लोकगाथा ढेला पाना के काव्य रूपांतरण
*ढेला-पाना*
नानी दादी कहिन कहानी, सुन ले बेटा मोर जुबानी।
एक खेत के माटी-ढेला, पेड़-पान ले बदिस मितानी।।१
बड़का ढेला बड़का पाना, बाँटे सुख-दुख नाता जोरिन।
जीबो-मरबो दूनो कहिके, दया-मया के खाता खोलिन।२
मेड़ पार के रुख के पाना, हवा गरेरा मैं डर्राथँव।
उठिस थोरको हवा कहूँ तब,एती ओती मैं उड़ जाथँव।३
हवा-गरेरा जब-जब आही, ढेला मोला लाद बचाबे।
दुख आए गोहार लगाहूँ, आरो पाके दउँड़त आबे।४
सुन के अतका गोठ पान के, संसो झन कर ढेला कहिथे।
राख भरोसा तैं हर संगी, हवा-गरेरा ढेला सहिथे।५
आँसू ढारत मन के पीरा, मेड़ पार के ढेला कहिथे।
सुरता रखबे पाना संगी, गिरथे पानी ढेला बहिथे।६
पाना सुनत गोठ रोवासी, कहे बचाहूँ मैं जिनगानी।
लड़-भिड़ जाहूँ तोरे खातिर, आवय चाहे कतको पानी।७
हली-भली ले दूनो जीबो, बने-बने सब सोंचत रहिबो।
पोंछ एक-दूसर के आँसू, जिनगी के दुख-पीरा सहिबो।८
आइस समे एक दिन अइसे, नरवा नदिया छलकत भागे।
जमके बरसिस बादर पानी, मति तब ढेला के छरियागे।९
देख मुसीबत ला ढेला के, पाना बपुरा तोपिस ढाँकिस।
मिलिस सहारा पाना के जब, घूरत-घूरत ढेला बाँचिस।१०
कुछ दिन बीते पाछू मा फिर, हवा-गरेरा अब्बड़ आइस।
रहि-रहि के जब उठिस बरोड़ा, पाना तब ढेला ल बलाइस।११
ढेला सुन के ओखर आरो, दउँड़त आइस पान-दुआरी।
रखिस दबा के ढेला पाना, कर नइ सकिस कुछु हवा भारी।१२
हवा गरेरा जइसे भागिस, खुशी मनाइस ढेला पाना।
गला मिलिन हे जिनगी पाके, मिलना नइ हे जाना-माना।१३
ढेला पाना बदे मितानी, बइरी मन के आँखी गड़गे।
टोरे बर दूनो के जोड़ी, आज हाथ धो पाछू पड़गे।१४
रझ-रझ, रझ-रझ पानी आइस, सँघरा आइस हवा गरेरा।
घूरे धरलिस माटी-ढेला, उड़े लगिस हे पान-पतेरा।१५
दूनो मितान सोचिन सँघरा, कइसे बाँचय ए जिनगानी।
घड़ी परीक्षा के अब हावय, कइसे निभही हमर मितानी।१६
आज मनेमन दूनो ठाने, हितवा बर जान गँवाना हे।
सोचत हावँय बदे मितानी, कइसे के हम ल निभाना हे।१७
हवा-गरेरा पानी सँघरा, गदबिद गदबिद आइस भारी।
संकट म घिरे ढेला पाना, रक्षा करय ओसरी-पारी।१८
हवा-गरेरा बाढ़े जब-जब, पाना ऊपर ढेला आवय।
गिरे लगय जब पानी जम के, पाना ले ढेला तोपावय।१९
घेरी-बेरी ढेला लादय, उड़त-उड़त तब पाना बाँचय।
जान बचाए बर पाना के, ढेला बपुरा ताकत जाँचय।२०
जइसे बूँद परय पानी के, पाना झटकुन ढेला तोपय।
पानी ले ढेला के जिनगी, बाँचय कइसे पाना सोचय।२१
घात बिटोवय हवा-गरेरा, बोहावय पानी के रेला।
आगू-पाछू ऊपर आवँय, पाना-ढेला खेलत खेला।२२
पारी-पारी भींजत ढेला, धीर लगा के पूरा घुरगे।
हवा संग तब पाना उड़गे, ढेला पाना किस्सा पुरगे।२३
दादी-नानी बात बताइन, बइरी मन ले बाँचे राहव।
कोन जनी कब भारी परही, का ताकत हे सोचे राखव।२४
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हवै ओसरी पारी जाना, जिनगी के दिन चार।
हवा-गरेरा पानी जइसन, बिपत देख झन हार।।
ढेला-पाना बदे मितानी, कहे मितानी सार।
माटी तन माटी ले मिलथे, तब होथे उद्धार।।
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पोखन लाल जायसवाल
पलारी जिला-बलौदाबाजार छग.
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