Saturday 17 September 2022

साहित्यिक तर्पण ****** पंडित दानेश्वर शर्मा

 






साहित्यिक तर्पण 

 ****** 

      पंडित दानेश्वर शर्मा 

   "आएगी रात मुंह में सियाही मले हुए , 

   रख देगा दिन भी हाथ में कागज़ फटा हुआ " 

          फेर वो फ़टे हुए कागज़ मं सन् 1955 ले कविता लिखावत गिस ...लिखत चलिन संगे संग कवि सम्मेलन में मं सस्वर काव्य पाठ घलाय तो करत रहिन त ओ समय मं छत्तीसगढ़ के पहिली कवि रहिन दानेश्वर शर्मा जिंकर ग्रामोफोन रिकार्ड्स अउ कैसेट्स सबले बढ़िया कम्पनी जइसे हिज मास्टर्स वॉयस ( कोलकाता ) , म्यूजिक इंडिया पॉलीडोर ( मुंबई ) , सरगम रिकॉर्ड्स ( बनारस ) अउ वीनस रिकार्ड्स मुंबई  मन बनाये रहिन ...। 

लगभग चालीस साल पहिली मंजुला दास गुप्ता गाए रहिन ....

" मइके ल देखे होगे साल गा , भइया तुमने निच्चट बिसार देव , 

 बहिनी के नइये खियाल गा , कनकी कस कइसे निमार देव । " 

      बेटी कतको धन दोगानी , खेत खार वाला घर बिहाव होके जावय फेर बछर पूरे ले तीजा आथे त मइके के सुरता मं सुसक डारथे । नारी हृदय के दशा के जतका भाव भरे वर्णन करे हें दानेश्वर शर्मा ओतके करुण स्वर मं गाए हें मंजुला दास गुप्ता ...जबकि उन बंगला भाषी महिला रहिन । 

     सन् 1966 मं लिखे "बेटी के बिदा " आजो पढ़इया , सुनइया के आंखी मं आंसू भर देथे । उन सफ़ल मंचीय कवि रहिन , उंकर हांसी मिलइया , जुलइया के मन के दुख पीरा ल दुरिहाये मं भी सफ़ल रहिस । छत्तीसगढ़ी कविता के दूसर उन्मेष काल के  लोकप्रिय कवि उनला ही कहे जा सकत हे । ए बात मं दू मत नइये कि उंकर जादा छत्तीसगढ़ी रचना नइ मिलय ...तभो जतका लिखे , प्रस्तुत करे हें ओतके मं हम उनला सेरा कवि कहि सकत हन । उन मूलतः गीतकार आंय जेन गीत मन मं जीवन के उल्लास अउ विषाद दूनों के व्यंजना एकबरोबर मिलथे ।देखव न ....

    " भादों मं जइसे घटा बाढ़े रहिथे , 

    अगहन मं जइसे खेती बाढ़े  रहिथे 

    पुन्नी मं चंदा जइसे बाढ़े  रहिथे 

    ओइसे बाढ़े तोला रोजे देखेंव । " 

       बेटी के बढ़त रुप अउ उम्मर महतारी के मन मं सुख दुख दूनों भाव जगाथे , बाढ़त नोनी के रुप महतारी के मन मं सुख संग गरब गुमान बढ़ोथे त बेटी अब ससुरार चल देही ए बात गुन के दुख घलाय तो उही मन मं हिलोरा मारे लगथे । महतारी के ओंठ मुसकिया देथे त आंखी धुंधराये लगथे आंसू के चलते इही हर ए उल्लास अउ विषाद के संघरना साहित्य के अनुसार विरोधाभासी भाव के संचरण अउ लेखन । 

      कवि मनसे के मनोभाव के अद्भुत चितेरा होथे तभे तो जीवन दर्शन ओकर आत्मा के , रचना के मूल विषय हो जाथे । छत्तीसगढ़ के परब तिहार , मेला मंड़ई  इहां के रहइया , बसइया मन के उत्सवधर्मिता के रंग बिरंगी रुप तो आय । कवि एहू मं जीवनदर्शन के झलक देखथे , असार संसार के चार दिनिया राग रंग , हांसी खुशी अपन जघा ठीक हे फेर आखरी सच तो दुनिया के मेला के उजरत बेरा के बिछड़े के दुख हर आय । ए जिनगी पानी मं माढ़े  माटी के ढेला तो आय जेला एक दिन घुरना च हे , शरीर के पिंजरा मं धंधाये आत्मा कब उड़िया जाही कोनो जाने नइ पावयं । कवि दानेश्वर शर्मा कहिथें जनम अकारथ झन करव जाए के पहिली दान धरम , तिरिथ बरत कर लेव जिनगी नइये कोनो ठिकाना ....

  " कै दिन के जिनगी अउ कै दिन के मेला ,

  कै दिन खेंढ़ा भाजी कै दिन के करेला ।

कै दिन खटाही  पानी बूड़े ढेला , 

पंछी उड़ाही पिंजरा होही अकेल्ला । 

तिरिथ बरत देवता धामी मनाबो 

चल मोर जंवारा मंड़ई देखे जाबो । " 

       दानेश्वर शर्मा लोककला , लोकसंस्कृति के संरक्षण बर जनम भर सराहे लाइक उदिम करत चलिन तभे तो किताब लिखे हें " छत्तीसगढ़ के लोकगीत ( विवेचनात्मक ) सन् 1962 मं । एकरे संग सुरता आवत हे दैनिक भास्कर अउ नवभारत अखबार मं तीन साल सरलग " लोकदर्शन " स्तंभ लिखिन जेला गद्यकार मन ललित निबन्ध कहिथें । लोक जीवन अउ संस्कृति के सुग्घर दर्शन " तपत कुरु भाई तपत कुरु" सन् 2006  कविता संग्रह मं मिलथे । छत्तीसगढ़ के लोक गीत , लोक संस्कृति प्रेम उंकर संगे संग चलत रहिस तभे तो भिलाई इस्पात संयंत्र के अधिकारी बनके " लोक कला महोत्सव " आयोजन के सूत्रधार , संस्थापक बनिन अउ विश्व प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजन बाई ल भिलाई इस्पात संयंत्र से जोड़े सकिन । 

   छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष बनिन त भिलाई के स्वरूपानन्द महाविद्यालय हुडको के अंगना मं दू दिनी राजभाषा महोत्सव के कर्णधार बनिन । सन् 2006 मं छत्तीसगढ़ के सबले बड़े साहित्य सम्मान " सुंदर लाल शर्मा सम्मान " पाइन । 

     सहज , सरल मनसे संस्कृत , हिंदी , छत्तीसगढ़ी , अंग्रेजी के विद्वान अध्येता अउ श्रीमद्भागवत के बढ़िया प्रवचनकार रहिन ...।  डॉ. पालेश्वर शर्मा संग केयूर भूषण अउ दानेश्वर शर्मा ल शील जी के परछी के बाजबट मं बइठे साहित्य चर्चा करत देखे जुग पहा गे । अब तो तीनों झन ऊपर जा के भाषा के विकास बर गद्य जादा जरूरी हे के पद्य तेकर बर अपन अपन विचार ल जोरहा गला करके शील जी ल सुनावत होहीं त उनमन के सेसू भैया के पातर पातर ओंठ मं दुइज के चंदा कस हांसी झलक जावत होही । छत्तीसगढ़ के इन चारों पुरोधा साहित्यकार मन ल प्रणाम करके आखर के अरघ देवत हौं । 

   एक बात अउ गुनत हंव " हर मौसम में छंद लिखूंगा " कहइया पंडित जी ...हां हमन तो तइहा दिन ले उनला पंडित जी कहत आवत हन जिंला सबो झन पंडित दानेश्वर शर्मा कहिथें उन अभियो कुछु काहीं लिखत होहीं का ? कहे के मन होवत हे मोर लेख मं  कोनो किसिम के कमी बेशी रहि गए होही त बताहव पंडित जी ..। 

   शतशः नमन 

       सरला शर्मा 

        दुर्ग

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