Saturday 10 September 2022

सुरता--काव्योपाध्याय हीरालाल अउ मानक रेखाचित्र

 


सुरता--काव्योपाध्याय हीरालाल अउ मानक रेखाचित्र

   बात सन् 2010 के आय तब मैं सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ के साप्ताहिक पत्रिका 'इतवारी अखबार' के संपादन कारज ल देखत रेहेंव. एमा हर हफ्ता छत्तीसगढ़ी म एक कालम "गुड़ी के गोठ" घलो लिखत रेहेंव. एकर खातिर हर हफ्ता नवा-नवा विषय खोजे बर लागय. इही उदिम म मोला छत्तीसगढ़ी व्याकरण के प्रथम लेखक हीरालाल चंद्रनाहू "काव्योपाध्याय" जी ले संबंधित लेख पढ़े बर मिलिस. वइसे तो उंकर संबंध म पहिली घलो कतकों बेर पढ़ डारे रेहेंव. फेर वो दिन लेख ल पढ़त खानी  मन म बिचार आइस, के ए बछर ह तो छत्तीसगढ़ी व्याकरण लिखे के 125 वां बछर आय. वोमन एकर लेखन कारज ल तो 1885 म ही पूरा कर डारे रिहिन हें, भले वोकर प्रकाशित रूप ह सन् 1990 म सर जार्ज ग्रियर्सन के द्वारा छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म शमिलहा रूप म आइस. फेर लेखन के बछर तो 1885 ही माने जाही. माने ए सन् 2010 बछर ह एकर लेखन के 125 वां बछर आय.

   मोला अच्छा विषय मिल गे रिहिसे. तब लिखेंव-  "छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 बछर" ए लेख ल लोगन गजब संहराइन. लेख छपे के कुछ दिन बाद संस्कृति विभाग गेंव. उहाँ उप-संचालक राहुल सिंह जी संग बइठे गोठबात चलत रिहिसे, तभे ए लेख ऊपर घलो चर्चा होइस. त उन कहिन- "सुशील भाई एकर ऊपर कुछु कार्यक्रम करव न, हमन संस्कृति विभाग डहार ले सहयोग करबोन. हड़बड़ी नइए. साल भर के भीतर कभू भी करे जा सकथे."

  मोला जानकारी रिहिसे के अइसन किसम के शासकीय सहयोग ह पंजीकृत संस्था के माध्यम ले ही मिल पाथे. फेर मैं तो कभू समिति के झंझट म परत नइ रेहेंव. उहि बीच एक दिन  प्रेस म बइठे रेहेंव, त साहित्यकार डा. रामकुमार बेहार जी मोर संग भेंट करे बर आइन. गोठे-गोठ म संस्कृति विभाग के नियम के बात निकलगे, त उन कहिन- सुशील भाई मोर समिति हे न पंजीकृत "छत्तीसगढ़ शोध संस्थान" चल वोकरे बेनर म ए महत्वपूर्ण आयोजन ल कर लेथन.

   छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 वां बछर होए के सेती मैं चाहत रेहेंव के कार्यक्रम ह गरिमापूर्ण होना चाही. संग म जेकर मन के छत्तीसगढ़ी व्याकरण अउ भाखा खातिर योगदान हे, उंकर मन के सम्मान घलो होना चाही. रायपुर के मोती बाग वाले प्रेस क्लब के ऊपर वाले बड़े हाल म ए जोखा ल पूरा करेन.

   कार्यक्रम तो बहुत गरिमापूर्ण होइस, जइसे सोचे रेहेन तइसे. फेर एक चीज मोर मन म घेरी-भेरी खटकय. वो ए के हमन ल काव्योपाध्याय जी के फोटो नइ मिल पाइस. अबड़ खोजे के उदिम करेन. साहित्यकार, पत्रकार, इतिहासकार, समाजसेवी चारोंमुड़ा ले आरो लेवन फेर बात नइ बनिस.

  इही बीच इतिहासकार डा. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी संग घलो चर्चा होइस, त उन सुझाव दिन-  "तुमन चाहौ त एकर एक  मानक रेखाचित्र बनवा सकत हव. फेर एकर बर मेहनत थोकन बनेच करे बर लागही". तब मैं गुनेंव के ए तो एक झन के बुता नोहय. एकर बर एक पूरा टीम होना चाही, जेन ह चारों मुड़ा जा-जा के संबंधित लोगन मन ले आरो लेवय, पूछय सरेखय.

    रायपुर के टिकरापारा म साहू समाज के एक ठन  छात्रावास हे, उहाँ एक दुकान हे. बसंत फोटो स्टूडियो तिहां हमर ए क्षेत्र के जम्मो साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार अउ एकर प्रेमी मन इहाँ बइठन. एक प्रकार ले ए ह हमर मन के ठीहा रिहिसे. मेल-भेंट करे के जगा.  इहें एक दिन चंद्रशेखर चकोर, जयंत साहू, गुलाल वर्मा, शिवराम चंद्राकर, गोविन्द धनगर, शीतल शर्मा आदि आदि हम सब  बइठे राहन. त हीरालाल जी के मानक रेखाचित्र के चर्चा चलिस. सबो झन मिलके सुनता करेन, चलव एक ठन समिति बनाथन अउ एकरे बेनर म सबो उदिम ल करबोन. 

    तहांले हमन "नव उजियारा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति"  के नांव म एक ठन समिति के पंजीयन करवा डारेन. अउ निर्णय लेन के काव्योपाध्याय जी के मानक रेखाचित्र तो बनाबेच करबोन संग म हर बछर उंकर सुरता  म एक बड़का आयोजन घलोक करे करबोन.

    अब सबले पहिली मानक रेखाचित्र खातिर भीड़ेन. इतिहासकार डा. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी के ए कारज म अच्छा सहयोग मिलिस. उंकर कहे म काव्योपाध्याय जी के परिवार वाले मन के रूप-रंग अउ कद-काठी ल देख के उंकरे सहीं आकार दिए के बात तय होइस. संग म इहू बात आइस के उंकर एक हाथ म छत्तीसगढ़ी व्याकरण के किताब दिखत राहय, अउ एक हाथ म काव्योपाध्याय के जेन उपाधि मिले रिहिसे तेकर चिनहा प्रदर्शित होवय. पहिरावा-ओढ़ावा घलो वोकरे मुताबिक राहय. 

   ए बुता खातिर हमर समिति के समर्पित सदस्य अउ साहित्यकार गोविन्द धनगर के सुपुत्र भोजराज धनगर ल जोंगेन. भोजराज इहाँ के प्रसिद्ध चित्रकार आय. खैरागढ़ विश्वविद्यालय ले सीखे-पढ़े हे. इहाँ के कतकों पत्र-पत्रिका अउ आने-आने व्यावसायिक बुता खातिर चित्र बनाते रहिथे. हमर मन के कहे अनुसार वो मानक रेखाचित्र बनावय, तहां ले फेर वोमा कुछु संशोधन होवय. अइसे-तइसे करत चार-छै महीना बुलकगे. भोजराज ल जे बार जइसे काहन ते बार वइसने करय. आखिर म वर्तमान म प्रचलित चित्र ह सबो झन ला पसंद आइस, त फेर इही ल मानक रेखाचित्र के रूप म प्रचार करे के निर्णय लेन.

    समिति म इहू बात आइस, के मानक रेखाचित्र के इहाँ के संस्कृति मंत्री के हाथ ले विधिवत विमोचन करवाना चाही, तेमा एला शासकीय स्वीकृति घलो मिल जाय. वो बखत इहाँ के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जी रहिन. उंकर ले विमोचन खातिर दिन- बेरा के जोंग तय करेन. निश्चित बेरा 5अगस्त 2011 के सबो झन निर्धारित जगा संस्कृति मंत्री के निवास कार्यालय पहुंच गेन (विमोचन के संलग्न चित्र म डेरी डहर ले बृजमोहन अग्रवाल, डा. रमेन्द्रनाथ मिश्रा, दिलिप सिंह होरा, शकुंतला तरार, गोविन्द धनगर,  शिवराम चंद्राकर, सुशील भोले, चंद्रशेखर चकोर, अउ जयंत साहू आदि) तहाँ ले विमोचन के कारज ह पूरा होइस. 

   ए ह खुशी के बात आय के हमन काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के जेन मानक रेखाचित्र बनाए के कारज करेन, उही ल आज  सामाजिक, साहित्यिक, शासकीय अशासकीय सबो जगा वोकरे उपयोग करे जावत हे.

  अइसने किसम के उंकर स्मरण दिवस के निर्धारण घलोक होइस. काव्योपाध्याय जी के जनम अउ पुण्यतिथि के जानकारी अबड़ उदिम करे म घलो नइ मिलिस. एक सलाह अइसनो आइस के वोमन धमतरी पालिका के अध्यक्ष रेहे हावंय, त उहों पता करे जाय, शायद कुछ रिकार्ड होही. फेर अबिरथा. आखिर तय होइस के वोमन ल काव्योपाध्याय के जेन उपाधि मिले हे 11 सितम्बर 1984 के वो  तिथि ह तो प्रमाणित हे. त सबले अच्छा हे, के इही ल उंकर स्मरण तिथि या सुरता के रूप म मनाए जाय. हमन डा. सत्यभामा आड़िल, सुधा वर्मा के संगे-संग अउ कतकों साहित्यकार अउ इतिहासकार मन ले ए विषय म चर्चा करेन. सब के इही कहना रिहिसे के कोई भी काल्पनिक तिथि जोंगे के बदला प्रमाणित तिथि ल ही उंकर सुरता के रूप म निश्चित करे जाय.

  काव्योपाध्याय जी के नांव के संबंध म घलो चर्चा होवय. काबर ते अभी उंकर नांव "हीरालाल काव्योपाध्याय" के रूप म प्रचलित हे. ए ह तकनीकी रूप म सही नइए. काबर के काव्योपाध्याय ह उंकर उपाधि आय, सरनेम नहीं. नाम के पाछू म सरनेम ल लिखे जाथे, या उपनाम ल. उपाधि ल नहीं. उपाधि ल तो नाम के आगू म लिखे जाथे. जइसे- कोनो ल भारतरत्न मिले रहिथे, त भारतरत्न फलाना, पद्मभूषण फलाना या पद्मश्री फलाना आदि लिखे के परंपरा हे. त फेर वइसने हीरालाल जी के नाम ल घलो लिखे जाना चाही - "काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू".

(संस्मरण संग्रह 'सुरता के संसार' ले साभार)

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


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11 सितम्बर स्मरण दिवस//

छत्तीसगढ़ी व्याकरण के सर्जक काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू

    छत्तीसगढ़ी भाखा ह आज अंतर्राष्ट्रीय अगास म पाॅंखी लगाके उड़ान भरत हे, त एकर नेंव म 11 सितम्बर सन् 1984 के काव्योपाध्याय के उपाधि ले सम्मानित होय हीरालाल जी चंद्रनाहू के दूरदर्शी सोच अउ कारज ह पोठ बुता करे हे, कहिबो त कुछू अनफभिक नइ होही.

    हीरालाल जी वो बखत छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचना करिन जब हिन्दी के घलो कोनो सर्वमान्य  व्याकरण प्रकाशित नइ हो पाए रिहिसे. एकरे सेती सन्  1881 ले 1985 तक म लिखे उंकर ए व्याकरण ल सन् 1890 म अंगरेजी म अनुवाद कर के छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म समिलहा छपवाने वाला विश्वप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य सर जार्ज ए ग्रियर्सन ह हीरालाल जी के आभार व्यक्त करत लिखे रिहिन हें- "हीरालाल जैसे विद्वानों के कारण ही हम भिन्न-भिन्न भाषाओं के बीच सेतु बनाने के अपने प्रयास में सफल हो पाते हैं." 

    हीरालाल जी के जनम रायपुर के तात्यापारा म सन् 1856 म महतारी राधाबाई अउ सियान बालाराम चंद्रनाहू जी के घर होए रिहिसे. वइसे उंकर मूल गाँव धमतरी जिला के कुरूद तहसील के गाँव राखी (भाठागाॅंव) आय. इहाँ एक बात ल जानना जरूरी हे, के हीरालाल जी के जन्म अउ निधन के निश्चित अउ प्रमाणित तिथि के जानकारी अभी नइ मिल पाए हे. हमर अपन समिति 'नव उजियारा साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्था ' के माध्यम ले गजब खोजबीन करेन, फेर सफल नइ हो पाएन. अइसने उंकर मूल फोटो घलो नइ मिल पाइस. तब सब इतिहासकार, साहित्यकार अउ सामाजिक विद्वान मन के सलाह अउ सुझाव म एक मानक रेखाचित्र (ए लेख संग संलग्न हे) बनवाए रेहेन. सौभाग्य ले आज इही रेखाचित्र ह सरकारी, गैरसरकारी, साहित्यिक अउ सामाजिक सबो जगा के आयोजन म चलत हे. वइसने जन्म अउ निधन के प्रमाणित जानकारी नइ मिले के सेती वोमन ल जेन 11 सितम्बर 1884 के 'काव्योपाध्याय' के उपाधि मिले रिहिसे, तेने तिथि ल सबो विद्वान मन के सर्वसम्मति निर्णय ले 'स्मरण दिवस' के रूप म मनाथन, हीरालाल जी के सुरता करथन, उंकर छत्तीसगढ़ी खातिर करे गे कारज के सेती आभार व्यक्त करथन.

    हीरालाल जी के प्राथमिक शिक्षा रायपुर म ही होए रिहिसे. सन् 1874 म उन जबलपुर ले मेट्रिक पास करिन तब सिरिफ 19 बछर के उमर म सन् 1875 म ही उन रायपुर जिला म सहायक शिक्षक के पद म नियुक्ति पागे रिहिन हें. हीरालाल जी लइकई ले ही पढ़ाकू मनखे रिहिन, एकरे सेती उन खुद के प्रयास ले ही उर्दू, उड़िया, बांग्ला, मराठी अउ गुजराती भाषा सीख गये रिहिन अउ उन जम्मो भाखा म वो बखत उपलब्ध रेहे मुख्य पोथी मनला पढ़ डारे रिहिन. 

    सन् 1881 म उंकर लिखे 'शाला गीत चंद्रिका' नवल किशोर प्रकाशन नई दिल्ली ले छप के आइस, कुछ विद्वान प्रकाशन संस्था ल लखनऊ के बताथें. इही कृति खातिर बंगाल के राजा सौरेन्द्र मोहन टैगोर (ठाकुर) उनला  सम्मानित करे रिहिन हें. हीरालाल जी के एक अउ अमर कृति 'दुर्गायन' खातिर सन् 1884 म राजा सौरेन्द्र मोहन टैगोर उनला स्वर्ण पदक देके सम्मानित करे रिहिन हें. 'दुर्गायन' म हीरालाल जी दुर्गा सप्तशती के दोहा मनला प्रस्तुत करे रिहिन हें. इही कृति खातिर बंगाल संगीत अकादमी कलकत्ता द्वारा उनला "काव्योपाध्याय' के उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे. काव्योपाध्याय के उपाधि ल वो बखत के सबले प्रतिष्ठित उपाधि माने जावत रिहिसे. हीरालाल जी के मूल नाम हीरालाल चंद्रनाहू रिहिसे, एकरे सेती उन अपन नाम हीरालाल चंद्रनाहू ही लिखंय, फेर काव्योपाध्याय के उपाधि मिले के बाद उन हीरालाल काव्योपाध्याय लिखे लागिन. फेर हमर मनके जिहाॅं तक सुझाव हे, के अब उंकर नॉंव ल 'काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू' लिखे जाना चाही. काबर ते उपाधि ल हमेशा नाम के पहिली लिखे जाथे, नाम के बाद नहीं. जइसे- भारतरत्न फलाना, पद्मभूषण फलाना या पद्मश्री फलाना आदि आदि... नाम के बाद वो मनखे के सरनेम या उपनाम ल ही लिखे के परंपरा हे, उपाधि ल नहीं.

    आगू चलके हीरालाल जी ल धमतरी के एंग्लो वर्नाकुलर टाऊन स्कूल म प्रधान पाठक के नौकरी मिलगे रिहिसे. एकर पहिली कुछ दिन उन बिलासपुर म घलो पढ़ावत रिहिन हें. हीरालाल जी एक योग्य अउ समर्पित शिक्षक होए के संगे-संग अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता घलो रिहिन हें, एकरे सेती उनला धमतरी नगर पालिका के अध्यक्ष बने के सम्मान घलो मिले रिहिसे. 

     हीरालाल जी लइका मन खातिर बाल मनोविज्ञान ऊपर आधारित हिन्दी म 'बालोपयोगी गीत' अउ अंगरेजी म 'रायल रीडर भाग-1 अउ रायल रीडर भाग-2 लिखिन. बालोपयोगी गीत संगीतबद्ध रिहिसे, तेकरो खातिर उनला बंगाल संगीत अकादमी डहार ले सम्मानित करे गे रिहिसे. 

    हीरालाल जी के लिखे छत्तीसगढ़ी व्याकरण ह सबले जादा प्रसिद्ध होइस. एकर कतकों भाषा म अनुवाद होए हे. विश्वप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य सर जार्ज ए ग्रियर्सन ह वो बखत पूरा भारत के लगभग सबोच भाषा मनके सर्वेक्षण करवाए रिहिन हें, तब ए बेरा म उनला सिरिफ छत्तीसगढ़ी भर के व्याकरण ह वैज्ञानिक दृष्टिकोण ले व्यवस्थित देखे बर मिले रिहिसे. एला देख के उन अतेक प्रभावित होइन, के हीरालाल जी के सम्मान करत उंकर नाम ल लिखत 'एशियाटिक सोसाइटी आॅफ बंगाल' शोध पत्रिका के खंड 49 भाग 1 म अनुवाद अउ संपादित कर छपवाए रिहिन हें. एकर सेती हीरालाल जी के संगे-संग छत्तीसगढ़ी भाखा ल घलो अंतर्राष्ट्रीय स्तर म चिन्हारी मिलिस. 

    आगू चलके हीरालाल जी के छत्तीसगढ़ी व्याकरण म थोर-बहुत संशोधन करके लोचन प्रसाद पाण्डेय जी ह राय बहादुर हीरालाल जी के मार्गदर्शन म विस्तारित करत मध्यप्रदेश शासन के माध्यम ले छपवाए रिहिन हें. हमर रायपुर के इतिहासकार प्रभूलाल मिश्रा अउ डाॅ. रमेन्द्रनाथ मिश्रा मन घलो उंकर व्याकरण ऊपर आधारित एक ग्रंथ लिख के छपवाए हें. 

     हीरालाल जी सामाजिक अउ साहित्यिक गतिविधि मन म अतेक जादा मगन राहंय, के अपन सेहत डहार जादा चेत नइ कर पावत रिहिन हें. एकरे सेती उन सन् 1890 के अक्टूबर महीना म सिरिफ 34 बछर के उमर म ही ए दुनिया ले बिरादरी ले लेइन. फेर अतकेच नान्हे उमर उन छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य खातिर जेन बड़का अउ पोठ बुता करे हें, वो ह अतुलनीय हे. उंकरे भरोसा आज छत्तीसगढ़ी ल अंतर्राष्ट्रीय स्तर म चिन्हारी मिले हे. उंकरेच भरोसा हम छाती ठोक के छत्तीसगढ़ी ल भाषा आय कहिके बता सकथन. उंकर सुरता ल नमन करत सरकार डहार ले अभनपुर के महाविद्यालय मन के नाम ल उंकर सुरता म रखे गे हावय.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811



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