Monday 26 September 2022

साहित्यिक तर्पण छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय- कोदूराम दलित


 

साहित्यिक तर्पण


छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय-  कोदूराम दलित   

                                                            जब हमर देश हा अंग्रेज मन के गुलाम रिहिस ।वो समय हमर साहित्यकार मन हा लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के गजब उदिम करिन । हमर छत्तीसगढ़ मा हिन्दी साहित्यकार के संगे संग छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार मन घलो अंग्रेज सरकार के अत्याचार ला अपन कलम मा पिरो के समाज ला रद्दा देखाय के काम करिन ।छत्तीसगढ़ी के अइसने साहित्यकार मन मा स्व. लोचन प्रसाद पांडेय, पं. सुन्दर लाल शर्मा, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, स्व. कुंजबिबारी चौबे ,प्यारे लाल गुप्त, अउ स्व. कोदूराम दलित के नाम अब्बड़ सम्मान के साथ लेय जाथे ।येमा विप्र जी अउ दलित जी हा मंचीय कवि के रुप मा घलो गजब नाव कमाइन । छत्तीसगढ़ी मा सैकड़ो कुंडलिया लिखे के कारण दलित जी ल  छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कहे जाथे 


जन कवि कोदू राम दलित के जनम बालोद जिले अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा 5 मार्च 1910 मा एक साधारण किसान परिवार मा होय रिहिन ।पढ़ाई पूरा करे के बाद दलित जी हा प्राथमिक शाला दुर्ग मा गुरुजी बनिस। बचपन ले वोकर रुचि साहित्य डहर रिहिस हवय ।वोहा अपन परिचय ला सुघर ढंग ले अइसन देहे –


लइका पढ़ई के सुघर, करत हवंव मैं काम ।

कोदूराम दलित हवय मोर गंवइहा नाम ।।

मोर गंवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया ।

जनहित खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलियां ।।

शउक महूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के ।

करथव काम दुरुग मा मैं लइका पढ़ई के ।।



दलित जी सिरतोन मा हास्य व्यंग्य के जमगरहा कवि रिहिन हे । शोषण करइया मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।दिखावा अउ अत्याचार करइया मन ला वोहा नीचे लिखाय कविता के माध्यम ले कइस अब्बड़ ललकारथे वोला देखव –


ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ।

हरिजन ला छूवय नहीं, चिंगरी मछरी खाय ।।

खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव ।

खेखरी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव ।।

बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहों ।

नई ते जोगी बनके तन मा राख चुपरिहौं ।।

जे गुण्डा के मुँह मा चप्पल मारै फट ला ।

खोजो ददा बबा तुम जा के अइसन खटला ।।


ये कविता के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के स्वभिमान ला सुग्घर ढंग ले बताइन । संगे संग छत्तीसगढ़िया मन ला साव चेत करिस कि एकदम सिधवा बने ले घलो काम नइ चलय ।अत्याचार करइया मन बर डोमी सांप कस फुफकारे ला घलो पड़थे ।


दलित जी के कविता मा गांव डहर के रहन सहन अउ खान पान के गजब सुग्घर बखान देखे ला मिलथे –


भाजी टोरे बर खेतखार औ बियारा जाये ,

नान नान टूरा टूरी मन धर धर के ।

केनी, मुसकेनी, गंडरु, चरोटा, पथरिया,

मंछरिया भाजी लाय ओली ओली भर के । ।

मछरी मारे ला जायं ढीमर केंवटीन मन,

तरिया औ नदिया मा फांदा धर धर के ।

खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी, धरे ,

ढूंटी मा भरत जायं साफ कर कर के । 


दलित जी हा 28 सितंबर 1967 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के स्वर्गवासी होगे । 


दलित जी के सुपुत्र आदरणीय गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी हा अपन पिता जी के मार्ग ला सुग्घर ढंग ले अपना के साहित्य सेवा करत हवय । संगे संग” छंद के छंद “जइसे साहित्यिक आंदोलन के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन ला छंद सिखा के सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना लिखे बर प्रेरित करत हवय। येहा एक साहित्यकार पुत्र द्वारा अपन पिता जी ला सही श्रद्धांजलि हरय।



[ ●ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’,सुरगी,राजनांदगांव, 


मो.79746 66840. ]


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