Thursday 29 September 2022

छत्तीसगढ़ी म पढ़व - जोत जंवारा तोर देवाला म दाई जगमग जोत जले - दुर्गा प्रसाद पारकर


 

छत्तीसगढ़ी म पढ़व - जोत जंवारा

तोर देवाला म दाई जगमग जोत जले


- दुर्गा प्रसाद पारकर 


छत्तीसगढ़ म चैत्र नवरात्रि ल बड़ा धूमधाम ले मनाथन। मईया जी के देवाला ह जोत जंवाला ले जगमगा जाथे। जंवारा आस्था के परब आय। छत्तीसगढ़ म भोजन ल जेवन कहिथन। जीये बर जेवन जरूरी हे। जेवन बिना जीव के का अस्तित्व? इंखर अस्तित्व ल बचाए खातिर जेवन देवइया देवी आय जंवारा। जऊन ल बोलचाल म जंवारा कहिथन। जेवन करे ले जीव मन ल शक्ति मिलथे। तभे तो जंवारा ल शक्ति के देवी के रूप में पूजा करथन।

सबो युग म महतारी के महिमा के बखान होये हे। जब-जब धरती म अत्याचार बाढ़त गीस तब-तब अत्याचारी मन के नाव ल बुताए खातिर जंवारा (महामाया) ह कतनो रूप म अवतार लीस।


जंवारा कोन आय?

जंवरहा मन के घर म जंवारा बोए के परम्परा ह आदिम काल ले चले आवत हे। घर परिवार में कोनो किसम के बिघन ह देवी मां के नराजगी ल व्यक्त करथे। अइसे केहे जाथे कि देवी मां ह अपन रीस ल घर के सियान ल सपना के माध्यम ले अवगत कराथे। देवी ल मनाए खातिर परिवार के सुख शान्ति बर सियान ह घर के सुन्ता सुलाह ले पांच सेऊक मन ल गवाही राख के अवइया दिन बादर म जंवारा बोए बर माई खोली (जंवारा बोए के स्थान) म हूम दे के बदना (मनौती) बदथे। मारन वाले घर तो बोकरा के पुजई घलो देथे। कतको घर नायडू (सुरा) के बली चढ़ाए जाथे।

छत्तीसगढ़ वनवासी अंचल आय तभे तो इंहा आदिवासी संस्कृति के चलन हे। येखर सऊंहत गवाही हे-बइगा। बइगा मने ग्राम देवी-देवता मन के विधि-विधान ले पूजा-पाठ अउ देख रेख करइया। गांव के सुख शान्ति बर शीतला (माता देवाला) म जंवारा बोए जाथे। जेखर देख रेख बइगा ह करथे। खरचा ल गांव भर के मन मिलजुल के उठाथे।

अमावस्या के रात बीरही फिंजोए जाथे। बीरही का आय? (1) बीजा ल ही बीरही कहिथन (2) तीन, पांच, सात या नव किसम के अनाज (गेहूं, चना, बटर, लाखड़ी, तीली, धान, जौ, उरीद, मूंग) ल मिंझार के बीरही फिंजोए जाथे। बीरही बर ओलाही गेहूं के बेवस्था करे बर परथे। अइसे केहे जाथे कि महामाई मन इक्कीस बहिनी होथे तेखरे सेती इक्कीस किसम के बीजा ल मिंझार के घलो बीरही फिंजोए जाथे।

देवता कुरिया म कन्हार माटी ले कोठ तीर म आयताकार मेड़ बनाए जाथे, जेन ल फूलवारी कहिथन। खेत बनाए बर छै आना कन्हार माटी ल दस आना बारीक खातू (कम्पोट खातू ल चन्नी म चाल के) ल मिंझार के भूंसा ल ओमे मेले बर परथे। इही मिश्रण ल कलस, चरिहा अउ दोना म घलो चाल दे जाथे। फूलवारी के सोभा ल माई कलस अउ मंझला कलस ह बढ़ाथे। माई कलस ल घांघरा घरो कहिथन। नांदी म नीम तेल भर के कलस के उपर मढ़ा दे। आज काल तो फल्ली, सरसों तेल ल घलो जोत जलाए बर उपयोग म लानत हे। भरूहा काड़ी म हाथ डेढ़ हाथ बाती (पोनी ल बर के) लपेट के नांदी के उप्पर मढ़ा के जोत जलाए जाथे। मंझला कलस ल काली माई के प्रतीक माने गे हे। फूलवारी के मुड़सरिया म रोखी रहिथे। रोखी ल देवी के निराकार रूप माने गे हे। बीरही ल फूलवारी, कलस (माई कलस, मंझला कलस), माई झेंझरी, टुकनी अउ दोना मन म बांवत करे जाथे। बीरही ह जामथे तेन ल जंवारा कहिथन। माई झेंझरी ल रिक्षीन देवी (गुस्सा होवइया देवी) के प्रतीक माने गे हे। तीन कठिया झेंझरी म चार आंगुर छोड़ के खातू ल भर दे, भरे के बाद ओमा बीरही के बांवत कर दे। जऊन बछर जंवारा ह बने जामही ओ साल सुकाल अउ जऊन साल खड़मण्डल जामही वोहा दूकाल के संकेत देथे। परसा पाना, महुआ पाना नही ते खम्हार पाना के दोना बनाए जाथे। दोना ल गांव के नाऊ ठाकुर मन सण्डेवा नही ते राहेर के काड़ी म गोभ-गोभ के बनाथे। दोना ल जंवरहा घर एकम के दिन पहुंचा देथे। ओखर अवेजी म नाऊ ठाकुर ल सेर चाऊंर भेंट करके बिदा करथे। दोना के जंवारा ल ठण्डा के दिन ग्राम देवी-देवता म चढ़ाके गांव, घर-परिवार के सुख शान्ति बर बिनती करथे। कलस के जोत जलाए के पहिली तीन ठन बिना आंछी के सादा लुगरा ल मढ़ाए रहीथे तेन ल ठण्डा के दिन माई कलस, मंझला कलस अउ माई चरिहा के बोहइया मन पहिरथे। एकम के दिन विधि विधान ले देवी पूजा के शुरूआत होथे। सुभ मुहूर्त म पांच पंच के उपस्थिति म जोत जलाए जाथे। घर के सियान ल पण्डा के भार सौंपे जाथे। शीतला (हिंगलाज) म पंडा के जवाबदारी ल बइगा ह निभाथे। पण्डा ह नवरात्रि उपास रहीथे। संझा के संझा रोज फल, दूध, दूबी के रस के फरहरी करथे। एकम के दिन देवी के रक्षक के रूप म लंगूरे (बजरंगबली) के स्थापना फूलवारी के तीर म होथे। काली के रूप म खप्पर ल जंवारा खोली के मुहाटी के बगल म स्थापित करे जाथे। जेन ल खप्पर वाले देवी के नाव ले जानथन।

सेवा बजइया सेऊक मन ढोलक, मंजीरा, झांझ बजावत सेवा गीत गावत जंवारा के सेवा बजाए बर जंवरहा घर पहुंचथे तब पण्डा ह घर के मुहाटी म पानी ओरछ के उंखर स्वागत करथे ताहन सेऊक मन के आरती उतारत पचघुच्चा घूंचत सेवा गाए बजाए बर सादर आमंत्रित करथे। सेऊक मन ठाकुर देव के सुमरनी ले सेवा गीत के सुरूआत करथे। तेखर बाद मातेश्वरी के सेवागीत, लंगूरे गीत गाथे ताहन सोसन भर देवी गीत गा के सेवा करथे। पूरा वातावरण देवी मय हो जय रहिथे। वोइसे तो देवी के श्रृंगार के कतनो गीत हे फेर विशेष तौर से देवी मां ल पांच रंग ह जादा प्रिय हे। जेखर वर्णन ह येदे गीत म मिलथे -


पचरंग सोलहो सिंगार महामाया


सफेद-सेत सेत तोर ककनी बनुरिया, अहो महामाई सेते पटा तुम्हार

        सेत हवय तोर गर के हरवा अउ फूलन के हारे

लाल-लाली लाल लहर के लहंगा, लाली चोली तुम्हारे

       पान खात मुंह लाल भवानी, सिर के सेंदूर लाले

पीला-पिंयर पिताम्बर पहिरे महामाई पिंयर कान के ढारे

       पिंयर हावे तोर नाक के नथनी रहे होठ म छाये

हरा-हरियर हरियर हाथ के चूरी, हरियर गला के पोते

      हरियर हावे तोर माथ के टिकली, बरे सुरूज के जोते

काला-कारी कोर लगे अचरन म, कारी काजर के रेख

      कारी हवय तोर भंवर पालकी, कारी सिर के केस

     

देवताहा मन देवता चढ़ जथे। हूम देवा के ओला शांत करे जाथे। कतको मन तो कांटादार साकड़ ले अपन पीठ ल लहूलुहान कर डरथे। देवी आस्था ल जीभ नही ते हाथ ल आलपाल बेध के देखा देथे। पंचमी के दिन बाना परघाए जाथे। पंचमी अउ साते के दिन फूलकसिया लोटा के कलस चढ़ाए बर परथे। मान ले जंवारा ह अऊ जादा बढ़ागे तब अष्टमी के घलो कलस चढ़ाए जा सकत हे। जंवारा पाख के अष्टमी के दिन हुमन होथे। इही दिन पिसान ल तेल, घी म सान के अंठोई बनाए जाथे। इही ल रोंठ घलो कहिथन। रोंठ (अठोई) ल गोतियार मन देवी के प्रसाद के रूप म स्वीकार करथे। अठोई के दिन एक्कइस ठन लिमऊ घलो चढ़ाए जाथे। इही दिन नेवोतहार मन नरियर भेंटकर के अपन मनोकामना पूरा करे बर बिनती करथे।

जऊन रद्दा ले जंवारा ठण्डा करे बर नदिया, नरवा, तरिया जाना हे वो रद्दा ल मुंदराहा ले बहारे बर परथे। जोत ह झन बुताए कहिके चाऊंर म मंतर मार के बइगा ह जंवारा म छीत देथे ताहन लिमऊ ल दू कुटका कर के भुइयाँ म छोड़े बर परथे। अइसे केहे जाथे-जेखर संतान नइ राहय ओ माई लोगन मन माई कलस बोहइया के गोड़ म हंवला भर पानी ढार के पेट के भार सुत जथे। जंवारा बोहे रहिथे तेन मन ओरी-पारी ओला नहाक के आगु बढ़ थे। अइसे करे ले देवी मां अपन भक्त के पुकार ल सुनथे। जंवारा ठण्डा करे के बाद जंवारा ल बांटे जाथे। जेखर ले कतनो मन मित मितान बद के अटूट रिश्ता जोड़ डरथे। फूल फूलवारी ह कोनो जघा भेंट हो जही तब एक-दूसर ल सीताराम जंवारा कहिके संबोधित करथे।



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