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*डोकरी अउ अगास* --------------------------
पांच छत्तीसगढ़ी लोककथा -रामनाथ साहू
1. पान अउ ढेला
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ये जगह म ,आज खेत नइये। बहुत पहिली...बहुत- बहुत पहिली,येकरा एक ठन खेत रहिस।येकर संग म अउ बहुत अकन ,खेत रहिन ।
खेत रहिन, तब रुख- राई मन रहिन ,एकदम गझिन...सघन वन ..अइसन । अउ जब रुख राई मन रहिन ,तब पान-पतइ मन गिरबे करें । खेत म माटी के एकठन ढेला रहिस ।वोकरे तीर म एक ठन चौड़ा थारी असन पान हर आ गिरीस। दुनों के दुनों ,एक दूसर ल पसन्द करे लॉगिन । अउ आपस म सुख-दुख गोठियाय लॉगिन । धीरे- धीरे वोमन के मित्रता हर परवान चढ़े लागिस,अउ वोमन आपस मितान घलव बद डारिन ।मितान बनिन।संग म जिये मरे के कसम खाईन ।
एक दिन बड़ जोर से बड़ौरा आइस,अउ पान हर उड़ियाय कस करिस। तब ...मोर रहत ले तुंहला कुछु नइ होय मितान...कहत ढेला,पान उप्पर चढ़ के बोला लदक दिस । पान उड़ियाय ले बांच गय । पान वोला हृदय कमल ले आभार दिस ।
अइसनहेच एक दिन रटा -तोड़,मूसलाधार वर्षा होइस । ढेला के मूड म एक बूंदी गिरीस के,पान हर तुरतेच वोकर उप्पर म चढ़ गिस ।ढेला हर घूरे ले बांच गइस ।
अइसन सुख -दुख म एक दूसर के काम आवत,वोमन बड़ दिन ल हाँसी -खुशी रहिन । फेर एक दिन,विधाता के लीला...!गर्रा-धुंका, आंधी-तूफान...बरसात...सकल पदारथ एके संग म आइन। ढेला हर कूद के पान उप्पर चढ़ गय।फेर पानी के मोठ... मोठ बूंदी ले वोकर अङ्ग -भङ्ग होय लागिस।वोहर गले के शुरू हो गय रहिस । मितान...!मोर रहत ल तुंहला कुछु नइ होय, कहत पान, वोकर उप्पर चढ़ गय।तभे जोर से गर्रा वोला,उड़ियाय लागिस।मितान... मोर रहत ल तुंहला कुछु नइ होय ।ढेला ललकारिस अउ पान उप्पर फेर चढ़ गय। कभु पानी...कभु ....गर्रा -धुंका।कभु पान तरी,ढेला उपर त कभु ,त कभु पान उप्पर म ढेला ल बचावत । पान चिथात गिस, अउ ढेला घुरत...!फेर जीवन अउ मृत्यु के ये जंग ल दुनो मिल के बहादुरी के साथ लड़त, छेवर म पान चिथा-पुदका के उड़ गय, अउ अपन मित्र ल बचाते -बचात ढेला घूर गय ।
अउ ये कत्था हर पुर गय ।
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2.चोर अउ खटिया
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अगास मा एक ठन डोकरी डोकरा मन के जोड़ा रहत रहिस। डोकरा हर बढ़ाई रहीस।फेर जइसन चलागत अउ हाना हे -
बइगा के डौकी ठड़गी के ठड़गी
बढ़ई के डौकी बर भुईंया गोदरी।
कहे के मतलब हे बइगा हर अपन घरवाली ल जतने नई सकत ये अउ वोहर निपूती हे, बाल बच्चा नई ये। अउ बढ़ई के सुवारी हर कभु खटिया नई पाय। वोहर भुइयां म सुतथे।
तब येहू डोकरी भुईंया म सुते। भुईंया म सुते ले वोकर कनिहा पिराय लगिस। अइसन म एक दिन वो डोकरी हर अपन गोसान बढ़ई पर भड़क गए। भड़क का गय,वोहर तो अब बढ़ई डोकरा ऊपर भीड़ गय रहिस।वोकर चुन्दी मुड़ी ल नीछत रहिस। बढ़ाई थर थर थर थर काँपत आन बुता ला छोड़ के डोकरी बर खटिया बनाय बर लग गय।
तब वोहर लकड़ी मन ला छोले करोय। अइसन करे ले जउन बुरादा अउ छिलपा निकलिस वोहर अगास म बगर गय। अउ आज ले घलव वो छिलपा बुरादा मन बगरे दिखथें(आकाश गंगा -The Milky Way)। बढ़ई के कुटेला (एक तारा मंडल ) हर दिखथें। सब जगमग जगमग चमकत रथें।
खटिया बन गय। आज डोकरी मजा के खटिया म सूत गए। तभे घर म तीन झन चोर मन पेलिन। वोमन डोकरी के खटिया ला उठा के ले जात रहिन। लेकिन खटिया के खुरा रहे चार और चोर रहीन तीन। एकर सेती खटिया हर डगमग डगमग डोले लगीस। एकर ले डोकरी जाग गय। अउ उतर के चोर मन ल सुध के बुतात ल ठठाइस। अउ एकठन लंबा डोर म वोमन ल खटिया के एकठन खुरा म। बांध दिस। आज ले वो तीनो चोर मन खटिया के वो खुरा ले बंधाय हें।
( येहर हिंदी वांग्मय के सप्तर्षि -क्रतु ,पुलह, पुलत्स्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ठ अउ मारीचि आंय । अंग्रेजी वांग्मय के Ursa Major ये। वशिष्ठ के तीर म -मंझ के चोर तीर म एकठन नानकुन तारिका दिखथे।येहर वशिष्ठ पत्नी -अरुंधती ये। जउन येला देख लेथे, वोकर नेत्र ज्योति बढ़िया माने जाथे।)
3.कहाँ जात हस बिलई
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"कहाँ जात हस बिलई...?"
"बिरईन* काटे ।"
"बिरईन ल का करबे बिलई ?"
" चोरिया गाँथ हाँ ।"
" चोरिया ल का करबे बिलई ?"
"मछी धर हाँ ।"
"कइसे मछी धरबे बिलई ?"
"छापा छींचहाँ...!"
"कइसे छापा छींचबे बिलई ?"
"खुपुल- खापल खुपुल -खापल ..."
"मछी धरके का करबे बिलई ? "
"वोमन ल राँधहाँ...!"
"कइसे राँधबे बिलई ?"
"चनन मनन चट के खाय के बेर गट ले..." "मछी ल रान्ध के का करबे बिलई ?"
" खाहाँ गप गप ले "
"खा के का करबे बिलई ?"
"राजा के कोठी के गोड़ा तरी सुतहाँ !"
"सुत उठ के का करबे बिलई ?"
" नरियहाँ...!" "कइसे नरियाबे बिलई...?" "म्याऊँ...म्याऊँ ...भाकू...उंई... उंई भाकू...उंई... उंई...!
"बस ...बस...बस...! "
4.डोकरी अउ अगास* ------------------------------
अभी तो अगास हर कतेक न कतेक धूर म हावे । पहिली अइसन नि रहिस । पहिली अगास हर मनखे के अमरउ म रहिस । मनखे मन के, जइसन मन लागे तइसन अगास के तारा -जोगनी मन ल छू लेंय । वोमन ल एती - वोती हलचल कर लेंय । वोमन ल अपन मन मुताबिक सजा लेंय । सुरुज हर घलव तिरेच ल नाहके। वो बखत वोहर थोर -थोर सुलगे के शुरू होय रहिस , तेकर सेती वोमे कम अंजोर अउ अउ कम गर्मी रहिस ।
आन मनखे मन के पीठ हर बने रहिस फेर डोकरी के पीठ हर कुबरी हो गय रहिस । एक दिन वोहर अपन ठूठी बहिरी ल धरके अंगना ल बाहरत रहिस खुरूर... खुरूर...!
तभे वोकर पीठ के कूबड़ ल अगास हर छू दिस ।डोकरी ल पिराईस तब वो रिस म भर गय अउ अगास ल अपन ठूठी बहिरी के मूंठ म मार दिस अउ कहिस -जा रे... जा ! बहुत धूर छिंगल जा !
तब ले अगास हर बड़ धूर छिंगल गय वोहर भाग पराइस ।
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5.चंदा -सुरुज
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एकझन सोनारिन डोकरी रहिस। वोहर बनेच सियान हो गय रहिस, तभो ले वोकर हाथ म विक्कट अकन कलाकारी हर भरे रहिस । वोहर बनेच झन लइका- पिचका मन ल जोरे रहे अउ वोमन ल खेल -खेलवारी म, सोन अउ चांदी के गहना बनाय बर सिखो देय । लइका- पिचका मन वोला सदाकाल झामेंच रहंय।
सोनारिन डोकरी रोज खुद बड़ अकन गहना बनाय। अउ वो बने गहना मन ल अगास म ,खूंटी लगा के टाँगत जाय। वोकर वो गहना मन अगास म झिकिर- मिकिर करत चमकत रहंय।
एक दिन डोकरी सोन ले गहना बनात-बनात थक गय, फेर अब ले भी बनेच बड़े सोन के लोंदा हर बांचेच रह गय रहिस। तब वो डोकरी हर ,रिस म वो लोंदा ल पूरब कोती फेंक दिस... जा... रे... कहत। तब वोई लोंदा वो गोला हर पूरब दिशा म जाके जगमग जगमग बरे लागिस अउ वोई हर सुरुज बन गय।
आगु दिन डोकरी हर चांदी के गहना बनात- बनात फेर थक गिस,तब फेर वोहर बाँचे चांदी के लोंदा ल पच्छिम दिशा म फेंक दिस... जा रे कहत, तब वो चांदी के लोंदा वो चांदी के गोला हर चंदा बन गय।
अब डोकरी सोनारिन करा सोन- चांदी सिरा गय,तब वोहर फुर्सत ले सुतिस। वोकर नाक घरर ...घरर बाजिस।तब सबो लइका -पिचका मन ,ताली बजात अपन घर कोती भाग पराइन।
फेर वो सोन अउ चांदी के गोला मन रोजेच येती ल वोती ढुलत हें अउ सोनारिन के बनाय अउ सजाय सबो गहना मन खूंटी म टँगाय हें। ये गहना मन ल अपछरा (अप्सरा)मन , अपन मन के मुताबिक पहिन लेथें तब फिर निकाल के जस के तस टांग देथें।
फेर खूंटी नई होय के सेती ये सोन अउ चांदी के गोलवा मन पूरब ले पच्छिम ढुलत रहिथें।
रामनाथ साहू
देवरघटा(डभरा)
जिला -सक्ती (छत्तीसगढ़)
-495688
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