Thursday 8 September 2022

लोकजीवन अउ लोककथा*

 *लोकजीवन अउ लोककथा*


        लोक के जब कभू गोठ करथन त इही धियान आथे कि लोक अउ परलोक दूनो होथे। लोक माने जिहाँ हम रहिथन। ए हिसाब ले लोक के मतलब संसार होथे। एक ठन शब्द लोकजीवन घलव होथे। ए शब्द डहन बिचार करथन त पाथन के लोक के मतलब लोगन होथे। लोकजीवन लोगन के आचार-विचार ल सँघेरे भाव ल प्रगट करथे। परलोक नाँव ले समझ म आथे पर के लोक। दूसर जीव के ठिहा, जिहाँ उँकर बासा रहिथे। गो-लोक, पाताल लोक, स्वर्गलोक...। 

      अभिन गोठ लोकजीवन अउ लोककथा के ऊपर करे जाय। जिनगी म मनखे सूते के पहिली ले कमावत रहिथे। घर-बन के बूता माढ़े रहिथे। सिराय च के नाँव नइ लय। एक बूता सिलहोय नइ पाय दूसर बूता ठाड़ हो जथे। अपने जिनगी म झाँक लन, एकर परछो हो जही। खेती बारी के बूता तो अउ सिरतोन आय। तिहार बार घलवम इही च देखे मिलथे। ए ठन तिहार के जोखा पूरा होथे त दूसर तिहार के अगोरा म जोखा करई शुरु हो जथे। ए जिनगी के यात्रा म कतको डहन चले जावत हे। सबो म कोनो न कोनो पड़ाव आबे च करथे।

        इही तिर मनखे मुँहाचाही गोठबात करत मन मढ़ाय के बूता करथे। मनोरंजन के उदिम करथे। जे म गीत गाथे नइ त किस्सा-कहिनी कहिथे। इही किस्सा कहिनी लोगन के बीच मुअखरा सरलग चलत रहिन होही। जउन ह एक ले दूसर पीढ़ी म आगू बढ़त गिन होही। जेन ल हमू मन सुने हन। फेर अब तो भाषा वाचिक ले लिखित रूप म आगे हे। अइसन म लोगन के बीच चलइया मुअखरा गीत कहानी कथा मन ल लिखना म सहेजे के जरूरत हावे। नइ त सियान मन संग जम्मो लोकगीत, लोकगाथा अउ लोककथा माटी म मिल जही। अभिन के बेरा म हमन ल चेतलग होके ए बूता के बीड़ा उठाय ल परही। तभे तो का पुरखौती ल नवा पीढ़ी ल दे पाबोन।

        लोककथा तइहा के बेरा म लोगन के नैतिक, सामाजिक, चारित्रिक, आँचलिक अउ कल्पना शक्ति के विकास करे के खातिर कहे सुने जावत रहिस होही, अइसे मोला लागथे। खासकर के नान्हेंपन म। अइसे भी छुटपन म मिले संस्कार जिनगी भर काम आथे। लोककथा मन म जादाकर के चारित्रिक निर्माण के संग लइकामन के मन बहलाय बर सियान सियानिन मन सुतत-बइठत सुनाय। संगेसंग लइकामन के रखवारी करँय। अब तो जिनगी हम दू अउ हमर दू के घानी म पिसावत हे। सियान मन के पूछारी नइ हे। विज्ञान के जुग आय कहिके नाती नतरा मन खिल्ली घलव उड़ाय लगथे। विज्ञान जरूरी हवय फेर अनभो घलव तो चाही। जौन सियान-सियानिन मन ले मिलथे। अइसन म लोककथा मन ल लिखित सरूप दे ले समाज म दिनोंदिन गिरत नैतिकता अउ चारित्रिक पतन न रोके जा सकथे। मानवीय गुण के संरक्षण हो सकही।

          लोकजीवन म लोककथा के बड़ महत्तम रहे हे। लोगन आपस म हिरदे ले मिले। सुख दुख म बइठँय। अइसे नइ हे के आज नइ बइठँय। आज तो कोनो नेग सरीख लोगन मिलथे अइसे कहिनउ जनाथे। लोककथा मन म छुपे संदेश लोकजीवन म नवा ऊर्जा अउ आपसी मेलजोल ल बढ़ोअइया बूटी आय। टॉनिक आय। एला बचा के रखे म हमरे फायदा हे। लोकजीवन सुखमय रइही, असली सुख अउ शांति ल अनभो करही, अइसे लगथे।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला बलौदाबाजार छग

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