छत्तीसगढ़ी कहानी- थपरा
चन्द्रहास साहू
मो 8120578897
"गौटिया भइयां अब तोरे आसरा हावय। दू कौरा कमती खा लेबो फेर कोट - कछेरी ले हम ला बचा ले मालिक।"
"सुरुज उवे के आगू थाना मा हाजरी देवाना हे कहिके तकादा मारके गे हावय साहब हा।"
गोदावरी अउ गोसाइया ओरी - पारी किहिस । अब दुनो हाथ जोड़के ठाड़े हावय।
गौटिया पेपर पढ़त हावय।
" घोड़वा के काल बेन्दरवा मा आगे दाऊ बचा ले हमन ला।"
"ले मेंहा तियार होके आवत हावव । थाना अमरके अगोर लेबे ।"गौटिया किहिस ।
गौटिया अउ सुरुज नरायेन ला पायलगी करिस। अपन सायकिल ला थाना के रस्दा मा मुरकाये लागिस जवनहा हा। कोरा मा नान्हे लइका । डंडिल मा बड़का नोनी अउ बाबू पीछू कोती । झोला झांगड़ी ढोलक डुगडुगी रिंग डोरी बांस अउ खाये जठाये के जम्मो जिनिस सायकिल मा हमागे। विश्वकर्मा जी ला घला अइसन कला नइ आवय । जोन रिकम ले जवनहा जीवन हा जम्मो ला जोर के सायकल चलावत हावय। बिहनिया ले थाना मा बइठे - बइठे लइका मन असकटाये लागिस । सिपाही कभू मुचमुचाय कभू करू मुहु करे। चार बेरा पूछ डारिस साहब कब आही ?
"बस आवत हे ...।" साढ़े दस बजे ले इही सुनत हावय । अब तो बर के छइयां मा उंघासी घला लागत हावय।
जीवन अउ गोदावरी डंगचगहा आवय। किंजर-किंजर के खेल देखाथे- माई पिल्ला। आज सिलौटी गांव मा घला आये रिहिन हाबे।
"दाई दीदी भइयां हो.....!"
"नान्हे नान्हे लइका हो......!"
"डोकरी-डोकरा किसान मन.....!"
"नांगर जोत्ता जवान मन.....!"
ओरी - पारी चिल्लाये दुनो परानी अउ ढोलक डुगडुगी ले ताल देवय। ओलकी - कोलकी सब कोती किंजर के हांका पार डारिस अब।
रंगबिरंगी फेर जादा लाल रंग के नानकुन कथरी अब सम्हेरा मा माड़े हावय अउ एक ठन कथरी मा लाल लिंगोटी पहिरे बन्दन रंग के पिल्ली हावय । ताबीज कौड़ी रुद्राक्ष अउ भोजपत्तर बिगरे हावय।
डडंग.... डडंग.... बाजा बाजे लागिस अउ गोदावरी झुमरे लागिस ताल देवत। उच्चा राग मा गाना गावत रिहिस । छत्तीसगढ़ी उड़िया हल्बी भतरी कोनो नही , अइसे लागे जइसे दू चार भाखा ला मिंझार के गावत हावय। फेर अर्थ समझ आइस कोनो राजा के बीरता अउ माईलोगन के पीरा के गीत आवय। चौपाल मा सब सकलाये हाबे।
मँझोत के कथरी मा सात बच्छर के बाबू आगे रिंग धरके । हाथ गोड़ नरी शरीर के अंग - अंग ला ओमा बुलकाये लागिस हाँसत मुचकावत । अब नोनी घला आगे आठ बच्छर के। पहिली एकेझन बुलकिस रिंग मा अब टूरा संग।
देखइया लइकामन अब्बड़ हाँसिस जवनहा सियनहा मन घला। ...अउ अब तो सब के जी धक्क ले लागगे। दुनो भाई बहिनी संघरा बुलकत हावय अउ अब...।
सटक गे...। अरहझ गे ।
"बचा ले दाई ! बचा ले ददा !"
रोये लागिस दुनो कोई। महतारी मन के आँसू ढ़रकगे। लइका मन थपोली मारिस। ददा जीवन निकालिस इतरावत। बरत दीया ला माथ मा मड़ा के फेर बुलकिस। बॉस के कैची म डोरी बंधाये रिहिस। अब रेंगे लागिस। ओखर गोड़ मा का चुम्बक लगे हावय परमात्मा जाने। एक - एक गोड़ ऐसे उसालिस कि दुनियां नपागे । एक पग अगास, दूसर धरती अउ तीसर पताल लोक , जइसे बिष्णु जी आवय। कनिहा के खाल्हे ला अउ हलाथे तभो ले कुछु नइ होवत हे । ये पार ले ओ पार फुरफुन्दी कस उड़ात हावय। बुढ़गा जवान तो देखे हे अइसन खेल ला। फेर लइका मन के अचरज के ठिकाना नइ हावय।
अब जवनहा जीवन मैदान मा आगे । कथरी मा सुतिस अउ बड़का पखरा लानके लदक दिस वोकर छाती मा गोसाइन गोदावरी हा। गॉंव के जवनहा घला पंदोली दिस। डुगडुग... डुगडुग.. डडंग... डडंग... बाजा बाजे लागिस । बेटी बजावत हावय। गोदावरी घन ला धरके महाबीर के जय बोलाइस ।
"ये दाई !''
जवनहा चिखिस अउ पथरा कुटका - कुटका होगे। अब सबसे खतरनाक स्टंट करत हावय । कोनो झन अजमाहू भैया हो । चार अन्नी रॉड ला टोंटा ले मोड़े के उदिम करत हावय। देखइया मन व्याकुल हावय । ऊँचनीच होही ते मर जाही...?कतको झन मन तो शर्त लग गे बीस रुपिया मा । नही ते दारू के शीशी बर।
"ये कोई बड़ी बात नही है मैं भी कर सकता हूँ बल्कि इससे भी मोटा रॉड को मोड़ सकता हूँ। " ताव देखावत ठाढ़े होगे एक झन जवनहा हा। जम्मो कोई कलर - कलर करिस । दाऊ हा अंगरी मा ढ़केलिस ओतकी मा गिरगे।
"दिस इस चिटिंग.. आई नो दैट... ।"
अब अंग्रेजी मा बड़बड़ावत हावय। बिना पीये ढंग के छत्तीसगढ़ी नइ बोल सके ते ...पीये के पाछू हिंदी अउ अंग्रेजी मारथे । कोन जन बॉटल मा का जादू हावय ते...?
डंगचगहा जीवन अब रॉड ला मोड़ डारिस। जइसे बेसरम के सुन्टी आवय। महाबीर के जय बोलाइस । अब बाजा बाजिस अउ सुघ्घर गाना गाये लागिस। अब चाउर दार ला झोंके लागिस। आधा बस्ती सकलाये रिहिस फेर दार चाउर पइसा ? गोदावरी संसो करत हावय...।
"अतका खतरनाक खेल काबर देखाथो गा भइयां !''
"पापी पेट बर करथन भइयां ! जब तक पसिया लिखाये हावय तब तक करबो । ताहन तो कोन जन.... ? कोनो देखइया रही धुन नंदा जाही ते..?''
जवनहा संसो करत किहिस।
रात कन अलवा जलवा जेवन बनाइस। लइका मन ला खवाइस अउ गोड़ हाथ के मालिस करिस बाबू के। जवनहा अपन बेवस्था मा लगे हावय । गिलास निकालिस सरकारी अमरित रस ला ढ़ारिस अउ थोकिन पाछु पटियागे।
गोदावरी अउ बड़का नोनी बरतन मांजत हावय।
गली अंधियार तभो ले जागत रहिथे ओहा रखवार बरोबर । कालू कुकुर आवय। छइयां दिखिस अउ कुई - कुई करत भुंइया मा घोण्डे लागिस। ...छइयां अब मइनखे बनगे । खटर - खटर सायकिल बाजिस । अउ...कुकुर के भूकई। मइनखे दउड़े लागिस जेती रस्दा मिल जावय।
"अउ...ये का..?''
गोदावरी उप्पर आ के झपागे । धोये बरतन मा गिरगे। गोदावरी अकबकागे। डर्रागे । महाबीर के नाव सुमरत किहिस
"अई कइसे करथस गा..? उठ ना !''
गोदावरी चेचकारे लागिस।
"उई हु हु ...."
किहिस मंदहा हा अउ फेर लठरे लागिस। जीवन ला उठाइस वहु हा तो सरकारी दुकान के पौवा मारके सुते हावय। नइ जागिस।
"रोगहा सोज बाय अपन रस्दा मा नइ जास। हमर धोवल बरतन ला अउ मइला डारेस। होश नइ सम्हाल सकस तब काबर अतका पीथो। कलेचुप पी अउ घर मा सूत जातेस। मोर गोसाइया हा सूते हावय तइसे ।''
गोदावरी के मुँहू करू होगे गोसाइया ला देखके।
"एकरा हमर फाँसी करे बर आ गेस?"
एक बाल्टी पानी ला रिकोवत किहिस।
आरो ला सुनके पारा परोस के मन सकेलागे ।
"ये डंगचगहिन तुंहर जात हा अइसनेच होथे रे ! छिनार हो पी खा के लड़ई झगरा मतावत हो।"
"कहाँ ले आगे येमन गाँव बिगाड़े बर भगाओ येमन ला।"
"अपन दुनो के झगरा अउ हमर उसनिन्दा होवत हावय।"
"कोंन जन एखरे घरवाला आय कि आने ला पोटार लेहे ते । घुमक्कड़ जात के का ठिकाना...?''
आनी - बानी के गोठियाये लागिस पारा के मन।
"मेहाँ कही नइ करे हँव भइया हो ! मेहाँ कही नइ करे हँव बहिनी हो...! कोन जन कोंन आय ते ?
बड़का सियान किहिस ।
"कोन आय येहां ? येला तो चिन्हों ।''
टार्च बारिस अउ देखिस परोसी गाँव तर्रागोंदी के कोचिया आय। बइला कोचिया।
अब सुध आये लागिस लड़बिड - लड़बिड करत उठिस अउ ठाड़े होगे। अब तो सौहत अरहज गे हावय कोचिया हा ।
"गाय बछरू बेचके अपन धरम ला बेच डारेस अउ अब डंगचगहिन बर नियत गड़ियाथस ।" गॉव के सियान हा खिसियाये लागिस।
आज तो डंगचगहिन के हाथ ले मार खाना तय हावय। जेखर तुतारी तिही ला कोचक । बइला बाजार के सुरता आगे। कतकोन बेरा अइसन संकट ले उबरे हावय। बड़का अनभवी घला हरे। माहौल ला परखिस हवा के दिशा ला टमरीस अउ किहिस
"ये मोटियारी डंगचगहिन हा मोला बलाए रिहिन। पइसा के लालच बर ।" मंद भभका छोड़त रिहिस।
"रोगहा ,दोखहा, मेंहा तोला जानो न पहिचानो अउ मोर ऊपर दोख लगाथस।''
गोदावरी अगियाये लागिस।
"अपन परोसी गाँव के कोचिया उप्पर भरोसा नइ हावय अउ चार दुवारी मा बइठइया किंजरइया ऊपर भरोसा करत हावव गाँव वाला हो।"
कोचिया अब रामबाण चला दिस। अब सब थू - थू करे लागिस गोदावरी ला।
"येला भगाओ छिनार ला, हमर गाँव नीति नियाव के गाँव आवय । अइसन माइलोगन हा गाँव ला बिगाड़ दिही।
"मारो मारो ...।''
भीड़ बाढ़गे । मारो मारो के आरो आये लागिस । अब तो अकेल्ला होगे गोदावरी हा । जीवन के नशा उतरिस अउ उठगे । देखिस । चकरागे। का होवत हावय ?
"का भीड़ लगाए हावव ?''
"तोर घरवाली ला पूछ ना रे नकटा । "
माइलोगिन किहिस ।
"मोर गोदावरी अइसन नइ करे। ये सब ओ कोचिया के करस्तानी आवय ।''
जीवन अब गोसाइन के सरोटा तीरे लागिस। जवनहा मन संग जोमे लागिस । अब तो गाँव भर सकेलागे। अतका तो ओखर खेल देखे ला नइ आये रिहिन जतका अभिन आये हावय। अब तो पुलिस घला आगे रिहिस । डग्गा धरके । कोन जन कोंन फोन करिस ते...?
"साला यहाँ आकर जिस्म फ़रोसी का धंधा करते हो। बेत का डंडा कूल्हे में पड़ेगा तब समझ आएगा तुमको।''
राय... राय... बेत के डंडा बरसे लागिस। जीवन ऊपर । बड़का पुलिस वाला आय।
"बचाले कका ददा मोर गोसाइया ला। झन मार साहब मोर गोसाइया ला।"
"झन मार मोर बाबू ला...!''
गोदावरी अउ नोनी रोये लागिस।
"ले चलो इन लोगो को डग्गा में बैठाकर सिपाही ला आदेश दिस। "
" मोर कोनो गलती नइ हावय साहब ! ओ कोचिया के हावय।''
"कहाँ है कोचिया उसको भी पकड़ो ।''
भीड़ मा देखे लागिस। वो तो भगा गे रिहिस । कहाँ मिलही....? फेर गुर्राइस इंस्पेक्टर हा।
"हाथी जंगल भगा गे अउ पांव के चिन्हा बर गाँव गवतरी मा गदर मचाये हव।''
गौटिया आवय। इंस्पेक्टर ला जोहार करत किहिस।
"तुहरे इहाँ के कंप्लेन रिहिस दाऊ ! उँही ला निपटाये बर आये हँव। दु कौड़ी के डंगचगहिन जिस्म फ़रोसी के धंधा करथे । वो भी मेरे क्षेत्र में, आपके गाँव में ...।''
"अरे अभी हमर गाँव अतका नइ मइलाय हावय कि कोनो माइलोगिन जिस्म के धंधा करे। हाँ, बबा जात के नियत भले डोल जाथे... ईमान डोल जाथे। अउ ...ओ कोचिया ला जानथव कतका चिरई मारे हावय तेन ला । कतका बेरा कोट-कछेरी ले बाचे हावय तौन ला...।
वइसे ये जीवन अउ गोदावरी ला घला जानथो ननपन ले आवत हावय अपन दाई ददा संग। हमर ददा ला गौटिया ददा काहय अउ मोला गौटिया भइयां कहिथे। छोड़ ये मन ला जोन पूछ तास करेके हावय बिहनिया करबे । अभी सुतो जावव ।"
गौटिया के गोठ सुनके सब अपन - अपन घर रेंग दिस। गौटिया के पांव परिस गोदावरी अउ जीवन हा ।
"मोला बचा लेस भइयां! तोर लइका लोग दुधे खाये दुधे अचोवय। शीतला दाई के मया कभू कमती झन होवय। जय होवय गौटिया! तोर जय होवय।"
नोनी अऊ जीवन घला अब सुते के तियारी करत हावय।
इंस्पेक्टर अउ गौटिया अब गोठियावत हाबे अउ सिपाही मन माखुर रमजत हावय। गोदावरी बरतन ला तिरियाइस अउ नल ले बाल्टी भर पानी भर के मुँहू धोये लागिस। चेहरा दमकत हावय। उज्जर पण्डरी काया चन्दा अंजोरी मा अब्बड़ सुघ्घर लागत हावय। बड़का आँखी अउ गोदना सब ला देखिस इंस्पेक्टर हा गाड़ी लाइट के अंजोर मा ।
"ये .....कल सुबह थाना आना हाजरी दिलाने नही तो तुम्हारा खण्डरी उधेड़ दूँगा।"
गोदावरी डर्रागे।
"जी ...जी साहब !"
हाथ जोर के किहिस। गौटिया घला अपन घर कोती जावत हावय।
गोसाइया के मोबाइल ला देखिस। बारा बजत रिहिस। अउ ओखर ले जादा बारा बाजे हावय गोदावरी के सिकल मा । का होही परमात्मा ? का होही महाबीर...? रात भर नींद नइ आइस। भिनसरहा गौटिया घर चल दिस।
अउ अब थाना अमरगे हावय।
साहब आइस बारा बजे। थाना के अंगना मा अपन लइका ला दूध पियावत गोदावरी ला देखिस ससन भर।
" लाल लुगरा मा बम हावय साली हा ...। एकदम कुँवारी लागथे ।"
साहब लार टपकावत फुसफुसाइस थानादार हा।
कोटवार आइस ।
" गोदावरी ला अकेल्ला बलावत हावय साहब हा , अपन केबिन मा।''
गोदावरी चल दिस केबिन मा।
"जिस्मफरोशी का मामला है पीटा एक्ट लगा कर बन्द कर दूंगा। कुछ लेन देन हो जाये तब छोड़ सकता हूँ ।"
गरजिस थानादार हा।
" मेंहा कोई जिस्म बेचे के धंधा नइ करत रेहेंव साहब। मंदहा हा झपाये रिहिस। मोर ऊप्पर गिर गे रिहिस। इही सिरतोन आवय अउ येला अब्बड़ बेरा ले कही डारे हँव। ...अउ मोर करा तो कुछु नइ हावय देये बर।"
"हावय न ! जोन तोर करा हावय ओ आने करा नइ हावय । एक बेर मोर मालखाना मा चल । "
"काबर। ? "
"नइ जानस ..?
"चल तब बताहू मालखाना मा का होथे तोन ला अकेल्ला ।"
"ताहन छोड़ देबे ।"
"हांव मोला खुश कर दे ताहन तहुँ उछाह मा रहिबे जीवन भर। "
गोदावरी सुकुरदुम होगे। तिरलोकी नाथ ला सुमिरन कर डारिस। कुछु गुनत पूछिस।
"सब बर छुआ मानथो साहब ! अउ मोर देहे ला छूबे तब, नइ छुआ जाबे साहेब ?"
"जिस्म के सुख में छुआछूत नही होता पगली । चल जल्दी एस पी साहब का मीटिंग है शाम को।"
"पहिली पानी पी लेथो साहेब ताहन आहू ।" गोदावरी निकल गे।
..........अउ आइस तब अपन फोन मा गोठियावत आइस। ओखर चेहरा भभकत हावय महिषासुर मर्दिनी कस।
"रिकॉर्डिंग भेज देहो। देख लेबे।थानेदार हा मोर सौदा करत हावय ओखर वीडियो ऑडियो आय । एस पी ,महिला आयोग अउ एस टी एस सी आयोग मा फॉरवर्ड कर देबे।" "क्या ...क्या..?.किसके साथ बात कर रही हो। क्या बक रही हो ...?
"कुछु नही साहब जिस्म के सुख मा छुआछूत नइ होवय तौन ला बतावत हावव गौटिया ला। गोसाइया ला अउ परिचित के वकील दीदी ला...।"
थानेदार अपन कुर्सी ले उछलगे। लाहर - ताहर होगे जइसे केवास म बइठ गे हावय।
"ते जतका पइसा कहिबे ओतका दुहु मोर नोकरी मा आंच झन आवन दे बहिनी...। "
थानादार अब गिड़गिड़ावत रिहिस।
"मोर गोसाइया ला मारे हस तेखर ...मोला रोवाये हस ,लइका ला आँखी दिखाए हस । दिन भर थाना मा बइठे हँव तेखर रोजी अऊ सबले बड़का गोठ रात भर जागे हँव मानसिक पीड़ा झेले हँव ..। जम्मो के हिसाब बना ले हिसाब बनाये मा तुमन माहिर रहिथो ।" गोदावरी करू मुचकावत किहिस।
पांच दस पन्दरा बीस ...हजार रुपिया ला टेबल म राखिस द्राज ले निकाल के ।
"चालीस लागही साहब न एक कम न एक जादा।"
गोदावरी पइसा ला धरिस अउ निकलगे लकर- धकर।
थानादार गाल ला धर के थोथना ओरमा के ठाढ़े हावय जइसे कोनो थपरा मार देहे ।
रस्दा मा गौटिया ला जोहार करिस पांव परिस ।
अपन गॉंव कोती जावत हावय अब। ये थाना ले दूरिहा। नवाँ सपना देखत। सायकिल ढूलत हावय नवा संकल्प के संग। लइका मन ला पढाहु।
नोनी हा सीखोये रिहिस मोबाईल चलाये बर फोन लगा के बात कर लेथे । अब रिकॉर्डिंग घला करे ला सीख जाहू ...। वीडियो देखे बर . ..गाना सुने बर ...घला सीख जाहू नवा संकल्प लिस गोदावरी हा।
चन्द्रहास साहू
द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब के पास
श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़
493773
मो. 8120578897
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समीक्षा-
पोखनलाल जायसवाल:
समाज म माईलोगन(नारी) जात के हाल अभियो "हाय ! अबला तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी" हे। समाज म कतको बदलाव आगे हे, फेर नइ बदलिस त नारी बर समाज के नजरिया। कहूँ नारी दुखयारी होगे त मरे बिहान। दुखयारी कहे के मतलब हे- जुच्छा हाथ(राँड़ी), गरीबीन, उपेक्षित समाज के अउ बेसहारा। अइसन दुखयारी ल टोनही कही नइ त उँकर उज्जर चरित्र म दाग लगाही। शिक्षा के अँजोर ले नारी के जिनगी म बदलाव आय हे। फेर कतेक सबल होय हे? कतेक ह अपन दम म समाज ले लड़े के हिम्मत कर पाथे? आजो पढ़े-लिखे नारी नाँव भर बर सरपंच-पंच बनथे, सरी काम ....। अइसन म उपेक्षित समाज अउ गरीब नारी के दशा के गोठे च...। शहरी इलाका म नारी के हाल जरूर सुधरे हे कहि सकथन। गाँव म उँकर हाल जस के तस हे।
पेट के नाँव जग जीता, संझा खाये बिहना रीता। पेट के जुगत म सबो तर्क-वितर्क चूल्हा तरी चल देथे। गरीब चाह के पढ़ अउ पढ़ा नइ पावँय। कहूँ ए गरीब उपेक्षित समाज ले होगे त दू बेरा के खवई नसीब नइ होय। उँकर जिनगी रस्ता नपई म खप जथे। ए गाँव ले ओ गाँव भटकत रहिथे। एमा नारी जात पिसा के रहि जथे अउ लइकामन तो तमाशा बन के रहि जथे। समाज तमाशबीन बने मजा लेथे। डंगचगहा मन के पूरा जिनगी कोनो तमाशा ले कमती नइ जनावय। जउन मन बनी-भूती नइ मिले ले दू बखत के रोटी बर घूम-घूम के तमाशा दिखाथें। इँकर जिनगी छुआछूत के कोढ़ ले दिन-ब-दिन खिरावत जथे। इही उपेक्षित समाज के पीरा अउ संघर्ष के कहानी आय - थपरा। सिरतोन ताय - छुआछूत इँकर जिनगी बर समाज के कोनों थपरा ले कमती नोहय। जेकर पीरा पूरा जिनगी ल दुख के दाहरा म बूड़ो के रख दे थे।
ए कहानी एक कोति छुआछूत ऊपर तथाकथित सभ्य जन के दोहरा चरित्र ल दिखाथे, त दूसर डहन सरकारी अमरित के दूकान ल कटघरा म खड़ा करथे।
गोदावरी के चरित्र नारी जात बर सीख के लइक हे। बेरा अउ बिपत्ति ल भाँप अपन छठा इंद्रीय ल जगाके अपन लाज ल कइसे बचाना हे? गोदावरी ले सीखे ल मिलथे। गोदावरी के महावीर अउ त्रिलोकी नाथ ऊप्पर आस्था अउ बिसवास ह ओ ताकत आय के उन महिषासुर मर्दिनी बन थानेदार ले खुद के रक्षा कर पाथे।
जगा-जगा शराब के बिके ले नारी अस्मिता कइसे दाँव म लगथे, कहानी म एकर बढ़िया चित्रण करे गे हे। सच म आजो नारी जात वो सेव कस हवय, जेकर ऊप्पर चाकू गिरय या फेर वो चाकू ऊप्पर गिरय कटना तो सेव च ल हे। नारी च बदनाम होथे। समाज नारी च ल दोषी बनाथे। एहू बात के परछो ए कहानी म मिलथे।
कहानी के भाषा शैली, प्रवाह, शिल्प अउ संवाद कथानक के अनुरूप हवय। शब्द चयन, मुहावरा मन के सटीक प्रयोग कहानी के संप्रेषण म खरा उतरथे।
कहानी के शीर्षक सार्थकता लिए हवय।
मोला लगथे के गोदावरी ल पइसा लेवत दिखाना गोदावरी के चरित्र ल कमजोर करत हे। शीर्षक के अनुरूप कहानी ल गौटिया के पाँव... वाला लाइन के संग पूरा कर देना सही रइही। अइसे ए कहानीकार के अपन अधिकार आय के का संदेश के संग कहानी पूरा करना चाहथे।
फिलहाल सुग्घर कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई।
पोखन लाल जायसवाल
पलारी (पठारीडीह)
जिला- बलौदाबाजार छग.
9977252202
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