Saturday 3 September 2022

*भादो मनभावन*-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"






 





*भादो मनभावन*-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया'

                आसाढ़ सावन भर पानी पी पी के भुइँयाँ भादों मा अघाय कस लगथे, तभे तो तरिया डबरा मा पानी माढ़े अउ लहरा मारत दिखथे। मनमाड़े चलत धारी  भादो के आरो पाके धीर धर लेथे। बँधिया,तरिया,ढ़ोंड़गा जे सावन भर दानी कस पानी फेकत रिहिस, वो बनिया बरोबर अब नाप नाप के जादच उपरहा भर ल झलकात दिखथे।सरलग चलत धूका- गर्रा, झड़ी-झक्कर, बिजुरी के चमकई अउ बादर के गरजई घलो कमती होय बर लग जथे। थोर बहुत डबरा खँचका के पानी ल अँटत देख करिया बादर बीच बीच मा हुरहा धुरहा आथे अउ पानी समो के भाग जथे। सुरुज नारायण जे आसाढ़ सावन भर लुकाय लुकाय फिरत रिहिस,भादो के आरो पाके आसमान मा घूमत फिरत आँखी देखाय बर धर लेथे। थमे पानी ल देख,चिरई चिरगुन मन भादो के आरो पाके उझरे झाला खोंदरा ल नवा सिरजाये के उदिम करत दिखथें।धान-पान, काँदी-कूसा सजोर होके पुरवइया मा नाचत गावत, झुमरत दिखथे। झड़ी बादर ले तंग चिरई चिरगुन, छेरी-बोकरा, गाय गरुवा झूम झूम  के घूम घूम  चारा चरत दिखथें। घर कुरिया बारिस मा पस्त दिखथें ता खेत खार, तरिया नदियाँ मतंग अउ मस्त। भादो के लगत घर कोठ मा रचे काई केरवस ल दाई महतारी मन उजराये बर लग जथें।


*तिहार बार*- 

हमर छत्तीसगढ़ राज का, हमर देश घलो कृषि प्रधान हे, जिहाँ के रहन सहन अउ तीज तिहार, खेती किसानी के हिसाब  ले चलथे। सावन अउ भादो तीज तिहार के महीना होथे। ये महीना मा अतेक जादा तीज तिहार होथे कि सबके बरनन कर पाना सम्भव घलो नइहे। अतेक तीज तिहार मनाये के तको कारण हे। ज्यादातर मनखे मन पहली खेती किसानी करैं, अउ बरसा घरी भरे पानी मा निंदई कोड़ई करत सरलग खेतेच मा  लगे रहैं। जेखर ले हाथ अउ गोड़ दूनो सेठरा जाय,अउ सरलग भींगई तको होय। मनखे मन काम बूता मा अतिक रमे रहैं, कि यदि कोई तिहार बार नइ होतिस ता हाथ गोड़ के घलो खियाल नइ रखतिस, काम के संग आराम घलो चाही, ते पाय के ये घरी अतिक तिहार मनाये के चलन हे। जे मनखे मन के तन के संगे संग मन ला घलो भला चंगा करथे। आजो ये चलागन चलते हे। भादो महीना मा बेटी माई मन निंदई कोड़ई करके तीजा के बहाना मइके जाथे, काबर कि काम कमई के मारे बनेच दिन ले घर ले नइ निकले रहैं। कमरछठ,तीजा-पोरा, नारबोध,कड़ाबन्द, इतवारी, सोमवारी, जन्माष्टमी, रामसताव, गणेश चतुर्थी कस बनेच अकन तिहार भादो महीना म मनाये जाथे। ये सब तिहार बार मनखे  मनखे बीच दया मया,उछाह उमंग के बरसा करे के संगे संग खेती किसानी, संस्कार-संस्कृति, पार अउ परम्परा ले मानुष ल जोड़े रखथें।


*तीजा तिहार*- 

भादो महीना के बड़का तिहार आय तीजा।  ये महतारी बहिनी मन के तिहार आय, जेला वो मन मइके मा रहिके मनाथे। ये दिन के रद्दा सबें बहिनी मन जोहत रथे, कि ददा नहीं ते भैया आही अउ तीजा ले जाही। जे बेटी ददा दाई के अंगना मा ननपन ले खेलिस खइस, फेर बिहाव के बाद वो अंगना के दुरिहागिस, अइसन मा वो पावन ठिहा मा फेर जब महतारी बहिनी मन पाँव रखथे ता सरग के सुख घलो, उन मन ला कमती लगथे। दाई, ददा, बहिनी, भाई के मया के धार अउ ननपन के जम्मो सुरता मा अन्तस् तक भींग जथे। तीजा के नेंग जोग ल तो सबें जानत हव,उपास कइसे रथे? का खाथें? कोन ल मनाथे? मोला लिखे के जरूरत नइहे। मइके के लुगरा तीजहारिन मन बर अनमोल होथे। तीजा मा संगी संगवारी संग जम्मों बहिनी ले मइके मा ये दरी भेंट होथे। ये पावन बेरा मा महतारी, बहिनी मन मइके जाके अपन जम्मों थकान अउ संसो ल बिसार देथें। मइके के माहौल उन ला एक बेर अउ ननपन के सुरता अउ  जुन्ना मस्ती मा डुबो देथे। तीजा संस्कृति संस्कार, मया दया अउ सुख शांति के बरसा करथे।  जमाना ले चलत आवत तीजा ला बहिनी महतारी मन बड़ उछाह अउ उमंग ले मनाथें। अउ जड़-चेतन, घर बार, खेत खार, पार परिवार  सबके सुख शांति के कामना करथें।


*खेत खार अउ फूल फुलवारी के सुघराई*-

खेत मा भराय पानी अउ ओमा तँउरत मछरी, मेचका, केकरा संग, सजोर  होके नाचत गावत धान ल देख मारे खुसी के, किसान खेतेच मा नाच अउ गा देथे। निंदइया मनके कर्मा ददरिया अउ सनन सनन चलत पुरवाही मन ल मता देथे। पड़की, पपीहा अउ तीतुर के मीठ बोली खेत खार मा रहिरहि राग रंग घोरत रहिथे। मेड पार मा फुले- फरे मुंगेसा,कोलिहापुरी, फोटका,फूट अउ काँसी काँद- दूबी मन ल मोह लेथे। काँसी के पोनी कस पड़ड़ी फूल देख जिया मा उमंग हमा जथे। तुलसीदास जी महाराज काँसी के फूल ल देखत लिखे हे- 

*फुले काँस सकल महि छाई।जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई।*

माने धरती मा काँसी ल फुले देख अइसे लगत हे, मानो बरसा ऋतु हा अपन बुढ़ापा प्रकट करत हे।  मेड़ पार के बम्हरी मा सोनहा फूल लद जथे।  बम्हरी के सोनहा फूल देख अधर म सहज ही माटी पूत लक्ष्मण मस्तुरिहा जी के ये गीत आ जथे- *हरियर हरियर बम्हरी म सोन के खिनवा।*

संग मा फागुन चैत मा फुलइया सरई ला सइगोंन बिजरावत दिखथे, ता मधुमास मा मउरइया आमा ल रियाँ अउ फागुन मा नचइया परसा अउ अमलतास ला पिंयर गुलमोहर। मोर कहना गलत होही ता भादो मा सइगोंन, रियाँ अउ पिंयर गुलमोहर ल देख के खुदे आंकलन कर सकथव, न गुलमोहर, अमलतास अउ परसा ले कमती दिखथे, न रियाँ आमा ले अउ न सइगोन साल ले। जइसे परसा अउ अमलतास माघ फागुन मा सड़क गांव गली खेत खार मा आगी बरोबर बरत दिखथें, ठीक वइसने भादो मा पिंवरी गुलमोहर शहर, गांव, गली, रद्दा बाट मा पिवरा पिवरा फूल मा लदाय लहसत, नाचत गावत दिखथे। मधुमास मा मउरे आमा कस रियाँ, भादो मा सजे सँवरे रथे। सइगोंन के बड़े  बड़े पाना घलो  फूल मा लुकाय दिखथें, कहे के मतलब सइगोंन अतका फुले रहिथे कि ओखर जबर पाना ह घलो नइ दिखे, सिर्फ फुले फूल नजर आथें। भादों घरी पिंयर गुलमोहर कस हिंगलाज घलो गली, खोर, डहर, बाट मा माते रहिथे, दूनो के फूल घलो लगभग एके दिखथें, अंतर रथे ता सिर्फ ऊंचाई के। एक ऊँच पेड़ आय अउ एक छोट झाड़ीनुमा पौधा। नदिया नरवा तरिया अउ मेड़ पार म उगे बेसरम अउ धतुरा के पौधा घलो भादो मा हल्का गुलाबी रंग मा मनमोहत मुस्कावत दिखथें। एके गुच्छा मा कतको रंग ल समेटे मोकैया के फूल जघा जघा मुचमुचावत, भौरा तितली संग मनखे मनके जिया ल ललचावत दिखथे।

                 फुले कउहा,कसही,बोइर,जाम अउ छोट फर धर झूलत अमली भादो मा मनभावन लगथे। पड़री पड़री तिली के फूल, पिवरी पिवरी फूल धरे बम्हरी, मूँगेसा, फूट, कोलिहापुरी अउ बोदेला खेतखार मा भादो मास भर मगन रहिथे। कीमती झुमका कस शिव बम्भूर के मनभावन फूल घलो दिखे बर लग जथे। भादो मा पानी मा बूड़े धान, फूल झराके पोटराये बर लगथे। खेत के मेड़ मा तिली संग जागे पटवा के फूल जउन देखे होही ते भागमानी आय, देखे मा ही ओखर फूल के सुघराई समझ आही, लिख के कहना मुश्किल हे। कनिहा भर बाढ़े काँदी बन कचरा अउ लाम लाम लामे बेल बूटा देखत मन मा उमंग हमा जथे।


*घर अउ बारी-बखरी*

आसाढ़  मा बोय साग भाजी भादो मा फूल फर धरके नार बियार मा झूलत रथे। रमकलिया के छोट पौधा मा पिवरी सफेद अउ लाली रंग के मेल ले बने मनभावन फूल अइसे लगथे मानो कोनो पेंटर ह कागज मा उकेरे हे। मनमाड़े घपटे तोरई,करेला,कुंदरू,कोमढ़ा,पोपट,खेकसी घलो फूल फर के इतरावत रथे। भादो मा थोर थोर साग भाजी बारी बखरी ले निकले बर लग जथे, चारो कोती लामे नार बियार, अउ बाढ़े भाजी पाला ल देख मन झूमर जथे। काँद काँदी म घलो फूल आ जाय रहिथे। घर अउ बारी बखरी मा फुले बैजंत्री,चिरइयाँ के किसम किसम के रंग जिया ल खींच लेथे। नीला नीला फुले सूँतई के फूल(अपराजिता) नार बियार सुद्धा देवारी घरी लटके कोनो झालर बरोबर मनभावन लगथे। घर के दुवारी मा घउदे दसमत, कागज फूल(फाटक फूल), माते सादा सोहागी, मनमाड़े घउदे गोंदा अउ मोंगरा बरसा के पानी ले लड़ भिड़ के भादो मा खुलखुल खुलखुल हाँसत दिखथें,मानो जीत जे खुशी मनावत हें।


*कुवाँ,तरिया,नरवा*

आसाढ़ सावन भर पानी पी पी के भादो मा तरिया कुवाँ नरवा कोटकोट ले अघाये दिखथें। पार, पचरी, तट,तीर सब धोवा मँजा के उज्जर दिखथें। पानी पाके मछरी,मेचका मनमाड़े मगन होके तँउरत दिखथे। रंग रंग के कमल कोकमा तरिया ढ़ोंड़गा के सुघराई ला बढ़ावत दिखथें। बरसा के पानी घरी मतलाये कुवाँ,तरिया, नरवा के पानी भादो के आरो पाके फरिहर होय बर लग जथे, पानी भीतर  तँउरत मछरी केकरा घलो चकचक ले दिखेल  धर लेथे। उबुक चुबुक करत घाट घठोंधा राहत के साँस लेवत, मनखे मन ला अपन ऊपर चढ़े नाहत-खोरत देख मगन रहिथे। तरिया नरवा भराय पानी ला पइसा बरोबर हिसाब किताब लगा के जतके जरूरी हे ततके बोहावत दिखथे। कहे के मतलब जादा होथे तभे उलट भागथे, नही ते टिपटिप ले भरे रहिथे। 


                तिहार बार के मजा उड़ावत झूमत नाचत गावत, रंग रंग के रोटी पीठा खावत, काबा काबा काँदी डोहारत, खेत खार के मुही पानी बाँधत फोड़त, धान पान ल निंदत चालत, नजर भर निहारत, किसम किसम के भाजी पाला खावत, पेड़-पात, फूल-फर के सुघराई देखत देखत भादो कब बुलक जथे पतच नइ चले। अन्तर मन ले देखे,सोचे,गुने, सुने अउ नजर भर निहारे जाय ता,हमर हिंदी पंचाग के छठवा महीना भादो बड़ मनभावन हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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