Thursday 8 September 2022

पुस्तक समीक्षा-पोखनलाल जायसवाल: *स्वाभिमान जागरण के गोहार आय : गँवागे मोर गाँव*


 

पोखनलाल जायसवाल: *स्वाभिमान जागरण के गोहार आय : गँवागे मोर गाँव*

       हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ल हमर पुरखा मन जौन दिशा दिखाँय हें, वो दिशा म अब छत्तीसगढ़ी साहित्य ह दउड़े ल धर ले हे। रेंगई छूट गेहे। गिरे-हपटे के डरे च नइ हे, त दउड़ही काबर नहीं। डरे के कोनो बाते च नइ रहिगे हे। रद्दा चतवार के बल देवइया मन आगू खड़े हें। उँकरे अजम अउ ताकत म नान्हे लइका सहीं नवसिखिया मन सरलग मिहनत करत हें। सीखत हें। चिक्कन सड़क म दउड़त हें। ए मिहनत खच्चित एक दिन रंग ला के रइही अउ छत्तीसगढ़ी के मान बढ़ाही।

        जइसे-जइसे गँवई-गाँव म विकास के बाना धरे, सड़क पहुँचे लगिस, वइसे सँधरा शिक्षा के अंजोर घलव गाँव म हबरे लगिस। जेकर ले चोर चिल्हाट अउ अशिक्षा के भूत के डर मनखे के अंतस् ले भागत गिस। जिनगी बुगुर-बागर करे धर लिस। साहित्य म घलव इही विकास दिखत हे। अभिन के लिखइया मन खूब मिहनत करत हें। खूब पढ़त हें अउ लिखत घलव खूब हें। बुधियार मन उन ल सिखोवत घलो हें। सियानी गोठ करत लिखे ले जादा पढ़े के सीख  देवत हें। ए सबो भाषा म चलत हे। त हमर छत्तीसगढ़ी भला एकर ले कइसे पछवाय रइही। पुरखा अउ बुधियार मन के असीस ले इहू म खूब काम चलत हे। रोज लिखत हें। सबो विधा म कुछु-न-कुछु पढ़े बर मिलत हे।

         अइसने ढंग ले सरलग कलम थामे छत्तीसगढ़ी के सेवा बजाय के उदिम म लगे नाँव हे-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'। जौन मन आज छत्तीसगढ़ी म गद्य अउ पद्य दूनो लिखत हें। अभी के समे म उँकर कलम ह छंद म जोरदरहा चलत हे। उँकर कलम म धार आगे हवय। उँकर कलम मँजा गे हे। खैरझिटिया जी ल छत्तीसगढ़ी साहित्य के अगास म चमकत नवा सितारा कहई ह बिरथा नइ होही। उन मन छत्तीसगढ़ी ल सजोर करे म जी परान दे के भिड़े हवँय। लेखक/रचनाकार मन के रचना मन ल जोरन भर के पद्य अउ गद्य खजाना के पेटी भरे के बीड़ा उठाय हव। जिहाँ ले सजोर रचना मिलथे, उहें ले सकला कर के खजाना पेटी म जतन देथे। उँकर ए बूता बर छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ साहित्यकार मन उँकर करजदार रइहीं। 

        कोनो क्रिकेटर ल सरी दुनिया तभे जानथे, जब उँकर चयन ओकर प्रदर्शन ले राष्ट्रीय टीम म हो जथे। अउ प्लेइंग इलेवन म जगा बना पाथे। कोनो रचना के छपे ले ही रचनाकार ल असली पहिचान मिलथे। किताब के छपई साहित्य के मैदान म उतरे बर प्लेइंग इलेवन म चयन बरोबर आय। ए अलग बात आय कि कुछ बेवसायी किसम के प्रकाशन के आय ले अब किताब छपवई आसान हो गेहे। पहलइया मैच सबो बर ऐतिहासिक अउ सुरता के गठरी म जोरे के लइक रहिथे। मैच के स्तर के मुताबिक तकनीक कइसन रहिस एला क्रिकेट पंडित मन परखथें अउ मौका देथें। अइसने एक रचनाकार ल बुधियार पाठक /श्रोता आघू बढ़ाथे। जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया' जी के पहलइया किताब 'गँवागे मोर गाँव' पढ़े के मौका मिलिस। ए किताब 2016 म छपे हवय।

     ए किताब के मुख पेज बड़ लुभावन हे। मन भावन हे। ठेठ गँवइहाँपन ल सँघेरे हे। जेन गाँव म कुआँ-बउली हे। घर म बड़े जान अँगना हे। फेर किताब के नाँव 'गँवागे मोर गाँव' गुने बर विवश करथे। भारत गाँव के देश आय।गाँव के बहाना बनावत कवि ह भारत भुइँया के गोठ करथे। भारत अपन संस्कृति अउ परम्परा ले सरी दुनिया म अलग पहिचान रखथे। इही संस्कृति अउ परम्परा के मोती ह भारत ल दया-मया के सुतरी म माला सहीं पिरोय रखे हे। फेर समे के बहाव ह विचार (कु) के दिंयार ल ले आइन। जउन ह इहाँ के संस्कृति अउ परम्परा ल दिनोंदिन खावत जावत हे। विकास के निसयनी चढ़े के साध म लोगन अपन संस्कृति अउ परम्परा ल भुलाय धर लिन। हवा म उड़े धर लिन। दाई-ददा ल छोड़ विदेश जाय के रोज सपना देखत हे। वहू ल दाई-ददा के कमई के पाँख के बल म उड़े के साध रखे हे। ए शीर्षक एक डहर पीरा ल समोय हवय, त दूसर डहर विकास के आरो घलव देथे। विकास जरूरी हे। कवि घलव विकास के पक्षधर हे, फेर वो ह संस्कार, दया-मया अउ मानवता के बलि चढ़त देख के दुखी हे। किताब के शीर्षक इही दुख पीरा ल लेके रखे गे हे, कहे जा सकथे।

        अब किताब म छपे रचना मन के भाव देखथन।

        पहलीच कविता महतारी ल समर्पित हे, जउन भाव के हिसाब ले कोनो मंगलाचरण ले कमती नइ हे। ए कविता म जनम देवइया महतारी, अपन कोख म उपजे अन्न ले पेट भरइया माटी महतारी अउ ज्ञान के अँजोर ले जिनगी म उजास भरइया सरसती दाई मन के सुमरनी हे।

       एक कोति गाँव के विकास ले मन म खुशहाली हे, त दूसर कोति गाँव ले दया-मया अपनापन के नँदाय के अथाह दुख घलव हे। इही सुख-दुख म बूड़े उन लिखथें-

    *मैं हासौं कि रोवौं,* 

    *मोर गाँव अब सहर होगे।*

     छत्तीसगढ़िया अपने घर म आन ल ठउर देवत अपन का हाल करे डरे एकर बानगी देखव-

     *नाँव के किसनहा, मालिक कोनो असल हे।*

छत्तीसगढ़ म संत-महात्मा मन के प्रभाव इहाँ के रग-रग म रचे-बसे हे। लोकजीवन म दग-दग ले देखे-सुने ल मिलथे। 

      *साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाय।*

      *मैं भी भूखा न रहूँ, साधु भूखा ना जाय।।*

अइसन लोककल्याण के संदेश देवत जीतेन्द्र खैरझिटिया लिखथें-

*थोरकिन तें खा, थोरकिन भूखाय ल खवा।*

समाज म समता के पाठ घलव पढ़ाय गे हे, इही समता ल इन लिखें हें-

    *मया के माटी ले, ऊँच-नीच ला पाट रे।*

मन के अँधियारी जब छट जथे, त जिनगी म सुख शांति के अंजोर बगरे लगथे। कवि 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के मंगल भाव ल सहेजे कहिथें-

     *ओनहा-कोनहा ल कर दे अंजोर।*

मनखे के पहिचान ओकर बोली ले होथे। बानी-बचन बिगड़े ले नता-गोत्ता घलव बिगड़े धर लेथे। एहू ल उँकर लेखन म दिखथे

     *जबान हे करू, त हथियार के का काम*

हमर राज के मनखे तइहा ले शोषण के शिकार होवत आवत हे। तब ले संघर्ष करे बर नइ छोड़े हे। अभाव के जिनगी जीयत सपना देखे ल छोड़ देथे। जौन ल हूबहू लिखथे-

      *फोरा परत ले काम करथों, रहिथों बाँध झिपारी।*

*नइ आये कभू छत के सपना....*

     होना तो ए रहिस कि शोषित ल घलव सपना देखे के सपना देखातिन अउ प्रेरणा देतिन। तभे तो सपना ल जिएँ बर शोषण के विरुद्ध लड़े बर शंखनाद कर पाहीं। हो सकत हे इहाँ रचनाकार वक्रोक्ति के प्रयोग करे होही।।

     आगू के कविता म उँकर कलम के आगी ह सुलग के भभके ल धर लेहे अउ छत्तीसगढ़िया मन ल जागे के आह्वान करे हे-

     *ए ढोंगी मिठलबरा मन, बन गे हे अटकपारी।*

     *फोड़ दे आँखीं ल ओखर, जेन नटेरही अतियाचारी।*

दूसर बानगी हे-

      *छाती ठठा के गरज छत्तीसगढ़िया,* 

      *करदे टेड़गा ल सोज।*

       ए किताब म एक कोति पइसा के पीछू भागत मनखे बर अपन नैतिकता ल बचा के रखे के आह्वान हवय, त दूसर कोति नता-गोत्ता ल सरेखे के संदेश हवय।

        शहरीकरण के हवा लगे ले गाँव के पीरा खैरझिटिया जी ल कतेक गहिर ले कचोटथे एकर अनुमान ए डाँड़ ले लगा सकथन-

    *जिहाँ गाड़ा-गाड़ा मया रहय,* 

    *तिहाँ आज चवन्नी तको नइ हे।*

    *मिंझरे हे ईरसा*

    *चाले बर चन्नी तको नइ हे।*

  छत्तीसगढ़ बर नक्सली समस्या नासूर बनगे हवय। नक्सली मन ले सवाल करत लिखथें-

    *अउ तो रंग बहुत हे,*

    *काबर लालेच म खेलथस?*

उहें उन मन ल सीमा म खड़े हो के बइरी मन ले लड़े के सलाह दे हे-

*लड़ना हे त देश बर लड़*

*छाती फूलाके सान ले।*

       कवि अपन सामाजिक सरोकार ले कभू पाछू नइ हटय। उन मन अपन जिम्मेदारी निभाथें। सचेतक सहीं अपन लेखनी ले चेताय के उदिम करथे। उँकर इशारा देखव-

    *धरे हे गरी अउ सब ल फँसात हे।*

   संस्कृति अउ परम्परा के संरक्षण रचनाकार करथें। अपन भारतीय संस्कृति अउ परम्परा के आवत गिरावट ल देख उन लिखे के कोशिश करें हें-

      *मंदिर के घंटी म जंग लगे हे।*

ए डाँड़ म साँस्कृतिक मूल्य के क्षरण घलव दिखथे।

एक रचनाकार के गीत अउ कविता म प्रकृति वर्णन करके समर्थ रचनाकार के दर्जा प्रदान करथे। एहू म खैरझिटिया जी खरा उतरथें। चउमास, जाड़ अउ गरमी सबो बेरा के प्रकृति चित्रण रग-रग ले आँखीं म झूले लगथे।

      नाना प्रकार के अलंकार ले सजे गीत/कविता पाठक के हिरदे म ठउर बनाथे। जीतेन्द्र खैरझिटिया जी खासकर अनुप्रास, रूपक अउ उपमा के संग ब्याज निंदा अलंकार के बढ़िया प्रयोग करें हवँय। किताब म कतको मुहावरा के झलक मिलथे। काव्य म मुहावरा के अइसन प्रयोग कथ्य म चमत्कार लाथे। कोनो-कोनो जगा म व्यंग्य शैली ले रचना के मारक क्षमता बाढ़ गे हवय। ध्वन्यात्मक शब्द, समासिक-शब्द, बिंब-प्रतीक अतेक सुग्घर हे, के किताब एक सुधि पाठक के मन ल मोह लिही। जीतेन्द्र खैरझिटिया जी के पास पर्याप्त शब्द भंडार हे। तुकांत के कोनो कमी नइ लगिस। ठेठ गँवइहाँ शब्द मन सहेजत ए किताब नवा लिखइया मन के शब्द भंडार म बढ़ोतरी करही।

    ए किताब जीतेन्द्र खैरझिटिया के पहिली किताब आय। एमा कोनो बड़े साहित्यकार के आशीर्वचन या कहन भूमिका नइ हे। जौन सबो किताब म मार्गदर्शी लेख बरोबर पढ़े बर मिलथे। हो सकत हे बड़े रचनाकार मन के संपर्क म नइ आय रहिन होही। या फेर बड़े मन समे नइ निकाल पाइन होहीं। ए किताब म कतकोन जगा  वर्तनी त्रुटि हे। जउन छत्तीसगढ़ी के मानक  नइ होय अउ हिंदी के प्रभाव के संग प्रूफ रीडिंग के चलत हो सकत हे।

किताब के शीर्षक मैं *गँवागे मोर गाँव* लिखतेंव। आजकाल हिंदी म घलव अनुस्वार अउ अनुनासिक ल अलग-अलग नइ माने के चलन बाढ़ गे हे। हो सकत हे, इही प्रभाव के चलत जीतेन्द्र खैरझिटिया जी *गंवागे मोर गांव* लिखे होहीं। मोर नजर म ए संग्रह छत्तीसगढ़िया के स्वाभिमान जागरण के गोहार के संग्रह आय।


*संग्रह : गंवागे मोर गांव*

*रचनाकार : जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'*

*प्रकाशन वर्ष : 2016*

*पृष्ठ सं. - 114*

*मूल्य : 100/-*



पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

जिला बलौदाबाजार छग.

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