Saturday 10 September 2022

बेंदरा अउ मँगरा** कहानी

 **बेंदरा अउ मँगरा**

           कहानी

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      "नदी किनारे एक ठन जामुन के पेड़ रहय ओमा एक ठन बेंदरा के बसेरा रहय। नदी के ठीक ओ पार म एक ठन मगर रहय। वइसे तो नदी  के भीतर अउ नदी के आरपार कतको जीव-जंतु मन के बसेरा रहय, कइ झन मन के तो कइ पीढ़ी हो गय रहय। बेंदरा हर दिन भर नदी तीर ओही मेर उछल-कुद करत रहय जब भूख लगय त कोनों रुख रई म चढ़ के फल-फूल टोर के खा लेवय प्यास लगय त नदी के पानी पी लेवय रात होय त जामून के डगाली ल पोटार के सो जाय। जामुन के दिन म तो पेंड़ ऊपर जामून खाय बर मिल जाय कहीं हाथ पैर चलाय के जरुरत नइ रहय। हाथ-गोड़ पसहुर करना हे त थोड़ा-बहुत टहल लेवय नहीं त ओही जामुन के डारा ल धर के चार फइत झूल डारय। ये पार के जीव-जंतु मन नदी के ओ पार नइ जावंय, काहे कि ओ पार म बहुत मगर रहय, जाबो त धर दारही एके मुँह गप ले कर दीही।

      जामुन के दिन अइस, ये दारी जामुन हर बिकट फर म माते रहय। जामुन हर पाकीस त पेंड़ के डारा-पाना नइ दिखत रहय, पूरा पेंड़ हर करिया-करिया दिखत रहय। मीठा-मीठा रसीला जामुन ल देख के ललचावत कतको जीव -जन्तु मन आवत रहंय। रुख-रई के चढ़ोईया चढ़ के पेंड़े ऊपर ले खावत रहय ताजा-ताजा जामुन के मजा लेवत रहंय, जउन नइ चढ़ सकय भुईंया के गिरे ल खा के मन ल संतोष करत रहंय। अब जब तक जामुन म फर हे बेंदरा ल कांही कछु के चिंता नइ रहय, हाथ पैर डोलाना नहीं जतके बेर पईस खा लीस पानी पी के सो गे, आराम के जिंदगी कटत रहय। एक दिन बेंदरा हर अइसने निसफिकर होके एक ठन मोटहा डारा म आराम से उतान लेटे रहय  अउ अकाश कोती ल टुकुर-टुकुर देखत प्रकृति के आनंद लेवत रहय चिरई-चुरमुन मन के आनीबानी के आवाज बडा़ मनलुभावन लागत रहय, अचानक चिरई मन चाँव-चाँव करे के शुरु करे लगिन। बेंदरा हर उठ के देखीस त सब जीव जंतु मन ओमेर ले भागत रहंय, का होगे कइके बेंदरा हड़बड़ागे, बने ध्यान लगा के देखीस; नदी किनारे जामुन पेंड़ के तरी एक ठन बड़का मँगरा हर ओ पार ले आ गय रहय। सब तो भाग गिन पर बेंदरा काय करे पेंड़ के एक ठन थाँही ल धरके दबक गे। बेंदरा ल पता हे मगरमच्छ हर पेंड़ म नइ चढ़ सकय। 

      अब मँगरा हर रोज आय मीठा-मीठा जामुन गिरे रहे ते ला खाय कुछ ल मुँह म धर ले अउ चल दे। अब सब जीव-जंतु मन के उहाँ आना बंद होगे बेंदरा घलव अब जादा बेरा पेंड़ के ऊपर बईठे रहय। बेंदरा सोचथे कहीं जादा उछलकूद करत दनाक ले गिर गें त ये तो मोला गपाक ले कर दीही। ये ती मगर सोंचथे ये तो बढ़िया बात ये कि मोर आय ले इहाँ ले सब जीव-जंतु मन आना छोंड़ दिन अब सब फल मोरेच ये आराम से खाथंव मोर पेट भर जाथे। एक दिन मगर सोंचथे ये बेंदरा के मजा ये पेंड़ म बईठे-बईठे आराम से ताजा-ताजा  फल ल टोर-टोर के खावत रथे, मैं इहाँ चीखला-माटी ले बीन-बीन के खाथंव, कोनो हर तो अइसे सड़ जाय रइथे की मुँह के स्वाद बिगाड़ देथे। काश महुं ल ताजा-ताजा जामुन खाय ल मिलतीस। 

     तभे मगर ल एकठन उपाय सुझथे, जामुन पेंड़ के तरी म आके सुरताय लगथे, ओला देख के बेंदरा हर डरा जाथे कहीं ये मोर फिराक म तो नइ आय हे!कहीं मैं झपकी लिहौं अउ गिर गें त ये तो मोला खा दिही। बेंदरा सोचथे अब चौकन्ना रहना परही। मगर हर बेंदरा ल आवाज लगाथे-मितान -ओ -मितान! बेंदरा हर येती-ओती ल देखथे कहीं ये अपन अउ कोनो संगी ल तो नइ बुलावत हे। मगर हर बेंदरा ल इशारा करथे तुंहला कहत हँव मितान! बेंदरा कथे -मैं बेंदरा तैं मँगरा दूनो मितान कइसे होगेन। न तैं रुख चढ़ सकस न मैं पानी म उतर सकंव त फेर ये मितानी कइसे? मगर हर नाना प्रकार के बात करीस त बेंदरा ओकर बात म आगे। अब मँगरा हर रोज आवय दूनों बईठ के खूब गपशप मारय। भूख लागे त जामुन खा लें' प्यास लगे त पानी पी लें। शाम के घर जाय के बेरा कुछ जामुन मँगरा हर घर घलव ले जाय। अब वहाँ सब जीव-जंतु मन के आना बंद हो गय रहे, बस दूनों मितान बेंदरा अउ मँगरा आराम से बइठे रहंय। सब तरफ दूनों के मितानी के चर्चा चलत रहय। 

     अइसने करत कतको दिन बीतगे जामुन के दिन खतम होगे त बेंदरा हर अनते-अनते ले आने-आने फल लाके मगर ल खवावय अउ घर ले जाय बर घलव दे। अब बेंदरा हर बाकि संगी-साथी मन से किनारा कर ले रहय , ओला तो अपन मितान मँगरा संग म बड़ा मजा आवत रहे। अइसने ढंग ले समय हर बीतत गीस एक दिन मँगरा हर आके बेंदरा ल कथे- मितान आज तुंहर मितानीन हर तुंहला दावत म घर बुलाय हे। का हे कि, मैं बहुत दिन से इहाँ आवत हँव मीठा-मीठा फल खा के घर ले के जाथंव त मोरो फर्ज बनथे एक दिन तुंहु ल ले जा के नेवता बड़ई करंव ये ही बहाना मोर घर द्वार ल घलव देख लिहा। बेंदरा के घलव मन रहे अपन मितान के घर देखे के ओ तो डर म नइ कहे सकत रहे आज मौका अच्छा हे झट ले तियार हो जाथे। फेर, एक समस्या हे मैं तो पानी म तौर नइ सकौं। मगर कहीस चिंता मत करा आके मोर पीठ म बइठ जावा मैं आज तुंहला नदी के सैर करवाहौं। बेंदरा के तो कब के इच्छा रहीस नदी म नौकाबिहार करय, नौकाबिहार नहीं यही सही,वया का कम हे। झट ले बेंदरा हर कूद के मँगरा के पीठ म बइठ गे, मँगरा पानी म छलाँग लगा दीस। बेंदरा ल बड़ा मजा आवत रहय। पानी के लहर मन ल छू छू के मजा लेवत रहे, पानी ल हाथ म  छपाक-छपाक करे म बड़ा मजा आवत रहे। मगर हर सोचथे ये बेंदरा मितान कतका खुश हे येला नइ पता अगले पल येकर साथ का होने वाला हे। ये ल  मोर ऊपर कतका भरोसा हे एक बार म आय बर तियार होगे अउ मैं येला छल कपट से धोखा दे के लानत हँव। सियान मन कहे हें मित्र से धोखा नइ करना चाहिये झूठ नइ बोलना चाहिये। मित्र संकट म होय त अपन प्राण के भी परवाह नइ करना चाहिये लेकिन मैं तो अपन खुशी के लिये ओकर प्राण ल संकट म डारत हँव।

लेकिन, मोर पत्नी के इच्छा . . .! भगवान राम हर अपन पत्नी सीता के इच्छा पूरा करे बर सोन के मिरगा ल मारे रहीन ये तो साधारण बेंदरा ये कोन मार के सोन के बने हे, फेर मैं कोन मार के भगवान अँव हमर मँगरा जात जीव जंतु ल मार के खाय बर बने हन। घोड़ा हर घास ले मितानी केही त का खाही अउ मँगरा मन जीव-जंतु ल नइ खाहीं त काय खाहीं। मोला कुछ अइसे करना चाहिये कि मितान ले झूठ बोले के पाप घलव झन लगय अउ पत्नी के इच्छा भी पूरा हो जाय। मितान ये समझही त समझबे करही नइ समझही त बीच नदिया ले कुद के कहाँ जाही। बेंदरा हर मँगरा ल चूप देख के पूछथे कइसे का होगे मितान का गुनान परगे। मँगरा हर कथे एक ठन बात कहना रहीस मितान। बेंदरा कहीस हँ बोलव का बात हे! मँगरा कथे- बात ये हे कि हमर घर म तुंहर कछु दावत व नइ हे। बेंदरा ल अचंभा लागिस, दावत नइ हे मतलब कइसे?  तभो कइथे कोई बात नइ ये मितान येमा का चिंता दावत नइ ये त मैं अइसे घरद्वार ल देख के आ जाहूं दावत फिर कभी हो जाही दावत के का हे। थोड़े देर बईठ के मोला फिर वापस छोड़ दिहा। मगर कथे नहीं मितान अब तुंहला वापस आय के कोनो जरुरत नइ हे ये ही हर आखिरी ये। बेंदरा कहीस कइसे मतलब मैं समझें नहीं काय बात ये ते ला साफ-साफ कहा। मँगरा कहीस मितान घर म दावत तो हे लेकिन तुंहर बर नइ हे बल्कि, हमन तुंहरे दावत करबो कहत हन आज। तुंहर मितानीन हर तुंहर करेजा ल खाहूँ कहत हे। ओकर कहना हे जउन बेंदरा हर अतके मीठा-मीठा फल रोज खाथे तेकर करेजा हर कतका मिठावत होही। कई दिन ले जिद म अड़े हे नइ मानत हे आज तो खाना-पीना छोड़ दे हावय। मैं बहुत समझांय मितान हर रोज मीठा-मीठा फल टोर-टोर के देथे बिचारा हर ओला मार के खाना ठीक नइ हे फेर ओहर नइ मानत हे। ओहर भूखन-प्यासन बइठे हे चला जल्दी तंह ले हमन तुंहर करेजा के दावत करबो। 

     अतका ल सुनके बेंदरा के खून सुखागे, गुनान धर लीस, मँगरा के पीठ म बइठें तभो मौत दिखत हे, पानी ले कूद जाहूं तभो मौत दिखत हे, उपर वाला ल देखते प्राथना करथे मदद माँगथे। भगवान हाथी ल बचाय रहा मगर ले आज महू ल बचा लेवा कइके हाथ जोड़थे। कुछ उपाय तो सोचना परही नइ तो मैं अइसने मारे जाहूँ। मँगरा हर बेंदरा ल कथे का होगे मितान! जादा का गुनना अब थोड़े देर के तुंहर जिंदगी हे मस्त मौज-मस्ती करा कइहा त नदी के एक चक्कर अउ लगवा देवत हँव परंतु, आज तुंहला हमर दावत तो बनेच ल परही । बेंदरा कहीस वो बात नइ ये मितान! तुंहर काम आना तो मोर परम सौभाग्य के बात ये पर एक ठन मुश्किल हे। मँगरा कहीस का मुश्किल हे? बेंदरा कथे मितानीन हर मोर करेजा ल खाहूँ कहत हे ये बात ल तुंहला मैं जामुन के पेंड़ के ऊपर म रहेंव तभे बताना रहीस अब फेर वापस जाना परही। मगर कथे कइसे! बेंदरा कहीस देखा मितान, हमन बेंदरा जात मन अपन करेजा ल तुंहर मँगरा जात मन असन धर के नइ किंदरन। तुमन ल पानी म चूपचाप रहना रथे त तुमन अपन करेजा ल अपन शरीर म धरे रथा। हमन बेंदरा अन ओ रूख-रई ले ओ रुख-रई, ओ डार ले-ओ डार म कूदत-फाँदत रइथन अइसे म अपन करेजा ल कोनो मेर गिरा दारबो त हमर जिनगी तो खतम हे। त फेर तुमन कहाँ रखथा अपन करेजा ल मगर ल बड़ा आश्चर्य होथे। अरे वहीं पेंड़ के एक ठन खोखरा म सुरक्षित रख देथन अउ दिन भर किंदर-किंदर के उछलकूद करत रथन। चला जल्दी नहीं त उहाँ भूख-प्यास म मितानीन ल कछु हो जाही। मगर हर झट ले पलटिस अउ जल्दी जामुन के पेंड़ तीर पहुँच गे। बेंदरा के छाती धकधकावत रहे, कूद के जामून के पेंड़ के ऊपर चढ़ गे। लंबा-लंबा साँस लीस। मगर आवाज लगाथे मितान जल्दी आवा अपन करेजा ल ले के। बेंदरा कहीस कोन मितान, कइसे मितान? अरे दुष्ट, ये तो मोर मति मारे गे रहीस जो मैं तोर जइसे दुष्ट  ल मितान बना दारें, वो तो मोर किस्मत अच्छा रहीस भगवान के कृपा ले बच गेंव तैं तो मोला दावत करवाहूँ कइके मोरे दावत करे चले रहे। मूर्ख मोला मूर्ख बनाय चले रहे तोला इतना भी पता नइ ये कि कोनों अपन करेजा ल अपन शरीर से नइ निकाल सके। बिना करेजा के कोई घूमना-फिरना तो दूर जिंदा भी नइ रह पाय। सियान मन कहे हें दुष्ट से कभी संगती नइ करना चाहिये तोर खातिर मैं अपन संगी साथी मन ल छोड़ देहें। सजा तो मोला मिलना रहीस, तैं अच्छा सबक सिखाय। मोर किस्मत अच्छा रहीस त बाँच गय हौं नइ तो तैं तो आज मोर दावत कर देहे रहे मोर संगी-साथी मन सोचतीन मैं वो मन ल छोड़ के तोर संग चल दे हँव। अब निकल यहाँ से फिर अपन सकल मत देखाबे। मगर कथे ये तो दाँव उल्टा पर गे, फल-फूल खवावत रहीस तेहु गय। मितान अइसे बात नइ हे, आँसू पोंछे अस करथे, बेंदरा कहीस तोर मगरमच्छ के आँसू मैं अच्छी तरह समझथौं, चल अब जहाँ यहाँ से। मगर वहाँ से कलेचूप भागे म ही भलाई समझथे।"

( दुष्ट से संगति नइ करना चाहिये, दुष्ट व्यक्ति ले सावधान रहना चाहिये, संकट के घड़ी म हड़बड़ाना नइ चाहिये, शांत मन से समस्या के उपाय सोचना चाहिये। ये बात अब बेंदरा के मन अच्छी तरह से आगे। )"

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**अंजली शर्मा **

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ ).

7470989029 .

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