा अउ फगनी के गोठ' में देवारी तिहार म सबो झन बर स्वदेशी खादी भंडार ले खादी के कपड़ा-लत्ता लेय बर केहे हे। 'तकली' कविता में जम्मो झन ला तकली चलावत आलस्य छोड़के कर्मठ बने के सुझाव दिस। 'सूत कातिहौं वो दाई' में लइका अपन महतारी ले चरखा और तकली लेय बर कहत हवय।

 'खादी के टोपी' कविता में आजादी के बाद सबो झन ला खादी के टोपी पहने ल कहत खादी के महिमा अउ खादी ग्रामोद्योग ला बढ़ावा देय के सफल उदिन करे हे-


"पहिनो खादी टोपी भइया!

अब तो तुम्हरे राज हे।

खादी के उज्जर टोपी ये,

गाँधी जी के ताज हे।"


       किसान-मजदूर के भुखमरी बर तो दलित जी हा भगवान ला घलो नई छोड़िस। 'न्यायी भगवान' कविता में गरीब मनके लाचारी, बड़े वर्ग द्वारा शोषण के सेती दलित जी हा भगवान के स्वरूप बर प्रश्नचिह्न घलो लगा दिन। इहि दलित जी के प्रगतिवादी कवि होय के प्रमाण आय-


"धन-धन रे न्यायी भगवान,

कहाँ हवय तोर आँखी-कान।

नइये ककरो सुरता-चेत,

देव आस के भूत-परेत।"


      गुरु के महिमा, भक्ति, त्याग अउ समर्पण के भाव मनखे के जीवन संवर जथे। अपन लोक-परलोक ल सुधारे बर रत्नावली के फटकार हा तुलसीदास जी ला सत के रद्दा धरा दिस। कविता 'तुलसी भगवान तभे पाइस' में गुरु के महिमा ल बतात केहे हवय-



."पहिली सद्गुरु जी चरण धरिस।

ओकर सेवा दिन-रात करिस।

विदया सीखिस, दस-पांच बरिस।

गुरु ग्यान भरिस, अग्यान हरिस।

मन मंदिर में अँजोर लाइस।

तुलसी,भगवान तभे पाइस।"


      दलित जी छत्तीसगढ़ी के संगे-संग हिन्दी के घलो बेजोड़ कवि रिहिन। दूनो भाषा में कवि के समान अधिकार रहय। हिन्दी के देवनागरी लिपि बर उँखर लिखे कविता हिन्दी प्रेम ला स्पष्ट करत हे-


" येकर मान करय सब जनता,

हिन्दी अउर अहिन्दी,

ये जान्हवी बनिस अउ बनगें,

सब भासा कालिन्दी,

बोलंय ये भासा-ला मदरासी,

बंगाली सिंधी,

बनिस रास्ट्रभासा हमार,

हम सबके प्यारी हिन्दी।"


         छत्तीसगढ़ के कण-कण ले परिचित होय के सेती उँखर कविता में छत्तीसगढ़ के हर रंग, रूप, संस्कृति, खान-पान, लोक व्यवहार के दर्शन जरूर होथे। छत्तीसगढ़ के कई ठन भाजी में खेड़ा भाजी प्रसिद्ध हवे। येला जरी भाजी घलो कहिथे। ये हमर शरीर बर कतका उपयोगी हवे, दलित जी बतात हे-


"जो चुचुर-चुचुर के खावे।

तन-बदन मस्त हो जावे।

वो हार कभू न माने।

कखरो से भिड़े अभेड़ा।

ये छत्तीसगढ़ के खेंडा।"


         छत्तीसगढ़ के किसानी जनजीवन ला सबसे ज्यादा छूये के जतन दलित जी हा अपन रचना में करे हे, किसान पुत्र दलित जी स्वयं बालपन ले ही सबो किसानी काम-काज ला नजदीकी से देखत आय हे, तेकर सेती ओकर रचना मन में किसानी जनजीवन के बारीकी ले चित्रण होय हे। 'हम किसान' कविता के पंक्ति में किसानी काम के कतिक सुंदर चित्रण करे हे-


"चल नांगर सरर-सरर,

खेत चीर चरर-चरर,

छिड़के हन बीज-भात,

छरर-छरर, झरर-झरर।"


        किसानी के चार महीना के कठिन परिश्रम के पीछू फसल कटई के समय सबसे ज्यादा आनंददायक होथे। किसान के मेहनत अब बगबग के दिखे ल लगथे। गांव के सभी सँगी-साथी के संग मिलके, ये पुण्य काम के शुरुआत ले आखिरी करथे। धान लुवाई कराये बर अपन-अपन खेत में जादा मनखे जाये के मोह बने रइथे। जेकर ले धान कटई के बुता जल्दी पूरा हो जाये। इहि में लोगन मन के बीच आपसी मनुहार देखते बनथे-


"चल संगवारी,चल संगवारिन,

धान लुए ला जाई।

मातिस धान लुवाई अड़बड़,

मातिस धान लुवाई।"


       फसल कटई के समय मोटियारी अउ नवा बहुरिया के  तैयारी अउ उँखर संगी-सहेली के साथ हँसी-मजाक के दृश्य सजीव हो उठथे। दलित जी के लेखनी के जादू के ये गीत अमर होगे हे-


"पाटी पारे मांग सँवारे,

हँसिया खोंच कमर मा।

जाँय खेत मोटियारी जम्मों,

तारा दे के घर मा।"


"छन्नर-छन्नर पैरी बाजय,

खन्नर-खन्नर चूरी।

हाँसत, कुलकत,मटकत रेंगय,

बेलबेलहीन टूरी।"


       "छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" कविता संग्रह में आखिरी कविता के रुप में 'चउमास' का वर्णन मिलथे। चउमास अर्थात बरसात के चार महीना के चित्रण करे गेहे। चारों दिशा में फईले हरियाली हरे-भरे फसल,पेड़-पौधा ला देखके मन प्रफुल्लित हो जथे। ग्रामीण संस्कृति में जइसे-जइसे घटना-घटित होत जाथे, वइसे-वइसे उँखर रूप के चित्रण बड़ सुघ्घर ढंग ले करे हवय-


"घाम दिन गइस, अइस बरखा के दिन।

सनन-सनन चले पवन लहरिया।

छाये रथे अगास-मां चारों खूँट धुँआ साहीं।

बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।

चमकय बिजली गरजे घन घेरी-बेरी।

बरसे मुसरधार पानी छर-छरिया।

भरगें खाई खोंधरा, कुवाँ, डोली-डांगर 'औ'

टिप-टिप ले भरगें-नदी नरवा तरिया।"



        अईसन ढंग के जनकवि कोदूराम 'दलित' जी के कविता संग्रह "छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" में शामिल जम्मो कविता मन में तत्कालीन स्थिति, स्वतंत्रता संग्राम, गांधीवादी विचारधारा, सहकारिता, प्रकृति चित्रण, ग्रामीण जनजीवन, समाज-सुधार, खादी ग्रामोद्योग, सत्य-अहिंसा, किसान-मजदूर के मेहनत उँखर पीरा अउ संघर्ष पुरजोर तरीका के केहे गे हवे। ये संग्रह में वर्तमान समय के स्थिति के घलो चित्रण होय हे। ये कविता संग्रह में कवि के समय के सामाजिक ,राजनीतिक स्थिति, स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणीय वीरों, आंदोलन कारी महिला मन के चित्रण का होना जरूरी लगत रिहिस। तिहंक ले ये कविता संग्रह सराहनीय हवे। आज घलो दलित जी के कविता संग्रह "छन्नर-छन्नर पैरी बाजय" सहृदय सबो वर्ग के पाठक मन बर पठनीय हे। येमें शामिल कविता मन वर्तमान स्थिति में घलो प्रासंगिक हवे।



             हेमलाल सहारे

मोहगाँव(छुरिया)राजनांदगांव

जजनकवि कोदूराम “दलित” की साहित्य साधना :


 

जजनकवि कोदूराम “दलित” की साहित्य साधना :

( 5 मार्च को 107 वीं जयन्ती पर विशेष) : शकुन्तला शर्मा 


मनुष्य भगवान की अद्भुत रचना है, जो कर्म की तलवार और कोशिश की ढाल से, असंभव को संभव कर सकता है । मन और मति के साथ जब उद्यम जुड जाता है तब बड़े बड़े  तानाशाह को झुका देता है और लंगोटी वाले बापू गाँधी की हिम्मत को देख कर, फिरंगियों को हिन्दुस्तान छोड़ कर भागना पड़ता है । मनुष्य की सबसे बड़ी पूञ्जी है उसकी आज़ादी, जिसे वह प्राण देकर भी पाना चाहता है, तभी तो तुलसी ने कहा है - ' पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं ।' तिलक ने कहा - ' स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे ।' सुभाषचन्द्र बोस ने कहा - ' तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा ।' सम्पूर्ण देश में आन्दोलन हो रहा था, तो भला छत्तीसगढ़ स्थिर कैसे रहता ? छत्तीसगढ़ के भगतसिंह वीर नारायण सिंह को फिरंगियों ने सरेआम फाँसी पर लटका दिया और छत्तीसगढ़ ' इंकलाब ज़िंदाबाद ' के निनाद से भर गया, ऐसे समय में ' वंदे मातरम् ' की अलख जगाने के लिए, कोदूराम 'दलित' जी आए और उनकी छंद - बद्ध रचना को सुनकर जनता मंत्र – मुग्ध हो गई  -


" अपन - देश आज़ाद  करे -  बर, चलो  जेल - सँगवारी

 कतको झिन मन चल देइन, आइस अब - हम रो- बारी।

जिहाँ लिहिस अवतार कृष्ण हर,भगत मनन ला तारिस

दुष्ट- जनन ला मारिस अउ,   भुइयाँ के भार - उतारिस।

उही  किसम जुर - मिल के हम, गोरा - मन ला खेदारी

अपन - देश आज़ाद  करे  बर,  चलो - जेल - सँगवारी।"


15 अगस्त सन् 1947 को हमें आज़ादी मिल गई, तो गाँधी जी की अगुवाई में दलित जी ने जन - जागरण को संदेश दिया –


" झन सुत सँगवारी जाग - जाग, अब तोर देश के खुलिस भाग

सत अउर अहिंसा सफल रहिस, हिंसा के मुँह मा लगिस आग ।

जुट - मातृ - भूमि के सेवा मा, खा - चटनी बासी - बरी - साग

झन सुत सँगवारी जाग - जाग, अब तोर देश के खुलिस भाग ।

उज्जर हे तोर- भविष्य - मीत,फटकार - ददरिया सुवा - राग

झन सुत सँगवारी जाग - जाग अब तोर देश के खुलिस भाग ।"


हमारे देश की पूँजी को लूट कर, लुटेरे फिरंगी ले गए, अब देश को सबल बनाना ज़रूरी था, तब दलित ने जन -जन से, देश की रक्षा के लिए, धन इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया –


कवित्त – 


" देने का समय आया, देओ दिल खोल कर, बंधुओं बनो उदार बदला ज़माना है

देने में ही भला है हमारा औ’ तुम्हारा अब, नहीं देना याने नई आफत बुलाना है।

देश की सुरक्षा हेतु स्वर्ण दे के आज हमें, नए- नए कई अस्त्र- शस्त्र मँगवाना है

समय को परखो औ’ बनो भामाशाह अब, दाम नहीं अरे सिर्फ़ नाम रह जाना है।"


छत्तीसगढ़ के ठेठ देहाती कवि कोदूराम दलित ने विविध छंदों में छत्तीसगढ़ की महिमा गाई है। भाव - भाषा और छंद का सामञ्जस्य देखिए –


चौपाई छंद


"बन्दौं छत्तीसगढ़ शुचिधामा, परम - मनोहर सुखद ललामा

जहाँ सिहावादिक गिरिमाला, महानदी जहँ बहति विशाला।

जहँ तीरथ राजिम अति पावन, शबरीनारायण मन भावन

अति - उर्वरा - भूमि जहँ केरी, लौहादिक जहँ खान घनेरी ।"


कुण्डलिया छन्द -


" छत्तीसगढ़ पैदा - करय अड़बड़ चाँउर - दार

हवयँ इहाँ के लोग मन, सिधवा अऊ उदार ।

सिधवा अऊ उदार हवयँ दिन रात कमावयँ

दे - दूसर ला मान, अपन मन बासी खावयँ ।

ठगथें ए बपुरा- मन ला बंचक मन अड़बड़

पिछड़े हावय अतेक इही कारण छत्तीसगढ़ ।"


सार  छंद -

" छन्नर छन्नर चूरी बाजय खन्नर खन्नर पइरी

हाँसत कुलकत मटकत रेंगय बेलबेलहिन टूरी ।

काट काट के धान - मढ़ावय ओरी - ओरी करपा

देखब मा बड़ निक लागय सुंदर चरपा के चरपा ।

लकर धकर बपरी लइकोरी समधिन के घर जावै

चुकुर - चुकुर नान्हें बाबू ला दुदू पिया के आवय।

दीदी - लूवय धान खबा-खब भाँटो बाँधय - भारा

अउहाँ झउहाँ बोहि - बोहि के भौजी लेगय ब्यारा।"


खेती का काम बहुत श्रम - साध्य होता है, किंतु दलित जी की कलम का क़माल है कि वे इस दृश्य का वर्णन, त्यौहार की तरह कर रहे हैं। इन आठ पंक्तियों से सुसज्जित सार छंद में बारह दृश्य हैं, मुझे ऐसा लगता है कि दलित जी की क़लम में एक तरफ निब है और दूसरी ओर तूलिका है, तभी तो उनकी क़लम से लगातार शब्द - चित्र बनते रहते है और पाठक भाव - विभोर हो जाता है, मुग्ध हो जाता है ।


निराला की तरह दलित भी प्रगतिवादी कवि हैं । वे समाज की विषमता को देखकर हैरान हैं, परेशान हैं और सोच रहें हैं कि हम सब, एक दूसरे के सुख - दुःख को बाँट लें तो विषमता मिट जाए –


मानव की


" जल पवन अगिन जल के समान यह धरती है सब मानव की

हैं  किन्तु कई - धरनी - विहींन यह करनी है सब - मानव की ।

कर - सफल - यज्ञ  भू - दान विषमता हरनी है सब मानव की

अविलम्ब - आपदायें - निश्चित ही हरनी - है सब- मानव की ।"


श्रम का सूरज (कवित्त)


" जाग रे भगीरथ - किसान धरती के लाल, आज तुझे ऋण मातृभूमि का चुकाना है

आराम - हराम वाले मंत्र को न भूल तुझे, आज़ादी की - गंगा घर - घर पहुँचाना है ।

सहकारिता से काम करने का वक्त आया, क़दम - मिला के अब चलना - चलाना है

मिल - जुल कर उत्पादन बढ़ाना है औ’, एक - एक दाना बाँट - बाँट - कर खाना है ।"


सवैया - 


" भूखों - मरै उत्पन्न करै जो अनाज पसीना - बहा करके

बे - घर हैं  महलों को बनावैं जो धूप में लोहू - सुखा करके ।

पा रहे कष्ट स्वराज - लिया जिनने तकलीफ उठा - करके

हैं कुछ चराट चलाक उड़ा रहे मौज स्वराज्य को पा करके ।"


गरीबी की आँच को क़रीब से अनुभव करने वाला एक सहृदय कवि ही इस तरह, गरीबी को अपने साथ रखने की बात कर रहा है । आशय यह है कि - " गरीबी ! तुम यहाँ से नहीं जाओगी, जो हमारा शोषण कर रहे हैं, वे तुम्हें यहाँ से जाने नहीं देंगे और जो भूखे हैं वे भूखे ही रहेंगे ।" जब कवि समझ जाता है कि हालात् सुधर नहीं सकते तो कवि चुप हो जाता है और उसकी क़लम उसके मन की बात को चिल्ला - चिल्ला कर कहती है -


 गरीबी – 


" सारे गरीब नंगे - रह कर दुख पाते हों तो पाने दे

दाने दाने के लिए तरस मर जाते हों मर जाने दे ।

यदि मरे - जिए कोई तो इसमें तेरी गलती - क्या

गरीबी तू न यहाँ से जा ।"


कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि गाय जो हमारे जीवन की सेतु है, जो ' अवध्या' है, उसी की हत्या होगी और सम्पूर्ण गो - वंश का अस्तित्व ही खतरे में पड जाएगा । दलित जी ने गो - माता की महिमा गाई है । बैलों की वज़ह से हमें अन्न - धान मिल जाता है और गो -रस की मिठास तो अमृत -तुल्य होती है। दलित जी ने समाज को यह बात बताई है कि-"गो-वर को केवल खाद ही बनाओ,उसे छेना बना कर अप-व्यय मत करो" -


 गो - वध बंद करो


" गो - वध बंद करो जल्दी अब, गो - वध बंद करो

भाई इस - स्वतंत्र - भारत में, गो - वध बंद करो ।

महा - पुरुष उस बाल कृष्ण का याद करो तुम गोचारण

नाम पड़ा गोपाल कृष्ण का याद करो तुम किस कारण ?

माखन- चोर उसे कहते हो याद करो तुम किस कारण

जग सिरमौर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण ?

मान रहे हो देव - तुल्य उससे तो तनिक-- डरो ॥


समझाया ऋषि - दयानंद ने, गो - वध भारी पातक है

समझाया बापू ने गो - वध राम राज्य का घातक है ।

सब  - जीवों को स्वतंत्रता से जीने - का पूरा - हक़ है

नर पिशाच अब उनकी निर्मम हत्या करते नाहक हैं।

सत्य अहिंसा का अब तो जन - जन में भाव - भरो ॥


जिस - माता के बैलों- द्वारा अन्न - वस्त्र तुम पाते हो

जिसके दही- दूध मक्खन से बलशाली बन जाते हो ।

जिसके बल पर रंगरलियाँ करते हो मौज - उड़ाते हो

अरे उसी - माता के गर्दन- पर तुम छुरी - चलाते हो।

गो - हत्यारों चुल्लू - भर - पानी में  डूब - मरो

गो -रक्षा गो - सेवा कर भारत का कष्ट - हरो ॥"


शिक्षक की नज़र पैनी होती है । वह समाज के हर वर्ग के लिए सञ्जीवनी दे - कर जाता है । दलित जी ने बाल - साहित्य की रचना की है, बच्चे ही तो भारत के भविष्य हैं -


वीर बालक


"उठ जाग हिन्द के बाल - वीर तेरा भविष्य उज्ज्वल है रे ।

मत हो अधीर बन कर्मवीर उठ जाग हिन्द के बाल - वीर।"


अच्छा बालक पढ़ - लिख कर बन जाता है विद्वान

अच्छा बालक सदा - बड़ों का करता  है सम्मान ।

अच्छा बालक रोज़ - अखाड़ा जा - कर बनता शेर

अच्छा बालक मचने - देता कभी नहीं - अन्धेर ।

अच्छा बालक ही बनता है राम लखन या श्याम

अच्छा बालक रख जाता है अमर विश्व में नाम ।"


अब मैं अपनी रचना की इति की ओर जा रही हूँ, पर दलित जी की रचनायें मुझे नेति - नेति कहकर रोक रही हैं । दलित जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । समरस साहित्यकार, प्रखर पत्रकार, सजग प्रहरी, विवेकी वक्ता, गंभीर गुरु, वरेण्य विज्ञानी, चतुर चित्रकार और कुशल किसान ये सभी उनके व्यक्तित्व में विद्यमान हैं, जिसे काल का प्रवाह कभी धूमिल नहीं कर सकता । 

हरि ठाकुर जी के शब्दों में -

" दलित जी ने सन् -1926 से लिखना आरम्भ किया उन्होंने लगभग 800 कवितायें लिखीं,जिनमें कुछ कवितायें तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और कुछ कविताओं का  प्रसारण आकाशवाणी से हुआ । आज छत्तीसगढ़ी में लिखने वाले निष्ठावान साहित्यकारों की पूरी पीढ़ी सामने आ चुकी है किंतु इस वट - वृक्ष को अपने लहू - पसीने से सींचने वाले, खाद बन कर, उनकी जड़ों में मिल जाने वाले साहित्यकारों को हम न भूलें।"


साहित्य का सृजन, उस परम की प्राप्ति के पूर्व का सोपान है । जब वह अपने गंतव्य तक पहुँच जाता है तो अपना परिचय कुछ इस तरह देता है, और यहीं पर उसकी साधना सम्पन्न होती है -


आत्म परिचय


" मुझमें - तुझमें सब ही में रमा वह राम हूँ- मैं जगदात्मा हूँ

सबको उपजाता हूँ पालता- हूँ करता सबका फिर खात्मा हूँ।

कोई मुझको दलित भले ही कहे पर वास्तव में परमात्मा हूँ

तुम ढूँढो मुझे मन मंदिर में मैं मिलूँगा तुम्हारी ही आत्मा हूँ।"


शकुन्तला शर्मा, भिलाई                                                    

मो. 93028 30030

Monday 26 September 2022

साहित्यिक तर्पण छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय- कोदूराम दलित


 

साहित्यिक तर्पण


छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय-  कोदूराम दलित   

                                                            जब हमर देश हा अंग्रेज मन के गुलाम रिहिस ।वो समय हमर साहित्यकार मन हा लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के गजब उदिम करिन । हमर छत्तीसगढ़ मा हिन्दी साहित्यकार के संगे संग छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार मन घलो अंग्रेज सरकार के अत्याचार ला अपन कलम मा पिरो के समाज ला रद्दा देखाय के काम करिन ।छत्तीसगढ़ी के अइसने साहित्यकार मन मा स्व. लोचन प्रसाद पांडेय, पं. सुन्दर लाल शर्मा, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, स्व. कुंजबिबारी चौबे ,प्यारे लाल गुप्त, अउ स्व. कोदूराम दलित के नाम अब्बड़ सम्मान के साथ लेय जाथे ।येमा विप्र जी अउ दलित जी हा मंचीय कवि के रुप मा घलो गजब नाव कमाइन । छत्तीसगढ़ी मा सैकड़ो कुंडलिया लिखे के कारण दलित जी ल  छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कहे जाथे 


जन कवि कोदू राम दलित के जनम बालोद जिले अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा 5 मार्च 1910 मा एक साधारण किसान परिवार मा होय रिहिन ।पढ़ाई पूरा करे के बाद दलित जी हा प्राथमिक शाला दुर्ग मा गुरुजी बनिस। बचपन ले वोकर रुचि साहित्य डहर रिहिस हवय ।वोहा अपन परिचय ला सुघर ढंग ले अइसन देहे –


लइका पढ़ई के सुघर, करत हवंव मैं काम ।

कोदूराम दलित हवय मोर गंवइहा नाम ।।

मोर गंवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया ।

जनहित खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलियां ।।

शउक महूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के ।

करथव काम दुरुग मा मैं लइका पढ़ई के ।।



दलित जी सिरतोन मा हास्य व्यंग्य के जमगरहा कवि रिहिन हे । शोषण करइया मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।दिखावा अउ अत्याचार करइया मन ला वोहा नीचे लिखाय कविता के माध्यम ले कइस अब्बड़ ललकारथे वोला देखव –


ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ।

हरिजन ला छूवय नहीं, चिंगरी मछरी खाय ।।

खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव ।

खेखरी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव ।।

बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहों ।

नई ते जोगी बनके तन मा राख चुपरिहौं ।।

जे गुण्डा के मुँह मा चप्पल मारै फट ला ।

खोजो ददा बबा तुम जा के अइसन खटला ।।


ये कविता के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के स्वभिमान ला सुग्घर ढंग ले बताइन । संगे संग छत्तीसगढ़िया मन ला साव चेत करिस कि एकदम सिधवा बने ले घलो काम नइ चलय ।अत्याचार करइया मन बर डोमी सांप कस फुफकारे ला घलो पड़थे ।


दलित जी के कविता मा गांव डहर के रहन सहन अउ खान पान के गजब सुग्घर बखान देखे ला मिलथे –


भाजी टोरे बर खेतखार औ बियारा जाये ,

नान नान टूरा टूरी मन धर धर के ।

केनी, मुसकेनी, गंडरु, चरोटा, पथरिया,

मंछरिया भाजी लाय ओली ओली भर के । ।

मछरी मारे ला जायं ढीमर केंवटीन मन,

तरिया औ नदिया मा फांदा धर धर के ।

खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी, धरे ,

ढूंटी मा भरत जायं साफ कर कर के । 


दलित जी हा 28 सितंबर 1967 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के स्वर्गवासी होगे । 


दलित जी के सुपुत्र आदरणीय गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी हा अपन पिता जी के मार्ग ला सुग्घर ढंग ले अपना के साहित्य सेवा करत हवय । संगे संग” छंद के छंद “जइसे साहित्यिक आंदोलन के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन ला छंद सिखा के सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना लिखे बर प्रेरित करत हवय। येहा एक साहित्यकार पुत्र द्वारा अपन पिता जी ला सही श्रद्धांजलि हरय।



[ ●ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’,सुरगी,राजनांदगांव, 


मो.79746 66840. ]


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व्यंग्य- गनपति उवाच


व्यंग्य- गनपति उवाच

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सपना म का देखथँव के गनेश विसर्जन होये के पाछू गनपति महराज ह अपन घोसघोस ले मोटाये वाहन मुसवा म बइठे

अपन घर कैलाश कोती जावत हे। कैलाश ह एकाध कोस बाँचे रहिसे तइसने अचानक मूसक ह वापस तुरतुर पल्ला भागे ल धरलिस। गनपति महराज ह अकचकागे के एला काय होगे --- पलटूराम बनत हे---सोजबाय कैलाश कोती नइ जाके जिंहा ले आवत हन तेने कोती जावत हे। गनपति जी ह अरे रुक--अरे रुक कहिते रहिगे फेर मुसवा ह कहाँ रुकने वाला हे? त जइसे बइला गाड़ी वाला ह काँसड़ा ल कसके इँचके गाड़ी ल खड़ा करथे तइसने वोहा मुसुवा के दूनों कान ल जबेड़  के धरिस अउ कस के गुमेटिच त जइसे हमर गाँव शहर म बने सरकारी गौठान ल छोड़के---छोड़के का ,उहाँ कोनो रखइया रइही तब न ?---- बीच सड़क म अघोषित ब्रेकर कस  बइठे गाय-गरुवा मन ल देख के, फटफटी वाला ह कसके ब्रेक मारथे त फटफटी ह चीं चा चूँ करत ठाढ़ हो जथे तइसे मुसवा ह चीं चीं चीं नरियावत खड़ा होगे। गनपति महराज ह लकर-धकर उतरिस अउ डाँटत कहिस-- कइसे --तैं पगला होगे हच का? वोती बर उल्टा फेर कहाँ लेगत हच? मुसवा ह अपन कान ल सहलावत कहिस--हे देवा गुसियावव मत । वो काय हे--- गाँव -शहर ,गली-गली म जिंहाँ-जिहाँ तोला लोगन मन बइठारे रहिन हें उहाँ आनी बानी के खाये ल मिलत रहिसे।पंडाल म एती वोती लोगन मन परसाद ल झोंक के आधा खायँ, आधा बिछयँ  तेला महीं ह पोगरी झोरत रहेंव। संगे संग भक्त मन तोला जेन भोग चढ़ावयँ तेनो ह मोरे अंगत लगत रहिसे काबर के तैं ह तो एको कौंरा चिखत तहाँ ले छोड़ देवत रहे। फल फूल ल तको हाथ नइ लगावत रहे।मोदक ह तको थार-थीर माढ़े रइ जावत रहिसे। बस सब ल मही ह सपेटवँ।देख तेकरे सेती मोर हेल्थ बाढ़गे हे अउ तैं दुबरागे हच।तोर पेट घलो ओसकगे हे। काबर नइ खावत रहे देवा? 

       मूसक के बात ल सुनके गनपति जी हा लम्बा साँस लेके कहिच--मैं अपन मन के दरद ल का बताववँ तोला। वो जतका मोदक चढ़त रहिसे न वो सब मिलावट वाले बेसन के बने राहयँ।घीव तको मिलावट वाले अशुद्ध।एके घंटा म महके ल धर लय। लोगन मन तेल के भाव अब्बड़ बाढ़गे हे कहिके डड़हेल तेल म बना के पूड़ी चढ़ावत रहिन हें। ये मनखे मन ल भला कोन समझावव ,दारू के भाव कतको बाढ़ जवव --ब्लेक म तकों ले के पी लेहीं ।वोकर बर मँहगाई नइ जनावय।बस चिल्लाय भर बर--ओड़हर करे भर बर  मँहगाई हे। मंत्री ल लेके संतरी तक मन के तनखा उपर तनखा---डी ए उपर डीए बाढ़त हे तेला त नइ गोठियावयँ।मुँह सिला जथे। मोर जानबा म मँहगाई डायन ह सिरतो म गरीब मजदूर अउ किसान बस मन ल चूहकथे -बाँकी मन ल बड़े ददा मानथे। हूँह---खीर तको मिलावटी दूध म चूरे सिट्ठा के सिट्ठा। फल-फूल तको रसायन म पके वाला। तोला पता नइये का बइठकी के दिन भुँखाय रहेंव त भोग ग्रहण कर परेंव तेन दिन ले पेट अँइठत हे।मोला कब्ज होगे हे अउ तोला हरियर सूझे हे---चल लहुट अउ जल्दी चल कैलाश कोती।गनपति जी ह थोकुन गुसियावत कहिस।

      जइसे कोनो चमचा ह अपन स्वारथ सिधोय बर नेता के अउ चेला ह गुरु के पालिश मारथे ओइसने मुसवा ह दूनों हाथ ल जोड़के कहिस--- हे स्वामी बुरा झन मानबे। अभी तो  कतेक भक्त मन तोर मूर्ति के विसर्जन नइ करें यें।अभी तीन-चार दिन अउ लागही।वो बेचारा मन के भावना के तको ध्यान रखना रहिसे। तैं तो लकर-धकर लहुट गेच। चल भइ लहुट के उँहचे जाबो अउ जब तक पूरा पूरा विसर्जन नइ हो लेही वापस नइ आवन। रंग रंग के कार्यक्रम तको देखे ल मिलही, हास्य व्यंग्य के नाम म एको ठन फूहड़ कवि सम्मेलन तको सुने ल मिल जही।

मुसवा के बात ल सुनके गनपति जी भन्नागे अउ कहिस---वाह रे मूसक बने गुरुमंतर देवत हस। वोमन महिना भर ले विसर्जन करत रइहीं त मैं सबके ठेका ले हँव का ? वो तो माता श्री ह जबरदस्ती भेज दिच त आगे रहेंव। अउ लोगन के भावना के कद्र करे बर जगा जगा प्राण प्रतिष्ठित होगे रहेंव।रहिस बात कार्यक्रम के त दिन रात उसनिंदा के मारे मोर आँखी झप झप करत हे--माथा फटे बरोबर लागत हे। बइरी मन ल भक्त काहत तोला लाज तको नइ लागय---वो मन मोर भावना के कभू ख्याल रखिन का? रात दिन पोंगा में आनी बानी के गीत लगाके ---कतको झन दारू पीके कइसे नाचत राहयँ।न तो कोनो लाज शरम न तो ककरो लिहाज। अउ वो मेचकी नान नान टूरी मन बिच्छी मार दिच वो वाला गाना म कइसे फूहड़ डाँस करत रहिन हें।अइसने होथे सांस्कृतिक कार्यक्रम ह---का बताववँ -मोर हालत ह तो मूँद ले आँखी तोप ले कान वाले होगे रहिस हे।बइठारिन हे तेन दिन अउ विसर्जन करिन हे तेन दिन देखे हच---कतका ऊँचा अवाज म डीजे ल बजावत रहिन हें। उँकर भडंग-भडंग म मोर हिरदे धक धक धक धक धड़के ल धर लेवत रहिसे।मोर जम्मों नाक कान ह बोजागे हे।भैरा होगेंव तइसे लागत हे। का बताववँ ---सोंड़ म लपेट के जम्मों झन ल कचार देतेंव तइसे लागय।फेर का करबे मोर असली भक्त वो छोटे छोटे लइका मन के मया के मारे कुछु नइ करेंव।

   गनपति महराज के बानी बरन ल देख के मुसवा सकपकागे अउ कहिस--ले चल बइठ भइ। गनपति महराज बइठिस तहाँ ले मूसक ह सीधा कैलाश गुफा के मुँहाटी म आके रुकिस। गनपति महराज ह अपन महतारी ल अवाज लगाइस---माता श्री--माता श्री--माता श्री। वोकर टोंटा ले बने अवाज निकलतिस तब तो सुनतिस माता पार्वती ह। टोंटा ह गुलाल के रिएक्शन म भँसिड़ियागे राहय। माता श्री ह नइ सुनत ये कहिके  वोहा गुफा के भीतर चलदिस। माता पार्वती ह  बइठे मोदक बनावत राहय। गनपति ल देख के खुश होगे अउ दूनों बाँह म पोटार के वोकर माथा ल चूमे ल धरलिस तहाँ ले अपन गोदी म बइठार के पूछिस--अउ सब बने बने न लाला? ओतका ल सुनके गनपति के आँसू टपकगे---कहाँ बने बने माता श्री। देखत नइ अच मोर हाल  बेहाल हे। हाथ गोड़ मनमाड़े खजवावत हे।गला बइठगे हे।

  हाय!हाय!! ये कइसे होगे बेटा? माता पार्वती ह दुलारत पूछिस।

कइसे होगे---कइसे नइ होही ---आज विसर्जन के बेरा कुंटल-कुंटल गुलाल ल उड़वायें हें दुष्ट मन। जम्मों मोर नाक कान अउ सोंड़ म भरगे हे। साँस लेये म तको दिक्कत होवत हे। उपर ले तरिया, नरवा नदिया के गंदा, बजबजावत पानी म मोला मनमाँडे चिभोरे हें। ये देख मोर पूरा शरीर म बड़े-बड़े डोमटा होगे हें जेन मनमाड़े खजवावत हे। कोनों दवई होही त लगा दे--अउ हाँ पेट गडबड़ हे वोकरो दवई दे --गनपति ह कहिस।

  हहो दवई लगा देहूँ---दवई खवा पिया देहूँ फेर तैं हा भक्त मन ल उल्टा पुल्टा काहत काबर हच।उँकर आस्था ल ठेंस पहुँच जही।

 अउ मोर आस्था के का होही महतारी।हम ला कतका ठेंस पहुँचे हे तेला हमी जानबो। मोर पूजा करनेच हे त अपन घरो घरो बइठार के शांति पूर्वक पूजा कर लेतिन।मोर अतेक बड़े बड़े मंदिर बने हे तिंहा जाके पूजा कर लेतिन।उहू नइ हो सकतिच त मानसिक पूजा कर लेतिन।मैं हँसी खुशी पावा मान लेतेंव।  एक दू जगा बइठा लेतीन त का होतिच।गली-गली, पारा-पारा पचासो जगा आडंबर करे के का जरूरत हे।सब चंदा के चक्कर आय तइसे लागथे मोला।दर्शन कम हे अउ प्रदर्शन जादा हे।जेने मेर पाइन तेने मेर--मंडप गाड़ देथें --नाली के तीर म--अद्दर कच्चर तरिया पार म------काला बताववँ मैं-- 

   ओहो बड़ दुख के बात हे लाला फेर का करबे हमन ल भक्त अउ भगवान के रिश्ता ल निभाये ल परथे। भक्त मन बर थोड़ बहुत कष्ट सहे ल परथे--माता ह समझावत अउ शांत करावत कहिस।

  ले ये मैं दवई देवत हँव तेला सरी अंग म चुपर लेबे ---सुखाही तहाँ ले मानसवोर म रगड़-रगड़ के नहाँ के आबे--जम्मों फोड़ा-फुंसी अउ खुजली ह तुरते मिटा जही --अउ एक ठन शीशी म दवई देहूँ तेला एक कप पी लेबे -पेट के जम्मों बीमारी दूर हो जही। अइसे कहिके महामाया ह आँखी ल मूँद के ध्यान धरिस तहाँ ले एक झँउहा गोबर  अउ एक बोतल लाली द्रव हाजिर होगे।

 गनपति ह पूछिस--ए काये माता श्री?

इही मन तो दवई आय ग ---देहा गोबर ये अउ देहा गोमूत्र ये।छत्तीसगढ़ ले मंत्रशक्ति म मँगाय हँव।ले आव गोबर ल चूपर देथँव ।ये ह एकदम खाँटी हे।मुँड़मिंजनी माटी ल मिलाके बेंचे वाला नोहय।अउ एला एक कप तुरते पीले--एकदम ताजा अउ शुद्ध हे ,कुँआ बोरिंग के पानी म माखुर पानी मिलाके बेंचे वाला नोहय।अउ तहाँ ले झटकुन नहाँ के आजा।तोर बर छप्पन भोग बनावत हँव।

      गनपति ह नहाँ के अइस तहाँ ले पेट भर खाके डकारत कहिस---देख माता श्री तैं हा मोर तथाकथित भक्त मन ल बने समझा देबे नहीं ते मैं अगले बरस इहाँ ले गनेश उत्सव टेम म बिल्कुल नइ जाववँ ।भले वोमन ठकठक ले बेजान मूर्ति ल पूजत रइहीं। अउ हाँ तहूँ ह नवरात्रि म चल देथच त मोर बर अबड़े कस मोतीचूर के लाड़ू बनाके राख दे राह। 

माता पार्वती हा हव कहिस।

  तहाँ ले गनपति ह पूछिस--कइसे माता तोर नवरात परब म तको कार्यक्रम होथे का। 

 हाँ होथे ग। गरबा के धूम रहिथे। फेर उहू म अब---

फेर का माता---साफ साफ बता न? गनपति ह पूछिस।

अब गरबा म तको गड़बड़ी होये ल धर लेहे--माता पार्वती ह थोकुन उदास होवत कहिस।

अचानक नींद खुलिस तहाँ ले झकनाके उठ गेंव।घड़ी ल देखेंव त बिहनिया के चार बजत राहय। ये ब्रह्मबेला के सपना के बारे म अउ गनपति के जतका उवाच रहिस हे तेकर बारे म सोचत बइठे हँव।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़


23 सितम्बर पुण्यतिथि म सुरता// छत्तीसगढ़ी झंडा ल अगास म लहराए खातिर भुइॅंया बनाइस सुशील यदु



 

23 सितम्बर पुण्यतिथि म सुरता//

छत्तीसगढ़ी झंडा ल अगास म लहराए खातिर भुइॅंया बनाइस सुशील यदु

    छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास म जब कभू एकर खातिर संगठन के माध्यम ले जमीनी बुता करइया मन के नाॅंव लिखे जाही त सुशील यदु के नाॅंव ल वोमा सबले आगू लिखे जाही. सन् 1981 म 'छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' के गठन करे के बाद वोहा जिनगी के आखिरी साँस तक एकर खातिर जबर बुता करीस. आज हमन छत्तीसगढ़ी भाखा-साहित्य के अतका विस्तारित रूप देखथन, लोगन के जुराव देखथन त वोमा ए समिति अउ सुशील यदु के अपन संगी मन संग मिलके करे गे जबर मैदानी बुता के पोठ हाथ हे.

    ए समिति के गठन के पहिली घलो पुरखा साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी खातिर कारज करत रेहे हें, फेर वोहा लेखन, प्रकाशन अउ मंच के माध्यम ले जनमानस म छत्तीसगढ़ी खातिर मया उपजाए के बुता रिहिसे. समिति के माध्यम ले आरुग भाखा-साहित्य खातिर रचनात्मक संगठित बुता 'छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' ले ही चालू होय हे. एकर पाछू इहाँ छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी के संयोजन म 'छत्तीसगढ़ी भासा-साहित्य प्रचार समिति' घलो बनिस. ए ह संयोग आय, मोला ए दूनों समिति संग जुड़े के साथ ही सचिव बनाए गे रिहिसे. ए दूनों समिति के गोष्ठी-बइठका अलग-अलग होवत राहय. छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के गोष्ठी आदि जिहां पुरानी बस्ती के देवबती सोनकर धरमशाला म जादा करके होवय, त छत्तीसगढ़ी भासा-साहित्य प्रचार समिति के गोष्ठी आदि 'छत्तीसगढ़ी सेवक' के कार्यालय म ही जादा होवय. छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के कार्यक्रम आरुग भाखा-साहित्य ऊपर आधारित रचनात्मक किसम के राहय त प्रचार समिति के बेनर म कतकों पइत छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म संघारे के संगे-संग अउ अइसने विषय मनला लेके धरना प्रदर्शन के घलो आयोजन हो जावत रिहिसे. 

    महतारी पूना बाई अउ सियान खोरबाहरा राम यदु जी के घर 10 जनवरी 1956 के जनमे सुशील यदु के आमतौर म चिन्हारी 'छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' के संस्थापक अध्यक्ष के रूप म ही जादा होथे. फेर वो कवि मंच के हास्य कवि के रूप म घलो अपन एक अलगेच चिन्हारी बना लिए रिहिसे. घोलघोला बिना मंगलू नइ नाचय रे, अल्ला अल्ला हरे हरे, होतेंव महूं कहूं कुकुर, नाम बड़े दरसन छोटे आदि मन तो उंकर मनपसंद कविता रिहिसे. संग म गंभीर रचना कौरव पांडव के परीक्षा अउ सुराजी बीर मन ऊपर लिखे कालजयी रचना मन घलो मंच म जबरदस्त ताली बटोरय. 

    उंकर लिखे कुछ गीत मन तो गजबे च लोकप्रिय घलो होए रिहिसे. 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के सुझाए विषय ऊपर लिखे एक गीत तो मोला आज तक गजब निक लागथे-

 

जिनगी पहार होगे रे

सोचे रेहेन फूल होही, 

खांड़ा के धार होगे रे... 

रेती महल बनगे आज बिसवास ह

बेली बंधागे हे कतकों के आस ह

पीरा ह सार होगे रे

जिनगी पहार होगे रे...


    अइसने एक अउ गीत हे, जेकर नॉंव ले उंकर गीत अउ कविता के समिलहा संग्रह छपे हे-


फूल हांसन लागे रे दारि, बगिया झूमरगे

बगिया मा जब चले आये सजनी मोर, मन के मिलौनी मोरे

हरियर आमा रे घन मउरे... 

तोरे पिरित के रंग मा अइसन रंगे हंव

सपना के सुरता दिन में आथे सजन मोरे

हाय रे बलम मोरे, हरियर आमा घन मउरे... 


     सुशील यदु के आकाशवाणी अउ दूरदर्शन ले घलो बेरा-बेरा म कविता परिचर्चा आदि के प्रसारण होवत राहय. उहें वोमन प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र 'नवभारत' म 'लोकरंग' शीर्षक ले सरलग 1993 ले 2002 तक कालम घलो लिखिन. एमा कलाकार अउ साहित्यकार मनके परिचय घलो देके काम करिन. ए बात तो सच आय, हमर इहाँ कतकों अइसन प्रतिभा हें जिनला मिडिया के मंच नइ मिल पाए के सेती लोगन के नजर ले अनजान असन रहे बर पर जाथे. आज के सोशलमीडिया के जमाना म घलो अइसन देखे बर मिल जाथे, त गुनव वो बखत जब मिडिया के अंजोर भारी दुर्लभ रिहिसे, वो बेरा अइसन मंच देना कतेक बड़े बुता रिहिसे.

    सुशील यदु के गीत मन आडियो, विडियो के संगे-संग फिलिम म घलो गाये अउ संघारे गिस. सुशील यदु ह अपन लेखन के रद्दा म आए खातिर अपन महतारी पूना देवी ल प्रारंभिक प्रेरणा बतावय, जबकि गुरु उन बद्रीविशाल यदु 'परमानंद' ल मानय. हमन संग म ही परमानंद जी संग जुड़े रेहेन. पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के उन अपन आप ल सेनापति समझय, तेकरे सेती उंकर अगुवाई म वो बखत चलत छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के रद्दा म घलो रेंगय. 

    छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के माध्यम ले कतकों अइसन साहित्यकार मनला प्रकाशन के मंच घलो दिए गिस, जेमन किताब छपवाए के स्थिति म नइ रिहिन. मोला हमर गाँव नगरगांव के सूरदास कवि रंगू प्रसाद नामदेव जी के जबर सुरता हे. रंगू प्रसाद जी कुंडलियाँ के सिद्धहस्त कवि रिहिन हें, फेर उन खुद होके किताब छपवाए के स्थिति म नइ रिहिन, अइसन म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति ह उंकर किताब 'हपट परे तो हर गंगे' छपवाए रिहिसे. अइसने हेमनाथ यदु के व्यक्तित्व अउ कृतित्व, बनफुलवा, पिंवरी लिखे तोर भाग, बगरे मोती, सतनाम के बिरवा आदि आदि अलग अलग रचनाकार मनके रचना ल छपवाए गे रिहिसे. 

    सुशील यदु के अपन खुद के लिखे पांच कृति घलो छपे हे- 1.छत्तीसगढ़ के सुराजी बीर, 2. लोकरंग भाग-1, 3. लोकरंग भाग-2, 4. घोलघोला बिना मंगलू नइ नाचय, 5. हरियर आमा घन मउरे.

    छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के माध्यम ले पुरखा साहित्यकार, कलाकार आदि मनके सुरता घलो करे जावय.  समिति के सालाना जलसा म तो उंकर मनके नाम ले सम्मान घलो दिए जावत रिहिसे, फेर उंकर मनके जनम या पुण्यतिथि के बेरा म या वोकर संबंधित महीना म अलग से गोष्ठी आदि के आयोजन करे जावत रिहिसे. 

    पुरखा मनके सुरता करत-करत सुशील यदु घलो 23 सितम्बर 2017 के रतिहा करीब 9.30 बजे सुरता के संसार म समागे. आज उंकर बिदागरी तिथि म उंकरेच ए गीत संग उंकर सुरता-जोहार-


मोर दियना के बाती बरत रहिबे ना

चारों खूंट ला अंजोरी करत रहिबे ना... 

पीरा हीरा के बाती बनायेंव

मया के आंसू के तेल भरायेंव

तन के पछीना के लेयेंव अचमन

मन अउ काया के फूल चघायेंव

दुखिया के पीरा हरत रहिबे ना

मोर दियना के बाती बरत रहिबे ना... 

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


सुरता" सुशील यदु* आज पुण्यतिथि मा शत शत नमन

 



*"सुरता" सुशील यदु* 

आज पुण्यतिथि मा शत शत नमन


                सहज,सरल,मृदुभाषी अउ मिलनसार व्यक्तित्व के धनी स्व. सुशील यदु के जन्म – 10 जनवरी 1965 के ब्राह्मणपारा रायपुर म होय रहिस। आपके पिता के नाम स्वर्गीय खोरबाहरा राम यदु रहिस ।  एम.ए.हिंदी साहित्य तक शिक्षा प्राप्त यदु जी मन प्राइमरी स्कूल म हेड मास्टर रहिन।  छत्तीसगढ़ राज्य बने के पहिली ही छत्तीसगढ़ी भाषा ला स्थापित करे खातिर जेमन संघर्ष करिन वोमा सुशील यदु जी के नाम अग्रिम पंक्ति में गिने जाथे। छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य के उत्थान खातिर हर बछर छत्तीसगढ़ म बड़े-बड़े साहित्यिक आयोजन करना जेमा प्रदेश भर के 300-400  साहित्यकार मन ल सकेल के ओकर भोजन पानी के व्यवस्था करना अइसन काम केवल सुशील यदु ही कर सकत रहिन।  छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के लोकप्रिय हास्य व्यंग्य कवि के रूप म उमन जाने जात रहिन। छत्तीसगढ़ी के उत्थान बर अपन पूरा जीवन खपा दिन अउ अंतिम सांस तक छत्तीसगढ़ी भाखा ल स्थापित करे के उदिम करत रहिन। 

                 सन 1981 में जब प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के स्थापना होइस तब वो बखत कोनो सोंचे नइ रहिन होही कि आघू चल के ये संस्था छत्तीसगढ़ी भाखा ल स्थापित करे बर मील के पथरा बनही । सुशील यदु के अगुवई म ये संस्था छत्तीसगढ़ राज के 18 जिला म छत्तीसगढ़ी के विकास खातिर संकल्पित होके काम करिस अउ आज पर्यन्त उँकर 'बाना बिंधना" उठाए काम करत हवय । छत्तीसगढ़ी साहित्य परिषद रायपुर ले सैकड़ो साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी अउ रंगकर्मी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ेच रहय। सन 1994 म पहिली प्रांतीय सम्मेलन के आयोजन होइस जेन आज पर्यंत जारी हे। सन 2007 म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के रजत जयंती वर्ष मनाय गिस। यदुजी के उठाय हर कदम सराहनीय रहय । हर बछर ये संस्था के माध्यम से लगभग 8-10 सम्मान अलग-अलग क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करने वाला मन के करँय जेन आज पर्यन्त चलत हवय। अपन संस्था के माध्यम ले उमन छत्तीसगढ़ के अनेक हस्ती ल सम्मानित करिन जेमा- साहित्यकार, लोक कलाकार, पत्रकार, फिल्मी कलाकार, रंगकर्मी आदि शामिल हे। छत्तीसगढ़ के लगभग हर बड़े साहित्यकार और लोक कलाकार के सम्मान सुशील यदु जी मन संस्था के माध्यम ले करिन।

                  महिला साहित्यकार मन ला प्रतिनिधित्व देना यदु जी के खासियत रहिस ।उँकर प्रांतीय साहित्य समिति के वार्षिक आयोजन के लोकप्रियता के अंदाजा आप इही बात ले लगा सकथव कि साहित्यकार मन ला साल भर ये आयोजन के इंतजार रहय। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण खातिर  स्वर्गीय हरि ठाकुर संग जुड़के आंदोलन ल गति दे के काम यदुजी करिन। छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद छत्तीसगढ़ी भाषा ल राजभाषा बनाय बर अउ पाठ्यक्रम म शामिल करे खातिर कई बार प्रांतीय सम्मेलन के माध्यम ले आवाज ल सरकार तक पहुंचाइन। राजभाषा बने के बाद घलो उमन चुप बइठ के नइ रहिन अउ छत्तीसगढ़ी ला राजकाज के भाखा बनाय बर, छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची में शामिल करे बर आजीवन लड़त रहिन। 

                  छत्तीसगढ़ी म यदु जी कालजई गीत घलो लिखे हवय जेमा कुछ के ऑडियो-वीडियो भी बने हे अउ फिल्म मा भी आ चुके हे। उँकर लिखे गीत अउ हास्य व्यंग्य के कविता के छाप आज भी जनमानस में देखे जा सकत हे । रायपुर के दूधाधारी मठ उँकर कई बड़े आयोजन के साक्षी हवय। कवि सम्मेलन के मंच म- "घोलघोला बिना मंगलू नइ नाचय, अल्ला-अल्ला हरे-हरे, होतेंव कहूँ कुकुर, नाम बड़े दर्शन छोटे, कौरव पांडव के परीक्षा जइसन हास्य व्यंग्य कविता ले उन खूब वाह-वाही लूटिन । 

                    सन 1993 ले 2002 तक दैनिक नवभारत म छत्तीसगढ़ी स्तंभ "लोकरंग" के लोकप्रिय लेखक रहिन । लोकरंग के माध्यम ले उमन छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार अउ लोक कलाकार मन ला आघू लाय के प्रशंसनीय कार्य करिन। 

                   सुशील यदु जी अपन संपादन म वरिष्ठ और अभावग्रस्त साहित्यकार मन के किताब के प्रकाशन करे के सराहनीय काम करिन । हेमनाथ यदु, बद्री विशाल परमानंद, रंगू प्रसाद नामदेव, लखन लाल गुप्त, उधो झकमार, हरि ठाकुर, केशव दुबे, रामप्रसाद कोसरिया जइसन ख्यातिनाम साहित्यकार मन के रचना ल पुस्तक के रूप म प्रकाशित करवाइन। अपन संपादन म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के द्वारा  कुल 15 पुस्तकों के प्रकाशन श्री यदु जी करिन जेमा- 1. हेमनाथ यदु के व्यक्तित्व अउ कृतित्व  2. बन फुलवा   3.पिंवरी लिखे तोर भाग  4. छत्तीसगढ़ के सुराजी वीर काव्य गाथा ,5. बगरे मोती  6. हपट परे तो हर-हर गंगे  7. सतनाम के बिरवा 8. छत्तीसगढ़ी बाल नाटक 9. लोकरंग भाग -1 ,  10. लोकरंग भाग -2  11. घोलघोला बिना मंगलू नहीं नाचय, 12. ररूहा सपनाय दार-भात  13. अमृत कलश  14. माटी के मया  15. हरियर आमा घन मँउरे, 16. सुरता राखे रा सँगवारी हवय।

                 छत्तीसगढ़ी के दिवंगत साहित्यकार मन के सुरता म उमन "सुरता" कड़ी के शुरुआत करिन जेमा - सुरता हेमनाथ यदु, सुरता भगवती सेन , सुरता डॉ नरेंद्र देव वर्मा , सुरता हरि ठाकुर, सुरता कोदूराम दलित , सुरता केदार यादव,सुरता बद्री विशाल परमानंद ,गणपत साव, मोतीलाल त्रिपाठी मन ल सोरियाय के अनुकरणीय काम करिन। प्रांतीय साहित्य समिति के बैनर म बड़े-बड़े छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलनों के आयोजन घलो करिन। उँकर स्वयं के पांच कृति प्रकाशित होय हवय । वर्ष 2014 म प्रकाशित उँकर कृति हरियर आमा घन मउँरे  (सन 1982 ले 2012 तक उँकर द्वारा लिखे गीत अउ व्यंग्य कविता कुल 51 रचना के संग्रह) प्रकाशित होइस जेन खूब लोकप्रिय होइस।

                कार्यक्रम आयोजन अउ संयोजन करे के गजब के क्षमता यदु जी म देखे बर मिलिस। उँकर संग मोर लगभग 18 बछर के साथ रहिस उन खुले दिल के व्यक्ति रहिन । बातचीत के दौरान  कभू कभू उमन कहि दय कह -*अब आघू के काम तुम युवा मन ला ही करना हवय अपन अपन कमान ल संभाल लव*  तब हमन कहन कि  आपके रहत ले का चिंता है भैया ? फेर हमन उनका इशारा नइ समझ पायेन । मैं कभू नइ सोंचे रहेंव कि अतका जल्दी हम सब ल छोड़ के उँमन चल देही। उँकर अगुवाई म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के अंतिम सम्मेलन 14 और 15 जनवरी 2017 के तिल्दा म होय रहिस। कई साहित्यकार मन आज भी इही बात ल बार-बार कहिथे कि उनला नइ मालूम रहिस कि ये सम्मेलन हा उँकर जीवन के आखिरी प्रांतीय सम्मेलन होही ओकर बाद यदु जी से कभू मुलाकात नइ हो पाही।  

                   यदुजी के पूरा जीवन संघर्षमय रहिस । अंतिम समय म कुछ दिन आईसीयू म रहिन, उँहा ले छुट्टी होके घर आ गे रहिन फेर नियति के लिखे ल कोन टार सकथे। 23-09-2017 के रात 9:30 बजे मोला खबर मिलिस कि यदु जी नइ रहिन । कुछ देर तो मोर हाथ-पांव सुन्न होगे। अइसन व्यक्तित्व के सुरता आज भी रहि रहि के आथे अउ आँखी ले आँसू  बरसे लगथे। 

                  सुशील यदु के नाम लोक साहित्य, लोक कला अउ लोक संस्कृति के पर्याय बनगे रहिस । उँकर जाय ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक अध्याय समाप्त होगे । भाषा के उत्थान बर जूझने वाला, लड़ने वाला अउ दिन रात एक करइया व्यक्तित्व नइ रहिन। छत्तीसगढ़ी ल स्थापित करे के दौर म उँकर चले जाना छत्तीसगढ़ी साहित्य  बर अपूर्णीय क्षति हे जेकर भरपाई नहीं हो सकय।

                 

               *अजय अमृतांशु *

                     भाटापारा

गुंथौ हो मालिन माई बर फूल-गजरा...


 

गुंथौ हो मालिन माई बर फूल-गजरा...

    चम्मास के गहिर बरसा के थोर सुरताए के पाछू जब हरियर धनहा म नवा-नेवरनीन कस ठाढ़े धान के गरभ ले नान-नान सोनहा फूली कस अन्नपुरना के लरी किसान के उमंग संग झूमे लागथे, तब जगत जननी के परब नवरात के रूप म घर-घर, पारा-पारा, बस्ती-बस्ती जगमग जोत संग जगमगाए लागथे।


    नवरात माने शक्ति के उपासना पर्व। शक्ति जे भक्ति ले मिलथे। छत्तीसगढ़ आदि काल ले भक्ति के माध्यम ले शक्ति के उपासना करत चले आवत हे। काबर के ये भुइयां के संस्कृति ह बूढ़ादेव के रूप म शिव अउ शिव-परिवार के संस्कृति आय जेमा माता (शक्ति) के महत्वपूर्ण स्थान हे। वइसे तो नवरात मनाए के संबंध म अबड़ अकन कथा आने-आने ग्रंथ के माध्यम ले प्रचलित हे। फेर इहां के जेन लोक मान्यता हे, वोकर मुताबिक एला भगवान भोलेनाथ के पत्नी सती अउ पारबती के जन्मोत्सव के रूप म मनाए जाथे।


     दुनिया म जतका भी देवी-देवता हें उंकर जयंती के पर्व ल साल भर म एके पइत मनाए जाथे, फेर नवरात्र एकमात्र अइसन पर्व आय जेला बछर भर म दू पइत मनाए जाथे। काबर ते माता (शक्ति) के अवतरण दू अलग-अलग पइत दू अलग-अलग नांव अउ रूप ले होए हे। पहिली पइत उन सती के रूप में दक्षराज के घर आए रिहीन हें। फेर अपन पिता दक्षराज के द्वारा आयोजित महायज्ञ म भोलेनाथ ल नइ बलवा के वोकर अपमान करे गीस त सती ह उही यज्ञ के कुंड म कूद के आत्मदाह कर लिए रिहीसे।


    ए घटना के बाद भोलेनाथ वैराग्य के अवस्था म आके एकांतवास के जीवन जीए बर लगगे रिहीसे। फेर बाद म राक्षस तारकासुर के उत्पात ले मुक्ति खातिर देवता मन वोकर संहार खातिर शिवपुत्र के जरूरत महसूस करीन। तब शिवजी ल माता पारवती, जेन हिमालय राज के घर जनम ले डारे रिहीन हे तेकर संग बिहाव करे के अरजी करीन। पारवती ह माता सती जेन शिवजी के पहिली पत्नी रिहीसे वोकरे पुनरजनम (दुसरइया जनम) आय। एकरे सेती हमर इहाँ माता (शक्ति) के साल म दू पइत जन्मोत्सव के पर्व ल नवरात के रूप म मनाए जाथे। संस्कृति के जानकार मनके कहना हे के सती के जनम ह चइत महीना के अंजोरी पाख के नवमी तिथि म होए रिहिसे अउ पारवती के जनम ह कुंवार महीना के अंजोरी पाख के नवमी तिथि म।


    हमर छत्तीसगढ़ म नवरात म जंवारा बोए के रिवाज हे। लोगन अपन-अपन मनोकामना खातिर बदे बदना के सेती जंवांरा बोथें, जेमा पूरा परिवार ल बर-बिहाव सरीख नेवता देथें। जंवारा बोवइ ह चइत महीना के नवरात म जादा होथे। कुंवार म शक्ति के उपासना के रूप म आजकल दुर्गा प्रतिमा स्थापित करे के चलन ह अभी बने बाढ़त हवय। इहू बखत माता दुर्गा के फुलवारी के रूप म जोत-जंवारा बोये जाथे। अइसने इहाँ जतका भी सिद्ध शक्ति पीठ हें उहू मनमा जोत-जंवारा जगाए जाथे।


    नवरात के एकम ले लेके नवमी तक पूरा वातावरण म शक्ति उपासना के धूम रहिथे। हर देवी मंदिर, दुर्गा प्रतिमा स्थल अउ जंवारा बोए घर म जस गीत गूंजत रहिथे। जब सेउक मन गाथें-


माई बर फूल गजरा,

गुंथौं हो मालिन माई बर फूल गजरा।

चंपा फूल के गजरा, चमेली फूल के हार।

मोंगरा फूल के माथ मटुकिया, सोला ओ सिंगार।


त पूरा वातावरण म शक्ति के संचार हो जाथे। कतकों झन ल देवी घलोक चढ़ जाथे। फेर सोंटा, बोड़बोरा अउ बाना-सांग के दौर चलथे। जेकर जइसन शक्ति वोकर वइसन भक्ति। सरलग नौ दिन ले सेवा करे बाद दसमीं तिथि म माता जी के प्रतिमा के संगे-संग जंवारा के घलोक विसरजन कर दिए जाथे।


    हमर छत्तीसगढ़ म ए दिन मितानी बदे के घलोक परंपरा हे। कतकों संगी-जउंरिहा मन जेकर मन के  मया बाढ़ जथे, वो मन ए दिन जंवारा (मितान) घलोक बद लेथें।


-सुशील भोले 

संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)

मो/व्हा. 9826992811

Saturday 17 September 2022

पुरखा पुरोधा साहित्यकार डॉ . निरुपमा शर्मा








पुरखा पुरोधा साहित्यकार 

       डॉ . निरुपमा शर्मा 

              छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति ल अपन साहित्य मं सबले ऊंच आसन देवइया , प्रथम मंचीय कवयित्री डॉ निरुपमा शर्मा  के पहिचान बनिस ऊंकर कविता अउ गीत मन ,त सबले पहिली प्रकाशित कविता संग्रह " पतरेंगी " पाठक के हाथ लगिस । कोनो महिला के कलम से पुरुष सुंदरता के वर्णन ओहू तइहा दिन मं भारी अचंभो के बात आय फेर उन करिन । कालिदास , सेनापति , पदमाकर के परम्परा ल छत्तीसगढ़ी मं आघू बढ़ाइस " ऋतु वर्णन " कविता संग्रह हर  ..। दूनों काव्यसंग्रह के अधिकांश रचना लय , तुक , गेयता के गुण से भरे हुए हे । " हमर चिन्हारी " छत्तीसगढ़ के संस्कृति के शंखनाद आय । 

    गीत विधा हर जल्दी अउ जादा मनसे के मन मं जघा बना लेथे एकरो फायदा निरुपमा शर्मा ल मिलिस त सोना मं सोहागा बनिस कविसम्मेलन के मंचीय प्रस्तुति मन । आकाशवाणी घलाय उंकर लोकप्रियता ल बढ़ावा दिहिस । 

   छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति , लोक गीत , लोकनृत्य के संगे संग छत्तीसगढ़ के नामकरण , इतिहास , पुरातात्विक महत्व असन विषय वस्तु मन उंकर कलम ल गद्य विधा डहर ले चलिन त सन् 2009 मं " इंद्र धनुषी छत्तीसगढ़ " किताब लिखिन । ये किताब मं लोक के वैश्विक प्रतिमान मन के मूल्यांकन घलाय मिलथे । हमर खान पान , रहन सहन , तीज तिहार के वर्णन संग छत्तीसगढ़िया मनसे के उज्जर मन के परिचय घलाय तो मिलथे । 

  " चिंतन के बिंदु " अउ" दत्तात्रेय के चौबीस गुरु " के बाद " मूल्यजनक पुराख्यान " लइका सियान सबो झन बर सहज जीवन दर्शन के सारतत्व समझाने वाला किताब आय । शोध ग्रन्थ के " ददरिया की सांस्कृतिक पृष्टभूमि "  पाठक मन बर अनमोल रचना आय काबर के जेन ददरिया ल तइहा दिन मं खेत खार छोड़ के गली , मोहल्ला मं गाए के मनाही रहिस अतके नहीं ददरिया ल प्रेम प्रसंग के सवाल जवाब शैली के रचना माने जावत रहिस ओमा समसामयिक प्रसंग के अवधारित अंश मन भी जघा मिलिस " झंडा तिरंगा लगे हे दिल्ली , रजधानी ये हमर सहर दिल्ली । " 

 ददरिया मं लोकमानस के सहज अभिव्यक्ति , प्रकृति के पंचरंगा सिंगार , लयात्मकता , मुक्तक काव्य शैली मिलथे....डॉ. निरुपमा शर्मा के अनमोल देन ये किताब मं मिलथे । 

     सन् 2018 मं दुर्ग मं " डॉ . निरुपमा शर्मा समग्र " समारोह के एक दिवसीय आयोजन होए रहिस , संयोजक  सरला शर्मा रहिस । एकर दूसर विशेषता बिहनिया दस बजे ले सांझ के 5 बजे तक चलिस ए कार्यक्रम सिर्फ गद्य / वक्तव्य प्रधान रहिस । 

अभी उनला गए साल भर नइ पुरे हे ...अभी तो मन हर समंगल तियारे नइ होए हे के अब ऊंकर संग ए जनम मं फेर कभू भेंट नइ हो सकय तभो माने बर तो परबेच करही । इही देखव न पितर पाख मं आज मैं डॉ . निरुपमा शर्मा ल आखर के अरघ देवत हंव ...। 

    सरला शर्मा


साहित्यिक तर्पण ******* " जे बतावै सार जिनगी के उही , आज जिनगी ले अघा के रेंगदिस "

 




साहित्यिक तर्पण 

******* 

      " जे बतावै सार जिनगी के उही ,

       आज जिनगी ले अघा के रेंगदिस " 

              ओहर सुरता मं हमर रहिही सदा , 

              जेहर ग़ज़ल अउ गीत गा के रेंगदिस । " 

   जनम छतीसगढ़ मं ते पाय के छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी उंकर सांस मं महकत रहय , ओइसे तो उन गुजराती भाषी रहिन फेर हिंदी के आदर , सनमान मं रत्ती भर कमी नइ रहिस अतके नहीं उर्दू अदब के जब्बर जानकार रहिन । चित्रकला अउ संगीत उंकर कलम के संगे संग चलयं । हां ..आज हमन पितर पाख मं आखर के अरघ देवत हन मुकुंद कौशल ल । 

      सबले पहिली उन लिखिन " लालटेन जलती रहे " ठीके लिखे रहिन तभे तो ए धरा धाम छोड़त तक लालटेन जलत रहिस उंकर जाए के बाद आखिरी किताब वैभव प्रकाशन रायपुर ले छप के आइस " ज़मी कपड़े बदलना चाहती है । " किताब मोर हाथ मं आइस त गुनेवं कपड़ा नहीं देंह बदले के बात कहे रहिन मुकुंद कौशल उही .....गीता के बात ..

  " वासांसि जीर्णानि यथा विहाय , 

   नवानि गृह्णाति नरोपराणि , 

  तथा  शरीराणि विहाय नन्या 

 नवानि गृह्णाति नवानि देही । " 

        बहुत दिन ले उंकर शरीर दुख देवत रहिस तभो चलत फिरत , लिखत पढ़त रहिन बल्कि पहिली ले बने हो गए रहिन ....भारी खिलंदड़ा सुभाव रहिस , कतको बीमार रहयं भेंट कर जवइया मन संग हांस के बोलतिन अतके नहीं साहित्य चर्चा करत दुख तकलीफ ल खुदे भुला जावंय , अवइया घलाय ल भुलवार देवयं ..। 

    छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल ल परवान चढ़ाए के काम जनम भर करिन ...ग़ज़ल मं छोटे बहर होवय चाहे बड़े देश राज , समाज , संस्कृति , राजनीति , सामयिक घटना प्रसंग मन के चर्चा जरूर करयं ...जबकि ग़ज़ल हर मूल रूप से प्रेम परक रचना आय । 

बानगी देखव न  " मोर ग़ज़ल के उड़त परेवा " , " बिन पनही के पांव " ....

" रहिजा पहिली जम्मो चूल्हा मं आगी सुलगावन दे , 

  मनखे मनखे के चेहरा मां हांसी ला  बगरावन दे । " 

      सबके भूख पियास , हांसी खुशी के सरेखा करइया कवि मुकुंद कौशल ...। फरेबी मन के चिन्हारी करवाथे त साहित्यकार के जिम्मेदारी के सुरता भी तो करवावत चलथें , अइसने मनसे अपन कलम ल हथियार बना के समाज के विसंगति मन से लड़े बर आघू आथे त गोहार पार के लोगन ल जगावत चलथे ...

  " संगी संगवारी हो हमला ,जुरमिल आघू बढ़ना हे , 

   कहिथे ते बात सियनहा के , पतियाना घलव जरूरी है । " 

         जीवन दर्शन छोटे बहर मं जगर मगर करत दिखथे .....ग़ज़लकार के कलम के रवानी देखे लाइक हे ..

   " कर पारे गलती तेकर बर 

   थोरिक तो पछता ले बाबू । " 

          आगू आगू जीवन हे 

           पाछू पाछू काल हवै । " 

" जे दिन आही , तोर बुलउवा , 

  माढ़े रहिही , जंतर मंतर .। " 

          उन तो छांव मं जुड़ावत जिये के सपना न देखिन न हमला  देखाइन ...जांगर टोर कमाये के उदिम सीखोइन ..तभे तो धान के कटोरा भरही किताब लिखे हें " घाम हमर संगवारी ।" गीत घलाय तो सुनावत हे जी ....

 " धर ले रे कुदारी गा किसान , 

  डिपरा ल खन के खचंवा पाट देबो ना ।। " 

        मुकुंद कौशल के रचना संसार मं किसिम किसिम के फूल महंमहावत हे उन लिखे हें " हमारी भाषा हमारी अस्मिता है , पहचान है , स्वाभिमान है । भारत जैसे बहु भाषी देश में हम किसी अंचल विशेष की भाषा , साहित्य , संस्कृति की चर्चा करके समग्र भारत का मूल्यांकन नहीं कर सकते । भाषाई औदार्य जनचेतना के विकास का प्रथम सोपान है । " 

         अपन अंतिम  ग़ज़ल संग्रह के विस्तृत भूमिका मं  अपन जन्म से लेकर जेन साहित्यिक , सांस्कृतिक संस्था मन से जुड़े रहिन , जेन मन से जौन भी सीखिन सबो के उल्लेख करे हें ...। भूमिका पढ़ के समझेंव के हिंदी ,उर्दू , छत्तीसगढ़ी , गुजराती के समकालीन लिखइया मन के नांव सहित कृतज्ञता जताए हें ...आज गुनत हंव उनला अपन जाए के दिन लकठिया गए के आभास हो गए रहिस का ? आप मन ए किताब के भूमिका ल पढ़िहव तभे पतियाहव । उर्दू सबो झन नइ पढ़ पांवय तेकरे बर उन ए किताब ल उन देवनागरी लिपि  मं लिखे हें । उंकरे शब्द मं उनला सुरता करत हंव ....

   " हिरदे के चौंरा मां सुरता के दीया ला बारत हे , 

     मन के गहिरा , बांह पसारे , कब ले दोहा पारत हे । " 

         मुकुंद कौशल ..बड़े भाई कहत रहेंव ..त मुंह भर असीस पावत रहेंव । जानत , चिन्हत तो पचास साल पहिली ले रहेंव काबर के उन जांजगीर के कवि सम्मेलन मं जावत रहिन कभू विमल पाठक जी त कभू आंनदी सहाय शुक्ल त कभू मुस्तफ़ा हुसैन संग ..स्टेट बैंक परिसर के गणेश चतुर्थी कवि सम्मेलन के सुरता कभू भुलाए नइ सकवं । भिलाई के घर मं भैया संग भेंट करे आइन त कहे रहिन " कलम उठाओ सरला ! कुछ लिखना शुरु करो , शील जी की उत्तराधिकारी हो तुम । " तब तो नइ लिखे पाएवं फेर सन् 2003 / 04 मं मोर पहिली किताब " वनमाला " के विमोचन मं आइन त बहुत असीसिन उनला सदा दिन मोर से शिकायत रहिस के मैं कविता लिखे बर छोड़ काबर देहेंव उंकर शिकायत ल दुरिहाये बर ही उंकर एक ठन ग़ज़ल संग्रह के भूमिका लिखे के दुस्साहस करे हंव ...जानत हंव उंकर असन वरिष्ठ ग़ज़लगो के बारे मं लिखना सुरुज ल दीया देखाना आय । 

 कमी बेशी हर आदमी मं होथे दूसर बात सबो लिखइया ,साहित्य के सबो विधा मं नइ लिखे सकय । 

  का लिखवं , कतका लिखवं फेर आज तो पानी पितर के दिन ए ...त उन तो ...

    "  जे मया करही उही पाही मया ,

       बात अतका भर बता के रेंगदिस । " 

सरला शर्मा 

   दुर्ग

साहित्यिक तर्पण ****** पंडित दानेश्वर शर्मा

 






साहित्यिक तर्पण 

 ****** 

      पंडित दानेश्वर शर्मा 

   "आएगी रात मुंह में सियाही मले हुए , 

   रख देगा दिन भी हाथ में कागज़ फटा हुआ " 

          फेर वो फ़टे हुए कागज़ मं सन् 1955 ले कविता लिखावत गिस ...लिखत चलिन संगे संग कवि सम्मेलन में मं सस्वर काव्य पाठ घलाय तो करत रहिन त ओ समय मं छत्तीसगढ़ के पहिली कवि रहिन दानेश्वर शर्मा जिंकर ग्रामोफोन रिकार्ड्स अउ कैसेट्स सबले बढ़िया कम्पनी जइसे हिज मास्टर्स वॉयस ( कोलकाता ) , म्यूजिक इंडिया पॉलीडोर ( मुंबई ) , सरगम रिकॉर्ड्स ( बनारस ) अउ वीनस रिकार्ड्स मुंबई  मन बनाये रहिन ...। 

लगभग चालीस साल पहिली मंजुला दास गुप्ता गाए रहिन ....

" मइके ल देखे होगे साल गा , भइया तुमने निच्चट बिसार देव , 

 बहिनी के नइये खियाल गा , कनकी कस कइसे निमार देव । " 

      बेटी कतको धन दोगानी , खेत खार वाला घर बिहाव होके जावय फेर बछर पूरे ले तीजा आथे त मइके के सुरता मं सुसक डारथे । नारी हृदय के दशा के जतका भाव भरे वर्णन करे हें दानेश्वर शर्मा ओतके करुण स्वर मं गाए हें मंजुला दास गुप्ता ...जबकि उन बंगला भाषी महिला रहिन । 

     सन् 1966 मं लिखे "बेटी के बिदा " आजो पढ़इया , सुनइया के आंखी मं आंसू भर देथे । उन सफ़ल मंचीय कवि रहिन , उंकर हांसी मिलइया , जुलइया के मन के दुख पीरा ल दुरिहाये मं भी सफ़ल रहिस । छत्तीसगढ़ी कविता के दूसर उन्मेष काल के  लोकप्रिय कवि उनला ही कहे जा सकत हे । ए बात मं दू मत नइये कि उंकर जादा छत्तीसगढ़ी रचना नइ मिलय ...तभो जतका लिखे , प्रस्तुत करे हें ओतके मं हम उनला सेरा कवि कहि सकत हन । उन मूलतः गीतकार आंय जेन गीत मन मं जीवन के उल्लास अउ विषाद दूनों के व्यंजना एकबरोबर मिलथे ।देखव न ....

    " भादों मं जइसे घटा बाढ़े रहिथे , 

    अगहन मं जइसे खेती बाढ़े  रहिथे 

    पुन्नी मं चंदा जइसे बाढ़े  रहिथे 

    ओइसे बाढ़े तोला रोजे देखेंव । " 

       बेटी के बढ़त रुप अउ उम्मर महतारी के मन मं सुख दुख दूनों भाव जगाथे , बाढ़त नोनी के रुप महतारी के मन मं सुख संग गरब गुमान बढ़ोथे त बेटी अब ससुरार चल देही ए बात गुन के दुख घलाय तो उही मन मं हिलोरा मारे लगथे । महतारी के ओंठ मुसकिया देथे त आंखी धुंधराये लगथे आंसू के चलते इही हर ए उल्लास अउ विषाद के संघरना साहित्य के अनुसार विरोधाभासी भाव के संचरण अउ लेखन । 

      कवि मनसे के मनोभाव के अद्भुत चितेरा होथे तभे तो जीवन दर्शन ओकर आत्मा के , रचना के मूल विषय हो जाथे । छत्तीसगढ़ के परब तिहार , मेला मंड़ई  इहां के रहइया , बसइया मन के उत्सवधर्मिता के रंग बिरंगी रुप तो आय । कवि एहू मं जीवनदर्शन के झलक देखथे , असार संसार के चार दिनिया राग रंग , हांसी खुशी अपन जघा ठीक हे फेर आखरी सच तो दुनिया के मेला के उजरत बेरा के बिछड़े के दुख हर आय । ए जिनगी पानी मं माढ़े  माटी के ढेला तो आय जेला एक दिन घुरना च हे , शरीर के पिंजरा मं धंधाये आत्मा कब उड़िया जाही कोनो जाने नइ पावयं । कवि दानेश्वर शर्मा कहिथें जनम अकारथ झन करव जाए के पहिली दान धरम , तिरिथ बरत कर लेव जिनगी नइये कोनो ठिकाना ....

  " कै दिन के जिनगी अउ कै दिन के मेला ,

  कै दिन खेंढ़ा भाजी कै दिन के करेला ।

कै दिन खटाही  पानी बूड़े ढेला , 

पंछी उड़ाही पिंजरा होही अकेल्ला । 

तिरिथ बरत देवता धामी मनाबो 

चल मोर जंवारा मंड़ई देखे जाबो । " 

       दानेश्वर शर्मा लोककला , लोकसंस्कृति के संरक्षण बर जनम भर सराहे लाइक उदिम करत चलिन तभे तो किताब लिखे हें " छत्तीसगढ़ के लोकगीत ( विवेचनात्मक ) सन् 1962 मं । एकरे संग सुरता आवत हे दैनिक भास्कर अउ नवभारत अखबार मं तीन साल सरलग " लोकदर्शन " स्तंभ लिखिन जेला गद्यकार मन ललित निबन्ध कहिथें । लोक जीवन अउ संस्कृति के सुग्घर दर्शन " तपत कुरु भाई तपत कुरु" सन् 2006  कविता संग्रह मं मिलथे । छत्तीसगढ़ के लोक गीत , लोक संस्कृति प्रेम उंकर संगे संग चलत रहिस तभे तो भिलाई इस्पात संयंत्र के अधिकारी बनके " लोक कला महोत्सव " आयोजन के सूत्रधार , संस्थापक बनिन अउ विश्व प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजन बाई ल भिलाई इस्पात संयंत्र से जोड़े सकिन । 

   छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष बनिन त भिलाई के स्वरूपानन्द महाविद्यालय हुडको के अंगना मं दू दिनी राजभाषा महोत्सव के कर्णधार बनिन । सन् 2006 मं छत्तीसगढ़ के सबले बड़े साहित्य सम्मान " सुंदर लाल शर्मा सम्मान " पाइन । 

     सहज , सरल मनसे संस्कृत , हिंदी , छत्तीसगढ़ी , अंग्रेजी के विद्वान अध्येता अउ श्रीमद्भागवत के बढ़िया प्रवचनकार रहिन ...।  डॉ. पालेश्वर शर्मा संग केयूर भूषण अउ दानेश्वर शर्मा ल शील जी के परछी के बाजबट मं बइठे साहित्य चर्चा करत देखे जुग पहा गे । अब तो तीनों झन ऊपर जा के भाषा के विकास बर गद्य जादा जरूरी हे के पद्य तेकर बर अपन अपन विचार ल जोरहा गला करके शील जी ल सुनावत होहीं त उनमन के सेसू भैया के पातर पातर ओंठ मं दुइज के चंदा कस हांसी झलक जावत होही । छत्तीसगढ़ के इन चारों पुरोधा साहित्यकार मन ल प्रणाम करके आखर के अरघ देवत हौं । 

   एक बात अउ गुनत हंव " हर मौसम में छंद लिखूंगा " कहइया पंडित जी ...हां हमन तो तइहा दिन ले उनला पंडित जी कहत आवत हन जिंला सबो झन पंडित दानेश्वर शर्मा कहिथें उन अभियो कुछु काहीं लिखत होहीं का ? कहे के मन होवत हे मोर लेख मं  कोनो किसिम के कमी बेशी रहि गए होही त बताहव पंडित जी ..। 

   शतशः नमन 

       सरला शर्मा 

        दुर्ग

पुरुषोत्तम अनासक्त जनम ...20 फरवरी 1935 प्रयाण ...08 फरवरी 1996

 पुरुषोत्तम अनासक्त 

   जनम ...20 फरवरी 1935 

    प्रयाण  ...08 फरवरी 1996 

            ओ समय के मध्यप्रदेश अउ आज के छत्तीसगढ़ मं नवा कविता ल जन जन के बीच स्थापित करे बर जीव परान होम देवइया साहित्यकार रहिन पुरुषोत्तम अनासक्त ...। अनासक्त जी के कविता मं मनसे के जीवन के रोजमर्रा के दुख सांसत के संगे संग अद्भुत रूप से जीवन दर्शन समाये दिखथे । कभू कभू तो लगथे के मनसे के मन के विवेचना हर कविता के आसन मं जोमिया के बइठे हे , अइसन कविता मन ल पढ़ के साधारण पाठक काव्य शिल्प , अलंकार , लय , तुक ल तो भुलाई जाथे ओइसे भी उंकर कविता  छंदविहीन हे । तभो माने ल तो परही के गांव गंवई के छोटकन बात घलाय ल बड़ महत्व मील हे ।

कविता तो लिखे च हें समय सुजोग मिलिस त गद्य भी लिखे हें तभो उन मूलतः कवि आयं । " सतह से ऊपर आदमी " कहानी संकलन आंचलिकता के कारण ही जादा प्रसिद्ध हे ...अईसे लगथे जाना पूरा छत्तीसगढ़ इन कहानी मन के बीच बगरे हे । 

   रहिस बात कविता के त नवा कविता ए त का होगे प्रकृति चित्रण तो चिटको नइ पिछुवाए हे ....

      " सूजी गोभत हे मंझनिया के घाम 

         डबरा मं तौंरत हे सुरुज 

         मेंढ़  मड़ियाए हे , 

      धरसा परे हे उतान 

   गोभत हे मंझनिया के घाम ...। " 

         बिम्ब विधान के बलिहारी त शब्द चयन अद्भुत ..." गोभत " हे ...वाह ..छेदत काबर नइये जी ? काबर के छेदे मं लहू निकलथे गोभे मं नहीं ...। 

     प्रकृति के एकदम अलग रूप ल एमेरन ...देखे , सहराये लाइक हे .....कवि अनासक्त ए त का होगे उंकर मन तो रंग गए हे ....

  " हवा मं कोन जनी 

  का बात हे ?

महमहावत हे दिन 

अउ गमकत रात हे ।

चंदैनी के मांग मं फागुन बसे 

तब चेहरा मं पाथौं मैं 

  परसा फूल । " 

            गांव के दशा दिशा ल सुधारे बर , ओकर वैभव के सुरता करत उजरे के पीरा ल कवि भुलाए नइ सकय त शहरी चाल चलन के दुष्प्रभाव ल देख के डेरावत भी रहिथे , अवइया दिन मं गांव के आरुग मया पिरीत बिला झन जाय ये डर कवि के मन मं सेंधिया गए हे तो डर कलम ले कागज मं उतर आइस .....

" गांव ल शहर के 

नज़र लगे हे , 

शहर गज़ब टोनहा हे 

शहर मोर गांव ला पांगे हे । 

 संगी मोर गांव मं शहर आ गे हे । 

 .........

 गांव के तन मां 

जहर चढ़े हे 

जब ले सांप के 

मोर गांव मं डेरा परे हे । "  

     अपन गांव गंवई के भुईंया बर तड़प , हमरे बीच पलत , बढ़त , जोंक कस लहू पियत परदेशी मन कवि ल चैन लेहे देबे नइ करय त निभुर नींद तो सपना हो गए हे । छत्तीसगढ़ी मं लोकचेतना जगावत अइसन कविता ओ समय मं लिखइया कमे झन रहिन । ये जरुर कहे जा सकत हे कि अनासक्त जी के कविता हिंदी पट्टी ले जादा प्रभावित हे तभी मने बर तो परबे करही की उंकर गद्य होय या पद्य छत्तीसगढ़ के माटी के सोंध सोंध महक , धान के बाली के गमक , मृदंग के थाप के धमक , बिरहा ददरिया के सुर पाठक के मन मोह लेथे । 

   आज पुरुषोत्तम अनासक्त ल अंजुरी भर आखर चढ़ा देवत हौं ।


सरला शर्मा

Saturday 10 September 2022

10 सितंबर पुण्यतिथि म सुरता// मंच के मयारु कवि रहिन बिसंभर यादव 'मरहा'


 

10 सितंबर पुण्यतिथि म सुरता//

मंच के मयारु कवि रहिन बिसंभर यादव 'मरहा'

    छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत म कुछ अइसनों साहित्यकार होए हें, जिंकर चिन्हारी आरुग मंचीय रचनाकार के रूप म जादा होए हे. बिसंभर यादव 'मरहा' जी इही कड़ी के कवि रिहिन हें, जेकर बिना इहाँ के कवि सम्मेलन, रामायण अउ आने सांस्कृतिक मंच मन सुन्ना असन लागय.

    6 अप्रैल 1931 के दुरुग तीर के गाँव बघेरा म कुशल यादव अउ महतारी चैती बाई के कोरा म अवतरे बिसंभर जी संग मोर चिन्हारी सन् 1987 के दिसंबर महीना म तब होए रिहिसे, जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन खातिर नेवता दे बर मैं चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी घर बघेरा गे रेहेंव. जतका बेरा मैं दाऊ जी के घर पहुंचेंव वतका बेरा मरहा जी घलो उहें बइठे रिहिन हें. तब दाऊ जी ह उंकर संग मोर परिचय करवाए रिहिन हें अउ मरहा जी ल घलो 'मयारु माटी' के विमोचन के नेवता दिए खातिर कहे रिहिन हें. तब मरहा जी मोला विमोचन के नेवता झोंकत अपन एक कविता 'अस्पताल के एक्सरा' ल 'मयारु माटी' म छापे खातिर दिए रिहिन हें. 

     फेर उंकर संग जादा गोठ-बात तब होवय, जब दाऊ जी मोला कभू-कभार बघेरा म ही रात रहे खातिर कहि देवत रिहिन हें. तब मोर बेरा के पहवई ह मरहा जी संग ही जादा होवय. अइसने बेरा म मरहा जी ल जादा जाने अउ समझे के अवसर मिलय. उंकर संग दाऊ जी ऊपर बने विडियो 'यात्रा जारी है' ल घलो संगे म देखे रेहेन.

    मरहा जी मंच के जतका मयारु अउ लोकप्रिय कवि रिहिन हें, वतकेच मयारु मनखे घलो रिहिन हें. उंकर संग कतकों मंच म संग म कविता पाठ करे के अवसर मिले रिहिसे. मरहा जी एक अइसन रचनाकार रिहिन हें, जेला अपन जम्मो रचना कंठस्थ राहय. मैं वोला कभू कागज-पातर धर के रचनापाठ करत नइ देखेंव. हाँ, डायरी के नांव म एक नान्हे असन पाकेट डायरी जरूर धरे राहयं, जेमा जिहां-जिहां कार्यक्रम म संघरंय उंकर दिन, बेरा अउ आयोजक के नांव लिख के वोमा दस्तखत करवा लेवत रिहिन हें. एक-दू पइत तो महूं उंकर डायरी म लिख के दस्तखत करे रेहेंव.

    अपन 'मरहा' उपनाम धरे के बारे म उन बतावंय- एक पइत एक बड़का कार्यक्रम के माईपहुना दाऊ रामचंद्र देशमुख जी रहिन, अध्यक्षता संत कवि पवन दीवान जी करत रिहिन हें अउ संचालन श्यामलाल चतुर्वेदी जी. इही म बिसंभर जी के देंह-पांव ल देख के दाऊ रामचंद्र देशमुख जी पवन दीवान जी ल मजा लेवत असन कहिन के एकर 'मरहा' उपनाम कइसे रइही? दीवान जी के कट्ठल के हंसई तो दुनिया भर म जाने जाय, उन ए 'मरहा' शब्द ल सुनिन त अपन चिरपरिचित शैली म ठहाका लगावत हुंकारू भर दिन. तब ले बिसंभर यादव जी अपन उपनाम 'मरहा' लिखे लागिन. ए बात ल मोला मरहा जी अउ दाऊ जी दूनों झन बताए रिहिन हें.

     मरहा जी ल काव्य शिरोमणि के सम्मान ले घलो सम्मानित करे गे रिहिसे, जब बिलासपुर म 'मरहा नाईट' के आयोजन डाॅ. गिरधर शर्मा जी के माध्यम ले होए रिहिसे.  बिलासपुर के प्रसिद्ध राघवेंद्र भवन म आयोजित 'मरहा नाईट' म खचाखच भीड़ राहय, जेकर दिल ल मरहा जी अपन लाजवाब प्रस्तुति के माध्यम ले जीत ले रिहिन हें. मरहा जी के सम्मान म तब उच्च न्यायालय बिलासपुर के न्यायाधीश रमेश गर्ग जी ह कहे रिहिन हें- 'पहिली मैं संत कबीर जी के बारे म अड़बड़ सुने रेहेंव पढ़े घलो रेहेंव, फेर आज ओला मैं ह मरहा जी के रूप म साक्षात सुने हौं. इही कार्यक्रम म मरहा जी ल 'काव्य शिरोमणि' के उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे. 

    मरहा जी के दू काव्य संग्रह 'हमर अमर तिरंगा' अउ 'माटी के लाल' डाॅ. गिरधर शर्मा अध्यक्ष- छत्तीसगढ़ साहित्यकार परिषद बिलासपुर के संपादन म छपे रिहिसे. 

    बिसंभर यादव जी अपन कविता लिखे के शुरू करे के बारे म बतावंय- जब उन 14-15 बछर के रहिन, तब गाँव वाले अउ दाऊ के बीच के मनमुटाव ह बघेरा गाँव के शांति अउ सद्भाव ल बिगाड़े ले धर ले रिहिसे. तब एक दिन बाड़ा म गाँव के दस मनखे अपन-अपन विचार ल कागज म लिख के लिफाफा म भरेन अउ दे देन. दसों लिफाफा ल जब खोधिया के दाऊ जी निकालिन त वोमा मोरे लिफाफा ह उंकर हाथ म आगे. लिफाफा ल हेर के जब वोमन कागज ल पढ़िन त वोमा लिखाय राहय-

   प्रजा पालन राजा करे,

   पुत्र पालन करे माँ-बाप.

   का दूसर के कहिनी म,

   लड़त हवव सब आप.

     वो कविता ल पढ़तेच दाऊ जी के आंखी ले आंसू बोहाए लगिस. तहाँ ले कोतवाल करा हांका परवा के गुड़ी म गाँव वाले मनके बइठका सकेलिस. तहाँ ले गुटबाजी अउ मनमुटाव के जम्मो किस्सा के बिदागरी होगे. ए घटना ले बिसंभर जी सोचिस- जब चार डांड़ के कविता म गाँव के अतेक बड़े समस्या के समाधान होगे, त फेर तो अउ कविता लिखहूं, तेमा देश के बड़े-बड़े समस्या के निपटारा हो सकय.

    मरहा जी कविता पाठ करे के संगे-संग मंच के सिद्धहस्त अभिनेता घलो रिहिन. ऐतिहासिक सांस्कृतिक प्रस्तुति 'चंदैनी गोंदा' म जीपरहा कवि के अभिनय उंकर अविस्मरणीय भूमिका हे. अइसने लोक नाट्य 'कारी' म घलो पटइल के अभिनय म  जनमानस ल अपन प्रशंसक बना लेवत रिहिन हें. अपन जीपरहा कवि वाले अभिनय ल तो उन कतकों रामायण अउ आने सांस्कृतिक मंच मन म घलो देखा देवत रिहिन हें.

    जनता के दुख-पीरा अउ नीति-नियाव के अलख जगावत ए जनकवि ह 10 सितंबर 2011 के रतिहा 9 बजे ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले लेइस. आज उंकर सुरता म उंकरेच ए चार डांड़ के सुरता आवत हे-

   मान मर्यादा नियाव ल छोड़ के,

   सब कपटिच मन सुख पावत हें.

   सत धरम म चल के सिधवा मन,

   जिनगी भर दुख पावत हें.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811