*माँ शीतला (हिंगलाज) दरबार के पताका - बैरग*
*दुर्गा प्रसाद पारकर*
मसो कुंआर नीत नम्मी दसराहा घर-घर खरख धोवाय। कुंआर महीना म पितर देवता मन के सुआगत करथे। पितर खेदा के बिहान दिन जोत जंवारा ह माढ़थे। ताहन फेर -
कुंवार मास अहोमाया बन-बन सेऊक आए,
चोवा चन्दन अगर मलागर माय के सिर चढ़ाए।
छत्तीसगढ़ म जंवारा ल हिंगलाज अउ घर म बोए जाथे। गांव हित म गांव भर मिल के बदना के मुताबिक बइगा के सुलाह ले हिंगलाज म जंवारा बइठथे। घर के मुखिया ह परिवार के सुख शान्ति खातिर बदना के मुताबिक घर म जंवारा बोथे।
जंवारा पाख म तो पूरा छत्तीसगढ़ देवी मय हो जथे। जघा-जघा देवी महिमा के बखान होथे। संझा बिहनिया तो जंवारा के पूजा आरती होथे | संझा के संझा ढोल मंजीरा बजा के सेऊक मन मइया जी के जस गीद गा के गुनगान करथे। जस गीद म शीतला के बरनन मिलथे जइसे-
ब्रम्हा धर ले कमण्डल मइया धर ले कमण्डल,
शीतला सेवा म चले जाबो हो माय।
बिजली अस चमकै शीतला,
तै बिजली अस चमकै ना।
तोर हिंगलाज म मइया
तोर हिंगलाज म फूलवा के उड़त हे बहार
तुम्हरी हिंगलाज म माय |
थंइया-थंइया नाचय अंगना लंगूरुवा हो ,
माय के अजब बने हे दरबार । छत्तीस रुप तुम धरे माता कोट कोट अवतारा,
ठाड़े जिभिया लाल करत हे रुप दिखय विषधारा।
कर खप्पर हाथे पर लिए सिंह भये हो हां......।
जंवारहा मन शीतला नही ते घर म जंवारा बो के अपन कूल देवी के मनौती ल मानथे। फेर डिगर मन अपन मनोकामना ल पुरा करे के खातिर चंडी, महामाया, बम्लेश्वरी अउ दंतेश्वरी माई म जोत जलाथे। अब मनोकामना जोत शीतला (माता देवाला) म घलो जलाए के शुरू हो गे हवय |छत्तीसगढ़ म जंवारा पाख म बैरग घलो बनाथे।बैरग मातारानी के पताका आय | जंवरहा मन जंवारा पाख म शीतला के बैरग ल मानथे अउ मड़इया मन सुरतोही रात म बैरग बना के देवी देवता ल मनाथे।
*अ) जंवरहा मन के बैरगः-*
जंवारा पाख म अष्टमी के दिन हुमन होथे। देवी मय माहोल म पिसान ल तेल नही ते घींव म सान के अठोई बनाए जाथे जेला रोठ कहिथन। अठोई ह परसाद के काम आथे। तीर-ताखर के गांव वाले मन ल घलो देवी सेवा बर नेवता दे जाथे। अठोई के दिन जंवारा म एक्कइस ठन लिमऊ चघाए जाथे अउ देवता मन म छोटे छोटे धजा खोचे जाथे। शीतला म बइगा ह बैरग ल सम्हराथे। माता देवाला म बैरग ल करिया (मेघीन) लाली अउ पड़री (सादा) रंग के अइलगे-अइलगे एक्कइस-एक्कइस फाल ल सुक्खा बांस ल फहरा दे जाथे। अतका होये के बाद फुलिंग म कलश के स्थापना कर देथे। तीनो रंग के बैरग ह अइलगे-अइलगे देवी देवता मन के चिन्हारी कराथे। सत्ती (कड़गी सात) बर लाली रंग के बैरग, ठाकुर देवता बर पड़री रंग के बैरग अउ ऋृक्षिण (कंकालीन) खातिर करिया रंग के बैरग सिरजाए जाथे।
जब सेऊक मन बाजा के थाप ले देवी के गुनगान करथे तब उत्साहित हो के कतको मन देवता चघ जथे। भाव विभोर हो के देवता मन अपन तन ल लोहा के सांकड़ म पीट-पीट के लहु लुहान कर डरथे। बाना ले जीभ अउ बांह ल घलो के आल-पाल बेध डरथे। देवता म हूम दे के नरियर पा के मन भर नाचथे। देवता चघे के बखत एदे गीद ह जोर पकड़थे-
तुम खेलव दुलारुवा रन बन रन बन हो
का तोर लेवय रइंया बरम देव
का तोर ले गोर रइंया
का लेवय तोर बन के रकसा
रन बन रन बन हो.........
नरियर लेवय रइंया बरम देव
बोकरा ले गोर रइंया
कुकरा लेवय बन के रकसा
रन बन रन बन हो..............
जंवारा पाख म पंडा अउ बइगा के अघात योगदान रहिथे। तभे बइगा के बताए मुताबिक बैरग बर सराजाम के बेवस्था करथे। मेघिन बर दू नरियर, एक ठन धोती नही ते पन्छा म नरियर गठिया के बैरग म बांध देथे। सत्ती बर एक नरियर, एक पंछा अउ चूरी पाठ। ठाकुर देव बर सत्ती कस जोरा करे बर परथे।
*ब) मड़इया मन के बैरगः-*
मड़ई बनाथे तेन ल मड़इया कहिथन। मड़इया घर म बैरग ल बदना के मुताबिक सुरहोती के रात करिया (मेघीन) ,लाली अउ पड़री (सादा) कपड़ा ल तोरन कस बड़े अकार म काट के सात घांव एक के बाद एक राख के सील के सुक्खा बांस म फहरा देथे। फूलींग म कलश के स्थापना करथे । देवारी (गोवर्धन पूजा) के दिन जब राऊत मन बाजा-गाजा के संग बैरग ल परघाए बर जाथे। ओतके बखत तीन ठन लिम्बू, तीन ठन नरियर, उदबत्ती, गुलाल, हूम, बंदन, आगी अउ लोटा म पानी रख के पूजा पाठ करथे। लोक आस्था के मुताबिक हूम धूप म खयरा कुकरा (करिया लाली), खैरी पोंई नही ते पड़री कुकरा के बली चघाए जाथे। तब देवी देवता के मुताबिक राऊत मन दोहा पार केे बाजा बजा के नाच गा के देवी देवता मन ल नेवता देथे-
पूजा परे पूजेरी भइया
धोआ धोआ चांउर चढांव
पूजा होवत हे मोर सत्ती के
सब देखन चले आव
राऊत मन बैरग संग ठाकुर देवता अउ ग्राम देवता मन ल सांहड़ा देव म गोवर्धन खुंदाए के कार्यक्रम म संघरे बर नेवतथे। गोवर्धन खुंदाए के बाद बैरग ल शीतला लेगथे। पूजा पाठ करे के बाद बइगा ह बैरग ल घर लानथे।
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