Thursday 8 September 2022

लोक कथा- महादेव के भाई सहादेव

 लोक कथा- महादेव के भाई सहादेव



तइहा के बात हरे.हाथी अऊ कोलिहा हा मितान बधिस।  दूनो के  मितानी हा बढ़िया चलत रिहिस. इही बीच एक दिन के बाद हरे. बीच जंगल में जाए के बाद कोलिहा ला पियास लगिस. कोलिहा के दसा ल देख के हाथी से नइ  रहि गिस । वोहा  कोलिहा ल किहिस मंय तोर पियास ल बुझा सकथों। मोर पेट भीतरी पानी रहिथे। पर मितान मोरो एक ठन बात हे.   ओला तोला माने ल पड़ही तभेच मेहा पियास ल बुझा सकथो । कोलिहा ह हामी भर दिस. तब हाथी ह किहिस कि तेहा मोर पेट भीतरी आंखी मूंदे जाबे अऊ पानी पीके आंखी मूंदे आबे.


 हाथी हा कोलिहा ल भगवान के कसम खवईस। चतुरा कोलिहा हा हाथी के बात ल मान गिस।


एकर बाद हाथी ह अपन मुंह ल खोल दिस.फेर कोलिहा हा हाथी के पेट के भीतरी घुसिस । कोलिहा हा भीतरी घुस के मन भर पानी पीइस.


 फेर ओकर मन में एक बात अईस कि हाथी मितान ह काबर किहिस कि आंखी मूंद के जाबे अऊ आंखी मूंद के आबे । येमा जरूर राज के बात हे। अइसन सोंच के कोलिहा ह अपन आंखी मूंदे रिहिस तेला खोल दिस। 


कोलिहा देखिस त दंग रहिगे। पेट के अंदर बड़ पानी रहय। अऊ चारो मुड़ा देखिस त लाल-लाल करेजा ह दिखिस । कोलिहा के मन म लालच समागे। वो हा सोचे लगिस कि पेट के अंदर रहि के कतको दिन बिना मेहनत के मोर भूख मिटा सकथे अऊ पियास बुझा सकथे। 


कोलिहा ह पेट अंदर से निकले के नाम   

 नइ ले। हाथी बिचारा ह बाहिर निकल न मितान, बाहिर निकल न मितान कहिके कलपत रहिगे। तेहा तो मोला धोखा दे देस मितान। फेर कोलिहा ह पेट अंदर से निकले के नाम  नइ ले। कोलिहा ल जब भूख लगतिस त हाथी के करेजा ल खातिस अऊ पियास लगतिस त मन भर पानी पीतिस। हाथी बिचारा हा धिरे धिरे सुखागे, अऊ मर गे।


उही बेरा उही रसदा  मा भगवान महादेव अऊ माता पार्वती हा जंगल घूमें बर निकले रिहिन। हाथी कर गेइन तब कोलिहा हा चिल्लाय लगिस जुग बुड़ाथे-जुग बुड़ाथे। भगवान शंकर अऊ माता पार्वती ह आवाज ल सुनके अईस त हाथी ल मरे देखिस। फेर ऊहि हाथी के अंदर से फेर आवाज आईस जुग बुड़ाथे - जुग बुड़ाथे। भगवान शंकर ह बोलिस ते कोन हरस? उल्टा कोलिहा ह किहिस पहिली ते बता तैं कोन हरस? भगवान शंकर किहिस, मेहा  महादेव हरों। घमंड के मारे कोलिहा ह किहिस, में महादेव के भाई सहादेव हरों । 


चतुरा कोलिहा फेर किहिस तेहा भगवान हरों कहिथस ते ले तो झमाझम पानी गिरा। तब जानहू ते ह भगवान हरस। ऐ बात ल सुन के भगवान शंकर ह नंगत पानी गिरईस. एकदम पानी गिरे से हाथी के पेट ह फूलगे अऊ मुंह ह फइलगे अऊ कोलिहा ह भूस ले निकल के भाग गे।


भगवान महादेव ह चतुरा कोलिहा ल सबक सिखाय वर उपाय सोंचे ल लगिस। रहा रे कोलिहा तरिया म पानी पियेबर आबेच तो न। जब कोलिहा पानी पिये बर अईस त भगवान ह ओकर गोड़ ल धरिस। कोलिहा कहिथे ते सोंचत होबे, तेंहा मोर गोड़ ल धरे हस। तेंहा तो बर पेड़ के जर ल धरे हस। अइसने तीन चार बार होगे। कोलिहा ह वइसने कहय अऊ भगवान शंकर हा वोकर गोड़ ल छोड़ देय.


भगवान सोंचिस कि ऐकर बर अब दूसर उपाय करे ल पड़ही । भगवान महादेव ह तरिया पार म   मैन के डोकरी बनईस (मंदरस कीड़ा के मैन) अउ डोकरी के आघू म चना मुर्रा मड़ा दिस। कोलिहा ह फेर पानी पिये बर तरिया अईस। अऊ पानी पीके डोकरी कर गिस। डोकरी ह एको कनक हूंके न भूंके त कोलिहा ह घुसिया के अपन एक गोड़ म डोकरी ल मारिस त ओकर गोड़ ह चिपक गे। मोर गोड़ ल धर लेहस डोकरी कहिके दूसरा गोड़ म मारिस त वहू गोड़ ह फंसगे। फेर अपन हाथ म छोड़ईस, त दूनों हाथ ह फंसगे।


 इही बीच भगवान शंकर ह कोलिहा के गला म रस्सी डाल के बांध दिस। अऊ गांव वाले मन बर तखती लिखिस कि जउन मन ह ये तरिया म आही. ये बईमान कोलिहा ल एकक कोटेला (लकड़ी) मारत जाही। अब जउन मन ह तरिया आतिस ओमन ह कोलिहा ल कोटेला म ठठातिस। मार के मारे कोलिहा ह फूल गे।


एक रात ऊही तरिया में दूसर कोलिहा ह अईस पानी पीये के बाद वोहा कोलिहा के पास गिस अऊ कहे लगिस  

कि  तेहा कईसन मोटाए हस? 


चतुरा कोलिहा किहिस इहां के गांव वाले मन बड़ दयालू हे जी। वो मन ह रोज मोर बर बरा-सोंहारी रांध के लाथे . किसम किसम के पकवान खवा थे.तेकरे सेती  मेहा अतिक मोटाय हंव त दूसर कोलिहा ह कहिथे महू ल तोर जगह एक दिन रहन देतेस जी.


चतुरा कोलिहा ह कहिस  तेहा अत्तिक जिद करथस त एकेच दिन रहन दूहूं'भई। तेहां मोर गला के रस्सी ल खोल दे। एखर बाद दूसर कोलिहा के गला में रस्सी बांध के चतुरा कोलिहा ह

भगा जाथे.


दूसर दिन फेर गांव वाले मन अईस त


दूसर कोलिहा ल मरो जिये ले कूचरे ल लगिस। त दूसर कोलिहा ह बोलिस मेहा पहिली वाले कोलिहा नोहो ग। मे हा ओकर मीठ-मीठ गोठ म आके फंस गे हंव । मोला तूमन ह दया करके छोड़ देवव । तूंहर मन से बिनती करत हंव ।

तब भगवान महादेव ह कोलिहा से बोलिस कि तोला छोड़ देबो पर हमर बात ल माने ल पड़ही । बात ये हरे कि तोला रात में चार बेर पहरा देय ल पड़हि। कोलिहा ह भगवान के बात ल मान गे। तब भगवान ह कोलिहा ल छोड़ दिस। तब से लेके आज तक कोलिहा मन ह रात में चार बेर पहरा देथे अऊ आदमी मन ल हुंवा हुंवा कहिके बेरा ल जनाथे। 


दार- भात चूरगे, मोर कहानी पूरगे.



       ओम प्रकाश साहू अंकुर


      सुरगी ,राजनांदगांव


         मो. 7974666840

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