Friday 30 September 2022

जनकवि कोदूराम "दलित" के काव्य मा नारी विमर्श .....


 

जनकवि कोदूराम "दलित" के काव्य मा नारी विमर्श .....


(55वीं पुण्यतिथि म शत शत नमन)


        देश के बड़का साहित्यकार मन बेरा-बेरा म स्त्री विमर्श के बात अपन गद्य/पद्य म कहत रहे हवँय। इही क्रम म छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य साहित्यकार अउ जनकवि कोदूराम "दलित" मन घलाव अपन बात कहे हवँय। दलित जी गाँव-गँवई ल जिये रहिन अउ छत्तीसगढ़ ल करीब ले देखे रहिन येकर सेती उन जब अपन साहित्य म नारी विमर्श के बात करथें तब "छत्तीसगढ़ी नारी" उँकर लक्ष्य म होथे। आजादी के पहिली अउ आजादी के बाद लिखे उँकर काव्य मा "छत्तीसगढ़ी नारी" ला विशेष स्थान मिले हवय। छत्तीसगढ़ के नारी के दशा अउ उत्थान ल दलित जी विशेष रूप ले रेखांकित करे हवँय।

             हमर सरकार जेन प्रौढ़ शिक्षा के बात आज करथें वोला दलित जी आजादी के पहिलीच कहि डरे रहिन । उँकर मानना रहिस कि प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम ले महिला मन ला घलो पढ़े लिखे के अवसर मिलना चाही।  चूँकि उन शिक्षक भी रहिन तेकर सेती प्रौढ़ शिक्षा के महत्ता ल उन बखूबी समझय । प्रौढ़ शिक्षा के बात ल दलित जी कतेक सहजता ले कहि दँय येकर चित्रण देख के आप अचंभित हो जाहू। गॉंव म प्रचलित नाम जेन ठेठ छत्तीसगढ़ी के परिचायक हवय, के गज़ब के प्रयोग दलित जी मन करे हवँय। गाँव के जम्मो महिला चाहे नता म कोनो रहँय कोनो भी प्रौढ़ शिक्षा के लाभ ले वंचित नइ होना चाही अइसन उँकर सोच रहिस। उँकर चौपाई छ्न्द देखव:-

सुनव सुनव सब बहिनी भाई

तुम्हरो बर अब खुलिस पढ़ाई।

गपसप मा झन समय गँवावव

सुरता करके इसकुल आवव।।

ए ओ सखाराम के सारी

हगरू टूरा के महतारी।

मंगलू के मँझली भौजाई

भुरुवा मंडल के फुलदाई।।

हमर परोसिन पुनिया नोनी

पारबती मनटोरा सोनी।

सुनव जँवारा सुनव करौंदा

तुलसीदल गंगाजल गोंदा।।

नंदगहिन सातो सुकवारो

जम्मो झिन मन पढ़ लिख डारो।

ए गा भाई ददा बिसाहू

रतन गउँटिया माधो दाऊ।।


आजादी मिले के बाद लोकतंत्र के स्थापना हमर देश म होइस। संविधान मा सब ला समानता के अधिकार मिलिस। हर क्षेत्र म पुरुष के समान नारी ल भी समानता के अधिकार मिलिस। दलित जी के दूरगामी सोंच देखव कि आजादी के परब म जब झण्डा फहराए बात आथे तब दलित जी नारी के सहभागिता के बात करथें। गाँव के जम्मो नारी मन मगन हवँय अउ लोकतंत्र के तिहार ल मनावत हवँय :- 

आइस हमर लोकतन्तर के, आज तिहार देवारी।

बुगुर-बुगुर तैं दिया बार दे, नोनी के महतारी।।


(ये पद मा दलित जी जउन दिया के बात करिन हें, उँकर इशारा ज्ञान के अँजोर बगराये ले हवय। नारी मन लइका के पहिली गुरु होथें। ज्ञान अउ संस्कार के अँजोर उही मन बगरा सकथें।)


सुत-उठ के फहराइस बड़की-भौजी आज तिरंगा।

अस नांदिस डोकरी दाई हर, कहिके हर-हर गंगा।।

(इहाँ बड़की भौजी नवा पीढ़ी के प्रतीक आय। बिहाव के बाद संयुक्त परिवार ल सँवारे अउ बढ़ाये के जिम्मेदारी बड़का भौजी ल दिए जाथे। देश चलाये के जिम्मेदारी घलाउ नवा पीढ़ी के हाथ म आना चाही। डोकरी दाई इहाँ जुन्ना पीढ़ी के प्रतीक हवय।)


ठुमुक-ठुमुक मनटोरा नाचय, पुनिया ढोल बजावय।

बड़ निक सुर धर जन गण मन के, फगनी टूरी गावय।।

(गणतंत्र परब के उछाँह मा नारी मन घलो झूमत-गावत हवँय।)


घर-गिरस्ती के संगे संग नारी के भूमिका अन्नपूर्णा असन होथे। दलित जी राँधे-खवाये के जिम्मेदारी के बात ल सुग्घर हास्य म कहिन हें :- 

हमर सास हर ठेठरी खुरमी, भजिया बरा पकावय।

लमगोड़वा भउजी के भाई, चोरा-चोरा के खावय।।


खेती-किसानी तो छत्तीसगढ़ के पहिचान आय। ये काम मा श्रमदान करइया नारी मन सज-सँवर के जाथें। इही बात ल खास रेखांकित करत उँकर पंक्ति देखव :-

चंदा, बूंदा, चंपा, चैती, केजा, भूरी, लगनी।

दसरी, दसमत, दुखिया,ढेला,पुनिया,पाँचो, फगनी।

पाटी पारे, माँग सँवारे,हँसिया खोंच कमर-मा,

जाँय खेत, मोटियारी जम्मो,तारा दे के घर- मा।


जब धान-लुवाई के बेरा होथे तब घर भर के मनखे जुरमिल के खेत म श्रम करे बर जाथें। अइसन बेरा म युवा नारी के उछाँह ला चित्रित करत दलित जी अपन गीत म लिखथें :- 

छन्नर-छन्नर पैरी बाजय,खन्नर-खन्नर चूरी।

हांसत, कुलकत,मटकत रेंगय,बेलबेलहिन टूरी।।


उँहे दूसर कोती लैकोरहिन मन घलो श्रमदान करे ले पाछू नइ घुँचय। पुरूष मन संग कंधा ले कंधा मिला के चलना उँकर नियति हवय। लैकोरहिन के दशा के मार्मिक चित्रण देखव :- 

लकर-धकर बपुरी लैकोरी, समधिन हर घर जावय।

चुकुर-चुकुर नान्हें बाबू-ला,दुदू पिया के आवय।।


संयुक्त परिवार मा नारी के सहभागिता ल दलित जी अपन गीत म बखूबी लिखथें -

दीदी लुवय धान खबा खब  ,भाँटो बाँधय भारा।

अउँहा-झउँहा बोहि-बोहि के, लेजय भौजी ब्यारा।


चूँकि दलित जी गाँधीवादी विचारधारा के रहिन अउ कुटीर उद्योग के महत्ता ला उन जानत रहिन। कुटीर उद्योग ले नारी अर्थोपार्जन करके अपन आजीविका चला सकथे अइसन गंभीर बात ल केवल दलित जी ही लिख सकथे :-

ताते च तात ढीमरिन लावय,  बेंचे खातिर मुर्रा।

लेवँय दे के धान सबो झिन, खावँय उत्ता-धुर्रा।।


दलित जी अपन साहित्य म नारी विमर्श केवल बालिका अउ युवती मन के ही नइ करे हवँय भलुक सियानिन मन के योगदान ल घलाव उन सहजता ले स्वीकार करे हवँय। सियान नारी के मया देखव सार छन्द मा :-

रोज  टपाटप मोर डोकरी-दाई बीनय  सीला।

कूटय-पीसय, राँध खवावय, वो मुठिया अउ चीला।।


देवारी के तिहार म महिला मन के काम काज अउ जिम्मेदारी दूनो बाढ़ जाथे। दलित जी के समय म खादी के बड़ महत्ता रहिस। उन खुद भी खादी पहिरँय अउ लोगन ला प्रेरित घलो करँय। उँकर मानना रहिस कि खादी के उपयोग ले देश के अर्थव्यवस्था सुधरही अउ लोगन ल रोजगार भी मिलही। तभे तो खादी के अनिवार्यता ल दलित जी नारी के माध्यम ले सुग्घर ढंग के कहिथें :-

दसेरा देवारी के तिहार-बार आत हवै

जाव हो बाबू के ददा, खादी ले के लाहू हो

मोर बर लहँगा पोलखा अउ नोनी बर

तीन ठन सुन्दर फराक बनवाहूँ हो।

बाबू बर पइजामा कमीज टोपी अउ पेन्ट

बण्डी कुरता अपन बर सिलवाहू हो

धोती लगुरा अँगोछा पंछा उरमार झोला

ओढ़े बिछाए के सबो कपड़ा बिसाहू हो।


नवा जमाना के नारी के संबंध मे दलित जी के सोंच बहुत ऊँचा रहिस। नारी ला उन सबो प्रकार ले सक्षम देखना चाहत रहिन। उँकर सोंच रहिस कि नारी अइसन होय जेन कलजुगी पुरुष के अत्याचार के मुँहटोर जवाब दे सकँय। दलित जी नारी के स्वावलम्बन के पक्षधर रहिन। उँकर एक कुण्डलिया छन्द देखव :-

खटला खोजव मोर बर, ददा बबा सब जाव

खेखर्री साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव।

बघनिन साहीं लाव, बिहाव तभे मँय करिहौं

नइ तो जोगी बन के, तन मा राख चुपरिहौं।

जे गुंडा के मुँह मा, चप्पल मारय फट-ला

खोजव ददा बबा तुम जाके,अइसन खटला।।


दलित जी नारी ल सुरता कराथें कि तुमन शक्ति के अवतार आव। तुँहर काम केवल चूल्हा चौका तक ही सीमित नइ हे, बखत परे मा देश खातिर झाँसी के रानी जइसन घलो बनना हे। उँकर ये कविता नारी म राष्ट्रीय चेतना ल जागृत करे के काम करे हवय :- 

घर मा खुसरे कब तक ले रहिहौ बहिनी हो?

अब तुम्हू दिखावौ चिटिक अपन मर्दानापन।

तुम चाहौ तो स्वदेश बर सब कुछ कर सकथौ

झाँसी वाली रानी के सुरता भूलौ झन।।


नारी के अनुनय-विनय ले पलायन रोके म मदद मिल सकत हे ये बात के अहसास दलित जी रहिस तभे तो नारी के माध्यम ले अपन मन के बात कुण्डलिया छ्न्द मा दलित जी कहिथें :-

मोला घर मा छोड़ के, झन जा कोन्हों गाँव

येकर खातिर मँय धनी, तोर परत हँव पाँव

तोर परत हँव पाँव, बनाबे झन अब बिरहिन

गजब तड़फना पड़थय मोला रात और दिन

परन करे हँव - "नइ छोड़वँ मँय कभ्भू तोला"

जाबे तो तँय अपन संग ले जाबे मोला ।।


नारी के राष्ट्र-प्रेम अउ सहकारिता के संदेश ला दलित जी राखी जइसन पावन तिहार ल माध्यम  बना के लोगन तक पहुँचाये के काम करिन। बहिनी के रूप म नारी के राष्ट्रीय-भावना देखव :- 

सावन के बड़ निक राखी के तिहार आगे

राखी बँधवा ले गा मयारू मोर भइया।

तहीं मोर मइके अउ हितवा तहींच एक

तहीं मोर निर्बल के किसन कन्हइया।।

नी माँगौं मैं पैसा कौड़ी, नी माँगौं जेवर जाँता

नी माँगौं मैं हाथी घोड़ा, नी माँगौं मैं गइया

एके चीज माँगत हौं आज सहकारिता से

तहूँ पार करे लाग, भारत के नइया।


महतारी अउ बेटा के सुग्घर संवाद जेमा महतारी अपन बेटा ल पढ़े लिखें बर प्रेरित करत हे :-

दाई ,बासी  देबे कब?

बेटा पढ़ के आबे तब ,

पढ़ लिख के दाई, 

मैं ह हो जाहूँ हुसियार।

तोला देहूँ रे बेटा, 

मीठ-मीठ कुसियार ।

खाबे हब-हब

मजा पाबे रे गजब 

बेटा पढ़ के आबे तब।।

दाई,बासी  देबे कब ?


          दलित जी के कविता सुग्घर,सहज,सरल अउ पढ़े सुने म निक लगय। कविता /छंद मा हास्य के संग व्यंग्य घलो अद्भुत रहय। उँकर संदेशप्रद रचना आज घलो ओतके प्रासंगिक हवय जतका उँकर बेरा रहिस। छत्तीसगढ़ी काव्य मा दलित जी ला नारी विमर्श के प्रतिनिधि कवि कहे मा मोला रत्ती भर संकोच नइ हे। उँकर नारीवादी लेखन से नारी के महत्ता निश्चित रूप से प्रतिष्ठित होय हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

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