Thursday 8 September 2022

चंदा -सुरुज/लोककथा* 🌝

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              🌕  *चंदा -सुरुज/लोककथा* 🌝

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      एकझन   सोनारिन डोकरी रहिस। वोहर बनेच सियान हो गय रहिस, तभो ले वोकर हाथ म विक्कट अकन कलाकारी हर भरे रहिस ।  वोहर बनेच झन लइका- पिचका मन  ल जोरे रहे अउ वोमन ल खेल -खेलवारी म,  सोन अउ चांदी के गहना बनाय बर सिखो देय । लइका- पिचका मन वोला सदाकाल झामेंच रहंय। 


      सोनारिन डोकरी रोज खुद बड़ अकन गहना बनाय। अउ वो बने गहना मन ल अगास म ,खूंटी लगा के टाँगत जाय। वोकर वो गहना मन अगास म झिकिर- मिकिर करत चमकत रहंय। 


            एक दिन डोकरी सोन ले गहना बनात-बनात थक गय, फेर अब ले भी बनेच बड़े सोन के लोंदा हर बांचेच रह गय रहिस। तब वो डोकरी हर ,रिस म वो लोंदा ल पूरब कोती फेंक दिस... जा... रे... कहत। तब वोई लोंदा वो गोला हर पूरब दिशा म जाके जगमग जगमग बरे लागिस अउ वोई हर सुरुज बन गय।


         आगु दिन डोकरी हर चांदी के गहना बनात- बनात फेर थक गिस,तब फेर वोहर बाँचे चांदी के लोंदा ल पच्छिम दिशा म फेंक दिस... जा रे कहत, तब वो चांदी के लोंदा वो चांदी के गोला हर चंदा बन गय। 


            अब डोकरी सोनारिन करा सोन- चांदी सिरा गय,तब वोहर फुर्सत ले सुतिस। वोकर नाक घरर ...घरर बाजिस।तब सबो लइका -पिचका मन ,ताली बजात अपन घर कोती भाग पराइन।


         फेर वो सोन अउ चांदी के गोला मन रोजेच येती ल वोती ढुलत हें अउ सोनारिन के बनाय अउ सजाय सबो गहना मन खूंटी म टँगाय हें। ये गहना मन ल अपछरा (अप्सरा)मन , अपन मन  के मुताबिक पहिन लेथें तब फिर निकाल के जस के तस टांग देथें।


       फेर खूंटी नई होय के सेती ये सोन अउ चांदी के गोलवा मन पूरब ले पच्छिम ढुलत रहिथें।


( साभार )


*रामनाथ साहू*



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