Monday 5 October 2020

छत्तीसगढ़ी कहानी : डोकरी दाई मर गे !* -विनोद कुमार वर्मा

 *छत्तीसगढ़ी कहानी  :  डोकरी दाई मर गे !* 


                                -विनोद कुमार वर्मा

 

                    ( *1* )


      'तड़ !........तड़.!........ तड़ !..........' कई गोली सब- इंसपेक्टर झिंटूराम के कान के पास से गुजर के शांत होगे। दू गोली ओखर कंधा म लगिस अउ एक जाँघ म ! एही कोई संझा के पाँच बजती के बेरा रहे। बस्तर के सुनसान दरभा घाटी म नक्सली अउ अर्ध सैनिक बल टुकड़ी के बीच दोपहर दू बजे ले मुठभेड़ लगातार चलत रहे...!..?...

          दोपहर दू बजे........ भयंकर बारूदी विस्फोट ले पुलिया उपर गुजरत बख्तरबंद गाड़ी हवा म उछल के बीस फीट दूरिहा जा गिरिस! गाड़ी म दस सैनिक सवार रहिन। ओखर पाछू-पाछू  चालीस सैनिक मन स्पेशल बस म आवत रहिन, - एहा आम बस ले मजबूत  अत्याधुनिक संचार अउ चिकित्सा उपकरण से लैस रहिस।  एही बस म सब इंसपेक्टर झिंटूराम घलो रहिस। सबो अर्धसैनिक बल के जवान मन पेड़ , टीला, गड्ढा आदि के आड़ लेत बस ले उतर के तुरते मोर्चा संभाल लिन।  सड़क के एक कोती नक्सली अउ दूसर कोती जवान मन मोर्चा ले रहिन। दरभा घाटी के घना जंगल मा युद्ध के हालात रहिस मानो दू दुश्मन देश के सैनिक मन एक-दूसर ले लड़त हें !  सैनिक मन समझ गिन कि आज ओमन नक्सली- एंबुस म फँस गे हें! दरअसल दू-तीन दिन ले ये सूचना लगातार मिलत रहिस कि दरभा घाटी के अंदरूनी क्षेत्र मा नक्सली मन के हलचल एकाएक बढ़ गे हे अउ कुछ बड़े नक्सली नेता मन डेरा डारे हुए हें!........वास्तव म एहा नक्सली मन के बड़े सुनियोजित हमला रहिस।

         झिंटूराम सात साल ले बस्तर के नक्सली जोन म नौकरी करत हे। हवलदार ले अब सब-इंसपेक्टर बन गे हे। नक्सली मन के संग मा ओखर एहा तीसरा मुठभेड़ हे, फेर सबले खतरनाक !  मरो.....या......मारो !... अउ कोई विकल्प शेष नि रहिस !........एहा वोही दरभा घाटी ए, जेहा सात साल पहिली काँग्रेस के एक दर्जन बड़े-बड़े लीडर मन के लोहू ला पीए रहिस!

       आज नक्सली मन के तीन बड़े लीडर मन झिंटूराम के गोली के शिकार होय हें! दरअसल अर्धसैनिक बल के साथी मन लड़े बर मोर्चा लिन त झिंटूराम पेड़ के आड़ लेत अपन टुकड़ी के नेतृत्व करत  पाँच हवलदार साथी सहित  लगभग दू किलोमीटर के चक्कर काट के नक्सली मन के पाछू डहर पहुँच गिस अउ सबो 20-20 मीटर के दूरी बना के गोलाई म  पोजिशन ले लिन ताकि नक्सली मन मा भ्रम पैदा हो जाय कि सैनिक मन  पाछू कोती ले घलो घेरे हें!  नक्सली मन के संख्या तीन सौ ले उपर रहिस।ओमन संग जादा देर तक लड़ पाना मुमकिन नि रहिस।....... झिंटूराम अपन साथी मन में सबले आघू रहिस अउ बाकी मन पाछू-पाछू। जब नक्सली मन ओखर रेंज म आ गिन तव  झिंटूराम पाछू डहर ले तीन नक्सली लीडर मन के सिर ला टारगेट करके कई फायर करिस। लगभग ओही समय ओखर साथी मन भी फायरिंग करिन ।  दस मिनट के फायरिंग म नक्सली मन समझ नि पाइन कि पाछू डहर कोन कोती ले फायरिंग होत हे!.... ओही बेरा जवाबी फायरिंग म झिंटूराम ला तीन गोली एक के बाद एक लगिस।......  पाछू डहर म सैनिक मन के जादा संख्या बल के आशंका अउ अपन  तीन बड़े लीडर सहित 10 - 12 नक्सली मन के मौत ले नक्सली मन मा घबराहट अउ डर फैल गे अउ ओमन तेजी से पीछे हटिन।...... नक्सली अउ अर्धसैनिक बल के बीच मुठभेड़ कुल तीन घंटा चलिस फेर अंधियार होय के पहिली नक्सली मन अपन मृत अउ घायल साथी मन ला लेके जंगल कोती भाग गिन- सैनिक मन के हथियार अउ गोली-बारूद लुटे के ओमन के मंसूबा धरे के धरे रह गे!...... अब ये लड़ाई म  जेन सैनिक मन मरिन तेमन मर गिन ! फेर बाकी घायल मन के जान बचगे!....... नक्सली मन के हत्थे चढ़तिन तव कोनो के जान नि बचतिस !

        झिंटूराम के शरीर ले गरम-गरम लोहू तर-तर, तर-तर बोहावत रहे,- ओला रोक पाना ओखर बस म नि रहिस। अब रात के बेरा होत रहे- सरकारी सहायता बर  बिहान पहाय के इन्तजार करना परही! 

      धुप्प अंधियारी रात.....कहीं पास ले कराहे के आवाज आत रहे त कहीं दूर ले उल्लू के बोले के कर्कश ध्वनि !......झिंटूराम के चेतना धीरे-धीरे  जात रहिस। ओला अइसे लगिस कि अब ओखर आखिरी समय आ गे हे! .......बचपन के कुछ चेहरा मन ओखर पथराई खुले आँख के आघू मा चलचित्र के भाँति आय लगिन, जेमन सो या तो बहुत मया करे या फेर घृणा!.......सबले पहिली पिता के राक्षसी चेहरा सामने आइस जेहा शराब पी के ओखर अम्मा संग लगभग रोज मारपीट करय ! अउ फेर ट्रक दुर्घटना म ओखर मृत वीभत्स शरीर!......फेर अपन अम्मा के सुरता आइस जेहा अर्ध सैनिक बल म ओखर भर्ती के शुभ- समाचार ला सुन के रोवत-रोवत मुँहटा तीर म आधा घंटा ले बइठे रहिस!.....फेर सुरता आइस ओ घटना कि  नौकरी ज्वायन करे के छै महीना बाद जब ट्रेनिंग कम्पलीट करके घर वापिस आय रहिस अउ अम्मा बर नावा लुगरा के संग घुंघरू वाला पैंरी खरीद के लाय रहिस त ओला देख के अम्मा मुँहटा म बइठ के फेर रोय ला धर ले रहिस। 

        झिंटूराम के चेतना धीरे-धीरे  अंतरिक्ष म विलीन होत रहिस। ..........फेर डोकरी दाई के सुरता आइस, जेखर हाथ ले चाकलेट अउ भात खाना ओहा कभू नि भूल पाइस! ...... ओह!........ बचपन भी कतका मासूम होथे........ डोकरी दाई.!... ....डोकरी दाई !  कहत ओखर मुँह नि थके।..... भला डोकरी दाई के मया ला ओह कइसे भूल पाही?...मरत बेर घलो   बचपन के एक-एक घटना चलचित्र के भाँति ओखर पथराई आँखी म झूलत रहे ...........


                       ( *2* )


    *लगभग 22 बरस पाछू जब* *छत्तीसगढ़ राज नि बने* *रहिस* ..........


         'मर जाय साला बेर्रा ह.......कीरा परे.......मोर डेगची अउ जम्मो चाउँर ला चोरा के ले गे ! ...... ओई दरूहा मंगतू होही ! का करों.....मोर हाथ-गोड़ थक गे हे, नि तो साले ला......'  -डोकरी दाई बड़बड़ावत रहे, फेर ओखर गारी के सुनईया ओमेर कोनो नि रहिस।

          इंदिरा आवास योजना म दू जगा घर बने हे। डोकरी दाई रइथे तेन मेर चार घर अउ बाकी घर थोरकुन दुरिहा म । डोकरी दाई ओमेर अकेल्ला रइथे, बाकी तोनों घर म कोनो रहे बर नि आय हें। डोकरी दाई दू दिन ले परेशान हे , काबर कि ओखर नानकुन ताला मुरचा खा के खराब हो गे हे। बिहन्चे एक बार अउ कोशिश करिस फेर ताला नि सुधर पाईस त बाहर पार के संकरी लगा के गोबर संइते बर चल दिस। डोकरी दाई गोबर के छेना बना के बेचे त दू पइसा पा जाय, फेर हर महीना सरकारी पेंशन के पइसा अउ  चाउँर के भरोसा ओखर दिन मजे म कटत रहिस। आज गोबर संइत के आइस त देखथे कि घर  खुल्ला हे! ओखर जी धक् ले रह गे!  घर भीतरी खुसरिस त देखथे कि ओखर कुल जमा पूंजी डेगची, लोटा, गिलास अउ आठ किलो चाउँर गायब हे! ओला समझत देरी नि लगिस कि एहा मंगतू दरूहा के करतूत हे!

        मंगतू दरूहा के पाँच पीढ़ी ला गारी देत-देत डोकरी दाई थक गे, तहाँ अब चिन्ता सताय लगिस। मंझनिया  के बेरा झिंटू आही त ओला खाय बर का दूहूँ? न डेगची हे न चाउँर, फेर भात कइसे राँधहूँ ?....... पाँच बरस के झिंटू बर ओखर अतेक मया जइसे दू शरीर एक प्राण ! ओही चिन्ता म डोकरी दाई बिपतिया गे।

       झिंटू के पिता घलो अखंड दरूहा रहिस। एक साल पाछू दारू पी के चलती ट्रक म झंपा गे। 24 साल के मुठियारी कस फरसोनहिन दुच्छा हाथ होगे।अब ओ बिचारी के सहारा केवल झिंटू रहिस.......ओखर चार साल के नानकुन लइका!..... बिचारी लइका ला सुबे आँगन-  बाड़ी केन्द्र म छोड़े , फेर बनी-भूती बर निकल जाय त चार बजे संझा  वापिस आय। आँगन-बाड़ी केन्द्र म झिंटू कुछु खाय-पिये बर पा जाय ,फेर छुट्टी होय त उहाँ ले डेढ़ किलोमीटर पैदल चलके डोकरी दाई करा पहुँच जाय।उहाँ फेर कुछु खाना-पीना मिल जाय अउ चुटुर-चाकलेट घलो। डोकरी दाई झिंटू के आय बिना खाना नि खाय। एक ठिन डब्बा म चुटुर-चाकलेट बिसा के रखे रहय, तेमा के रोज एक ठिन ओला आते-आत खाय बर दे। फिरती बेरा म फरसोनहिन हा डोकरी दाई के घर आवय - कुछु लाल चाय-वाय पियँय, अपन दुख-सुख गोठियावँय अउ फेर अपन बेटा ला पीठ म घोड़ा-बइठार के वापिस घर ले के जाय।....... डोकरी दाई अउ फरसोनहिन आन-आन जात-बिरादरी के हें फेर झिंटू के ददा के मरे के बाद डोकरी दाई फरसोनहिन ला अपन बेटी बरोबर जाने लगिस। फरसोनहिन घलो इंदिरा आवास म रहे फेर ओखर घर हा डोकरी दाई के घर ले एक किलोमीटर दूरिहा रहिस।

       आँगन-बाड़ी ले जइसे छुट्टी होइस तइसे झिंटू हा तरतिर- तरतिर डोकरी दाई के घर कोती भागिस। उहाँ पहुँचिस त देखथे कि घर हा भीतर ले बंद हे!

      झिंटू जोर से चिल्लाइस- डोकरी दाई ! डोकरी दाई !.......  फेर भीतर ले कोई आवाज नि आइस। झिंटू पूरा ताकत लगा के दरवाजा ला हला-हला के चिल्लाय लगिस। फेर ओखर आवाज के सुनईया एमेर कोनो नि रहिन।

        दरवाजा के झेंझरी ले झिंटू भीतर कोती ला झाँकिस। ओखर जी धक् ले रह गे ! खूंटी म लटके  लालटेन के मद्धिम रौशनी खटिया उपर परत रहे..... ओहा देखिस कि गोदरी ओढ़ के कोनो सुते हे!

       झिंटू जोर-जोर से विलाप करे लगिस-' डोकरी दाई मर गे ! डोकरी दाई मर गे ! डोकरी दाई उठ ओ........अब मैं तोला कभू तंग नि करों !..... '

       फेर ओखर करूण क्रंदन ला भला कोन सुनतिस?अब मरना- जीना ला भला झिंटू का जानतिस, फेर साल भर पहिली अपन पिता के मरना ला देखे रहे!...... मुहँटा मेर बस्ता पटक दिस अउ रोवत-रोवत बइठ गे।....... कतको दुख हा घेरे रहे फेर नींद हा अपन बूता ला करबेच्च करथे- झिंटू घलो रोवत-रोवत घर के बाहिर धुर्रा- गोंटी- माटी उपर सुत गे अउ स्वप्न लोक म विचरण करे लगिस। ओला अइसे लगत रहे कि डोकरी दाई ला भगवान वापिस भेज देहे हे अउ एके थारी म भात खात दुनों झन कतकोन बने-बने गोठ-बात करत हें!

       अइसने डेढ़ घंटा बीत गे । झिंटू मुँहटा तीर म  सुतत एती-ओती हाथ-पैर ला फटकारत अल्थी-कल्थी मारत रहे। कुर्ता-पेंट धुर्रियागे।.......तभे ओला अइसे लगिस कि डोकरी दाई हा जोर-जोर से  हलावत हे अउ उठे बर कहत हे। आँखी खोलके निहारिस त बिजली के झटका कस लगिस अउ चैतन्य होके तुरते खड़े होगे।........ सामने डोकरीदाई साक्षात खड़े रहे! झिंटू डोकरी दाई ला  कस के पोटार लिस अउ रोवत-रोवत बोलिस- 'डोकरी दाई तैं कहाँ चल दे रहे ? मैं अब तोला कभू तंग नि करों!'

     डोकरी दाई हाँसिस-' ए दे लड्डू खा, तोर बर दू ठिन लड्डू खरीद के लाने हँव।'

    एखर पाछू दरवाजा के पल्ला ला आघू- पीछू ढकेल के हाथ बोज के भीतर पार के संकरी ला डोकरी दाई खोलिस। झिंटू सरपट घर के भीतर खुसरिस,  त देखथे कि डोकरी दाई हा  खटिया उपर  मुसरिया ला गोदरी ओढ़ाय रहे! दरवाजा के झेंझरी ले झाँक के देखे म अइसन लगत रहे कि डोकरी दाई सुते हे!

       थोरकुन बेर म डोकरी दाई भात-साग ला चुरो दारिस अउ झिंटू दुनों ताते-तात भात-साग ला खात मीठ-मीठ गोठिवावत रहें।

     झिंटू पुछिस- 'डोकरी दाई तैं भीतर पार ले संकरी लगा के कहाँ चल दे रहे? '

    डोकरी दाई बोलिस- 'बेटा, पेंशन के पइसा लेहे बर बैंक गये रहेंव- भारी भीड़ रहिस। फेर डेगची, लोटा, गिलास,ताला अउ चाउँर - साग  ला खरीद के लाने हँव त बेरा होगे। सुबे मंगतू दरूहा सबो जिनिस ला चोरा के  ले गे हे!'

     डोकरी दाई के घर म चोरी अउ फेर ओखर मरे के डर हा झिंटू के बालमन मा घर कर गे अउ पुलिस बने के जुनून सवार होगे!

    झिंटू बोलिस- 'दाई बड़े होके मैं पुलिस बनहूँ अउ मंगतू दरूहा ला पकड़ के जेल  म भरहूँ! '

    दाई बोलिस -' बेटा पढ़-लिख के जरूर पुलिस बनबे।फेर ओ दिन तक मैं इहाँ नि रहों- भगवान के कर्जा बाँहचे हे, ओहू ला तो छूटे बर जाना हे!'

    झिटू बोलिस-' महूँ जाहूँ दाई तोर संग!'

     दाइ बोलिस-' नहीं बेटा, तैं पाछू आबे। पुलिस बनबे त अपन अम्मा बर कुछु लेबे कि निहीं?'

      झिंटू हा अपन सबो ज्ञान के निचोड़ ला समेटत बोलिस-' हाँ दाई, अम्मा के लुगरा चिरा गे हे। ओखर बर नावा लुगरा अउ घुंघरु वाला पैंरी खरीदहूँ ! अम्मा नावा लुगरा पहिर के रेंगत-रेंगत घर आही त ओखर पैरी के छम-छम आवाज मा मैं पहिली ले जान डारहूँ कि अम्मा आवत हे!


                      ( *3* )


          *कुछ दिन बाद एक समाचार अखबार म प्रमुखता ले छपिस -' छत्तीसगढ़ के अर्धसैनिक बल के सब- इंसपेक्टर झिंटूराम को* *मरणोपरांत कीर्तिचक्र से* *सम्मानित किया जाएगा। सम्मान प्राप्त करने के लिए उनकी माँ फरसोनहिन बाई छत्तीसगढ़ शासन के विशेष विमान से 24* *जनवरी को* *दिल्ली जाएँगी*।' 

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 *छत्तीसगढ़ी कहानी : विनोद कुमार वर्मा*

सुधर के का करबों-अजय अमृतांशु

 सुधर के का करबों-अजय अमृतांशु


अशोक ल हेलमेट लगाय देख के पूछ परेंव- तैं तो कभू हेलमेट नइ लगात रहेस जी फेर आज कइसे? अशोक - नइ लगात रहेंव गा फेर का करबे आजकल चौक-चौक म पुलिस पहरा देत रहिथे। हेलमेट नइ लगाय हस कहिके काली अड़बड़ झन ला तीन-तीन सौ फाइन करे हवय पुलिस हा। नइ लगाहूँ त जतका के हेलमेट नइ हे ततका के फाइन हो जहय। तेकर सेती येला आजे लाय हँव ड़ेढ सौ के आय। डेढ़ सौ म हेलमेट....? मतलब येहा आई एस आई मार्का नोहय का ? में पूछ परेव। अशोक ह झल्ला के कहिथे- मैं आई एस फाई एस ल नइ जानव मूँड़ म हेलमेट रहिना चाही बस ताकि पुलिस ह झन रोकय। मतलब तोला अपन जान के परवाह नइ हे ...तोला पुलिस के फाइन के चिंता हे। अरे बने असन मार्का के लेते त तोर प्रान के रक्षा घलो होतिस। कहूँ  दुर्घटना होगे ना त ये हेलमेट हा छर्री दर्री हो जाही तो मूँड़ी के तो बाते छोड़ दे । अशोक ह झल्ला के कहिथे- अब तैं जइसन समझ भाई अभी तो फाइन भरे ल बाँचव। रहिस बात दुर्घटना के जब के बात तब देखे जाही।


इही हाल मास्क लगाय के हवय । कोरोना अतेक बाढ़े के बावजूद लोगन सावचेत नइ हे। मास्क तो लगाबे नइ करय। अउ लगाही भी ता चौक चौराहा म उही पुलिस के डर मा कि फाइन झन करय, चिल्ल्याय झन, लाठी झन चलाय।  अपन प्राण के वोला कोनो चिंता नइ हे। कोरोना तेज रफ्तार ले बढ़त हवय, प्रशासन फेर लाकडाऊन करत हवय फेर हमन हन कि समझबे नइ करन,सुधरबे नइ करन। लाकडाउन म घलो निकालना हवय काबर बड़े बड़े काम अटके रहिथे जइसे- ककरो गुटका खतम होगे हवय, ककरो बीड़ी, कोनो ल मंजन चाही त ककरो राजश्री खतम होगे हवय। प्रशासन के भय हमर कुछु नइ बिगाड़ सकय। कुल मिलाके ये बाहिर घुमइयाँ मन यदि संक्रमित होगे तब तो फेर भगवाने मालिक हे। पता नहीं कोन कोन जघा फैलाही। अब अइसन मा कोरोना ह फ़इलही  कि काबू म आही ? 


मास्क लगाना या नइ लगाना हिदुस्तानी मन के जन्म सिद्ध अधिकार आय। सरकार के समझाय ले हमन नइ समझन। सुधरना हमर डिक्शनरी म लिखायेच नइ हे। फेर सुधर के का करबो? हमर पारा परोस के मन सुधरिस का.? अउ जेन सुधरगे तेन ल का मिलिस..?  हमरे भर सुधरे ले देश सुधर जही का ? अउ हमरे भर बिगड़े ले देश बिगड़ जही का..? तब फेर बेवस्था जइसे चलत हे वइसने चलन दे।


राजेश हा घर के कचरा ला नाली म डरवात रहय। पूछेव त मोरे बर खखवा गे- कचरा वाले गाड़ी ह 3 दिन होगे हे आयेच नइ हे अब ये कचरा ला घर मा बोज के रखँव। अब ये महात्मा ल कोन समझाय अरे 3 दिन होगे हे ता दू दिन अउ रुक आबेच करही, फेर कहाँ मानना हे। नाली भले बोजा जाय फेर कचरा डारे ल नइ छोड़य। पालिका ल दोष दे बर अइसने मन सबले आघू रहिथे कि पालिका ह सफाईच नइ करवाय। 


ईश्वर के टूरा ह केरा के छिलका म फिसल के उतान गिरगे, मूड़ीच ह फूटगे। अब वो फोर-फोर के गारी देवत हे कोन फलान ढेकान मन खा के ये मेर फेंके हवय आज मोर बेटा ह मउत के मुँह ले बाँचगे। अब वोला ऐना कोन देखाय? काली उही ईश्वर ह केरा खा-खा के छिलका ला रद्दा म फेंकत रहिस। आज अपन ऊपर आय हे ता बगियावत हे।  चलनी म दूध दुहय करम ल दोष दय। 


फेर एक बात हमर माने ल परही- हमन सुधार के उम्मीद ल कभू नइ छोड़न। देश मा चन्द्रशेखर आजाद अउ भगतसिंह के पैदा होय आस जरुर राखथन फेर दूसर के घर मा। अब समझ मे आवत हे कि बाहिर के मनखे मन काबर कहिथे हिदुस्तानी मन महान हे। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा

2 अक्टूबर - सरला शर्मा

 2 अक्टूबर -सरला शर्मा

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     आज के तारीख देश भर बर सुरता करे लाइक तारीख आय । हमर छत्तीसगढ़ अउ हम छत्तीसगढ़िया मन बर गरब गुमान के मौका आय ...काबर ???

महात्मा गांधी ...

*****  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जनम तारीख आय । उन पहिली घवं दिसम्बर 1920 मं छत्तीसगढ़ आए रहिन । कंडेल नहर के विवाद सत्याग्रह के आधार मं सुलझाए रहिन धमतरी , कुरूद घलो गए रहिन । दूसर घवं नवम्बर 1963 मं फेर छत्तीसगढ़ आए रहिन ओ समय स्वराज कोष अउ तिलक कोष बर दान देहे के बात रखिन । 

रायपुर के वर्तमान गांधी चौक मं उन जनसभा ल सम्बोधित करे रहिन त इहां के किसान मन के मेहनत के तारीफ भी करे रहिन । 

    पंडित सुन्दर लाल शर्मा जेन कवि , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , जातीय सहिष्णुता के पुरखा आंय गांधी जी ल लेहे 2 दिसम्बर 1920 के दिन कलकत्ता गए रहिन , कंडेल ग्राम मं उंकर संगे मं रहिन आज हमन उनला छत्तीसगढ़ के गांधी कहिथन । 

     लाल बहादुर शास्त्री ...

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इंकरो जनम 2 अक्टूबर के होए रहिस , इन देश के दूसर प्रधान मंत्री रहिन । सन 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय देश के मनोबल बढ़ाईन ,सक्षम नेतृत्व के धनी रहिन । देश के रखवारी करइया अउ देश के अन्नदाता दूनों ल एकसमान सनमान दिहिन नारा दिहिन " जय जवान , जय किसान । " पहिली घवं माटी के मितान किसान ल राष्ट्रीय स्तर मं महत्व मिलिस । 

इनला बाद मं भारत रत्न के सम्मान मिलिस । 

   हमर छत्तीसगढ़ हर किसानगढ़ घलाय तो आय तभे तो एला धान के कटोरा कहे जाथे । आज इन 

 महान देशसेवक मन ला छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन नमन करत हें । 

   सरला शर्मा

कोख तलासत गांधी -हरिशंकर देवांगन

 कोख तलासत गांधी -हरिशंकर देवांगन

                 मोर देस के हालत बहुतेच खराब हे , एक घांव कइसनो करके भारत म फेर जनम धरन दव , आंदोलन निपटाके तुरते लहुंट जहूं – गांधी जी हा सरग म गोहनावत रहय । चित्रगुप्त किथे - उहां अवइया हजारों बछर तक .... कोख के एडवांस बुकिंग चलत हे , कन्हो खाली निये , काकरेच कोरा म डारंव ? ब्रम्हाजी समाधान निकालत किहीन के - गांधी जी धरती म जाही , माने धरती के भला होही , एला अपन मन मुताबिक कोख पसंद करन दे , बाकी ल में बना लुहूं । गांधी जी खुस होके धरती म पहुंचगे , कोख के तलास म ।

                गांधीजी रेंगत रेंगत ठोठकगे – येदे घर हा बड़े जिनीस मनखे के आय कस लागत हे । आंदोलन बर पइसा के आवसकता परही , येकरे घर जगा मिल जतीस ते बने होतीस , काकरो करा स्वतंत्रता आंदोलन कस , हाथ लमाये बर नी परतिस । बनइया महतारी ला गांधी जी पूछे लागिस – दई , तोर कोख म , आना चाहत हंव । दई पूछथे - तैं कोन अस बेटा ? गांधीजी जवाब दिस - गांधी अंव दई । दई फेर पूछीस - कोन गांधी ? गांधी किथे - ये देस म अजादी लनइया गांधी अंव दई । दई फेर पचारिस - हमर देस तो अभू अजाद हे बेटा , तैं इहां आके काये करबे ? फेर , मोरे तीर काबर आथस बेटा ? गांधी बतइस - में तोर दुख दूर कर दूहूं दई , संगे संग गरीब मजदूर मन ला मुड़ी उचाके जीना सिखा दुहूं । दई किथे - मोला कहीं दुख निये बेटा । तोर ददा के अतेक अकन कारोबार हे , अतका पइसा , नौकर चाकर हे , मोला काके दुख । तें फोकट झिन आ । बलकी , तैं जब मोर कोख म आबे , त दुख हमर घर म , उही बेरा ले खुसर जही । गांधी अवाक होके पूछथे - कइसे दई ? दई किथे - तैं आबे तहन हमर अतेक बड़ कारोबार ल समहाले छोंड़ , गरीब मजदूर मन ला हक देवाये बर , हमरे खिलाफ भड़काबे , जगा जगा आंदोलन चलाबे , हमरे पइसा उड़ाबे , हमीं ल बरबाद करबे । सही सही टेक्स पटाबे , हमर पुरखा के कमाये चीज बस ल फोकटे फोकट एला वोला बांटबे , अऊ तैं तो चैन के नींद सुत जबे , तोर ददा के का होही , चार दिन के जिअइया तोर बबा , दूयेच दिन म ढलंग दिही , तैं दूसर कोख देख ले बेटा । 

                गांधी सोंचत हे - बड़े जिनीस कारोबारी घर जनम धरे म सहीच म , कहूं ओकर कारोबार म फंदागेंव , त वाजिम म मोर जनम धरे के मकसद पूरा नी हो पाही , भगवान मोला बचां लिस । येदे घर थोकिन छोटे कारोबारी वाला आय , इंहें देखथंव ........ । दई देखके गांधी पूछे लागीस - दई तोर कोख म जगा देबे का या....? मय गांधी अंव दई , तोर जम्मो दुख के निवारन कर देहूं । दई किथे – रहा , तोर ददा ल पूछन दे ... तंहंले बतावत हंव ....। थोरिक बेर म दई किथे - मोर सवाल के जवाब दे , तभे बता पाहूं । गांधी किथे - पूछ न दई पूछ । दई पूछिस - तोर ददा पूछत हे , हमरे असन , जनता ल मिलावटी अऊ नकली माल बेंच सकबे का ? गांधी निही किहीस । दई फेर पूछीस - झूठ गोठिया बता के टेक्स बचा सकबे का ? गांधी निही कहत , मुड़ी डोलइस । दई फेर पचारिस - पुलुस ल गलत सलत बता के अपन ददा ल बचाबे का ? गांधी किथे – में गांधी अंव दई , मोर से अइसन उम्मीद काबर......। दई किथे - बने करे बेटा , आये के पहिली पूछ ले , में तोर पांव परत हंव .......... , तैं दूसर गर्भ देख ले । 

                गांधी मने मन सोंचत हे , बैपारी मन मोर ले नराज हें कस लागथे । अंग्रेज मन बयपार करे बर इहां आय रिहीन , उही मन ला भगा देन , त ओकर संगवारी मन के नराज होना वाजिब आय । में जनम धर तो लंव , जम्मो ठीक हो जही । बड़े अधिकारी के , बंगला म खुसरके दई देखके पूछिस - तोर कोख म आहूं या ? मय गांधी अंव गांधी । दई सवाल उठइस - तैं काये करबे बेटा ? ये देस म अभू कहींच समस्या निये । अऊ जे हे भी , तेकर बर हमर साहेब हे न । बड़का ले बड़का समस्या ल चुटकी म निपटा देवत हे । तोर आवसकता निये । तैं आबे , ईमानदारी जताबे , करिया धन सकेले बर मना करबे , भरस्टाचार करन नी देबे , त देस म समस्या अऊ कतको गुना बाढ़ जही । अऊ हमरे कस हो जबे अऊ करिया धन कमा कमा के बिदेस म कोठी भरबे … तब इही चक्कर म परेसान होवत रहिबे । तोर आय ले कहूं हमीं मन बदल गेन , त हमन परेसान रिबो , हमरे सुख ल गरहन तिर दिही । नानुक फरिया पहिर के , गमछा लपेट के देंहे देखावत किंजरबे , तोला कोन हांसही , हमन ल हांसही , हमर नोनी मन के कमती कपड़ा पहिरे के अधिकार ल नंगाबे । तेकर ले , कन्हो दूसर दरवाजा देख ले बेटा......... । 

               गांधी सोंचिस , बड़का साहेब मन , समस्याविहीन हे । करमचारी के घर खुसरहूं , उही मन रात दिन समस्याग्रस्त रहिथें । पूछतेच साठ दई केहे लागीस - सरकार हमन ला , अतेक तनखा नी देवय बेटा के , तोर जइसे बड़े आदमी ल पढ़ा लिखा पाल पोस सकन । गांधी किथे - दई , मय देस के बेवस्था सुधारे बर आहंव , पढ़हे लिखे खाये पीये बर निही । दई पूछथे - बिन खाये पीये , बिन पढ़हे लिखे का कर डारबे ? हमर ताकत , तोला सरकारी स्कूल म पढ़हाये के हे , जिंहा , न कहींच सीख सकस , न जान सकस , त कायेच आंदोलन खड़ा कर सकबे ? प्राइवेट स्कूल म भेजीच देबो , त खाबो कामे , काये पहिरबो ? दू चार पइसा एती वोती ले कमातेन , तहू ल तैं नी कमावन देबे , त तोर डोकरी दई के दवई कइसे आही ? तैं दूसर दुवारी देख , जिंहा तोर शिक्षा दीछा बने होये ... अऊ आंदोलन चला सकस..... ।  

                गांधी रेंगत रेंगत सोंचत हे , इहां के मनखे मन कतेक समझदार होगे हे , दई बपरी , ठीके कहत हे , कस लागथे.... । महल कस खइरपा , फेर ललचा दीस गांधी के मनला । सुरू के अनुभौ के सेती झिझकीस घला , फेर अपन काम बर धन के समस्या के सुरता आतेच भार खुसरगे । पहिली सोंचिस , बिन पूछे खुसरहूं , पूछथंव त मना कर देथे । फेर , मन नी मानीस , पूछ पारिस - दई तोर कोरा म आतेंव का या ....? दई किथे – तैं मंगइया गांधी अस का बेटा .......। हमन सरी दुनिया ल चंदा बांटथन , तैं एती वोती चंदा मांगत किंजरके , हमन ल बदनामी देबे । तोर ददा ल ठेकेदारी के नावा नावा तरीका सिखाबे , घर बनाबे ते टूटही निही , सड़क बनाबे तेमा खंचका नी होही , बांध बनाबे ते बोहाही निही । अतका ईमानदारी देखाबे , त एके बछर म हमर घर टूट जही , हमी मन सड़क म आ जबो । हमन बेंचा जबो , त तोर बर काये बचा पाबो , तैं किरपा कर , दूसर गर्भ देख ले बेटा । 

                गांधी सोंचे लागिस के , देस म कानून बेवस्था ठीक रहितीस , त समस्या अइसने खतम हो जतीस । चल नियावधीस के घर । दई ला पूछीस - दई मोला जनम देबे या..... ? दई किथे - हव बेटा तोला खत्ता म जनम देहूं , फेर ...... । गांधी ल पहिली बेर कन्हो हव किहीस , वो खुस होतिस , तेकर पहिलीच , फेर शब्द ओकर माथ ल ठनका दीस । गांधी पूछथे – काये , फेर दई ..... ? दई बतइस - अइसे कन्हो दिन नी होय , जब तोर ददा ला , कन्हो नी धमकाये या पइसा के लालच नी देवय । तैं धमकी सुन नी सकस , पइसा लेवन नी देवस ? तोर ददा हा , नियाव करथे त , सरग के रसता खुल जथे , जमीर बेचथे त , धरती म सरग बन जथे । तैं धरम के , नियाव के रद्दा म रेंगइया अस , जेला पहिली जनम म घला सिरीफ ओकरेच सेती , मार दे गे रिहीस । एक घांव फेर , कन्हो महतारी के कोरा सुन्ना झिन होय , कन्हो सोहागन के मांग झिन उजरे , तैं मोर कोरा म झिन आ बेटा । अपन जान म खेल के , नियाव के रद्दा अख्तियार करी लेबोन , त देस चलइया , सायदे कनहों मनखे , जेल के बाहिर रहीं , तब ये देस ल कोन चलाही....... , तैं अकेल्ला चला डरबे ? तोर ईमान ल घरिया , अऊ मोर गर्भ म खुसर या मोर गर्भ के रसता छोंड़ , अऊ दूसर बर रसता बना । कलेचुप निकलगे गांधी जी...... । 

               गांधी सोंचे लगिस .... मोर सोंचना गलत हे का .... ? एकर माने देस के बेवस्था के गड़बड़झाला के पाछू कन्हो अऊ हे , ठीक हे , महूं गांधी अंव , हार नी मानो । पुलुस के घर जनम धरहूं , इंहे पता चलही , कोन धमकाथे । दरोगिन महतारी ला गांधी किथे पूछे लगिस - दई , में गांधी अंव , तोर कोरा म जनम धरतेंव या .... जदि तोर आज्ञा होतीस ते ... ? दई किथे – वा ..... , अतेक बड़ मनखे..... , कहूं बने घर नी देखते बेटा । तोला जनम दे म , कते महतारी गरब के अनुभौ नी करही । गांधी किथे - दई , में भरस्टाचार , अत्याचार अऊ व्यभिचार ल मेटाये करे बर आये हंव या..... । मनखे मन कतेक ससता म बिकत जावत हे , ऊंकर असली किम्मत बताये बर आये हंव । जमाखोरी , हरामखोरी अऊ नशाखोरी ल जर ले मेटाये बर आय हंव । दई किथे – वा .... तोर ददा घला , अइसनहे सोंचथे बेटा । वाह , मोर तलास पूरा होगे कस लागत हे – गांधी मने मन खुस होवत केहे लागीस – त में खुसरत हंव दई । दई किथे - गोठ ल पूरा होवन दे तहन , आबेच निही गा ..... , फेर , तोर कस मनखे ल , ये देस म , लुका के रेहे बर परही । गांधी पूछिस - काबर दई ? मय कन्हो अपराधी थोरेन अंव । दई बतइस - बेटा तैं अपराध करबे तभे तोर नाव उजागर होही । गांधी पूछथे - त अइसनेहे , कन्हो नाव कमाही या ....... ? अइसने मनला धर के जेल म नी डारे का हमर ददा हा ..... ? दई बतइस - इहीच मन ल संरक्षन देना , ऊंकर बूता अऊ करतव्य आय । गांधी मुहुं ला फार दीस – का..... ? दई किथे - तिहीं केहे न अभीच्चे के , मनखे ल ओकर सही किम्मत पहिचाने बर आना चाही , तोर ददा एमन ले अपन सही किम्मत वसूलथे । गांधी किथे - ये तो गलत हे दई .. ? दरोगीन भड़कगे - का गलत अऊ का सही तेला , तेहा सिखाबे रे ....., निकल मोर दरवाजा ले , निही ते , अभीच्चे अंदर करा दूहूं । 

               गांधी जी मने मन बिचारे लगिस ..... बुरई के जर , कहूं अऊ हे तइसे लागथे । धियान अइस , अपन संगवारी मन के लइका के । गांधी जइसे पहुंचीस , दई ओकर पांव परीस । गांधी सोंचिस - अब पहुंचेंव सही जगा म कस लागत हे । खुसी के मारे पूछिस – दई , मोला , तोर बेटा के रूप म जनम देबे या ..... ? दई खुस होके किथे - गांधी मोर संतान बने , एकर ले बढ़के , मोर बर का हो सकत हे । तोरे कारन तोर बबा , कतका बछर ले राज करीस । तोरे कारन , तोर बाबू , आज भी राज करथे , तोरे नाव के सेती , सात निही सत्तर पीढ़ही बर , धन दोगानी जमा कर डरे हाबन । तोर नाव ले कतको असम्भव बूता , छिन म हो जथे , चाहे हम पक्ष म रहन या बिपक्ष म । हम चारा खाथन , त नी पकड़ावन , तोप खाथन तभो नी उड़ावन , कोइला खाथन तभो मुहूं नी करियाये , स्प्रेक्ट्रम खाथन तभो नेटवर्क बने रहिथे – जम्मो तोरे नाव के परभाव आय । ते हमर हथियार अस बेटा , जलदी आ , तोर ददा एक ठिन घोटाला म फंसे हे , सेट नी होवत हे , ते आते त यहू हो जतीस , तंहंले तोर ददा के खुरसी अऊ सत्ता तोरेच ताय .... हमर काय , आज के रेहे काली के गे ...। खुरसी अऊ सत्ता के नाव ले गांधीजी के देहें कांपगे । अजादी के पहिली घला अइसनेच लालच देखइन , फेर सत्ता समहाले के दिन , गली गली भटके बर छोंड़ दीस । गांधी किथे – में सत्ता पाये बर , खुरसी म कुला मढ़हाये बर नी आथंव , भ्रस्ट मनला जेल म डरवाये बर आवत हंव । दई किथे - तैं सत्ता पाये बर नी आथस , त मोर कोरा म काये करे बर जनम धरबे ? सत्ताधारी के लइका सत्ताधारी नी बनही , त ओला ओकर घर जनमना नी चाही । समे के पहिली बता दे ठीक करे , तोर जइसे बेटा पायेके सपना देखे रेहेंव , फेर तें मोर आंखी उघार देस । हमर उन्नति बर तोर नावेच काफी हे , तैं कन्हो जनता के घर जा , उंहे तोर आवसकता हे । दई अपन गर्भ के मुहूं ल तोप दीस ...... । 

               हार खावत सोंचत हे गांधी के , जनता के घर जाहूं , कहूं उहू मना कर दिही तब ? सरग म कइसे मुहूं देखाहूं .... । आखिरी प्रयास करीच लेथंव । दई ला पूछीस - में गांधी अंव , तोर कोख म जनम धरतेंव या...... ? दई किथे - आ बेटा आ , पहिली बेर मोला पूछ के आवत हे मोर संतान , निही ते जेकर जब मरजी होथे चले आथे , हमन रोके के कतको उपई करथन तभो । गांधी पूछथे – का..... ? दई बतइस - हां बेटा , सरकारी असपताल म परिवार नियोजन करवाथन तभो , साल दर साल खसखस ले बिया डरथन । प्राइवेट म कन्हो गरभ निकालथें , कन्हो किडनी ...। फेर , तेंहा मोर घर आके काये करबे ? गांधी बतइस - अमीरी अऊ गरीबी के बीच के गड्ढा ल पाटे बर , आथंव दई ..। दई किथे - तब ते कुछू नी कर सकस बेटा , ये गड्ढा हमर लास म पटाथे , तहूं लास बनबे त हमर कस्ट कबेच मेटाबे ? मोर पहिलीच ले अतका औलाद हे जेला , पोसे पाले बर , कतका पापड़ बेलथंव । तोर इंतजाम कइसे होही ? तैं ठहरे बड़े आदमी । बड़े मन संग तोर दोसती । गरीबी , भुखमरी अऊ लचारी के संग रहिथन हमन , एमा वो ताकत निये जे तोला खड़ा कर सकय । हमरे कस तहूं गुमनामी म झिन सिरा जास , डर लगथे । तोर आये के बड़ खुसी हे बेटा , फेर तोर जनम के खुसी मनाना तो दूर , तोला बिहिनिया बियाहूं , संझा तोर दूध बर , कमाये बर जाहूं । तोला बियाना मतलब सिरीफ , नावेच कमाना हे बेटा । तोर नाव ले , मोर कस जनता के पेट नी भरय । में कमाहूं , तभे मोर रंधनी खोली ले कोहरा निकलही , तब तोर हाथ ले कउंर उठही । तोर कस कपड़ा पहिर के , तोर नाव ले खवइया बहुत नंगरा देखे हन हमन । तोर बर खाये के लानहूं त , तोर नाव ले यहू मन खावत हे कहिके , कन्हो बदनाम झिन करय । जदि ते सहींच के गांधी होबे त , तोला जनता के बेटा आस कहिके , तोर अगुवाई ल कोन स्वीकारही ? ओकर सेती तोला , मय अपन गर्भ म धारन जरूर करिहंव , फेर उहां ले बाहिर नी आवन दंव , अपन भीतर गांधीपन के अहसास करत जी लेहूं । गांधी पूछीस – जनम धरके बाहिर नी आहूं , त तोर तकलीफ ल कइसे मेटाहूं ? दई किथे - सच बतांवव बेटा , तोर पहिली , कतको झिन गांधी बनके , मोर गर्भ म अइन , फेर बाहिर आके नाथू बन गिन । घेरी बेरी गांधी बन के आथे , सपना देखाथें , फेर खुदे सपना हो जथें । हमन मुहूं फार के ताकथन , वो लात मार के निकल जथे । वो भुला जथे हमन ल , जब पंचइत अऊ संसद के देहरी म पहुंच जथे । में नी चाहंव , तहूं बाहिर आ , पंचइत अऊ संसद के हिस्सा बन अऊ भुला जा हमन ला..... । मोर सरत मनजूर हे त मोर गर्भ के दरवाजा तोर बर खुल्ला हे , तैं प्रवेस कर , में उही दिन ले , अपन गर्भ के मुहूं ल अइसे चमचम ले मूंदहूं के , तोला मोर ले कन्हो अलग झिन करे सकय । डर्रागे ..... गांधी जी , पल्ला भागीस........ । एक कोती दई समझिस के , गांधी आना नी चाहत हे , अऊ दूसर कोती , गांधी जान डरीस के , जनता , गांधी बियाना नी चाहत हे , तेकर सेती रात दिन दुख म डूबे परे हे । 

               पहिली बेर अतका हतास अऊ निरास रिहीस गांधी । अभू ओहा गर्भ निही बलकी शांति तलासे लागीस । तभे आश्रम के फुलवारी म ... एक झिन दई बने लइक दिखगे । सोंचिस , एक प्रयास अऊ ... । चुपचाप ओकर पिछू पिछू .... ओकर कुरिया म हमागे । उही दिन मौका मिलगे .... बिगन पूछे  गर्भ म खुसरगे .....। कुछ दिन पाछू .... दई ल जइसे पता चलिस के , वोहा पेट म हे , अब्बड़ेच रोये लगीस । पेट भितरी ले , गांधीजी केहे लगीस – दई ... तैं झिन रो , में आगे हंव , तोर दुख ल मेटा देहूं ..... । दई पूछिस – तैं कोन अस बेटा ? गांधी किथे – मय गांधी अंव दई । दई किथे - तोर आयेच के तो दुख हे बेटा । तैं .... अवैध सनतान अस गा ...... । गांधी किथे - अवैध कइसे दई ..। जे दाढ़ही वाला तोर तिर आथे , तउने मोर ददा आय का ....? दई बतइस - जेला ते ददा कहत हस ..... ओहा काकरो ददा मदा नोहे .... सिरीफ आश्रम प्रमुख आय बेटा । ओ नी चाहे के ..... तैं जनम धर । ओहा अऊ कतको लइका कस ..... तोला पेट भितरी म मार दिही बेटा .... । अन्याय देख .... गांधी अपन रंग देखाना सुरू करीस अऊ केहे लगीस - चल थाना , रिपोट करबो । पेट भितरी के मनखे ला मरइया ..... अइसन मन ला ....... चैन ले जियन नी देन । दई किथे - का कर लेबो बेटा । दू चार दिन जेल म रही ..... बाहिर आही ...... फेर कन्हो अबला के पेट ले खेलही । मोरे बदनामी होही , ओकर काये बिगड़ही । इंसाफ मिलत ले , तोर मोर पीढ़ी ... दुनिया ले चली दे रही । एती दाढ़ही वाला जान डरिस के , दई पेट म हे । उही रात , दई के भात म , दवई मिला के खवा दीस ................। पेट भीतरी म गांधी जी छटपटाये लगीस ..... पेट पीरा म दई रात भर तड़फीस .......  । बिहिनिया ..... जब दई ल होस अइस तब ...... गांधी जी ....... चौक म खड़े .... अपन पुतला म खुसरके सुसकत रिहीस । गांधी अब न सरग जा सकय , न ओला कन्हो बियाये बर तियार ...... । अभू घला ये सहर ले ओ सहर , ये गांव ले वो गांव , ये पारा ले वो पारा , ये चउराहा ले वो चउराहा , किंजरत हे , कन्हो कोख म जगा पाये के उम्मीद म .......। 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा