Friday 9 September 2022

छत्तीसगढ़ी लोक कथा-सूरजभान(वीरेन्द्र ‘सरल‘)

 छत्तीसगढ़ी लोक कथा-सूरजभान(वीरेन्द्र ‘सरल‘)

एक राज में एक राजा राज करय। एक दिन के बात आय राजा-रानी मन अपन राजमहल के छत में बइठ के पासा खेलत रहय। राजा ह खेल-खेल में अपन राज-पाट, महल अटारी, धन-दोगानी सब ला रानी के हाथ हार गे रहय। अब राजा ला डर होगे कि रानी के मन में कहूँ लालच समा जाही अउ मोला देश निकाला देवा के अपने ह राजपाट सम्हाल लिही तब मोर काय गति होही? 

राजा गजब बेर ले अपन हारे बाजी ला जीते के उदिम करिस फेर सफल नइ होइस। अब ओहा डर के मारे छल के सहारा लिस अउ आजू-बाजू, ऊपर-नीचे ला देखे लगिस। ठउका उहीच बेरा एक ठन पक्षी ह छत के ऊपर ले उड़ाइस।

 ओला देख के राजा ह रानी ला किहिस-‘‘अभी-अभी जउन पक्षी ह ये छत ले उड़िहा के गिस हावे तउन ह कागा आय कि कोयली तउन ला पहिली बता, मैहा ओला कागा कहत हवं। रानी किहिस-‘‘ नहीं राजा साहब! महूँ ह ओला देखे हवं ओहा कागा नोहे, कोयली आय।‘‘

 अब राजा ह इहीच बात में बाजी लगा दिस अउ किहिस-‘‘देख तैहा कोयली कहत हवस अउ मैंहा कागा। हमन इहीच मेरन बइठे रहिबो। हमर करमचारी मन ओ पक्षी के पता लगा के बताही कि ओहा कोयली आय कि कागा। कहूँ कागा होही तब तैहा मोर हारे सब राजपाट ला मोला लहुटाबे अउ मोर राज ले निकल जबे अउ कोयली होही तब मैहा सब राजपाट ला  तोला सउप के साधु बनके जंगल में चल देहूँ, ठीक हे?‘‘ रानी घला बाजी लगाय बर तैयार होगे।

राजा ह अपन नेगी, जोगी, पाड़े, परधान मन ला पाँच पंच बनाके अपन बाजी के बात ला बता दिस अउ ओ पक्षी के पता लगाय के आदेश कर दिस। पंच मन पता लगाय बर राजमहल ले बाहिर निकलके ओ पक्षी ला खोजे लगिन। पंच मन ला ओ पक्षी ह नदिया खड़ में बइठे दिखिस। ओमन ओला पकड़ के देखिन तब ओहा कोयली निकलिस। 

पंच मन सोचिन कहूँ सिरतोन बात ला बताबो तब तो हमर राजा ह बाजी हार जही अउ ओला साधु बनके जंगल जाना पड़ जही। रानी ला भले देश निकाला हो जाय हमन ला काय करना हे, फेर अपन राजा ला बचाना तो हमर धरम आय। इही सोच के ओमन सुन्ता होइन अउ राज महल में लहुटके आगे। 

राजा-रानी मन उखरेच अगोरा करत रिहिन। पंच मन किहिन-‘‘जउन पक्षी में आप मन बाजी लगाय रहेव ओहा कागा आय, कोयली नोहे। राजा के बात सही हे अउ रानी ह बाजी हारगे हावे। राजा के चाल ह सफल होगे रिहिस ओहा मने-मन में हाँसिस अउ बाजी के मुताबिक रानी ला राज ले निकलना पड़गे।

रानी बिचारी अम्मल में(गर्भवती) रहय फेर काय करे बपरी ह बाजी हारे के सजा ला तो भुगतना पड़िस। रानी ह येती-ओती भटकत-भटकत एक घनघोर जंगल में पहुँचगे। उहाँ एक झन साधु ह तपस्या करत रहय। रानी ह उखरे तीर अपन दुःख ला बता के शरण माँगिस। साधु ला ओखर बर दया आगे, ओहा रानी ला अपन बेटी समझ के अपन कुटिया में राख लिस। रानी ह साधु के सेवा-जतन करय अउ साधु ह रानी के खाना-खरचा देवय। नौ ले दस महीना पुरिस तहन रानी ह उहीच कुटिया में एकदिन बेर उत्ती बेरा में सुंदर-रूपस बेटा ला जनम दिस। साधु ह ओ लइका के जनम के बेरा अउ ओखर चेहरा के चमक ला देख के ओखर नाव सूरजभान धर दिस।

धीरे-धीरे समे बीते लगिस। अब सूरजभान अट्ठारह साल के नौजवान होगे रिहिस। एक दिन के बात आय, उहीच रद्दा में बैपारी मन के एक दल निकलिस। 

बैपारी मन अपन अपन-वाहन बर घोड़ा-हाथी, बइला-भइंसा राखे रिहिन। इखर देख-रेख बर ओमन एक झन नौकर घला खोजत रिहिन। उखर नजर उदुप ले सूरजभान ऊपर पड़गे। ओमन अपन मन के बात ला सूरजभान ला बताइन। सूरजभान तैयार होगे अउ अपन दाई अउ साधु महराज ला बैपारी मन के बात ला बता दिस। रानी अउ साधु दुनों झन ओला बैपारी मन के संग जाय के अनुमति दे दिन। सूरजभान बैपारी मन संग आघू बढ़गे।

सूरज भान ला बैपारी मन संग रहत बहुत दिन होगे रिहिस। एक दिन के बात आय। जंगल में बैपारी मन एक जगा अपन डेरा जमाय रिहिन। बैपारी मन भोजन बनात रिहिन अउ सूरज भान ह सब हाथी, घोड़ा, बइला, भइंसा मन ला पानी पियाय बर तीर के तरिया डहर लेगे रिहिस। तभे उदुप ले ओखर नजर रद्दा ले थोड़किन दूरिहा के भुड़ु में पड़िस। भुड़ु मेर दु झन गजब सुघ्घर राजकुमारी अस नोनी मन पासा खेलत रिहिन। सूरजभान ह कलेचुप सपट के ओमन ला देखे लगिस। सूरजभान ला उहीच बेरा जम्हाई आगे। ओखर आरो पाके पासा खेलइया एक झन नोनी ह चिरई असन फुर्र के अगास में उड़ागे अउ एक झन सीता माता असन धरती में समागे। सूरजभान ह अब हिम्मत करके तीर में जाके देखिस तब एक ठन गजब सुंदर पासा ह उही मेरन पड़े रहय जउन ला हड़बड़ी में ओ नोनी मन भूलागे रिहिन। सूरजभान ओ पासा ला धरके अपन डेरा में लहुटगे। सब बात ला बैपारी मन के मुखिया ला बता के ओ पासा ला भेट करिस। मुखिया ओ पासा ला अपन तीर जतन के राख लिस। बहुत दिन ले बैपार करे के बाद बैपारी मन के दल अपन राज डहर लहुटे लगिन। सूरजभान ला जंगल में साधु के कुटिया में छोड़ के बैपारी मन अपन राज लहुटगे।

बैपारी मन बहुत दिन के बाद अपन राज पहुँचके अपन राजा संग भेट करे बर राजमहल में पहुँचिन। बैपारी मन के मुखिया ह सूरजभान के दे पासा ला राजा ला भेट करिस। पासा के सुंदरता ला देख के राजा मोहागे।

 ओहा मुखिया ला किहिस-‘‘पासा तो गजब सुन्दर हे फेर येखर जोड़ी अउ गोंटी मन कहाँ हे?‘‘ 

राजा के गोठ सुनके मुखिया अकबकागे। कहीं जुवाब नइ दे सकिस। अब राजा गुसियागे। मुखिया सोचिस मरगेन ददा, इही ला कथे ‘सुख बर आँखी आंजे, आँखी फूट जाय‘। अउ ‘बुड मरे नहकौनी दे‘। हमन कहत रेहेन राजा ह पासा ला देख के खुश होही फेर इहाँ तो उल्टा काल होगे ददा। 

मुखिया ला चुप देख के राजा कहिस-‘‘जतका जल्दी हो सके येखर जोड़ी पासा अउ गोटी मन ला लान के देव नहीं ते तुमन ला सब झन ला फाँसी टांग दे जाही।‘‘ 

बैपारी मन सब बात ला साफ-साफ बताइन फेर राजा ह मानबे नइ करिस अउ पासा पाय के अपन जिद में अड़ दिस। मुखिया के जी रोआसी होगे, काबर कि ‘जीव के डर महा कठिन‘।

  मुखिया ह घर आके अपन सब बैपारी भाई मन ला राजा के जिद ला बता दिस। सब बैपारी मन डर्रागे, ओमन बिहानेच दिन फेर अपन घोड़ा, हाथी, बइला अउ भइंसा गाड़ा में समान जोर के बैपार करे बर निकलिन अउ सोझे उहीच रस्ता में अइन जउन डहर सूरजभान के घर रिहिस।

सूरजभान के घर पहुँच के ओमन ओला अपन संग चले के जिद करे लगिन। सूरजभन ढेरियात रहय। बैपारी मन ओला रंग-रंग के लालच दिन तब ले नइ मानिस तब मारे-काटे के धमकी दे लगिन। सूरजभान जीव के डर में उखर मन संग जाय बर तैयार होइस।

बैपारी मन उहीच रद्दा में आघू बढ़िन अउ पहिलीच वाला ठउर में अपन डेरा जमा के सूरजभान ला किहिन-‘‘इहीच मेरन के कोन जगह ले तैहा ओ पासा ला लाय रेहे। अब ओखर जोड़ी अउ गोटीं मन ला खोज के लान नहीं ते तोर जीव  नइ बाँचे।‘‘

सूरजभान काय करे बपरा ह, भगवान ला सुमरत ओहा फेर उही भुड़ु मेरन जाके कलेचुप सपट के पहली वाली नोनी मन के बाट जोहे लगिस। गजब बेरा ले अगोरा करे के पाछू सूरजभान ला अगास के कैना ह उतरत दिखिस। अगास कैना ह उतरिस तहन भुड़ु डहर ले घला एक झन कैना निकलिस। सूरज भान समझगे कि येहा पाताल कैना होही। दुनो कैना मन फेर पासा खेले लगिन। सूरजभान ह तुरते उखर तीर में पहुँचगे। ओखर आरो पाके कैना मन छप होगे। ये पइत भुड़ु तीर में कुछुच नइ रिहिस। सूरजभान अड़बड़ बेरा ले ओ मेरन पासा ला खोजे लगिस। तब तक उही मेरन बैपारी मन घला पहुँचगिन।

 अब सूरजभान ओमन ला किहिस-‘‘देख गा मुखिया! आप मन एक बहुत लम्बा डोर लानव, ओमे मोर कनिहा ला बाँधव, मैहा डोर के सहारा में ये भुड़ु भीतरी खुसरत हवं। तुमन एक-एक करके इही मेर पहरा दुहू। जब मोला पासा अउ गोटी मन मिल जही तब मैहा डोर ला हला के इशारा करहूँ तब तुमन डोर ला झीकहू।‘‘ 

मुखिया दउड़त गिस अउ तुरते गजब लम्बा डोर बिसा के ले आनिस। सब बैपारी मन डोर में सूरजभान के कनिहा ला बाँध दिन अउ ओला भुड़ू भीतरी उतारे लगिन।

सूरजभान ह डोर के सहारा लेके धीरे-धीरे पाताल लोक में उतरगे। उहाँ  सोन के एक ठन सतखंडा महल के अँगना में पाताल कैना ह सोन के मचोली में ढेलवा झूलत बइठे रहय। 

ओहा सूरजभान ला देख के अकबकागे अउ पूछे लगिस-‘‘अरे! मुत्युलोक के मनखे, मैहा इहाँ मरत हवं ते मरत हवं, तैहा इहाँ जीव ला देबर काबर झपागेसं?‘‘ सूरजभान सब बात ला साफ-साफ बता दिस। पाताल कैना घला सुसकत-सुसकत बताइस कि महूँ धरती के एक राज के राजकुमारी अवं। इहाँ के राक्षस ह मोर अपहरण करके ले आने हे।  अब पाताल कैना ह सूरजभान ला अपन घर रख लिस। कुछ समें बाद दुनों झन में प्रेम होगे। 

पाताल कैना के रखवार एक झन राक्षस ह रहय। ओहा कोन्हों मनखे ला देखे तब मार के खा डारे। पाताल कैना ह अपन मंतर ले सूरजभान ला दिन भर मांछी बनाके राखे अउ रतिहा राक्षस ह किजंरे बर निकले तब ओला फेर मनखे बना दे। राक्षस ह ये बात के गम नइ पाय रिहिस। अइसने-अइसने गजब दिन होगे।

एक दिन पाताल कैना किहिस-‘‘सूरजभान! हम दुनों मनखे के जात। तोर-हमर प्रेम होगे हावे तब हमन ला बिहाव कर लेना चाही। तैहा जब तक मोर संग बिहाव नइ करबे तब तक मैहा ओ पासा अउ गोंटी मन ला नइ देववं।‘‘ 

सूरजभान अलकरहा बीच में फँसगे रहय। ओहा सोचिस कि बिना पासा अउ गोटी के लहुटे में बैपारी मन मार डारही। तेखर ले बिहाव करना ही ठीक हे। ओहा पाताल कैना संग बिहाव करे बर तैयार होगे।

अब पाताल कैना किहिस-‘‘जब तक मोर रखवार राक्षस ह जियत रही तब तक तोर हमर बिहाव नइ हो सके। मोर संग बिहाव करना हे तब तोला एक काम अउ करना पड़ही। मोर रखवार राक्षस ह मनखे मन के बैरी आय, ओहा कोन्हों तोला देख पारही तब मार डारही। ओहा तोला मारे, ओखर पहिली तैहा ओला मार डार। फेर ओला बल में नइ मार सकस काबर कि ओखर जीव ह ओखर काया में नइहें इहाँ ले सात कोश दूरिहा एक समुंदर हावे। समुंदर के खड़ में एक ठन खजूर के बहुत ऊँच पेड़ हावे। ओमें सोन के पिजड़ा टंगाय हे अउ ओमे एक ठन सुआ धंधाय हे। ओ सुवा ला मारबे तभेच ये राक्षस ह मरही अउ हमर बिहाव हो सकही। ये बात ला राक्षस के डर के मारे मैहा आज तक कोन्हो ला नइ बताय हवं। प्रेम के खातिर तोला भर बतावत हवं।‘‘

उहीच रतिहा जब राक्षस ह शिकार करे बर निकलिस तब सूरजभान अउ पाताल कैना ह समुंदर के खजूर के पेड़ तीर पहुँचिस। सूरजभान लटपट में पेड़ में चढ़िस अउ सुआ ला मार दिस। येती सुआ मरिस अउ ओती राक्षस घला पटियागे। ओखर जीव छूटगे।

 अब पाताल कैना अउ सूरजभान ह भगवान ला गवाही समझ के हरहिन्छा बने बिहाव कर डारिन।   अइसने-अइसने गजब दिन बीतगे। मौका देख के सूरजभान ह एक दिन पाताल कैना ला पासा अउ गोटी मन के बात ला सुरता कराइस अउ पाताल लोक ले धरती लहुटे के विचार रखिस। पाताल कैना राजी-खुशी तैयार होगे। ओमन तैयार होके बैपारी मन के लमाय डोर में मचोली ला बाँधिन।

 सूरजभान घेरी-बेरी पाताल कैना ला समझा के किहिस-‘‘सब सामान ला बने सुरता करके राख ले, आधा बीच में जाके कहूं समान ला भुलागे हवं कहिके मत कहिबे।‘‘ 

पाताल कैना ह सबो किसम ले तैयार होइस तहन सूरजभान ह डोर ला हला के बैपारी मन ला इशारा करिस।

 भुड़ु के ऊपर बइठे बैपारी मन समझगे कि हमर काम होगे अउ सूरजभान ह डोर ला झीकें के इशारा करत हावे। ओमन सब झन मिल-जुल के डोर ला झींके लगिन।

अभी डोर के सहारा में सूरजभान अउ पाताल कैना ह आधाच बीच में पहुँचे रिहिन तभेच पाताल कैना किहिस-‘‘स्वामी! सब समान ला तो सुरता करके धरे हवं फेर मोर सिंगार पेटी ला भुला पारेंव। मोर सिंगार पेटी ला लान के देवव तभेच इहाँ ले जाबो।‘‘ 

सूरजभान ओला कतको समझाइस फेर पाताल कैना ह अपन जिद में अड़ दिस अउ रोय लगिस। अब सूरजभान काय करे बपरा ह ओखर सिंगार पेटी ला लाय बर ओहा फेर पाताल लोक में उतरगे। येती बैपारी मन ओला आवत हे समझ के डोर ला झींके लगिन। डोर ह ऊपर कोती झींकागे अउ सूरजभान ह पाताल लोक में फँसगे।

डोर के आखिरी छोर ह भुड़ु के बाहिर मे निकलिस तब बैपारी मन देखथे कि सोन के मचोली में गजब सुंदर राजकुमारी ह बइठे रहय। ओखर हाथ में पासा के जोड़ी अउ गोटीं मन रहय। ओमन तुरते पासा अउ गोटी मन ला पाताल कैना के हाथ ले झटक लिन अउ ओला जबरन अपन घोड़ा में बइठार के घर लहुटे लगिन।

 पाताल कैना ह हाथ-पाँव जोड के कलप-कलप के सूरजभान ला पाताल लोक ले निकाले के विनती करिस फेर कोन्हों ला ओखर ऊपर दया नइ लागिस।

बैपारी मन अपन देश राज लहुटगिन। बिहान दिन उखर मुखिया ह राजकुमारी अउ पासा ला राजा ला भेट कर दिस। राजा बहुत खुश होके बैपारी मन ला इनाम दिस अउ पाताल कैना ला अपन राजमहल में राखलिस। 

अब ओ राजा ह पाताल कैना संग बिहाव करहूँ कहिके जिद करे। पाताल कैना बताय तभो ले ओखर बात ला सुनबे नइ करय।

 पाताल कैना किहिस-‘‘मोला एक साल के समें दे जाय। एक साल के भीतर मोर सूरजभान कोन्हों नइ लहुटही तब मैहा तुंहर संग बिहाव कर लेहूँ।‘‘ 

राजा तैयार होगे अउ पाताल कैना के रेहे-बसे बर राजमहल के एक खोली में अलग बेवस्था कर दिस।

येती सूरजभान ह पाताल लोक में फँसे-फँसे रात-दिन भगवान के नाव ला सुमर के अपन जीव ला बचाय बर गोहराय लगिस। बैकुंठ के भगवान एक दिन पाताल लोक में किंजरे बर आइस तब ओला देखिस अउ ओखर बर दया करके ओला पाताल लोक ले धरती में लान के छोड़ दिस।

  सूरजभान ह धरती में आके देखथे तब भुड़ु मेरन कहींच नइ रहय। ओहा पाताल कैना के शोर-संदेश ले बर येती-ओती, जंगले-जंगल भटके लगिस। भिखारी मन अस माँगत-खावत सूरजभान ह उही राज में पहुँचगे जिहाँ के राजा के महल में पाताल कैना ह धंधाय रहय। ओहा दिनभर भीख माँगे अउ रतिहा एक झन कुम्हार के परछी में पड़े रहय। काया ह सूखा के काँटा होगे रहय। जांगर ह थकगे रहय। बस मुँहु में पाताल कैना के नाव भर रहय। कपड़ा-लत्ता के कहीं ठिकाना नइ रहय।

येती अइसे-तइसे करके साल भर के समें बीतत रहय। राजा अउ पाताल कैना के बिहाव के तैयारी घला शुरू होगे रहय। पाताल कैना रात-दिन रो-रो के सूरजभान के नाव ला जपत रहय अउ ओखर आय के अगोरा करत रहय।

पाताल कैना ह एक दिन राजमहल में जाके राजा ला किहिस-‘‘ मैहा जतका दिन के मियाद माँगे रहेंव तउन तो पूरा होगे हावे। मोला तो तुंहर संग बिहाव करेच बर पड़ही। फेर मोर एक ठन बिनती हे कि बिहाव के पहिली मोला सूरजभान के कहानी सुने के शउख हे। पहिली मोला सूरजभान के कहानी सुना देव तभेच मैहा बिहाव करहूँ, नहीं ते जहर खाके अपन प्राण ला तज दुहुँ। 

येला सुनके राजा ह सन्न खागे। ओहा बाप पुरखा काखरो मुहूं ले सूरजभान के कहानी नइ सुने रहिस। 

राजा मन में सोचिस अब काय करे जाय। राजा ला एक ठन उदिम सूझिस, ओहा बिहान दिन राज भर में ढिंढोरा पिटवा दिस कि जउन मनखे राजमहल में आके पाताल कैना ला सूरजभान के कहानी सुना दिही ओला एक थारी सोन के मोहर इनाम में दे जाही। महीना दिन बीतगे फेर राजमहल में कोन्हों मरे रोवइय्या नइ आइस। राजा ला फिकर होय लगिस।

एक दिन राजा के ढिंढोरा अउ इनाम के बात ह सूरजभान के कान में पड़िस। 

ओहा ओ गाँव के मुखिया ला राजमहल के पता पूछिस अउ किहिस-‘‘सूरजभान के कहानी ला मैहा जानथव। मैहा ये कहानी ला पाताल कैना ला सुना सकथव।‘‘ ओखर गोठ ला सुनके सब झन गजब हाँसे अउ खिल्ली उड़ावत कहय, वाह रे भिखमंगा! जउन कहानी ला बड़े-बड़े विद्वान मन नइ जानत हे तउन ला तैहा जानबे, पगला गे हस तइसे लागथे?‘‘

 फेर सूरजभान घेरी-बेरी इहीच बात ला घोरिस तब ओ गाँव के मुखिया ह ओखर बात ला राजा तीर पहुँचादिस। राजा तुरते अपन रथ भेजवा के सूरजभान ला बलवा लिस अउ राज भर में फेर ढिंढोरा पिटवा दिस कि काली राजमहल के आधू में सूरजभान के कहानी सुनाय जही। 

बिहान दिन राजमहल के आघू में राजभर के मनखे सकलागे उहाँ मनमाने भीड़ होगे । सब के मन में सूरजभान के कहानी सुने के साध रहय। राजा अउ पाताल कैंना के आघू में ऊँच पीढा में भिखारी ला बइठारे गिस। अब कहानी शुरू होईस।

राजा-रानी के पासा अउ राजा के छल ले कहानी शुरू होईस। जइसे-जइसे कहानी आधू बढ़त गिस। तइसे-तइसे राजा के चेत घला चढत गिस। कोयली ला छल से कागा बताके रानी ला देश निकाला दे के बात ओला सुरता आइस। ओहा दम साधे कहानी सुने लगिस। कहानी ला सुनके पाातल कैना के आँखी ले टप-टप आँसू चूहे ला लगिस। 

कहानी सिराइस तहन पाताल कैना ह स्वामी कहिके जोर से चिचयाइस अउ दउड़ के सूरजभान के पाँव में गिरगे। दुनो झन के मिलन होगे।

अब राजा ह सूरजभान ला पूछिस-‘‘कस जी परदेशिया! तोला ये कहानी ला कोन सुनाय हावे।‘‘ 

सूरजभान किहिस-‘‘ये कहानी नोहे राजा साहब! सिरतोन बात आय। आधा किस्सा ह मोर महतारी ऊपर बीते हे अउ आधा ह मोर ऊपर। दुनो ला मिला के कहानी बनाय हवं।‘‘

 येला सुनके राजा ह अचरज में पड़गे, ओहा जान डारिस कि सूरजभान मोरेच बेटा आय अउ येखर महतारी ह मोर रानी। 

राजा ह सूरजभान ला काबा भर पोटार के मया करे लगिस। अब ओ भिखमंगा परदेशिया ह राजकुमार सूरजभान बनगे। 

राजा ह पाताल कैना अउ सूरजभान के बिहाव कर दिस। कुछ दिन के बाद राजा ह अपन बेटा-बहू के संग जंगल में साधु के कुटिया में पहुँचगे। अपन गलती बर रानी ले क्षिमा माँसिग अउ ओला रथ में बइठार के सन्मान के साथ परघा के राजमहल में ले आनिस। अइसे किसम ले सब झन के बने मेल-भेट होगे। अब सब झन बने खइन-कमइन राज करिन। मोर कहानी पुरगे दार भात चुरगे।

वीरेन्द्र सरल

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